दस महाविद्या दीक्षा/दुर्गा सप्तशती बीज मंत्र
[8:25 PM, 1/14/2023] Prabodh: दस महाविद्या दीक्षा
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साधनाओं की बात आते ही दस महाविद्या का नाम सबसे ऊपर आता है। प्रत्येक महाविद्या का अपने आप में अलग ही महत्त्व है। लाखों में कोई एक ही ऐसा होता है जिसे सदगुरू से महाविद्या दीक्षा प्राप्त हो पाती है। इस दीक्षा को प्राप्त करने के बाद सिद्धियों के द्वार एक के बाद एक कर साधक के लिए खुलते चले जाते है।
दस महा विद्या:👉 1.काली, 2.तारा, 3.त्रिपुरसुंदरी, 4.भुवनेश्वरी, 5.छिन्नमस्ता, 6.त्रिपुरभैरवी, 7.धूमावती, 8.बगलामुखी, 9.मातंगी और 10.कमला।
महाकाली महाविद्या दीक्षा
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नाम : माता कालिका
शस्त्र : त्रिशूल और तलवार
वार : शुक्रवार
दिन : अमावस्या
ग्रंथ : कालिका पुराण
मंत्र : ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि कालिके स्वाहा
दुर्गा का एक रूप : माता कालिका 10 महाविद्याओं में से एक
मां काली के 4 रूप हैं:- दक्षिणा काली, शमशान काली, मातृ काली और महाकाली।
राक्षस वध : रक्तबीज।
कालीका के प्रमुख तीन स्थान है
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कोलकाता में कालीघाट पर जो एक शक्तिपीठ भी है। मध्यप्रदेश के उज्जैन में भैरवगढ़ में गढ़कालिका मंदिर इसे भी शक्तिपीठ में शामिल किया गया है और गुजरात में पावागढ़ की पहाड़ी पर स्थित महाकाली का जाग्रत मंदिर चमत्कारिक रूप से मनोकामना पूर्ण करने वाला है।
यह तीव्र प्रतिस्पर्धा का युग है। आप चाहे या न चाहे विघटनकारी तत्व आपके जीवन की शांति, सौहार्द भंग करते ही रहते हैं। एक दृष्ट प्रवृत्ति वाले व्यक्ति की अपेक्षा एक सरल और शांत प्रवृत्ति वाले व्यक्ति के लिए अपमान, तिरस्कार के द्वार खुले ही रहते हैं। आज ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं है, जिसका कोई शत्रु न हो … और शत्रु का तात्पर्य मानव जीवन की शत्रुता से ही नहीं, वरन रोग, शोक, व्याधि, पीडा भी मनुष्य के शत्रु ही कहे जाते हैं, जिनसे व्यक्ति हर क्षण त्रस्त रहता है … और उनसे छुटकारा पाने के लिए टोने टोटके आदि के चक्कर में फंसकर अपने समय और धन दोनों का ही व्यय करता है, परन्तु फिर भी शत्रुओं से छुटकारा नहीं मिल पाता।
महाकाली दीक्षा के माध्यम से व्यक्ति शत्रुओं को निस्तेज एवं परास्त करने में सक्षम हो जाता है, चाहे वह शत्रु आभ्यांतरिक हों या बाहरी, इस दीक्षा के द्वारा उन पर विजय प्राप्त कर लेता है, क्योंकि महाकाली ही मात्र वे शक्ति स्वरूपा हैं, जो शत्रुओं का संहार कर अपने भक्तों को रक्षा कवच प्रदान करती हैं। जीवन में शत्रु बाधा एवं कलह से पूर्ण मुक्ति तथा निर्भीक होकर विजय प्राप्त करने के लिए यह दीक्षा अद्वितीय है। देवी काली के दर्शन भी इस दीक्षा के बाद ही सम्भव होते है, गुरु द्वारा यह दीक्षा प्राप्त होने के बाद ही कालिदास में ज्ञान का स्रोत फूटा था, जिससे उन्होंने ‘मेघदूत’ , ‘ऋतुसंहार’ जैसे अतुलनीय काव्यों की रचना की, इस दीक्षा से व्यक्ति की शक्ति भी कई गुना बढ़ जाती है।
काली माता का मंत्र: हकीक की माला से नौ माला 'क्रीं ह्नीं ह्नुं दक्षिणे कालिके स्वाहा:।' मंत्र का जाप कर सकते हैं। जाप के नियम किसी जानकार से पूछें।
तारा दीक्षा
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भगवती तारा के तीन स्वरूप हैं👉 तारा , एकजटा और नील सरस्वती
तारा के सिद्ध साधक के बारे में प्रचिलित है, वह जब प्रातः काल उठाता है, तो उसे सिरहाने नित्य दो तोला स्वर्ण प्राप्त होता है। भगवती तारा नित्य अपने साधक को स्वार्णाभूषणों का उपहार देती हैं। तारा महाविद्या दस महाविद्याओं में एक श्रेष्ठ महाविद्या हैं। तारा दीक्षा को प्राप्त करने के बाद साधक को जहां आकस्मिक धन प्राप्ति के योग बनने लगते हैं, वहीं उसके अन्दर ज्ञान के बीज का भी प्रस्फुटन होने लगता है, जिसके फलस्वरूप उसके सामने भूत भविष्य के अनेकों रहस्य यदा-कदा प्रकट होने लगते हैं। तारा दीक्षा प्राप्त करने के बाद साधक का सिद्धाश्रम प्राप्ति का लक्ष्य भी प्रशस्त होता हैं।
तारा माता का मंत्र👉 नीले कांच की माला से बारह माला प्रतिदिन 'ऊँ ह्नीं स्त्रीं हुम फट' मंत्र का जाप कर सकते हैं। जाप के नियम किसी जानकार से पूछें।
षोडशी त्रिपुर सुन्दरी दीक्षा
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महाविद्या समुदाय में त्रिपुरा नाम की अनेक देवियां हैं, जिनमें त्रिपुरा-भैरवी, त्रिपुरा और त्रिपुर सुंदरी विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
त्रिपुर सुन्दरी दीक्षा प्राप्त होने से आद्याशक्ति त्रिपुरा शक्ति शरीर की तीन प्रमुख नाडियां इडा, सुषुम्ना और पिंगला जो मन बुद्धि और चित्त को नियंत्रित करती हैं, वह शक्ति जाग्रत होती है। भू भुवः स्वः यह तीनों इसी महाशक्ति से अद्भुत हुए हैं, इसीसलिए इसे त्रिपुर सुन्दरी कहा जाता है। इस दीक्षा के माध्यम से जीवन में चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति तो होती ही है, साथ ही साथ आध्यात्मिक जीवन में भी सम्पूर्णता प्राप्त होती है, कोई भी साधना हो, चाहे अप्सरा साधना हो, देवी साधना हो, शैव साधना हो, वैष्णव साधना हो, यदि उसमें सफलता नहीं मिल रहीं हो, तो उसको पूर्णता के साथ सिद्ध कराने में यह महाविद्या समर्थ है, यदि इस दीक्षा को पहले प्राप्त कर लिया जाए तो साधना में शीघ्र सफलता मिलती है। गृहस्थ सुख, अनुकूल विवाह एवं पौरूष प्राप्ति हेतु इस दीक्षा का विशेष महत्त्व है। मनोवांछित कार्य सिद्धि के लिए भी यह दीक्षा उपयुक्त है। इस दीक्षा से साधक को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है।
त्रिपुर सुंदरी माता का मंत्र:👉 रूद्राक्ष माला से दस माला 'ऐ ह्नीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नम:' मंत्र का जाप कर सकते हैं। जाप के नियम किसी जानकार से पूछें।
भुवनेश्वरी दीक्षा
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भुवनेश्वरी को आदिशक्ति और मूल प्रकृति भी कहा गया है। भुवनेश्वरी ही शताक्षी और शाकम्भरी नाम से प्रसिद्ध हुई। पुत्र प्राप्ती के लिए लोग इनकी आराधना करते हैं।
भूवन अर्थात इस संसार की स्वामिनी भुवनेश्वरी, जो ‘ह्रीं’ बीज मंत्र धारिणी हैं, वे भुवनेश्वरी ब्रह्मा की भी आधिष्ठात्री देवी हैं। महाविद्याओं में प्रमुख भुवनेश्वरी ज्ञान और शक्ति दोनों की समन्वित देवी मानी जाती हैं। जो भुवनेश्वरी सिद्धि प्राप्त करता है, उस साधक का आज्ञा चक्र जाग्रत होकर ज्ञान-शक्ति, चेतना-शक्ति, स्मरण-शक्ति अत्यन्त विकसित हो जाती है। भुवनेश्वरी को जगतधात्री अर्थात जगत-सुख प्रदान करने वाली देवी कहा गया है। दरिद्रता नाश, कुबेर सिद्धि, रतिप्रीती प्राप्ति के लिए भुवनेश्वरी साधना उत्तम मानी है है। इस महाविद्या की आराधना एवं दीक्षा प्राप्त करने वाले व्यक्ति की वाणी में सरस्वती का वास होता है। इस महाविद्या की दीक्षा प्राप्त कर भुवनेश्वरी साधना संपन्न करने से साधक को चतुर्वर्ग लाभ प्राप्त होता ही है। यह दीक्षा प्राप्त कर यदि भुवनेश्वरी साधना संपन्न करें तो निश्चित ही पूर्ण सिद्धि प्राप्त होती है।
भुवनेश्वरी माता का मंत्र:👉 स्फटिक की माला से ग्यारह माला प्रतिदिन 'ह्नीं भुवनेश्वरीयै ह्नीं नम:' मंत्र का जाप कर सकते हैं। जाप के नियम किसी जानकार से पूछें।
छिन्नमस्ता महाविद्या दीक्षा
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माता का स्वरूप अतयंत गोपनीय है। चतुर्थ संध्याकाल में मां छिन्नमस्ता की उपासना से साधक को सरस्वती की सिद्ध प्राप्त हो जाती है। कृष्ण और रक्त गुणों की देवियां इनकी सहचरी हैं। पलास और बेलपत्रों से छिन्नमस्ता महाविद्या की सिद्धि की जाती है। इससे प्राप्त सिद्धियां मिलने से लेखन बुद्धि ज्ञान बढ़ जाता है। शरीर रोग मुक्त होताते हैं। सभी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष शत्रु परास्त होते हैं। यदि साधक योग, ध्यान और शास्त्रार्थ में साधक पारंगत होकर विख्यात हो जाता है।
भगवती छिन्नमस्ता के कटे सर को देखकर यद्यपि मन में भय का संचार अवश्य होता है, परन्तु यह अत्यन्त उच्चकोटि की महाविद्या दीक्षा है। यदि शत्रु हावी हो, बने हुए कार्य बिगड़ जाते हों, या किसी प्रकार का आपके ऊपर कोई तंत्र प्रयोग हो, तो यह दीक्षा अत्यन्त प्रभावी है। इस दीक्षा द्वारा कारोबार में सुदृढ़ता प्राप्त होती है, आर्थिक अभाव समाप्त हो जाते हैं, साथ ही व्यक्ति के शरीर का कायाकल्प भी होना प्रारम्भ हो जाता है। इस साधना द्वारा उच्चकोटि की साधनाओं का मार्ग प्रशस्त हो जाता है, तथा उसे मौसम अथवा सर्दी का भी विशेष प्रभाव नहीं पङता है।
छीन्नमस्ता माता का मंत्र👉 रूद्राक्ष माला से दस माला प्रतिदिन 'श्रीं ह्नीं ऎं वज्र वैरोचानियै ह्नीं फट स्वाहा' मंत्र का जाप कर सकते हैं। जाप के नियम किसी जानकार से पूछें।
त्रिपुर भैरवी दीक्षा
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भैरवी के नाना प्रकार के भेद बताए गए हैं जो इस प्रकार हैं त्रिपुरा भैरवी, चैतन्य भैरवी, सिद्ध भैरवी, भुवनेश्वर भैरवी, संपदाप्रद भैरवी, कमलेश्वरी भैरवी, कौलेश्वर भैरवी, कामेश्वरी भैरवी, नित्याभैरवी, रुद्रभैरवी, भद्र भैरवी तथा षटकुटा भैरवी आदि। त्रिपुरा भैरवी ऊर्ध्वान्वय की देवता हैं। यह साधक को युक्ति और मुक्ति दोनों ही प्रदान करती है। इसकी साधना से षोडश कला निपुण सन्तान की प्राप्ति होती है। जल, थल और नभ में उसका वर्चस्व कायम होता है। आजीविका और व्यापार में इतनी वृद्धि होती है कि व्यक्ति संसार भर में धन श्रेष्ठ यानि सर्वाधिक धनी बनकर सुख भोग करता है।
भूत-प्रेत एवं इतर योनियों द्वारा बाधा आने पर जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। ग्रामीण अंचलों में तथा पिछडे क्षेत्रों के साथ ही सभ्य समाज में भी इस प्रकार के कई हादसे सामने आते है, जब की पूरा का पूरा घर ही इन बाधाओं के कारण बर्बादी के कगार पर आकर खडा हो गया हो। त्रिपुर भैरवी दीक्षा से जहां प्रेत बाधा से मुक्ति प्राप्त होती है, वही शारीरिक दुर्बलता भी समाप्त होती है, व्यक्ति का स्वास्थ्य निखारने लगता है। इस दीक्षा को प्राप्त करने के बाद साधक में आत्म शक्ति त्वरित रूप से जाग्रत होने लगती है, और बड़ी से बड़ी परिस्थियोंतियों में भी साधक आसानी से विजय प्राप्त कर लेता है, असाध्य और दुष्कर से दुष्कर कार्यों को भी पूर्ण कर लेता है। दीक्षा प्राप्त होने पर साधक किसी भी स्थान पर निश्चिंत, निर्भय आ जा सकता है, ये इतर योनियां स्वयं ही ऐसे साधकों से भय रखती है।
त्रिपुर भैरवी का मंत्र👉 मुंगे की माला से पंद्रह माला 'ह्नीं भैरवी क्लौं ह्नीं स्वाहा:' मंत्र का जाप कर सकते हैं। जाप के नियम किसी जानकार से पूछें।
धूमावती दीक्षा
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धूमावती का कोई स्वामी नहीं है। इसलिए यह विधवा माता मानी गई है। इनकी साधना से जीवन में निडरता और निश्चंतता आती है। इनकी साधना या प्रार्थना से आत्मबल का विकास होता है। मां धूमावती महाशक्ति स्वयं नियंत्रिका हैं। ऋग्वेद में रात्रिसूक्त में इन्हें 'सुतरा' कहा गया है। अर्थात ये सुखपूर्वक तारने योग्य हैं। इन्हें अभाव और संकट को दूर करने वाली मां कहा गया है। इस महाविद्या की सिद्धि के लिए तिल मिश्रित घी से होम किया जाता है। धूमावती महाविद्या के लिए यह भी जरूरी है कि व्यक्ति सात्विक और नियम संयम और सत्यनिष्ठा को पालन करने वाला लोभ-लालच से दूर रहें। शराब और मांस को छूए तक नहीं।
धूमावती दीक्षा प्राप्त होने से साधक का शरीर मजबूत व् सुदृढ़ हो जाता है। आए दिन और नित्य प्रति ही यदि कोई रोग लगा रहता हो, या शारीरिक अस्वस्थता निरंतर बनी ही रहती हो, तो वह भी दूर होने लग जाती है। उसकी आखों में प्रबल तेज व्याप्त हो जाता है, जिससे शत्रु अपने आप में ही भयभीत रहते हैं। इस दीक्षा के प्रभाव से यदि कीसी प्रकार की तंत्र बाधा या प्रेत बाधा आदि हो, तो वह भी क्षीण हो जाती है। इस दीक्षा को प्राप्त करने के बाद मन में अदभुद साहस का संचार हो जाता है, और फिर किसी भी स्थिति में व्यक्ति भयभीत नहीं होता है। तंत्र की कई उच्चाटन क्रियाओं का रहस्य इस दीक्षा के बाद ही साधक के समक्ष खुलता है।
धूमावती का मंत्र:👉 मोती की माला से नौ माला 'ऊँ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा:' मंत्र का जाप कर सकते हैं। जाप के नियम किसी जानकार से पूछें।
बगलामुखी दीक्षा
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माता बगलामुखी की साधना युद्ध में विजय होने और शत्रुओं के नाश के लिए की जाती है। बगला मुखी के देश में तीन ही स्थान है। कृष्ण और अर्जुन ने महाभातर के युद्ध के पूर्व माता बगलामुखी की पूजा अर्चना की थी। इनकी साधना शत्रु भय से मुक्ति और वाक् सिद्धि के लिए की जाती है।
यह दीक्षा अत्यन्त तेजस्वी, प्रभावकारी है। इस दीक्षा को प्राप्त करने के बाद साधक निडर एवं निर्भीक हो जाता है। प्रबल से प्रबल शत्रु को निस्तेज करने एवं सर्व कष्ट बाधा निवारण के लिए इससे अधिक उपयुक्त कोई दीक्षा नहीं है। इसके प्रभाव से रूका धन पुनः प्राप्त हो जाता है। भगवती वल्गा अपने साधकों को एक सुरक्षा चक्र प्रदान करती हैं, जो साधक को आजीवन हर खतरे से बचाता रहता है।
बगलामुखी का मंत्र:👉 हल्दी या पीले कांच की माला से आठ माला 'ऊँ ह्नीं बगुलामुखी देव्यै ह्नीं ओम नम:' दूसरा मंत्र- 'ह्मीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलम बुद्धिं विनाशय ह्मीं ॐ स्वाहा।' मंत्र का जाप कर सकते हैं। जाप के नियम किसी जानकार से पूछें।
मातंगी दीक्षा
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मतंग शिव का नाम है। शिव की यह शक्ति असुरों को मोहित करने वाली और साधकों को अभिष्ट फल देने वाली है। गृहस्थ जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए लोग इनकी पूजा करते हैं। अक्षय तृतीया अर्थात वैशाख शुक्ल की तृतीया को इनकी जयंती आती है।
यह श्याम वर्ण और चन्द्रमा को मस्तक पर धारण करती हैं। यह पूर्णतया वाग्देवी की ही पूर्ति हैं। चार भुजाएं चार वेद हैं। मां मातंगी वैदिकों की सरस्वती हैं।
पलास और मल्लिका पुष्पों से युक्त बेलपत्रों की पूजा करने से व्यक्ति के अंदर आकर्षण और स्तम्भन शक्ति का विकास होता है। ऐसा व्यक्ति जो मातंगी महाविद्या की सिद्धि प्राप्त करेगा, वह अपने क्रीड़ा कौशल से या कला संगीत से दुनिया को अपने वश में कर लेता है। वशीकरण में भी यह महाविद्या कारगर होती है।
आज के इस मशीनी युग में जीवन यंत्रवत, ठूंठ और नीरस बनकर रह गया है। जीवन में सरसता, आनंद, भोग-विलास, प्रेम, सुयोग्य पति-पत्नी प्राप्ति के लिए मातंगी दीक्षा अत्यन्त उपयुक्त मानी जाती है। इसके अलावा साधक में वाक् सिद्धि के गुण भी जाते हैं। उसमे आशीर्वाद व् श्राप देने की शक्ति आ जाती है। उसकी वाणी में माधुर्य और सम्मोहन व्याप्त हो जाता है और जब वह बोलता है, तो सुनने वाले उसकी बातों से मुग्ध हो जाते है। इससे शारीरिक सौन्दर्य एवं कान्ति में वृद्धि होती है, रूप यौवन में निखार आता है। इस दीक्षा के माध्यम से ह्रदय में जिस आनन्द रस का संचार होता है, उसके फलतः हजार कठिनाई और तनाव रहते हुए भी व्यक्ति प्रसन्न एवं आनन्द से ओत-प्रोत बना रहता है।
मातंगी माता का मंत्र:👉 स्फटिक की माला से बारह माला 'ऊँ ह्नीं ऐ भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा:' मंत्र का जाप कर सकते हैं। जाप के नियम किसी जानकार से पूछें।
कमला दीक्षा
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दरिद्रता, संकट, गृहकलह और अशांति को दूर करती है कमलारानी। इनकी सेवा और भक्ति से व्यक्ति सुख और समृद्धि पूर्ण रहकर शांतिमय जीवन बिताता है।
श्वेत वर्ण के चार हाथी सूंड में सुवर्ण कलश लेकर सुवर्ण के समान कांति लिए हुए मां को स्नान करा रहे हैं। कमल पर आसीन कमल पुष्प धारण किए हुए मां सुशोभित होती हैं। समृद्धि, धन, नारी, पुत्रादि के लिए इनकी साधना की जाती है।
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार प्रकार के पुरुषार्थों को प्राप्त करना ही सांसारिक प्राप्ति का ध्येय होता है और इसमे से भी लोग अर्थ को अत्यधिक महत्त्व प्रदान करते हैं। इसका कारण यह है की भगवती कमला अर्थ की आधिष्ठात्री देवी है। उनकी आकर्षण शक्ति में जो मात्रु शक्ति का गुण विद्यमान है, उस सहज स्वाभाविक प्रेम के पाश से वे अपने पुत्रों को बांध ही लेती हैं। जो भौतिक सुख के इच्छुक होते हैं, उनके लिए कमला सर्वश्रेष्ठ साधना है। यह दीक्षा सर्व शक्ति प्रदायक है, क्योंकि कीर्ति, मति, द्युति, पुष्टि, बल, मेधा, श्रद्धा, आरोग्य, विजय आदि दैवीय शक्तियां कमला महाविद्या के अभिन्न देवियाँ हैं।
कमला माता का मंत्र:👉 कमलगट्टे की माला से रोजाना दस माला 'हसौ: जगत प्रसुत्तयै स्वाहा:।' मंत्र का जाप कर सकते हैं। जाप के नियम किसी जानकार से पूछें।
प्रत्येक महाविद्या दीक्षा अपने आप में ही अद्वितीय है, साधक अपने पूर्व जन्म के संस्कारों से प्रेरित होकर या गुरुदेव से निर्देश प्राप्त कर इनमें से कोई भी दीक्षा प्राप्त कर सकते हैं। प्रत्येक दीक्षा के महत्त्व का एक प्रतिशत भी वर्णन स्थानाभाव के कारण यहां नहीं हुआ है, वस्तुतः मात्र एक महाविद्या साधना सफल हो जाने पर ही साधक के लिए सिद्धियों का मार्ग खुल जाता है, और एक-एक करके सभी साधनों में सफल होता हुआ वह पूर्णता की ओर अग्रसर हो जाता है।
यहां यह बात भी ध्यान देने योग्य है, कि दीक्षा कोई जादू नहीं है, कोई मदारी का खेल नहीं है, कि बटन दबाया और उधर कठपुतली का नाच शुरू हो गया।
दीक्षा तो एक संस्कार है, जिसके माध्यम से कुस्नास्कारों का क्षय होता है, अज्ञान, पाप और दारिद्र्य का नाश होता है, ज्ञान शक्ति व् सिद्धि प्राप्त होती है और मन में उमंग व् प्रसन्नता आ पाती है। दीक्षा के द्वारा साधक की पशुवृत्तियों का शमन होता है … और जब उसके चित्त में शुद्धता आ जाती है, उसके बाद ही इन दीक्षाओं के गुण प्रकट होने लगते हैं और साधक अपने अन्दर सिद्धियों का दर्शन कर आश्चर्य चकित रह जाता है।
जब कोई श्रद्धा भाव से दीक्षा प्राप्त करता है, तो गुरु को भी प्रसनता होती है, कि मैंने बीज को उपजाऊ भूमि में ही रोपा है। वास्तव में ही वे सौभाग्यशाली कहे जाते है, जिन्हें जीवन में योग्य गुरु द्वारा ऐसी दुर्लभ महाविद्या दीक्षाएं प्राप्त होती हैं, ऐसे साधकों से तो देवता भी इर्ष्या करते हैं।
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[8:25 PM, 1/14/2023] Prabodh: दुर्गा वशीकरण मंत्र
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दुर्गा वशीकरण मंत्र👉 वशीकरण अर्थात सम्मोहन या आकर्षण प्रयोग के विविध मंत्रों में देवी दुर्गा वशीकरण मंत्र भी विशिष्ट व अचूक प्रभाव वाले होते हैं। उनके कुछ सरलता के साथ सामान्य जाप किए जाते हैं, तो कुछ पूरी तरह से विधि-विधान के साथ विशेष वैदिक या तांत्रिक अनुष्ठान के बाद प्रयोग में लाए जाते हैं। इसके प्रयोगों से अगर स्वाभाव, आचरण या व्यवहार से अनियंत्रत हो चुके किसी व्यक्ति को अपने नियंत्रण में लाया जा सकता है तो रूठे निकट संबंध के व्यक्ति का मान-मनव्वल भी संभव है। वैचारिक और भावनात्मक मतभेद से बिगड़े चुके दांपत्य संबंध हों या फिर अनैतिकता की राह पर भटके हुए परिवार का कोई सदस्य, उन्हें सही राह पर लाया जा सकता है। इनसे प्रेम-संबंध की मधुरता भी बढ़ाई जा सकती है। महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित मार्कण्डेय पुराण की धार्मिक पुस्तक दुर्गा सप्तशती के कई अनुभव सिद्ध मंत्र बहुत ही उपयोगी हैं। कामनापूर्ति के कुल 13 अध्यायों में आठवां मिलाप और वशीकरण के लिए है, जिनमें एक अचूक असर देने वाला एक मंत्र इस प्रकार हैंः-
दुर्गा वशीकरण मंत्र
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ज्ञानिनापि चेतांसि, देवी भगवती ही सा।
बलाद कृष्य मोहाय, महामाया प्रयच्छति।।
इस मंत्र का प्रयोग करने से पहले भगवती त्रिपुर सुंदरी मां महामाया का एकग्रता से ध्यान किया जाता है। ध्यान के बाद उनकी पूरी तरह से श्रद्धा-भक्ति के साथ पंचोपकार विधि से पूजा कर उनके सामने अपनी मनोकामना व्यक्त की जाती है। जिस किसी के ऊपर वशीकरण के प्रयोग करने हों उसका नाम लेते हुए मंत्र का 21, 51 या 108 बार जाप किया जाता है। इस अनुष्ठान के समय लाल रंग के प्रयोग महत्वपूर्ण है। इस संदर्भ में लाल आसन, लाल फूल और जाप के लिए उपयोग में आने वाली लाल चंदन की माला है। इसका प्रयोग अनैतिक कार्य यानि किसी को हानि पहुंचाने के उद्देश्य करने की सख्त मनाही है। अन्यथा यह मंत्र पलटवार भी कर सकता है।
दुर्गा सप्तशती बीज मंत्र👉 कुल सात सौ प्रयोगें के श्लाकों वाले दुर्गा सप्तशती में मारण के 90, मोहन के 90, उच्चाटन के 200, स्तंभन के 200, विद्वेषण के 60 और वशीकरण के 60 प्रयोग होते हैं। इसी कारण इसे सप्तशती कहा जाता है। इसमें वर्णित कवच को बीज , अर्गला को शक्ति और कीलक को कीलक कहा गया है। कवच के रूप में बीज मंत्र इस प्रकार हैः-
या चण्डी मधुकैटभादिदैतयदलनी या माहिषोन्मूलिनी,
या धुम्रेक्षणचण्डमण्ड मथनी या रक्तबीजशनी।
शक्ति शुम्भनिशुम्भ दैयदलनी या सिद्धिदात्री परा,
सा देवी नवकोटिमूर्तसहिता मां पातु विश्वेश्वरी।।
इस बीज मेंत्र में अपार शक्ति समाहित है और इसके प्रभाव से हर बाधाएं दूर होती हैं। समस्त दोषों से छुटकारा मिलने के साथ-साथ जीवन सुखमय बन जाता है। इसका लाभ गुरु के सानिध्य में साधना और मंत्र जाप से मिलता है। इसी के साथ देवी दुर्गा के सभी नौ रूपों के बीज मंत्र इस प्रकार हैंः-
👉 शैलपुत्रीः ह्रीं शिवायै नमः!
👉 ब्रह्मचारिणीः ह्रीं श्रीं अम्बिकायै नमः!
👉 चद्रघंटाः ऐं श्रीं शक्तयै नमः!
👉 कूष्मांडाः ऐं ह्रीं देव्यै नमः!
👉 स्कंदमाताः ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नमः!
👉 कात्यायनीः क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नमः!
👉 कालरात्रिः क्लीं ऐं श्री कालिकायै नमः!
👉 महागौरीः श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नमः!
👉 सिद्धिदात्रीः ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नमः!
दुर्गा मंत्र साधनाः👉 मां दुर्गा के मंत्रों की वैदिक रीति द्वारा साधना और बताए गए विधि-विधान के अनुसार जाप करने से हर तरह की मनोकामना पूर्ति संभव है। इस जाप को नवरात्रों के प्रतिपदा के दिन घट स्थापना के बाद मां दुर्गा की मूर्ति या तस्वीर की पंचोपचार द्वारा पूजा कर तुलसी या चंदन की माला से जाप करना चाहिए। अलग-अलग मनोकामनाओं के मंत्र अलग-अलग इस प्रकार हैंः-
सर्व विध्ननाशक👉 सर्वबाधा प्रशमनं त्रिलोक्यस्यखिलेश्वरी, एवमेय त्वया कार्य मस्माद्वैरि विनाशनम्।
भय मुक्ति और ऐश्वर्य प्राप्ति👉 ऐश्वर्य यत्प्रसादेन सौभाग्य-आरोग्य सम्पदः, शत्रु हानि परोमोक्षः स्तुयते सान किं जनै।
विपत्ति नाशक👉 शरणगतर्दिनात्र परित्राण पारायण्ये, सर्वस्यार्ति हरे देवि नारायणि नमस्तुते।
कार्य सिद्धि👉 दुर्गे देवी नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके, मम सिद्धिंमसिद्धिं व स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय।
दरिद्रता नाश👉 दुर्गेस्मता हरसि भतिमशेशजन्तोः स्वस्थैंः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि, दरिद्रयदुखीायहारिणी कात्वदन्य।।
निरोगता और सौभाग्य👉 देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परम सुखम्, रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषोजहि।
सर्व कलयाण👉 सर्व मंगल मांगल्ये शिवे स्वार्थ साधिके, शरण्येत्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।
संतान प्राप्ति और बाधा मुक्ति👉 सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वितः, मनुष्यों मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय।
शत्रु नाश👉 ऊँ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानं वाचंमुखं पदं स्तंभय जिह्वाम् कीलय बुद्धिविनाशाय ह्रीं ऊँ स्वाहा।
सुलक्षणा पत्नी👉 पत्नीं मनोरमां देही मनोवृत्तानुसारिणीम्, तारिणीं दुर्ग संसारसागरस्य कुलोद्भवाम्।
नौ शक्तियों की साधना के लिए नौ विभिन्न मंत्र बताए गए हैं जिनकी साधना शक्ति उपासन पर्व नौरात्र में की जाती है। वे इस प्रकार हैंः-
1.शैलीपुत्रीः वंदे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्, वृषारुदढां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।
2.ब्रह्मचारिणीः दधाना करपद्माभ्याम क्षमालाकमण्डलू, देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।
3.चंद्रघंटाः पिण्डजप्रवरारुढ़ा चण्डकोपास्तकैर्युता, प्रसादं तनुते मह्यां चंद्रघण्टेति विश्रुता।
4.कुष्माण्डाः सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च, दधाना हस्तपद्मभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे।
5.स्कंदमाताः सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया, शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी।
6.कत्यायनीः चंद्रहासोज्वलकरा शर्दूलवरवाहना, कत्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवघातिनी।
7.कालरात्रीः एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्ठी कर्णिकाकार्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लोहलताकण्टकभूषण, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङक्री।
8.महागौरीः श्वेते वृषे समारुढा श्वेताम्बरधरा शुचिः, महागौरी शुभं दद्यन्महादेवप्रमोददा।
9.सिद्धिदात्रीः सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि, सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदायनी।
अन्य तीव्र दुर्गा साधना👉 सभी तरह की मनोकामना पूर्ति के साथ-साथ आंतरिक शक्ति प्राप्त करने के लिए मां दुर्गा की साधना करना चाहिए। कारण मां दुर्गा की पूजा से धर्म, अर्थ, काम और मो़क्ष की प्राप्ति हो जाती है। उनकी कृपादृष्टि हमेशा बनी रहे या फिर किसी अचानक आ पड़ी विपदा को दूर करने के लिए दुर्गा मां की तीव्र साधना एक सार्थक उपाय हो सकता है। इसके लिए जाप किया जाने वाला मंत्र इस प्रकार हैः-
ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे,
ऊँ ग्लौं हूं क्लीं जूं सः ,
ज्वालय-ज्वालय, ज्वल-ज्वल प्रज्ज्वल-प्रज्ज्वल,
ऐं ह्रीं क्लीं चमुण्डायै विच्चे, ज्वल हं सं लं क्षं फट स्वाहा!!
इस मंत्र की साधना करने के लिए मां दुर्गा की तस्वीर के सामने पूजा करने के बाद। ऊपर दिए गए मंत्र का 108 बार जाप करें। पूजन के लिए लाल फूल का उपयोग में लाएं और मिठाई की भोग लगाएं। देवी की तस्वीर पर लाल चंदन का तिलक लगाकर खुद भी टीका लगा लें।
इसके अतिरिक्त आठ अक्षरों का मंत्र ऊँ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः एक सिद्ध मंत्र है, जिसे प्रतिदिन सुबह स्नानादि के बाद लाल चंदन से 108 बार जाप करने का सकारात्मक लाभ मिलता है। इस मंत्र का नौरात्र के दिन प्रतिदिन 27 माला जाप करने के विधान बताए गए हैं।
.१. क्रोध शांति हेतु
जिन्हे बहुत अधिक क्रोध आता हो वे नित्य रात्रि में सोते समय एक
ताम्बे के लोटे में जल भर दे और उसमे एक
चाँदी का सिक्का डाल दे.प्रातः मुह आदि धोकर इस जल
का सेवन करे.धीरे धीरे क्रोध में
कमी आ जायेगी और आपका स्वभाव सोम्य
होने लगेगा।
२. नकारत्मक ऊर्जा को दूर करने हेतु
यदि आप सदा मानसिक तनाव में रहते है.नित्य बुरे स्वप्न आते
है.छोटी छोटी बाते आपको अधिक विचलित कर
देती है.अकारण भय लगता रहता है तो ,रात्रि में सोते
समय अपने तकिये के निचे एक
छोटा सा फिटकरी का टुकड़ा रख ले.और सुबह उठकर उसे
अपने सर से तीन बार घुमाकर घर के बहार फेक
दे.सतत कुछ दिनों तक करे अवश्य लाभ होगा।
३.गृह कलह निवारण एवं शुद्धि हेतु
यदि निरंतर घर में कलह का वातावरण
बना रहता हो,अशांति बनी रहती हो.व्यर्थ
का तनाव बना रहता हो तो.थोड़ी सी गूगल
लेकर " ॐ
ह्रीं मंगला दुर्गा ह्रीं ॐ " मंत्र
का १०८ बार जाप कर गूगल को अभी मंत्रित कर दे और
उसे कंडे पर जलाकर पुरे घर में घुमा दे.ये सम्भव न हो तो गूगल ५
अगरबत्ती पर भी ये प्रयोग
किया जा सकता है.घर में शांति का वातावरण बनने लगेगा।
४.स्मरण शक्ति हेतु
यदि आपकी स्मरण शक्ति तीव्र
नहीं है,तो किसी भी सोमवार
को शिवलिंग पर शहद से अभिषेक करे.अभिषेक करते समय
ॐ नमः शिवाय का जाप करते जाये और एक एक चम्मच
शहद शिवलिंग पर अर्पित करते जाये इस प्रकार १०८ बार करे.फिर
इस शहद को किसी डिब्बी में सुरक्षित रख
ले.अब नित्य थोडा शहद लेकर १०८ बार " ऐं " बीज
मंत्र का जाप करे और शहद अभी मंत्रित कर ले.इस
शहद को स्वयं ग्रहण कर ले.तथा थोडा सा शहद मस्तक पर
लगाये।धीरे धीरे आप स्वयं अनुभव करेंगे
कि आपकी स्मरण शक्ति में सुधार हो रहा है.
५. अनिद्रा दूर करने हेतु
यदि आपको अनिद्रा कि समस्या है तो रात्रि में सोने से पूर्व "
ॐ
क्लीं शांता देवी क्लीं नमः "
का माँ दुर्गा का ध्यान करते हुए १०८ बार जाप करे और सो जाये।
धीरे धीरे आपकी ये
समस्या का भी अंत हो जायेगा।
६. धन वृद्धि हेतु
यदि धन में वृद्धि ना हो रही हो,साथ
ही व्यर्थ का व्यय बढ़ता जा रहा हो तो शुक्रवार को १६
कमलगट्टे को शुद्ध घृत में मिलाकर अग्नि में " ॐ
श्रीं स्थिर लक्ष्मी श्रीं वरदायै
नमः " मंत्र से आहुति प्रदान करे.कुछ शुक्रवार करे और परिणाम
स्वयं देखे।इसी मंत्र के मध्यम से
अघोरी अपने जीवन में
लक्ष्मी को बांध देते है.रस क्षेत्र में
भी इस मंत्र का अत्यंत महत्व है,जिसमे कुछ
विधि या साधना करके लक्ष्मी को सदा सदा के लिए घर में
स्थिर किया जा सकता है.परन्तु ये रस तंत्र का विषय है...
SHIVOHAM,....
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