देवी मनसा के नाम-स्मरण से सर्पभय और सर्पविष से मिलती है मुक्ति....
04 FACTS ;-
1-देवी मनसा को भगवान शंकर की पुत्री के रूप में जाना जाता है। माता मनसा को नागो के राजा नागराज वासुकी की बहन के रूप में भी जाना जाता है।इनके नाम-स्मरण से सर्पभय और सर्पविष से मुक्ति मिलती है। प्राचीनकाल में जब सृष्टि में नागों का भय हो गया तो उस समय नागों से रक्षा करने के लिए ब्रह्माजी ने अपने मन से एक देवी का प्राकट्य किया, मन से प्रकट होने के कारण ये ‘मनसा देवी’ के नाम से जानी जाती हैं, देवी मनसा दिव्य योगशक्ति से सम्पन्न होने के कारण कुमारावस्था में ही भगवान शंकर के धाम कैलास पहुंच गईं और वहां गहन तप किया, इससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें सामवेद का अध्ययन कराया और ‘मृतसंजीवनी विद्या’ प्रदान की इसीलिए देवी मनसा को ‘मृतसंजीवनी’ और ‘ब्रह्मज्ञानयुता’ कहते हैं।
मनसा देवी के मंदिर का इतिहास बड़ा ही प्रभावशाली है। इनका प्रसिद्ध मंदिर हरिद्वार शहर से लगभग 3 किमी दूर शिवालिक पहाड़ियों पर बिलवा पहाड़ पर स्थित है। यह जगह एक तरह से हिमालय पर्वत माला के दक्षिणी भाग पर पड़ती है। नवरात्रों में मां के दरबार में लाखों की तादाद में श्रद्धालु आते हैं। यहां लोग माता से अपनी मनोकामना को पूरा करने के लिए आशीर्वाद लेते हैं। माना जाता है कि माता मनसा देवी से मांगी गई हर मुराद माता पूरी करती है।
2-भगवान शंकर ने देवी मनसा को भगवान श्रीकृष्ण के अष्टाक्षर ( 18 अक्षर का ) मन्त्र—‘ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं कृष्णाय नम:’ का भी उपदेश किया साथ ही वैष्णवी दीक्षा दी, भगवान शिव से शिक्षा प्राप्त करने के कारण ये शिव की शिष्या हुईं इसलिए ये ‘शैवी’ कहलाती हैं, इन्होंने भगवान शिव से सिद्धयोग प्राप्त किया था, इसलिए वे ‘सिद्धयोगिनी’ के नाम से भी जानी जाती हैं।इसके बाद देवी मनसा ने तीन युगों तक पुष्कर में तप करके परमात्मा श्रीकृष्ण का दर्शन प्राप्त किया, उस समय गोपीपति भगवान श्रीकृष्ण ने उनके वस्त्र और शरीर को जीर्ण देखकर उनका नाम ‘जरत्कारु’ रख दिया, स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी पूजा कर उन्हें संसार में पूजित होने का वर प्रदान किया, फिर देवताओं ने भी इनकी पूजा की तब से देवी मनसा की ब्रह्मलोक, स्वर्गलोक, पृथ्वीलोक और नागलोक में पूजा होने लगी और ये ‘विश्वपूजिता’ कहलाईं।
3-देवी मनसा अत्यन्त गौरवर्ण, सुन्दरी व मनोहारिणी हैं, अत: ये ‘जगद्गौरी’ के नाम से भी पूजी जाती हैं, ये भगवान विष्णु की भक्ति में संलग्न रहती हैं और मन से परमब्रह्म परमात्मा का ध्यान करती हैं इसलिए ‘वैष्णवी’ कहलाती हैं। यही कारण है कि इनकी आराधना से भगवान विष्णु की कृपा भी प्राप्त हो जाती है।भगवान श्रीकृष्ण से वर और सिद्धि प्राप्त कर ये कश्यप ऋषि के पास चली आईं ।देवी मनसा कश्यप ऋषि की मानसी कन्या हैं । कश्यप ऋषि ने देवी मनसा का विवाह श्रीकृष्ण के अंशरूप महर्षि जरत्कारु के साथ कर दिया।महर्षि जरत्कारु की पत्नी होने के कारण इन्हें ‘जरत्कारुप्रिया’ भी कहते हैं। महर्षि जरत्कारु से इन्हें ‘आस्तीक’ नाम का पुत्र हुआ, वे आस्तीक मुनि की माता हैं इसलिए ‘आस्तीकमाता’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। भगवान शंकर ने आस्तीक को ‘मृत्युंजय विद्या’ की दीक्षा दी थी।
4-श्रृंगी मुनि ने राजा परीक्षित को शाप दिया कि ‘एक सप्ताह के बीतते तक्षक सर्प उन्हें काट लेगा, शाप के अनुसार तक्षक ने राजा परीक्षित को डस भी लिया, पिता की ऐसी मृत्यु देखकर परीक्षित के पुत्र जनमेजय को सर्पों पर बड़ा क्रोध हुआ और उन्होंने नागवंश को समाप्त कर देने के लिए सर्पयज्ञ का अनुष्ठान शुरु कर दिया। ब्राह्मणों की मन्त्र शक्ति के प्रभाव से प्रत्येक आहुति पर सैंकड़ों सर्प यज्ञकुण्ड में खिंचे चले आते और भस्म हो जाते, इससे डरकर तक्षक इन्द्र की शरण में चला गया, तब ब्राह्मणों ने इन्द्र सहित तक्षक की यज्ञ में आहुति देने का विचार किया।इससे भयभीत होकर इन्द्र देवी मनसा की शरण में जाकर अपनी रक्षा की प्रार्थना करने लगे, तब देवी मनसा में अपने पुत्र आस्तीक मुनि को राजा जनमेजय के पास भेजा आस्तीक मुनि के प्रयत्न से राजा जनमेजय ने सर्पयज्ञ समाप्त करवा दिया।इस प्रकार देवी मनसा और आस्तीक मुनि के कारण नागवंश की रक्षा हुई अत: वे ‘नागेश्वरी’ व ‘नागमाता’ के नाम से भी जानी जाती हैं। तभी से नाग देवी मनसा की विशेष पूजा करने लगे और नागराज शेष ने उन्हें अपनी बहिन बना लिया इसलिए इन्हें ‘नागभगिनी’ कहते हैं । नाग ही इनके वाहन और शय्या बन गये। देवी मनसा सर्पविष का हरण करने में समर्थ हैं इसलिए ‘विषहरी’ कहलाती हैं।
1-देवी मनसा के बारह नाम का स्तोत्र;-
जरत्कारु जगद्गौरी मनसा सिद्धयोगिनी ।
वैष्णवी नागभगिनी शैवी नागेश्वरी तथा ।।
जरत्कारुप्रिया आस्तीकमाता, विषहरीति च ।
महाज्ञानयुता चैव सा देवी विश्वपूजिता ।।
द्वादशैतानि नामानि पूजाकाले तु य: पठेत् ।
तस्य नागभयं नास्ति तस्य वंशोद्भवस्य च ।।
(ब्रह्मवैवर्तपुराण, प्रकृतिखण्ड ४५।१५-१७)
स्तोत्र पाठ का फल;-
जरत्कारु, जगद्गौरी, मनसा, सिद्धयोगिनी, वैष्णवी, नागभगिनी, शैवी, नागेश्वरी, जरत्कारुप्रिया, आस्तीकमाता, विषहरा और महाज्ञानयुता—जो मनुष्य देवी मनसा के इन बारह नामों का पाठ पूजा के समय करता है, उसे तथा उसके वंशजों को नागों/सर्पों का भय नहीं रहता।जिस भवन, घर या स्थान पर सर्प रहते हों वहां इस स्तोत्र का पाठ करने से मनुष्य सर्पभय से मुक्त हो जाता है।जो मनुष्य इस स्तोत्र को नित्य पढ़ता है उसे देखकर नाग भाग जाते हैं।दस लाख पाठ करने से यह स्तोत्र सिद्ध हो जाता है। जिस मनुष्य को यह स्तोत्र सिद्ध हो जाता है; उस पर विष का कोई प्रभाव नहीं पड़ता और वह नागों को आभूषण बनाकर धारण कर सकता है।अत्यन्त करुणा और दयामयी देवी मनसा को भक्त बहुत प्रिय हैं। आराधना करने पर वह मनुष्य को सभी प्रकार के अभ्युदय प्रदान कर देती है।
2- सर्पभयनाशक मनसास्तोत्रम् ;-
ध्यानं
चारुचम्पकवर्णाभां सर्वाङ्गसुमनोहराम् ।
नागेन्द्रवाहिनीं देवीं सर्वविद्याविशारदाम् ॥
श्रीनारायण उवाच
नमः सिद्धिस्वरुपायै वरदायै नमो नमः ।
नमः कश्यपकन्यायै शंकरायै नमो नमः ॥ १॥
बालानां रक्षणकर्त्र्यै नागदेव्यै नमो नमः ।
नम आस्तीकमात्रे ते जरत्कार्व्यै नमो नमः ॥ २॥
तपस्विन्यै च योगिन्यै नागस्वस्रे नमो नमः ।
साध्व्यै तपस्यारुपायै शम्भुशिष्ये च ते नमः ॥ ३॥
॥ फलश्रुतिः ॥
इति ते कथितं लक्ष्मि मनसाया स्तवं महत् ।
यः पठति नित्यमिदं श्रावयेद्वापि भक्तितः ॥
न तस्य सर्पभीतिर्वै विषोऽप्यमृतं भवति ।
वंशजानां नागभयं नास्ति श्रवणमात्रतः ॥
॥ इति श्रीमनसास्तोत्रम् ॥
सर्पभयनाशक स्तोत्र पाठ का फल;-
हे लक्ष्मी यह मनसा देवी का महान् स्तोत्र कहा है ।जो नित्य भक्तिपूर्वक इसे पढता या सुनता है..उसे साँपों का भय नहीं होता और विष भी अमृत हो जाता है । उसके वंश में जन्म लेनेवालों को इसके श्रवण मात्र से साँपों का भय नहीं होता।
...SHIVOHAM...
Yorumlar