ध्यान... SET-04-त्राटक साधना
ध्यान के कई प्रकार बताए गए हैं, इनमे त्राटक सर्वोत्कृष्ट माना जाता है क्योंकि आम जीवन जीने वाले भी इस विधि से अनेक विशेष गुणो से सम्पन्न हो सकते हैं| ध्यान नेत्र खोलकर भी की जा सकती है और नेत्र बंद करके भी|आध्यात्मिक शक्ति
प्राप्त करने के लिए सभी क्षेत्रों में ध्यान पर बल दिया गया है| जैसे भक्ति में भी भक्ति ईश्वर के ध्यान में लीन रहता है| तंत्र मंत्र में मंत्र सिद्धि हेतु किसी निश्चित विषय पर ध्यान केन्द्रित करना होता है| ध्यान की अवस्था में मनुष्य की समस्त ऊर्जा एक दिशा में प्रवाहित होने लगती है और वही साधना को परिणाम तक पहुंचाती है|त्राटक सिद्धि योग का एक हिस्सा है जो विशेष प्रकार की ध्यान विधि पर आधारित है|
त्राटक साधना;-
02 FACTS;-
1- ध्यान के कई प्रकार बताए गए हैं, इनमे त्राटक सर्वोत्कृष्ट माना जाता है क्योंकि ध्यान नेत्र खोलकर भी किया जा सकता है
और नेत्र बंद करके भी| बंद नेत्र द्वारा किए जाने वाले ध्यान में किसी आराध्य छवि की कल्पना होती है| परंतु नेत्र खोलकर किए जाने वाले ध्यान में किसी आराध्य को होना आवश्यक नहीं है| बल्कि अपने सामने किसी वस्तु को एकटक देखते हुए
उसके द्वारा मूर्त से अमूर्त तक पहुँचते हैं| सांख्य-योग के अनुसार मनुष्य के शरीर में ही ब्रम्ह का वास है, जिन्हें प्राप्त करने के लिए योग क्रिया की जाती है| कुंडली जागृत होते ही इंसान ‘अहम ब्रम्हास्मि’ का बोध कर लेता है| ठीक उसी प्रकार त्राटक द्वारा साधक उस दिव्य दृष्टि को प्राप्त करता है, जो सूक्ष्म रूप से प्रत्येक मनुष्य में है परंतु सुप्त रूप में|इस साधना के बाद एकाग्रता अत्यधिक बढ़ जाती है| छात्रों के लिए यह साधना रामबाण है| त्राटक अभ्यास के बाद कठिन से कठिन विषय पर ध्यान केन्द्रित करना सरल हो जाता है|
2-त्राटक साधना अत्यंत सरल है परंतु साधक में कुछ विशेष गुणो का होना आवश्यक है जैसे ....
साधना के प्रति निष्ठा हो,शारीरिक रूप से स्वस्थ होऔर यम, नियम का पालन करने वाला हो |सुखासन में (जिसे जिस आसन का अभ्यास हो) बैठकर मस्तक, गर्दन, पीठ और उदर बराबर सीधे रख, अपने शरीर को सीधा करके बैठें, इसके बाद नाभि-मण्डल में दृष्टि जमाकर कुछ देर तक पलक न झपकें। नाभि स्थान में दृष्टि और मन रखने से मन स्थिर होता जायेगा। इसी भाव में नाभि के ऊपर दृष्टि और मन लगाकर बैठने से कुछ दिन के बाद मन स्थिर होगा, मन स्थिर करने का त्राटक जैसा सरल उपाय दूसरा और नहीं है।
साधना के तीन प्रकार;-
त्राटक साधना के तीन प्रकार है|
1-INNER TRATAK (इनर त्राटक)
04 FACTS;-
यह साधना आँखों को बंद करके की जाती है. इस मेडिटेशन में आपको अपने अन्दर ही ध्यान एकाग्र करना होता है. इसमें पीठ को सीधा रखते हुए बैठ जाए और अपनी तीसरी आँख (दोनों आँखों के बीच का हिस्सा) पर फोकस करना होता है. इससे आपको तीसरी आँख में थोडा दर्द अनुभव होगा जो की समय के साथ धीरे धीरे गायब होता जायेगा. यह मैडिटेशन नकारात्मक विचारो को दूर करने, बुधिमत्ता बढ़ाने में उपयोगी होता है.
अंतर त्राटक से संयम सिद्ध होती है, यह षटचक्रों पर, इष्ट पर, बीजमंत्र या यंत्र पर भी किया जाता है। इस त्राटक में संयम सिद्धि का लक्षण है। वास्तव में त्राटक का अनुकूल समय रात्रि के दो से पांच बजे तक है शांति के समय चित्त की एकाग्रता बहुत शीघ्र होने लगती है। त्राटक के अभ्यास के समय मुुंह बंद रखिये, परन्तु दांत छू न जाये, जीभ न ऊपर लगे न नीचे, मुख के अंदर उसकी नोंक खड़ी कर दीजिए, आपका मन स्थिर हो जायेगा।
बहुत अभ्यास हो जाने के पश्चात् बिन्दु-ज्योतिर्बन्दु, त्रिकुटि (भ्रुमध्य) या नासाग्र पर स्थिर दृष्टि से अभ्यास करना बहिर्मुख (बाह्य) त्राटक कहलाता है। हृदय अथवा भ्रूमध्य में नेत्र बंद रखकर एकाग्रता पूर्वक चक्षुवृत्ति की भावना करने को अन्तरत्राटक कहते हैं। इन अन्तत्राटक और ध्यान में बहुत समानता है। भ्रुमध्य में त्राटक करने से आरंभ में कुछ दिनों तक सिर में दर्द हो जाता है, तथा नेत्र को बरौनी में चंचलता प्रतीत होने लगती है, परन्तु कुछ दिनों के पश्चात् नेत्रवृत्ति में स्थिरता आ जाती है, हृदय प्रदेश में वृत्ति की स्थिरता के लिए प्रयत्न करने वालों को ऐसी प्रतिकूलता नहीं होती।
दाहिने नेत्र में काल का, बायें नेत्र ने शक्ति का और शिव नेत्र (त्रिकुटी में) ब्रह्म का निवास है। शिव नेत्र से विचार उत्पन्न होता है। दाहिने नेत्र से इच्छा पैदा होती है और बांये नेत्र से क्रिया उत्पन्न होती है। पद्मासन से बैठो, नेत्रों को बंद करो, जीभ को तालु की ओर चढ़ा लो, अपने ध्यान को दोनों भृकुटियों के मेल के स्थान से (अर्थात् नाक की जड़ से) दो अंगुल ऊपर भ्रूमध्य पर जमाओ, यह ध्यान सिर के बाहरी भाग पर न होना चाहिए। (आज्ञाचक्र पर) ध्यान के समय शिवमंत्र (ऊँ नमः शिवाय) का मन से जाप करना चाहिए। ऐसा करने से धीरे-धीरे मन स्वयं एकाग्र हो जाता है, और साधक का दिव्यचक्षु खुल जाता है, उसको सब स्थानों की घटनाएं दिखलाई पड़ने लगती हैं, और देव-दर्शन प्राप्त होता है। अभ्यास के समय जो विचार या दृश्य ध्यान में आये उसे प्रभु का छद्मवेश समझो, उसे भी प्रभु ही मानों, ब्रह्ममय मानो जो कुछ भी लीलायें आप ध्यान में देखें या समझें ऐसा समझें कि वह क्रियाएं आप प्रभु के साथ ही कर रहे हैं। ऐसा करने से प्राण स्थिर होकर ब्रह्मनाद भी सुनाई देगा, ब्रह्मनाद दाहिने कर्ण में सुनाई देता है, सद्गुरु भी दाहिने ही कान में मंत्र फूंकते हैं, ब्रह्मनाद का दूसरा नाम परा है।
2-MIDDLE TRATAK (मिडिल त्राटक)
त्राटक मेडिटेशन में आपको अपनी आँखों को खुला रखना होता है. इसमें आपको किसी मोमबत्ती या लैंप फ्लेम या किसी बिंदु पर बिना पलके झपकाए ध्यान केन्द्रित करना होता है. इससे आपकी आँखों को थोडा जलन का अनुभव हो सकता है. इसमें बाधा पहुचने पर आप इसे बंद करके दोबारा ध्यान चालु कर सकते है. इसके नियमित अभ्यास से आँखों में कम जलन होना शुरू हो जाता है. इससे आपकी आँखों की रोशनी बढती है और स्मरण शक्ति तेज होती है. यह साधना ध्यान लगाने वाली वस्तु को अपनी आँखों से लगभग बीस इंच या 25 इंच की दुरी पर अपने आँखों के समानांतर रखकर की जानी चाहिए.
1-एकान्त कक्ष में एक ऐसा कैनवास रखें जिसमे काले पृष्ठभुमि पर लाल अथवा सफ़ेद बिन्दु हो| स्नान के बाद प्रातः काल स्वच्छ आसन पर बैठें तथा उस बिन्दु पर अपना ध्यान केन्द्रित करें| कुछ देर बार वह बिन्दु चमकीली नज़र आएगी| आपको अपने शरीर का भान समाप्त हो जाएगा| प्रारम्भ में एक मिनट का लक्ष्य रखें| फिर इसे धीरे धीरे बढ़ा दें|
2-यदि आप त्राटक की शुरुआत कर रहे है तो आप बिंदु या फिर ज्योति त्राटक से कर सकते है।ध्यान के लिए जलते हुए दीपक को 3-4 फिट दूरी पर रख कर उसकी लो पर ध्यान को एकाग्र करते है।आकार में बड़े दीपक को जलाकर उसके समक्ष बैठ जाएँ तथा उस पर ध्यान केन्द्रित करें| दीपक को जलाने के लिए शुद्ध घी का इस्तेमाल करे।ध्यान से पहले कक्ष की बत्ती बुझा दें|
3-मूर्ति त्राटक साधना किसी भी विशेष मूर्ति (तस्वीर) पर ध्यान केंद्रित करके किया जाता है, यह आपके विश्वास या धर्म से संबंधित कुछ तस्वीर हो सकती है।ऐसी तस्वीर का इस्तेमाल करे जो की आपको पसंद न हो।
4-आईने की सहायता से त्राटक साधना की जा सकती है| आईना कम से कम 6 इंच चौड़ा तथा 8 इंच लंबा हो तो अति उत्तम| एकांत कक्ष में बैठकर आईना अपने सामने रखें तथा खुद से नज़र मिलाएँ| धीरे-धीरे अपनी ही आँखों की पुतलियों पर ध्यान केन्द्रित करें| एक स्थिति ऐसी आएगी जिसमे आपको खुद का चेहरा दिखाई देना बंद हो जाएगा| अंत में वह पुतली भी नहीं दिखेगी|इसके अलावा सरलता से उपलब्ध किसी भी वस्तु को एकटक देखते हुए यह साधना की जा सकती है| जैसे दीवार पर टंगी कोई तस्वीर, गमला आदि|
OUTER TRATAK (आउटर त्राटक);-
इस साधना में चाँद सूरज या सितारों को देखकर ध्यान केन्द्रित किया जाता है.यह मन को शांत रखता है, एकाग्रता बढ़ाता है. मानसिक विकारो को दूर करता है.यदि सूर्य त्राटक को सही तरीके व सही समय पर नहीं किया गया या तो सूर्य की तेज रोशनी में मौजूद UV किरणे हमारी आँखों की पुतलियों को हानि पहुंचा सकती है।
चंद्र त्राटक साधना :-
इसमें हम रात्रि के समय चन्द्रमा को लगातार देखकर त्राटक करते है। यदि आपका मन अशांत है तो आप चंद्र त्राटक का अभ्यास करे।क्योकि चन्द्रमा का सम्बन्ध हमारे मन से होता है।इसको बदल रहित साफ़ मौसम में करना चाइये। अन्यथा हम सही तरीके से नहीं कर पाएंगे।
सूर्य त्राटक साधना :-
सूर्य को अर्घ्य देने के बाद उगते हुए सूर्य पर ध्यान केन्द्रित करें| स्मरण रखें ध्यान केन्द्रित करें का आशय उसे एकटक देखते रहने से हैं| इस त्राटक विधि से सूर्य की लालिमा साधक को कान्ति प्रदान करती है तथा स्वाभाविक ऊर्जा से भर देती है|इसमें हम उगते व ढलते (अस्त) सूर्य को देखते है।इसलिए हम यह त्राटक केवल सूर्य उदय के तुरंत 10-15 मिनट के अंदर व सूर्य अस्त से 10-15 मिनट पहले सूर्य की रोशनी कम होती है जिससे की हमारी आँखे को कई हानि न हो। यदि सूर्य त्राटक को सही तरीके व सही समय पर नहीं किया गया या तो सूर्य की तेज रोशनी में मौजूद UV किरणे हमारी आँखों की पुतलियों को हानि पहुंचा सकती है। इसलिए हम यह त्राटक केवल सूर्य उदय के तुरंत 10-15 मिनट के अंदर व सूर्य अस्त से 10-15 मिनट पहले सूर्य की रोशनी कम होती है जिससे की हमारी आँखे को कई हानि न हो।
सावधानी;-
05 FACTS;-
1-किसी भी विधि से यह साधना करें लेकिन ध्यान रखे साधना के लिए बैठते वक्त पेट न तो पूरी तरह खाली हो.. ना पूरी तरह भरा हो| खाली पेट गैस बनाता है, पेट दर्द की शिकायत हो सकती है| इसलिए थोड़ा बहुत खाकर बैठना नुकसान नहीं करता| परंतु पूरी तरह भरे पेट से बैठना और एकाग्र होना भी संभव नहीं होता|.
2-यदि परिवार के मध्य रहते हो तो घर के सभी सदस्यों को पता होना चाहिए कि इस वक्त आपको आवाज नहीं देना है| फोन अलार्म आदि बंद रखें| यहाँ तक कि दरवाजे पर दस्तक होने पर कौन द्वार खोलेगा यह भी सुनिचित कर लें|
3-जल्दी जल्दी साधना विधि न बदले| जिस विधि का चुनाव करें उस पर कम से कम छह महीने परिश्रम करें|
4-त्राटक साधना की सफलता आत्म शक्ति पर निर्भर करती है.. जिसे अंग्रेजी में विल पावर कहा जाता है| यह एक सतत प्रक्रिया है| इसलिए दो-माह चार माह की सीमा में बांधने के बजाय इसे अपनी दिनचर्या में शामिल कर लें|
5- यद्यपि यह साधना अत्यंत सरल है तथापि त्रुटि होने पर कुछ नुकसान भी हो सकते हैं, जैसे –साधना काल में अचानक तेज ध्वनि होने पर साधक अचेत हो सकता है|लगातार एकटक देखने से कभी-कभी आंखो में समस्या आने लगती है| आँसू निकल आते हैं या साधना के तुरंत बाद देखने में समस्या आने लगती है|त्राटक करने से आरम्भ में उष्णता के कारण आंखों से गरम पानी जायेगा, उसे जाने दे, बंद न करें लगभग एक सप्ताह के अंदर ही पानी का जाना बंद हो जावेगा, पानी से यदि आंखें बीच में ही बंद हो जायें तो आंखें पोंछकर फिर से अभ्यास आरंभ करे, चित्त-वृत्ति को स्थिर करके बिना पलक गिराये, जितनी अधिक देर तक अभ्यास किया जा सके उतना ही अधिक लाभप्रद होगा।
6- पहले प्रतिदिन दस पन्द्रह मिनट ही अभ्यास करें, पीछे धीरे-धीरे घंटा सवा घंटे तक का अभ्यास बढ़ा लें, जब आधे घंटे तक चित्त को स्थिर रखकर बिना पलक गिराये एकाग्र दृष्टि से देखने का अभ्यास हो जाता है तब इष्टदेवता के दर्शन होते हैं और अनेक चमत्कार दिखाई पड़ने लगते हैं, लेकिन साधक को चाहिए कि इन चमत्कारों में न पड़कर भगवत्स्वरूप की भावना को ही दृढ़ रखकर उसका प्रत्यक्ष होते ही उसमें तन्मय हो जायें, उसी में लीन हो जायें। यदि पलकों पर अधिक तनाव प्रतीत हो तो पलकों पर जोर देकर भौंहाें को कस दें, इससे आंखें अधिक देर तक खुली रहेंगी।यदि पहले से नेत्र संबंधी समस्या हो तो यह साधना न करें|
7-त्राटक के बाद आंखों को इधर-उधर ऊपर नीचे घुमाकर कुच्छ समय तक देखने का अभ्यास करना चाहिए ताकि आपकी दृष्टि बाईं और स्थिर रहे, बाईं ओर देखने से दिमाग कमजोर नहीं होता, त्राटक के बाद अंखों को गुलाब जल से धो लिया करें, इससे नेत्रों को तरावट मिलती है। प्रारंभ में त्राटक करने से शीघ्र थकावट हो जाती है, थक जाने पर आंखें बंद कर लें और त्राटक करें।
8-त्राटक हमेशा चश्मा उतार कर करना चाहिए। क्योंकि चश्मा पहन कर त्राटक करने से हमे उतना लाभ नहीं मिलेगा। चश्मा त्राटक के दौरान होने वाले अनुभव को कम कर देता है।त्राटक को हम अपनी क्षमता के अनुसार कितनी भी देर कर सकते है। कई लोग तो इसे 1 घंटे से भी ज्यादा समय तक कर सकते है।परन्तु शुरुआत में इसे केवल 5 मिनट ही करे।त्राटक करते समय बिंदु या की स्वयं से दूरी कम से कम 1 फीट से लेकर 3 फीट तक रख सकते है।त्राटक को हम 13 वर्ष की उम्र के
बाद कर सकते है। क्योंकि 13 उम्र से पहले हमारी आंखें थोड़ी कमजोर होती है।
.....SHIVOHAM....
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