ध्यान... SET 05क्या ध्यान में, ज्यादातर शारीरिक दर्द बाधा डालते हैं/ध्यान के चमत्कारिक अनुभव
ध्यान में, ज्यादातर शारीरिक दर्द बाधा डालते हैं ..तब उस समय ध्यान कैसे किया जाए?-
14 FACTS;-
1-ध्यान शरीर में रसायनिक बदलाव लाता है। नई चीजें होना शुरू हो जाती हैं; शरीर में एक अव्यवस्था होती है। कई बार पेट प्रभावित होता है क्योंकि पेट में तुमने बहुत सी भावनाएं दमित की हुई हैं, और उनमें उथल-पुथल मचती है। कई बार तुम्हें उल्टी आने को होगी, जी मिचलाएगा। कई बार तुम्हें तेज सिर दर्द महसूस होगा क्योंकि ध्यान तुम्हारे दिमाग का अन्दरूनी ढांचा बदल रहा होता है। ध्यान में तुम वास्तव में एक अव्यवस्था से गुजरते हो। जल्द ही चीजें व्यवस्थित हो जायेंगी। लेकिन, कुछ समय के लिए, हर चीज अव्यवस्थित होगी।
2-तो तुम्हें क्या करना है?वास्तव में,दर्द और आनंद उसी ऊर्जा के दो आयाम हैं।वह ऊर्जा जिसने दर्द पैदा किया ;उसे यदि सिर्फ देखा जाये तो दर्द गायब हो जाएगा और वही ऊर्जा आनंद बन जाएगी।उदाहरण के लिए सिर में हो रहे दर्द को देखो; इसे देखते रहो। दृष्टा बने रहो। भूल जाओ कि तुम कर्ता हो, और धीरे-धीरे हर चीज शांत हो जाएगी और इतनी खूबसूरती और इतनी सौम्यतापूर्वक कि तुम इसका विश्वास नहीं कर सकोगे।और इतना ही नहीं.. सिर दर्द भी गायब हो जाएगा।यदि तुम खामोशी से बैठे रहते हो और व्यवधानों पर ध्यान देते हो, सभी व्यवधान गायब हो जाएंगे। और जब सभी व्यवधान गायब हो जाएंगे, तुम्हें अचानक पता चलेगा कि सारा शरीर गायब हो गया है।
3-ये चीजें क्यों हो रही थी...और जब तुम ध्यान नहीं करते हो तब वे नहीं होतीं।वास्तव में,ध्यान के माध्यम से, तुम सभी चीजें बदल रहे हो; यह एक महान क्रांति है।और कोई भी सम्राट ताकत नहीं छोड़ना चाहता।तुम सारे दिन मौजूद हो और हाथ कभी खुजली नहीं करते, सिर में दर्द नहीं होता और पेट भी बिल्कुल सही है और पैर भी सही हैं। सभी चीजे सही हैं। ये चीजें ध्यान के दौरान अचानक शुरु हो जाती हैं क्योंकि शरीर लंबे समय तक प्रभुत्व में रहा है,और ध्यान में तुम शरीर को उसके प्रभुत्व के बाहर फेंक रहे हो। तुम इसे अपदस्थ कर रहे हो।यह चिपका रहता है; यह हर संभव तरीके से प्रभुत्व में रहने की कोशिश करता है। यह तुम्हें हटाने के लिए बहुत सी चीजे पैदा करेगा जिससे कि ध्यान खत्म हो जाये; तुम संयम खो देते हो और शरीर प्रभुत्व में आ जाता है। अब तक, शरीर प्रभुत्व में रहा है और तुम गुलाम रहे हो।
4-शरीर राजनैतिक दांव-पेंच करता है ..इसलिए यह हो रहा है।जब वह काल्पनिक दर्द पैदा करता है, तो खुजली होती है, चींटी चल रही होती हैं, शरीर तुम्हें भटकाने की कोशिश करता है। और यह स्वाभाविक है, क्योंकि शरीर लंबे समय से शासक रहा है, बहुत से जन्मों से यह सम्राट रहा है और तुम गुलाम। अब तुम हर चीज को पूरा बदल रहे हो। तुम अपनी सत्ता पुन: पाना चाह रहे हो, और यह स्वाभाविक है कि शरीर तुम्हें भटकाने की जो भी कोशिश कर सकता है करेगा। यदि तुम विचलित हो जाते हो, तुम खो जाओगे। साधारणतः, लोग इन चीजों को दबा देते हैं। वे मंत्र का उच्चारण शुरू देंगे; वे शरीर को नहीं देखेंगे।
5-तुम्हें किसी तरह का दमन नहीं बल्कि होश सीखना है।यदि तुम दर्द महसूस करते हो तो इसके बारे में सतर्क रहो, कुछ करो नहीं। ध्यान बहुत बड़ी तलवार है। तुम सिर्फ दर्द पर ध्यान दो ,देखो और क्योंकि यह काल्पनिक है, यह तुरंत गायब हो जाएगा। जब सभी दर्द , खुजली और चीटियां गायब हो जाएंगी ; तब शरीर गुलाम की तरह सही जगह पर स्थिर हो जाएगा। अचानक बहुत-सा आनंद उत्पन्न होता है; जो कि इस संसार का नही है।तुम उसे संजो नहीं सकते। अचानक इतना उत्सव पैदा होता है कि तुम प्रकट नहीं कर सकते; तुम्हारे भीतर से एक ऐसी शांति छलकती है जो समझ से परे है।
6-उदाहरण के लिए, तुम ध्यान के आखिरी चरण में शांति से बैठे हो... बिना हिले-डुले, और तुम बहुत सी परेशानियां शरीर में महसूस करोगे।यह संभव है, क्योंकि ध्यान में सारे शरीर में बदलाव आते हैं। तुम महसूस करोगे कि पैर मरते जा रहे हैं, सिर में भी खुजली हो रही है, तुम महसूस करोगे कि शरीर पर चींटियां रेंग रही हैं और तुमने बहुत बार देखा ..वहां चींटियां नहीं हैं।क्योंकि रेंगना अन्दर महसूस हो रहा है, बाहर नहीं। तुम महसूस करते हो पैर मरने जा रहे हैं ...इसको सिर्फ सम्पूर्ण ध्यान दो। खुजली महसूस करो – तो खुजलाना मत, क्योंकि वह मदद नहीं करेगा। अपनी आंखें भी मत खोलो। सिर्फ अंदर से ध्यान दो और सिर्फ इंतजार करो और देखो, और कुछ क्षणों में खुजली गायब हो जाएगी। चाहे कुछ भी हो -तेज दर्द पेट में या सिर में...सिर्फ अंदर से ध्यान दो और सिर्फ इंतजार करो।
ध्यान के चमत्कारिक अनुभव;-
लगातार भृकुटी पर ध्यान लगाते रहने से कुछ माह बाद व्यक्ति को भूत, भविष्य-वर्तमान तीनों प्रत्यक्ष दीखने लगते हैं। ऐसे व्यक्ति को भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के पूर्वाभास भी होने लगते हैं।
जो व्यक्ति सतत चार से छह माह तक ध्यान करता रहा है उसे कई बार एक से अधिक शरीरों का अनुभव होने लगता है। अर्थात एक तो यह स्थूल शरीर है और उस शरीर से निकलते हुए 2 अन्य शरीर। ऐसे में बहुत से ध्यानी घबरा जाते हैं और वह सोचते हैं कि यह ना जाने क्या है। उन्हें लगता है कि कहीं मेरी मृत्यु न हो जाए। इस अनुभव से घबराकर वे ध्यान करना छोड़ देते हैं। जब एक बार ध्यान छूटता है तो फिर पुन: उसी अवस्था में लौटने में मुश्किल होती है।
1-जो दिखाई दे रहा है वह हमारा स्थूल शरीर है। दूसरा सूक्ष्म शरीर हमें दिखाई नहीं देता, लेकिन हम उसे नींद में महसूस कर सकते हैं। इसे ही मनोमय शरीर कहा है। तीसरा शरीर
हमारा कारण शरीर है जिसे विज्ञानमय शरीर कहते हैं।वास्तव में,सूक्ष्म शरीर ने हमारे स्थूल शरीर को घेर रहा है। हमारे शरीर के चारों तरफ जो ऊर्जा का क्षेत्र है वही सूक्ष्म शरीर है। सूक्ष्म शरीर भी हमारे स्थूल शरीर की तरह ही है यानि यह भी सब कुछ देख सकता है, सूंघ सकता है, खा सकता है, चल सकता है, बोल सकता है आदि। इसके अलावा इस शरीर की और भी कई क्षमता है जैसे वह दीवार के पार देख सकता है। किसी के भी मन की बात जान सकता है। वह कहीं भी पल भर में जा सकता है। वह पूर्वाभास कर सकता है और अतीत की हर बात जान सकता है आदि।
2- तीसरा शरीर कारण शरीर कहलाता है। कारण शरीर ने सूक्ष्म शरीर को घेर के रखा है। इसे बीज शरीर भी कहते हैं। इसमें शरीर और मन की वासना के बीज विद्यमान होते हैं। यह हमारे विचार, भाव और स्मृतियों का बीज रूप में संग्रह कर लेता है। मृत्यु के बाद स्थूल शरीर कुछ दिनों में ही नष्ट हो जाता है और सूक्ष्म शरीर कुछ महिनों में विसरित होकर कारण की ऊर्जा में विलिन हो जाता है, लेकिन मृत्यु के बाद यही कारण शरीर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाता है और इसी के प्रकाश से पुनः मनोमय व स्थूल शरीर की प्राप्ति होती है अर्थात नया जन्म होता है।
3-कारण शरीर कभी नहीं मरता।इसी कारण शरीर से कई सिद्ध योगी परकाया प्रवेश में समर्थ हो जाते हैं। जब व्यक्ति निरंतर ध्यान करता है तो कुछ माह बाद यह कारण शरीर हरकत में आने लगता है। अर्थात व्यक्ति की चेतना कारण में स्थित होने लगती है। ध्यान से इसकी शक्ति बढ़ती है। यदि व्यक्ति निडर और होशपूर्वक रहकर निरंतर ध्यान करता रहे तो निश्चित ही वह मृत्यु के पार जा सकता है। मृत्यु के पार जाने का मतलब यह कि अब व्यक्ति ने स्थूल और सूक्ष्म शरीर में रहना छोड़ दिया।
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मृत्यु के प्रति जो जागेगा, वह शरीर के प्रति भी जागेगा। क्योंकि शरीर और मृत्यु एक ही अर्थ रखते हैं। जैसे ही तुम शरीर के प्रति जागोगे, मृत्यु के प्रति जागोगे। वैसे ही फासला होना शुरू हो जायेगा। और फासला इतना बड़ा है कि उससे बड़ा कोई दूसरा फासला नहीं हो सकता।तुम अमृत हो,शरीर मृत्यु है।
आम जिंदगी में, मौत में और तुम में इंच भर का फासला नहीं है। फिर भी कोई मरने के खयाल से नहीं भरा है जैसे कि मौत है ही नहीं। आखरी क्षण तक भी आदमी जिंदगी के खयाल से भरा रहता है और मौत से बचने की कोशिश करता है।ध्यान या समाधि का यही अर्थ है कि हम बादाम की तरह अपनी खोल और गिरी को अलग करना सीख जाएं। वे अलग हो सकते हैं,अलग -अलग जाने जा सकते हैं, क्योंकि वे अलग हैं।इसलिए ध्यान है स्वेच्छा से मृत्यु में प्रवेश, अपनी ही इच्छा से मौत में प्रवेश...वालेंटरी एन्ट्रेस इनटू डेथ।और जो आदमी अपनी इच्छा से मौत में प्रवेश कर जाता है, वह मौत का साक्षात्कार कर लेता है कि यह रही मौत और मैं अभी भी हूं।
जैसे ही मृत्यु का स्मरण आता है, जीवन एक प्रतीक्षालय हो गया। वहां बसने को तुम नहीं हो, वहां थोड़ी देर का विश्राम है। वह पड़ाव है। वह मंजिल नहीं है, वहां से जाना ही होगा। और जहां से जाना है, वहां की बातों में कितना अर्थ? जहां से जाना है, वहां की क्षुद्र समस्याओं में उलझने का
क्या सार! लेकिन तुम तो उलटा कर रहे हो। मृत्यु की तरफ पीठ किए हुए हो, भाग रहे हो, कि कहीं साक्षात्कार न हो जाये; कहीं मृत्यु सामने न मिल जाये।सूत्र कह रहा है कि तुम उसका सामना ही कर लो। क्योंकि जैसे ही तुम उसे देख लोगे, भय से मुक्त हो जाओगे।क्योंकि जिस दिन
मृत्यु देख ली जाती है, उस दिन देखने वाला मृत्यु से अलग हो जाता है। दृश्य और द्रष्टा अलग हो जाते हैं। तब मृत्यु भी इस जगत की एक घटना हो जाती है और तुम साक्षी हो जाते हो। जब तुम मृत्यु को ठीक से देख लेते हो, तुम अमृत हो जाते हो। मृत्यु का साक्षात्कार मनुष्य को अमरत्व दे देता है।
5- मृत्यु को अगर तुम देख लो, तो अमृत।'काम' से अगर तुम डर-डरे, भागे-भागे रहे तो तुम्हें समाधि की कोई झलक कभी न मिलेगी। मृत्यु से तुम भयभीत रहे, तो तुम्हें अमृत का कभी कोई पता न चलेगा। मृत्यु सीढ़ी है अमृत के दर्शन की। 'काम' सीढ़ी है समाधि की झलक की। और जैसे ही समाधि की झलक मिली, काम व्यर्थ हुआ। और जैसे ही अमृत दिखाई पड़ा,
मृत्यु गई। फिर तुम मरने वाले नहीं हो।सिद्धांत दूसरों से मिलते हैं, प्रतीति अपनी होती है।
6-जीवन शाश्वत है। रूप बदलते हैं, घर बदलते हैं, वस्त्र बदलते हैं, आकार बदलते हैं, लेकिन जो आकारों के भीतर छिपा निराकार है,वह सदा वही है।
सागर में भी खो कर नदी खोती थोड़ी है.. फिर बादल बन जाती है, फिर गंगोत्री पर बरस जाती है, फिर धारा बहने लगती है--एक वर्तुल है जीवन का--उसका कोई अंत नहीं है।
रात सोते समय आखिरी रात है। सब को धन्यवाद दे दो। जिनसे क्रोध किया हो, उनसे क्षमा मांग लो। जिन्होंने तुम्हारे लिए कुछ किया हो, उन्हें धन्यवाद दे दो। जिन्होंने कुछ भी न किया हो, कम से कम उन्होंने तुम्हारा कुछ बुरा नहीं किया, उन्हें भी धन्यवाद दे दो। जिन्होंने तुम्हारा बुरा किया हो, जिनके प्रति मन में द्वेष, घृणा, क्रोध हो, उनसे भी क्रोध, घृणा का संबंध तोड़ लो।क्योंकि जब शरीर ही न बचेगा, तो क्या नाता, क्या रिश्ता! अपने-पराये से मुक्त हो जाओ। और चुपचाप सो जाओ, जैसे यह आखिरी रात है। तुम्हारी रात का गुणधर्म बदल जायेगा।
शरीर सोया रहेगा, तुम्हारे भीतर कोई जागेगा। दीये के नीचे का अंधेरा जो है, वह धीरे-धीरे मिटने लगेगा। सुबह जब उठो तो पहला काम परमात्मा को धन्यवाद दो, कि एक दिन और तूने दिया। बस, प्रसन्नता से, इस अनुग्रह भाव से इसे स्वीकार कर लो। रात फिर आखिरी मान कर सो जाओ। प्रत्येक पल को धन्यवाद से स्वीकार करो और प्रत्येक पल को अंतिम मान कर विदाई का क्षण भी समझ लो। यह तुम्हारे जीवन का सूत्र बन जाए। तुम जल्दी ही पाओगे, तुम और हो गये, नये हो गये। तुम्हारे भीतर कोई दूसरा ही जन्म गया।
...SHIVOHAM...
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