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नौवां शिवसूत्र -''विकल्प ही स्वप्न हैं।''

  • Writer: Chida nanda
    Chida nanda
  • Feb 9, 2022
  • 8 min read

Updated: Aug 7, 2022

NOTE;-महान शास्त्रों और गुरूज्ञान का संकलन...


नौवां शिवसूत्र -''विकल्प ही स्वप्न हैं''।

11 FACTS;-

1-भगवान शिव कहते है ''विकल्प ही स्‍वप्‍न हैं''।वास्तव में, मन में विचारों , विकल्पों का और कल्पनाओं का फैलाव ही स्‍वप्‍न है। अविवेक अर्थात स्वबोध का अभाव सुषुप्‍ति है।ये तीन अवस्थाएं हैं। जिनमें हम गुजरते हैं। लेकिन जब हम एक से गुजरते है तो हम उसी के साथ एक हो जाते हैं। जब हम दूसरे में पहुचते है, तो हम दूसरे के साथ एक हो जाते है। जब हम तीसरे में पहुचते है, तो तीसरे के साथ एक हो जाते हैं।इसलिए हम तीनों को अलग -अलग नहीं देख पाते हैं।अलग देखने के लिए थोडी सी जगह अथार्त दोनो के बीच मे थोड़ा रिक्त स्थान चाहिए।जो शब्द आँखों के बिल्कुल नजदीक होते हैं ;वह धुंधले दिखाई पड़ते हैं । तो थोड़ी दूरी चाहिए और तुम जाग्रत के, स्‍वप्‍न के, सुषुप्‍ति के इतने निकट खड़े हो जाते हो कि बिलकुल एक ही हो जाते हो।तुम उसी के रंग मे रंग जाते हो।और, यह दूसरे के रंग में रंग जाने की हमारी आदत इतनी गहन हो गयी है कि हमें पता भी नहीं चलता और इसका शोषण किया जाता है।तुम भीड़ के रंग में भी रंग जाते हो, खो जाते हो क्योंकि खोने की तुम्हारी आदत है।कोई अकेले में इतना बुरा नहीं है,जितना भीड़ के साथ बुरा होता है।

2-अगर भीड़ क्रोध से भरी है, तुम अचानक पाते हो कि तुम्हारे भीतर भी क्रोध जग रहा है।अगर भीड़ प्रसन्न है, तुम अपने दुख भूल जाते हो और प्रसन्न हो जाते हो।दुखी, परेशान, बेचैन लोग भी होली के हुल्लड़ में बड़े आनंदित दिखाई पड़ते है। भीड़ जब दुखी हो रही होगी तो तुम अचानक पाओगे कि तुम्हारे भीतर भी बड़े भाव उठ रहे हैं ।लेकिन जो सहानुभूति तुम्हारे हृदय से न आती हो वह किसी मतलब की नहीं है।यह इसलिए हो पाता है कि तुम अपनी पृथकता अनुभव नहीं करते और जहां भी तुम्हें अपनी पृथकता खोने का मौका मिलता है, तुम तत्क्षण खो देते हो।साधक को भीड़ से सावधान होना चाहिए और अपनी आवाज खोजनी चाहिए।नींद आयी तो तुम नींद में डूब गये ;जाग्रत आया तो जाग्रत में डूब गये; स्‍वप्‍न आया तो स्‍वप्‍न में डूब गये। लोग दुखी हैं तो तुम दुखी हो गये ;लोग सुखी हैं तो तुम सुखी हो गये।वास्तव में, तुम सिर्फ एक डूबने का बिंदु हो।लेकिन तुम्हारा कोई अस्तित्व भी है ,केंद्र भी है और उस केंद्र का नाम ही आत्मा है।इसलिए अपने अस्तित्व को जगाओ और डूबने से बचो।

3-सभी धर्म जगाने के पक्ष में हैं और इसीलिए सभी धर्म शराब के विरोध में हैं क्योकि वह डूबने का रास्ता है। तुम वैसे ही काफी मूर्च्छित हो लेकिन अगर तुममें जरा भी होश है,तो तुम उसको भी खोने के लिए तैयार रहते हो। क्योंकि जब भी तुम उसे खो देते हो, तभी तुम कहते हो कि बड़ा आनंद है।वास्तव में, वह जो थोड़ा सा होश है, वह तुम्हें जिंदगी की समस्याओं को देखने में सहायता देता है ; जिंदगी के प्रति चैतन्य बनाता है और चिंता से भरता है। वह तुम्हें होश से भरता है कि तुम होश में नहीं हो। वह जो तुम्हारे भीतर छोटी सी किरण है, वह तुम्हारे गहन अंधकार को प्रकट करती है। तुम उस किरण को भी बुझा देना चाहते हो ताकि न किरण रहेगी और न ही अंधेरे का पता चलेगा। उस किरण की वजह से ही अंधेरा पता चलता है, इसीलिए शराब में, किसी भीड़ के उपद्रव में, राजनीति में ;कहीं भी डूब जाते हो ,अपने को लगा देते हो, ताकि अपने को भूल जाओ।

4-मनोवैज्ञानिक लोगों को कहते हैं कि तुम अगर अपने को भुला सको, तो ही तुम स्वस्थ रह सकोगे और धर्मगुरु कहते हैं कि तुम अगर अपने को जगा सको तो ही तुम स्वस्थ हो सकोगे। बड़ी उलटी बातें हैं लेकिन दोनों बातें सार्थक हैं।मनोवैज्ञानिक, तुम जैसे हो, उसी को स्वीकार कर लेता है। ताकि तुम जैसे हो, ऐसे ही रह सको, जी सको, किसी तरह जिंदगी गुजार सको। वह उसमें सहायता पहुंचाता है। वह वह कह रहा है कि किसी तरह अपने को भुला दो ..जो ठीक ही है।चैतन्य ज्यादा खतरनाक है; क्योंकि तब सब चीजें तुम्हें दिखाई पड़नी शुरू हो जाएंगी और तुम चिंता से मर जाओगे।अगर इस जिंदगी में कुछ भी ठीक नहीं है,सब गड़बड़ है, सब अस्तव्यस्त है। तो बेहतर है कि तुम आँख बंद कर लो और प्रसन्न रहो । लेकिन धर्मगुरु तुम्हें स्वीकार नहीं करते। वे कहते हैं...तुम तो रुग्ण हो ,विक्षिप्त ही हो , तो तुम्हें पहले शांति की जरूरत नहीं है।अगर चिंता बढ़ती है और तुम्हारे भीतर बेचैनी आती है तो कोई हर्जा नहीं है; क्योंकि उसी के द्वारा तुम बदलोगे, क्रांति होगी।मार्फिया का इंजेक्‍शन देने से जीवन में क्रांति नहीं होती।लेकिन जगाने से रूपांतरण हो सकता है।

5- धर्मगुरु कहते हैं कि मनुष्य जैसा है, यह उसकी अंतिम अवस्था नहीं है बल्कि उसकी प्रथम अवस्था तक नहीं है। वह तो यात्रा के,द्वार के बिलकुल बाहर ही खड़ा है ।अभी इसने भीतर प्रवेश भी नहीं किया। महा आनंद की संभावना है; लेकिन तुम जैसे हो उससे महानंद नहीं होगा।हमें सुख और आनंद का फर्क समझना चाहिए । सुख उस अवस्था का नाम है, जब तुम्हारे भीतर जो छोटी सी किरण जाग गयी है, वह भी सो जाती है। तब तुम्हें कोई दुख पता नहीं चलता। आनंद उस अवस्था का नाम है, जब तुम्हारे ‘भीतर जो छोटी सी किरण है, वह महासूर्य हो जाती है और अंधकार पूरा खो जाता है। सुख अथार्त .. दुख का पता न चलना ...जो निगेटिव है। उदाहरण के लिए पेन किलर्स टेबलेट्स तुम्हें न सिर्फ दर्द का पता नहीं चलने देती बल्कि बेहोशी भी दे देती है ;इसीलिए सुख है, आनंद नहीं। तुम बीमार हो, परेशान हो, जिंदगी चिंता से भरी है ..और तुम शराब पी लेते हो, फिर सब ठीक है। इस प्रकार, तुम्हारी जो छोटी सी प्रकाश की किरण हैं, उसे खोकर तुम सुख खरीदते हो। उससे तुम्हें कभी आनंद न मिलेगा क्योंकि सुख सिर्फ दुख का भूलना है और आनंद तो आत्मा का स्मरण है। वह भूल जाना नहीं है बल्कि पूरी स्मृति है।

6- संतो ने उसे 'सुरति' अथार्त पूर्ण स्मरण कहा है। ये सूत्र हमें पूर्ण स्मरण की तरफ ले जाएंगे। तो ध्यान रखना है कि जो चीज बेहोश करती हो, उससे बचना है। और बेहोश करने के इतने सुगम उपाय हैं कि तुम्हें पता भी नहीं है।इसके कई तरीके है। उदाहरण के लिए एक व्यक्ति खाने के पीछे पागल है .. खाता ही रहता है।वास्तव में, वह खाने से शराब का उपयोग कर रहा है। क्योकि ज्यादा भोजन निद्रा लाता है ,सुषुप्‍ति देता है।वह खाने के माध्यम से बेहोशी खोज रहा है। इसलिए अगर किसी दिन तुमने उपवास किया तो रात तुम सो न सकोगे क्योंकि भोजन की एक अपनी तंद्रा है।दूसरा व्यक्ति महत्वाकांक्षा की यात्रा में लगा है। वह भी दीवाने की तरह लगा है ..सुबह हो, रात हो, दिन हो, कुछ फिक्र नहीं। उसके मन में एक गणित चल रहा है और वह उस एक गणित के प्रति समर्पित है।

7-उसको चिंता उस दिन घेरेगी, जब वह महत्वाकांक्षा पूर्ण कर पाने में सफल हो जाएगा। तब अचानक वह पाएगा कि जीवन बेकार गया..अब क्या करे।वास्तव में, ये सब स्वयं से बचने की तरकीबें हैं ,वर्ना स्वयं का सामना करना पडेगा। न कोई खाने के पीछे पागलपन है, न महत्वाकांक्षा है केवल भय है कि कहीं खुद से मिलना न हो जाये। तुम आत्मा को जानने से बचने का सब उपाय करते हो।संत कहते हैं कि आत्मा को जानने से महा आनंद की वर्षा होती है, अमृत बरसता है।लेकिन यह घटना बहुत अंत में घटती है, पहले तो बहुत दुख से गुजरना पड़ता है। क्योंकि तुमने जिंदगी में, अनंत जन्मों में जितने धोखे दिये हैं उन सब धोखों को तोड़ना पड़ेगा। क्योंकि धोखे ने एक मधुरता , एक नींद दी थी, एक बेहोशी दी थी। बिना उनको तोड़े तुम उस जगह पहुंच भी न पाओगे और हर धोखे को तोड्ने में दुख तो होता ही है। वह बीच का मार्ग ही तपश्‍चर्या है।इसीलिए जागने से शुरू करना है।

8-विकल्प ही स्‍वप्‍न है। चित्त का विकल्पों से भरे रहना स्‍वप्‍न की दशा है। अपने तप को पहले जाग्रत में , फिर स्‍वप्‍न में और फिर सुषुप्‍ति में ले जाओ। यह मत सोचना कि तुम रात में ही सपना देखते हो,बल्कि तुम दिन में भी देखते रहते हो।तुम्हारे भीतर चौबीस घंटे, एक सपने की अंतर्धारा चलती रहती है।भीतर तो जागने में भी, एक सपना तुम्हें घेरे ही रहता है...कुछ न कुछ चलता ही रहता है।यह हालत ऐसी ही है जैसे कि रात में तो आकाश में तारे दिखायी पड़ते है,लेकिन दिन में दिखायी नहीं पड़ते; क्योंकि सूरज के प्रकाश में ढक जाते है। इससे यह मत समझना कि खो जाते हैं; वे तो अपनी जगह हैं।तारों को देखने के लिए अंधेरा चाहिए। सूरज की रोशनी की वजह से तारे दिखायी नहीं पड़ते।दिन में तुम किसी गहरे कुएं में खड़े होकर देखना तो तुम्हें आकाश में दिन में भी तारे दिखायी पड़ जाएंगे और यही हालत स्‍वप्‍न की भी है।दिन में सपने तो भीतर बने ही रहते है,केवल दिखायी नहीं पड़ते। दिन में भी तुम अगर आँख बंद करके आराम कुर्सी पर बैठ जाओ, तत्क्षण दिवा स्‍वप्‍न शुरू हो जायेगा। इस अंतर्सूत्र को तोड़ना बहुत जरूरी है; क्योंकि दिन में तुम तोड़ सको तो ही रात में तुम तोड़ पाओगे।

9- सभी मंत्रों का उपयोग इस अंतर्सूत्र को तोड्ने के लिए किया जाता है। बाहर तुम सब काम करते हो और भीतर तुम 'ॐ' का स्मरण करते हो, तो वह जो शक्ति तुम्हारे भीतर खाली पड़ी सपना देखती थी..'ॐ' का स्मरण बन जायेगी। इससे सपने को तोड्ने में सहायता मिलेगी।और जिस दिन तुम रात नींद में भी पाओगे कि सपना नहीं चलता, बल्कि 'ॐ' की धारा चल रही है, उस दिन समझ लेना कि दिन में सपना टूट गया। तो, मंत्र की सफलता नींद में पता चलती है, दिन में पता नहीं चलती। यह धारा इतनी सघन हो सकती है कि तुम कल्पना भी नहीं कर सकते। पूरे शरीर के रोएं रोएं से 'ॐ' की आवाज आती है।अगर स्मरण बहुत गहरा हो जाए तो यह घटना घटती है; क्योंकि स्‍वप्‍न में बड़ी ऊर्जा नष्ट हो रही है। सपने के लिए तुम्हें बहुत कीमत चुकानी पड़ती है; क्योंकि रातभर तुम सपना देखते हो। वैज्ञानिक कहते हैं कि रात में साधारण स्वस्थ मनुष्य जिसमें कोई मानसिक विकार नहीं है कम से कम आठ सपने देखता है और एक स्‍वप्‍न का अंतराल करीब पंद्रह मिनिट का होता है।अथार्त आठ सपने का मतलब हुआ कि कम से कम दो घंटे रात सपना देखा जा रहा है। और साधारण मनुष्य तो रात के आठ घंटे की नींद में करीब -करीब छह घंटे सपना देखता है।

10- यह छह घंटे जो सतत स्‍वप्‍न की धारा चल रही है, इसमें तुम्हारी शक्ति नष्ट हो रही है। यह मुफ्त नहीं है। यह तुम अपने जीवन को देकर खरीद रहे हो।लेकिन स्‍वप्‍न बदलते हुए हैं, क्षणभंगुर है; मंत्र सतत है और एक ही है। धीरे धीरे सभी स्वप्रों की ऊर्जा मंत्र में लीन हो जाती है। और जिस दिन रात्रि में, नींद में भी स्‍वप्‍न न आएं और मंत्र चलने लगे, तुम समझना कि तुमने स्‍वप्‍न पर विजय पा ली। तुम समझना कि तुम्हारा सपना टूटा और सत्य शुरू हुआ।उसके बाद सुषुप्ति में प्रवेश हो सकता है। लेकिन, तुम उलटा ही कर रहे हो। तुम विकल्पों को शक्ति देते हो। तुम्हारे भीतर व्यर्थ के विचार चलते हैं, उनको भी तुम साथ देते हो। खाली हो तो कुछ सोचने लगते हो और फिर सपना शुरू हो जाता है।तुम कभी भी नहीं सोचते कि तुम एक व्यर्थ के विकल्प को ऊर्जा दे रहे हो । तुम्हारा चित्त व्यर्थ के विकल्पों से भरा हुआ है।मंत्र इस शक्ति को ओंकार में या कोई भी नाम में केंद्रित कर लेता है । सभी नाम परमात्मा के है । कोई भी एक मंत्र को अगर दोहराया जाए तो भीतर उसका एक संगीत , एक ध्वनि पैदा हो जाती है। उस ध्वनि में स्‍वप्‍न की जो ऊर्जा है, वह लीन हो जाती है। मंत्र सपनों को नष्ट करने के उपाय हैं। उनसे कोई परमात्मा को नहीं पाता। लेकिन रूप्र को नष्ट करना परमात्मा को पाने के मार्ग पर एक बड़ा कदम है।मंत्र एक प्रक्रिया है, एक विधि है, एक औजार है, जिससे हम सपनों को चकनाचूर कर देते हैं।स्‍वप्‍न विकल्प है और मंत्र संकल्प है। वह भी विकल्प का ही एक रूप है।

11-जो लोग सपनों में सफल हो जाते है, उनको सफलता की आखिरी कगार पर उन्हें पता चलता है कि जिसके लिए दौड़े, भागे, पा लिया, वहां कुछ भी नहीं है। यद्यपि अपनी नासमझी छिपाने के लिए पीछे दौड़ रहे लोगो की तरफ देखकर मुस्‍कुराते रहते हैं , विजय का प्रतीक बताते रहते है।लेकिन वास्तव में, वे हार गये हैं। इस संसार की सभी सफलताएं राख में बदल जाती हैं। लेकिन तब तक जीवन हाथ से निकल चुका होता है और लौटने का उपाय नहीं होता।तब तो सिर्फ छिपाने की बात रह जाती है कि लोगों से छिपा लो कि तुम्हारा जीवन व्यर्थ नहीं गया; तुम बड़े सार्थक हो गये हो ।अगर दुनिया के सभी सफल लोग ईमानदारी से कह दें कि उनकी सफलता से उन्हें कुछ भी न मिला तो बहुत से व्यर्थ सपनों की दौड़ बंद हो जाए। लेकिन यह कहना उनके अहंकार के विपरीत है । वे तो यही बताते रहते हैं कि उन्होंने परम आनंद पा लिया। विकल्प ही स्‍वप्‍न है।जब भी तुम्हारे भीतर सपनों की धारा चले तो इन विकल्पों को शक्ति मत देना और स्वयं को जगा लेना।

....SHIVOHAM......



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