निर्माल्य का क्या अर्थ है?
निर्माल्य का क्या अर्थ है?-
02 FACTS;-
1-निर्माल्य संस्कृत शब्द है। देवता को चढ़ाये गये, देवता को धारण कराये गये पुष्प, पुष्पमाला,नैवेद्य इत्यादि को देवता के विसर्जन, पूजा समाप्ति के उपरान्त उतारे जाने पर वे निर्माल्य कहलाते हैं एवं मनुष्यों, देवता के गणों एवं देवपूजकों एवं भक्तों के द्वारा ग्रहण करने योग्य होते हैं। जगन्नाथ स्वामी को पूजा, अर्चना के बाद उनकी विदाई या प्रस्थान के बाद उसी क्षण उन्हें अर्पित नैवेद्य आदि द्रव्य निर्माल्य कहलाता है।तंत्रसार का निर्देश है-कि निर्माल्य(पुष्पादि के अंश को) सिर पर धारण करना चाहिए। चन्दन को सर्वांग में( भस्म को इसीलिए साधु,सन्यासी पूरे देह में लगाते हैं)।नैवेद्य उस देवता के भक्त को अर्पित करके(यदि वे उपलब्ध हों) तो पुजारी को ग्रहण करना चाहिए, इसीलिए प्रसाद वितरण की परम्परा है।शेष निर्माल्य जो ग्राह्य नहीं हो उसे जल में(नदी, तालाब इत्यादि),वृक्ष की जड़ में फेकना चाहिए ऐसा कालिकापुराण के अध्याय 55 में उल्लेख है ।गृह स्थित देवताओं के चढ़ाये गये निर्माल्य, नैवेद्य को छोड़कर दूसरे दिन प्रातः काल उतारने का विधान है।जो प्रातःउठकर प्रतिदिन भगवान् के निर्माल्य को हटाता है, उसे दुःख, दरिद्रता,अकालमृत्यु और कोई रोग नहीं होता। शिव पर अर्पित प्रसाद चण्डेश्वर का अंश माना जाता है।भगवान् शिव के मुख से चण्डेश्वर नाम का गण प्रकट हुआ है जो भूत-प्रेतों का प्रधान है।
2-शिव निर्माल्य पर गलती से भी पैर लग जाये या उसका अपमान किसी से हो जाये तो उसकी समस्त सिद्धि शक्ति तप पुण्य उसी समय पूर्ण नष्ट हो जाते हैं। उसे कष्टों का सामना करना पड़ता है और प्रायश्चित करना पड़ता है।शिवजी के लिए आने वाले जल को मंदिर परिसर या उसके आसपास 5 या 10 फीट बोरिंग जैसा गड्ढा करकर शिव जी पर अर्पण जल का निकास करें।शिवजी पर अर्पण पत्र पुष्प को नदी तालाब सरोवर, कुएं को दूषित न करते हुए गड्ढा खोदकर उसमे डालें जो कि स्वत: खाद बन जाएगा। जो निर्माल्य नदी, तालाब, सरोवर व कुआं आदि को दूषित न करे वह निर्माल्य ही पानी में छोड़ें। सामान्य पत्थर, मिट्टी, चीनी मिट्टी के बने शिवलिंग के प्रसाद को ग्रहण नहीं करना चाहिए, उसे जल में विसर्जित करना चाहिए। ज्योतिर्लिंगों के,पारद से बने शिवलिंग ,नर्मदेश्वर शिवलिंग,शालिग्राम के प्रसाद ग्रहण करने का विधान है।वैदिक काल से कहा और माना जाता हैं कि जहां नर्मदेश्वर का वास होता है, वहां काल और यम असमय प्रवेश नहीं करते हैं।
निर्माल्य हटाने का मंत्र;-
वैष्णवों के निर्माल्य हटाने का मंत्र... ऊँ विश्वकसेनाय नमः।
शाक्त या भगवती के उपासक का मंत्र...ऊँ शेषिकायै नमः।
शिव का मंत्र...ऊँ चण्डेश्वराय नमः।
सूर्य का मंत्र...ऊँ तेजश्चण्डाय नमः।
गणेश जी का मंत्र...ऊँ उच्छिष्ट चाण्डालिन्यै नमः।
कालिकादि देवताओं का मंत्र...ऊँ उच्छिष्टचाण्डालिन्यै नमः।
मानस पटल ज्योति दर्शन;-
02 FACTS;-
1-यदि हम निर्मल शब्द की व्याख्या करते हैं तो इसका अर्थ है निर्मल बिना मल का।निर्माल्य का अर्थ है मानव के मानस पटल /चित्त या मन के चित्रकार इतना निर्मल हो जाना की जब भी आंखें बंद हो , तो आंख बंद करने पर नेत्रों के शक्ति चक्र चालक या विविध रंग या विविध दिवास्वप्न के स्थान पर बिल्कुल पारदर्शी नेत्रपट /दर्पण या सीसे के समान दिखाई देना चाहिए जिस पर हम जब चाहे जहां चाहे अपनी मनचाही सूचना देख सकें। मानसपटल का सी.सी.टी.वी. की तरह से अपने हित में दूसरे लोगों के हित में जब चाहें सदुपयोग कर सकेंं । संजय ने जो महाभारत के दृश्यों का टेलीकास्ट किया था उसका मुख्य कारण संजय के साधारण मानसपटल का निर्माल्य मानसपटल में परिवर्तित होना था /बदलाव आ जाना था ।यह निर्माल्य मानसपटल कुछ लोगों को जन्मजात सिद्ध विशेष अवस्था प्राप्त होती है । जिससे वह बिना सिद्धि किए ही दूर की बातें अपने मानस पटल पर देख कर बता सकते हैं जिससे टेलीपैथी कहा जाता है । लेकिन टेलीपैथी जनसाधारण में आसानी से उपलब्ध मानस गुण नहीं होता यह प्राकृतिक होता है जिसमें अधिकतम सिद्धि लक्षण होता है । यदि हम टेलीपैथी को सीखते हैं या सीखना चाहते हैं तो वह अप्राकृतिक कहा जाता ह ।उसमें न्यूनतम सिद्धि लक्षण प्राप्त होता है । ऐसे न्यूनतम सिद्धि लक्षण प्राप्त लोगों के फोरकास्ट या भविष्य अनुमान विश्वसनीय नहीं होते । लेकिन फिर भी प्रयास किया जाए तो ऐसा व्यक्ति अपना भविष्य दर्शन अपने मानस पटल के दर्शन में कर सकता है ।
2-लेकिन इसके लिए उसे साधनाएं करनी होंगी ।जिनमें सबसे पहला आता है शक्ति चक्र चालन मानव के नेत्रोंं में मानसपटल की त्रययी गति ।मानसपटल में चित्त की स्थिरता प्रथम गति है जिससे सम्मोहन विधा की शुरुआत होती है । मानसपटल की द्वितीय वामावर्त गति हैं।मानसपटल की तृतीय दक्षिणावर्त गति मुख्य हैं। मानस पटल की वामावर्त ,दक्षिणावर्त गति दर्शन नियंत्रण सिद्ध हो जाने पर मनुष्य सिद्ध हो जाता है । मानस पटल में नेत्रों के अंदर विभिन्न प्रकार के रंग दर्शन स्वभाव से होती है या शारीरिक रुग्ण स्वास्थ्य की अवस्था पर निर्भर है। शरीर की शुद्धि अवस्था में मानस पटल का रंग शुद्ध पीला ,नारंगी, लाल, हरा या नीला होता है । परंतु बीमार होने पर मानस पटल कारण शुद्ध ना होकर मिश्रित रंग हो जाता है जैसे नारंगी ,बैंगनी आदि । जो लोग इस शक्ति चालन में सिद्ध हो जाते हैं वह अपनी शक्ति चक्र चालन को अपनी इच्छा के अनुसार वामावर्त या दक्षिणावर्त चला सकते हैं । विशेष बात यह है कि जिन लोगों के मानस पटल का रंग आखें बंद करने पर /मूंदने पर बिल्कुल काला होता है उनका मानस पटल शक्ति चक्र चालन अवरुद्ध /रुका हुआ होता है ।उनके लिए मानसिक पूजा में श्री कृष्ण का गीता का उपदेश करता दृष्य भी बहुत ही कल्याणकारी होता है। इस भाव और पूरे मनोयोग से भगवान श्री कृष्ण को नमन कर उनकी मानसिक पूजा का अतुल्य पुण्य प्राप्त होता है। श्री कृष्ण की दिव्यता को प्रकट करता यह स्वरूप अत्यन्त मनोहारी है, इसी समय भगवान ने अर्जुन को अपने विराट स्वरूप के दर्शन कराये थे। जिस विराट स्वरूप में सम्पूर्ण सृष्टि समाहित थी।
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