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नेपाल का पशुपतिनाथ मंदिर

नेपाल का पशुपतिनाथ मंदिर;-

07 FACTS;-

1-विश्व में दो पशुपतिनाथ मंदिर प्रसिद्ध है एक नेपाल के काठमांडू का और दूसरा भारत के मंदसौर का। दोनों ही मंदिर में मुर्तियां समान आकृति वाली है। नेपाल का मंदिर बागमती नदी के किनारे काठमांडू में स्थित है और इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल किया गया है। यह मंदिर भव्य है और यहां पर देश-विदेश से पर्यटक आते हैं।पशु अर्थात जीव या प्राणी और पति का अर्थ है स्वामी और नाथ का अर्थ है मालिक या भगवान। इसका मतलब यह कि संसार के समस्त जीवों के स्वामी या भगवान हैं पशुपतिनाथ। दूसरे अर्थों में पशुपतिनाथ का अर्थ है जीवन का मालिक।माना जाता है कि यह लिंग, वेद लिखे जाने से पहले ही स्थापित हो गया था। पशुपति काठमांडू घाटी के प्राचीन शासकों के अधिष्ठाता देवता रहे हैं। पाशुपत संप्रदाय के इस मंदिर के निर्माण का कोई प्रमाणित इतिहास तो नहीं है किन्तु कुछ जगह पर यह उल्लेख मिलता है कि मंदिर का निर्माण सोमदेव राजवंश के पशुप्रेक्ष ने तीसरी सदी ईसा पूर्व में कराया था।

2-605 ईस्वी में अमशुवर्मन ने भगवान के चरण छूकर अपने को अनुग्रहीत माना था। बाद में इस मंदिर का पुन: निर्माण लगभग 11वीं सदी में किया गया था। दीमक की वजह से मंदिर को बहुत नुकसान हुआ, जिसकी कारण लगभग 17वीं सदी में इसका पुनर्निर्माण किया गया। बाद में मध्य युग तक मंदिर की कई नकलों का निर्माण कर लिया गया। ऐसे मंदिरों में भक्तपुर (1480), ललितपुर (1566) और बनारस (19वीं शताब्दी के प्रारंभ में) शामिल हैं। मूल मंदिर कई बार नष्ट हुआ है। इसे वर्तमान स्वरूप नरेश भूपलेंद्र मल्ला ने 1697 में प्रदान किया।अप्रैल 2015 में आए विनाशकारी भूकंप में पशुपतिनाथ मंदिर के विश्व विरासत स्थल की कुछ बाहरी इमारतें पूरी तरह नष्ट हो गयी थी जबकि पशुपतिनाथ का मुख्य मंदिर और मंदिर की गर्भगृह को किसी भी प्रकार की हानि नहीं हुई थी।पशुपतिनाथ मंदिर में भगवान की सेवा करने के लिए 1747 से ही नेपाल के राजाओं ने भारतीय ब्राह्मणों को आमंत्रित किया था। बाद में 'माल्ला राजवंश' के एक राजा ने दक्षिण भारतीय ब्राह्मण को मंदिर का प्रधान पुरोहित नियुक्त कर दिया। दक्षिण भारतीय भट्ट ब्राह्मण ही इस मंदिर के प्रधान पुजारी नियुक्त होते रहे थे। वर्तमान में प्रचंड सरकार के काल में भारतीय ब्राह्मणों का एकाधिकार खत्म कर नेपाली लोगों को पूजा का प्रभाव सौंप दिया गया।

3-ये मंदिर प्रत्येक दिन प्रातः 4 बजे से रात्रि 9 बजे तक खुला रहता है। केवल दोपहर के समय और साय पांच बजे मंदिर के पट बंद कर दिए जाते है। मंदिर में जाने का सबसे उत्तम समय सुबह सुबह जल्दी और देर शाम का होता है। पुरे मंदिर परिसर का भ्रमण करने के लिए 90 से 120 मिनट का समय लगता है।नेपाल में पशुपतिनाथ का मंदिर काठमांडू के पास देवपाटन गांव में बागमती नदी के किनारे स्थित है। मंदिर में भगवान शिव की एक पांच मुंह वाली मूर्ति है। पशुपतिनाथ विग्रह में चारों दिशाओं में एक मुख और एकमुख ऊपर की ओर है। प्रत्येक मुख के दाएं हाथ में रुद्राक्ष की माला और बाएं हाथ में कमंदल मौजूद है। मान्यता अनुसार पशुपतिनाथ मंदिर का ज्योतिर्लिंग पारस पत्थर के समान है।कहते हैं कि ये पांचों मुंह अलग-अलग दिशा और गुणों का परिचय देते हैं। पूर्व दिशा की ओर वाले मुख को तत्पुरुष और पश्चिम की ओर वाले मुख को सद्ज्योत कहते हैं। उत्तर दिशा की ओर वाले मुख को वामवेद या अर्धनारीश्वर कहते हैं और दक्षिण दिशा वाले मुख को अघोरा कहते हैं। जो मुख ऊपर की ओर है उसे ईशान मुख कहा जाता है।ये चारों चेहरे तंत्र-विद्या के चार बुनियादी सिद्धांत हैं। कुछ लोग ये भी मानते हैं कि चारों वेदों के बुनियादी सिद्धांत भी यहीं से निकले हैं।

4-पशुपतिनाथ मंदिर के मुख्य द्वार के ऊपर स्वर्ण कलश युक्त तीन शिखाएं हैं। चार सीढिय़ां उतर कर प्रांगण आता है। बीचों-बीच मुख्य मंदिर की पैगोडा शैली की छतें, गुम्बद, ध्वज, शिखर और छोटी-बड़ी अनेक मूर्तियां सुशोभित हैं। प्रांगण में विशाल नंदी सोने की भांति दीप्तिमान हैं। उनके जरा आगे एक और हू-ब-हू छोटे नंदी विराजमान हैं। नंदी जी की दाईं ओर वीर मुद्रा में महावीर हनुमान जी हैं। शिवलिंग के पश्चिमी मुख की तरफ बने पीतल के नंदी जी का निर्माण पशुपतिनाथ मंदिर के संस्थापकों की 20वीं पीढ़ी के राजा धर्मदेव ने करवाया था।शिवलिंग कक्ष पशुपतिनाथ मंदिर के लम्बे-चौड़े आंगन के मध्य स्थित है। मंदिर के भीतर स्थापित शिवलिंग के चारों मुखों के ठीक सामने चारों दिशाओं के चार दरवाजे हैं। मंदिर के अंदर-बाहर की दीवारें चांदी की दीवारों पर देवी-देवताओं की मूर्तियां उभरती हैं। मंदिर के दो प्रकोष्ठ हैं। भक्त शिवलिंग के दर्शन पहले द्वार से ही करते हैं। पुजारी भक्तों के प्रसाद, पुष्प, रुद्राक्ष और चढ़ावे को शिवलिंग से स्पर्श कराते हैं। यहां भक्तों को चंदन का टीका लगाने और अमृतपान कराने की प्रथा है।

5-इस मंदिर में भगवान शिव की मूर्ति तक पहुंचने के चार दरवाजे बने हुए हैं। वे चारों दरवाजे चांदी के हैं। पश्चिमी द्वार की ठीक सामने शिव जी के बैल नंदी की विशाल प्रतिमा है जिसका निर्माण पीतल से किया गया है। इस परिसर में वैष्णव और शैव परंपरा के कई मंदिर और प्रतिमाएं है। पशुपतिनाथ मंदिर को शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक, केदारनाथ मंदिर का आधा भाग माना जाता है।पीछे की तरफ बागमती नदी बह रही है। सीढिय़ों पर ही तारकेश्वर महादेव का लिंग स्थापित है। इसके साथ ही अनेक मकरमुखों की मूर्तियां हैं। बागमती के दाएं तट पर ही आर्यघाट है जहां शवों का दाह-संस्कार किया जाता है। आर्यघाट पर त्रिविक्रम की मूर्ति है। यहीं विरुपाक्ष की एक भव्य मूर्ति है।सीढिय़ां चढ़ते ही गणेश मंदिर है। बाईं ओर एक बड़े पेड़ के तने के साथ मुक्ति मंडल है। यहां राख मले जटाधारी साधुगण बैठे धूनी जलाते हैं। आगे बरामदे में संगमरमर की कृष्ण प्रतिमा के दर्शन होते हैं फिर र्कीतमुख भैरव, शीतला देवी और चौंसठ लिंगों का मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि चौंसठ लिंगों के मंदिर की परिक्रमा करने से चौरासी लाख योनियों से मुक्ति मिलती है।

6-सम्पूर्ण नेपाल में शिवजी के चौंसठ विभिन्न मंदिर हैं इसलिए मंदिर का नाम चौंसठ लिंग पड़ा है।सामने उन्मत भैरव का मंदिर है। मूर्ति बहुत डरावनी है। भैरव शिव का ही विनाशकारी रूप है। आगे बाईं ओर चलने पर भजन मंडल है और दाईं ओर यज्ञशाला। यज्ञशाला में प्रवेश द्वार के बाईं तरफ पशुपतिनाथ की प्रार्थना करती मुद्रा में अनेक मूर्तियां हैं। तमाम मूर्तियां धातु और पत्थर से निर्मित नेपाल के प्राचीन मल्ल राजा, रानी, मकै सुब्बा आदि दाताओं की हैं। भजन मंडल के सामने चौक में शनि, शुक्र, राहू, केतु, मंगल, बुध, बृहस्पति, चंद्र और सूर्य नौ ग्रह पत्थर के चौकों पर उकेरे गए हैं, फिर मुख्य द्वार के भीतर से बाईं ओर सत्यनाराण मंदिर है। पशुपतिनाथ को छोटे-बड़े मंदिर समूहों का महा मंदिर कहा जा सकता है। पशुपति लिंग के उत्तरी मुख के सामने प्रांगण में शिव का विशाल त्रिशूल बना है। त्रिशूल पर डमरू और फरसा भी हैं। ऐसे दो त्रिशूल हैं- एक पीतल का और दूसरा लोहे का। उत्तर-पूर्व के कोने में कुछ सीढिय़ां चढ़कर वासु की (सर्प देवता) का मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि पशुपति दर्शन से पहले वासुकी के दर्शन करने चाहिएं।

7-वासुकी मंदिर के पश्चिम की ओर तांडव शिव मंदिर है। द्वार के ठीक सामने दीवार पर पार्वती की प्रतिमा है और बीच में शिवलिंग स्थापित है। इर्द-गिर्द अन्य मूर्तियां भी सुसज्जित हैं। वासुकी मंदिर के समीप कुछ सीढिय़ां उतर कर बागमती की तरफ जाने के रास्ते पर शेषशायी विष्णु की लगभग एक मीटर लम्बी प्रतिमा जमीन पर लेटी हुई बनी है। यह काठमांडू के विख्यात विष्णु मंदिर बूढ़ा नीलकंठ की प्रतिकृति है।पशुपतिनाथ मंदिर के संबंध में यह मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इस स्थान के दर्शन करता है उसे किसी भी जन्म में फिर कभी पशु योनि प्राप्त नहीं होती है।हालांकि शर्त यह है कि पहले शिवलिंग के पहले नंदी के दर्शन ना करे। यदि वो ऐसा करता है तो फिर अलगे जन्म में उसे पशु बनना पड़ता है। मंदिर की महिमा के बारे में आसपास के लोगों से आप काफी कहानियां भी सुन सकते हैं। मंदिर में अगर कोई घंटा-आधा घंटा ध्यान करता है तो वह जीव कई प्रकार की समस्याओं से मुक्त भी हो जाता है।

पशुपतिनाथ मंदिर का इतिहास ;-

03 FACTS;-

1-एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव यहां पर चिंकारे का रूप धारण कर निद्रा में चले बैठे थे। सदियों पहले से काठमांडू अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए बेमिसाल रहा है। ऐसी सुरम्य तपोभूमि के प्रति आकर्षित होकर एक बार आशुतोष शिव भी कैलाश पर्वत छोड़ यहीं आकर रम गए थे और यहां तीन सींगों वाला मृग बनकर इधर-उधर टहलने लगे। जब देवताओं ने उन्हें खोजा और उन्हें वाराणसी वापस लाने का प्रयास किया तो उन्होंने नदी के दूसरे किनारे पर छलांग लगा दी। उधर भगवान शिव को गायब देखकर ब्रह्माजी और विष्णु जी को चिंता हुई और दोनों देवता शिवजी की खोज में निकल पड़े।ब्रह्मा जी ने योग विद्या से पहचान लिया कि तीन सींगों वाला मृग ही शिव हैं। ज्यों ही उन्होंने उछलकर मृग के सींग पकडऩे की कोशिश की, सींग के तीन टुकड़े हो गए। सींग का एक हिस्सा यहीं गिरा था और यह स्थान पशुपतिनाथ के नाम से विख्यात हो गया। देवताओं ने शिव से कैलाश पर्वत लौटने का अनुरोध किया, लेकिन उन्होंने वहीं रहने का फैसला किया। शिवजी की इच्छानुसार भगवान विष्णु ने बागमती के ऊंचे टीले पर शिव को पशु योनि से मुक्ति दिलाकर लिंग के रूप में स्थापित किया।

2-दूसरी कथा एक चरवाहे से जुड़ी है।पशुपतिनाथ का पंचमुखी लिंग है। एक पौराणिक नेपाली कथा के अनुसार नित्यानंद नामक ब्राह्मण की गाय प्रतिदिन एक ऊंचे टीले पर जाकर स्वयं अपना दूध बहा आती थी। स्वामी नित्यानंद को स्वप्र में शिवजी ने दर्शन दिए। फिर जब उन्होंने टीले की खुदाई की तो पंचमुखी लिंग मिला। यह पंचमुखी शिवलिंग लगभग एक मीटर ऊंचा है और काले पत्थर का बना है। सदियों से पंचामृत अभिषेक के नियमित जारी रहने के बावजूद न घिसना इसकी खासियत को सिद्ध करता है।


3-तीसरी कथा भारत के उत्तराखंड राज्य से जुडी एक पौराणिक कथा से है।कुरुक्षेत्र की लड़ाई के बाद अपने ही बंधुओं की हत्या करने की वजह से पांडव बेहद दुखी थे। उन्होंने अपने भाइयों और सगे संबंधियों को मारा था। इसे गोत्र वध कहते हैं। उनको अपनी करनी का पछतावा था और वे खुद को अपराधी महसूस कर रहे थे। खुद को इस दोष से मुक्त कराने के लिए वे शिव की खोज में निकल पड़े।लेकिन शिव नहीं चाहते थे कि जो जघन्य कांड उन्होंने किया है, उससे उनको इतनी आसानी से मुक्ति दे दी जाए। इसलिए पांडवों को अपने पास देखकर उन्होंने एक बैल का रूप धारण कर लिया और वहां से भागने की कोशिश करने लगे। लेकिन पांडवों को उनके भेद का पता चल गया और वे उनका पीछा करके उनको पकड़ने की कोशिश में लग गए। इस भागा दौड़ी के दौरान शिव जमीन में लुप्त हो गए और जब वह पुन: अवतरित हुए, तो उनके शरीर के टुकड़े अलग-अलग जगहों पर बिखर गए।नेपाल के पशुपतिनाथ में उनका मस्तक गिरा था और तभी इस मंदिर को तमाम मंदिरों में सबसे खास माना जाता है। केदारनाथ में बैल का कूबड़ गिरा था। बैल के आगे की दो टांगें तुंगनाथ में गिरीं। यह जगह केदार के रास्ते में पड़ता है। बैल का नाभि वाला हिस्सा हिमालय के भारतीय इलाके में गिरा। इस जगह को मध्य-महेश्वर कहा जाता है। यह एक बहुत ही शक्तिशाली मणिपूरक लिंग है। बैल के सींग जहां गिरे, उस जगह को कल्पनाथ कहते हैं। इस तरह उनके शरीर के अलग-अलग टुकड़े अलग-अलग जगहों पर मिले ।जिस स्थान पर भीम ने उनकी पुंछ पकड़ ली थी।उसे वर्तमान में केदारनाथ धाम के नाम से जाना जाता है। एवं जिस स्थान पर उनका मुख धरती से बाहर आया उसे पशुपतिनाथ कहा जाता है। पुराणों में पंचकेदार की कथा नाम से इस कथा का उल्लेख मिलता है।

.....SHIVOHAM....

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