पितरों के मोक्ष के लिए ब्रह्मकपाल तीर्थ....
03 FACTS;-
1-सनातन धर्म में श्राद्धपक्ष का बहुत महत्व है। पितरों के लिए समर्पित ये पक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन दिनों पितृ,पितृलोक से मृत्यु लोक में अपने वंशजों से सूक्ष्मरूप में मिलने आते हैं और हम उनके सम्मान में अपनी सामर्थ्यनुसार उनका स्वागत-सत्कार करते हैं। इसके परिणामस्वरूप सभी पितृ अपनी पसंद का भोजन व सम्मान पाकर प्रसन्न व संतुष्ट होकर परिवार के सदस्यों को स्वास्थ्य, दीर्घायु, वंशवृद्धि व अनेक प्रकार के आशीर्वाद देकर पितृलोक लौट जाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि पितृ दोष के कारण व्यक्ति के जीवन में सदैव परेशानी, संकट और जीवन में संघर्ष बने रहते हैं। इसलिए इस दोष का निवारण बहुत आवश्यक बताया गया है।कहा जाता है कि भगवान राम और देवी सीता ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गया में ही पिंडदान किया था।श्राद्ध के लिए त्र्यम्बकेश्वर, हरिद्वार, गंगासागर, जगन्नाथपुरी, कुरुक्षेत्र, चित्रकूट,वाराणसी {पिशाचमोचन कुंड }पुष्कर, बद्रीनाथ सहित 60 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है।
2-बदरीनाथ के ब्रह्मकपाल में पिंडदान का अपना महात्म्य है।कपाल मोचन तीर्थयानी ब्रह्मकपाल से जुड़ी जो पौराणिक मान्यता है, उसके अनुसार भगवान शिव ने सृष्टि रचयता भगवान ब्रह्वा का पांचवां सिर काटा था और वो ब्रह्मकपाल में आकर गिरा था। ब्रह्मा का यह सिर शिव के त्रिशूल पर चिपक गया और इस तरह से भगवान शिव पर ब्रह्म हत्या का दोष लग गया था। यहां पर ब्रह्मा जी के एक सिर के रूप में एक शिला मौजूद है और उस शिला पर ही तर्पण पिंडदान और अन्य कर्मकांड किए जाते हैं। यहां पर शिव के त्रिशूल पर चिपका ब्रह्मा का सिर छूटकर एक शिला के रूप में परिवर्तित हुआ था। दुनिया भर के भ्रमण के बाद भी त्रिशूल से ब्रह्मा का सिर अलग नहीं हुआ। अंत में उन्हें बद्रिकाश्रम के ब्रह्मकपाल तीर्थ में उन्हें इस पाप से मुक्ति मिली। तभी से इसे कपाल मोचन तीर्थ कहते हैं। बदरीनाथ के ब्रह्मकपाल तीर्थ में हजारों श्रद्धालु पिंडदान के लिए पहुंचते हैं। पितरों की कामनाएं होती हैं कि उनके वंश में कोई न कोई संतान अवश्य जन्म ले। जो बदरीनाथ जाकर उनका पिंडदान करें और वे मोह रूपी इस संसार से हमेशा के लिए मुक्त होकर बैकुंठ धाम को जाएं। मान्यता है कि विश्व में एकमात्र श्री बदरीनाथ धाम ही ऐसा है जहांब्रह्मकपाल तीर्थ में पिंडदान के बाद पितृ मोक्ष को प्राप्त हो जाते हैं। इसके बाद कहीं भी पिंडदान करने की आवश्यकता नहीं है।ऐसा माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा, ब्रह्मा कपाल के रूप में निवास करते हैं जिसके कारण दिवंगत आत्माओं को उस समय जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है जब उनके परिवार के लोग उनका अंतिम संस्कार या श्राद्ध कर्म करते हैं।
3-स्कंद पुराण के अनुसार बद्रीनाथ क्षेत्र में श्राद्ध करना गया क्षेत्र में करने से आठ गुना बेहतर है। बद्रीनाथ के ब्रह्म कपाल घाट पर श्रद्धालु अपने पूर्वजों के लिए श्राद्ध करते हैं।यह ब्रह्म कपाल घाट पवित्र अलकनंदा नदी के तट पर , भगवान बद्रीनाथ के बाईं ओर लगभग 200 से 300 मीटर की दूरी पर , यानी बद्रीनाथ मंदिर के उत्तर में स्थित है।इस स्थान तक पैदल आसानी से पहुंचा जा सकता है , और भक्त हमेशा अपने पूर्वजों के लिए श्राद्ध करने के लिए यहां आ सकते हैं।यहां विधिपूर्वक पिंडदान करने से पितरों को नरक लोक से मोक्ष मिल जाता है।जिन पितरों को गया में मुक्ति नहीं मिलती या अन्य किसी और स्थान पर मुक्ति नहीं मिलती उनका यहां पर श्राद्ध करने से मुक्ति मिल जाती है। यह स्थान बद्रीनाथ धाम के पास अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है।श्रीमदभागवत महापुराण में उल्लेख है कि महाभारत के युद्ध अपने ही बंधु-बांधवों की हत्या करने पर पांडवों को गोत्र हत्या का पाप लगा था। गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए स्वर्गारोहिणी यात्रा पर जाते हुए पांडवों ने ब्रह्मकपाल में ही अपने पितरों को तर्पण किया था। अलकनंदा नदी के तट पर ब्रह्माजी के सिर के आकार की शिला आज भी विद्यमान है।पुराणों के अनुसार यह स्थान महान तपस्वियों और पवित्र आत्माओं का है।यहां सूक्ष्म रूप में महान आत्माएं निवासरत हैं।ब्रह्म कपाल में किया जाने वाला पिंडदान आखिरी माना जाता है। इसके बाद उक्त पूर्वज के निमित्त किसी भी तरह का पिंडदान या श्राद्ध कर्म नहीं किया जाता है।स्कंद पुराण के अनुसार पिंडदान के लिए गया, पुष्कर, हरिद्वार, प्रयागराज व काशी भी श्रेयस्कर हैं, लेकिन भू-वैकुंठ बदरीनाथ धाम स्थित ब्रह्मकपाल में किया गया पिंडदान इन सबसे आठ गुणा ज्यादा फलदायी है।ब्रह्मकपाल में पिंडदान करने के बाद फिर कहीं पिंडदान की जरूरत नहीं रह जाती।
....SHIVOHAM....
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