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पितृदोष....नारायण बलि पूजा क्या है ?


05 FACTS ;-

1-जिस परिवार के किसी सदस्य या पूर्वज का ठीक प्रकार से अंतिम संस्कार, पिंडदान और तर्पण नहीं हुआ हो उनकी आगामी पीढि़यों में पितृदोष उत्पन्न होता है। ऐसे व्यक्तियों का संपूर्ण जीवन कष्टमय रहता है, जब तक कि पितरों के निमित्त नारायणबलि विधान न किया जाए।यह दोष पीढ़ी दर पीढ़ी कष्ट पहुंचाता रहता है, जब तक कि इसका विधि-विधानपूर्वक निवारण न किया जाए। आने वाली पीढ़ीयों को भी कष्ट देता है। इस दोष के निवारण के लिए कुछ विशेष दिन और समय तय हैं जिनमें इसका पूर्ण निवारण होता है। श्राद्ध पक्ष यही अवसर है जब पितृदोष से मुक्ति पाई जा सकती है। इस दोष के निवारण के लिए शास्त्रों में नारायणबलि का विधान बताया गया है। इसी तरह नागबलि भी होती है।नारायण बलि ऐसा विधान है, जिसमें लापता व्यक्ति को मृत मानकर उसका उसी ढंग से क्रियाकर्म किया जाता है, जैसे किसी की मौत होने पर। इस प्रक्रिया में कुश घास से प्रतीकात्मक शव बनाते हैं और उसका वास्तविक शव की तरह ही दाह-संस्कार किया जाता है। इसी दिन से आगे की क्रियाएं शुरू होती हैं, मसलन बाल उतारना, तेरहवीं, ब्रह्मभोज वगैरह।

2-नारायणबलि और नागबलि नारायणबलि और नागबलि दोनों विधि मनुष्य की अपूर्ण इच्छाओं और अपूर्ण कामनाओं की पूर्ति के लिए की जाती है। इसलिए दोनों को काम्य कहा जाता है। नारायणबलि और नागबलि दो अलग-अलग विधियां हैं। नारायणबलि का मुख्य उद्देश्य पितृदोष निवारण करना है और नागबलि का उद्देश्य सर्प या नाग की हत्या के दोष का निवारण करना है। इनमें से कोई भी एक विधि करने से उद्देश्य पूरा नहीं होता इसलिए दोनों को एक साथ ही संपन्न करना पड़ता है।केदारघाटी की आपदा में लापता हुए कई लोगों के परिजन एक माह की अवधि पूर्ण होने पर इसी विधान से अपनों का क्रियाकर्म इसी तरह किया।शास्त्रों में उल्लेख है कि ज्ञात-अज्ञात अवस्था में मृत्यु का संदेश जब तक प्राप्त नहीं होता, तब तक लापता व्यक्ति को मृत नहीं माना जा सकता। इसके लिए एक माह, तीन माह अथवा वर्षपर्यत तक इंतजार किया जाता है। इस अवधि में व्यक्ति के वापस न लौटने पर नारायण बलि के माध्यम से प्रेतत्व शांति का विधान है।

3-इन कारणों से की जाती है नारायणबलि पूजा ...

03 POINTS;-

1-जिस परिवार के किसी सदस्य या पूर्वज का ठीक प्रकार से अंतिम संस्कार, पिंडदान और तर्पण नहीं हुआ हो उनकी आगामी पीढि़यों में पितृदोष उत्पन्न होता है। ऐसे व्यक्तियों का संपूर्ण जीवन कष्टमय रहता है, जब तक कि पितरों के निमित्त नारायणबलि विधान न किया जाए।

2- प्रेतयोनी से होने वाली पीड़ा दूर करने के लिए नारायणबलि की जाती है।

3-परिवार के किसी सदस्य की आकस्मिक मृत्यु हुई हो। आत्महत्या, पानी में डूबने से, आग में जलने से, दुर्घटना में मृत्यु होने से ऐसा दोष उत्पन्न होता है।

4-क्यों की जाती है यह पूजा?

03 POINTS;-

1-शास्त्रों में पितृदोष निवारण के लिए नारायणबलि-नागबलि कर्म करने का विधान है। यह कर्म किस प्रकार और कौन कर सकता है इसकी पूर्ण जानकारी होना भी जरूरी है। यह कर्म प्रत्येक वह व्यक्ति कर सकता है जो अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता है। जिन जातकों के माता-पिता जीवित हैं वे भी यह विधान कर सकते हैं।

2-संतान प्राप्ति, वंश वृद्धि, कर्ज मुक्ति, कार्यों में आ रही बाधाओं के निवारण के लिए यह कर्म पत्नी सहित करना चाहिए। यदि पत्नी जीवित न हो तो कुल के उद्धार के लिए पत्नी के बिना भी यह कर्म किया जा सकता है।

3-यदि पत्नी गर्भवती हो तो गर्भ धारण से पांचवें महीने तक यह कर्म किया जा सकता है। घर में कोई भी मांगलिक कार्य हो तो ये कर्म एक साल तक नहीं किए जा सकते हैं। माता-पिता की मृत्यु होने पर भी एक साल तक यह कर्म करना निषिद्ध माना गया है।

4-कब नहीं की जा सकती है नारायणबलि-नागबलि?

02 POINTS;-

1-नारायणबलि कर्म पौष तथा माघा महीने में तथा गुरु, शुक्र के अस्त होने पर नहीं किए जाने चाहिए। लेकिन प्रमुख ग्रंथ निर्णण सिंधु के मतानुसार इस कर्म के लिए केवल नक्षत्रों के गुण व दोष देखना ही उचित है। नारायणबलि कर्म के लिए धनिष्ठा पंचक और त्रिपाद नक्षत्र को निषिद्ध माना गया है।

2-धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरण, शततारका, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद एवं रेवती, इन साढ़े चार नक्षत्रों को धनिष्ठा पंचक कहा जाता है। कृतिका, पुनर्वसु, विशाखा, उत्तराषाढ़ा और उत्तराभाद्रपद ये छह नक्षत्र त्रिपाद नक्षत्र माने गए हैं। इनके अलावा सभी समय यह कर्म किया जा सकता है।पितृपक्ष सर्वाधिक श्रेष्ठ समय नारायणबलि- नागबलि के लिए पितृपक्ष सर्वाधिक श्रेष्ठ समय बताया गया है। इसमें किसी योग्य पुरोहित से समय निकलवाकर यह कर्म करवाना चाहिए।

5-नारायण बलि पूजा कहाँ करे?

03 POINTS;-

1-पूजा की तिथियां नक्षत्र के आधार पर निकाली जाती हैं। प्रति माह लगभग 2-3 मुहूर्त होते हैं। पितृ पक्ष भी इस पूजा को करने का एक अच्छा समय है।पुत्रदा एकादशी के दौरान यह संस्कार करना लाभकारी होता है। यह किसी नदी के किनारे या किसी अन्य पवित्र स्थान पर होता है। यह आश्लेषा नक्षत्र के दिनों में तीन दिवसीय अनुष्ठान है। भक्त यह पूजा अमावस्या से सातवें दिन भी कर सकते हैं।

2-नारायण नागबली एक तीन दिवसीय हिंदू अनुष्ठान है जो नासिक जिले ..महाराष्ट्र, भारत के त्र्यंबकेश्वर में किया जाता है। नारायण नागबलि यह एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जो की त्र्यंबकेश्वर मंदिर क्षेत्र में मंदिर के पूर्व द्वार पर स्थित अहिल्या गोदावरी संगम और सती महा-स्मशान में की जाती है।त्र्यंबकेश्वर में लगभग तीन सौ ब्राह्मण परिवार अनुष्ठान आयोजित करने के लिए अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

3-ऐसा माना जाता है कि प्रयागराज में नारायण बलि पूजा पैतृक श्राप या पितृ दोष को दूर करने में सहायक होती है । जब अकाल मृत्यु हो, जैसे बीमारी, आत्महत्या, उपवास, जानवर, श्राप, हत्या या डूबने से मृत्यु हो तो नारायण बलि अवश्य करनी चाहिए।प्रयागराज में नारायण बलि पूजा उन लोगों के लिए भी की जाती है जिनका अंतिम संस्कार, श्राद्ध कर्म नहीं हुआ है।

.... SHIVOHAM.....

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