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पुणे के इन अष्टविनायक का क्या रहस्य है?

क्‍या है स्‍वयंभू अष्टविनायक का मतलब ?-

02 FACTS;-

1-अष्टविनायक से मतलब है आठ गणपति। पुणे के विभिन्‍न इलाकों में श्री गणेश के आठ मंदिर हैं, इन्‍हें अष्‍टविनायक कहा जाता है। इन मंदिरों को स्‍वयंभू मंदिर भी कहा जाता है। स्‍वयंभू का अर्थ है कि यहां भगवान स्‍वयं प्रकट हुए थे किसी ने उनकी प्रतिमा बना कर स्‍थापित नहीं की थी। इन मंदिरों का जिक्र विभिन्‍न पुराणों जैसे गणेश और मुद्गल पुराण में भी किया गया है। ये मंदिर अत्‍यंत प्राचीन हैं और इनका ऐतिहासिक महत्‍व भी है।आठ संख्या, आठ प्रकार की प्रकृतियों से जुड़ी हुई हैं। यह अष्ट प्रकृतियां हैं - पृथ्वी, वायु, जल, आकाश, अग्नि, चित्त, बुद्धि और अहम्। इन मंदिरों की दर्शन यात्रा को अष्‍टविनायक तीर्थ यात्रा भी कहा जाता है। ये मंदिर 20 से 110 कि.मी के क्षेत्र में स्थित है।इन आठ मन्दिरों में से 6 भारत के पुणे शहर में और 2 रायगढ़ के आस-पास स्थित है। माना जाता है कि इन आठ अलग-अलग मंदिरों में एकता, समृद्धि, शिक्षा और बाधाओं को दूर करने वाले देवता गणेश की आठ अलग-अलग मूर्तियाँ हैं।

2-इन मंदिरों में से प्रत्येक की अपनी एक विशेष कथा और इतिहास है, जो एक दूसरे से भिन्न है और इसीलिए प्रत्येक मंदिर की मूर्तियों में भी भिन्नता दिखाई पड़ती है। मूर्तियों की यह भिन्नता उनके रूप और गणेश जी की सूंड में स्पष्ट देखी जा सकती है हालांकि महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों में गणेश जी के आठ अन्य मंदिर भी प्रसिद्ध हैं परन्तु लोगों की आस्था विशेष रूप से पुणे के आस-पास स्थित मन्दिरों से ही है। यात्रा की प्रथा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि अष्टविनायक यात्रा को पूरा करने के लिए, सभी आठ मंदिरों के दर्शन के बाद पहले मंदिर का दर्शन दोबारा करना पड़ता है।पुराणों व धर्म ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि भगवान ब्रहमदेव ने भविष्यवाणी की थी कि हर युग में श्री गणेश विभिन्न रूप में अवतरित होंगें ।सतयुग में विनायक, त्रेतायुग में मयूरेश्वर, द्वापरयुग में गजानन एवं धूम्रकेतु नाम से कलयुग के अवतार लेंगे ।इन आठ गणपति धामों की यात्रा अष्टविनायक तीर्थ यात्रा के नाम से जानी जाती है। इन पवित्र मूर्तियों के प्राप्त होने के क्रम के अनुसार ही अष्टविनायक यात्रा की जाती है।ये हैं वो आठ मंदिर....

1-श्री मयूरेश्वर मंदिर (मोरगांव, पुणे);-

यह मंदिर पुणे से 80 किलोमीटर दूर स्थित है। मोरेगांव गणेशजी की पूजा का महत्वपूर्ण केंद्र है। मयूरेश्वर मंदिर के चारों कोनों में मीनारें हैं और लंबे पत्थरों की दीवारें हैं। यहां चार द्वार हैं। ये चारों दरवाज़े चारों युग, सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग के प्रतीक हैं।

2-सिद्धिविनायक मंदिर (करजत तहसील, अहमदनगर);-

अष्ट विनायक में दूसरे गणेश हैं सिद्धिविनायक। यह मंदिर पुणे से करीब 200 किमी दूरी पर स्थित है। यह क्षेत्र सिद्धटेक गावं के अंतर्गत आता है। यह पुणे के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। मंदिर करीब 200 साल पुराना है। सिद्धटेक में सिद्धिविनायक मंदिर बहुत ही सिद्ध स्थान है। ऐसा माना जाता है यहां भगवान विष्णु ने सिद्धियां हासिल की थी। सिद्धिविनायक मंदिर एक पहाड़ की चोटी पर बना हुआ है। जिसका मुख्य द्वार उत्तर दिशा की ओर है। मंदिर की परिक्रमा के लिए पहाड़ी की यात्रा करनी होती है। यहां गणेश जी की मूर्ति 3 फीट ऊंची और ढाई फीट चैड़ी है।

3 -श्री बल्लालेश्वर मंदिर (पाली गाँव, रायगढ़);-

अष्टविनायक में तीसरा मंदिर है श्री बल्लालेश्वर मंदिर। यह मंदिर मुंबई-पुणे हाइवे पर पाली से टोयन में और गोवा राजमार्ग पर नागोथाने से पहले 11 किलोमीटर दूर स्थित है। इस मंदिर का नाम गणेश जी के भक्त बल्लाल के नाम पर पड़ा है। प्राचीन काल में बल्लाल नाम का एक लड़का था, वह गणेश जी का परमभक्त था। एक दिन उसने पाली गांव में विशेष पूजा का आयोजन किया। पूजन कई दिनों तक चल रहा था, पूजा में शामिल कई बच्चे घर लौटकर नहीं गए और वहीं बैठे रहे। इस कारण उन बच्चों के माता-पिता ने बल्लाल को पीटा और गणेश जी की प्रतिमा के साथ उसे भी जंगल में फेंक दिया। गंभीर हालत में बल्लाल गणेश जी के मंत्रों का जप कर रहा था। इस भक्ति से प्रसन्न होकर गणेश जी ने उसे दर्शन दिए। तब बल्लाल ने गणेश जी से आग्रह किया अब वे इसी स्थान पर निवास करें। तब से गणपति यहां निवास करने लगे।

4-श्री वरदविनायक (कोल्हापुर, रायगढ़);-

अष्ट विनायक में चौथे गणेश हैं श्री वरदविनायक। यह मंदिर महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के कोल्हापुर क्षेत्र में स्थित है। यहां एक सुन्दर पर्वतीय गांव है महाड़। इसी गांव में श्री वरदविनायक मंदिर। यहां प्रचलित मान्यता के अनुसार वरदविनायक भक्तों की सभी कामनों को पूरा होने का वरदान प्रदान करते हैं। इस मंदिर में नंददीप नाम का एक दीपक है जो कई वर्षों से प्रज्जवलित है।

5-चिंतामणि गणपति (थेऊर गांव, पुणे);-

अष्टविनायक में पांचवें गणेश हैं चिंतामणि गणपति। यह मंदिर पुणे जिले के हवेली क्षेत्र में स्थित है। मंदिर के पास ही तीन नदियों का संगम है। ये तीन नदियां हैं भीम, मुला और मुथा। ऐसी मान्यता है कि स्वयं भगवान ब्रहमा ने अपने विचलित मन को वश में करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी।

6-श्री गिरजात्मज गणपति (लेण्याद्री गांव, पुणे);-

अष्टविनायक में अगले गणपति हैं श्री गिरजात्मज। यह मंदिर पुणे-नासिक राजमार्ग पर पुणे से करीब 90 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। क्षेत्र के नारायणगांव से इस मंदिर की दूरी 12 किलोमीटर है।गिरजात्मज का अर्थ है गिरिजा यानि माता पार्वती के पुत्र गणेश। यह मंदिर एक पहाड़ पर बौद्ध गुफाओं के स्थान पर बनाया गया है। यहां लेनयादरी पहाड़ पर 18 बौद्ध गुफाएं हैं और इनमें से 8वीं गुफा में गिरजात्मज विनायक मंदिर है। इन गुफाओं को गणेश गुफा भी कहा जाता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 300 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। यह पूरा मंदिर ही एक बड़े पत्थर को काटकर बनाया गया है।

7-विघ्नेश्वर गणपति मंदिर (ओझर) ;-

अष्टविनायक में सातवें गणेश हैं विघ्नेश्वर गणपति। यह मंदिर पुणे के ओझर जिले में जूनर क्षेत्र में स्थित है। यह पुणे-नासिक रोड पर नारायण गावं से जूनर या ओजर होकर करीब 85 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार विघनासुर नामक एक असुर जो संतों को प्रताड़ित कर रहा था। भगवान गणेश यहीं उसका वध कर सभी को उसके कष्टों से मुक्ति दिलवाई थी। जिसके बाद से ये मंदिर विघ्नेश्वर, विघ्नहर्ता और विघ्नहार के रूप में जाना जाने लगा है।

8-महागणपति मंदिर (राजणगांव);-

अष्टविनायक मंदिर के आठवें गणेश जी हैं महागणपति। मंदिर पुणे के रांजणगांव में स्थित है। यह पुणे-अहमदनगर राजमार्ग पर 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर का इतिहास 9-10वीं सदी के बीच माना जाता है। मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व दिशा की ओर है जो कि बहुत विशाल और सुन्दर है। भगवान गणपति की मूर्ति को माहोतक नाम से भी जाना जाता है। प्रचलित मान्यता के अनुसार मंदिर की मूल मूर्ति तहखाने की छिपी हुई है। कहा जाता है कि पुराने समय में जब विदेशियों ने यहां आक्रमण किया था तो उनसे मूर्ति बचाने के लिए उसे तहखाने में छिपा दिया गया था।

....SHIVOHAM....


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