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पूजा करते समय सिर को क्यों ढकना चाहिए ?



03 FACTS;-

1-हिंदू धर्म में पूजा पाठ करते समय सिर ढकने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। महिलाएं ही नहीं पुरुष भी पूजा के समय रुमाल से अपने सिर को ढकते हैं।हिंदू सहित सिख और मुस्लिम धर्म में भी धार्मिक कार्यों के दौरान सिर ढकना जरूरी होता है। शास्त्रों के अनुसार, मनुष्य़ का मन चंचल होता है। ऐसे में सिर ढकने से उसका पूरा फोकस पूजा में हो जाता है और ध्यान नहीं भटकता है। शास्त्रों के अनुसार, हर किसी के आसपास नकारात्मक ऊर्जा सबसे अधिक होती है। जो व्यक्ति के शरीर में बालों के द्वारा प्रवेश कर जाती है।इसलिए पूजा के समय बालों को ढक लिया जाता है ताकि व्यक्ति के मन में सिर्फ सकारात्मक विचार आए।माना जाता है कि आकाश से कई सारी तरंगे निकलती है। ऐसे में अगर पूजा करते समय सिर खुला होगा तो आकाशीय विद्युत तरंगे सीधे व्यक्ति के भीतर प्रवेश कर जाती हैं, जिससे व्यक्ति को कई शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।सिर ढकने का एक कारण यह भी बताया जाता है कि पूजा में काले रंग का प्रयोग वर्जित माना गया है। हमारे बाल भी काले होते हैं, इसलिए पूजा के दौरान नकारात्मकता से बचने से लिए सिर ढकना जरूरी होता है।

2- हमारे सिर पर ब्रह्मरंध्र एवं ब्रह्मचक्र यह दो मुख्य अंग होते हैं, जिसे कपड़े से ढककर हम पूजा-पाठ इत्यादि करते हैं। ब्रह्मचक्र से ऊर्जा ग्रहण करके ब्रह्मरंध्र से ऊर्जा को पुनः ऊपर की और ले जाया जाता है। यह चक्र बहुत ही संवेदनशील होते हैं।हमारे शीश के मूल स्थान में तीनों इड़ा, पिंगला एवम सुष्मना नाड़ियों का संगम होता है। इसे शरीर का प्रयाग भी कह सकते हैं ।जैसे उदर के मध्य नाभि शरीर का नाड़ी तन्त्र का मूल है, ऐसे ही ब्रह्मचक्र हमारे शरीर की सूक्ष्म ऊर्जाओं की नाड़ियों का मूल है। इसको अधिपति मर्म भी कहा जाता है। जिस प्रकार झरने की जलधारा से जल भरने के लिए पात्र को उस धारा के नीचे स्थिर रखके जल भरते हैं। ऐसे ही ब्रह्माण्ड से निरंतर बहती हुई ऊर्जा की धारा के नीचे हमारा ब्रह्मरन्ध्र रूपी घटमुख स्थिर स्थित हो जाता है।हम जब शांत स्थिर होकर उपासना या पूजा के लिए बैठ जाते हैं, तो हमारा शरीर एक कुम्भ की भांति स्थिर पात्र बन जाता है । हमारे सर पर बना हुआ ब्रह्मरंध्र उस कुम्भ के मुख समान कार्य करता है ।कुम्भ पर वस्त्र बांध देने से जल धारा तुरंत कुम्भ को नहीं भरेगी और हानि नहीं कर सकेगी बल्कि वह जल धीरे-धीरे छनता हुआ , उस पात्र में जायेगा ।ऐसे ही सिर ढकने से भी ऊर्जा का वेग नियंत्रित हो जाता है।

3-एक अनुभवी साधक पक्के घड़े की तरह है , उसका सर ढका हो या न हो कोई हानि नहीं ,किन्तु सामान्य जन कच्चे घड़े की तरह है , जिस पर ब्रह्मांडीय ऊर्जा रूप झरने का जब सीधा वेग पड़ेगा तो वही कुम्भ टूट भी सकता है और तुरंत भरकर प्रक्षालित होकर बिखर सकता है।क्योंकि यह ब्रह्मरंध्र ब्रह्मांड से जुड़ा हुआ है l वैसे तो हमारा पूरा शरीर ही ब्रह्मांड से जुड़ा हुआ है।जब हम पूजा उपासना में बैठते हैं तो हमारे शरीर एक स्थान पर स्थिर अचल हो जाते हैं। दसों दिशाओं की ओर से शरीर ढका है किन्तु शीश खुला हुआ है ,उसे भी ढकना आवश्यक है lब्रह्माण्ड ऊपर है और हम पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण से प्रभावित है। कोई भी तत्व जब ऊपर से नीचे की और आता है तो वह बहुत ही वेगवान हो जाता है। ब्रह्मांडीय ऊर्जा तीव्रगामी है। हमारे पूरे शरीर में ब्रह्मरंध ही एकमात्र ऐसा अंग है जो उस तीव्रगामी शक्ति को ग्रहण करने का द्वार है lब्रह्माण्ड की ऊर्जा को शक्तिशाली ,तीव्रगामी ऊर्जा माना गया है। इसी ऊर्जा के बल पर , लोकों के समस्त तत्व अपने अपने स्थान पर नियमित गति में चल रहे हैं। इस संसार में सात्विक और तामसिक दोनों प्रकार की ऊर्जाएं सदैव ही रहती हैं।पूजा ध्यान के समय आपके पास बैठे व्यक्ति की नकारात्मक ऊर्जा आप पर प्रभाव डाल सकती है ,इसके विपरीत आपकी ऊर्जा अन्यों को कुप्रभाव दे सकती है। इन सबसे बचने के लिए इस ब्रह्मरंध्र को सूती वस्त्र से ढकना चाहिए।

NOTE;-

जब सामान्य व्यक्ति पूजा इत्यादि कर रहा है, पूजा के समय यदि ध्यान लग जाता है और उसके शरीर में खुले हुए ब्रह्मरंध्र द्वारा ऊर्जा जागृत होने लग जाती हैं।उस ऊर्जा के अधिक प्रभाव के कारण - सर दर्द - चक्कर आना, अथवा अन्य किसी नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव भी आ सकता है।साधक सर ढकें अथवा नहीं ढकें कोई प्रभाव नहीं ,क्योकि उन्हें गुरु द्वारा या प्राकृतिक रूप से उस विषय में ज्ञान होता है।वह इस ब्रह्मरंध्र की शक्ति के प्रभाव से परिचित होते हैं इसलिए वह अपने ब्रह्मरंध्र पर शिखा तथा ब्रह्मचक्र पर जटा रखते हैं ,ताकि वह और भी भली प्रकार से उस ऊर्जा को ग्रहण कर पाए उनमें वह क्षमता होती है। लेकिन प्रति व्यक्ति में वह क्षमता नहीं है इसलिए जो है अधिकांश व्यक्तियों को देखते हुए यह नियम बना दिया गया तो इसमें हमारे ही शरीर की रक्षा है ताकि एक संतुलन बना रहेl

....SHIVOHAM....



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