भगवान कृष्ण की चालीसा/ कृष्णाष्टकम् /श्री राधा कृष्ण अष्टकम...
ऊं श्रीं नमः श्रीकृष्णाय परिपूर्णतमाय स्वाहा।
श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है। पुराणों के अनुसार इनका जन्म द्वापर युग में माना गया है। भगवान कृष्ण की चालीसा का पाठ करने से सभी को शुभ फलों की प्राप्ति होती है। जो भी व्यक्ति भगवान कृष्ण की पूजा-अर्चना साफ़ हृदय से करता है उसका चरित्र निर्मल हो जाता है। ऐसा माना जाता है कि श्रीकृष्ण चालीसा का पाठ करने से भगवान कृष्ण उस मनुष्य के चित्त में विराजमान होकर उसको सारे पापों से मुक्त कर देते हैं। प्रतिदिन इस चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति की वाणी में मधुरता आती है तथा उसे असीम शांति का अनुभव होता है साथ ही साथ वह हर प्रकार के सुखों को भोगता है।कृष्ण चालीसा का पाठ आपको सुबह के समय करना सबसे अच्छा होता है क्योंकि उस समय मन शांत होता है । पाठ शुरु करने से पहले नित्य क्रिया से निवृत होकर, स्नान कर लेवें । उसके बाद एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर वहां आपको भगवान कृष्ण की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करनी चाहिये आप चाहें तो अपने घर के मंदिर के सामने बैठकर भी यह पाठ कर सकते हैं ।इसके बाद भगवान कृष्ण की प्रतिमा या तस्वीर के समक्ष धूप-दीप-अगरबत्ती जलाएं तथा संकल्प लें कि आप पूरी श्रद्धा के साथ आप भगवान कृष्ण की पूजा करेंगे। अब गंगाजल और पंचामृत से भगवान कृष्ण को स्नान कराएं तथा कृष्ण चालीसा का पाठ करना चाहिये।चालीसा के पाठ के बाद भगवान कृष्ण को माखन तथा मिश्री का भोग लगाएं और प्रसाद को घर के सभी सदस्यों में बांटें।
भगवान कृष्ण की चालीसा ;-
॥ दोहा ॥
बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम।
अरुणअधरजनु बिम्बफल, नयनकमलअभिराम
पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज।
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज॥
॥ चौपाई॥
जय यदुनंदन जय जगवंदन।
जय वसुदेव देवकी नन्दन॥
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे।
जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥
जय नट-नागर, नाग नथइया।
कृष्ण कन्हइया धेनु चरइया॥
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो।
आओ दीनन कष्ट निवारो॥
वंशी मधुर अधर धरि टेरौ।
होवे पूर्ण विनय यह मेरौ॥
आओ हरि पुनि माखन चाखो।
आज लाज भारत की राखो॥
गोल कपोल, चिबुक अरुणारे।
मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥
राजित राजिव नयन विशाला।
मोर मुकुट वैजन्तीमाला॥
कुंडल श्रवण, पीत पट आछे।
कटि किंकिणी काछनी काछे॥
नील जलज सुन्दर तनु सोहे।
छबि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥
मस्तक तिलक, अलक घुंघराले।
आओ कृष्ण बांसुरी वाले॥
करि पय पान, पूतनहि तार्यो।
अका बका कागासुर मार्यो॥
मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला।
भै शीतल लखतहिं नंदलाला॥
सुरपति जब ब्रज चढ़्यो रिसाई।
मूसर धार वारि वर्षाई॥
लगत लगत व्रज चहन बहायो।
गोवर्धन नख धारि बचायो॥
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई।
मुख मंह चौदह भुवन दिखाई॥
दुष्ट कंस अति उधम मचायो ।
कोटि कमल जब फूल मंगायो॥
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें।
चरण चिह्न दै निर्भय कीन्हें॥
करि गोपिन संग रास विलासा।
सबकी पूरण करी अभिलाषा॥
केतिक महा असुर संहार्यो।
कंसहि केस पकड़ि दै मार्यो॥
मात-पिता की बन्दि छुड़ाई।
उग्रसेन कहं राज दिलाई॥
महि से मृतक छहों सुत लायो।
मातु देवकी शोक मिटायो॥
भौमासुर मुर दैत्य संहारी।
लाये षट दश सहसकुमारी॥
दै भीमहिं तृण चीर सहारा।
जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥
असुर बकासुर आदिक मार्यो।
भक्तन के तब कष्ट निवार्यो॥
दीन सुदामा के दुख टार्यो।
तंदुल तीन मूंठ मुख डार्यो॥
प्रेम के साग विदुर घर मांगे।
दुर्योधन के मेवा त्यागे॥
लखी प्रेम की महिमा भारी।
ऐसे श्याम दीन हितकारी॥
भारत के पारथ रथ हांके।
लिये चक्र कर नहिं बल थाके॥
निज गीता के ज्ञान सुनाए।
भक्तन हृदय सुधा वर्षाए॥
मीरा थी ऐसी मतवाली।
विष पी गई बजाकर ताली॥
राना भेजा सांप पिटारी।
शालीग्राम बने बनवारी॥
निज माया तुम विधिहिं दिखायो।
उर ते संशय सकल मिटायो॥
तब शत निन्दा करि तत्काला।
जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥
जबहिं द्रौपदी टेर लगाई।
दीनानाथ लाज अब जाई॥
तुरतहि वसन बने नंदलाला।
बढ़े चीर भै अरि मुंह काला॥
अस अनाथ के नाथ कन्हइया।
डूबत भंवर बचावइ नइया॥
‘सुन्दरदास’ आस उर धारी।
दया दृष्टि कीजै बनवारी॥
नाथ सकल मम कुमति निवारो।
क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥
खोलो पट अब दर्शन दीजै।
बोलो कृष्ण कन्हइया की जै॥
॥ दोहा ॥
यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करै उर धारि।
अष्ट सिद्धि नवनिधि फल, लहै पदारथ चारि॥
श्री कृष्णाष्टकम् ;-
भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए लोग उनकी पूजा करते है उन्हे माखन खिलाते है। इन्हे श्रीकृष्ण अष्टकम् का पाठ करके भी प्रसन्न किया जा सकता है। रोज श्रीकृष्ण अष्टकम पढ़ने पर विशेष पुण्य लाभ मिलता है। भगवान के इस पाठ को करने वाले मनुष्य का जीवन में कभी कोई कार्य नहीं रुकता और उसे हमेशा विजय की प्राप्ति होती है। नियमित रूप से यदि कोई व्यक्ति श्रीकृष्ण अष्टक का पाठ करता है तो भगवान उस पर अपनी कृपा दृष्टी बनाएं रखते है और वह हमेशा विजयी रहता है।कृष्ण अष्टकम का पाठ उन सभी के लिए करने की सलाह दी जाती है जो सकारात्मकता की तलाश में हैं और उच्च और शुद्ध सुख प्राप्त करना चाहते हैं।एक अलग स्थान पर भगवान की तस्वीर या मूर्ति लगाएं।दीपक, धूप, भोग (मक्खन और मिश्री), पंचामृत अर्पित करें।अब संकल्प लें कि आप इस अष्टकम का जप क्यों कर रहे हैं।अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना करें।अब श्री कृष्ण अष्टकम के साथ दिव्य कृष्ण का आह्वान करें ....
भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं,
स्वभक्तचित्तरञ्जनं सदैव नन्दनन्दनम् ।
सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुहस्तकं,
अनंगरंगसागरं नमामि कृष्णनागरम् ॥ १ ॥
मनोजगर्वमोचनं विशाललोललोचनं,
विधूतगोपशोचनं नमामि पद्मलोचनम् ।
करारविन्दभूधरं स्मितावलोकसुन्दरं,
महेन्द्रमानदारणं नमामि कृष्णवारणम् ॥ २ ॥
कदम्बसूनकुण्डलं सुचारुगण्डमण्डलं,
व्रजाङ्गनैकवल्लभं नमामि कृष्ण दुर्लभम् ।
यशोदया समोदया सगोपया सनन्दया,
युतं सुखैकदायकं नमामि गोपनायकम् ॥ ३ ॥
सदैव पादपङ्कजं मदीयमानसे निजं
दधानमुत्तमालकं नमामि नन्दबालकम् ।
समस्तदोषशोषणं समस्तलोकपोषणं,
समस्तगोपमानसं नमामि नन्दलालसम् ॥ ४ ॥
भुवोभरावतारकं भवाब्धिकर्णधारकं,
यशोमतीकिशोरकं नमामि चित्तचोरकम् ।
दृगन्तकान्तभङ्गिनं सदासदालसङ्गिनं,
दिने दिने नवं नवं नमामि नन्दसंभवम् ॥ ५ ॥
गुणाकरं सुखाकरं कृपाकरं कृपापरं,
सुरद्विषन्निकन्दनं नमामि गोपनन्दनम् ।
नवीनगोपनागरं नवीनकेलिलंपटं,
नमामि मेघसुन्दरं तटित्प्रभालसत्पटम् ॥ ६ ॥
समस्तगोपनन्दनं हृदंबुजैकमोदनं,
नमामि कुञ्जमध्यगं प्रसन्नभानुशोभनम्
निकामकामदायकं दृगन्तचारुसायकं,
रसालवेणुगायकं नमामि कुञ्जनायकम् ॥ ७ ॥
विदग्धगोपिकामनोमनोज्ञतल्पशायिनं,
नमामि कुञ्जकानने प्रवृद्धवह्निपायिनम् ।
यदा तदा यथा तथा तथैव कृष्णसत्कथा,
मया सदैव गीयतां तथा कृपा विधीयताम् ॥ ८ ॥
प्रमाणिकाष्टकद्वयं जपत्यधीत्य यः पुमान् ।
भवेत्स नन्दनन्दने भवे भवे सुभक्तिमान् ॥ ९ ॥
कृष्णाष्टकम् हिंदी अर्थ सहित;-
1-मैं नटखट भगवान कृष्ण की वंदना करता हूं, जो व्रज का अमूल्य गहना है, जो सभी पापों का विनाश कर देते हैं, जो सदैव अपने भक्तों को प्रसन्न करते है| बाबा नंद के घर का आनंद, जिनके सिर पर मोर पंख सुशोभित है, भगवान कृष्ण की मधुर-मीठी आवाज़ है, उनके हाथ में बांसुरी है और जो प्रेम के सागर है।
2-मैं उन भगवान भगवान कृष्ण की वंदना करता हूं, जो मनुष्य के अन्दर अभिमान और काम से छुटकारा दिलाते हैं, ऐसे प्रभू के पास सुंदर और बड़ी आंखें हैं, जो गोपालों (चरवाहों) के दुखों को दूर करते हैं। मैं उन भगवान कृष्ण को प्रणाम करता हूं| जिन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपने हाथ की तर्जनी ऊँगली से उठाया, जिनकी मुस्कान और एक झलक अत्यंत आकर्षक है, जिन्होंने इंद्र के घमंड को नष्ट कर दिया था |
3-मैं उन भगवान कृष्ण को नमन करता हूं, जो कदंब के फूलों से बने कुण्डल पहनते हैं, जिनके सुंदर लाल गाल हैं, जो ब्रज के गोपियों के एकमात्र प्राण से भी प्रिय सखा हैं, और जिन्हें भक्ति के अलावा और किसी भी तरह से प्राप्त करना मुश्किल है। मैं भगवान भगवान भगवान कृष्ण को नमन करता हूं, जो ग्वालों, नन्द बाबा और माता यशोदा के प्रिय हैं, जो अपने भक्तों को खुशी के अलावा कुछ नहीं देते है और जो ग्वालों के भगवान हैं।
4-मैं नन्द बाबा के बेटे को नमन करता हूं, जिन्होंने अपने कमल जैसे सुन्दर पैर मेरे मस्तिष्क में रख दिए हैं और जनके पास सुंदर काले घुंगराले बाल हैं। मैं उन भगवान कृष्ण की पूजा करता हूं जो सभी प्रकार के दोषों को दूर करते है, और सारे संसार का पालन पोषण करते है | ऐसे मेरे प्रभु भगवान कृष्ण सभी ग्वालों और बाबा नन्द के प्रिय है।
5-मैं भगवान कृष्ण को नमन करता हूं, जो पृथ्वी पर होने वाले अधर्म कार्य को रोकते है और धर्म की रक्षा करते है, जो हमें दुखों के सागर को पार करने में सहायक है, जो मईया यशोदा का लाल है, और इनकी मनमोहक अदाएं और मुस्कान सभी के दिलों को भा जाती है। मैं नन्द के बेटे को नमन करता हूं, जिसके पास बेहद सुन्दर और आकर्षक आंखें हैं, जो हमेशा संत और भक्तजनों के साथ है, और जिसके दिन-प्रतिदिन नए रूप दिखाई देते हैं।
6-भगवान कृष्ण सभी सधगुण,खुशी और सरलता के भंडार हैं। वह देवताओं के शत्रुओं को नष्ट करते है और गोपियों को प्रसन्न करते है। मैं उस भगवान कृष्ण को नमन करता हूं, जो हर दिन प्रकट होते है,जिनके पास काले बादलों की तरह केश है और श्याम सुंदर रंग है, जो एक पीला वस्त्र पहनते है, जो बिजली की तरह चमकता है।
7-भगवान कृष्ण सभी ग्वालों को प्रसन्न करते हैं और उनके साथ खेलते है। वह प्रकट होता है तेजस्वी सूर्य के रूप में और कमल को खिलने वाला हृदय खिलने का कारण बनता है..श्रद्धा के साथ । मैं ऐसे भगवान को नमन करता हूं, जो पूरी तरह से भक्त की इच्छाओं को पूरा करते हैं, जिनकी सुंदर झलक तीर के समान दिल में उतरती है और जो बांसुरी पर मधुर धुन बजाते हैं।
8-भगवान कृष्ण को शैया पर लेटे हुए गोपियों हमेशा उनके बारे में सोचती हैं और अपना चित इसी मूरत में लगाए रखती है। मैं भगवान कृष्ण को नमन करता हूं, जिनकी आँखों का आकर्षण और एक काले रंग की अनगढ़ से आकर्षक हैं, जिन्होंने हाथी गजेंद्र को उसकी करुण पुकार पर एक मगरमच्छ के जबड़े से को मुक्ति दिला दी थी |
9-हे भगवान कृष्ण ! कृपया मुझे आशीर्वाद दें ताकि मैं आपके गौरव को और अतीत का गुणगान कर सकूँ, चाहे मैं जिस भी स्थान पर रहूं वहां पर ही आपने नाम का सुमरिन करूं । कोई भी भक्त जो इस का पाठ करता है, उन्हें हर जनम में भगवान कृष्ण की भक्ति का आशीर्वाद सदैव मिलता है |
श्री राधा कृष्ण अष्टकम;
धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण की पूजा उपासना करने से जातक की सभी मनोकामनाएं यथाशीघ्र पूर्ण होती हैं। साथ ही श्री राधा रानी की कृपा से घर में सुख और समृद्धि आती है। अतः साधक भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा उपासना करते हैं।
कृष्णप्रेममयी राधा राधाप्रेममयो हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥ (१)
कृष्णस्य द्रविणं राधा राधायाः द्रविणं हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥ (२)
कृष्णप्राणमयी राधा राधाप्राणमयो हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥ (३)
कृष्णद्रवामयी राधा राधाद्रवामयो हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥ (४)
कृष्ण गेहे स्थिता राधा राधा गेहे स्थितो हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥ (५)
कृष्णचित्तस्थिता राधा राधाचित्स्थितो हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥ (६)
नीलाम्बरा धरा राधा पीताम्बरो धरो हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥ (७)
वृन्दावनेश्वरी राधा कृष्णो वृन्दावनेश्वरः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥ (८)
श्री राधा कृष्ण अष्टकम हिंदी अर्थ सहित;-
1-श्रीराधारानी, भगवान श्रीकृष्ण में रमण करती हैं और भगवान श्रीकृष्ण, श्रीराधारानी में रमण करते हैं, इसलिये मेरे जीवन का प्रत्येक-क्षण श्रीराधा-कृष्ण के आश्रय में व्यतीत हो।
2-भगवान श्रीकृष्ण की पूर्ण-सम्पदा श्रीराधारानी हैं और श्रीराधारानी का पूर्ण-धन श्रीकृष्ण हैं, इसलिये मेरे जीवन का प्रत्येक-क्षण श्रीराधा-कृष्ण के आश्रय में व्यतीत हो।
3-भगवान श्रीकृष्ण के प्राण श्रीराधारानी के हृदय में बसते हैं और श्रीराधारानी के प्राण भगवान श्री कृष्ण के हृदय में बसते हैं , इसलिये मेरे जीवन का प्रत्येक-क्षण श्रीराधा-कृष्ण के आश्रय में व्यतीत हो।
4- भगवान श्रीकृष्ण के नाम से श्रीराधारानी प्रसन्न होती हैं और श्रीराधारानी के नाम से भगवान श्रीकृष्ण आनन्दित होते है, इसलिये मेरे जीवन का प्रत्येक-क्षण श्रीराधा-कृष्ण के आश्रय में व्यतीत हो। (४)
5-श्रीराधारानी भगवान श्रीकृष्ण के शरीर में रहती हैं और भगवान श्रीकृष्ण श्रीराधारानी के शरीर में रहते हैं, इसलिये मेरे जीवन का प्रत्येक-क्षण श्रीराधा-कृष्ण के आश्रय में व्यतीत हो।
6-श्रीराधारानी के मन में भगवान श्रीकृष्ण विराजते हैं और भगवान श्रीकृष्ण के मन में श्रीराधारानी विराजती हैं, इसलिये मेरे जीवन का प्रत्येक-क्षण श्रीराधा-कृष्ण के आश्रय में व्यतीत हो।
7-श्रीराधारानी नीलवर्ण के वस्त्र धारण करती हैं और भगवान श्रीकृष्णपीतवर्ण के वस्त्र धारण करते हैं, इसलिये मेरे जीवन का प्रत्येक-क्षण श्रीराधा-कृष्ण के आश्रय में व्यतीत हो।
8-श्रीराधारानी वृन्दावन की स्वामिनी हैं और भगवान श्रीकृष्ण वृन्दावन के स्वामी हैं, इसलिये मेरे जीवन का प्रत्येक-क्षण श्रीराधा-कृष्ण के आश्रय में व्यतीत हो।
... SHIVOHAM....
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