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भैरवजी के चमत्कारी 108 नाम..

भैरवजी को काशी का कोतवाल माना जाता है। मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी के दिन भगवान महादेव ने कालभैरव के रूप में अवतार लिया था । कालभैरव भगवान महादेव का अत्यंत ही रौद्र, भयाक्रांत, वीभत्स, विकराल प्रचंड स्वरूप है।पुराणों में ऐसा वर्णन मिलता है कि शिव के रूधिर से कालभैरव की उत्पत्ति हुई है। बाद में ये रूधिर दो भागों में बट गई। एक बटुक भैरव दूसरे कालभैरव। कालभैरव को भय का नाशक माना जाता है। ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि ये असितांग, रुद्र, चंड, क्रोध, उन्मक्त कपाली, भीषण और संहार के नाम के नाम से भी प्रसिद्ध कालभैरव शिव के पांचवे अवतार हैं। कालभैरव के पूजन से सभी तरह के अनिष्ट का निवारण होता है।इनके 108 नामाें का जाप करने से किसी भी तरह के भय तंत्र मंत्र और बुरे प्रभावाें का डर नही रहता। इसीलिए भैरवजी के 108 नामों को जहां तक हो सके प्रतिदिन पढ़ना चाहिए।भैरव के 108 नाम का प्रतिदिन जप करने से घर से हर प्रकार का अनिष्ट दूर होने लगता है | ऐसे घर से नकारात्मक शक्तियाँ प्रभावहीन होने लगती है|कलियुग में भैरव बाबा की उपासना आपके सभी दुखों-कष्टों को दूर करने में फलदायी मानी गयी है | तंत्र शास्त्र में भी भैरव बाबा को प्रमुख माना गया है | यद्यपि सभी भैरव भक्त अपने-अपने श्राद्ध भाव द्वारा भैरव उपासना करते है और उन्हें प्रसन्न करने का यत्न करते है | लेकिन किसी भी देव आराधना में सबसे अधिक महत्व देव के प्रति आपके समर्पण भाव को माना गया है | यदि आपकी अपने देव के प्रति निष्ठा सच्ची है तो आप अपने देव से आशीर्वाद अवश्य प्राप्त करते है | भैरव उपासना/ 108 नामाें का जाप में भी प्रथम कार्य आपको यही करना है कि उनके प्रति अपने समर्पण भाव को बनाये रखे |

पाठ करने की विधिः-

सुबह या शाम को जब भी आपको सुविधा हो, कोई एक समय निश्चित कर लीजिये। अपने घर के मंदिर

में बैठकर या शिवजी या भैरूजी के मंदिर में जाकर लाल अथवा किसी भी आसन पर बैठकर पूर्व की

तरफ या भगवान की मूर्ति की तरफ मुख करके सरसों या तिल्ली के तेल का दीपक जलाकर जिस कार्य के

निमित्त पाठ कर रहे है। उसके लिये संकल्प लें।

जैसे - ...............आपका गोत्र, गोत्र में उत्पन्न मैं .................आपका नाम, अपने अमुख कार्य को अतिशीघ्र

पूर्ण करने के लिये अथवा जो भी आपका सोचा हुआ कार्य हो, वो बोले, बटुक भैरव जी के 108 नाम का

पाठ कर रहा हॅूूं या रही हूं। भगवान भैरव मुझे इसमें अतिशीघ्र सफलता प्रदान करें। फिर आप पाठ शुरू

कर दें।

विशेषः-

पाठ के लिये कोई भी एक समय निश्चित कर लें यदि सुबह करते है तो कार्य पूर्ण होने तक सुबह

ही करें । यदि शाम को करते है तो कार्य पूर्ण होने तक शाम को ही पाठ करें। शराब, मांस व दूसरे की स्त्री

से दूर रहे।

काल भैरव जी के 108 नाम;- |

1. ॐ ह्रीं भैरवाय नम:

2. ॐ ह्रीं भूतनाथाय नम:

3. ॐ ह्रीं भूतात्मने नम:

4. ॐ ह्रीं भू-भावनाय नम:

5. ॐ ह्रीं क्षेत्रज्ञाय नम:

6. ॐ ह्रीं क्षेत्रपालाय नम:

7. ॐ ह्रीं क्षेत्रदाय नम:

8. ॐ ह्रीं क्षत्रियाय नम:

9. ॐ ह्रीं विराजे नम:

10. ॐ ह्रीं श्मशानवासिने नम:

11. ॐ ह्रीं मांसाशिने नम:

12. ॐ ह्रीं खर्पराशिने नम:

13. ॐ ह्रीं स्मारान्तकृते नम:

14. ॐ ह्रीं रक्तपाय नम:

15. ॐ ह्रीं पानपाय नम:

16. ॐ ह्रीं सिद्धाय नम:

17. ॐ ह्रीं सिद्धिदाय नम:

18. ॐ ह्रीं सिद्धिसेविताय नम:

19. ॐ ह्रीं कंकालाय नम:

20. ॐ ह्रीं कालशमनाय नम:

21. ॐ ह्रीं कला-काष्ठा-तनवे नम:

22. ॐ ह्रीं कवये नम

23. ॐ ह्रीं त्रिनेत्राय नम:

24. ॐ ह्रीं बहुनेत्राय नम:

25. ॐ ह्रीं पिंगललोचनाय नम:

26. ॐ ह्रीं शूलपाणाये नम:

27. ॐ ह्रीं खड्गपाणाये नम:

28. ॐ ह्रीं धूम्रलोचनाय नम:

29. ॐ ह्रीं अभीरवे नम:

30. ॐ ह्रीं भैरवीनाथाय नम:

31. ॐ ह्रीं भूतपाय नम:

32. ॐ ह्रीं योगिनीपतये नम:

33. ॐ ह्रीं धनदाय नम:

34. ॐ ह्रीं अधनहारिणे नम:

35. ॐ ह्रीं धनवते नम:

36. ॐ ह्रीं प्रतिभागवते नम:

37. ॐ ह्रीं नागहाराय नम:

38. ॐ ह्रीं नागकेशाय नम:

39. ॐ ह्रीं व्योमकेशाय नम:

40. ॐ ह्रीं कपालभृते नम:

41. ॐ ह्रीं कालाय नम:

42. ॐ ह्रीं कपालमालिने नम:

43. ॐ ह्रीं कमनीयाय नम:

44. ॐ ह्रीं कलानिधये नम:

45. ॐ ह्रीं त्रिलोचननाय नम:

46. ॐ ह्रीं ज्वलन्नेत्राय नम:

47. ॐ ह्रीं त्रिशिखिने नम:

48. ॐ ह्रीं त्रिलोकभृते नम:

49. ॐ ह्रीं त्रिवृत्त-तनयाय नम:

50. ॐ ह्रीं डिम्भाय नम:

51. ॐ ह्रीं शांताय नम:

52. ॐ ह्रीं शांत-जन-प्रियाय नम:

53. ॐ ह्रीं बटुकाय नम:

54. ॐ ह्रीं बटुवेषाय नम:

55. ॐ ह्रीं खट्वांग-वर-धारकाय नम:

56. ॐ ह्रीं भूताध्यक्ष नम:

57. ॐ ह्रीं पशुपतये नम:

58. ॐ ह्रीं भिक्षुकाय नम:

59. ॐ ह्रीं परिचारकाय नम:

60. ॐ ह्रीं धूर्ताय नम:

61. ॐ ह्रीं दिगंबराय नम:

62. ॐ ह्रीं शौरये नम:

63. ॐ ह्रीं हरिणाय नम:

64. ॐ ह्रीं पाण्डुलोचनाय नम:

65. ॐ ह्रीं प्रशांताय नम:

66. ॐ ह्रीं शां‍तिदाय नम:

67. ॐ ह्रीं शुद्धाय नम:

68. ॐ ह्रीं शंकरप्रिय बांधवाय नम:

69. ॐ ह्रीं अष्टमूर्तये नम:

70. ॐ ह्रीं निधिशाय नम:

71. ॐ ह्रीं ज्ञानचक्षुषे नम:

72. ॐ ह्रीं तपोमयाय नम:

73. ॐ ह्रीं अष्टाधाराय नम:

74. ॐ ह्रीं षडाधाराय नम:

75. ॐ ह्रीं सर्पयुक्ताय नम:

76. ॐ ह्रीं शिखिसखाय नम:

77. ॐ ह्रीं भूधराय नम:

78. ॐ ह्रीं भूधराधीशाय नम:

79. ॐ ह्रीं भूपतये नम:

80. ॐ ह्रीं भूधरात्मजाय नम:

81. ॐ ह्रीं कपालधारिणे नम:

82. ॐ ह्रीं मुण्डिने नम:

83. ॐ ह्रीं नाग-यज्ञोपवीत-वते नम:

84. ॐ ह्रीं जृम्भणाय नम:

85. ॐ ह्रीं मोहनाय नम:

86. ॐ ह्रीं स्तम्भिने नम:

87. ॐ ह्रीं मारणाय नम:

88. ॐ ह्रीं क्षोभणाय नम:

89. ॐ ह्रीं शुद्ध-नीलांजन-प्रख्य-देहाय नम

90. ॐ ह्रीं मुंडविभूषणाय नम:

91. ॐ ह्रीं बलिभुजे नम:

92. ॐ ह्रीं बलिभुंगनाथाय नम:

93. ॐ ह्रीं बालाय नम:

94. ॐ ह्रीं बालपराक्रमाय नम:

95. ॐ ह्रीं सर्वापत्-तारणाय नम:

96. ॐ ह्रीं दुर्गाय नम:

97. ॐ ह्रीं दुष्ट-भूत-निषेविताय नम:

98. ॐ ह्रीं कामिने नम:

99. ॐ ह्रीं कला-निधये नम:

100. ॐ ह्रीं कांताय नम:

101. ॐ ह्रीं कामिनी-वश-कृद्-वशिने नम:

102. ॐ ह्रीं जगद्-रक्षा-कराय नम:

103. ॐ ह्रीं अनंताय नम:

104. ॐ ह्रीं माया-मन्त्रौषधी-मयाय नम:

105. ॐ ह्रीं सर्वसिद्धि प्रदाय नम:

106. ॐ ह्रीं वैद्याय नम:

107. ॐ ह्रीं प्रभविष्णवे नम:

108. ॐ ह्रीं विष्णवे नम:


...SHIVOHAM...



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