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मीनाक्षी मंदिर तथा कन्याकुमारी का कुमारी अम्मन मंदिर PART-02

कांची तु कामाक्षी, मदुरै तु मिनाक्षी।

दक्षिणे कन्याकुमारी ममः शक्ति रूपेण भगवती।

नमो नमः नमो नमः॥ मीनाक्षी मंदिर;-

06 FACTS;- 1-यह मंदिर शिव (सुन्दरेश्वरर या सुन्दर ईश्वर के रूप में) एवं उनकी भार्या देवी पार्वती (मीनाक्षी या मछली के आकार की आंख वाली देवी के रूप में) दोनो को समर्पित है।मछली पांड्य राजाओं का राजचिह्न था।हिन्दु पौराणिक कथानुसार भगवान शिव सुन्दरेश्वर रूप में अपने गणों के साथ पांड्य राजा मलयध्वज की पुत्री राजकुमारी मीनाक्षी से विवाह रचाने मदुरई नगर में आये थे। मीनाक्षी को देवी पार्वती का अवतार माना जाता है। इस मन्दिर को देवी पार्वती के सर्वाधिक पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है।मदुरई में भगवान शिव को सुंदरेश्वर और माता पार्वती को मीनाक्षी कहा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार मदुरई के पाण्ड्य राजा मलयध्वज की संतान विहीन थे। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए भगवान शिव की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया, तब माता पार्वती ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। वे अत्यंत सुन्दर थी, उनका नाम मीनाक्षी रखा गया। मीनाक्षी देवी से विवाह करने के लिए भगवान शिव ने सुंदरेश्वर के रूप में जन्म लिया। व्यस्क होने पर मीनाक्षी देवी ने राज्य का शासन संभाल लिया। मीनाक्षी देवी ने भगवान शिव के सामने विवाह की इच्छा व्यक्त की, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। उनका विवाह अतिसुन्दर, मनोहक और भव्य था। तीनो लोकों के समस्त यक्ष, गन्धर्व, देवी और देवता इस विवाह में सम्मलित होने के लिए एकत्रित हुए। भगवान विष्णु भी बैकुंठ से विवाह का संचालन के लिए आ रहे थे। देवराज इंद्र के कारण उन्हें कुछ समय अधिक लग गया। तब स्थानीय देवता कूडल अझघ्अर के द्वारा विवाह का सञ्चालन करवाया गया। भगवान विष्णु जी ने आने तक विवाह संपन्न हो चुका था। भगवान विष्णु इस घटना से रुष्ट होकर नगर की सीमा से ही लगे पर्वत अलगार कोइल में चले गये। तदोपरांत उन्हें सभी देवताओं ने मनाया, फिर वापस आकर उन्होंने मीनाक्षी-सुन्दरेश्वरर का पाणिग्रहण संस्कार कराया। इस विवाह का सम्पन्न होना एवं भगवान विष्णु को शांत करने की प्रक्रिया, इन दोनों घटनाओं को मदुरई के सबसे बडे़ त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। 2-मीनाक्षी मंदिर की अद्भुद संरचना;- मीनाक्षी मंदिर 14 एकड़ में फैला हुआ भव्य और विशाल मंदिर लगभग 3500 वर्षों से भी अधिक प्राचीन है। पुराणों के अनुसार इस मंदिर की स्थापना देवराज इंद्र द्वारा की गयी थी। मंदिर के बाहर से 4 विशाल टावर चारो दिशा में बने है। चारो टावर पर अनेक कलात्मक शिल्प बने है। यह मंदिर हमले से बचने के लिए बनाई ऊँची ऊँची दीवारों से घिरा हुआ है। इस मंदिर में लगभग 40 मीटर उंचे कुल 12 प्रवेश द्वार हैं जिन पर देवी देवताओं की अद्भुद चित्रकारी अंकित की गई हैं। मंदिर में कुल कुल 14 गोपुरम और 985 स्तंभ हैं। मंदिर के आठ खम्बों पर देवी लक्ष्मी जी की भी प्रतिमाएं उकेरी गई हैं। इस परिसर में निर्मित विभिन्न मंदिर हैं। दो मुख्य मंदिर मीनाक्षी माँ और भगवान सुन्दरेश्वर के बने है इसके आलावा भगवान गणेश, मुरुगन देवी, माता लक्ष्मी, रुक्मिणी जी, माँ सरस्वती एवं अन्य देवताओं सुन्दर मंदिर भी हैं। यहां प्रति शुक्रवार को मीनाक्षी देवी तथा सुन्दरेश्वर भगवान की स्वर्ण प्रतिमाओं को झूले में झुलाते हैं।इस मन्दिर में शिव की नटराज मुद्रा भी स्थापित है। शिव की यह मुद्रा सामान्यतः नृत्य करते हुए अपना बांया पैर उठाए हुए होती है, परन्तु यहां उनका दांया पैर उठा है। एक कथा अनुसार राजा राजशेखर पांड्य की प्रार्थना पर भगवान ने अपनी मुद्रा यहां बदल ली थी। यह इसलिये था, कि सदा एक ही पैर को उठाए रखने से, उस पर अत्यधिक भार पडे़गा। यह निवेदन उनके व्यक्तिगत नृत्य अनुभव पर आधारित था।यह भारी नटराज की मूर्ति, एक बडी़ चांदी की वेदी में बंद है, इसलिये इसे वेल्ली अम्बलम् (रजत आवासी) कहते हैं। इस गृह के बाहर बडे़ शिल्प आकृतियां हैं, जो कि एक ही पत्थर से बनी हैं। इसके साथ ही यहां एक वृहत गणेश मन्दिर भी है, जिसे मुकुरुनय विनायगर् कहते हैं। इस मूर्ति को मन्दिर के सरोवर की खुदाई के समय निकाला गया था। मीनाक्षी देवी का गर्भ गृह शिव के बांये में स्थित है।

3-मीनाक्षी मन्दिर का पवित्र सरोवर(पुष्करिणी);-

पोत्रमरै कूलम, पवित्र सरोवर 165 फ़ीट लम्बा एवं 120 फ़ीट चौड़ा है। यह मन्दिर के भीतर भक्तों हेतु अति पवित्र स्थल है।कह्ते है कि इन्द्र ने स्वर्ण कमल यही से तोड़े थे ।भक्तगण मन्दिर में प्रवेश से पूर्व इसकी परिक्रमा करते हैं। इसका शाब्दिक अर्थ है "स्वर्ण कमल वाला सरोवर" और अक्षरशः इसमें होने वाले कमलों का वर्ण भी सुवर्ण ही है। एक पौराणिक कथानुसार, भगवान शिव ने एक सारस पक्षी को यह वरदान दिया था, कि इस सरोवर में कभी भी कोई मछली या अन्य जलचर पैदा होंगे और ऐसा ही है भी।तमिल धारणा अनुसार, यह नए साहित्य को परखने का उत्तम स्थल है। अतएव लेखक यहां अपने साहित्य कार्य रखते हैं, एवं निम्न कोटि के कार्य इसमें डूब जाते हैं, एवं उच्च श्रेणी का साहित्य इसमें तैरता है, डूबता नहीं। 4-मीनाक्षी मंदिर दर्शन और पूजन का समय;- भक्तों के दर्शन हेतु मंदिर प्रातः काल 5:00 बजे खुलते हैं और दोपहर 12:30 बजे बंद किये जाते हैं। फिर शाम को 4:00 बजे से रात्रि 9:30 तक दर्शन के लिए मंदिर खुले होते हैं। आप स्पेशल दर्शन या सेवा के लिए मीनाक्षी सुन्दरेश्वर मंदिर की वेबसाइट पर जाकर एडवांस बुकिंग करा सकते है। इससे आपको दर्शन करने में आसानी होगी।मीनाक्षी मंदिर में सुबह 5:00 बजे से 6:00 बजे तक थिरुवनंदल पूजा की जाती है, उसके बाद 7:15 बजे तक अन्य पूजाएं और विधियां की जाती है। फिर 10:30 से 11:15 तक त्रिकालसंधि पूजा की जाती है और अंत में रात्रि को 9:30 से 10:00 बजे दैनिक अंतिम पूजा की जाती है। 5-मीनाक्षी-सुंदरेश्वर मंदिर दर्शन;- सबसे पहले अपना मोबाइल और जूते आदि मंदिर के गेट पर जमा कर दीजिये। मंदिर के भीतर ही प्रसाद की दुकाने है। आप यहाँ से प्रसाद ले सकते है। मंदिर के सामान्य दर्शन लाइन में या VIP दर्शन लाइन में लग जाइये। VIP टिकट दो प्रकार के होते है। 50 रु. के VIP टिकट में माँ मीनाक्षी देवी मंदिर के VIP दर्शन कर सकते है। 100 रु. में माता मीनाक्षी मंदिर और सुंदरेश्वरम मंदिर के VIP दर्शन कर सकते है। VIP टिकट मंदिर के अन्दर मिल जायेगा। लाइन में लगने के बाद धीरे धीरे आगे बढ़ते जाइये। मंदिर के अन्दर विशाल स्तम्भ, स्तम्भ पर अद्भुद कलाकारी, मंदिर की छत की रंगीन चित्रकारी सौन्दर्य, चारों तरफ की मनमोहक नक्काशी आपके मन में जिन्दगी भर की यादों के रूप में बस जाती है। मंदिर के अंदर एक स्वर्ण कलश दिखाई देगा, इसकी परिक्रमा करने बाद माँ मीनाक्षी का दर्शन किया जाता है। मीनाक्षी माता के गर्भगृह के बहार एक विशाल स्तम्भ बना है, इसे प्रणाम करके गर्भग्रह में प्रवेश करें। अन्दर जाने पर स्वर्ण वस्त्रों और आभूषणों के श्रंगार से सजी मीनाक्षी माता के दर्शन होंगे। माता के स्वरूप को अपने मन में बसा लीजिये। मीनाक्षी माता के आँखे मत्स्य की तरह हमेशा खुली होती है। वे अपने भक्तों पर हमेशा कृपा रखती है, उन पर किसी ही प्रकार का कोई संकट नहीं आने देती। अब हम भगवान सुंदरेश्वर का दर्शन करने के लिए गर्भग्रह के बाहर लाइन में लग जाते है। गर्भग्रह के अन्दर जाने पर आप देखेंगे कि शिवलिंग के चारों तरफ दिये जले है। दियों की रौशनी में चमकते शिवलिंग को देखकर ह्रदय को अत्यंत सुख का अनुभव होता है। 6-मीनाक्षी मंदिर का कला संग्रहालय;- मीनाक्षी मंदिर के परिसर में एक बड़ा संग्रहालय बना है। यह संग्रहालय द्रविड़ मूर्ति कला का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है। आप 10 रु. का टिकट लेकर प्रवेश कर सकतें है, अन्दर एक 1000 स्तम्भ पर एक हाल बना है, जिसमें नटराज की मूर्ति सुशोभित है, हर स्तम्भ पर शिल्प बने है, कई चित्र और कांच के बॉक्स में हजारों वर्ष पुरानी मूर्तियाँ रखी है। इस मंडप से बाहर आने पर पच्छिम की तरफ संगीत के स्तंभ बने है। स्तंभ में कान लगाकर थाप देने से संगीत सुनाई देता है। संगीत स्तंभ मंडप के पास कल्याण मंडप है। यहाँ शिव और पार्वती के विवाह का चित्राई महोत्सव हर वर्ष अप्रैल के मध्य चैत्र मास के महीने में मनाया जाता है। मदुरई के अन्य मंदिर;-

04 FACTS;- 1-कूडल अज़्हगर मंदिर; -

भगवान विष्णु को समर्पित, तमिलनाडु के मदुरै शहर के केंद्र में स्थित कूडल अज़्हगर मंदिर, ऐतिहासिक महत्व का एक अनूठा और प्रसिद्ध मंदिर है, जिसे वास्तुकला की द्रविड़ शैली में बनाया गया है और माना जाता है कि इसे पांड्यों द्वारा बनाया गया था। कूडल मदुरै शहर का दूसरा नाम है और तमिल में अज़्हगर का अर्थ 'सुंदर' के रूप में किया जाता है, जिसमें विष्णु को कूडल अलगर और उनकी पत्नी लक्ष्मी को मथुरावल्ली के रूप में संदर्भित किया जाता है। विभिन्न रंगों को जोड़कर खूबसूरती से तराशा और उकेरा गया यह राजसी मंदिर देखने वालों को मंत्रमुग्ध कर देता है। इस मंदिर के दर्शन आप सुबह 5 बजे से 12 बजे और शाम 4 बजे 9 बजे के बीच कर सकते हैं।कूडल अल्ज़गर मंदिर दक्षिण भारत के मीनाक्षी मंदिर जितना ही प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर है। यह वैष्णव मंदिर शहर के बीच में मुख्य बस स्टैंड के पास स्थित है। यह मंदिर 5 मंजिल ऊँचा है। इस मंदिर के अन्दर भगवान विष्णु जी की तीन प्रतिमाएं है पहली भगवान विष्णु की बैठी हुई, दूसरी खड़ी और तीसरी लेटी हुई मुद्रा में हैं। मंदिर के अंदर भगवान राम के राज्याभिषेक समारोह का द्रश्य लकड़ी की सुन्दर नक्काशी के द्वारा दर्शाया गया है। इस मंदिर में नौ ग्रह देवताओं की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं।

2-अलगर कोइल मंदिर; -

मदुरई से 21 किमी की दूरी पर अलागर पहाड़ियों की तलहटी में स्थित अजगर भगवान का अलागर कोविल मंदिर मदुरई के प्रमुख स्थलों में से एक है।मंदिर भगवान विष्णु का विश्राम स्थल है और इस क्षेत्र में भगवान विष्णु के कई अनुयायियों के लिए पवित्र स्थान है। यह अलगर पहाड़ियों में स्थित है और इसे अज़गरकोविल के नाम से भी जाना जाता है। भगवान की मूर्ति पूरी तरह से पत्थर से बनी है और कल्लालगर से बनाई गई एक शानदार कृति है। भगवान की विभिन्न मुद्राओं में विभिन्न मूर्तियों को एक ही छत के नीचे मंदिर में रखा गया है और यह दक्षिण भारत में अलग-अलग मंदिरों का सबसे अच्छा रूप है। सुबह 6 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक और शाम 4 बजे से रात 8 बजे तक इस मंदिर के दर्शन कर सकते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान सुंदरेश्वर और देवी मीनाक्षी का दिव्य विवाह भगवान विष्णु के आगमन से पहले हो गया था। जिससे भगवान विष्णु रुष्ट होकर यहाँ भगवान अजगर के रूप में बस गये थे। यह मंदिर के आसपास की प्राकृतिक सुन्दरता और अद्भुद वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यहाँ जाने के लिए सबसे उचित समय चिथिरई महोत्सव है, जब भगवान अलागर देवी मीनाक्षी और भगवान सुंदरेश्वर की शादी के लिए मदुरई जाते हैं। अलागर कोविल से मदुरई तक भव्य जुलूस का आयोजन किया जाता है।प्रवेश का समय सुबह 6 बजे से 12.30 बजे और दोपहर 3.30 से शाम 8 तक हैं। 3-तिरुप्परनकुंद्रम मुरुगन मंदिर; -

तिरुप्परनकुंद्रम मुरुगन मंदिर दक्षिण भारत के तीर्थ स्थानों में से एक है। इस क्षेत्र में एक पहाड़ी इलाका है और इसे भारत के दक्षिणी हिमालय के रूप में भी जाना जाता है। यह एक दिव्य और आनंदमय गंतव्य है जहां की खूबसूरती कभी भी कम नहीं होती। इस मंदिर को विवाह के लिए एक पवित्र स्थान के रूप में देखा जाता है और ज्यादातर विवाह समारोह इसी मंदिर में ही होते हैं। इस मंदिर में भगवान सुब्रह्मण्यम का भी विवाह हुआ था और तब से इस मंदिर में भगवान के सामने कई लोग वैवाहिक बंधन में बंधे हैं।

4-मरिअम्मन टेपाकुलम मंदिर; - -

भगवान विघ्नेश्वर को समर्पित यह दिव्य मंदिर मीनाक्षी मंदिर से लगभग 5 किमी की दूरी पर स्थित है। मंदिर के परिसर में एक विशाल तालाब है, जो कि तमिलनाडु के क्षेत्र में सबसे बड़ा तालाब होने का रिकॉर्ड भी रखता है। ऐसा कहा जाता है कि जब मंदिर की मूर्ति भी तालाब के नीचे से प्राप्त हुई थी और तभी से इस तालाब ने अपनी लोकप्रियता हासिल की है। मंदिर में कई अलग-अलग प्रकार के त्यौहार मनाए जाते हैं और सभी अनुष्ठान बहुत धूमधाम और आनंद के साथ किए जाते हैं। इस मंदिर के दर्शन आप सुबह 8 बजे से शाम 7 बजे के बीच कर सकते हैं। मदुरई कैसे पहुँचे?

मदुरई में एयरपोर्ट, ट्रेन और बस तीनो सुविधाएँ उपलब्ध है।मदुरै एयरपोर्ट के जाने के लिए आपको भारत के सभी मुख्य शहरों से फ्लाइट मिल जाएगी।मीनाक्षी अम्मन मंदिर फ्लाइट की मदद से काफी आसानी से पहुंच सकता है। मदुरई एयरपोर्ट इस मीनाक्षी अम्मन मंदिर से मात्र 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।अगर आपके शहर से मदुरै के लिए डायरेक्ट फ्लाइट नहीं है तो पहले चेन्नई एयरपोर्ट आ जाइये।चेन्नई से मदुरै पहुंचने के लिए फ्लाइट लें सकते हैं। वहाँ से आप बस, टैक्सी या ट्रेन के माध्यम से मदुरई पहुँच सकते है।कांचीपुरम से मदुरै तक पहुँचने के लिए 477 कि.मी. की दूरी करनी पड़ती है।मदुराई जाने के लिए 100 से ज्यादा ट्रेन चलती है। आपके शहर या निकटवर्ती रेलवे जंक्शन से आसानी से मदुरई के लिए डायरेक्ट ट्रेन मिल जाएगी। आप यहां से ऑटो या टैक्सी के माध्यम से मात्र 10 मिनट में मीनाक्षी मंदिर जा सकते हैं।

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कन्याकुमारी का कुमारी अम्मन मंदिर;-

05 FACTS;-

1-कुमारी देवी को देवी पार्वती का अवतार माना जाता है। बाणासुर नाम के राक्षस को मारने के लिए पार्वती माता ने कुमारी देवी का जन्म लिया था।कुमारी अम्मन मंदिर हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। कुमारी अम्मन मंदिर भगवान शिव की पत्नी माता पार्वती को समर्पित है। कुमारी अम्मन को भगवती अम्मन के नाम से भी जाना जाता है। कुमारी अम्मन मंदिर भारत के राज्य तमिलनाडु के कन्याकुमारी में स्थित है। कुमारी अम्मन मंदिर तीनों समुद्रों ‘हिन्द महासागर‘, ‘अरब सागर’ और ‘बंगाल की खाडी’ की धाराओं का संगम स्थल पर बना हुआ है। यहां सागर की लहरों की आवाज स्वर्ग के संगीत की भांति सुनाई देती है। मंदिर के बाई ओर 500 मीटर की दूरी पर ‘सावित्री घाट’, ‘गायत्री घाट’, ‘स्याणु घाट’ और ‘तीर्थ घाट’ स्थित हैं। भक्तगण मंदिर में प्रवेश करने से पहले त्रिवेणी संगम बने इन्ही घाटों पर डुबकी लगाने की पंरपरा हैं। मंदिर का पूर्वी प्रवेश द्वार को हमेशा बंद करके रखा जाता है।

2-कुमारी अम्मन मंदिर दुनिया के सबसे पवित्र मंदिरों में एक है। इस मंदिर का नाम 108 शक्तिपीठ में आता है। यह मंदिर कुमारी माता का घर है। जिसे कुमारी देवी कहा जाता है। कुमारी देवी को पार्वती माता का अवतार माना जाता है। पार्वती माता ने बाणासुर नाम राक्षस को मारने के लिए कुमारी देवी का जन्म लिया था। बाणासुर को भगवान शिव ने यह वरदान दिया था कि उसकी मृत्यु केवल कुमारी कन्या हाथों से ही होगी। यह मंदिर लगभग 3000 साल से भी अधिक पुराना है और मंदिर न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है बल्कि इसका ऐतिहासिक महत्व भी है। कन्याकुमारी का यह प्राचीन मंदिर भी मंत्रमुग्ध कर देने वाला प्राकृतिक सौंदर्य प्रस्तुत करता है क्योंकि यह समुद्र के विशाल फैलाव के किनारे स्थित है। आध्यात्मिक आभा, लुभावनी प्राकृतिक सुंदरता और एक प्राचीन वास्तुकला इस मंदिर को न केवल भक्तों के लिए बल्कि मंदिर की यात्रा पर आने वाले हर यात्री के लिए एक धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाती है।

3-कन्याकुमारी मंदिर की पीठासीन देवता कुमारी अम्मन हैं, जिन्हें भगवती अम्मन के नाम से भी जाना जाता है। देवी कन्या कुमारी की आकर्षक मूर्ति की उल्लेखनीय विशेषता देवी की हीरे की नाक की अंगूठी है। नोज रिंग की आकर्षक चमक से जुड़ी कई प्रचलित कहानियां हैं। पौराणिक कथा के अनुसार नोज़ रिंग हीरा किंग कोबरा से प्राप्त किया गया था। एक प्रचलित कथा के अनुसार, नाक की अंगूठी से परावर्तित होने वाली चमक इतनी तेज है कि एक बार एक नाविक ने इसे लाइटहाउस समझ लिया था। जिसके परिणाम स्वरूप जहाज चट्टानों से टकरा गया था। यही कारण है कि मंदिर के पूर्वी द्वार को बंद रखा जाता है और वर्ष में केवल पांच बार विशेष अवसरों पर खोला जाता है।

4-कुमारी अम्मन मंदिर का निर्माण पाण्ड्य राजवंश के शासन काल में हुआ था। बाद में विजयनगर, चोल और नायक राजाओं द्वारा पुनर्निमाण किया गया था। मंदिर में सोलह स्तम्भों का एक मंडप निर्मित है। मंदिर के गर्भग्रह में देवी कुमारी की मूर्ति स्थिपित है। जो इस मंदिर के मुख्य आकर्षण है। मंदिर में प्रवेश केवल उत्तरी द्वार से ही किया जाता है। मंदिर का पूर्वी प्रवेश द्वार को हमेशा बंद करके रखा जाता है। मंदिर परिसर के भीतर भगवान सूर्य देव, भगवान गणेश, भगवान अयप्पा स्वामी, देवी बालसुंदरी और देवी विजया सुंदरी को समर्पित कई अन्य मंदिर हैं। मंदिर के अंदर एक कुआं है जहां से देवी के अभिषेक के लिए पानी का उपयोग किया जाता है। इसे मूल गंगा तीर्थम के नाम से जाना जाता है।वैसाखी त्योहार कुमारी अम्मन मंदिर का मुख्य त्योहार माना जाता है। वैसाखी त्योहार 10 दिनों की अवधि के लिए मनाया जाता है। इस त्योहार के दौरान धार्मिक जुलूसों का आयोजन किया जाता है।

5-कन्याकुमारी के कुमारी अम्मन मंदिर कैसे पहुँचे?

देश का सबसे अंतिम शहर या बिंदु होने के बावजूद भी कन्याकुमारी पहुंचना ज्यादा मुश्किल नहीं है। कन्याकुमारी पहुंचने के लिए आप बस, ट्रेन, फ्लाइट और कार सभी प्रकार के वाहन को अपने इस्तेमाल में ले सकते हैं।कन्याकुमारी से करीब 90-95 किमी. दूर त्रिवेंद्रम एयरपोर्ट कन्याकुमारी का सबसे निकटतम एयरपोर्ट है। देश के कई सारे बड़े शहरों के एयरपोर्ट त्रिवेंद्रम एयरपोर्ट से जुड़े हुए हैं। त्रिवेंद्रम एयरपोर्ट से कन्याकुमारी बस और टैक्सी द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। अगर त्रिवेंद्रम एयरपोर्ट आपके या आपके आसपास के शहरों के नहीं जुड़ा हुआ है, तो आप चेन्नई एयरपोर्ट के लिए फ्लाइट पकड़ सकते हैं, जो कन्याकुमारी से करीब 685 किमी. दूर है। चेन्नई से बस, ट्रेन और प्राइवेट टैक्सी के माध्यम से कन्याकुमारी पहुंचा जा सकता है।कन्याकुमारी रेलवे स्टेशन ही कन्याकुमारी का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है, लेकिन देश के सभी बड़े शहरों से कन्याकुमारी के लिए डायरेक्ट ट्रेन की सुविधा ना होने की वजह से पर्यटकों को नागरकोविल या तिरुवनंतपुरम के लिए ही ट्रेन मिल पाती है।तो आप नागरकोविल या तिरुवनंतपुरम रेलवे स्टेशन तक ट्रेन से आ सकते हैं, जहां से कन्याकुमारी की दूरी करीब 16 किमी. और 85 किमी. है।

निकटतम रेलवे स्टेशन: कुमारी अम्मन मंदिर से लगभग 1.6 किमी की दूरी पर कन्याकुमारी रेलवे स्टेशन।

निकटतम हवाई अड्डा: कुमारी अम्मन मंदिर से लगभग 101 किमी की दूरी पर त्रिवेंद्रम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा।

...SHIVOHAM....


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