मैं कौन हूँ?
कौन है आत्मा ?-
08 FACTS;-
1-जीवन में सारे दुःख अपनी असली पहचान ना जानने के कारण है। जब तक आप अपने सच्चे स्वरुप का अनुभव नहीं करते , तब तक आप खुद को उस नाम से मानते हैं जो आपको दिया गया है।मैं कौन हूं?’, इस प्रश्न का उत्तर नहीं जानने से, आप स्वयं की नई पहचान बनाते रहते हैं, इसके परिणाम स्वरुप आप अपने सच्चे स्वरुप से दूर होते चले जाते हैं।वास्तविकता में, हम एक शाश्वत आत्मा हैं। अनंत जन्मों से आत्मा अज्ञानता के आवरण में था। इसके कारण, हम स्वयं का अनुभव करने में असमर्थ रहे है|आज मनुष्य ने साइंस द्वारा बड़ी शक्तिशाली सुख सुविधा के साधन बना दिये हैं और वह अन्य अनेक जटिल समस्याओं का हल ढूंढ निकालने में भी सफल हुआ है, परन्तु ‘ मैं ’ कहने वाला कौन है, इसके बारे में वह सत्यता को नहीं जानता अर्थात वह स्वयं को नहीं पहचानता। "WHO AM I? "( मैं कौन हूँ? )आज किसी से पूछा जाये कि- “आप कौन है ?” तो वह झट अपने शरीर का नाम , व्यवसाय, पद, जाति, धर्म, देश आदि द्वारा अपना परिचय बताता है।लेकिन यह तो जन्म के पश्चात प्राप्त हुई पहचान (Acquired Personality) है।आध्यात्मिकता ( आत्मा + अध्ययन) अर्थात आत्मा का अध्ययन ही हमें इसका ज्ञान कराती है।
2-जिस प्रकार एक उपकरण को चलाने हेतु ऊर्जा (बिजली) की आवश्यकता होती, उसी प्रकार शरीर को चलाने हेतु आत्मा रूपी ऊर्जा की आवश्यकता होती है।मैं कहने वाली आत्मा है न कि शरीर, मैं आत्मा हूँ और ये मेरा शरीर।मैं शब्द आत्मा की तरफ और मेरा शब्द शरीर की तरफ इशारा करते हैं। हम कहते हैं मेरा शरीर, मेरे हाथ , इससे साबित होता है कि मेरा शब्द कहने वाली आत्मा अलग है।आत्मा और शरीर का सम्बन्ध ड्राईवर और मोटर के सामान है जैसे मोटर में बैठकर ड्राईवर उसे चलाता है। वैसे ही आत्मा शरीर में रहकर उसका सँचालन करती है और शरीर से अलग अस्तित्व रखती है।हम सब हमेशा यह सोचते रहेते है कि इस संसार में मेरा अस्तित्व आखिर क्या हैं ? मैं नाम , रूप , देह , इन्द्रिय , मन या बुद्धि हूँ ? या फिर इन सब से कोई भिन्न वस्तु हूँ ?नाम तो केवल सांकेतिक हैं , जो जब चाहे बदला जा सकता हैं।एक विवेकवान पुरुष इस रहस्य को समझ लेता है कि मैं एक नाम नहीं हूँ ....मैं अनामी हूँ।क्या हम नाम , शरीर , इन्द्रिय , मन और बुद्धि हैं ...
3-शरीर (Body) .... शरीर एक जड हैं। मैं एक चेतन हूँ। शरीर क्षय , वृध्धि , उत्पत्ति और विनाश के स्वभाव वाला हैं। मैं इन सब चीजों से सर्वदा परे हूँ। बचपन में मेरे शरीर का स्वरुप कुछ और था। ऐसे ही युवावस्था और वृद्ध-अवस्था में शरीर का स्वरुप कुछ अलग हैं। परन्तु इन तीनो अवस्थाओं को जाननेवाला में एक ही हूँ। इस लिए मैं यह शरीर नहीं ...शरीर का ज्ञाता हूँ
इन्द्रियां (Senses) .... मैं इन्द्रिय भी नहीं हूँ। हाथ और पैर अगर कट जाए , आँखें नष्ट हो जाए , कान बहरे हो जाते हैं , तब भी मैं जहाँ का तहां पूर्ववत् ही हूँ। मैं कभी मरता नहीं हूँ। अगर मैं इन्द्रिय होता तो उसके विनाश के साथ मेरा भी विनाश संभव होता। उसकी हानि के साथ मुझे भी हानि होती। इसलिए मैं जड इन्द्रिय नहीं हूँ , लेकिन इन्द्रियों का द्रष्टा या ज्ञाता हूँ। मैं भिन्न हूँ।
मन (Mind) ..मैं मन भी नहीं हूँ। नींद में मन रहता नहीं हैं परन्तु मैं रहता हूँ। इस लिए नींद में से जगने के बाद मुझे इस बात का ज्ञान होता हैं कि मैं शांति से सो रहा था। मन विकारी हैं। मन में होते विकारो का मैं ज्ञाता हूँ। खान – पान – स्नान आदि के समय अगर मेरा ध्यान अगर दूसरी जगह पर रहा तो इन कामो में कोई न कोई भूल हो जाती हैं। फिर में सचेत हो कर कहता हूँ की मेरा मन किसी दूसरी जगह पर था इसलिए मुझसे गलती हो गयी। क्योंकि केवल शरीर और इन्द्रियों से मन के बिना सावधानी पूर्वक काम नहीं हो सकता। मन चंचल हैं पर मैं स्थिर हूँ। अचल हूँ। मन कहीं भी रहे , कुछ भी करता रहे मैं उसको जानता हूँ। इसलिए मैं मन का ज्ञाता हूँ ...मन नहीं हूँ।
4-बुद्धि (intelligence) ...मैं बुद्धि भी नहीं हूँ। क्योंकि बुद्धि भी क्षय-वृद्धि के स्वभाव वाली हैं। मैं क्षय-वृद्धि से सर्वथा परे हूँ। बुद्धि में मंदता , तीव्रता , पवित्रता , मलिनता , स्थिरता और अस्थिरता जैसे विकार होते हैं। परन्तु मैं इन सब से परे हूँ और सब स्थितिओं से वाक़िफ़ हूँ। बुद्धि कब और कौन सा विचार कर रही हैं , क्या निर्णय कर रही हैं वह मैं जानता हूँ। बुद्धि द्रश्य हैं और मैं एक द्रष्टा हूँ। बुद्धि से मेरा पृथकत्व सिद्ध हैं। इसलिए मैं बुद्धि नहीं हूँ।इस तरह मैं नाम , शरीर , इन्द्रिय , मन और बुद्धि नहीं हूँ। इन सब से सर्वथा अतीत , पृथक , चेतन , द्रष्टा , साक्षी , सब का ज्ञाता , सत्य , नित्य , अविनाशी , अकारी , अविकारी , अक्रिय , अचल , सनातन , अमर और समस्त सुख – दुःख से रहित केवल शुद्ध आनंदमय आत्मा हूँ। मैं केवल आत्मा हूँ। यह ही मेरा सच्चा स्वरुप हैं।मनुष्य शरीर के बिना और कोई भी शरीर में इसकी प्राप्ति असंभव हैं। इस स्थिति की प्राप्ति तत्व ज्ञान से होती है। और वह विवेक , वैराग्य , ईश्वर की भक्ति , सद्विचार , सदाचार आदि के सेवन से होती है। और इन सब लक्षणों का होना इस घोर कलियुग में ईश्वर की दया के बिना असंभव हैं।
5-गीता में आत्मा व शरीर को....
पुरुष + प्रकृति
रथी + रथ
क्षेत्रज्ञ + क्षेत्र के नाम से वर्णित किया है।मनुष्य को Human being कहते हैअर्थात Humas (मिट्टी ,शरीर) + being (आत्मा)।
I + MY : मैं आत्मा + मेरा शरीर। शरीर की संरचना के 5 स्थूल व सूक्ष्म तत्व है...जल, वायु ,अग्नि ,पृथ्वी ,आकाश /"क्षिति जल पावक गगन समीरा""पंच तत्व मिल बना शरीरा"।
6-आत्मा की संरचना 7 सूक्ष्म तत्व :-
पवित्रता ,प्रेम , शांति ,सुख ,ज्ञान , आनन्द और शक्ति है।संत कबीर का भजन है...
"पंच तत्व की बनी चदरिया,
सात तत्व की पूनी "
" नौ दस मास बुनन में लागे ,
मूरख मैली कीन्ही "
चदरिया झीनी रे झीनी......
7-आत्मा के मुख्य अंग;-
04 POINTS;-
आत्मा के मुख्य अंग इस प्रकार हैं ....1-मन 2 - बुद्धि 3- संस्कार
आत्मा एक सूक्ष्म पॉइंट ऑफ़ लाइट है। उस पर कोई भी भौतिक शक्ति प्रभाव नहीं डाल सकती जिस तरह शरीर की कर्मेन्द्रियाँ है, उसी तरह आत्मा की भी तीन सूक्ष्म इन्द्रियाँ हैं मन, बुद्धि और संस्कार।जैसे परमाणु में सूक्ष्म Electron, Neutron और Proton होते उसी प्रकार आत्मा में सूक्ष्म मन, बुद्धि और संस्कार होते हैं।आत्मा एक चेतन एवं अविनाशी ज्योति-बिन्दु है जो कि मानव देह में जो हमारे शरीर में भृकुटि के मध्य में ठीक ढाई इंच पीछे और ऊपर से ठीक डेढ इंच नीचे निवास करती है।
जैसे रात्रि को आकाश में जगमगाता हुआ तारा एक बिन्दु-सा दिखाई देता है, वैसे ही दिव्य-दृष्टि द्वारा आत्मा भी एक तारे की तरह ही दिखाई देती है। इसीलिए एक प्रसिद्ध पद में कहा गया है ...
“भृकुटी में चमकता है इक अजब सितारा, गरीबां नूं साहिबा लगदा ए प्यारा ”
1-मन /Mind सकारात्मक व नकारात्मक विचार, ज़रूरी व व्यर्थ विचार उत्पन्न करना।यह आत्मा की विचार शक्ति है मन की शक्ति के द्वारा ही आत्मा सोचती है। मन की गति आवाज की गति से भी तीव्र है।
मन और हृदय में अन्तर है क्योंकि हृदय शरीर का भौतिक अंग है जो रक्त संचारण को बनाये रखता है परंतु मन तो आत्मा की शक्ति है
2-बुद्धि/intellect सकारात्मक (सही) व नकारात्मक (गलत) निर्णय लेना ।यह आत्मा की तर्क और परखने की शक्ति है इसका कार्य है समझना, निर्णय लेना, तर्क करना।बुद्धि और मस्तिष्क में भी अन्तर है क्योंकि मस्तिष्क शरीर के नियंत्रण कक्ष के रूप में है लेकिन बुद्धि आत्मा की निर्णायक शक्ति है।
3-संस्कार- resolves;- सकारात्मक (सही) व नकारात्मक (गलत) कार्यों की पुनरावृत्ति करना।यह आत्मा के किये हुए कर्मो का प्रभाव है जो आत्मा अपने साथ अगले जन्म में ले जाती है इसके आधार पर ही फिर मन में संकल्प उत्पन्न होते हैं।आत्मा प्रकाश और शक्ति से युक्त एक पॉइंट ऑफ़ लाइट है।भृकुटि में निवास करती है।पतंजलि योग दर्शन में भी बताया गया भृकुटी के मध्य में स्थित आज्ञा चक्र होता है जो आत्मा का स्थान माना जाता है। और इसे तीसरा नेत्र भी कहा जाता है आत्मा का तीसरा नेत्र ज्ञान नेत्र और ध्यान के द्वारा आत्मा रूपी प्रकाश को भ्रकुटी के मध्य में ही देखा जाता है।आत्मा का स्वरूप ज्योति बिंदु रूप है तो बिंदु का कोई माप थोड़े ही होता है जॉमट्री में भी इसका कोई आकार नहीं माना जाता । बिंदु को ना तो आयताकार माना जाता है, ना वर्गाकार ना वृत्ताकार और ना ही उसका अन्य कोई आकार है बल्कि रेखागणित के अनुसार भी निराकार ज्योतिबिंदु ही कहना ठीक है।मेडिकल साइंसेस के द्वारा भी यह प्रमाणित किया गया कि मस्तिष्क के भीतर हाइपोथैलेमस और पिट्यूटरी ग्लैंड के बीच में आत्मा रूपी ऊर्जा शक्ति एनर्जी का निवास स्थान है। और यहीं पर ही आत्मा लघु मस्तिष्क (cerebellum) तथा वृहद मस्तिष्क(cerebrum) से संबंधित है और स्नायु मंडल (motor nerves and sensory nerves) द्वारा कार्य करती है तथा अनुभव करती है।मेडिकल साइंस इसे Third Eye of Wisdom कहता है।विज्ञान ने इसे Energy कहा"Energy neither be created nor be destroyed"
4-संस्कार मुख्यतः पांच प्रकार के हैं ...
1-अनादि संस्कार: आत्मा के सात ओरिजिनल संस्कार:- पवित्रता, प्रेम, शांति, सुख , आनंद, ज्ञान व शक्ति
2-आदि संस्कार :- दैवी गुण युक्त
3-पूर्व जन्म के संस्कार
4-खानदानी संस्कार (Genetically acquired )
5-संग व वातावरण द्वारा दृढ़ता के संस्कार (Will power )
8-जिस प्रकार Electric Energy भौतिक ऊर्जा का स्रोत है उसी प्रकार Eternal Energy (आत्मा) Spiritual Energy का स्रोत है।
Electric Energy में तीन शक्तियां होती हैं।
1) Magnetic power
2) Vibration power
3) Radiation power
ठीक उसी प्रकार आत्मा में भी ये तीनों शक्तियां होती हैं।जिसके प्रति हम संकल्प करते उसको आकर्षित करते, संकल्प तरंगो द्वारा उस तक पहुंचते भी हैं, विकिरण शक्ति द्वारा संकल्पों को एकाग्र कर उस व्यक्ति के मनोदशा को बदल भी सकते, उसकी बीमारी को भी ठीक कर सकते हैं।
आत्मा का अस्तित्व..SCIENTIFIC VIEWPOINT ;-
04 FACTS;-
1-विज्ञान के अनुसार हल्की चीज हमेशा ऊपर रहती है कई लोग कहते हैं कि आत्मा हृदय में निवास करती है लेकिन हृदय तो केवल रक्त संचारण का केंद्र है जबकि आत्मा मस्तिष्क के द्वारा पूरे शरीर का नियंत्रण करती है। हम देखते है कि शरीर की महत्वपूर्ण कर्मेन्द्रियाँ जिनके द्वारा आत्मा कार्य और अनुभव करती है वो मस्तिष्क के आस पास ही है।
आंखें मानव की जो बहुत छोटी सी पुतली है जिसके द्वारा ही इस संसार को देखता है।मानव की आँख सब कुछ नहीं देख सकती। बहुत से signal, waves , ultraviolet rays ,रिमोट से निकलने वाली किरणें , बहुत सी तरंगों को नहीं देख सकते बहुत सी वाइब्रेशन जैसे टीवी के रिमोट के अंदर से निकलने वाली किरणें ऐसी अनेक किरणें जिसे हम अपनी आंखों से नहीं देख सकते इसका बहुत ही कम हिस्सा हमारी आंख देख पाती है।तो आत्मा को इन आंखों के द्वारा नहीं देख सकते।
क्योंकि वो पिछले जन्म के अपने संस्कार साथ लेके आते हैं। जैसे मोबाइल में एक छोटी सी चिप होती है उसमें ही सब कुछ समाया होता है, जितना भरना चाहो उतना भर सकते है। ठीक वैसे ही हमारे शरीर को चलाने वाली चिप, शक्ति को आत्मा कहा जाता है।
2-जैसे प्रत्येक चिप की क्षमता अलग होती है वैसे ही प्रत्येक आत्मा आत्मा अधिकतम 84 और कम से कम 1 जन्म लेती है।
मोबाइल ख़राब हो जाने पर भी चिप के contents तो उसमें रहते हैं और मोबाइल की चिप को निकाल कर दूसरे मोबाइल में डालते तो वह सब फिर से देख और सुन सकते हैं जो चिप में आलरेडी है।वैसे जब शरीर छूट जाता तब आत्मा उससे निकल कर दूसरा जन्म लेती है।आत्मा को साबित करना वैसे ही है जैसे आप जिस हवा में श्वास ले रहे हो, और आपको साबित करना है हवा है, जबकि वह दिखती नहीं लेकिन महसूस होती है।इसी तरह आत्मा दिखती नहीं है लेकिन साक्षी होकर देखिए तो महसूस होता है इस शरीर को चलाने वाली शक्ति आत्मा ही है।आत्मा एक अति सूक्ष्म दिव्य ज्योति बिंदु रूप है इसलिए व्यक्ति जब शरीर छोड़ता है तो दीपक जलाते अर्थात शरीर में स्थित चेतन्य ज्योति के यादगार स्वरूप ज्योति जगाते है। तभी लोग कहते हैं वह चैतन्य ज्योति चली गई (the light of the life has gone).आत्मा एक चमकते हुए सितारे के समान है। एक प्रकाश पुंज है।अलग-अलग धर्म ग्रंथों में भी आत्मा के स्वरुप के विषय में बताया गया है।
3-श्वेताश्वतर उपनिषद् के अनुसार मनुष्य के सिर के बाल के ऊपरी हिस्से को 100 भागों में बांट दिया जाए, फिर प्रत्येक भाग के 100 हिस्से कर दिए जाएं फिर जो माप आएगा,असल में आत्मा का वही आकार होता है अर्थात आत्मा का जो आकार है वह सूक्ष्म अति सूक्ष्म हैं ।मुंडकोपनिषद् के अनुसार आत्मा का आकार एक अणु जितना होता है।श्री गुरु ग्रंथ साहब जी में आत्मा के विषय में कहा गया है..."मन तु ज्योत स्वरूप है, अपना मूल पछांण " अर्थात हे मेरे मन तू उस परमात्मा के नूर की तरह है अर्थात the nature of soul is just like a supreme light. तू ज्योति स्वरूप है अपना मूल पहचान।इन 5 तत्वों से बनी आँखों द्वारा हम 5 तत्वों से बनी वस्तु ही देख सकते हैं। जैसे सोने से बनी चुम्बक सोना ही खींच सकती है, लोहे से बनी चुम्बक लोहा ही खींच सकती।आत्मा तो इन 5 तत्वों से बनी ही नहीं है। इसलिए दिख नहीं सकती। हाँ अगर आत्मा को देखना है तो इन 5 तत्वों के (consciousness ) से परे जा कर संभव है।कैरेलिअन कैमरे द्वारा मनुष्य के शूक्ष्म शरीर का (Aura ) का फ़ोटो लिया जा सकता है। आत्मा शरीर में विद्यमान है जो एक Aura का निर्माण करती है जिसे हम प्रकाश की काया भी कहते हैं।
4- श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार ''इस आत्माको शस्त्र काट नहीं सकते, आग जला नहीं सकती, जल गला नहीं सकता और वायु सूखा नहीं सकता ''।जीर्ण वस्त्र को जैसे तजकर नव परिधान ग्रहण करते हैं वैसे ही जर्जर तन को तजकर आत्मा नया शरीर धारण करता है''।जिस तरह एक उपकरण को चलाने के लिए ऊर्जा की आवश्कता होती है उसी प्रकार शरीर को चलाने के लिए शक्ति की जरूरत पड़ती है। जिसे आत्मा कहते हैं, चैतन्य , जीवंत , सनातन सत्ता।जब पिछले जन्म में किसी व्यक्ति को ले जाते है उसे हम पास्ट लाइफ हिप्नोटिक रिग्रेशन कहते हैं l रेमण्डस मूडी ने सत्य घटनाओं पर आधारित मौत के बाद पुनः जीवित Life After Death पुस्तक लिखी है l जिसमें अनेको अनुभव दिये है जो मरने के बाद जीवित हो जाते हैं। अमेरिका के एक मरीज जिसका नाम जोन ली था मृत घोषित होने के पश्चात उसकी श्वास की गति शुरू हो गई। उन्होंने अपना अनुभव इस तरह बताया कि ऐसा अनुभव हुआ पाँच तत्वों की काली गुफा में मैं एक सफेद लाईट हूँ l इसको पार करने के बाद सफेद लाईट और आगे लाल सुनहरे प्रकाश की दुनिया दिखी l वहाँ सुन्दर प्रकाशमय ज्योति थी, जो मुझे सुख, शांति अनुभव करा रही थी l थोड़ी देर में मुझे सुनाई दिया कि 'आपके इस शरीर के कर्म बंधन पूर्ण नहीं हुए है l अतः आपको वापस भेजा जा रहा है' ..और मैं पुनः इस शरीर मैं आ गया।इस प्रकार हर वर्ग के लोग चाहे वो वैज्ञानिक हो या शास्त्रज्ञाता या कोई भी धर्म सभी ने ये माना है कि शरीर और आत्मा अलग-अलग हैं l शरीर जड़ है और आत्मा चैतन्य है।संत कबीर कहते है..
अब रहना नहिं देस बेगाना है।
यह संसार कागद की पुड़िया, बूँद पडे गलि जाना है।
यह संसार काँटे की बाडी, उलझ पुलझ मरि जाना है॥
यह संसार झाड और झाँखर आग लगे बरि जाना है।
कहत 'कबीर सुनो भाई साधो, सतुगरु नाम ठिकाना है॥
अब रहना नहीं देस है,बेगाना है।
.....SHIVOHAM....
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