रामेश्वरमधाम...
06 FACTS;-
1-रामेश्वरम तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। यह तीर्थ हिन्दुओं के चार धामों में से एक है। इसके अलावा यहां स्थापित शिवलिंग बारह द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। भारत के उत्तर मे काशी की जो मान्यता है, वही दक्षिण में रामेश्वरम् की है। रामेश्वरम चेन्नई से लगभग सवा चार सौ मील दक्षिण-पूर्व में है। यह हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा हुआ एक सुंदर शंख आकार द्वीप है। बहुत पहले यह द्वीप भारत की मुख्य भूमि के साथ जुड़ा हुआ था, परन्तु बाद में सागर की लहरों ने इस मिलाने वाली कड़ी को काट डाला, जिससे वह चारों ओर पानी से घिरकर टापू बन गया। यहां भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व पत्थरों के सेतु का निर्माण करवाया था, जिस पर चढ़कर वानर सेना लंका पहुंची व वहां विजय पाई। बाद में राम ने विभीषण के अनुरोध पर धनुषकोटि नामक स्थान पर यह सेतु तोड़ दिया था। आज भी इस 30 मील ( 48कि.मी) लंबे आदि-सेतु के अवशेष सागर में दिखाई देते हैं।
2-पूरे भारत, दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्व एशिया के कई देशों में हर साल दशहरे पर और राम के जीवन पर आधारित सभी तरह के नृत्य-नाटकों में सेतु बंधन का वर्णन किया जाता है। राम के बनाए इस पुल का वर्णन रामायण में तो है ही, महाभारत तथा अनेक पुराणों में भी में भी श्री राम के नल सेतु का जिक्र आया है।एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका में इसे राम सेतु कहा गया है। नासा और भारतीय सेटेलाइट से लिए गए चित्रों में धनुषकोडि से जाफना तक जो एक पतली सी द्वीपों की रेखा दिखती है, उसे ही आज रामसेतु के नाम से जाना जाता है। इसी पुल को बाद में एडम्स ब्रिज का नाम मिला। यह सेतु तब पांच दिनों में ही बन गया था। इसकी लंबाई 100 योजन व चौड़ाई 10 योजन थी। इसे बनाने में उच्च तकनीक का प्रयोग किया गया था।रामेश्वरम् और सेतु बहुत प्राचीन है।परंतु रामनाथ का मंदिर उतना पुराना नहीं है।
3-रामेश्वरम् से दक्षिण में कन्याकुमारी नामक प्रसिद्ध तीर्थ है। रत्नाकर कहलानेवाली बंगाल की खाडी यहीं पर हिंद महासागर से मिलती है। दक्षिण के कुछ और मंदिर डेढ़-दो हजार साल पहले के बने है, जबकि रामनाथ के मंदिर को बने अभी कुल आठ सौ वर्ष से भी कम हुए है। इस मंदिर के बहुत से भाग पचास-साठ साल पहले के है।रामेश्वरम का गलियारा विश्व का सबसे लंबा गलियारा है। यह उत्तर-दक्षिणमें 197 मी. एवं पूर्व-पश्चिम 133 मी. है। इसके परकोटे की चौड़ाई 6 मी. तथा ऊंचाई 9मी. है। मंदिर के प्रवेशद्वार का गोपुरम 38.4 मी. ऊंचा है। यह मंदिर लगभग 6 हेक्टेयर में बना हुआ है।मंदिर में विशालाक्षी जी के गर्भ-गृह के निकट ही नौ ज्योतिर्लिंग हैं, जो लंकापति विभीषण द्वारा स्थापित बताए जाते हैं। रामनाथ के मंदिर में जो ताम्रपट है, उनसे पता चलता है कि श्रीलंका के राजा पराक्रम बाहु ने मूल लिंग वाले गर्भगृह का निर्माण करवाया था। उस मंदिर में अकेले शिवलिंग की स्थापना की गई थी। देवी की मूर्ति नहीं रखी गई थी, इस कारण वह नि:संगेश्वर का मंदिर कहलाया। यही मूल मंदिर आगे चलकर वर्तमान दशा को पहुंचा है।
4-रामेश्वरम् का मंदिर भारतीय निर्माण-कला और शिल्पकला का एक सुंदर नमूना है।प्राकार में और मंदिर के अंदर सैकड़ौ विशाल खंभें है, जो देखने में एक-जैसे लगते है ; परंतु पास जाकर जरा बारीकी से देखा जाय तो मालूम होगा कि हर खंभे पर बेल-बूटे की अलग-अलग कारीगरी है।रामनाथ की मूर्ति के चारों और परिक्रमा करने के लिए तीन प्राकार बने हुए है। इनमें तीसरा प्राकार सौ साल पहले पूरा हुआ। इस प्राकार की लंबाई चार सौ फुट से अधिक है।दोनों और पांच फुट ऊंचा और करीब आठ फुट चौड़ा चबूतरा बना हुआ है। चबूतरों के एक ओर पत्थर के बड़े-बड़े खंभो की लम्बी कतारे खड़ी है। प्राकार के एक सिरे पर खडे होकर देखने पर ऐसा लगता है मानो सैकड़ों तोरण-द्वार का स्वागत करने के लिए बनाए गये है। इन खंभों की अद्भुत कारीगरी देखकर विदेशी भी दंग रह जाते है। यहां के मंदिर के तीसरे प्राकार का गलियारा विश्व का सबसे लंबा गलियारा है।
5-रामनाथ के मंदिर के चारों और दूर तक कोई पहाड़ नहीं है, जहां से पत्थर आसानी से लाये जा सकें। गंधमादन पर्वत तो नाममात्र का है। यह वास्तव में एक टीला है और उसमें से एक विशाल मंदिर के लिए जरूरी पत्थर नहीं निकल सकते। रामेश्वरम् के मंदिर में जो कई लाख टन के पत्थर लगे है, वे सब बहुत दूर-दूर से नावों में लादकर लाये गये है। रामनाथ जी के मंदिर के भीतरी भाग में एक तरह का चिकना काला पत्थर लगा है। कहते है, ये सब पत्थर लंका से लाये गये थे।रामेश्वरम् के विशाल मंदिर को बनवाने और उसकी रक्षा करने में रामनाथपुरम् नामक छोटी रियासत के राजाओं का बड़ा हाथ रहा। अब तो यह रियासत तमिल नाडु राज्य में मिल गई हैं। रामनाथपुरम् के राजभवन में एक पुराना काला पत्थर रखा हुआ है। कहा जाता है, यह पत्थर राम ने केवटराज को राजतिलक के समय उसके चिह्न के रूप में दिया था। रामेश्वरम् की यात्रा करने वाले लोग इस काले पत्थर को देखने के लिए रामनाथपुरम् जाते है। रामनाथपुरम् रामेश्वरम् से लगभग तैंतीस मील दूर है।
6- पौराणिक संदर्भ ...रामेश्वरम् के विख्यात मंदिर की स्थापना के बारें में यह कथा कही जाती है कि सीताजी को छुड़ाने के लिए राम ने लंका पर चढ़ाई की थी। उन्होने युद्ध के बिना सीताजी को छुड़वाने का बहुत प्रयत्न किया, पर जब रावण के न मानने पर विवश होकर उन्होने युद्ध किया। इस युद्ध हेतु राम को वानर सेना सहित सागर पार करना था, जो अत्यधिक कठिन कार्य था। तब श्री राम ने, युद्ध कार्य में सफलता ओर विजय के पश्र्चात कृतज्ञता हेतु उनके आराध्य भगवान शिव की आराधना के लिए समुद्र किनारे की रेत से शिवलिंग का अपने हाथों से निर्माण किया, तभी भगवान शिव सव्यम् ज्योति स्वरुप प्रकट हुए और उन्होंने इस लिंग को श्री रामेश्वरम की उपमा दी। इस युद्ध में रावण के साथ, उसका पुरा राक्षस वंश समाप्त हो गया और अन्ततः सीताजी को मुक्त कराकर श्रीराम वापस लौटे।रावण भी साधारण राक्षस नहीं था। वह महर्षि पुलस्त्य का वंशज ,वेदों का ज्ञानी और शिवजी का बड़ा भक्त भी था। श्रीराम को उसे मारने के बाद बड़ा खेद हुआ। ब्रह्मा-हत्या के पाप प्रायस्चित के लिए श्री राम ने युुद्ध विजय पश्र्चात भी यहां रामेश्वरम् जाकर पूजन किया।शिवलिंग की स्थापना करने के पश्र्चात, इस लिंंग को काशी विश्वनाथ के समान मान्यता देनेे हेतु, उन्होंनेे हनुमानजी को काशी से एक शिवलिंग लाने कहा।हनुमान पवन-सुत थे। बड़े वेग से आकाश मार्ग से चल पड़े और शिवलिंग लेे आए। यह देखकर राम बहुत प्रसन्न हुए और रामेश्वर ज्योतिलििंंग के साथ काशी के लिंंग की भी स्थापना कर दी। छोटे आकार का यही शिवलिंग रामनाथ स्वामी भी कहलाता है। ये दोनों शिवलिंग इस तीर्थ के मुख्य मंदिर में आज भी पूजित हैं। यही मुख्य शिवलिंग ज्योतिर्लिंग है।
मंदिर परिसर के अन्य मंदिर;-
03 FACTS;-
1-22 बाईस कुण्ड तिर्थम्;-
रामनाथ के मंदिर के अंदर और परिसर में अनेक पवित्र तीर्थ है। ‘कोटि तीर्थ’ जैसे एक दो तालाब भी है। रामनाथ स्वामी मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां स्थित अग्नि तीर्थम में जो भी श्रद्धालु स्नान करते है उनके सारे पाप धुल जाते हैं। इस तीर्थम से निकलने वाले पानी को चमत्कारिक गुणों से युक्त माना जाता है। यह 274 पादल पत्र स्थलम् में से एक है, जहाँ तीनो श्रद्धेय नारायण अप्पर, सुन्दरर और तिरुग्नना सम्बंदर ने अपने गीतों से मंदिर को जागृत किया था। जो शैव, वैष्णव और समर्थ लोगो के लिए एक पवित्र तीर्थस्थल माना जाता है। भारत के तमिलनाडु राज्य के रामेश्वरम द्वीप पर और इसके आस-पास कुल मिलाकर 64 तीर्थ है। स्कंद पुराण के अनुसार, इनमे से 24 ही महत्वपूर्ण तीर्थ है। इनमे से 22 तीर्थ तो केवल रामानाथस्वामी मंदिर के भीतर ही है। 22 संख्या को भगवान की 22 तीर तरकशो के समान माना गया है। मंदिर के पहले और सबसे मुख्य तीर्थ को अग्नि तीर्थं नाम दिया गया है। इन तीर्थो में स्नान करना बड़ा फलदायक पाप-निवारक समझा जाता है। जिसमें श्रद्धालु पूजा से पहले स्नान करते हैं। हालांकि ऐसा करना अनिवार्य नहीं है।रामेश्वरम के इन तीर्थो में नहाना काफी शुभ माना जाता है और इन तीर्थो को भी प्राचीन समय से काफी प्रसिद्ध माना गया है। वैज्ञानिक का कहना है कि इन तीर्थो में अलग-अलग धातुएं मिली हुई है। इस कारण उनमें नहाने से शरीर के रोग दूर हो जाते है और नई ताकत आ जाती है।
2-देवी मंदिर;-
रामेश्वर के मंदिर में जिस प्रकार शिवजी की दो मूर्तियां है, उसी प्रकार देवी पार्वती की भी मूर्तियां अलग-अलग स्थापित की गई है। देवी की एक मूर्ति पर्वतवर्द्धिनी कहलाती है, दूसरी विशालाक्षी। मंदिर के पूर्व द्वार के बाहर हनुमान की एक विशाल मूर्ति अलग मंदिर में स्थापित है।
3-सेतु माधव;-
रामेश्वरम् का मंदिर है तो शिवजी का, परन्तु उसके अंदर कई अन्य मंदिर भी है। सेतुमाधव का कहलाने वाले भगवान विष्णु का मंदिर इनमें प्रमुख है।
रामेश्वरम् शहर के अन्य मंदिर;-
13 FACTS;-
1-गंधमादन पर्वत;-
रामेश्वरम् शहर से करीब डेढ़ मील उत्तर-पूर्व में गंधमादन पर्वत नाम की एक छोटी-सी पहाड़ी है। हनुमानजी ने इसी पर्वत से समुद्र को लांघने के लिए छलांग मारी थी। बाद में राम ने लंका पर चढ़ाई करने के लिए यहीं पर विशाल सेना संगठित की थी। इस पर्वत पर एक सुंदर मंदिर बना हुआ है, जहां श्रीराम के चरण-चिन्हों की पूजा की जाती है। दो मंजिला इस विशाल मंदिर में रखे चक्र पर भगवान राम के पैर अंकित हैं। इस पर्वत के बारे में ऐसा कहा जाता है कि लक्ष्मण के जीवन को बचाने के लिए राम ने हनुमान को औषधीय जड़ी-बूटियां लाने के लिए भेजा था। हनुमान ने तब पर्वत को लाकर इस स्थान पर ही रखा था।
2-लक्ष्मण तीर्थम;–
लक्ष्मण तीर्थ का निर्माण भगवान राम के भाई, भगवान लक्ष्मण की प्रेममयी स्मृति में किया गया था। भगवान लक्ष्मण को समर्पित इस मंदिर का निर्माण रामेश्वरम में ही किया गया है। भगवान लक्ष्मण की कई अद्भुत मूर्तियों को संगमरमर से उकेरा गया है और मंदिर में भगवान राम और देवी सीता की मूर्ति भी है जो उनके बीच मौजूद एकता की भावना को दर्शाती हैं।
3-जटायु तीर्थम ;–
अपनी तरह के एकमात्र मंदिरों में से एक, जटायु तीर्थम मंदिर रामायण के महाकाव्य में एक पौराणिक व्यक्ति भगवान जटाउ को समर्पित है। किंवदंतियों के अनुसार, जटायु को राक्षस-राजा रावण ने मार डाला था, जब उसने उसे देवी सीता का अपहरण करने से रोकने की कोशिश की थी। मंदिर उनकी बहादुरी और भगवान राम के प्रति उनकी भक्ति को समर्पित है। जटायु तीर्थम मुख्य शहर से 6 किमी दूर है, जिसे स्थानीय परिवहन द्वारा कवर किया जा सकता है।
4-कावेरी और जड़ तीर्थम ;–
एक जगह भगवान कपार्डिकेश्वर औररामेश्वरम की स्वर्गीय भूमि पर लगभग 64 तीर्थ हैं, जो द्वीप पर और उसके आसपास स्थित हो सकते हैं। इन तीर्थों का वर्णन प्राचीन हिंदू भाषा देवनागरी में लिखे गए ग्रंथों में मिलता है। उनमें से अधिकांश रामायण के दिव्य पदार्थ से जुड़े हुए हैं।मंदिर, जिसमें भगवान राम और भगवान हनुमान की मूर्ति है, दुनिया भर से आगंतुकों को आकर्षित करती है। इसके अलावा, भगवान शिव की एक मूर्ति को अलग रखा जाता है और उसकी पूजा की जाती है।पवित्र तालाब के पास स्थित भगवान कपार्डीश्वर का एक पास का मंदिर भी है । सभी देवताओं का प्रतिनिधित्व करने वाला एक पीपल का पेड़ भी है ।
5-पंच- मुखी हनुमान मंदिर:-
भगवान हनुमान, भगवान आदिवराह, भगवान नरसिंह, भगवान हयग्रीव और भगवान गरुड़ पांच चेहरे हैं जिन्हें भगवान हनुमान ने पवित्र स्थल पर प्रकट किया था, जहां वर्तमान में मंदिर है।मंदिर का एक अन्य आकर्षण तैरता हुआ पत्थर है जिसका उपयोग अस्थायी सेतु बंधनम के निर्माण के लिए लंका पहुंचने के लिए किया जाता है।रामनाथस्वामी मंदिर में आने वाले अधिकांश आगंतुक पंचमुखी हनुमान मंदिर भी जाते हैं, जो लगभग दो किलोमीटर दूर है। मंदिर का स्थान एक बहुत ही पवित्र मंदिर माना जाता है और यह अपने पौराणिक महत्व के कारण प्रसिद्ध है।पंचमुखी मंदिर भगवान राम की पांच मुखी प्रतिमा रखने के लिए प्रसिद्ध है। किसी भी ‘बाल ब्रह्मचारी’ के लिए स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। मूर्ति पूरी तरह से एक बड़े सें थूरम पत्थर से खुदी हुई है।प्राचीन काल में पत्थर को सोने से भी ज्यादा कीमती माना जाता था।
6-‘एकांत’ राम का मंदिर ;-
तंगचिडम स्टेशन के पास एक जीर्ण मंदिर है। उसे ‘एकांत’ राम का मंदिर कहते है। इस मंदिर के अब जीर्ण-शीर्ण अवशेष ही बाकी हैं। रामनवमी के पर्व पर यहां कुछ रौनक रहती है। बाकी दिनों में बिलकुल सूना रहता है। मंदिर के अंदर श्रीराम, लक्ष्मण, हनुमान और सीता की बहुत ही सुंदर मूर्तिया है। धुर्नधारी राम की एक मूर्ति ऐसी बनाई गई है, मानो वह हाथ मिलाते हुए कोई गंभीर बात कर रहे हो। दूसरी मूर्ति में राम सीताजी की ओर देखकर मंद मुस्कान के साथ कुछ कह रहे है। ये दोनों मूर्तियां बड़ी मनोरम है। यहां सागर में लहरें बिल्कुल नहीं आतीं, इसलिए एकदम शांत रहता है। शायद इसीलिए इस स्थान का नाम एकांत राम है।
7-कोद्ण्डरामास्वामी मंदिर ;-
रामेश्वरम् के टापू के दक्षिण भाग में, समुद्र के किनारे, एक और दर्शनीय मंदिर है।मंदिर हिंद महासागर से घिरा हुआ है। यह मंदिर रमानाथ मंदिर से पांच मील दूर पर बना है। यह कोदंड ‘स्वामी का मंदिर’ कहलाता है। कहा जाता है कि विभीषण ने यहीं पर राम की शरण ली थी। रावण-वध के बाद राम ने इसी स्थान पर विभीषण का राजतिलक कराया था। इस मंदिर में राम, सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां के साथ ही विभीषण की भी मूर्ति स्थापित है। यह मंदिर भगवान राम द्वारा अपनी पत्नी देवी सीता को बचाने के लिए राक्षस-राजा रावण के राज्य की ओर की गई कठिन तीर्थयात्रा को समर्पित है।कोठंडारामस्वामी मंदिर भारत के दक्षिणी छोर पर और बंगाल की खाड़ी के पास द्वीप पर स्थित है। कोठंडारामस्वामी मंदिर में आप रामायण का इतिहास और कई कहानियां भी देख सकते हैं।यह एकमात्र मंदिर है जो धनुषकोडी में 1964 के चक्रवात से बच गया था। आप मंदिर में सुबह 6:00 बजे से शाम 7:00 बजे के बीच जा सकते हैं।
8-सीता कुण्ड ;-
रामेश्वरम् को घेरे हुए समुद्र में भी कई विशेष स्थान ऐसे बताये जाते है, जहां स्नान करना पाप-मोचक माना जाता है। रामनाथजी के मंदिर के पूर्वी द्वार के सामने बना हुआ सीताकुंड इनमें मुख्य है। कहा जाता है कि यही वह स्थान है, जहां सीताजी ने अपना सतीत्व सिद्व करने के लिए आग में प्रवेश किया था। सीताजी के ऐसा करते ही आग बुझ गई और अग्नि-कुंड से जल उमड़ आया। वही स्थान अब ‘सीताकुंड’ कहलाता है। यहां पर समुद्र का किनारा आधा गोलाकार है। सागर एकदम शांत है। उसमें लहरें बहुत कम उठती है। इस कारण देखने में वह एक तालाब-सा लगता है। यहां पर बिना किसी खतरें के स्नान किया जा सकता है। यहीं हनुमान कुंड में तैरते हुए पत्थर भी दिखाई देते हैं।
9-आदि-सेतु ;-
रामेश्वरम् से सात मील दक्षिण में एक स्थान है, जिसे ‘दर्भशयनम्’ कहते है; यहीं पर राम ने पहले समुद्र में सेतु बांधना शुरू किया था। इस कारण यह स्थान आदि सेतु भी कहलाता है।
10-रामसेतु;-
रामेश्वरम् हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा हुआ एक सुंदर शंख आकार द्वीप है। यहां भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व पत्थरों के सेतु का निर्माण करवाया था। भगवान राम ने पहले सागर से प्रार्थना की, कार्य सिद्ध ना होने पर धनुष चढ़ाया, तो सागरदेव ने प्रकट होकर मार्ग दीया।इस लिए सागर एकदम शांत है। उसमें लहरें बहुत कम उठती है। इस कारण देखने में वह एक तालाब-सा लगता है। जिसपर चढ़कर वानर सेना लंका पहुंची व वहां विजय पाई। यहां पर बिना किसी खतरें के स्नान किया जा सकता है। यहीं हनुमान कुंड में तैरते हुए पत्थर भी दिखाई देते हैं। बाद में श्री राम ने विभीषण के अनुरोध पर धनुषकोटि नामक स्थान पर यह सेतु तोड़ दिया था। आज भी इस 30 मील ( 48कि.मी) लंबे आदि-सेतु के अवशेष सागर में दिखाई देते हैं।रामेश्वर के समुद्र में तरह-तरह की कोड़ियां, शंख और सीपें मिलती है। कहीं-कहीं सफेद रंग का बड़ियास मूंगा भी मिलता है।
11-धनुषकोडी मंदिर
वास्तुकला के सबसे अच्छी तरह से संरक्षित प्राचीन टुकड़ों में से एक और कई लोगों के लिए पूजा की जगह, धनुषकोडी मंदिर को 1964 में रामेश्वरम में आए एक चक्रवात के दौरान बहुत नुकसान हुआ था। मंदिर आज अपने पूर्व गौरव के बजाय केवल खंडहर के रूप में खड़ा है, लेकिन अभी भी है सबसे पवित्र और सबसे लोकप्रिय रामेश्वरम पर्यटन स्थलों में से एक। आप सड़क मार्ग से 16 किमी की दूरी तय करने के लिए रामेश्वरम से धनुषकोडी के लिए रिक्शा ले सकते हैं या टैक्सी किराए पर ले सकते हैं। धनुषकोडी मंदिर पहुंचने का समय सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे के बीच है
12-विल्लूरणि तीर्थ;-
रामेश्वरम् के मंदिर के बाहर भी दूर-दूर तक कई तीर्थ है। प्रत्येक तीर्थ के बारें में अलग-अलग कथाएं है। यहां से करीब तीन मील पूर्व में एक गांव है, जिसका नाम तंगचिमडम है।यह गांव रेल मार्ग के किनारे हो बसा है। वहां स्टेशन के पास समुद्र में एक तीर्थकुंड है, जो विल्लूरणि तीर्थ कहलाता है।समुद्र के खारे पानी बीच में से मीठा जल निकलता है, यह बड़े ही अचंभे की बात है। कहा जाता है कि एक बार सीताजी को बड़ी प्यास लगी। पास में समुद्र को छोड़कर और कहीं पानी न था, इसलिए राम ने अपने धनुष की नोक से यह कुंड खोदा था।विल्लूरणि तीर्थ एक ऐसा स्थान है जो धार्मिक रूप से पवित्र और प्राकृतिक रूप से सुंदर है । ऐसा माना जाता है कि भूमि में झरने का निर्माण तब हुआ था जब भगवान राम ने नगरवासियों के लिए पीने योग्य पानी उपलब्ध कराने के लिए जमीन में एक तीर चलाया था।
13-अरियामन बीच;-
एक और स्थान ..भव्य सफेद रेत समुद्र तट हिंद महासागर के तट पर फैला हैअरियामन बीच। आप अपना समय समुद्र तट पर विभिन्न जल-क्रीड़ा गतिविधियों का आनंद लेने में बिता सकते हैं या समुद्र के आश्चर्यजनक दृश्यों का आनंद लेने के लिए नौका विहार कर सकते हैं। रामेश्वरम शहर से 21 किमी की दूरी पर स्थित, आप सुबह 6:00 बजे से शाम 6:00 बजे के बीच समुद्र तट पर जा सकते हैं ।आप 60 रुपये के शुल्क पर नाव की सवारी का भी आनंद ले सकते हैं।
आप रामेश्वरम कैसे पहुंच सकते हैं?-
मदुरै हवाई अड्डा रामेश्वरम का निकटतम हवाई अड्डा है, जो मुख्य शहर से लगभग 149 किमी दूर स्थित है। हवाई अड्डा प्रमुख राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। आप मदुरै से बस, कैब या किराए की टैक्सियों से रामेश्वरम पहुँच सकते हैं। रामेश्वरम रेल के माध्यम से रेल लिंक के माध्यम से मुख्य भूमि से जुड़ा हुआ है। यह चेन्नई, मदुरै और तिरुवनंतपुरम जैसे दक्षिण-भारतीय शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। रामेश्वरम पहुंचने का यह सबसे किफायती तरीका है।रामेश्वरम सड़क मार्ग से दक्षिण भारत के प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है जिसे बस या कैब द्वारा कवर किया जा सकता है।
रामेश्वरम कब जाएं?-
रामेश्वरम में गर्मियां गर्म और आर्द्र होती हैं। इसके बाद, मानसून के मौसम में भी शहर में भारी बारिश का सामना करना पड़ता है। इसलिए, रामेश्वरम में घूमने के लिए सबसे अच्छा मौसम सर्दी है। रामेश्वरम घूमने के लिए सबसे अच्छे महीने नवंबर से फरवरी तक हैं।
...SHIVOHAM....
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