रुद्राभिषेक कितने प्रकार का होता है? रुद्राष्टाध्यायी क्या है?PART-02
रुद्राष्टाध्यायी – पाँचवाँ अध्याय (Rudrashtadhyayi Path 5)
(रुद्रसूक्तम् / नीलसूक्तम् /Rudra Suktam/ Nila Suktam
हरिः
नमस्ते रुद्र मन्यव उतो त इषवे नमः ।
बाहुभ्यामुत ते नमः ॥ १ ॥
दु:ख दूर करने वाले (अथवा ज्ञान प्रदान करने वाले) हे रुद्र ! आपके क्रोध के लिए नमस्कार है, आपके बाणों के लिए नमस्कार है और आपकी दोनों भुजाओं के लिए नमस्कार है।
या ते रुद्र शिवा तनूरघोराऽपापकाशिनी ।
तया नस्तन्वा शन्तमया गिरिशन्ताभि चाकशीहि ॥ २॥
कैलास पर रहकर संसार का कल्याण करने वाले (अथवा वाणी में स्थित होकर लोगों को सुख देने वाले या मेघ में स्थित होकर वृष्टि के द्वारा लोगों को सुख देने वाले) हे रुद्र ! आपका जो मंगलदायक, सौम्य, केवल पुण्यप्रकाशक शरीर है, उस अनन्त सुखकारक शरीर से हमारी रक्षा कीजिए।
यामिषुं गिरिशन्त हस्ते बिभर्ष्यस्तवे ।
शिवां गिरित्र तां कुरु मा हिꣳसीः पुरुषं जगत् ॥ ३॥
कैलास पर रहकर संसार का कल्याण करने वाले तथा मेघों में स्थित होकर वृष्टि के द्वारा जगत की रक्षा करने वाले हे सर्वज्ञ रुद्र ! शत्रुओं का नाश करने के लिए जिस बाण को आप अपने हाथ में धारण करते हैं वह कल्याणकारक हो और आप मेरे पुत्र-पौत्र तथा गो, अश्व आदि का नाश मत कीजिए।
शिवेन वचसा त्वा गिरिशाऽच्छावदामसि ।
यथा नः सर्वमिज्जगदयक्ष्मꣳ सुमना असत् ॥ ४॥
हे कैलास पर शयन करने वाले ! आपको प्राप्त करने के लिए हम मंगलमय वचन से आपकी स्तुति करते हैं। हमारे समस्त पुत्र-पौत्र तथा पशु आदि जैसे भी नीरोग तथा निर्मल मन वाले हों, वैसा आप करें।
अध्यवोचदधिवक्ता प्रथमो दैव्यो भिषक् ।
अहीꣳश्च सर्वाञ्जम्भयन्त्सर्वाश्च यातुधान्योऽधराचीः परासुव ॥ ५॥
अत्यधिक वन्दनशील, समस्त देवताओं में मुख्य, देवगणों के हितकारी तथा रोगों का नाश करने वाले रुद्र मुझसे सबसे अधिक बोलें, जिससे मैं सर्वश्रेष्ठ हो जाऊँ। हे रुद्र ! समस्त सर्प, व्याघ्र आदि हिंसकों का नाश करते हुए आप अधोगमन कराने वाली राक्षसियों को हमसे दूर कर दें।
असौ यस्ताम्रो अरुण उत बभ्रुः सुमङ्गलः ।
ये चैनꣳ रुद्रा अभितो दिक्षु श्रिताः सहस्रशोऽवैषाꣳ हेड ईमहे ॥ ६॥
उदय के समय ताम्रवर्ण (अत्यन्त रक्त), अस्तकाल में अरुणवर्ण (रक्त), अन्य समय में वभ्रु (पिंगल) – वर्ण तथा शुभ मंगलों वाला जो यह सूर्यरूप है, वह रुद्र ही है। किरणरूप में ये जो हजारों रुद्र इन आदित्य के सभी ओर स्थित हैं, इनके क्रोध का हम अपनी भक्तिमय उपासना से निवारण करते हैं।
असौ योऽवसर्पति नीलग्रीवो विलोहितः ।
उतैनं गोपा अदृश्रन्नदृश्रन्नुदहार्यः स दृष्टो मृडयाति नः ॥ ७॥
जिन्हें अज्ञानी गोप तथा जल भरने वाली दासियाँ भी प्रत्यक्ष देख सकती हैं, विष धारण करने से जिनका कण्ठ नीलवर्ण का हो गया है, तथापि विशेषत: रक्तवर्ण होकर जो सर्वदा उदय और अस्त को प्राप्त होकर गमन करते हैं, वे रविमण्डल स्थित रुद्र हमें सुखी कर दें।
नमोऽस्तु नीलग्रीवाय सहस्राक्षाय मीढुषे ।
विज्यं धनुः कपर्दिनो विशल्यो बाणवाँ२ ॥ उत । नमोऽस्तु नीलग्रीवाय सहस्राक्षाय मीढुषे । भ्योऽकरं नमः ॥ ८॥
नीलकण्ठ, सहस्त्र नेत्र वाले, इन्द्रस्वरुप और वृष्टि करने वाले रुद्र के लिए मेरा नमस्कार है। उस रुद्र के जो भृत्य हैं, उनके लिए भी मैं नमस्कार करता हूँ।
प्रमुञ्च धन्वनस्त्वमुभयोरार्त्न्योर्ज्याम् ।
याश्च ते हस्त इषवः परा ता भगवो वप ॥ ९॥
हे भगवान ! आप धनुष की दोनों कोटियों के मध्य स्थित प्रत्यंचा का त्याग कर दें और अपने हाथ में स्थित बाणों को भी दूर फेंक दें।
विज्यं धनुः कपर्दिनो विशल्यो बाणवाँ२ ॥ उत ।
अनेशन्नस्य या इषव आभुरस्य निषङ्गधिः ॥ १०॥
जटाजूट धारण करने वाले रुद्र का धनुष प्रत्यंचा रहित रहे, तूणीर में स्थित बाणों के नोंकदार अग्रभाग नष्ट हो जाएँ, इन रुद्र के जो बाण हैं, वे भी नष्ट हो जाएँ तथा इनके खड्ग रखने का कोश भी खड्ग रहित हो जाए अर्थात वे रुद्र हमारे प्रति सर्वथा शस्त्ररहित हो जाएँ।
या ते हेतिर्मीढुष्टम हस्ते बभूव ते धनुः ।
तयास्मान्विश्वतस्त्वमयक्ष्मया परिभुज ॥ ११॥
अत्यधिक वृष्टि करने वाले हे रुद्र ! आपके हाथ में जो धनुषरूप आयुध है, उस सुदृढ़ तथा अनुपद्रवकारी धनुष से हमारी सब ओर से रक्षा कीजिए। हे रुद्र ! आपका धनुषरूप आयुध सब ओर से हमारा त्याग करे अर्थात हमें न मारे और आपका जो बाणों से भरा तरकश है, उसे हमसे दूर रखिए।
परि ते धन्वनो हेतिरस्मान्वृणक्तु विश्वतः ।
अथो य इषुधिस्तवारे अस्मन्निधेहि तम् ॥ १२॥
सौ तूणीर और सहस्त्र नेत्र धारण करने वाले हे रुद्र ! धनुष की प्रत्यंचा दूर करके और बाणों के अग्र भागों को तोड़कर आप हमारे प्रति शान्त और शुद्ध मन वाले हो जाएँ। हे रुद्र ! शत्रुओं को मारने में प्रगल्भ और धनुष पर न चढ़ाए गये आपके बाण के लिए हमारा प्रणाम है। आपकी दोनों बाहुओं और धनुष के लिए भी हमारा प्रणाम है।
अवतत्य धनुष्ट्वꣳ सहस्राक्ष शतेषुधे ।
निशीर्य शल्यानां मुखा शिवो नः सुमना भव ॥ १३॥
नमस्त आयुधायानातताय धृष्णवे ।
उभाभ्यामुत ते नमो बाहुभ्यां तव धन्वने ॥ १४॥
मा नो महान्तमुत मा नो अर्भकं मा न उक्षन्तमुत मा न उक्षितम् ।
मा नो वधीः पितरं मोत मातरं मा नः प्रियास्तन्वो रुद्र रीरिषः ॥ १५॥
हे रुद्र ! हमारे गुरु, पितृव्य आदि वृद्धजनों को मत मारिए, हमारे बालक की हिंसा मत कीजिए, हमारे तरुण को मत मारिए, हमारे गर्भस्थ शिशु का नाश मत कीजिए, हमारे माता-पिता को मत मारिए तथा हमारे प्रिय पुत्र-पौत्र आदि की हिंसा मत कीजिए।
मा नस्तोके तनये मा न आयुषि मा नो गोषु मा नो अश्वेषु रीरिषः ।
मा नो वीरान् रुद्र भामिनो वधीर्हविष्मन्तः सदमित्त्वा हवामहे ॥ १६॥
हे रुद्र ! हमारे पुत्र-पौत्र आदि का विनाश मत कीजिए, हमारी आयु को नष्ट मत कीजिए, हमारी गौओं को मत मारिए, हमारे घोड़ों का नाश मत कीजिए, हमारे क्रोधयुक्त वीरों की हिंसा मत कीजिए। हवि से युक्त होकर हम सब सदा आपका आवाहन करते हैं।
नमो हिरण्यबाहवे सेनान्ये दिशां च पतये नमो
नमो वृक्षेभ्यो हरिकेशेभ्यः पशूनां पतये नमो
नमः शष्पिञ्जराय त्विषीमते पथीनां पतये नमो
नमो हरिकेशायोपवीतिने पुष्टानां पतये नमः ॥ १७॥
भुजाओं में सुवर्ण धारण करने वाले सेनानायक रुद्र के लिए नमस्कार है, दिशाओं के रक्षक रुद्र के लिए नमस्कार है, पूर्णरूप हरे केशों वाले वृक्षरूप रुद्रों के लिए नमस्कार है, जीवों का पालन करने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, कान्तिमान बालतृण के समान पीत वर्ण वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, मार्गों के पालक रुद्र के लिए नमस्कार है, नीलवर्ण केश से युक्त तथा मंगल के लिए यज्ञोपवीत धारण करने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, गुणों से परिपूर्ण मनुष्यों के स्वामी रुद्र के लिए नमस्कार है।
नमो बभ्लुशाय व्याधिनेऽन्नानां पतये नमो
नमो भवस्य हेत्यै जगतां पतये नमो
नमो रुद्रायाततायिने क्षेत्राणां पतये नमो
नमः सूतायाहन्त्यै वनानां पतये नमः ॥ १८॥
कपिल (वर्ण वाले अथवा वृषभ पर आरूढ़ होने वाले) तथा शत्रुओं को बेधने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, अन्नों के पालक रुद्र के लिए नमस्कार है, संसार के आयुध रूप (अथवा जगन्निवर्तक) रुद्र के लिए नमस्कार है, जगत का पालन करने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, उद्यत आयुध वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, देहों का पालन करने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, न मारने वाले सारथीरूप रुद्र के लिए नमस्कार है तथा वनों के रक्षक रुद्र के लिए नमस्कार है।
नमो रोहिताय स्थपतये वृक्षाणां पतये नमो
नमो भुवन्तये वारिवस्कृतायौषधीनां पतये नमो
नमो मन्त्रिणे वाणिजाय कक्षाणां पतये नमो
नम उच्चैर्घोषायाक्रन्दयते पत्तीनां पतये नमः ॥ १९॥
लोहित वर्ण वाले तथा गृह आदि के निर्माता विश्वकर्मारूप रुद्र के लिए नमस्कार है, वृक्षों के पालक रुद्र के लिए नमस्कार है, भुवन का विस्तार करने वाले तथा समृद्धिकारक रुद्र के लिए नमस्कार है, वन के लता वृक्ष आदि के पालक रुद्र के लिए नमस्कार है, युद्ध में उग्र शब्द करने वाले तथा शत्रुओं को रुलाने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, (हाथी, घोड़ा, रथ, पैदल आदि) सेनाओं के पालक रुद्र के लिए नमस्कार है।
नमः कृत्स्नायतया धावते सत्वनां पतये नमो
नमः सहमानाय निव्याधिन आव्याधिनीनां पतये नमो
नमो निषङ्गिणे ककुभाय स्तेनानां पतये नमो
नमो निचेरवे परिचरायारण्यानां पतये नमः ॥ २०॥
कर्णपर्यन्त प्रत्यंचा खींचकर युद्ध में शीघ्रतापूर्वक दौड़ने वाले (अथवा सम्पूर्ण लाभ की प्राप्ति कराने वाले) रुद्र के लिए नमस्कार है, शरणागत प्राणियों के पालक रुद्र के लिए नमस्कार है, शत्रुओं का तिरस्कार करने वाले तथा शत्रुओं को बेधने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, सब प्रकार से प्रहार करने वाली शूर सेनाओं के रक्षक रुद्र के लिए नमस्कार है, खड्ग चलाने वाले महान रुद्र के लिए नमस्कार है, गुप्त चोरों के रक्षक रुद्र के लिए नमस्कार है, अपहार की बुद्धि से निरन्तर गतिशील तथा हरण की इच्छा से आपण (बाजार) – वाटिका आदि में विचरण करने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है तथा वनों के पालक रुद्र के लिए नमस्कार है।
नमो वञ्चते परिवञ्चते स्तायूनां पतये नमो
नमो निषङ्गिण इषुधिमते तस्कराणां पतये नमो
नमः सृकायिभ्यो जिघाꣳसद्भ्यो मुष्णतां पतये नमो
नमोऽसिमद्भ्यो नक्तञ्चरद्भ्यो विकृन्तानां पतये नमः ॥ २१॥
वंचना करने वाले तथा अपने स्वामी को विश्वास दिलाकर धन हरण करके उसे ठगने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, गुप्त धन चुराने वालों के पालक रुद्र के लिए नमस्कार है, बाण तथा तूणीर धारण करने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, प्रकटरूप में चोरी करने वालों के पालक रुद्र के लिए नमस्कार है, वज्र धारण करने वाले तथा शत्रुओं को मारने की इच्छा वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, खेतों में धान्य आदि चुराने वालों के रक्षक रुद्र के लिए नमस्कार है, प्राणियों पर घात करने के लिए खड्ग धारण कर रात्रि में विचरण करने वाले रुद्रों के लिए नमस्कार है तथा दूसरों को काटकर उनका धन हरण करने वालों के पालक रुद्र के लिए नमस्कार है।
नम उष्णीषिणे गिरिचराय कुलुञ्चानां पतये नमो
नम इषुमद्भ्यो धन्वायिभ्यश्च वो नमो
नम आतन्वानेभ्यः प्रतिदधानेभ्यश्च वो नमो
नम आयच्छद्भ्योऽस्यद्भ्यश्च वो नमः ॥ २२॥
सिर पर पगड़ी धारण करके पर्वतादि दुर्गम स्थानों में विचरने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, छलपूर्वक दूसरो के क्षेत्र, गृह आदि का हरण करने वालों के पालक रुद्ररूप के लिए नमस्कार है, लोगों को भयभीत करने के लिए बाण धारण करने वाले रुद्रों के लिए नमस्कार है, धनुष धारण करने वाले आप रुद्रों के लिए नमस्कार है, धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने वाले रुद्रों के लिए नमस्कार है, धनुष पर बाण का संधान करने वाले आप रुद्रों के लिए नमस्कार है, धनुष को भली-भाँति खींचने वाले रुद्रों के लिए नमस्कार है, बाणों को सम्यक् छोड़ने वाले आप रुद्रों के लिए नमस्कार है।
नमो विसृजद्भ्यो विध्यद्भ्यश्च वो नमो
नमः स्वपद्भ्यो जाग्रद्भ्यश्च वो नमो
नमः शयानेभ्य आसीनेभ्यश्च वो नमो
नमस्तिष्ठद्भ्यो धावद्भ्यश्च वो नमः ॥ २३॥
पापियों के दमन के लिए बाण चलाने वाले रुद्रों के लिए नमस्कार है, शत्रुओं को बेधने वाले आप रुद्रों के लिए नमस्कार है, स्वप्नावस्था का अनुभव करने वाले रुद्रों के लिए नमस्कार है, जाग्रत अवस्था वाले आप रुद्रों के लिए नमस्कार है, सुषुप्ति अवस्था वाले रुद्रों के लिए नमस्कार है, बैठे हुए आप रुद्रों के लिए नमस्कार है, स्थित रहने वाले रुद्रों के लिए नमस्कार है, स्थित रहने वाले रुद्रों के लिए नमस्कार है, वेगवान गति वाले आप रुद्रों के लिए नमस्कार है।
नमः सभाभ्यः सभापतिभ्यश्च वो नमो
नमोऽश्वेभ्योऽश्वपतिभ्यश्च वो नमो
नम आव्याधिनीभ्यो विविध्यन्तीभ्यश्च वो नमो
नम उगणाभ्यस्तृꣳहतीभ्यश्च वो नमः ॥ २४॥
सभारूप रुद्रों के लिए नमस्कार है, सभापतिरूप आप रुद्रों के लिए नमस्कार है, अश्वरूप रुद्रों के लिए नमस्कार है, अश्वपतिरूप आप रुद्रों के लिए नमस्कार है, सब प्रकार से बेधन करने वाले देवसेनारूप रुद्रों के लिए नमस्कार है, विशेषरूप से बेधन करने वाले देवसेनारूप आप रुद्रों के लिए नमस्कार है, उत्कृष्ट भृत्यसमूहों वाली ब्राह्मी आदि मातास्वरुप रुद्रों के लिए नमस्कार है और मारने में समर्थ दुर्गा आदि मातास्वरुप आप रुद्रों के लिए नमस्कार है।
नमो गणेभ्यो गणपतिभ्यश्च वो नमो
नमो व्रातेभ्यो व्रातपतिभ्यश्च वो नमो
नमो गृत्सेभ्यो गृत्सपतिभ्यश्च वो नमो
नमो विरूपेभ्यो विश्वरूपेभ्यश्च वो नमः ॥ २५॥
देवानुचर भूतगणरूप रुद्रों के लिए नमस्कार है, भूतगणों के अधिपतिरूप आप रुद्रों के लिए नमस्कार है, भिन्न-भिन्न जातिसमूहरूप रुद्रों के लिए नमस्कार है, विभिन्न जातिसमूहों के अधिपतिरूप आप रुद्रों के लिए नमस्कार है, मेधावी ब्रह्मजिज्ञासुरूप रुद्रों के लिए नमस्कार है, मेधावी ब्रह्मजिज्ञासुओं के अधिपतिरूप आप रुद्रों के लिए नमस्कार है, निकृष्ट रूपवाले रुद्रों के लिए नमस्कार है, नानाविध रूपों वाले विश्वरूप आप रुद्रों के लिए नमस्कार है।
नमः सेनाभ्यः सेनानिभ्यश्च वो नमो
नमो रथिभ्यो अरथेभ्यश्च वो नमो
नमः क्षत्तृभ्यः संग्रहीतृभ्यश्च वो नमो
नमो महद्भ्यो अर्भकेभ्यश्च वो नमः ॥ २६॥
सेनारूप रुद्रों के लिए नमस्कार है, सेनापतिरूप आप रुद्रों के लिए नमस्कार है, रथीरूप रुद्रों के लिए नमस्कार है, रथविहीन आप रुद्रों के लिए नमस्कार है, रथों के अधिष्ठातारूप रुद्रों के लिए नमस्कार है, सारथिरूप आप रुद्रों के लिए नमस्कार है, जाति तथा विद्या आदि से उत्कृष्ट प्राणिरूप रुद्रों के लिए नमस्कार है, प्रमाण आदि से अल्परूप रुद्रों के लिए नमस्कार है।
नमस्तक्षभ्यो रथकारेभ्यश्च वो नमो
नमः कुलालेभ्यः कर्मारेभ्यश्च वो नमो
नमो निषादेभ्यः पुञ्जिष्टेभ्यश्च वो नमो
नमः श्वनिभ्यो मृगयुभ्यश्च वो नमः ॥ २७॥
शिल्पकाररूप रुद्रों के लिए नमस्कार है, रथनिर्मातारूप आप रुद्रों के लिए नमस्कार है, कुम्भकाररूप रुद्रों के लिए नमस्कार है, लौहकाररूप आप रुद्रों के लिए नमस्कार है, वन-पर्वतादि में विचरने वाले निषादरूप रुद्रों के लिए नमस्कार है, पक्षियों को मारने वाले पुल्कसादिरूप आप रुद्रों के लिए नमस्कार है, श्वानों के गले में बँधी रस्सी धारण करने वाले रुद्ररूपों के लिए नमस्कार है और मृगों की कामना करने वाले व्याधरूप आप रुद्रों के लिए नमस्कार है।
नमः श्वभ्यः श्वपतिभ्यश्च वो नमो
नमो भवाय च रुद्राय च
नमः शर्वाय च पशुपतये च
नमो नीलग्रीवाय च शितिकण्ठाय च ॥ २८॥
श्वानरूप रुद्रों के लिए नमस्कार है, श्वानों के स्वामीरूप आप रुद्रों के लिए नमस्कार है, प्राणियों के उत्पत्तिकर्त्ता रुद्र के लिए नमस्कार है, दु:खों के विनाशक रुद्र के लिए नमस्कार है, पापों का नाश करने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, पशुओं के रक्षक रुद्र के लिए नमस्कार है, हलाहनपान के फलस्वरुप नीलवर्ण के कण्ठ वाले रुद्र के लिए नमस्कार है और श्वेत कण्ठ वाले रुद्र के लिए नमस्कार है।
नमः कपर्दिने च व्युप्तकेशाय च
नमः सहस्राक्षाय च शतधन्वने च
नमो गिरिशयाय च शिपिविष्टाय च
नमो मीढुष्टमाय चेषुमते च ॥ २९॥
जटाजूट धारण करने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, मुण्डित केश वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, हजारों नेत्र वाले इन्द्ररूप रुद्र के लिए नमस्कार है, सैकड़ों धनुष धारण करने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, कैलास पर्वत पर शयन करने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, सभी प्राणियों के अन्तर्यामी विष्णुरूप रुद्र के लिए नमस्कार है, अत्यधिक सेचन करने वाले मेघरूप रुद्र के लिए नमस्कार है और बाण धारण करने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है।
नमो ह्रस्वाय च वामनाय च
नमो बृहते च वर्षीयसे च
नमो वृद्धाय च सवृधे च
नमोऽग्र्याय च प्रथमाय च ॥ ३०॥
अल्प देहवाले रुद्र के लिए नमस्कार है, संकुचित अंगो वाले वामनरूप रुद्र के लिए नमस्कार है, बृहत्काय रुद्र के लिए नमस्कार है, अत्यन्त वृद्धावस्था वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, अधिक आयु वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, विद्याविनयादि गुणों से सम्पन्न विद्वानों के साथी रूप रुद्र के लिए नमस्कार है, जगत के आदिभूत रुद्र के लिए नमस्कार है और सर्वत्र मुख्यस्वरूप रुद्र के लिए नमस्कार है।
नम आशवे चाजिराय च
नमः शीघ्र्याय च शीभ्याय च
नम ऊर्म्याय चावस्वन्याय च
नमो नादेयाय च द्वीप्याय च ॥ ३१॥
जगद्व्यापी रुद्र के लिए नमस्कार है, गतिशील रुद्र के लिए नमस्कार है, वेगवाली वस्तुओं में विद्यमान रुद्र के लिए नमस्कार है, जलप्रवाह में विद्यमान आत्मश्लाघी रुद्र के लिए नमस्कार है, जलतरंगों में व्याप्त रुद्र के लिए नमस्कार है, स्थिर जलरूप रुद्र के लिए नमस्कार है, नदियों में व्याप्त रुद्र के लिए नमस्कार है और द्वीपों में व्याप्त रुद्र के लिए नमस्कार है।
नमो ज्येष्ठाय च कनिष्ठाय च
नमः पूर्वजाय चापरजाय च
नमो मध्यमाय चापगल्भाय च
नमो जघन्याय च बुध्न्याय च ॥ ३२॥
अति प्रशस्य ज्येष्ठरूप रुद्र के लिए नमस्कार है, अत्यन्त युवा (अथवा कनिष्ठ) – रूप के लिए नमस्कार है, जगत के आदि में हिरण्यगर्भरूप से प्रादुर्भूत हुए रुद्र के लिए नमस्कार है, प्रलय के समय कालाग्नि के सदृश रूप धारण करने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, सृष्टि और प्रलय के मध्य में देव-नर-तिर्यगादिरूप से उत्पन्न होने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, अव्युत्पन्नेन्द्रिय रुद्र के लिए नमस्कार है अथवा विनीत रुद्र के लिए नमस्कार है, (गाय आदि के) जघन प्रदेश से उत्पन्न होने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है और वृक्षादिकों के मूल में निवास करने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है।
नमः सोभ्याय च प्रतिसर्याय च
नमो याम्याय च क्षेम्याय च
नमः श्लोक्याय चावसान्याय च
नम उर्वर्याय च खल्याय च ॥ ३३॥
गन्धर्व नगर में होने वाले (अथवा पुण्य और पापों से युक्त मनुष्यलोक में उत्पन्न होने वाले) रुद्र के लिए नमस्कार है, प्रत्यभिचार में रहने वाले (अथवा विवाह के समय हस्तसूत्र में उत्पन्न होने वाले) रुद्र के लिए नमस्कार है, पापियों को नरक की वेदना देने वाले यम के अन्तर्यामी रुद्र के लिए नमस्कार है, कुशलकर्म में रहने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, वेद के मन्त्र (अथवा यश) – द्वारा उत्पन्न हुए रुद्र के लिए नमस्कार है, वेदान्त के तात्पर्यविषयीभूत रुद्र के लिए नमस्कार है, सर्व सस्यसम्पन्न पृथ्वी से उत्पन्न होने वाले धान्यरूप रुद्र के लिए नमस्कार है, धान्यविवेचन-देश (खलिहान) – में उत्पन्न हुए रुद्र के लिए नमस्कार है।
नमो वन्याय च कक्ष्याय च
नमः श्रवाय च प्रतिश्रवाय च
नम आशुषेणाय चाशुरथाय च
नमः शूराय चावभेदिने च ॥ ३४॥
वनों में वृक्ष-लतादिरूप रुद्र अथवा वरुणस्वरुप रुद्रों के लिए नमस्कार है, शुष्क तृण अथवा गुल्मों में रहने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, प्रतिध्वनिस्वरुप रुद्र के लिए नमस्कार है, शीघ्रगामी सेना वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, शीघ्रगामी रथ वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, युद्ध में शूरता प्रदर्शित करने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है तथा शत्रुओं को विदीर्ण करने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है।
नमो बिल्मिने च कवचिने च
नमो वर्मिणे च वरूथिने च
नमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च
नमो दुन्दुभ्याय चाहनन्याय च ॥ ३५॥
शिरस्त्राण धारण करने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, कपास-निर्मित देहरक्षक (अंगरखा) धारण करने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, लोहे का बख्तर धारण करने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, गुंबदयुक्त रथ वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, संसार में प्रसिद्ध रुद्र के लिए नमस्कार है, प्रसिद्ध सेनावाले रुद्र के लिए नमस्कार है, दुन्दुभी (भेरी) में विद्यमान रुद्र के लिए नमस्कार है, भेरी आदि वाद्यों को बजाने में प्रयुक्त होने वाले दण्ड आदि में विद्यमान रुद्र के लिए नमस्कार है।
नमो धृष्णवे च प्रमृशाय च
नमो निषङ्गिणे चेषुधिमते च
नमस्तीक्ष्णेषवे चायुधिने च
नमः स्वायुधाय च सुधन्वने च ॥ ३६॥
प्रगल्भ स्वभाव वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, सत-असत का विवेकपूर्वक विचार करने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, खड्ग धारण करने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, तूणीर (तरकश) धारण करने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, तीक्ष्ण बाणों वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, नानाविध आयुधों को धारण करने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, उत्तम त्रिशूलरूप आयुध धारण करने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है और श्रेष्ठ पिनाक धनुष धारण करने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है।
नमः स्रुत्याय च पथ्याय च
नमः काट्याय च नीप्याय च
नमः कुल्याय च सरस्याय च
नमो नादेयाय च वैशन्ताय च ॥ ३७॥
क्षुद्रमार्ग में विद्यमान रहने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, रथ-गज-अश्व आदि के योग्य विस्तृत मार्ग में विद्यमान रहने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, दुर्गम मार्गों में स्थित रहने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, जहाँ झरनों का जल गिरता है, उस भूप्रदेश में उत्पन्न हुए अथवा पर्वतों के अधोभाग में विद्यमान रुद्र के लिए नमस्कार है, नहर के मार्ग में स्थित अथवा शरीरों में अन्तर्यामी रूप से विराजमान रुद्र के लिए नमस्कार है, सरोवर में उत्पन्न होने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, सरितादिकों में विद्यमान जलरूप रुद्र के लिए नमस्कार है, अल्प सरोवर में रहने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है।
नमः कूप्याय चावट्याय च
नमो वीध्र्याय चातप्याय च
नमो मेघ्याय च विद्युत्याय च
नमो वर्ष्याय चावर्ष्याय च ॥ ३८॥
कुपों में विद्यमान रुद्र के लिए नमस्कार है, गर्त स्थानों में रहने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, शरद-ऋतु के बादलों अथवा चन्द्र-नक्षत्रादि-मण्डल में विद्यमान विशुद्ध स्वभाव वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, मेघों में विद्यमान रुद्र के लिए नमस्कार है, विद्युत में होने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, वृष्टि में विद्यमान रुद्र के लिए नमस्कार है तथा अवर्षण में स्थित रुद्र के लिए नमस्कार है।
नमो वात्याय च रेष्म्याय च
नमो वास्तव्याय च वास्तुपाय च
नमः सोमाय च रुद्राय च
नमस्ताम्राय चारुणाय च ॥ ३९॥
वायु में रहने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, प्रलयकाल में विद्यमान रहने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, गृह भूमि में विद्यमान रुद्र के लिए नमस्कार है अथवा सर्वशरीरवासी रुद्र के लिए नमस्कार है, गृहभूमि के रक्षकरूप रुद्र के लिए नमस्कार है, चन्द्रमा में स्थित अथवा ब्रह्मविद्या महाशक्ति उमासहित विराजमान सदाशिव रुद्र के लिए नमस्कार है, सर्वविध अनिष्ट के विनाशक रुद्र के लिए नमस्कार है, उदित होने वाले सूर्य के रूप में ताम्रवर्ण के रुद्र के लिए नमस्कार है और उदय के पश्चात अरुण (कुछ-कुछ रक्त) वर्ण वाले रुद्र के लिए नमस्कार है।
नमः शङ्गवे च पशुपतये च
नम उग्राय च भीमाय च
नमोऽग्रेवधाय च दूरेवधाय च
नमो हन्त्रे च हनीयसे च
नमो वृक्षेभ्यो हरिकेशेभ्यो नमस्ताराय ॥ ४०॥
भक्तों को सुख की प्राप्ति कराने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, जीवों के अधिपतिस्वरुप रुद्र के लिए नमस्कार है, संहार-काल में प्रचण्ड स्वरूप वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, अपने भयानकरूप से शत्रुओं को भयभीत करने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, सामने खड़े होकर वध करने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, दूर स्थित रहकर संहार करने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, हनन करने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, प्रलयकाल में सर्वहन्तारूप रुद्र के लिए नमस्कार है, हरितवर्ण के पत्ररूप केशों वाले कल्पतरुस्वरुप रुद्र के लिए नमस्कार है और ज्ञानोपदेश के द्वारा अधिकारी जनों को तारने वाले रुद्र क
नमः शम्भवाय च मयोभवाय च
नमः शङ्कराय च मयस्कराय च
नमः शिवाय च शिवतराय च ॥ ४१॥
सुख के उत्पत्ति स्थानरूप रुद्र के लिए नमस्कार है, भोग तथा मोक्ष का सुख प्रदान करने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, लौकिक सुख देने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, वेदान्तशास्त्र में होने वाले ब्रह्मात्मैक्य साक्षात्कारस्वरुप रुद्र के लिए नमस्कार है, कल्याणरूप निष्पाप रुद्र के लिए नमस्कार है और अपने भक्तों को भी निष्पाप बनाकर कल्याणरूप कर देने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है।
नमः पार्याय चावार्याय च
नमः प्रतरणाय चोत्तरणाय च
नमस्तीर्थ्याय च कूल्याय च
नमः शष्प्याय च फेन्याय च ॥ ४२॥
संसार समुद्र के अपर तीर पर रहने वाले अथवा संसारातीत जीवन्मुक्त विष्णुरूप रुद्र के लिए नमस्कार है, संसार व्यापी रुद्र के लिए नमस्कार है, दु:ख-पापादि से प्रकृष्टरूप से तारने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, उत्कृष्ट ब्रह्म-साक्षात्कार कराकर संसार में तारने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, तीर्थस्थलों में प्रतिष्ठित रहने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, गंगा आदि नदियों के तट पर विद्यमान रहने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, गंगा आदि नदियों के तट पर उत्पन्न रहने वाले कुशांकुरादि बालतृणरूप रुद्र के लिए नमस्कार है और जल के विकारस्वरुप फेन में विद्यमान रहने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है।
नमः सिकत्याय च प्रवाह्याय च
नमः किꣳशिलाय च क्षयणाय च
नमः कपर्दिने च पुलस्तये च
नम इरिण्याय च प्रपथ्याय च ॥ ४३॥
नदियों की बालुकाओं में होने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, स्थिर जल से परिपूर्ण प्रदेशरूप रुद्र के लिए नमस्कार है, जटामुकुटधारी रुद्र के लिए नमस्कार है, शुभाशुभ देखने की इच्छा से सदा सामने खड़े रहने वाले अथवा सर्वान्तर्यामीस्वरुप रुद्र के लिए नमस्कार है, ऊसरभूमिरूप रुद्र के लिए नमस्कार है और अनेक जनों से संसेवित मार्ग में होने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है।
नमो व्रज्याय च गोष्ठ्याय च
नमस्तल्प्याय च गेह्याय च
नमो हृदय्याय च निवेष्प्याय च
नमः काट्याय च गह्वरेष्ठाय च ॥ ४४॥
गोसमूह में विद्यमान अथवा वज्र में गोपेश्वर के रूप में रहने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, गोशालाओं में रहने वाले गोष्ठ्यरुप रुद्र के लिए नमस्कार है, शय्या में विद्यमान रहने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, गृह में विद्यमान रहने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, हृदय में रहने वाले जीवरूपी रुद्र के लिए नमस्कार है, जल के भँवर में रहने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, दुर्ग-अरण्य आदि स्थानों में रहने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है और विषम गिरिगुहा आदि अथवा गम्भीर जल में विद्यमान रुद्र के लिए नमस्कार है।
नमः शुष्क्याय च हरित्याय च
नमः पाꣳसव्याय च रजस्याय च
नमो लोप्याय चोलप्याय च
नम ऊर्व्याय च सूर्व्याय च ॥ ४५॥
काष्ठ आदि शुष्क पदार्थों में भी सत्तारूप से विद्यमान रुद्र के लिए नमस्कार है, आर्द्र काष्ठ आदि में सत्तारुप से विद्यमान रुद्र के लिए नमस्कार है, धूलि आदि में विराजमान पांसव्यरूप रुद्र के लिए नमस्कार है, रजोगुण अथवा पराग में विद्यमान रजस्यरूप रुद्र के लिए नमस्कार है, सम्पूर्ण इन्द्रियों के व्यापार की शान्ति होने पर अथवा प्रलय में भी साक्षी बनकर रहने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है और प्रलयाग्नि में विद्यमान रुद्र के लिए नमस्कार है।
नमः पर्णाय च पर्णशदाय च
नम उद्गुरमाणाय चाभिघ्नते च
नम आखिदते च प्रखिदते च
नमः इषुकृद्भ्यो धनुष्कृद्भ्यश्च वो नमो
नमो वः किरिकेभ्यो देवानाꣳ हृदयेभ्यो नमो
विचिन्वत्केभ्यो नमो विक्षिणत्केभ्यो नम आनिर्हतेभ्यः ॥ ४६॥
वृक्षों के पत्ररुप रुद्र के लिए नमस्कार है, वृक्ष-पर्णों के स्वत: शीर्ण होने के काल-वसन्त-ऋतुरूप रुद्र के लिए नमस्कार है, पुरुषार्थपरायण रहने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, सब ओर शत्रुओं का हनन करने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, सब ओर से अभक्तों को दीन-दु:खी बना देने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, अपने भक्तों के दु:खों से दु:खी होने के कारण दया से आर्द्र हृदय होने वाले रुद्र के लिए नमस्कार है, बाणों का निर्माण करने वाले रुद्रों के लिए नमस्कार है, धनुषों का निर्माण करने वाले रुद्रों के लिए नमस्कार है,
वृष्टि आदि के द्वारा जगत का पालन करने वाले देवताओं के हृदयभूत अग्नि-वायु-अदित्यरूप रुद्रों के लिए नमस्कार है, धर्मात्मा तथा पापियों का भेद करने वाले अग्नि आदि रुद्रों के लिए नमस्कार है, भक्तों के पाप-रोग-अमंगल को दूर करने वाले तथा पाप-पुण्य के साक्षीस्वरुप अग्नि आदि रुद्रों के लिए नमस्कार है और सृष्टि के आदि में मुख्यतया इन लोकों से निर्गत हुए अग्नि -वायु-सूर्यरूप रुद्रों के लिए नमस्कार है।
द्रापे अन्धसस्पते दरिद्रं नीललोहित ।
आसां प्रजानामेषां पशूनां मा भेर्मा रोङ्भो च नः किञ्चनाममत् ॥ ४७॥
हे द्राप्रे (दुराचारियों को कुत्सित गति प्राप्त कराने वाले) ! हे अन्धसस्पते (सोमपालक) ! हे दरिद्र (निष्परिग्रह) ! हे नीललोहित ! हमारी पुत्रादि प्रजाओं तथा गौ आदि पशुओं को भयभीत मत कीजिए, उन्हें नष्ट मत कीजिए और उन्हें किसी भी प्रकार के रोग से ग्रसित मत कीजिए।
इमा रुद्राय तवसे कपर्दिने क्षयद्वीराय प्रभरामहे मतीः ।
यथा शमसद्द्विपदे चतुष्पदे विश्वं पुष्टं ग्रामे अस्मिन्ननातुरम् ॥ ४८॥
जिस प्रकार से मेरे पुत्रादि तथा गौ आदि पशुओं को कल्याण की प्राप्ति हो तथा इस ग्राम में सम्पूर्ण प्राणी पुष्ट तथा उपद्रव रहित हों, इसके निमित्त हम अपनी इन बुद्धियों को महाबली, जटाजूटधारी तथा शूरवीरों के निवासभूत रुद्र के लिए समर्पित करते हैं।
या ते रुद्र शिवा तनूः शिवा विश्वाहा भेषजी ।
शिवा रुतस्य भेषजी तया नो मृड जीवसे ॥ ४९॥
हे रुद्र ! आपका जो शान्त, निरन्तर कल्याणकारक, संसार की व्याधि निवृत्त करने वाला तथा शारीरिक व्याधि दूर करने का परम औषधिरूप शरीर है, उससे हमारे जीवन को सुखी कीजिए।
परि नो रुद्रस्य हेतिर्वृणक्तु परि त्वेषस्य दुर्मतिरघायोः ।
अव स्थिरा मघवद्भ्यस्तनुष्व मीढ्वस्तोकाय तनयाय मृड ॥ ५०॥
रुद्र के आयुध हमारा परित्याग करें और क्रुद्ध हुए दोषी पुरुषों की दुर्बुद्धि हम लोगों को वर्जित कर दे (अर्थात उनसे हम लोगों को किसी प्रकार की पीड़ा न होने पाए)। अभिलषित वस्तुओं की वृष्टि करने वाले हे रुद्र ! आप अपने धनुष को प्रत्यंचा रहित करके यजमान-पुरुषों के भय को दूर कीजिए और उनके पुत्र-पौत्रों को सुखी बनाइए।
मीढुष्टम शिवतम शिवो नः सुमना भव ।
परमे वृक्ष आयुधं निधाय कृत्तिं वसान आचर पिनाकं बिभ्रदागहि ॥ ५१॥
अभीष्ट फल और कल्याणों की अत्यधिक वृष्टि करने वाले हे रुद्र ! आप हम पर प्रसन्न रहें, अपने त्रिशूल आदि आयुधों को कहीं दूर स्थित वृक्षों पर रख दीजिए, गजचर्म का परिधान धारण करके तप कीजिए और केवल शोभा के लिए धनुष धारण करके आइए।
विकिरिद्र विलोहित नमस्ते अस्तु भगवः ।
यास्ते सहस्रꣳ हेतयोऽन्यमस्मन्निवपन्तु ताः ॥ ५२॥
विविध प्रकार के उपद्रवों का विनाश करने वाले तथा शुद्धस्वरुप वाले हे रुद्र ! आपको हमारा प्रणाम है, आपके जो असंख्य आयुध हैं वे हमसे अतिरिक्त दूसरों पर जाकर गिरें।
सहस्राणि सहस्रशो बाह्वोस्तव हेतयः ।
तासामीशानो भगवः पराचीना मुखा कृधि ॥ ५३॥
गुण तथा ऎश्वर्यों से संपन्न हे जगत्पति रुद्र ! आपके हाथों में हजारों प्रकार के जो असंख्य आयुध हैं, उनके अग्रभागों (मुखों) को हमसे विपरीत दिशाओं की ओर कर दीजिए (अर्थात हम पर आयुधों का प्रयोग मत कीजिए)।
असंख्याता सहस्राणि ये रुद्रा अधि भूम्याम् ।
तेषाꣳ सहस्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि ॥ ५४॥
पृथ्वी पर जो असंख्य रुद्र निवास करते हैं, उनके असंख्य धनुषों को प्रत्यंचारहित करके हम लोग हजारों कोसों के पार जो मार्ग है, उस पर ले जाकर डाल देते हैं।
अस्मिन्महत्यर्णवेऽन्तरिक्षे भवा अधि ।
तेषाꣳ सहस्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि ॥ ५५॥
मेघमण्डल से भरे हुए इस महान अन्तरिक्ष में जो रुद्र रहते हैं, उनके असंख्य धनुषों को प्रत्यंचारहित करके हम लोग हजारों कोसों के पार स्थित मार्ग पर ले जाकर डाल देते हैं।
नीलग्रीवाः शितिकण्ठा दिवꣳ रुद्रा उपश्रिताः ।
तेषाꣳ सहस्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि ॥ ५६॥
जिनके कण्ठ का कुछ भाग नीलवर्ण का है और कुछ भाग श्वेतवर्ण का है तथा जो द्युलोक में निवास करते हैं, उन रुद्रों के असंख्य धनुषों को प्रत्यंचारहित करके हम लोग हजारों कोसों दूर स्थित मार्ग पर ले जाकर डाल देते हैं।
नीलग्रीवाः शितिकण्ठाः शर्वा अधः क्षमाचराः ।
तेषाꣳ सहस्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि ॥ ५७॥
कुछ भाग में नीलवर्ण और कुछ भाग में शुक्ल वर्ण के कण्ठवाले तथा भूमि के अधोभाग में स्थित पाताल लोक में निवास करने वाले रुद्रों के असंख्य धनुषों को प्रत्यंचारहित करके हम लोग हजारों कोस दूर स्थित मार्ग पर ले जाकर डाल देते हैं।
ये वृक्षेषु शष्पिञ्जरा नीलग्रीवा विलोहिताः ।
तेषाꣳ सहस्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि ॥ ५८॥
बाल तृण के समान हरितवर्ण के तथा कुछ भाग में नीलवर्ण एवं कुछ भाग में शुक्ल वर्ण के कण्ठ वाले, जो रुधिरहित रुद्र (तेजोमय शरीर रहने से उन शरीरों में रक्त और माँस नहीं रहता) हैं, वे अश्वत्थ आदि के वृक्षों पर रहते हैं।उन रुद्रों के धनुषों को प्रत्यंचारहित करके हम लोग हजारों कोसों के पार स्थित मार्ग पर डाल देते हैं।
ये भूतानामधिपतयो विशिखासः कपर्दिनः ।
तेषाꣳ सहस्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि ॥ ५९॥
अन्न देकर प्राणियों का पोषण करने वाले, आजीवन युद्ध करने वाले, लौकिक-वैदिक मार्ग का रक्षण करने वाले तथा अधिपति कहलाने वाले जो रुद्र हैं, उनके धनुषों को प्रत्यंचारहित करके हम लोग हजारों कोसों के पार स्थित मार्ग पर ले जाकर डाल देते हैं।
ये पथां पथिरक्षय ऐलबृदा आयुर्युधः ।
तेषाꣳ सहस्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि ॥ ६०॥
जो लौकिक वैदिक मार्गो के अधिपति ,मार्गो के पालक , राज्याधिकारी ,राज्यशासनकारी,अन्न के धारक ,अथवा अन्न से प्राणियों का पौषण करने वाले ,जीवनपर्यन्त युद्ध करने में रत है उनके धनुषों को प्रत्यंचारहित करके हम लोग हजारों कोस स्थित मार्ग पर ले जाकर डाल देते हैं।
ये तीर्थानि प्रचरन्ति सृकाहस्ता निषङ्गिणः ।
तेषाꣳ सहस्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि ॥ ६१॥
वज्र और खड्ग आदि आयुधों को हाथ में धारण कर जो रुद्र तीर्थों पर जाते हैं, उनके धनुषों को प्रत्यंचारहित करके हम लोग हजारों कोसों के पार स्थित मार्ग पर ले जाकर डाल देते है।
येऽन्नेषु विविध्यन्ति पात्रेषु पिबतो जनान् ।
तेषाꣳ सहस्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि ॥ ६२॥
खाए जाने वाले अन्नों में स्थित जो रुद्र अन्न भोक्ता प्राणियों को पीड़ित करते हैं (अर्थात धातुवैषम्य के द्वारा उनमें रोग उत्पन्न करते हैं) और पात्रों में स्थित दुग्ध आदि में विराजमान जो रुद्र, उनका पान करने वाले लोगों को (व्याधि आदि के द्वारा) कष्ट देते हैं, उनके धनुषों को प्रत्यंचारहित करके हम लोग हजारों कोस स्थित मार्ग पर ले जाकर डाल देते हैं।
य एतावन्तश्च भूयाꣳसश्च दिशो रुद्रा वितस्थिरे ।
तेषाꣳ सहस्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि ॥ ६३॥
दसों दिशाओं में व्याप्त रहने वाले जो अनेक रुद्र हैं, उनके धनुषों को प्रत्यंचारहित करके हम लोग हजारों कोस दूर स्थित मार्ग पर ले जाकर डाल देते हैं। जो रुद्र द्युलोक में विद्यमान हैं तथा जिन रुद्रों के बाण वृष्टिरूप हैं, उन रुद्रों के लिए नमस्कार है।
नमोऽस्तु रुद्रेभ्यो ये दिवि येषां वर्षमिषवस्तेभ्यो
दश प्राचीर्दश दक्षिणा दश प्रतीचीर्दशोदीचीर्दशोर्ध्वास्तेभ्यो
नमो अस्तु ते नोऽवन्तु ते नो मृडयन्तु ते यं
द्विष्मो यश्च नो द्वेष्टि तमेषां जम्भे दध्मः ॥ ६४॥
उन रुद्रों के लिए पूर्व दिशा की ओर दसों अंगुलियाँ करता हूँ, दक्षिण की ओर दसों अंगुलियाँ करता हूँ, पश्चिम की ओर दसों अंगुलियाँ करता हूँ, उत्तर की ओर दसों अंगुलियाँ करता हूँ और ऊपर की ओर दसों अंगुलियााँ करता हूँ (अर्थात हाथ जोड़कर सभी दिशाओं में उन रुद्रों के लिए प्रणाम करता हूँ)। वे रुद्र हमारी रक्षा करें और वे हमें सुखी बनाएँ। वे रुद्र जिस मनुष्य से द्वेष करते हैं, हम लोग जिससे द्वेष अरते हैं और जो हमसे द्वेष करता है, उस पुरुष को हम लोग उन रुद्रों के भयंकर दाँतों वाले मुख में डालते हैं (अर्थात वे रुद्र हमसे द्वेष करने वाले मनुष्य का भक्षण कर जाएँ)।
नमोऽस्तु रुद्रेभ्यो येऽन्तरिक्षे येषां वात इषवस्तेभ्यो
दश प्राचीर्दश दक्षिणा दश प्रतीचीर्दशोदीचीर्दशोर्ध्वास्तेभ्यो
नमो अस्तु ते नोऽवन्तु ते नो मृडयन्तु ते यं
द्विष्मो यश्च नो द्वेष्टि तमेषां जम्भे दध्मः ॥ ६५॥
जो रुद्र अन्तरिक्ष में विद्यमान हैं तथा जिन रुद्रों के बाण पवनरूप हैं, उन रुद्रों के लिए नमस्कार है। उन रुद्रों के लिए पूर्व दिशा की ओर दसों अंगुलियाँ करता हूँ, दक्षिण की ओर दसों अंगुलियाँ करता हूँ, पश्चिम की ओर दसों अंगुलियाँ करता हूँ, उत्तर की ओर दसों अंगुलियाँ करता हूँ और ऊपर की ओर दसों अंगुलियाँ करता हूँ (अर्थात हाथ जोड़कर सभी दिशाओं में उन रुद्रों के लिए प्रणाम करता हूँ)। वे रुद्र हमारी रक्षा करें और वे हमें सुखी बनाएँ।
वे रुद्र जिस मनुष्य से द्वेष करते हैं, हम लोग जिससे द्वेष करते हैं और जो हमसे द्वेष करता है, उस पुरुष को हम लोग उन रुद्रों के भयंकर दाँतों वाले मुख में डालते हैं (अर्थात वे रुद्र हमसे द्वेष करने वाले मनुष्य का भक्षण कर जाएँ)।
नमोऽस्तु रुद्रेभ्यो ये पृथिव्यां येषामन्नमिषवस्तेभ्यो
दश प्राचीर्दश दक्षिणा दश प्रतीचीर्दशोदीचीर्दशोर्ध्वास्तेभ्यो
नमो अस्तु ते नोऽवन्तु ते नो मृडयन्तु ते यं
द्विष्मो यश्च नो द्वेष्टि तमेषां जम्भे दध्मः ॥ ६६॥
जो रुद्र पृथ्वीलोक में स्थित हैं तथा जिनके बाण अन्नरुप हैं, उन रुद्रों के लिए नमस्कार है. उन रुद्रों के लिए पूर्व दिशा की ओर दसों अंगुलियाँ करता हूँ, दक्षिण की ओर दसों अंगुलियाँ करता हूँ, पश्चिम की ओर दसों अंगुलियाँ करता हूँ, उत्तर की ओर दसों अंगुलियाँ करता हूँ और ऊपर की ओर दसों अंगुलियाँ करता हूँ (अर्थात हाथ जोड़कर सभी दिशाओं में उन रुद्रों के लिए प्रणाम करता हूँ). वे रुद्र हमारी रक्षा करें और वे हमें सुखी बनावें।
वे रुद्र जिस मनुष्य से द्वेष करते हैं, हम लोग जिससे द्वेष करते हैं और जो हमसे द्वेष करता है, उस पुरुष को हम लोग उन रुद्रों के भयंकर दाँतों वाले मुख में डालते हैं (अर्थात वे रुद्र हमसे द्वेष करने वाले मनुष्य का भक्षण कर जाएँ)।
इति रुद्रे पञ्चमोऽध्यायः ॥ ५॥
।। इस प्रकार रुद्रपाठ – रुद्राष्टाध्यायी (Rudrashtadhyayi Path) – का पाँचवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ।।
रुद्राष्टाध्यायी – छठा पाठ (Rudrashtadhyayi Path 6)
(महच्छिर / सोमस्तवन / त्र्यम्बक यजनम्)
हरिः ॐ
वयꣳसोम व्रते तव मनस्तनूषु बिभ्रतः ।
प्रजावन्तः सचेमहि ॥ १॥
हे सोमदेव ! पुत्र – पौत्रादि से संपन्न हम यजमान यज्ञ और व्रतों में आपके स्वरुप में चित्त लगाकर सेवनीय वस्तुओं का सेवन करें।
एष ते रुद्र भागः सह स्वस्राऽम्बिकया तं जुषस्व स्वाहैष ते रुद्र भाग आखुस्ते पशुः ॥ २॥
हे रुद्र ! हमारे द्वारा दिया हुआ यह पुरोडाश आपका भाग है, आप अपनी भगिनी अम्बिका के साथ इसका सेवन कीजिए। यह प्रदत्त हवि सुहुत रहे। हमारे द्वारा अवकीर्ण किया गया यह पुरोडाश आपका भाग है, आपके द्वारा इसका सेवन किया जाए। हमने इस मूषकसंज्ञक पशु को आपके लिए अर्पित किया है।
अव रुद्रमदीमह्यव देवं त्र्यम्बकम् ।
यथा नो वस्यसस्करद्यथा नः श्रेयसस्करद्यथा नो व्यवसाययात् ॥ ३॥
चित्त में रुद्र और त्र्यम्बक का ध्यान करके (अथवा अन्य देवताओं से पृथक करके) हम रुद्र को अन्न खिलाते हैं। वे रुद्र हमें निवसनशील और ज्ञाति में श्रेष्ठ कर दें तथा वे हमें समस्त कार्यों में शीघ्र निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करें, इसके लिए हम उनका जप करते हैं।
भेषजमसि भेषजं गवेऽश्वाय पुरुषाय भेषजम् ।
सुखं मेषाय मेष्यै ॥ ४॥
हे रुद्र ! आप औषधि के तुल्य समस्त उपद्रवों के निवारक हैं, अत: हमारे गाय, अश्व और भृत्य आदि को सर्वव्याधिनिवारक औषधि दीजिए और हमारे मेष तथा मेषी को सुख प्रदान कीजिए।
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ।
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पतिवेदनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनादितो मुक्षीय मामुतः ॥ ५॥
दिव्य गन्ध गन्ध से युक्त, मृत्युरहित, धन-धान्यवर्धक, त्रिनेत्र रुद्र की हम पूजा करते हैं। वे रुद्र हमें अपमृत्यु और संसाररूप मृत्यु से मुक्त करें। जिस प्रकार ककड़ी का फल अत्यधिक पक जाने पर अपने वृन्त (डंठल) से मुक्त हो जाता है, उसी प्रकार हम भी मृत्यु से छूट जाएँ, किन्तु अभ्युदय और नि:श्रेयसरूप अमृत से हमारा संबंध न छूटने पाए। (अग्रिम वाक्य कुमारिकाओं का है) पति की प्राप्ति कराने वाले, सुगन्ध विशिष्ट त्रिनेर शिव की हम पूजा करती है।
ककड़ी का फल परिपक्व होने पर जैसे अपने डंठल से छूट जाता है, उसी प्रकार हम कुमारियाँ माता, पिता, भाई आदि बन्धुजनों से तथा उस कुल से छूट जाएँ, किंतु त्र्यम्बक के प्रसाद से हम अपने पति से न छूटें अर्थात पिता का गोत्र तथा घर छोड़कर पति के गोत्र तथा घर में सर्वदा रहें।
एतत्ते रुद्रावसं तेन परो मूजवतोऽतीहि ।
अवततधन्वा पिनाकावसः कृत्तिवासा अहिꣳसन्नः शिवोऽतीहि ॥ ६॥
हे रुद्र ! आपका यह “अवस” (अवस का अर्थ है – प्रवास में किसी सरोवर के समीप विश्राम करने पर भक्षणयोग्य ओदन विशेष अर्थात खाने की कोई वस्तु) संज्ञक हवि:शेष भोज्य है, उसके सहित आप अपने धनुष की प्रत्यंचा को हटाकर मूजवान पर्वत के उस पार जाइए। (मूजवान पर्वत पर रुद्र निवास करते हैं) प्रवास करते समय आप अपने “पिनाक” नामक धनुष को सब ओर से आच्छादित कर लें, जिससे कोई भी प्राणी आपके धनुष को देखकर भयभीत न हो। हे रुद्र ! आप चर्माम्बर धारण करके हिंसा न करते हुए हमारी पूजा से संतुष्ट होकर मूजवान पर्वत को लाँघ जाइए।
त्र्यायुषं जमदग्नेः कश्यपस्य त्र्यायुषम् ।
यद्देवेषु त्र्यायुषं तन्नो अस्तु त्र्यायुषम् ॥ ७॥
जमदग्नि ऋषि की बाल्य-यौवन-वृद्धावस्था के जो उत्तम चरित्र हैं, कश्यप प्रजापति की तीनों अवस्थाओं के जो उत्तम चरित्र हैं तथा देवगणों में भी उनकी तीनों अवस्थाओं के जो प्रशंसनीय चरित्र विद्यमन हैं, तीनों अवस्थाओं से संबंधित वैसा ही चरित्र हम यजमानों का भी हो।
शिवो नामासि स्वधितिस्ते पिता नमस्ते अस्तु मा मा हिꣳसीः ।
निवर्तयाम्यायुषेऽन्नाद्याय प्रजननाय रायस्पोषाय सुप्रजास्त्वाय सुवीर्याय ॥ ८॥
हे क्षुर ! आपका नाम “शान्त” है। वज्र आपके पिता हैं, मैं आपके लिए नमस्कार करता हूँ। आप मेरी हिंसा मत कीजिए। हे यजमान ! बहुत दिनों तक जीवित रहने के लिए, अन्न-भक्षण करने के लिए, संतति के लिए, द्रव्य-वृद्धि के लिए, योग्य संतान उत्पन्न होने के लिए तथा उत्तम सामर्थ्य की प्राप्ति के लिए मैं आपका मुण्डन करता हूँ।
इति रुद्रे षष्ठोऽध्यायः ॥ ६॥
।। इस प्रकार रुद्रपाठ – रुद्राष्टाध्यायी (Rudrashtadhyayi Path) – का छठा अध्याय पूर्ण हुआ ।।
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CONTD...
..SHIVOHAM....
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