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लिंगाष्टकम स्तोत्र


लिंगाष्टकम स्तोत्र भगवान शिव को खुश करने का सबसे आसन तरीका है। लिंगाष्टक स्तोत्र के विषय में शास्त्रों के ऐसा वर्णन मिलता है कि जो मनुष्य इसका श्रवण करता है उसे हर मुश्किल में भी सबकुछ आसान लगता है।भगवान भोलेनाथ की इस स्तुति में कुल आठ श्लोक हैं। इस अष्टपदी श्लोक के माध्यम से व्यक्ति भगवान शिव की आराधना पर मनचाहा वरदान का आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है।कहते हैं कि जो कोई लिंगाष्टकम स्तोत्र का केवल श्रवण मात्र करता है उसके सारे कष्ट क्षण मात्र में नष्ट हो जाते हैं। इतना ही नहीं इस स्तोत्र की महिमा तीनों लोकों में व्याप्त है।लिंगाष्टकम स्तोत्रम हिंदू धर्म में सबसे सम्मानित भजनों में से एक है। मंत्रों से जुड़ी अनोखी शक्ति है। विज्ञान हो या धर्म, सबसे महत्वपूर्ण चीज है विश्वास। हमारे द्वारा किया जाने वाला प्रत्येक अनुष्ठान किसी न किसी रूप में हमारे जीवन को प्रभावित करता है।शिव लिंगाष्टकम श्लोक की रचना आदि शंकराचार्य के द्वारा की गयी थी ।इस पाठ को बेहद चमत्कारी और शक्तिशाली माना जाता है। शिवपुराण में शिवलिंग की उपासना के लिए लिंगाष्टकम के बारे में बताया गया है।

मान्यता है कि यदि नियमित रूप से शिवलिंग पर जल और बेलपत्र अर्पित करके यदि लिंगाष्टकम स्तोत्र का पाठ किया जाए तो व्यक्ति को हर परेशानी से मुक्ति प्राप्त हो जाती है। इस पाठ को करने से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं और अनन्य कृपा बरसाते हैं। लिंगाष्टकम स्तोत्र को बेहद ही चमत्कारी माना जाता है। मान्यता है कि इस पाठ को करने से कुछ ही समय में सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और बुरे से बुरा समय भी समाप्त हो जाता है।यदि आपके जीवन में मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं तो लिंगाष्टकम स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं। शिव जी देवों के देव हैं। इनकी कृपा से हर कष्ट क्षण भर में दूर हो जाता है। धार्मिक मान्यता है कि स्वयं देवता भी शिव जी की स्तुति शिव लिंगाष्टकम के पाठ से करते हैं।

ब्रह्ममुरारि सुरार्चित लिंगं निर्मलभासित शोभित लिंगम् । जन्मज दुःख विनाशक लिंगं तत्-प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥

उस सदाशिवलिंगको मैं प्रणाम करता हूं जो शाश्वत शिव है, जिनकी अर्चना स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और अन्य देवता करते हैं, जो निर्मल, सुशोभित है और जो जन्मके दुखोंका विनाश करती है |


देवमुनि प्रवरार्चित लिंगं कामदहन करुणाकर लिंगम् । रावण दर्प विनाशन लिंगं तत्-प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥

उस शाश्वत एवं करुणाकर सदाशिवलिंगको मैं प्रणाम करता हूं जिनकी अर्चना देवता, ऋषि-मुनि करते हैं, जिन्होंने कामदेवका दहन किया एवं जिन्होंने रावणके अहंकारको नष्ट किया | मैं उस सदाशिव लिंग को बारमबार प्रणाम करता हूं।

सर्व सुगंध सुलेपित लिंगं बुद्धि विवर्धन कारण लिंगम् । सिद्ध सुरासुर वंदित लिंगं तत्-प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥


सभी प्रकार के सुगंधित पदार्थों द्वारा जिसका लेपन होता है, जो अध्‍यात्‍म, बुद्धि और विवेक का उत्‍थान करने वाला है। जो सदैव सुगंधमय, सुलेपित, बुधिवर्धक, सिद्धों, सुरों, असुरों द्वारा पूजित है मैं उस सदाशिवलिंग को बारमबार प्रणाम करता हूं।


कनक महामणि भूषित लिंगं फणिपति वेष्टित शोभित लिंगम् । दक्ष सुयज्ञ निनाशन लिंगं तत्-प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥

उस सदशिवलिंगको प्रणाम करता हूं जो स्वर्ण तथा महामणिसे भूषित है, सर्पराजद्वारा शोभित होनेके कारण दैदीप्यमान है, दक्षयज्ञको विनाश करनेवाला है |

कुंकुम चंदन लेपित लिंगं पंकज हार सुशोभित लिंगम् । संचित पाप विनाशन लिंगं तत्-प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥

उस सदशिवलिंगको प्रणाम करता हूं जो कुकुंम, चंदनके लेपसे सुशोभित, कमलोंके हारसे सुसज्जित, संचित पापोंके विनाशक है |

देवगणार्चित सेवित लिंगं भावै-र्भक्तिभिरेव च लिंगम् । दिनकर कोटि प्रभाकर लिंगं तत्-प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥


उस सदशिवलिंगको प्रणाम करता हूं जो देवगणोंद्वारा अर्चित, सेवित है, जिसे भाव और भक्तिसे प्राप्त किया जा सकता है एवं जो करोडों सूर्यके सामान प्रकाशवान है |


अष्टदलोपरिवेष्टित लिंगं सर्वसमुद्भव कारण लिंगम् । अष्टदरिद्र विनाशन लिंगं तत्-प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥

उस सदशिवलिंगको प्रणाम करता हूं जो अष्टदलसे परिवेष्टित, समस्त जगतकी उत्पतिका कारण, अष्ट दरिद्रका नाशक है |

सुरगुरु सुरवर पूजित लिंगं सुरवन पुष्प सदार्चित लिंगम् । परात्परं परमात्मक लिंगं तत्-प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥

उस सदशिवलिंगको प्रणाम करता हूं ओ देवताओंके गुरुद्वारा, श्रेष्ठ देवताओंद्वारा एवं देवों के वनके पुष्पद्वारा पूजित है, जो परात्पर, परमात्म स्वरूपी लिंग है |

लिंगाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेश्शिव सन्निधौ । शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥

जो इस पवित्र लिंगाष्टकको पढता है शिवके सान्निध्यको, शिव लोकको प्राप्त कर शिवके साथ प्रसन्नताको प्राप्त होता है |

लिङ्गाष्टकम्


ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं निर्मलभासितशोभितलिङ्गम् ।

जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥१॥


देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गं कामदहं करुणाकरलिङ्गम् ।

रावणदर्पविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥२॥


सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गं बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम् ।

सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥३॥


कनकमहामणिभूषितलिङ्गं फणिपतिवेष्टितशोभितलिङ्गम् ।

दक्षसुयज्ञविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥४॥


कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गं पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम् ।

सञ्चितपापविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥५॥


देवगणार्चितसेवितलिङ्गं भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम् ।

दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥६॥


अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गं सर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम् ।

अष्टदरिद्रविनाशितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥७॥


सुरगुरुसुरवरपूजितलिङ्गं सुरवनपुष्पसदार्चितलिङ्गम् ।

परात्परं परमात्मकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥८॥


लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ।

शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥


भगवान भोलेनाथ की इस स्त्रुति में लिङ्गाष्टकम् (लिंगाष्टकम) आठ श्लोक हे इस अष्टपदी का भक्ति भाव से श्रावण करने पर के सारे संकट क्षण भर में नष्ट हो जाते हैं ।जो इस पवित्र लिंगाष्टको को पढ़ता है शिव के सानिध्यको, शिव लोक को प्राप्त कर शिव के साथ स्थिरता को प्राप्त होता है ।

..SHIVOHAM.....




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