विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान संबंधित 70,71 वीं, (प्रकाश-संबंधी छह विधियां )विधियां क्या है?
- Chida nanda
- Jan 31, 2022
- 15 min read
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 70 ;-
18 FACTS;-
1-भगवान शिव कहते है:- ‘अपनी प्राण शक्ति को मेरुदंड के ऊपर उठती, एक केंद्र की ओर गति करती हुई प्रकाश किरण समझो, और इस भांति तुममें जीवंतता का उदय होता है।’
2-योग के अनेक साधन , उपाय आदि इस विधि पर आधारित है। पहले हमें यह समझना है कि यह क्या है..वास्तव में मेरुदंड, रीढ़ हमारे शरीर और मस्तिष्क दोनों का आधार है।हमारा मस्तिष्क, हमारा सिर हमारे मेरुदंड का ही अंतिम छोर है। मेरुदंड पूरे शरीर की आधारशिला है और अगर मेरुदंड युवा है तो तुम युवा हो। और अगर मेरुदंड बूढा है तो तुम बढ़े हो। अगर तुम अपने मेरुदंड को युवा रख सको तो बूढा होना कठिन है। सब कुछ इस मेरूदंड पर निर्भर है।अगर तुम्हारा मेरूदंड जीवंत है तो तुम्हारे मन मस्तिष्क में मेधा ,चमक होगी। और अगर तुम्हारा मेरूदंड जड़ और मृत है तो तुम्हारा मन भी बहुत जड़ होगा। समस्त योग अनेक ढंग से तुम्हारे मेरूदंड को जीवंत, युवा,ताजा और प्रकाशपूर्ण बनाने की चेष्टा करता है।मेरूदंड के दो छोर है। उसके आरंभ का काम-केंद्र है और उसके शिखर पर सहस्त्रार है ..सिर के ऊपर सातवां चक्र है। मेरूदंड का जो आरंभ है वह पृथ्वी से जुड़ा है।तुम्हारे मेरूदंड के आरंभिक चक्र के द्वारा तुम Nature/ प्रकृति के संपर्क में आते हो।और अंतिम चक्र सहस्त्रार से तुम परमात्मा के संपर्क में होते हो।
3-तुम्हारे अस्तित्व के ये दो ध्रुव है। पहला काम केंद्र है, और उसके शिखर पर सहस्त्रार है। अंग्रेजी में सहस्त्रार के लिए कोई शब्द नहीं है। ये ही दो ध्रुव है। तुम्हारा जीवन या तो कामोन्मुख होगा या सहस्त्रोन्मुख होगा। या तो तुम्हारी ऊर्जा काम केंद्र से बहकर पृथ्वी में वापस जाएगी,या तुम्हारी ऊर्जा सहस्त्रार से निकलकर अनंत आकाश में समा जाएगी। तुम सहस्त्रार से ब्रह्म में, परम सत्ता में प्रवाहित हो जाते हो। तुम काम केंद्र से पदार्थ जगत में प्रवाहित होते हो। ये दो प्रवाह है; ये दो संभावनाएं है। जब तक तुम ऊपर की और विकसित नहीं होते, तुम्हारे दुःख कभी समाप्त नहीं होगे। तुम्हें सुख की झलकें मिल सकती है; लेकिन वे झलकें ही होगी और बहुत भ्रामक होंगी। जब ऊर्जा ऊर्ध्वगामी होगी। तुम्हें सुख की अधिकाधिक सच्ची झलकें मिलने लगेंगी और जब ऊर्जा सहस्त्रार पर पहुँचेगी तुम परम आनंद को उपलब्ध हो जाओगे ..वही निर्वाण है। तब झलक नहीं मिलती, तुम आनंद ही हो जाते हो।
4-योग और तंत्र की पूरी चेष्टा यह है कि कैसे ऊर्जा को मेरूदंड के द्वारा ऊर्ध्वगामी बनाया जाए,कैसे उसे गुरूत्वाकर्षण के विपरीत गतिमान किया जाये। काम आसान है, क्योंकि वह गुरूत्वाकर्षण के विपरीत नहीं है। पृथ्वी सब चीजों को अपनी ओर खींच रही है। तुम्हारी काम ऊर्जा को भी पृथ्वी नीचे खींच रही है।उदाहरण के लिए अंतरिक्ष यात्रियों ने यह अनुभव किया है कि जैसे ही वे पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण के बाहर निकल जाते है,उनकी कामुकता बहुत क्षीण हो जाती है। जैसे-जैसे शरीर का वजन कम होता है। कामुकता विलीन हो जाती है।पृथ्वी तुम्हारी जीवन-ऊर्जा को नीचे की तरफ खींचती है और यह स्वाभाविक है। क्योंकि जीवन-ऊर्जा पृथ्वी से आती है। तुम भोजन लेते हो, और उससे तुम अपने भीतर जीवन ऊर्जा निर्मित कर रहे हो। यह ऊर्जा पृथ्वी से आती है। और पृथ्वी उसे वापस खींचती है। प्रत्येक चीज अपने मूल स्त्रोत को लौट जाती है। और अगर यह ऐसे ही चलता रहा, जीवन ऊर्जा फिर-फिर पीछे लौटती रहे, तुम Circle में घूमते रहे तो तुम जन्मों-जन्मों तक ऐसे ही घूमते रहोगे।यदि तुम अंतरिक्ष यात्रियों की तरह छलांग नहीं लेते तो तुम इस ढंग से अनंतकाल तक चलते रह सकते हो।
5-अंतरिक्ष यात्रियों की तरह तुम्हें छलांग लेना है और Circle के पार निकल जाना है। तब पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण का पैटर्न टूट जाता है। यह कैसे तोड़ा जा सकता है ..उसकी ही विधियां है। ये विधियां इस बात की फ्रिक करती है कि कैसे ऊर्जा ऊर्ध्व गति करे, नये केंद्रों तक पहुचे; कैसे तुम्हारे भीतर नई ऊर्जा का आविर्भाव हो और कैसे प्रत्येक गति के साथ वह तुम्हें नया मनुष्य बना दे। और जिस क्षण तुम्हारे सहस्त्रार से, कामवासना के विपरीत ध्रुव से तुम्हारी ऊर्जा मुक्त होती है ;तब तुम मनुष्य नहीं रह गए; तब तुम इस धरती के न रहे,तब तुम भगवान हो गए।जब हम कहते है कि श्री कृष्ण या बुद्ध भगवान है तो उसका यही अर्थ है। उनके शरीर तो तुम्हारे जैसे है। उनके शरीर भी रूग्ण होंगे और मरेंगे। उनके शरीरों में सब कुछ वैसा ही होता है जैसे तुम्हारे शरीरों में होता है। सिर्फ एक चीज उनके शरीरों में नहीं होती जो तुम्हारे शरीर में होती है। उनकी ऊर्जा ने गुरूत्वाकर्षण के पैटर्न को तोड़ दिया है। लेकिन वह तुम नहीं देख सकते; वह तुम्हारी आंखों के लिए दृश्य नहीं है।
6-लेकिन कभी-कभी जब तुम किसी Enlightened Personality की सन्निधि में बैठते हो तो तुम यह अनुभव कर सकते हो। अचानक तुम्हारे भीतर ऊर्जा का ज्वार उठने लगता है और तुम्हारी ऊर्जा ऊपर की तरफ यात्रा करने लगती है। तभी तुम जानते हो कि कुछ घटित हुआ है। केवल Enlightened Personality के सत्संग में ही तुम्हारी ऊर्जा सहस्त्रार की तरफ गति करने लगती है।वे इतने शक्तिशाली है कि पृथ्वी की शक्ति भी उनसे कम पड़ जाती है। उस समय पृथ्वी की ऊर्जा तुम्हारी ऊर्जा को नीचे की तरफ नहीं खींच सकती है। जिन लोगों ने जीसस, बुद्ध या श्रीकृष्ण की सन्निधि में इसका अनुभव लिया है, उन्होंने ही उन्हें भगवान कहा है। उनके पास ऊर्जा का एक भिन्न स्त्रोत है जो पृथ्वी से भी शक्तिशाली है।इस पैटर्न को कैसे तोड़ा जा सकता है ... वास्तव में यह विधि पैटर्न तोड़ने में बहुत सहयोगी है। लेकिन पहले कुछ बुनियादी बातें ख्याल में लेनी होगी ।पहली बात कि अगर तुमने निरीक्षण किया होगा तो तुमने देखा होगा कि तुम्हारी ऊर्जा कल्पना के साथ गति करती है।तुम्हारे मन की अनेक शक्तियां है, अनेक क्षमताएं है;और उनमें से एक है संकल्प।
7-यह तथ्य बहुत महत्वपूर्ण है ,क्योंकि यदि कल्पना ऊर्जा को गतिमान करने में सहयोगी है तो तुम सिर्फ कल्पना के द्वारा उसे चाहो तो ऊपर ले जा सकते हो या नीचे ला सकते हो। तुम अपने खून को कल्पना से गतिमान नहीं कर सकते;या शरीर में और कुछ कल्पना से नहीं कर सकते। लेकिन ऊर्जा कल्पना से गतिमान की जा सकती है। तुम उसकी दिशा बदल सकते हो।यह सूत्र कहता है: ‘अपनी प्राण-शक्ति को प्रकाश किरण समझो।’ स्वयं को अपने होने को प्रकाश किरण समझो। योग ने तुम्हारे मेरूदंड को सात चक्रों में बांटा है। पहला काम केंद्र है और अंतिम सहस्त्रार है। और इन दोनों के बीच पाँच चक्र है। कोई-कोई साधना पद्धति मेरूदंड को नौ केंद्रों में बाँटती है। कोई तीन में ही और कोई चार में। यह विभाजन बहुत अर्थ नही रखता है। प्रयोग के लिए पाँच केंद्र प्रर्याप्त है। पहला काम-केंद्र है; दूसरा ठीक नाभि के पीछे है; तीसरा ह्रदय के पीछे है। चौथा केंद्र तुम्हारी दोनों भौंहों के बीच में है ..ठीक ललाट के बीच में; और अंतिम केंद्र सहस्त्रार तुम्हारे सिर के शिखर पर है। ये पाँच पर्याप्त है।
8-यह सूत्र कहता है: ‘अपने को समझो,’ उसका अर्थ है कि भाव करो, कल्पना करो। आंखे बंद कर लो और भाव करो कि मैं बस प्रकाश हूं। यह भाव या कल्पना नहीं है। शुरू-शुरू में कल्पना ही है। लेकिन यथार्थ में भी ऐसा ही है। क्योंकि हरेक चीज प्रकाश से बनी है। विज्ञान कहता है कि सब कुछ विद्युत है। तंत्र ने तो सदा से कहा कि सब कुछ प्रकाश कणों से बना है और तुम भी प्रकाश कणों से ही बने हो। इसीलिए कुरान कहता है कि परमात्मा प्रकाश है ... तुम प्रकाश हो। तो पहले भाव करो मैं बस प्रकाश-किरण हूं और फिर अपनी कल्पना को काम केंद्र के पास ले जाओ। अपने अवधान को वहां एकाग्र करो और भाव करो कि प्रकाश किरणें काम केंद्र से ऊपर उठ रही है।मानो काम केंद्र प्रकाश का स्त्रोत बन गया है। और प्रकाश किरणें वहां से नाभि केंद्र की और ऊपर उठ रही है।विभाजन इस लिए जरूरी है, क्योंकि तुम्हारे लिए काम केंद्र को सीधे सहस्त्रार से जोड़ना कठिन है। छोटे-छोटे विभाजन इसलिए उपयोगी है।
9-यदि तुम सीधे सहस्त्रार से जुड़ सको तो किसी विभाजन की जरूरत नहीं हे। तुम काम केंद्र के ऊपर के सभी विभाजन गिरा सकते हो। और उर्जा जीवन शक्ति प्रकाश की भांति सीधे सहस्त्रार की और उठने लगेगी।जब तुम अनुभव करो कि अब नाभि पर स्थित दूसरा केंद्र प्रकाश का स्त्रोत बन गया है कि प्रकाश किरणें वहां आकर इकट्ठी होने लगी है। तब ह्रदय केंद्र कीओर गति करो और ऊपर बढ़ो। और जैसे-जैसे प्रकाश ह्रदय केंद्र पर पहुंचता है, वैसे ही तुम्हारे ह्रदय केंद्र की धड़कने बदल जायेगी। तुम्हारी श्वास गहरी होने लगेगी, और तुम्हारे ह्रदय में गरमाहट पहुंचने लगेगी। तब उससे भी और आगे और ऊपर बढ़ो।और जैसे-जैसे तुम्हें गरमाहट अनुभव होगी,वैसे-वैसे ही, तुम्हारे भीतर एक जीवंतता का उन्मेष होगा। एक आंतरिक प्रकाश का उदय होगा।काम-ऊर्जा के दो हिस्से है। एक हिस्सा शारीरिक है और दूसरा मानसिक है।
10-तुम्हारे शरीर में हरेक चीज के दो हिस्से है। तुम्हारे शरीर में मन की भांति ही तुम्हारे भीतर प्रत्येक चीज के दो हिस्से है: एक भौतिक है और दूसरा अभौतिक। काम-ऊर्जा के भी दो हिस्से है...शुक्र-रज। उसका जो भौतिक हिस्सा है वो उपर नहीं उठ सकता। उसके लिए मार्ग नहीं है। इसीलिए पश्चिम के अनेक शरीर शास्त्री कहते है कि तंत्र और योग की साधना बकवास है; वे उन्हें इनकार ही करते है।आखिर काम-ऊर्जा ऊपर की और कैसे उठ सकती है ..इसके लिए कोई मार्ग नहीं है। वे शरीर शस्त्री सही है और फिर भी वे गलत है। काम ऊर्जा का जो भौतिक हिस्सा है,वह तो ऊपर नहीं उठ सकता;लेकिन वही सब कुछ नहीं है। सच तो यह है कि वह स्वयं काम ऊर्जा नहीं है। काम-ऊर्जा तो उसका अभौतिक हिस्सा है। और यह अभौतिक तत्व ऊपर उठ सकता है। और उसी अभौतिक ऊर्जा के लिए मेरूदंड और उसके चक्र ..मार्ग का काम करते है। लेकिन उसको तो अनुभव से जानना होगा। और अनुभव वही कर सकता है जो संवेदनशील है।लेकिन हमारी संवेदनशीलता तो मर गई है।
11-उदाहरण के लिए जब कोई हाथ तुम्हें स्पर्श करता है तो हाथ नहीं , दबाव और गरमाहट अनुभव होती है। हाथ तो अनुभव भर है। वह बुद्धि है, भाव नहीं। गरमाहट और दबाव अनुभूतियां है। हमने अनुभूतियां बिलकुल खो दी है। तुम्हें फिर से उसे विकसित करना होगा। केवल तभी इन विधियों को प्रयोग में ला सकते हो। अन्यथा ये विधियां काम नहीं करेंगी। यह विधि बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन कुछ घटित नहीं होगा अगर तुम केवल बुद्धि से सोचोगे कि मैं अनुभव करता हूं।बहुतो ने प्रयोग तो किया है परंतु वह एक अनुभव का आयाम चूक गये। तो तुम्हें पहले इस आयाम को विकसित करना होगा। और उसके कुछ उपाय है जिन्हें तुम प्रयोग में ला सकते हो। उदाहरण के लिए, अगर तुम्हारे घर में कोई छोटा बच्चा है तो प्रतिदिन एक घंटा उस बच्चे के पीछे-पीछे चलो।किसी बुद्ध के पीछे चलने से उनके पीछे चलना बेहतर है और कही ज्यादा तृप्ति दायी हो सकता है। बच्चे को अपने चारों हाथ-पाँव पर चलने को कहो, घुटनों के बल चलने को कहो और बच्चे के पीछे तुम भी चलो।
12-और पहली बार तुम्हें अपने में एक नव जीवन का प्रकाश दिखेगा । तुम फिर बच्चे हो जाओगे। बच्चे को देखो और उसके पीछे-पीछे चलो। बच्चा घर के कोने-कोने में जाएगा। वह घर की हरेक चीज को स्पर्श करेगा। न केवल स्पर्श करेगा बल्कि वह एक-एक चीज का स्वाद लेगा। वह एक-एक चीज को सूंघेगा। तुम बस उसका अनुकरण करो;वह जो भी करे तुम भी वही करो।मनुष्य बच्चों से बहुत कुछ सीख सकता है। और देर-अबेर तुम्हारी सच्ची निर्दोषता प्रकट हो जाएगी। तुम भी कभी बच्चे थे और तुम जानते हो कि बच्चा होना क्या है। सिर्फ उसका विस्मरण हो गया है।तो अनुभूति के केंद्रों को फिर से विकसित करो। तो ही ये विधियां कारगर हो सकती है। अन्यथा तुम सोचते रहोगे कि ऊर्जा ऊपर उठ रही है। लेकिन उसकी कोई अनुभूति नहीं होगी। और अनुभूति के अभाव में कल्पना व्यर्थ है।अनुभूति भरा भाव ही परिणाम ला सकता है।तुम और भी कई चीजें कर सकते हो। और उन्हें करने में कोई विशेष प्रयत्न भी नहीं है।
13-जब तुम सोने जाओ तो विस्तर को, तकिए को , उसकी ठंडक को महसूस करो। तकिए को छुओ और उसके साथ खेलो। अपनी आंखें बंद कर लो और सिर्फ एयरकंडीशनर की आवाज को सुनो। घड़ी की आवाज को या चलती सड़क के शोरगुल को सुनो। कुछ भी सुनो लेकिन उसे नाम मत दो... कुछ कहो ही मत ।मन का उपयोग मत करो। बस अनुभूति में जीओं। सुबह जागने के पहले क्षण में, जब तुम्हें लगे कि नींद जा चुकी है तो तुरंत सोच-विचार मत करने लगो। कुछ क्षणों के लिए तुम फिर से बच्चे हो सकते हो। निर्दोष और ताजे हो सकते हो। तुरंत सोच-विचार में मत लग जाओ। यह मत सोचो कि क्या-क्या करना है। कब दफ्तर के लिए रवाना होना है, कौन सी गाड़ी पकड़नी है। सोच-विचार मत शुरू करो। उन मूढ़ताओं के लिए तुम्हें काफी समय मिलेगा। अभी रुको और अभी कुछ क्षणों के लिए सिर्फ ध्वनियों पर ध्यान दो।
14-उदाहरण के लिए एक पक्षी गाता है। वृक्षों से हवाएँ गुजर रही है। कोई बच्चा रोता है या दूध देने वाला आया है और पुकार रहा है। या वह पतीले में दूध डाल रहा है। जो भी हो रहा है उसे महसूस करो, उसके प्रति संवेदनशील बनो। खुले रहो ...उसकी अनुभूति में डुबो। और तुम्हारी संवेदनशीलता बढ़ जायेगी।जब स्नान करो तो उसे अपने पूरे शरीर पर अनुभव करो; पानी की प्रत्येक बूंद को अपने ऊपर गिरते हुए महसूस करो। उसके स्पर्श को, उसकी शीतलता और उष्णता को महसूस करो। पूरे दिन इसका प्रयोग करो; जब भी अवसर मिले प्रयोग करो। और सब जगह अवसर ही अवसर है। श्वास लेते हुए सिर्फ श्वास को अनुभव करो। भीतर जाती और बाहर आती श्वास को महसूस करो। केवल अनुभव करो। अपने शरीर को ही महसूस करो। तुमने उसे भी नहीं अनुभव किया है।हम अपने शरीर से भी इतने ही भयभीत है। कभी अपने शरीर को प्रेमपूर्वक स्पर्श नहीं करते है। क्या तुमने कभी अपने शरीर को ही प्रेम किया है। समूची सभ्यता इस बात से भयभीत है कि कोई अपने को ही स्पर्श करे। क्योंकि बचपन में स्पर्श वर्जित रहा है।
15-लेकिन अगर तुम अपने को ही प्रेम से स्पर्श नहीं कर सकते हो ; तो तुम्हारा शरीर जड़ हो जाता है ,मृत हो जाता है। वह दरअसल जड़ और मृत हो गया है।अपनी आंखों को स्पर्श करो। तुम्हारी आंखों तुरंत ताजी और जीविंत हो उठेगी। अपने पूरी शरीर को महसूस करो; तुम अधिक संवेदन शील हो जाओगे।संवेदनशीलता और अनुभूति पैदा करो।तभी तुम इन विधियों का प्रयोग सरलता से कर सकते हो। और तब तुम्हें अपने भीतर जीवन ऊर्जा के ऊपर उठने का अनुभव होगा। इस ऊर्जा को बीच में मत छोड़ो। उसे सहस्त्रार तक जाने दो। स्मरण रहे कि जब भी तुम यह प्रयोग करो तो उसे बीच में मत छोड़ो; उसे पूरा करो।यह भी ध्यान रहे कि इस प्रयोग में अगर तुम इस ऊर्जा को कहीं बीच में छोड़ दोगे तो उससे तुम्हें हानि हो सकती है। इस ऊर्जा को मुक्त करना होगा तो उसे सिर तक ले जाओ। और भाव करो कि तुम्हारा सिर एक द्वार बन गया है।इस देश में हमने सहस्त्रार को हजार पंखुड़ियों वाले कमल के रूप में चित्रित किया है।
16-सहस्त्रार का यही अर्थ है ..तो धारणा करो कि हजार पंखुड़ियों वाला कमल खिल रहा है। और उसकी प्रत्येक पंखुडी से यह प्रकाश ऊर्जा ब्रह्मांड में फैल रही है। यह फिर एक अर्थों में मिलन है; लेकिन यह प्रकृति के साथ नहीं , परम के साथ मिलन है। मिलन दो प्रकार का होता है। एक जो निम्नतम केंद्र से आता है और दूसरा जो उच्चतम केंद्र (स्प्रिचुअल )से आता है।उच्चतम केंद्र में तुम उच्चतम से मिलते हो और निम्नतम केंद्र में.. निम्नतम से।उर्जा को सिर तक जाना चाहिए। और वहीं से उसे मुक्त होना चाहिए।लेकिन ऊर्जा को कही शरीर में, किसी बीच के केंद्र में मत छोड़ो।अन्यथा वह केंद्र जहां तुम ऊर्जा को छोड़ोगे घाव बन जाएगा और तुम्हें मानसिक रूग्णताओं का शिकार होना पड़ेगा।तुम्हें अनेक अनुभव होंगे। जब तुम्हें लगेगा कि प्रकाश किरणें काम केंद्र से ऊपर उठने लगी है तो काम केंद्र पर विचित्रिता का अनुभव होगा। अनेक लोग बहुत भयभीत हो जाते है। और कहते है कि जब हम ध्यान में गहरे जाते है तो यह क्या होता है।वे भयभीत हो जाते है..क्योंकि वे सोचते है कि ध्यान मे कामुकता के लिए जगह नहीं होनी चाहिए। लेकिन यह अच्छा लक्षण है।
17-यह बताता है कि ऊर्जा उठ रही है। उसे गति की जरूरत है। तो आतंकित मत होओ। और यह मत सोचो कि कुछ गलत हो रहा है। यह शुभ लक्षण है। जब तुम ध्यान शुरू करते हो तो काम-केंद्र ज्यादा संवेदनशील, ज्यादा जीवंत हो जाएगा।परन्तु वह बिलकुल शीतल हो जाएगा ..जब उष्णता सिर में आ जाएगी।और यह शारीरिक बात है।लेकिन जब ऊर्जा ऊपर उठती है तो काम केंद्र बहुत ठंडा होने लगता है। और उष्णता सिर पर पहुंच जाती है। जब ऊर्जा सिर में पहुँचेगी तो तुम्हारा सिर घूमने लगेगा। कभी-कभी तुम्हें घबराहट भी होगी;क्योंकि पहली बार ऊर्जा सिर में पहुंची है। और तुम्हारा सिर उससे परिचित नहीं है। उसे ऊर्जा के साथ सामंजस्य बिठाना पड़ेगा।ऊर्जा सिर में पहुंच जाए तो तुम बेहोश भी हो सकते हो। लेकिन यह बेहोशी एक घंटे से ज्यादा देर तक नहीं रह सकती। घंटे भर के भीतर ऊर्जा अपने आप ही वापस लौट जाएगी या मुक्त हो जायेगी।
18-तुम उस अवस्था में कभी एक घंटे से ज्यादा देर नहीं रह सकते ।लेकिन असल में यह समय अड़तालीस मिनट है। यह उससे ज्यादा नहीं हो सकता,लाखों वर्षों में योगियों के प्रयोग के दौरान कभी ऐसा नहीं हुआ है।तो डरो मत; तुम बेहोश भी हो जाओ तो ठीक है।उस बेहोशी के बाद तुम इतने ताजा अनुभव करोगे कि तुम्हें लगेगा कि मैं पहली बार गहनत्म नींद से गुजरा हुं। योग में इसका एक विशेष नाम है; उसे योग-तंद्रा कहा जाता हे। यह बहुत गहरी नींद है। इसमे तुम अपने गहनत्म केंद्र पर सरक जाते हो।लेकिन ,अगर तुम्हारा सिर गरम भी हो जाए.. तो डरो मत ।यह भी शुभ लक्षण है। ऊर्जा को मुक्त होने दो। भाव करो कि तुम्हारा सिर कमल के फूल की भांति खिल रहा है। भाव करो कि ऊर्जा ब्रह्मांड में मुक्त हो रही है ..फैलती जा रही है और जैसे-जैसे ऊर्जा मुक्त होगी, तुम्हें शीतलता का अनुभव होगा। इस उष्णता के बाद जो शीतलता आती है ;उसका तुम्हें कोई अनुभव नहीं है। लेकिन विधि को पूरा प्रयोग करो; उसे कभी आधा अधूरा मत छोड़ो । ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 71 ;- 06 FACTS;-
1-भगवान शिव कहते है:- ‘या बीच के रिक्त स्थानों में यह बिजली कौंधने जैसा है—ऐसा भाव करो।
2-'एक केंद्र से दूसरे केंद्र तक ताकी हुई प्रकाश-किरणों में बिजली के कौंधने का अनुभव करो' ..थोड़े से फर्क के साथ यह विधि भी पहली विधि जैसी ही है।प्रकाश की छलांग का भाव करो। कुछ लोगों के लिए यह दूसरी विधि ज्यादा अनुकूल होगी, और कुछ लोगों के लिए पहली विधि ज्यादा अनुकूल होगी। यही कारण है कि इतना सा संशोधन किया गया है।ऐसे लोग है जो क्रमश: घटित होने वाली चीजों की धारणा नहीं बना रहते; और कुछ लोग है जो छलाँगों की धारणा नहीं बना सकते। अगर तुम क्रम की सोच सकते हो, चीजों के क्रम से होने की कल्पना कर सकते हो, तो तुम्हारे लिए पहली विधि ठीक है। लेकिन अगर तुम्हें पहली विधि के प्रयोग से पता चले कि प्रकाश-किरणें एक केंद्र से दूसरे केंद्र पर सीधे छलांग लेती है। तो तुम पहली विधि का प्रयोग मत करो। तब तुम्हारे लिए यह दूसरी विधि बेहतर है।यह बिजली कौंधने जैसा है—ऐसा भाव करो।’
3-भाव करो कि प्रकाश की एक चिनगारी एक केंद्र से दूसरे केंद्र पर छलांग लगा रही है। और दूसरी विधि ज्यादा सच है, क्योंकि प्रकाश सचमुच छलांग लेता है। उसमें कोई क्रमिक, कदम-ब-कदम विकास नहीं होता। विद्युत के प्रकाश को देखो। तुम सोचते हो कि यह स्थिर है; लेकिन वह भ्रम है। उसमें भी अंतराल है; लेकिन वे अंतराल इतने छोटे है कि तुम्हें उनका पता नहीं चलता है। विद्युत छलाँगों में आती है। एक छलांग, और उसके बाद अंधकार का अंतराल होता है। फिर दूसरी छलांग, और उसके बाद फिर अंधकार का अंतराल होती है ।लेकिन तुम्हें कभी अंतराल का पता नहीं चलता है। क्योंकि छलांग इतनी तीव्र है। अन्यथा प्रत्येक क्षण अंधकार आता है; पहले प्रकाश की छलांग और फिर अंधकार। प्रकाश कभी चलता नहीं, छलांग ही लेता है। और जो लोग छलांग की धारणा कर सकते है। यह दूसरी संशोधित विधि उनके लिए है। ‘या बीच के रिक्त स्थानों में यह बिजली कौंधने जैसा है—ऐसा भाव करो।’
4-प्रयोग करके देखो। अगर तुम्हें किरणों का क्रमिक ढंग से आना अच्छा लगता है तो वही ठीक है। और अगर वह अच्छा न लगे। और लगे कि किरणें छलांग ले रही है। तो किरणों की बात भूल जाओ और आकाश में कौंधने वाली विद्युत की, बादलों के बीच छलांग लेती विद्युत की धारणा करो।महिलायों के लिए पहली विधि आसान होगी और पुरूषों के लिए दूसरी । स्त्री–चित क्रमिकता की धारणा ज्यादा आसानी से बना सकता है और पुरूष-चित ज्यादा आसानी से छलांग लगा सकता है। पुरूष चित उछलकूद पसंद करता है; वह एक से दूसरी चीज पर छलांग लता है। पुरूष-चित में एक सूक्ष्म बेचैनी रहती है। स्त्री-चित में क्रमिकता की एक प्रक्रिया है। स्त्री-चित उछलकूद नहीं पसंद करता है। यही वजह है कि स्त्री और पुरूष के तर्क इतने अलग होते है। पुरूष एक चीज से दूसरी चीज पर छलांग लगाता रहता है। स्त्री को यह बात बड़ी बेबूझ लगती है। उसके लिए क्रमिक विकास जरूरी है।लेकिन चुनाव तुम्हारा है।प्रयोग करो,और जो विधि तुम्हें रास आए उसे चुन लो।
5-इस विधि के संबंध में और दो-तीन बातें महत्वपूर्ण है। बिजली कौंधने के भाव के साथ तुम्हें इतनी उष्णता अनुभव हो सकती है ,जो असहनीय मालूम पड़े। अगर ऐसा लगे तो इस विधि को प्रयोग मत करो। तब तुम्हारे लिए पहली विधि है। अगर वह तुम्हें रास आए। अगर बेचैनी महसूस हो तो दूसरी विधि का प्रयोग मत करो। कभी-कभी विस्फोट इतना बड़ा हो सकता है कि तुम भयभीत हो सकते हो। और यदि तुम एक दफा डर गए तो फिर तुम दुबारा प्रयोग न कर सकोगे। तब भय पकड़ लेता है। तो सदा ध्यान रहे कि किसी चीज से भी भयभीत नहीं होना है। अगर तुम्हें लगे कि भय होगा ओर तुम बरदाश्त न कर पाओगे तो प्रयोग मत करो। तब प्रकाश किरणों वाली पहली विधि सर्वश्रेष्ठ है।लेकिन यदि पहली विधि के प्रयोग में भी तुम्हें लगे कि अतिशय गर्मी पैदा हो रही है ...और ऐसा हो सकता है। क्योंकि लोग भिन्न-भिन्न है—तो भाव करो कि प्रकाश किरणें शीतल है, ठंडी है। तब तुम्हें सब चीजों में उष्णता की जगह ठंडक महसूस होगी। वह भी प्रभावी हो सकता है। तो निर्णय तुम पर निर्भर है; प्रयोग करके निर्णय करो।
6-स्मरण रहे, चाहे इस विधि के प्रयोग में चाहे अन्य विधियों के प्रयोग में, यदि तुम्हें बहुत बेचैनी अनुभव हो या कुछ असहनीय लगे तो मत करो। दूसरे उपाय भी है; दूसरी विधियां भी है। हो सकता है, यह विधि तुम्हारे लिए न हो। अनावश्यक उपद्रवों में पड़कर तुम समाधान की बजाय समस्याएं ही ज्यादा पैदा करोगे।इसीलिए एक विशेष योग का विकास किया गया है ..जिसे सहज योग कहते है।सहज का अर्थ है सरल, स्वाभाविक, स्वत: स्फूर्त। सहज को सदा याद रखो। अगर तुम्हें महसूस हो कि कोई विधि सहजता से तुम्हारे अनुकूल पड़ रही है। अगर वह तुम्हें रास आए अगर उसके प्रयोग से तुम ज्यादा स्वस्थ,ज्यादा जीवंत,ज्यादा सुखी अनुभव करो, तो समझो कि वह विधि तुम्हारे लिए है। तब उसके साथ यात्रा करो; तुम उस पर भरोसा कर सकते हो।मनुष्य की आंतरिक व्यवस्था बहुत जटिल है। अगर तुम कुछ भी जबरदस्ती करोगे तो तुम बहुत सी चीजें नष्ट कर दे सकते हो। इसलिए अच्छा है कि किसी ऐसी विधि के साथ प्रयोग करो जिसके साथ तुम्हारा अच्छा तालमेल हो। ...SHIVOHAM....

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