शिवदर्शन...बनारस...मतंगेश्वर मंदिर
हिंदू धर्म में बनारस, ‘देव भूमि’ के नाम से जाना जाता है। यह शहर, पवित्र गंगा नदी के किनारे बसा है। गंगा के किनारे कुल 88 घाट हैं। बनारस अपने धार्मिक महत्व के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। काशी विश्वनाथ मंदिर, उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित है। यह मंदिर हिन्दुओं के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है और भगवान शिव को समर्पित है। वाराणसी शहर को काशी के नाम से जाना जाता है, इसलिए यह मंदिर काशी विश्वनाथ के नाम से प्रसिद्ध है।
काशी विश्वनाथ ;-
ऐसा माना जाता है कि काशी में महादेव साक्षात् रूप में वास करते हैं, इसलिए इसे शिव की नगरी की भी कहा जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर, पवित्र नदी गंगा के पश्चिमी तट पर बना हुआ है। यह भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यहां पर भगवान शिव, वाम रूप में मां भगवती के साथ विराजमान हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर के दर्शन और गंगा में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। काशी तीनों लोकों में सबसे सुंदर नगरी है, जो भगवान शिव के त्रिशूल पर विराजती है। इसे आनन्दवन, आनन्दकानन, अविमुक्त क्षेत्र, काशी आदि नामों से स्मरण किया जाता है।
मंदिर की विशेषता;-
ऐसी मान्यता है कि जब पृथ्वी का निर्माण हुआ था, तब सूर्य की पहली किरण, काशी की धरती पर पड़ी थी। तब से काशी की नगरी ज्ञान और आध्यात्म का केंद्र बन गई।गंगा किनारे संकरी गली में स्थित विश्वनाथ मंदिर कई मंदिरों और पीठों से घिरा हुआ है। कहते हैं कि यहां पर एक कुआं है, जो मंदिर के उत्तर में स्थित है, जिसे ज्ञानवापी की संज्ञा दी जाती है।मंदिर के ऊपर एक सोने का बना छत्र है। इस छत्र को चमत्कारी माना जाता है और इसे लेकर एक मान्यता है, अगर भक्त इस छत्र के दर्शन करने के बाद कोई भी मनोकामना करते हैं तो उनकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है।काशी विश्वनाथ मंदिर में ज्योतिर्लिंग दो भागों में है। दाहिने भाग में मां, शक्ति के रूप में विराजमान हैं और दूसरी ओर भगवान शिव, वाम रूप में विराजमान हैं। इसलिए काशी को मुक्ति क्षेत्र कहा जाता है। कहते हैं कि श्रृंगार के समय सारी मूर्तियां पश्चिम मुखी होती हैं। इस ज्योतिर्लिंग में शिव और शक्ति, दोनों साथ ही विराजते हैं, जो अद्भुत है। ऐसा दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता है।बाबा विश्वनाथ के दरबार में तंत्र की दृष्टि से चार प्रमुख द्वार हैं, जिनका नाम शांति द्वार, कला द्वार, प्रतिष्ठा द्वार और निवृत्ति द्वार है। इन चारों द्वारों का तंत्र में अलग ही स्थान है। ऐसी और कोई जगह नहीं है जहां शिव-शक्ति एक साथ विराजमान हों और तंत्र द्वार भी हो। भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग, गर्भगृह में ईशान कोण में मौजूद है। इस कोण का मतलब संपूर्ण विद्या और हर कला में परिपूर्ण होना होता है।
करकोटक नागतीर्थ;-
शाश्वत धर्मनगरी काशी (वाराणसी) में धार्मिक रहस्यों की कमी नहीं है! यहां के नवापुरा नामक एक स्थान पर एक कुआं है, जिसके बारे में लोगों की मान्यता है कि इसकी अथाह गहराई पाताल और नागलोक तक जाती है।प्रचलित रूप में इसे करकोटक नागतीर्थ के नाम से जाना जाता है। यहां के लोग बताते हैं कि यहां स्थित कूप (कुएं) की गहराई कितनी है, इस बात की जानकारी किसी को भी नहीं।महर्षि पतंजलि ने अपने तप से इस कुंड का निर्माण कराया था। इसी स्थान पर महर्षि पतंजलि ने पतंजलिसूत्र और व्याकरणाचार्य पाणिनी ने महाभाष्य की रचना की थी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शिव नगरी काशी से ही नागलोक जाने का रास्ता है। नागकुंड के अंदर ही एक कुआं है जहां से नागलोक जाने का रास्ता है। कुआं के अंदर प्राचीन शिवलिंग भी स्थापित है जो साल भर पानी में डूबा रहता है और नागपंचमी के पहले कुंड का पानी निकाल कर शिवलिंग का श्रृंगार किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं की माने तो यहां पर आज भी नाग निवास करते हैं।कालसर्प योग से मुक्ति के लिए बेहद खास है नागकुंड, जहां पर दर्शन करने से कालसर्प योग से मुक्ति मिलती है।नागपंचमी के पहले कुंड का जल निकाल कर सफाई की जाती है फिर शिवलिंग की पूजा की जाती है इसके बाद नागकुंड फिर से पानी से भर जाता है।नागपंचमी के दिन नागकुंड में दर्शन करने वालों की सुबह से ही कतार लग जाती है।यहां पर दूर-दराज से लोग दर्शन करने आते हैं।नागकुंड का दर्शन करने से ही कालसर्प योग से मुक्ति मिलती है इसके अतिरिक्त जीवन में आने वाली सारी बाधाएं खत्म हो जाती है।बनारस में नागकुंड का विशेष स्थान है जिस नगरी में स्वयं महादेव विराजमन रहते हैं वहां का नागकुंड अनोखा फल देने वाला होता है।
शिवपूजा ओर रुद्र उपासना के विविधमत सम्प्रदाय;-
04 FACTS
1-निराकार ब्रह्म शिवसे इस सृष्टि की रचना हुई और प्रथम पंचतत्व के देवता गणपति , विष्णु , सूर्य , शक्ति और रुद्रदेव की उपासना शुरू हुई । उपासना ओर देव अनुसार वो विविध मत के सम्प्रदाय कहलाये। भगवान शिव तथा उनके अवतारों को मानने वालों को शैव कहते हैं। शैव में शाक्त, नाथ, दसनामी, नाग आदि उप संप्रदाय हैं।महाभारत में माहेश्वरों (शैव) के चार सम्प्रदाय बतलाए गए हैं:
(i) शैव (ii) पाशुपत (iii) कालदमन (iv) कापालिक।
2-शैवमत का मूलरूप ॠग्वेद में रुद्र की आराधना में हैं। 12 रुद्रों में प्रमुख रुद्र ही आगे चलकर शिव, शंकर, भोलेनाथ और महादेव कहलाए। शिव-मन्दिरों में शिव को योगमुद्रा में दर्शाया जाता है।भगवान शिव की पूजा करने वालों को शैव और शिव से संबंधित धर्म को शैवधर्म कहा जाता है।शिवलिंग उपासना का प्रारंभिक पुरातात्विक साक्ष्य हड़प्पा संस्कृति के अवशेषों से मिलता है।ऋग्वेद में शिव के लिए रुद्र नामक देवता का उल्लेख है।अथर्ववेद में शिव को भव, शर्व, पशुपति और भूपति कहा जाता है।लिंगपूजा का पहला स्पष्ट वर्णन मत्स्यपुराण में मिलता है।महाभारत के अनुशासन पर्व से भी लिंग पूजा का वर्णन मिलता है।
3-वामन पुराण में शैव संप्रदाय की संख्या चार बताई गई है:
(i) पाशुपत
(ii) काल्पलिक
(iii) कालमुख
(iv) लिंगायत
4-पाशुपत संप्रदाय शैवों का सबसे प्राचीन संप्रदाय है। इसके संस्थापक लवकुलीश थे जिन्हें भगवान शिव के 18 अवतारों में से एक माना जाता है।पाशुपत संप्रदाय के अनुयायियों को पंचार्थिक कहा गया, इस मत का सैद्धांतिक ग्रंथ पाशुपत सूत्र है।
कापालिक संप्रदाय के ईष्ट देव भैरव थे, इस सम्प्रदाय का प्रमुख केंद्र 'शैल' नामक स्थान था!कालमुख संप्रदाय के अनुयायिओं को शिव पुराण में महाव्रतधर कहा जाता है। इस संप्रदाय के लोग नर-कपाल में ही भोजन, जल और सुरापान करते थे और शरीर पर चिता की भस्म मलते थे।लिंगायत समुदाय दक्षिण में काफी प्रचलित था। इन्हें जंगम भी कहा जाता है, इस संप्रदाय के लोग शिव लिंग की उपासना करते थे। बसव पुराण में लिंगायत समुदाय के प्रवर्तक वल्लभ प्रभु और उनके शिष्य बासव को बताया गया है, इस संप्रदाय को वीरशिव संप्रदाय भी कहा जाता था। दसवीं शताब्दी में मत्स्येंद्रनाथ ने नाथ संप्रदाय की स्थापना की, इस संप्रदाय का व्यापक प्रचार प्रसार बाबा गोरखनाथ के समय में हुआ। दक्षिण भारत में शैवधर्म चालुक्य, राष्ट्रकूट, पल्लव और चोलों के समय लोकप्रिय रहा।नायनारों संतों की संख्या 63 बताई गई है जिनमें उप्पार, तिरूज्ञान, संबंदर और सुंदर मूर्ति के नाम उल्लेखनीय है।पल्लवकाल में शैव धर्म का प्रचार प्रसार नायनारों ने किया।ऐलेरा के कैलाश मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूटों ने करवाया।चोल शालक राजराज प्रथम ने तंजौर में राजराजेश्वर शैव मंदिर का निर्माण करवाया था। भारशिव नागवंशी शासकों की मुद्राओं पर शिव और नन्दी का एक साथ अंकन प्राप्त होता है।
शिव के दशावतार;-
शिव पुराण में शिव के दशावतारों के अलावा अन्य का वर्णन मिलता है। ये दसों अवतार तंत्रशास्त्र से संबंधित हैं:
(i) महाकाल (ii) तारा (iii) भुवनेश (iv) षोडश (v) भैरव (vi) छिन्नमस्तक गिरिजा (vii) धूम्रवान (viii) बगलामुखी (ix) मातंग (x) कमल। (दशमहाविद्या)
शिव के अन्य ग्यारह अवतार हैं:
(i) कपाली (ii) पिंगल (iii) भीम (iv) विरुपाक्ष (v) विलोहित (vi) शास्ता (vii) अजपाद (viii) आपिर्बुध्य (ix) शम्भ (x) चण्ड (xi) भव
शैव ग्रंथ;-
शैव ग्रंथ इस प्रकार हैं:
(i) श्वेताश्वतरा उपनिषद (ii) शिव पुराण (iii) आगम ग्रंथ (iv) तिरुमुराई
शैव तीर्थ इस प्रकार हैं:
(i) बनारस (ii) केदारनाथ (iii) सोमनाथ (iv) रामेश्वरम (v) चिदम्बरम (vi) अमरनाथ (vii) कैलाश मानसरोवर
शैव सम्प्रदाय के संस्कार;-
शैव सम्प्रदाय के संस्कार इस प्रकार हैं:
(i) शैव संप्रदाय के लोग एकेश्वरवादी होते हैं।
(ii) इसके संन्यासी जटा रखते हैं।
(iii) इसमें सिर तो मुंडाते हैं, लेकिन चोटी नहीं रखते।
(iv) इनके अनुष्ठान रात्रि में होते हैं।
(v) इनके अपने तांत्रिक मंत्र होते हैं।
(vi) यह निर्वस्त्र भी रहते हैं, भगवा वस्त्र भी पहनते हैं और हाथ में कमंडल, चिमटा रखकर धूनी भी रमाते हैं।
(vii) शैव चंद्र पर आधारित व्रत उपवास करते हैं।
(viii) शैव संप्रदाय में समाधि देने की परंपरा है।
(ix) शैव मंदिर को शिवालय कहते हैं जहां सिर्फ शिवलिंग होता है।
(x) यह भभूति तिलक आड़ा लगाते हैं।
शैव साधुओं को नाथ, अघोरी, अवधूत, बाबा, औघड़, योगी, सिद्ध कहा जाता है।
मतंगेश्वर मंदिर का रहस्य ;-
मतंगेश्वर मंदिर, खजुराहो - इसका निर्माणकाल 950-1002 ई. सन् के बीच का है। इसके गर्भगृह में वृहदाकार का शिवलिंग है, जो 8' 4ऊँचा है और 3'8 घेरे वाला है। इस शिवलिंग को मृत्युंजय महादेव के नाम से जाना जाता है।खजुराहो मतंगेश्वर महादेव मंदिर का रहस्य और खास बात लगभग 9 फिट ऊँचा शिवलिंग है। मतंगेश्वर मंदिर का रहस्य यह है की मंदिर में मौजूद भगवान शिव को समर्पित शिवलिंग हर साल ऊंचाई बढ़ जाती है। मतंगेश्वर मंदिर खजुराहो के सब मंदिरो में से यह मंदिर सुन्दर और पवित्र माना जाता है। मतंगेश्वर मंदिर के स्तंभ और दीवारों पर खजुराहो मंदिरो की तरह कामुक प्रतिमाये नहीं है।मतंगेश्वर मंदिर की शिवलिंग को मृत्युंजय महादेव के नाम से पहचाना जाता है । ऐसा माना जाता है की शिवलिंग जितना धरती के ऊपर दिखाई देता है उससे अधिक धरती के नीचे स्थापित है। मतंगेश्वर मंदिर स्थित भगवान महादेव की शिवलिंग की ऊंचाई करीबन 9 फिट है और जीतनी धरती के बाहर दिखती है उनसे ज्यादा धरती के अंदर स्थित है।खजुराहो मंदिर में विराजमान शिवलिंग के नीचे प्राचीन कथाओ के अनुसार मणि स्थित है। दर्शन करने वाले भक्तो की मनोकामना पूर्ण होती है। प्राचीन कथाओं के अनुसार भगवान शिव के पास मरकत मणि थी । जिस मणि को भगवान शिव ने पांडवो में सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर को दिया था। इसके बाद युधिष्ठिर ने मरकत मणि मतंगऋषि समर्पित कर दिया । इसके बाद यह मणि मतंगऋषि ने राजा हर्षवर्धन को दे दी।
मतंगऋषि के नाम से इस मंदिर का नाम मतंगेश्वर से नाम से पहचाना जाता है। मतंगऋषि ने इस मणि को सुरक्षा की दृस्टि से भगवान शिव के 18 फिट शिवलिंग के नीचे स्थापित किया गया है। जिसकी वजह से ...भगवान शिव और मणि के प्रताप से भक्तो की मांगी हुई हर मुराद पूर्ण होती है।
...SHIVOHAM...
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