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शिवसूत्र 14 -''दृष्‍टि ही सृष्‍टि है''।

NOTE;-महान शास्त्रों और गुरूज्ञान का संकलन...

07 FACTS

1--भगवान शिव कहते है-''दृष्‍टि ही सृष्‍टि है'' ।यह बात मनुष्य जीवन के संदर्भ में लागू होती है। व्यक्ति के विचार, उसकी दृष्टि कई बार उसके जीवन की दशा और दिशा निर्धारित करती हैं। यदि जीवन में हम सकारात्मक सोच रखें, तो सफलता अवश्य ही प्राप्त होती है। विपरीत परिस्थितियों को भी हम अनुकूल बना सकते हैं, बशर्ते हमारी दृष्टि नकारात्मक न हो। नकारात्मक सोच मनुष्य को मन व शरीर से निर्बल बना देती है। वहीं सकारात्मक सोच के बगैर व्यक्ति साम‌र्थ्यहीन हो जाता है। परम-पिता परमेश्वर ने मनुष्य को असीम शक्तियां प्रदान की हैं। सकारात्मक दृष्टि मनुष्य में अनंत ऊर्जा का समावेश कर उसे सद्प्रेरणा तो दे ही सकती है, साथ ही यह साधना की अनंत यात्रा में भी सहयोगी बनती है।निराशावादी को हर अवसर में कठिनाई दिखाई देती है और एक आशावादी को हर कठिनाई में अवसर दिखाई देता है।सकारात्मक दृष्टि से व्यक्ति के अंदर संघर्ष करने की शक्ति पैदा होती है जो मनुष्य को हार न मानने और इस जीवन क्षेत्र में लगातार जूझने की प्रेरणा देती है। सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ-साथ पुरुषार्थ और आध्यात्मिक विचारों का होना भी नितांत आवश्यक है। सकारात्मक दृष्टिकोण के सहारे व्यक्ति निर्भीक, निरहंकार और निस्वार्थ होकर साधना में सदैव तत्पर रह सकता है।

2-सभी रुकावटों और विपरीत परिस्थितियों के साथ तमाम विघ्न-बाधाओें को पार करने के लिए हममें उत्साह और ऊर्जा का लगातार बने रहना भी आवश्यक है।क्योंकि जिंदगी को देखने के ढंग पर निर्भर करता है ।वास्तव में, जिंदगी तुम ही बनाते हो, फिर तुम ही देखते हो और व्याख्या भी करते हो। तुम बिलकुल अकेले हो ;इसीलिए तुम्हारे संसार में कोई दूसरा न कभी प्रवेश करता है और न ही प्रवेश कर सकता है। यदि कोई प्रवेश भी करता है तो इसका अर्थ है कि तुमने ही आज्ञा दी है।जब तुम दुखी होते हो, तब तुम सहानुभूति मांगते हो। सहानुभूति पाने के लिए लोग अपने दुख की कथा एक दूसरे को बढ़ा चढ़ा कर सुनाते हैं। यह अनुभव करना कठिन है कि मैं ही जिम्मेवार हूं , तब तुम दुखी न हो सकोगे। और अगर दुखी होना चाहते हो तो शिकायत न कर सकोगे।लोग दुख की कथा सुनना भी नहीं चाहते क्योकि दुख की बातें सुनकर दूसरा भी उदास ही होगा । लेकिन, लोग सुनाये जाते है क्योकि शहीदगी का मजा आता है। और दूसरा भी तभी तक सुनता है, जब तक उसे आशा रहती है कि तुम भी उसकी सुनोगे। अन्यथा वह भाग जाएगा। तो एक समझौता है ..तुम अपने दुख की कथा कहकर हमें परेशान करो; हम अपने दुख की कथा कहकर तुम्हें परेशान करें और बराबर हो जाएं।

3-एक व्यक्ति के द्वारा दुख की इतनी चर्चा करने का कारण है कि वह सहानुभूति की अपेक्षा रखता है। दुख की बात करेगा तो कोई कहेगा कि बड़े दुखी हो।वास्तव में,तुम दुख के द्वारा दूसरे का प्रेम मांग रहे हो । इसलिए जब भी तुम दुखी होते हो, तब तुम्हें थोड़ी सी आशा चारों तरफ से मिलती है। लोग तुम्हें सहारा देते मालूम पड़ते हैं; सहानुभूति दिखलाते हैं। प्रेम तुम्हें जीवन में मिला नहीं है और सहानुभूति कचरा है; लेकिन जिसको असली सोना न मिला हो, वह फिर नकली सोने से काम चलाने लगता है।सहानुभूति नकली प्रेम है। आकांक्षा तो प्रेम की थी, लेकिन प्रेम को तो अर्जित करना होता है; क्योंकि प्रेम केवल उसी को मिलता है जो प्रेम दे सकता है। प्रेम दान का प्रतिफलन है जो तुम देने में असमर्थ हो; इसलिए तुम सिर्फ मांग रहे हो।तो जितने ज्यादा दुखी हो और मांगते हो,तो उतनी ही आसानी हो जाती है। क्योंकि दुखी व्यक्ति को देखकर कोई नहीं बोल पाता है।

हमें झूठी ही सही लेकिन सहानुभूति दिखानी ही पड़ती है ।

4-इसलिए तुम दुख को पकड़े हो, क्योंकि तुम्हें प्रेम नहीं मिला। जिसको जीवन में प्रेम मिला है , वह आनंदित होगा; वह आनंद को पकड़ेगा, दुख को नहीं। दुख पकड़ने जैसा नहीं है। फिर तुम्हें सुविधा है शिकायत करने में; क्योंकि, जब भी तुम कहते हो कि दूसरे तुम्हें दुखी कर रहे हैं, तब जिम्मेदारी का बोझ हट जाता है। और जब सारे शास्त्र एक ही बात कहते हैं कि तुम ही जिम्मेवार हो, कोई और नहीं—तब बड़ा बोझ मालूम पड़ता है। सबसे बड़ा बोझ तो यह मालूम पड़ता है कि अब तुम किसी की शिकायत नहीं कर सकते। और उससे भी बड़ा बोझ इस बात का पड़ता है कि अगर तुम ही जिम्मेवार हो तो अब तुम सहानुभूति किससे मांगोगे।और गहराइ में यह कठिनाई भी खड़ी होती है कि अगर तुम ही जिम्मेवार हो तो बदलाहट की जा सकती है। और बदलाहट करना एक क्रांति है, जिसमे एक रूपांतरण से गुजरना होता है।

5-समय की झील में जो हमें दिखाई पड़ता है, वही संसार है। लेकिन समय के बाहर हम देख ही नहीं पाते हैं। समय के माध्यम में जो झलकता है, उसे ही हम जानते हैं।जो समय के तत्व को जान लेता है, वह यह भी जान लेता है, यह जगत सिर्फ एक माया है, एक प्रतिबिंब है, एक स्वप्न है। और जो समय से मुक्त हो जाता है, वह जगत से भी तत्क्षण मुक्त हो जाता है। या जो जगत से मुक्त हो जाता है, वह समय से मुक्त हो जाता है। इसे सूक्ष्म में कह सकते हैं,कि समय ही संसार है। समय के बाहर हो जाना संसार के बाहर हो जाना है।लेकिन यह समय का तत्व बहुत अदभुत है। हम सभी अपनी कामना की गहनता के अनुसार अधिक या कम समय के भीतर हो सकते हैं। जितनी तीव्र वासना होती है, समय के भीतर उतना हमारा गहरा प्रवेश हो जाता है। जितनी क्षीण वासना होती है, उतना ही हम समय की परिधि पर आ जाते हैं।एक क्षण से ज्यादा किसी के हाथ में कभी इकट्ठा नहीं होता। जब एक क्षण सरक जाता है, तब दूसरा क्षण हाथ में आता है।

6-चाहे कितना ही बड़ा व्यक्ति हो,या कितना ही छोटा कमजोर हो कि शक्तिशाली हो, अज्ञानी हो कि ज्ञानी हो।अगर कोई इस एक क्षण में ही जीना शुरू कर दे, आने वाले क्षण की चिंता न करे, आकांक्षा न करे; बीते हुए क्षण को भूल जाए, स्मृति के बाहर कर दे। इस क्षण में ही ठहर जाए–तो ऐसे व्यक्ति को वासना में जाने का उपाय नहीं होगा। क्योंकि वासना इसी क्षण में नहीं हो सकती।इसी क्षण में तो केवल प्रार्थना ही हो सकती है ; ध्यान ही हो सकता है। इसी क्षण में तृष्णा नहीं हो सकती। तृष्णा के विस्तार के लिए भविष्य चाहिए। और भविष्य के फैलाव के लिए अतीत में जड़ें और स्मृति चाहिए। अगर अतीत भी नहीं, भविष्य भी नहीं, केवल यही क्षण है, तो समय गिर गया और वासना भी गिर गई।इसलिए ज्ञानी क्षण में जीना शुरू कर देता है, अभी और यहीं। और जैसे ही कोई अभी और यहीं जीता है, समय के बाहर हो जाता है। क्षण जो है, समय के बाहर होने का द्वार है।

तुम्हे अपनी सभी पुरानी आदतें तोड़नी होंगी। तुम्हारा एक पुराना ढांचा है, अब तक जो तुमने मकान बनाया है, वह पूरा का पूरा नरक है। लेकिन तुमने ही बनाया है, चाहे कितना ही बड़ा बना लिया हो, उसे पूरा गिराना पड़ेगा।

7-अतीत का सारा का सारा श्रम व्यर्थ जाता मालूम पड़ता है। इसलिए, तुम इस सत्य से बचने की कोशिश करते हो। लेकिन, जितने तुम बचोगे, उतने ही तुम भटकोगे।वास्तव में, तुम ही अपने अस्तित्व के केंद्र हो और कितना ही बुरा लगे , लेकिन तुम ही जिम्मेवार हो। इस सत्य को अगर स्वीकार कर लोगे तो जल्दी ही सारे दुख गायब हो जाएंगे। क्योंकि, एक बार यह स्पष्ट हो जाए कि यह किया कराया मेरा ही है,कोई दूसरा नहीं है... तो मिटाने में भी देर नहीं लगती है। लेकिन तब भी अगर तुम दुख में ही रस लेना चाहते हो ..तो तुम्हारी मर्जी। लेकिन, फिर शिकायत करने का कोई कारण नहीं। अगर तुम संसार में ही भटकना चाहते हो, नरक ही जाना चाहते हो, तो तुम्हारा चुनाव है। लेकिन, तब तुम शिकायत नहीं कर सकते ... प्रसन्नता से दुख में जीओ।जो व्यक्ति जैसे देखता है , उसका सारा जीवन वैसा ही होता है । इसलिए कहते हैं कि अच्छे से देखने की कोशिश करो , हर प्रसंग के हर घटना के दो पहलू हैं , गिलास आधा भरा है यह कितना बड़ा सच है ।गिलास आधा खाली है , ये भी उतना ही बड़ा सच है । दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं , पर आप किसको देखते हैं , आपका सब कुछ उस पर निर्भर करता है । आपकी जैसी दृष्टि होगी , बाहर वैसा सब कुछ दिखाई पड़ेगा । ''नजरें तेरी बदली तो नजारा बदल गया ,किश्ती ने बदला रूप तो किनारा बदल गया ''।


....SHIVOHAM....


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