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श्री गणेश जी के कल्याणकारी मन्त्र/बीज मन्त्रों के रहस्य


भगवान श्रीगणेश सभी जगहों पर अग्रपूजा के अधिकारी हैं। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत श्रीगणेश की पूजा के साथ ही करने का विधान है। श्री गणेश की पूजा से धन धान्य और समस्त सुखों की प्राप्ति होती है। मंत्रो मे से कोई भी एक मंत्र का जाप करे।

1- गं ।

2- ग्लं ।

3- ग्लौं ।

4 -श्री गणेशाय नमः ।

5- ॐ वरदाय नमः ।

6 -ॐ सुमंगलाय नमः ।

7- ॐ चिंतामणये नमः ।

8 - ॐ वक्रतुंडाय हुम् ।

9 -ॐ नमो भगवते गजाननाय ।

10 -ॐ गं गणपतये नमः ।

11-ॐ ॐ श्री गणेशाय नमः ।


इन मंत्रो के जप से व्यक्ति को जीवन में किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं रहता है परिस्थितिवश अगर कष्ट आता भी है तो उनसे पार पाने का सामर्थ्य मिलता है। आर्थिक स्थिति मे सुधार होता है।

एवं सर्व प्रकार की रिद्धि-सिद्धि प्राप्त होती है।


भगवान गणपति के अन्य दुर्भाग्य नाशक मंत्र

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ॐ गं गणपतये नमः

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ऐसा शास्त्रोक्त वचन हैं कि गणेश जी का यह मंत्र चमत्कारिक और तत्काल फल देने वाला मंत्र हैं। इस मंत्र का पूर्ण भक्तिपूर्वक जाप करने से समस्त बाधाएं दूर होती हैं। षडाक्षर का जप आर्थिक प्रगति व समृध्दिदायक है ।


ॐ वक्रतुंडाय हुम्‌

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किसी के द्वारा कि गई तांत्रिक क्रिया को नष्ट करने के लिए, विविध कामनाओं की शीघ्र पूर्ति के लिए उच्छिष्ट गणपति कि साधना की जाती हैं। उच्छिष्ट गणपति के मंत्र का जाप अक्षय भंडार प्रदान करने वाला हैं।


ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा

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आलस्य, निराशा, कलह, विघ्न दूर करने के लिए विघ्नराज रूप की आराधना का यह मंत्र जपे


ॐ गं क्षिप्रप्रसादनाय नम:

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मंत्र जाप से कर्म बंधन, रोगनिवारण, कुबुद्धि, कुसंगत्ति, दूर्भाग्य, से मुक्ति होती हैं। समस्त विघ्न दूर होकर धन, आध्यात्मिक चेतना के विकास एवं आत्मबल की प्राप्ति के लिए हेरम्बं गणपति का मंत्र जपे।


ॐ गूं नम:

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रोजगार की प्राप्ति व आर्थिक समृध्दि प्राप्त होकर सुख सौभाग्य प्राप्त होता हैं।


ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गण्पतये वर वरदे नमः ॐ तत्पुरुषाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात

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लक्ष्मी प्राप्ति एवं व्यवसाय बाधाएं दूर करने हेतु उत्तम मान गया हैं।


ॐ गीः गूं गणपतये नमः स्वाहा

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इस मंत्र के जाप से समस्त प्रकार के विघ्नो एवं संकटो का का नाश होता हैं।


ॐ श्री गं सौभाग्य गणपतये वर वरद सर्वजनं में वशमानय स्वाहा


अथवा


ॐ वक्रतुण्डेक द्रष्टाय क्लीं हीं श्रीं गं गणपतये वर वरद सर्वजनं मं दशमानय स्वाहा

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विवाह में आने वाले दोषो को दूर करने वालों को त्रैलोक्य मोहन गणेश मंत्र का जप करने से शीघ्र विवाह व अनुकूल जीवनसाथी की प्राप्ति होती है।


ॐ वर वरदाय विजय गणपतये नमः

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इस मंत्र के जाप से मुकदमे में सफलता प्राप्त होती हैं।


ॐ गं गणपतये सर्वविघ्न हराय सर्वाय सर्वगुरवे लम्बोदराय ह्रीं गं नमः

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वाद-विवाद, कोर्ट कचहरी में विजय प्राप्ति, शत्रु भय से छुटकारा पाने हेतु उत्तम।


ॐ नमः सिद्धिविनायकाय सर्वकार्यकर्त्रे सर्वविघ्न प्रशमनाय सर्व राज्य वश्य कारनाय सर्वजन सर्व स्त्री पुरुषाकर्षणाय श्री ॐ स्वाहा

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इस मंत्र के जाप को यात्रा में सफलता प्राप्ति हेतु प्रयोग किया जाता हैं।


ॐ हुं गं ग्लौं हरिद्रा गणपत्ये वरद वरद सर्वजन हृदये स्तम्भय स्वाहा

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यह हरिद्रा गणेश साधना का चमत्कारी मंत्र हैं।


ॐ ग्लौं गं गणपतये नमः

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गृह कलेश निवारण एवं घर में सुखशान्ति कि प्राप्ति हेतु।


ॐ गं लक्ष्म्यौ आगच्छ आगच्छ फट्

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इस मंत्र के जाप से दरिद्रता का नाश होकर, धन प्राप्ति के प्रबल योग बनने लगते हैं।


ॐ गणेश महालक्ष्म्यै नमः

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व्यापार से सम्बन्धित बाधाएं एवं परेशानियां निवारण एवं व्यापर में निरंतर उन्नति हेतु।


ॐ गं रोग मुक्तये फट्

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भयानक असाध्य रोगों से परेशानी होने पर, उचित ईलाज कराने पर भी लाभ प्राप्त नहीं होरहा हो, तो पूर्ण विश्वास सें मंत्र का जाप करने से या जानकार व्यक्ति से जाप करवाने से धीरे-धीरे रोगी को रोग से छुटकारा मिलता हैं।


ॐ अन्तरिक्षाय स्वाहा

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इस मंत्र के जाप से मनोकामना पूर्ति के अवसर प्राप्त होने लगते हैं।


गं गणपत्ये पुत्र वरदाय नमः

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इस मंत्र के जाप से उत्तम संतान कि प्राप्ति होती हैं।


ॐ वर वरदाय विजय गणपतये नमः

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इस मंत्र के जाप से मुकदमे में सफलता प्राप्त होती हैं।


ॐ श्री गणेश ऋण छिन्धि वरेण्य हुं नमः फट

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यह ऋण हर्ता मंत्र हैं। इस मंत्र का नियमित जाप करना चाहिए। इससे गणेश जी प्रसन्न होते है और साधक का ऋण चुकता होता है। कहा जाता है कि जिसके घर में एक बार भी इस मंत्र का उच्चारण हो जाता है है उसके घर में कभी भी ऋण या दरिद्रता नहीं आ सकती।


इन मंत्रों के अतिरिक्त गणपति अथर्वशीर्ष, संकटनाशक गणेश स्त्रोत, गणेशकवच, संतान गणपति स्त्रोत, ऋणहर्ता गणपति स्त्रोत, मयूरेश स्त्रोत, गणेश चालीसा का पाठ करते रहने से गणेश जी की शीघ्र कृपा प्राप्त होती है।


जप विधि;-

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प्रात: स्नानादि शुद्ध होकर कुश या ऊन के आसन पर पूर्व की ओर मुख कर बैठें। सामने गणॆश‌जी का चित्र, यंत्र या मूर्ति स्थाप्ति करें फिर षोडशोपचार या पंचोपचार से भगवान गजानन का पूजन कर प्रथम दिन संकल्प करें। इसके बाद भगवान गणेश का एकाग्रचित्त से ध्यान करें। नैवेद्य में यदि संभव हो तो बूंदि या बेसन के लड्डू का भोग लगाये नहीं तो गुड का भोग लगाये । साधक गणेश‌जी के चित्र या मूर्ति के सम्मुख शुद्ध घी का दीपक जलाए। रोज 1O8 माला का जाप करने से शीघ्र फल की प्राप्ति होती हैं।

बीज मन्त्रों के रहस्य;-

शास्त्रों में अनेकों बीज मन्त्र हैं....


1- "क्रीं" इसमें चार वर्ण हैं! [क,र,ई,अनुसार] क--काली, र--ब्रह्मा, ईकार--दुःखहरण।

अर्थ.. ब्रह्म-शक्ति-संपन्न महामाया काली मेरे दुखों का हरण करे।

2- "श्रीं" चार स्वर व्यंजन [श, र, ई, अनुसार]=श-महालक्ष्मी, र-धन-ऐश्वर्य, ई तुष्टि, अनुस्वार-- दुःखहरण।

अर्थ.. धन- ऐश्वर्य सम्पति, तुष्टि-पुष्टि की अधिष्ठात्री देवी लाष्मी मेरे दुखों का नाश कर।

3-"ह्रौं" [ह्र, औ, अनुसार] ह्र-शिव, औ-सदाशिव, अनुस्वार--दुःख हरण।

अर्थ.. शिव तथा सदाशिव कृपा कर मेरे दुखों का हरण करें।

4- "दूँ" [ द, ऊ, अनुस्वार]-द दुर्गा, ऊ--रक्षा, अनुस्वार करना।

अर्थ.. माँ दुर्गे मेरी रक्षा करो, यह दुर्गा बीज है।

5- "ह्रीं" यह शक्ति बीज अथवा माया बीज है।

[ह,र,ई,नाद, बिंदु,] ह-शिव, र-प्रकृति,ई-महामाया, नाद-विश्वमाता, बिंदु-दुःख हर्ता।

अर्थ.. शिवयुक्त विश्वमाता मेरे दुखों का हरण करे।

6-"ऐं" [ऐ, अनुस्वार]-- ऐ- सरस्वती, अनुस्वार-दुःखहरण।

अर्थ .. हे सरस्वती मेरे दुखों का अर्थात अविद्या का नाश कर।

7-"क्लीं" इसे काम बीज कहते हैं![क, ल,ई अनुस्वार]-क-कृष्ण अथवा काम,ल-इंद्र,ई-तुष्टि भाव, अनुस्वार-सुख दाता।

अर्थ .. कामदेव रूप श्री कृष्ण मुझे सुख-सौभाग्य दें।

8- "गं" यह गणपति बीज है। [ग, अनुस्वार] ग-गणेश, अनुस्वार-दुःखहरता।

अर्थ ..श्री गणेश मेरे विघ्नों को दुखों को दूर करें।

9- "हूँ" [ ह, ऊ, अनुस्वार]ह--शिव, ऊ भैरव, अनुस्वार-- दुःखहरता] यह कूर्च बीज है।

अर्थ .. असुर-सहारक शिव मेरे दुखों का नाश करें।

10-"ग्लौं" [ग,ल,औ,बिंदु]-ग-गणेश, ल-व्यापक रूप, आय-तेज, बिंदु-दुखहरण।

अर्थात व्यापक रूप विघ्नहर्ता गणेश अपने तेज से मेरे दुखों का नाश करें।

11-"स्त्रीं" [स,त,र,ई,बिंदु]-स-दुर्गा, त-तारण, र-मुक्ति, ई-महामाया, बिंदु-दुःखहरण।

अर्थात दुर्गा मुक्तिदाता, दुःखहर्ता,, भवसागर-तारिणी महामाया मेरे दुखों का नाश करें।

12-"क्षौं" [क्ष,र,औ,बिंदु] क्ष-नरीसिंह, र-ब्रह्मा, औ-ऊर्ध्व, बिंदु-दुःख-हरण।

अर्थात ऊर्ध्व केशी ब्रह्मस्वरूप नरसिंह भगवान मेरे दुखों को दूर कर।

13-"वं" [व्, बिंदु]व्-अमृत, बिंदु दुःखहरत।

[इसी प्रकार के कई बीज मन्त्र हैं] [शं-शंकर, फरौं-हनुमत, दं-विष्णु बीज, हं-आकाश बीज,यं अग्नि बीज, रं-जल बीज, लं पृथ्वी बीज, ज्ञं--ज्ञान बीज, भ्रं भैरव बीज।

अर्थात हे अमृतसागर, मेरे दुखों का हरण कर।

14-कालिका का महासेतु- "क्रीं",

त्रिपुर सुंदरी का महासेतु- "ह्रीं",

तारा का- "हूँ",

अन्नपूर्णा का- "श्रं",

लक्ष्मी का - "श्रीं"

15 - मुखशोधन मन्त्र निम्न हैं।

गणेश- ॐ गं

त्रिपुर सुन्दरी- श्रीं ॐ श्रीं ॐ श्रीं ॐ।

तारा- ह्रीं ह्रूं ह्रीं।

स्यामा- क्रीं क्रीं क्रीं ॐ ॐ ॐ क्रीं क्रीं क्रीं।

दुर्गा -ऐं ऐं ऐं।

बगलामुखी- ऐं ह्रीं ऐं।

मातंगी- ऐं ॐ ऐं।

लक्ष्मी- श्रीं।


...SHIVOHAM....

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