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श्रीकृष्ण ने गोपियों को समझाने के लिए उद्धव को वृंदावन भेजा था, पर वे सफल क्यों न हो पाए?

10 FACTS;-

1- ज्ञानी कभी प्रेमी को नहीं समझा सकता, क्योंकि ज्ञानी के पास कोरे शब्द होते हैं । उद्धव ज्ञानी थे , समझाने में कुशल होंगे। लेकिन उन्होंने तब तक जिनको समझाया होगा , वे गोपियां नहीं थीं, जिनको प्रेम का रस लग गया था। तुम्हें तभी तक ज्ञान सार्थक मालूम होगा, जब तक तुम्हें प्रेम का रस नहीं लगा।ज्ञानी उन्हीं को झाड़ सकता है, जो प्रेम के काटे नहीं हैं।ज्ञानी उनके काम का है, जिनकी प्यास ही नहीं जगी। लेकिन जिसको प्यास जग गई, और प्रेम की भनक पड़ गई, तो उद्धव व्यर्थ थे।वास्तव में, श्रीकृष्ण ने उद्धव को गोपियों को समझाने भेजा ही नहीं था;बल्कि उद्धव को समझने भेजा था ..गोपियों को। श्रीकृष्ण ने उद्धव को अकल दी कि यहां तू बड़ा पंडित हुआ जा रहा है। क्योंकि जिनको तू समझा रहा है, उनको प्रेम का रस ही नहीं लगा है, उनकी प्यास ही नहीं जगी है। तो तुम्हारी ज्ञान की बातो पर, वे सिर हिलाते हैं। जब प्रेमी मिलेगा, तब तेरी ज्ञान की बातें जरा भी काम न आएंगी। जिसको प्यास लगी है, उसको तुम पानी का शास्त्र समझाओगे, तो क्या फल होगा? वे कहेंगे, पानी चाहिए।गोपियों ने कहा, श्री कृष्ण चाहिए, तुम किसलिए आए हो? उद्धव बड़े चतुर बने।अगर थोड़ी अकल होती तो जाना ही नहीं था। पहले ही गोपियों के हाथ जोड़ लेना था, कि मैं जाने वाला नहीं। क्योंकि वहां हम व्यर्थ ही सिद्ध होंगे।वे श्री कृष्ण को मांगती थीं, उद्धव को नहीं।

2-संदेशवाहक नहीं चाहिए; चिट्ठी -पत्री लाने से क्या होगा! बुलाया था प्रेमी को, आ गया पोस्टमैन! इनसे क्या लेना -देना है? उन्होंने उद्धव को बैरंग वापस भेज दिया ।वह उद्धव को समझाने के लिए ही श्री कृष्ण ने खेल किया होगा। इतना तो पक्का था कि श्री कृष्ण तो समझते हैं कि गोपियां नहीं समझाई जा सकतीं। श्री कृष्ण से कम पर वे राजी न होंगी।प्रेमी का अर्थ है, परमात्मा से कम पर जो राजी न होगा। तुम परमात्मा के संबंध में समझाओ... तो प्रेमी कहेगा, क्यों व्यर्थ की बातें कर रहे हो?उसे परमात्मा के संबंध में नहीं जानना है । उसे तो परमात्मा को जानना है।परमात्मा के संबंध में वेद क्या कहते हैं, उपनिषद क्या कहते हैं, शास्त्रों में क्या लिखा है, क्या नहीं लिखा है... वह कहेगा, बंद करो यह बकवास। मुझे परमात्मा चाहिए। परमात्मा मिल गया, तो मुझे वेद मिल गए। परमात्मा ही मेरा वेद है।लेकिन पंडित वेद को भगवान बतलाता है। प्रेमी को भगवान ही वेद है। और बड़ा फर्क है ... जमीन -आसमान का फर्क है। तुम मांगते हो भगवान को, वह ले आता है वेद की पोथियों को।

3-वह कहता है, सब इसमें लिखा है।यह ऐसे ही है, जैसे कोई भूखा मर रहा हो और तुम जाकर पाक शास्त्र का ग्रंथ सामने रख दो और कहो कि सब तरह के भोज -मिष्ठान्न, सब इसमें लिखे हैं।भूखा आदमी तुम्हारे पाक शास्त्र को उठाकर फेंक देगा ।भरा पेट ही होगा, तो विश्राम से बैठकर पाक शास्त्र को पढ़ेगा। लेकिन जिसको परमात्मा की भूख लग गई है, वेद ,उपनिषद ..सब असार है। वह परमात्मा को चाहता है; उससे कम पर वह राजी नहीं है। और गोपियां न केवल परमात्मा को चाहती थीं, बल्कि उनको परमात्मा का स्वाद भी लग गया था, वे परमात्मा को जान भी चुकी थीं। जिसने परमात्मा को न जाना हो, उसको प्यास भी लगी हो, तो शायद थोड़ी बहुत देर पंडित उसको भरमा ले। क्योंकि उसके पास अनुभव की कोई कसौटी तो है नहीं । इसलिए अज्ञानी को पंडित भरमा लेता है। लेकिन जिसको ध्यान की जरा सी भी भनक आ गई, फिर पंडित उसको नहीं भरमा सकता।

ये गोपिया श्री कृष्ण के साथ नाच चुकी थीं; वह उनकी स्मृति में संजोया हुआ मंदिर था। वह स्मृति भूलती नहीं थी, बिसरती नहीं थी। वह तो निशि वासर, दिन रात भीतर कौंधती रहती थी।

4-एक दफा जिसने श्री कृष्ण का साथ चख लिया , नाच लिया श्री कृष्ण के साथ वृक्षों के तले पूर्णिमा की रातों में, अब इसे पंडित भरमा नहीं सकता।उद्धव खूब समझाए होंगे, ज्ञान की बातें की होंगी। गोपियों ने उनकी जरा भी न सुनी। बल्कि गोपिया नाराज हुईं कि श्री कृष्ण ने यह कैसा मजाक किया! यह बरदाश्त के बाहर है। और प्रेमी परमात्मा से नाराज हो सकता है... सिर्फ प्रेमी! पंडित कभी नहीं नाराज हो सकता। पंडित तो डरता है। प्रेमी थोड़े ही डरता है, प्रेम तो अभय है। गोपियां नाराज हुईं। यह मजाक बरदाश्त के बाहर है। इस उद्धव को किसलिए भेजा? इससे क्या लेना देना है?आना हो, श्री कृष्ण आ जाएं; कम से कम पंडितों को तो न भेजें। परमात्मा चाहिए, शास्त्र नहीं; ज्ञान नहीं, अनुभव चाहिए। गोपिया बहुत नाराज हुईं। प्रेमी नाराज हो सकते हैं।प्रेमीअपनी प्रार्थनाओं में कहता है कि देख, तू एक बात ठीक से समझ ले; हमें तेरी जरूरत है, वह पक्का; तुझे भी हमारी जरूरत है! इसलिए तू यह मत समझ कि तू हम पर कोई अनुग्रह कर रहा है। हमारे बिना तू भगवान न होगा। भक्त के बिना भगवान कैसे होगा? माना कि हम भक्त न होंगे, वह भी ठीक। लेकिन तू भी भगवान न होगा। जितनी हमें तेरी जरूरत है, उतनी तुझे हमारी जरूरत है। इसका सदा खयाल रख; इसको भूल मत जा।

5- प्रेमी ही लड़ सकता है,क्योकि भय नहीं है। पंडित तो डरता है, देखता है, कहीं क्रियाकांड में कोई भूल न हो जाए; कि शास्त्र में जैसी विधि लिखी है, वैसी पूरी होनी चाहिए। पता नहीं परमात्मा नाराज हो जाए।इसने परमात्मा को जाना नहीं। परमात्मा कहीं नाराज होता है? यह पहचाना ही नहीं। इसे पता ही नहीं कि परमात्मा नाराज होता ही नहीं। नाराज होने जैसी घटना परमात्मा में घटती ही नहीं।गोपियां बहुत नाराज हुईं उद्धव पर। और उन्होंने उनको बैरंग ही भेज दिया कि तुम जाओ, तुम्हें किसने बुलाया? और वे खूब हंसी उद्धव पर... उनकी ज्ञान की बातों पर। पंडित सदा ही प्रेमी के पास आकर मुश्किल में पड़ जाएगा। यह कथा बड़ी प्रतीकात्मक है।पंडित कभी भी प्रेमी के सामने सफल नहीं हो सकता। अगर वह सफल होता दिखाई पड़ता है, तो उसका कुल कारण इतना है कि प्रेमी मौजूद नहीं है; परमात्मा को कोई खोज नहीं रहा है। जिस दिन तुम परमात्मा को खोजोगे, उसी दिन तुम सिर्फ उसे मानोगे, जो ज्ञान नहीं, अनुभव दे सकता है; जो तुम्हें परमात्मा के संबंध में नहीं बताता, जो तुम्हें परमात्मा बता सकता है। उसको ही हमने गुरु कहा है। 6-इसलिए संत कबीर कहते हैं, गुरु गोविंद दोई खड़े, काके लागू पाय। दोनों सामने खड़े हैं ;संत कबीर बड़ी मुश्किल में पड़ गए हैं, कि किसके पैर लगै? क्योंकि अगर परमात्मा के पैर लगे ,तो उचित न होगा। अगर गुरु के पैर लगे , तो भी अड़चन मालूम पड़ती है। परमात्मा सामने खड़े थे, पहले मैं गुरु के पैर लगा! पद बड़ा मधुर है और उसके दो अर्थ हो सकते हैं।गुरु गोविंद दोई खड़े, काके लागू पाय।बलिहारी गुरु आपकी, जो गोविंद दियो बताय।।इसके दो अर्थ संभव हैं। एक अर्थ तो यह है कि शिष्य को अड़चन में पड़ा देखकर गुरु ने गोविंद की तरफ इशारा कर दिया कि तू गोविंद के पैर लग। दूसरा अर्थ यह है कि किसके पैर पडूं? दोनों सामने खड़े हैं।तब वे गुरु के पैर पर गिर पड़े, क्योंकि उन्होंने जाना, सोचा ...तुमने ही गोविंद बताया, नहीं तो गोविंद को हम देख ही कैसे पाते! इसलिए तुम्हारे पैर पहले छू लेते हैं।गुरु का अर्थ है, जिसने जाना हो और जो तुम्हें जना दे। जिसने देखा हो और जो तुम्हें दिखा दे। शब्द यह न कर पाएंगे।गुरु भी शब्दों का उपयोग करता है, लेकिन निशब्द की तरफ ले जाने के लिए; शास्त्र का सहारा लेता है, तुम्हें कभी बेसहारा कर देने के लिए; समझाता है, तुम्हारे मन को उस घड़ी में ले जाने के लिए, जहां सब समझ -नासमझ छूट जाती है। इसलिए गुरु के लिए शब्द अंत नहीं है, केवल साधन है। पंडित के लिए शब्द सब कुछ है, साधन भी, साध्य भी, उसके पार कुछ भी नहीं है।उद्धव हारे क्योंकि पंडित सदा हारता रहा है। और श्री कृष्ण ने उद्धव को भेजकर, बिलकुल ठीक ही किया।

...SHIVOHAM....



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