षट्चक्र शक्ति जागरण मंत्र...
1-वास्तव में,आपकी कुण्डलिनी शक्ति मनुष्य की सबसे रहस्यमयी और बेहद शक्तिशाली उर्जा है;जिसके जाग जाने से व्यक्ति पुरुष से परम पुरुष हो जाता है ।परन्तु कुण्डलिनी शक्ति को जगाना कोई आसान काम नहीं है। बड़े-बड़े योगियों की भी उम्र बीत जाती है; तब जा कर कहीं कुण्डलिनी को जगा पाते हैं। किन्तु आप के लिए एक सरल उपाय भी है ;जो इसको जगा कर आपको महापुरुष बना सकती है। अपने गुरु से शक्तिपात ले कर या आशीर्वाद ले कर मंत्र सहित कुण्डलिनी ध्यान करना शुरू करें। कुछ दिनों के प्रयास से ही कुण्डलिनी ऊर्जा अनुभव होने लगेगी।किन्तु इसका एक नियम भी है ..वो ये है की आपको नशों से दूर रहना होगा। मांस मदिरा या किसी तरह का नशा गुटका, खैनी, पान, तम्बाकू, सिगरेट-बीडी, मदिरा सेवन से बचते हुए ही ये प्रयोग करें, तो सफलता जरूर मिलेगी।साधारणतया कुण्डलिनी शक्ति जगाये बिना ही इस मंत्र से षट्चक्र शक्ति जागरण हो जाता है।इस प्रयोग को सुबह और शाम दोनों समय किया जा सकता है। ढीले वस्त्र पहन कर गले में कोई भी माला धारण कर लें और हाथों में मौली बाँध लें जो आपको मनो उर्जा देगी। फिर सुखासन में बैठ जाएँ, पर जमीन पर एक आसन जरूर बिछा लें। यदि संभव हो तो आसन जमीन से ऊंचा रखें। अब आँखें बंद कर तिलक लगाने वाले स्थान पर यानि दोनों भौवों के बीच ध्यान लगाते हुए मंत्र गुनगुनाये... ।
मंत्र;-
''हुं यं रं लं वं सः हं क्षं ॐ''
चक्र बीज मंत्र;-
पहला चक्र : मूलाधार तत्व : पृथ्वी बीज मंत्र : लं चक्र रंग : लाल
शरीर में; गुदा के पास दूसरा चक्र : स्वाधिष्ठान तत्व : जल बीज मंत्र : वं चक्र रंग :नारंगी
शरीर में;नाभि में चौथा चक्र : अनाहद तत्व : वायु बीज मंत्र : यं चक्र रंग : हरा
शरीर में;ह्रदय में पांचवा चक्र : विशुद्धि तत्व : आकाश बीज मंत्र : हं चक्र रंग : नीला
शरीर में;कंठ में छठवां चक्र : आज्ञाचक्र बीज मंत्र : हं ; क्षं चक्र रंग : बैंगनी
शरीर में;भौहों के बीच
NOTE;-आज्ञाचक्र दो पंखुडिय़ों वाला एक कमल है। जो इस बात को दर्शाता है कि चेतना के इस स्तर पर 'केवल दो' धाराएं मौजूद हैं एक नेगेटिव और दूसरा पॉजिटिव। दोनों के मिलने से बिंदु की उत्पत्ति होती है।यह 3 प्रमुख नाडिय़ों, इडा (चंद्र नाड़ी) पिंगला (सूर्य नाड़ी) और सुषुम्ना (केन्द्रीय, मध्य नाड़ी) के मिलने का स्थान है। जब इन तीनों नाडिय़ों की ऊर्जा यहां मिलती है और आगे उठती है, तब हमें समाधि, सर्वोच्च चेतना प्राप्त होती है।इसका चिह्न एक श्वेत शिवलिंगम्, सृजनात्मक चेतना का प्रतीक है। इस स्तर पर केवल शुद्ध मानव और दैवी गुण होते हैं। सातवां चक्र : सहस्रार बीज मंत्र : ॐ
शरीर में;चोटी वाले स्थान पर
NOTE;-
आप पद्ममासन/सुखासन में ध्यान करते हुए इस मन्त्र का जप करे ।परन्तु जप करने से पूर्व ''ॐ सत चित( चित्त )एकम (एक्कम) ब्रह्म;'' मंत्र 108 बार अवश्य जप करे ।इस मंत्र में प्रणव यानि की ॐ का उच्चारण मंत्र के अंत में होता है।जबकि आमतौर पर ये सबसे पहले लगाया जाने वाला प्रमुख बीज है।अब लगातार लम्बी और गहरी सांसे लेते हुए मंत्र का उच्चारण करते रहें तो आप देखेंगे की तरह-तरह के अनुभव आपको इस मंत्र से होने लगेंगे। धीरे-धीरे स्पन्दन बढ़ने लगेगा। इस अवस्था में फिर गुरु का मार्गदर्शन मिल जाए तो ये ऊर्जा किसी भी कार्य में लगायी जा सकती है। भौतिक जगत में लगा कर आप अनेक प्रकार के भोग-भोग सकते हैं या चाहें तो योगिओं की भांति अनन्त का ज्ञान प्राप्त कर दुखों से मुक्त हो परम आनदमय मृत्यु रहित जीवन जी सकते है। कुण्डलिनी ऊर्जा का प्रयोग सदा अच्छे कार्यों में ही करना चाहिए अन्यथा उद्दंडता करने पर ये प्रकृति आपका विनाश भी कर सकती है ।
...SHIVOHAM...
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