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DHYAN SET-01 सक्रिय और निष्क्रिय ध्यान की विधियों का क्या महत्व है?

क्या है सक्रिय ध्यान /Active Meditation और निष्क्रिय ध्यान/Passive meditation;-

06 FACTS;-

1-ध्यान की विधियों को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है – सक्रिय ध्यान की विधियाँ और निष्क्रिय ध्यान की विधियाँ।सक्रिय ध्यान वह ध्यान है जिसमें शरीर सक्रिय होता है, क्रियाशील होता है, शरीर में गति होती है; और निष्क्रिय ध्यान वह होता है जिसमें शरीर स्थिर होता है, शांत होता है, विश्राम में होता है, इसमें कोई गति नहीं होती ।मनुष्य के व्यक्तित्व के

तीन केंद्र है ।आधुनिक मनुष्य के मन का गुणधर्म अब बदल चुका है।महृषि पतंजलि के युग में मनुष्य के व्यक्तित्व का केंद्र मस्तिष्क नहीं हृदय था। इससे पहले हृदय भी नहीं था। उससे भी नीचे के तल पर नाभि के पास था। अब यह तल नाभि से भी दूर हो गया है। अब केंद्र मस्तिष्क हो गया है।नाभि हमारे प्राणों का स्रोत है, वह बीज-स्रोत है,जो शरीर, मन और आत्मा का उदगम है ।

2-चेतना /Consciousnessशरीर के किसी भी केंद्र का उपयोग कर सकती है। उस मूल स्रोत/Original Source का निकटतम केंद्र नाभि है। मस्तिष्क मूल स्रोत से सबसे दूर है। तो यदि जीवन-ऊर्जा बहिर्गामी/ Outgoingहोगी तो चेतना का केंद्र मस्तिष्क होगा; और यदि जीवन-ऊर्जा अंतर्गामी/ Inbound होगी तो अंत में नाभि ही उसका केंद्र होगी।चेतना को उसके मूल तक वापिस खींचने के लिये सक्रिय विधियों की आवश्यकता है क्योंकि रूपांतरण जड़ से ही संभव है। नहीं तो आप शाब्दिक तल पर ही रहेंगे और आपका रूपांतरण न हो पायेगा। क्या सही है- केवल इसे जानना ही काफी नहीं । आपकी जड़ों को रूपांतरित करना होगा नहीं तो आप बदल नहीं पायेंगे।जब एक व्यक्ति सही को जानता है और उसे कर नहीं पाता तो वह दोगुना तनावग्रस्त हो जाता है। वह समझता है पर कुछ कर नहीं पाता। समझ तभी सार्थक है यदि वह नाभि से, जड़ से आती है। यदि आप मस्तिष्क से समझते हैं तो वह रूपांतरण नहीं है। 3-इसीलिए आज भजन गान उतना उपयोगी नहीं क्योंकि हृदय बहुत बोझीला हो गया है और भजन गान में न खिल पायेगा।उसे चेतना के स्रोत तक लाना होगा। तभी रूपांतरण की संभावना है। इसीलिए आज शाब्दिक ज्ञान से रूपांतरण नहीं होता। यह केवल फिर से ज्ञान का संग्रह बन जाता है।सक्रिय विधियां केंद्र को मस्तिष्क के नीचे ढकेलने में सहायक होती है। कोई भी व्यवस्थित ध्यान /Systematic attention केंद्र को नीचे ढकेलने में असमर्थ होता है क्योंकि Management मस्तिष्क का कार्य है।Systematic Method से,मस्तिष्क और भी सशक्त होता है; इसमें और भी ऊर्जा बढ़ती जाती है। सक्रिय विधि द्वारा मस्तिष्क प्राणविहीन होता जाता है। इसका कोई लेना देना नहीं रहता। केंद्र स्वत: ही मस्तिष्क से हृदय की ओर धकेला जाता है। यदि आप सक्रिय ध्यान को पूरी शक्ति से, अव्यवस्थित ढंग से करते हैं तो आपका केंद्र हृदय की ओर आने लगता है। तभी रेचन होगा। 4-Catharsis/रेचन आवश्यक है क्योंकि मस्तिष्क के कारण हृदय Repressed/ दमित है। आपका मस्तिष्क आपके व्यक्तित्व पर इतना हावी हो गया है कि यह आपको नियंत्रित करता है। हृदय के लिये कोई स्थान नहीं; अत: हृदय की आकांक्षाएं दबी रह्ती हैं। आप कभी दिल खोल कर नहीं हंसे, दिल खोल कर नहीं जीये, कभी भी दिल खोल कर कुछ नहीं किया। चीज़ों को गणित के अनुसार व्यवस्थित करने के लिये मस्तिष्क एकदम बीच में आ जाता है। अत: सर्वप्रथम एक विधि चाहिये जो चेतना के केंद्र को मस्तिष्क से हृदय पर ले जाये।फिर हृदय को निर्भार /Weightless करने के लिये,Repressed emotions /दमित भावों को बाहर फेंकने के लिये रेचन चाहिये। यदि हृदय हल्का तथा निर्भार हो तो चेतना का केंद्र और भी नीचे लाया जा सकता है; यह नाभि के पास आ जाता है। 5-जब भी आप अव्यवस्थित होते हैं तो आपका मस्तिष्क कार्य करना बंद कर देता है। उदाहरण के लिये यदि आप कार चला रहे हैं और कोई आपके सामने आ जाता है तो आप एकदम इस प्रकार प्रतिक्रिया करते हैं कि वह मस्तिष्क का काम नहीं हो सकता। मस्तिष्क को समय लगता है। यह सोचता है क्या करना चाहिये क्या नहीं। तो जब भी दुर्घटना की संभावना होती है और आप ब्रेक लगाते हैं तो आपकी नाभि संवेदंनशील हो उठती है जैसे कि आपका पेट प्रतिक्रिया कर रहा हो। दुर्घटना की आशंका से आपकी चेतना नाभि की ओर उतर आती है। यदि दुर्घटना का आभास पहले से ही हो तो मस्तिष्क उसका उपाय कर लेगा; परंतु दुर्घटना के दौरान कुछ अज्ञात घटता है। तब आप देखते हैं कि आपकी चेतना नाभि की ओर आ गयी है। 6-परम को मस्तिष्क द्वारा नहीं जाना जा सकता क्योंकि जब आप मस्तिष्क द्वारा कार्य करते हैं तो जड़ों से संघर्ष करते हैं जहाँ से आप आये हैं। आपकी सारी समस्या यह है कि नाभि से आपका नाता टूट गया है। आप नाभि से आये हो और नाभि पर ही मर जाएंगे। हमें अपने मूल पर आना होगा । परंतु वापिस आना बड़ा कठिन, बड़ा दुर्गम लगता है। यदि तुम बिना कुछ

किए बैठ सको, तो वह परम ध्यान है।सक्रिय ध्यान अथार्त अक्रिया को पाने का एक उपाय ।तुम निष्क्रियता में तभी उतर सकते हो जब सब कचरा बाहर फेंक दिया गया हो। क्रोध , लोभ बाहर फेंक दिया गया हो...इन चीजों की तहों पर तहें जमीं हुई हैं। लेकिन एक बार तुम यह सब बाहर फेंक देते हो, तो तुम आसानी से भीतर उतर सकते हो। फिर कोई रुकावट नहीं है और फिर अचानक तुम एक अलग ही जगत में होते हो।कोशिका/Cell में विद्युत का संचार होता है तथा फेफड़ों में जमा हुई जहरीली हवा बाहर निकल जाती है। दमित भावनाओं से मुक्ति मिलती है।सक्रिय ध्यान से मन की ग्रंथियाँ खुलती है। शरीर की अनावश्यक चर्बी घटकर शरीर ऊर्जा और फूर्ति से भर जाता है। शरीर के सभी रोगों में यह लाभदायक माना जाता है। यह ध्यान विधि व्यक्ति को जागरूक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।विज्ञान भैरव-तंत्र में भगवान शिव ने जो 112 ध्यान की विधियाँ दी हैं ये Internal Energy Science के क्षेत्र में एक अद्वितीय खोज है । NOTE;-

आमतौर पर ध्यान सक्रिय ध्यान से ही शुरू किया जाना चाहिए क्योंकि सामान्यतः हम इतने दमन में जीते रहें हैं कि इतना कुछ इकट्ठा हो गया है हमारे अचेतन में – घृणा, क्रोध, रोष, द्वेष – इतना इकट्ठा हो चुका है कि वो मन को शांत होने देता ही नहीं । तो सबसे पहले हमें अपने अचेतन को ख़ाली करना होगा । तभी हम जब विपश्यना कर रहें होंगे तो साँस पर ध्यान केंद्रित कर पायेंगे । नहीं तो जैसे ही ध्यान केंद्रित करना शुरू करेंगे, विचारों की भीड़, विचारों की बाढ़ सारी शांति को भंग कर देगी । इसीलिए यह बहुत ही आवश्यक है कि आप कुछ समय तक सक्रिय ध्यान करें । कोई भी एक विधि चुन लें अपने लिए । उसके पश्चात् आप निष्क्रिय ध्यान में प्रवेश कर सकते हैं । और दोनों ध्यान साथ-साथ भी किये जा सकते हैं । कुछ समय सक्रिय, कुछ समय निष्क्रिय । यदि आप लेट कर कभी विपश्यना करेंगे तो आप देखेंगे कि आप बहुत जल्दी सो जाते हैं । शवासन निद्रासन बन जाता है क्योंकि शरीर को जागरण की समझ ही नहीं है ।

वैसे, हम कितने ही निष्क्रिय ध्यान करते रहें, लड़ते रहें, लेकिन अचेतन की हलचल ध्यान सधने ही नहीं देगी । इसीलिए पहले थोड़ा अचेतन को ख़ाली करें । सक्रिय और निष्क्रिय विधियों के बीच एक समन्वय स्थापित करें । और आज से ही, बल्कि अभी से ही इन विधियों को करें ।ये वास्तव में ध्यान नहीं हैं। तुम बस लय बिठा रहे हो। यह संगीत नहीं है, बस तैयारी है।जब वह तैयार हो जाए, तो फिर तुम मौन में स्थिर हो जाओ, फिर ध्यान शुरू होता है। फिर तुम पूर्णतया वहीं होते हो।सर्किल में घूमकर, नाच कर, श्वास-प्रश्वास से, तुमने स्वयं को जगा लिया--ये सब युक्तियां हैं कि तुम थोड़े और ज्यादा सजग हो जाओ। एक बार तुम सजग हो जाओगे , तो फिर प्रतीक्षा शुरू होती है। पूरे होश के साथ प्रतीक्षा करना ही ध्यान है। और फिर वह आता है, जो तुम्हें स्वच्छ और रूपांतरित कर देता है।

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सक्रिय ध्यान की पहली विधि ;-

02 FACTS;- 1-हमारे भीतर जो भी शक्ति पड़ी है उसे चोट देकर जगाना है। तो दस मिनट का जो दूसरा ध्यान का चरण है , उसमें इतने जोर से श्वास लेनी है कि भीतर कोई गुंजाइश ही न रह जाए कि हम इससे ज्यादा भी ले सकते थे। श्वास की पूरी ताकत लगा देनी है। और जब आप श्वास की पूरी ताकत लगाएंगे, तो शरीर Vbrate लगेगा। जितने जोर से चोट पड़ेगी, उतना ही शरीर डोलेगा।उसको रोकना नहीं है।न हीं सख्त होकर खड़े हो जाना है।

2-दस मिनट में पूरी की पूरी हमारे फेफड़े में जितनी भी वायु है उस सबको रूपांतरित कर लेना है, बदल देना है।हमारे

फेफड़े में कोई छह हजार छिद्र हैं।जिसमें मुश्किल से डेढ़ या दो हजार तक हमारी श्वास पहुंचती है, बाकी चार हजार सदा ही बंद पड़े रह जाते हैं, उनमें कार्बन डाय-आक्साइड ही इकट्ठी होती रहती है। पूरे के पूरे फेफड़े के सारे छिद्रों में नई आक्सीजन, नई प्राणवायु पहुंचा देनी है। जैसे ही प्राणवायु की मात्रा भीतर बढ़ती है; वैसे ही शरीर की Electric Energy जगनी शुरू हो

जाती है। आप अनुभव करेंगे कि शरीर इलेक्ट्रिफाइड हो गया, उसमें Current दौड़ने लगेगा। अगर यह दूसरा चरण पूरा नहीं किया गया, तो तीसरे चरण में प्रवेश नहीं हो सकेगा। ऐसे ही जैसे कोई पहली सीढ़ी पर न चढ़ा हो तो दूसरी सीढ़ी पर न जा सके। पहली सीढ़ी पर पैर रखना जरूरी है, तभी दूसरी सीढ़ी पर चढ़ा जा सकता है। सक्रिय ध्यान की दूसरी विधि ;- 02 FACTS;- 1-इस विधि के पहले चरण में बहुत बलपूर्वक साँस छोड़नी है, पूरी शक्ति लगा देनी है। बस साँस बाहर छोड़नी है,।जितनी ऊर्जा से आप साँस छोड़ सकते हैं, छोड़ें । साँस लेने की चिन्ता न करें, शरीर स्वयं साँस ले लेगा। बस आप छोड़ने की चिन्ता करें ।साँस छोड़ें पूरे ज़ोर से, पूरी तन्मयता से Finely, in full concentration, In full swing , बस साँस छोड़ें । तो इस चरण में 15 मिनिट इस विधि से साँस छोड़नी होती है । जब आप 15 मिनिट तक यह चरण कर पाते हैं, इसमें पूरा डूब के, तो अचानक आप यह पाते हैं कि आपका चेतन मन पूरा ख़ाली हो गया ; ऊर्जा पूरी की पूरी समाप्त हो गयी है । तब अचानक आपका अचेतन खुल जाता है, और तब दूसरा चरण शुरू होता है ।

2-Subconscious/अचेतन में जितने भी दमित विचार होते हैं, भावनायें होती हैं, वो अचानक Burst out /फूट पड़ती हैं।क्योंकि इस दूसरे चरण में जो दमित भावनाओं को काबू करने वाला नैतिक मन है, जो चेतन में वास करता है, वो थोड़ी देर के लिये निढाल होकर, पस्त हो जाता है, और इन दमित चीज़ों को रोकने वाला कोई नहीं है । 15 मिनिट के इस चरण के बाद आप एक हलकापन महसूस करते हैं और आप तीसरे चरण में प्रवेश करने के लिये तैयार हो जाते हैं ।

//////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////// सक्रिय ध्यान की तीसरी विधि; –

02 FACTS;-

1-विज्ञानं भैरव तंत्र की ध्यान विधि 27 में...भगवान शिव कहते है:-

''पूरी तरह थकनें तक घूमते रहो, और तब जमीन पर गिरकर, इस गिरने में पूर्ण होओ।'' शरीर के साक्षी बने रहें और शरीर को Swing करने दें ,झूमने दें, ऊर्जा जिस दिशा में बहती है बस बहने दें, अलाऊ करें, लेट-गो करें ।बस झूमें और तब तक झूमते रहें जब तक आपकी पूरी ऊर्जा समाप्त न हो जाये, ऊर्जा का एक-एक कण जो मौजूद है आपके अंदर वो नृत्य में मिट न जाये । जब ऐसा होगा तो अचानक आप निढाल होकर गिर जायेंगे, लेट जायेंगे; और जब आप लेटेंगे, तब आप देखेंगे कि आप साक्षी हैं अपने मृतप्राय-शरीर के । क्योंकि याद रखिये जब आप बहुत थके होते हैं तब मन को कुछ भी सोचने के लिये,कोई ऊर्जा नहीं मिलती और जब मन सोच नहीं रहा होता है तब आप ध्यान में होते हैं ।जब आप बहुत ही ज़्यादा थके होते हैं तो नींद भी गहरी आती है, और गहरी नींद में बहुत कम सपने आते हैं, न के बराबर होते हैं ।

2-जब हम थके नहीं होते हैं तो light sleep होती है और सपने बहुत होते हैं।जब शरीर थका नहीं होता है तब मन थक जाता है क्योंकि जब शरीर थका ही नहीं है तो शरीर में ऊर्जा है और वो ऊर्जा मन तक जा रही है, और मन सोच रहा है तो SOUND SLEEP नहीं आती । इसके विपरीत जब आप थक जाएँ तो मन के पास कोई ऊर्जा नहीं होती, तब मन दुर्बल हो जाता है और थोड़ी देर के लिये शांत हो जाता है, तो नींद भी गहरी आती है । वैसे ही जब आप नृत्य करते-करते इतने थक जायें की शरीर में हिलने तक की ऊर्जा न हो, हिल भी न पायें, शरीर जब इतना ऊर्जाहीन हो जाये, तब आप देखेंगे कि मन शांत हो गया । और जब मन शांत हो गया तब आप अपने शरीर के साक्षी बन पाएँगे ।जस्ट बी ..बस होना, ही ध्यान है ।

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चौथी विधि –दौड़ना .. दौड़ना शुरु करें और दौड़ें और दौड़ें और दौड़ते जायें जब तक आप पस्त ही न हो जायें, जब तक आपकी पूरी ऊर्जा बाहर न निकल जाये, दौड़ने में बह न जाये । जब अंदर कुछ न रह जाये तब आप शक्तिहीन हो जाते हैं । और जब आप गिरते हैं तो आपको वही अनुभव होगा जो आपको नृत्य के पश्चात होता है, वही साक्षी भाव, वही बस होने का भाव ।

///////////////////////////////////////////////// पांचवी विधि; –बहुत ज़ोर से हँसना या रोना...

02 FACTS;- 1-जितनी आपकी विस्फोटक हँसी / Explosive laughter होगी उतने आप निर्भार होते जायेंगे और जितनी गहराई में आप रो पायेंगे आप उतना ही निर्भार होते जायेंगे ।हम इसका Psychology समझने का प्रयास करें । यह भी Repression/दमन से सम्बंधित है । दो प्रकार की चीज़ें हमारे मानसिक दमन का हिस्सा हैं । पहली है ख़ुशी के क्षण जब हम खिलखिलाकर, मस्ती में हँसना चाहते थे, लेकिन सामाजिक नैतिकता ने हमें हँसने न दिया, और हमने अपनी हँसी को दबा लिया । दूसरी है कभी हम रोना चाहते थे वहाँ भी नैतिकता आ गयी । लोग क्या कहेंगे इसका डर आ गया । लोक-निंदा ने कभी न हँसने दिया, न कभी रोने दिया; न खुशी में नृत्य करने दिया, न दुख में उदास होने दिया । ये सारे भाव दमित हो जाते हैं और हमारे अचेतन में चले जाते हैं । तो जब कभी आप ज़ोर से हँसते हैं, , तब Repressed Emotions को बाहर निकलने का रास्ता मिल जाता है। इस हँसी से आपको उन क्षणों को जीने का मौक़ा मिलता है जो आप नहीं जी पाये थे ।

2-ज़ोर से हँसना और ज़ोर से रोना स्वस्थ तन-मन के लिये बहुत ही आवश्यक है । तो जब भी कभी मौक़ा मिले ज़ोर से हँसिये, ऐसी हँसी जो शरीर के एक-एक अंग को तरंगित कर दे । पूरी सोई हुई ऊर्जा को जगा दे । ज़ोर से हँसना दो काम करता है – पहला: वो आपकी दमित भावनाओ को बाहर निकालता है, आप अचेतन से मुक्त होते हैं, रिक्त होते हैं, ख़ाली होते हैं, और आप हलके हो जाते हैं, निर्भार हो जाते हैं । दूसरा: आपकी जो सोई हुई ऊर्जा है उस पर चोट पड़ती है । हँसने से Cells /कोशिकाएँ जो बेजान सी हो गयी हैं उनमें एक ऊर्जा का प्रवाह होता है । वैसे ही, रोना deep Cry भी आपको निर्भार करता है और आपके शारीरिक-मानसिक तंत्र को तरोताज़ा कर देता है ।पहली बार आपको एक अजीब सा हल्कापन महसूस होता है और यह ध्यान की शून्यता ही है।


/////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////////// निष्क्रिय ध्यान/Passive Meditation;-

03 FACTS;- 1-निष्क्रिय ध्यान का मतलब है जब शरीर स्थिर है, इसमें क्रिया नहीं होती, विश्राम में होता है ।विज्ञान भैरव-तंत्र में से यह पहली विधि विपश्यना की है । इस विधि में हमें साँसों को देखना होता है। साँस जब अंदर आ रही होती है धीरे…धीरे…धीरे तो इसको देखिए । अंदर आकर वो एक बिन्दु पर रूकती है क्योंकि उसे बाहर की यात्रा शुरू करनी होती है, तो वह एक क्षण के लिये रूकती है और बाहर की ओर यात्रा शुरू करती है । फिर धीरे…धीरे…धीरे बाहर निकलती है और फिर एक क्षण के लिये रुकती है वापस अपनी यात्रा आरंभ करने के लिए । ये जो विश्राम के क्षण हैं इनमें शरीर साँस नहीं लेता । इन क्षणों को ध्यान से देखिए ।आप पायेंगे कि इन क्षणों में विचार भी नहीं होता क्योंकि जब आप साँस नहीं ले रहे होते हैं तो मन रुक जाता है । और मन का रुकना, विचारशून्य होना ही ध्यान है । तो जब कभी समय मिले तो अपनी साँस का अवलोकन करें, बस देखते रहें ।

और एक बात ध्यान से समझना है कि आपको साँस को देखना है इसका मतलब है आपको महसूस करना है अंदर आते हुए, बाहर जाते हुए साँस के प्रवाह को ।

2-इसके सम्बन्ध में कुछ भी सोचना नहीं है । यह अपने अंदर बार-बार बात नहीं लानी है कि अब साँस अंदर आ रही है, अब बाहर जा रही है । बस आपको देखना है, महसूस करना है । सबसे ज़रूरी बात ये है कि अंतराल के वे क्षण जहाँ मन रुक जाता है उन्हें स्वाभाविक रूप से आने दें, उन तक पहुँचने की जल्दी न करें, न उन्हें बलपूर्वक पैदा करें । आमतौर पर ध्यानी यही सोचते रहते हैं कि अब वो क्षण आने वाला है, आ रहा है । इस जल्दीबाज़ी में हम सब चूक जाते हैं । यदि पूरे समय आप यही सोचते रहे कि, “वो क्षण कब आएगा”, तो वह आ के चला भी जायेगा और आप सोचते रह जायेंगे । तो जब वो क्षण आये उस क्षण में रुकें, जब फिर साँस शुरू हो तो साँस के साथ फिर यात्रा करें । गति में रहें, यात्रा करें, यात्रा करते-करते फिर वो क्षण आये, फिर रुक जायें ।

3-इस साधारण सी विधि को विपश्यना कहा जाता है । यह बहुत ही प्राचीन विधि है... रूपांतरण का महामंत्र है । यह सबसे ज्यादा प्रभावी विधियों में से एक है । इसलिए भी प्रभावी है क्योंकि साँस ही एक ऐसी चीज़ है जो हम हमेशा ही लेते रहते हैं । तो कहीं भी, सोते समय भी, विपश्यना किया जा सकता है ।दूसरी ज़रूरी बात यह है कि यह विपश्यना प्राणायाम नहीं है । आपको साँसों को नियंत्रित नहीं करना है, साँसों को ज़बरदस्ती गहरा नहीं करना है, उथला नहीं करना है, रोकना नहीं है, छोड़ना नहीं है । बस देखना है स्वभाविक रूप से । साँस आ रही है, रुक रही है, फिर चल रही है, फिर रुक रही है । बहना है, थमना है, फिर बहना है, थमना है । धीरे…धीरे…धीरे साँस के साक्षी बनना है, उसके नियंत्रक नहीं बनना है । अनलोम-विलोम नहीं करना है । न साँस गहरी लेनी है । जैसी साँस चल रही है बस उसे देखते रहना है । और यह करते समय हमेशा ध्यान रखें कि मन आपका बड़ा चालाक है । वो आपसे यह तुरंत पूछेगा कि, “अब कुछ मिलेगा ? अब कुछ मिला क्या ?” तो इन प्रश्नों में उलझें ना । मन की पुरानी आदतें हैं तो विचार तो आयेंगे ही । जब विपश्यना करते समय विचार आयें तो बस एक साँस झटके से छोड़ दें, । जैसे ही आप ये करेंगे आप तुरन्त महसूस करेंगे कि आप वर्तमान में आ गये । अचानक विचारों की धुंध छट गयी और होश का सूरज चमक उठा । तो जब कभी विचारों में उलझें तो झटके से साँस छोड़कर उससे बाहर निकलें । और फिर विपश्यना पर ध्यान केंद्रित करें । दूसरी विधि है .....होशपूर्ण जीवन;- जो कुछ भी आप करते हैं, जहाँ कहीं भी होते हैं बस वहीं रहिए, नाऊ एंड हियर, अभी और यहीं । छोटे से छोटे काम होशपूर्वक करिए । आप कपड़े पहन रहे हैं तो देखिए कि शर्ट में आपने बटन लगाए, लगा रहे हैं एक बटन, दूसरा बटन; आप खाना खा रहे हैं तो देखिए, होश में कि आपने रोटी तोड़ी, सब्ज़ी में डाली, मुँह में रखी, रोटी चबा रहे हैं; पानी पियें तो देखें कि पानी आपकी जीभ को छू रहा है, और गले तक जा रहा है, और उतर रहा है अंदर । हर एक चीज़ को जागे-जागे करें, सोये-सोये न करें । छोटी सी छोटी चीज़ आपके ध्यान को गहरा सकती है यदि आप जागरुक हो कर रहे हैं । कंघी कर रहे हैं तो देखिए कंघी आपने उठायी, बालों में फेरी; सुबह आप ब्रश करते हैं तो देखिए ब्रश पहले एक तरफ़ जा रहा है दाँतों में, फिर दूसरी तरफ़ जा रहा है ।देखें होश में सब कुछ ।और जब कभी आप विचारों में उलझें तो वही विधि, साँसों को झटके से छोड़ दें, आप फिर वहीं आ जायेंगे । फिर अपने रास्ते चल पड़ें ।

तीसरी विधि; - आप इनमें से कोई भी विधि चुन सकते हैं ,जो आपको उपयुक्त लगे, सुविधाजनक लगे ।


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