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WHAT ARE THE STORIES OF BANKEY BIHARI TEMPLE (ThePrince of Vrindavan)?

  • Writer: Chida nanda
    Chida nanda
  • May 9, 2017
  • 8 min read

वृंदावन में स्थित बांके बिहारी मंदिर एक हिंदू मंदिर है, जिसे प्रचीन गायक तानसेन के गुरू स्वमी हरिदास ने बनवाया था। भगवान कृष्ण को समर्पित इस मंदिर में राजस्थानी शैली की बेहतरीन नक्काशी की गई है। बांके का शब्दिक अर्थ होता है- तीन जगह से मुड़ा हुआ और बिहारी का अर्थ होता है- श्रेष्ठ उपभोक्ता। इस आधार पर मंदिर में रखी कृष्ण की मुख्य प्रतिमा प्रसिद्ध त्रिभंगा मुद्रा में है। यह मंदिर हिंदू धर्म में काफी पवित्र माना जाता है और यहां हर दिन हजारों श्रद्धालू आते हैं। नियम तोड़ने पर इस मंदिर में जा सकती है आँखों की रोशनी, पढ़ें एक रहस्यमय सच्चाई---- स्वामी जी और मंदिर के भीतर स्थापित मूर्ति की जो कहानी है यदि आप वह जानेंगे तो दंग रह जाएंगे। कहते हैं स्वामी जी ने स्वयं निधिवन में श्रीकृष्ण का स्मरण कर इस मूर्ति को अपने सामने पाया था। प्रथम हूं हुती अब हूं आगे हूं रही है न तरिहहिं जैसें अंग अंग कि उजराई सुघराई चतुराई सुंदरता ऐसें श्री हरिदास के स्वामी श्यामा कुंजबिहारी सम वस् वैसें”... इस पंक्ति को स्माप्त करते हुए जैसे ही स्वामी जी ने आंखें खोली तो उनके सामने राधा-कृष्ण स्वयं प्रकट हुए। -- देखकर स्वामी जी और उनके साथ उपस्थित भक्तों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। स्वामी जी के निवेदन अनुसार राधा कृष्ण की वह छाया एक हो गई और एक मूर्ति का आकार लेकर वहां प्रकट हो गई। आज यही मूर्ति बांके बिहारी मंदिर में सदियों से स्थापित है। यह वही मूर्ति है जो स्वयं राधा-कृष्ण द्वारा स्वामी जी को प्रदान दी गई। राधा-कृष्ण अपने भव्य अवतार में उनके सामने प्रकट तो हुए लेकिन जाते-जाते छोड़ गए अपनी एक मूरत, काले रंग की सुंदर-सी कृष्णजी की मूरत! इस मूरत को स्वामी जी ने काफी सहेज कर रखा और बाद में मंदिर में स्थापित कराया। स्वामी जी का जन्म राधा अष्टमी के दिन श्री आशुधीर और उनकी पत्नी श्रामति गंगादेवी के यहां 1535 बिक्रमी को हुआ था। उनका जन्म एक छोटे से गांव में हुआ था जो आज के समय में हरिदासपुर के नाम से जाना जाता है। यह गांव आज अलीगढ़, उत्तर प्रदेश में स्थित है। लेकिन आखिरकार स्वामी हरिदास जी को ही हरि के रूप श्रीकृष्ण ने दर्शन क्यों दिए। इसके पीछे एक लंबी कहानी और इतिहास छिपा है... दरअसल स्वामी हरिदास जी के पूर्वजों का श्रीकृष्ण से एक गहरा नाता था। कहते हैं उनके एक पूर्वज श्री गंगाचार्य जी बाल कान्हा और बलराम से मिले थे। श्री वासुदेव के आग्रह पर उन्होंने ही कान्हा और बलराम का नामकरण किया था। और फिर श्री आशुधीर के यहां ही कुछ वर्षों के बाद ब्रिज के इसी स्थान पर स्वामी हरिदास जी का जन्म हुआ। कहते हैं स्वामी हरिदास जी को श्रीकृष्ण की एक सखी का ही स्वरूप माना गया है, जिनका नाम ललिता था। शायद यही कारण था कि स्वामी हरिदास जी को बचपन से ही अध्यात्म एवं धर्म से अति प्रेम था। जिस उम्र में बच्चे खेलते-कूदते हैं, जीवन का आनंद लेते हैं उस उम्र में स्वामी हरिदास जी ज्ञान के मार्ग पर काफी आगे निकल चुके थे। कहते हैं स्वामी हरिदास जी का विवाह हिन्दू विवाह के आधार पर सही उम्र में हो गया था। लेकिन शादी के बाद भी वे जीवन के उन तमाम आनंदों से दूर रहे जो एक आम इंसान भोगता है। उन्होंने केवल ‘ध्यान’ की ओर ही अपना लगाव रखा। स्वामी जी का विवाह हरिमति नामक एक स्त्री से हुआ, जो कि स्वयं भी ध्यान एवं साधना की ओर आकर्षित थीं। कहते हैं कि जब हरिमति जी को यह ज्ञात हुआ कि उनके पति कोई आम इंसान नहीं वरन् कृष्ण के काल से संबंध रखने वाले ज्ञानी हैं तो उन्होंने स्वयं भी तपस्या का मार्ग चुन लिया। उनकी तपस्या में इतनी अग्नि थी कि वे अपने शरीर का परित्याग कर अग्नि की ज्योति बनकर दिये में समा गईं। इस वाक्या के बाद हरिदास जी ने भी गांव छोड़ दिया और वृंदावन की ओर निकल पड़े। उस वृंदावन वैसा नहीं था जैसा कि आज हम देखते हैं। चारों ओर घना जंगल, इंसान के नाम पर कोई नामो-निशान नहीं... ऐसे घने जंगल में प्रवेश लेने के बाद स्वामी जी ने अपने लिए एक स्थान चुना और वहीं समाधि लगाकर बैठ गए। स्वामी जी जहां बैठे थे वह निधिवन था.... निधिवन का श्रीकृष्ण से गहरा रिश्ता है। कहते हैं आज भी कान्हा यहां आकर रोज़ाना रात्रि में गोपियों संग रासलीला करते हैं। लेकिन जो कोई भी उनकी इस रासलीला को देखने की कोशिश करता है वह कभी वापस नहीं लौटता। वृंदावन के इन जंगलों में बैठकर दिनों, महीनों और वर्षों तक स्वामी जी ने नित्या रास और नित्या बिहार में तप किया। यह उनकी साधना के रागमयी अंदाज़ थे, वे इन राग में गाते, सुर लगाते और ईश्वर के रंग में घुल जाते।इसके बाद हरिदास जी श्री कृष्ण की भक्ति में डूबकर भजन गाने लगे। राधा कृष्ण की युगल जोड़ी प्रकट हुई और अचानक हरिदास के स्वर में बदलाव आ गया और गाने लगे- 'भाई री सहज जोरी प्रकट भई, जुरंग की गौर स्याम घन दामिनी जैसे। प्रथम है हुती अब हूं आगे हूं रहि है न टरि है तैसे।। अंग अंग की उजकाई सुघराई चतुराई सुंदरता ऐसे। श्री हरिदास के स्वामी श्यामा पुंज बिहारी सम वैसे वैसे।।'मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को स्वामी हरिदासजी की आराधना को साकार रूप देने के लिए बांकेबिहारीजी की प्रतिमा निधिवन में प्रकट हुई। स्वामीजी ने इस प्रतिमा को वहीं प्रतिष्ठित कर दिया। मुगलों के आक्रमण के समय भक्त इन्हें भरतपुर ले गए। वृंदावन के भरतपुर वाला बगीचा नाम के स्थान पर वि.सं. 1921 में मंदिर निर्माण होने पर बांकेबिहारी एक बार फिर वृंदावन में प्रतिष्ठित हुए, तब से यहीं भक्तों को दर्शन दे रहे हैं। बिहारीजी की प्रमुख विशेषता यह है कि यहां साल में केवल एक दिन (जन्माष्टमी के बाद भोर में) मंगला आरती होती है, जबकि वैष्णवी मंदिरों में यह नित्य सुबह मंगला आरती होने की परंपरा है कहते हैं स्वामी जी के अनुयायियों ने एक बार उनसे उनकी साधना को देखने और आनंद लेने के लिए निवेदन किया और कहा कि वे निधिवन में दाखिल होकर उन्हें तप करते देखना चाहते हैं। अपने कहे अनुसार वे सभी निधिवन के उस स्थान पर पहुंचे भी लेकिन उन्होंने जो देखा वह हैरान करने वाला था। वहां स्वामी जी नहीं वरन् एक तेज़ रोशनी थी, इतनी तेज़ मानो सूरज हो और अपनी ऊर्जा से सारे जग में रोशनी कर दे। इस प्रसंग के बाद ही स्वामी जी के अनुयायियों को उनकी भक्ति और शक्ति का ऐहसास हो गया। स्वामी जी के निवेदन से ही श्रीकृष्ण और राधा उनक समक्ष प्रकट हुए थे और उन्हें जाते-जाते अपनी एक मूरत सौंप गए। इस दृश्य को स्वामी जी के सभी भक्तों ने अपनी आंखों से देखा था। कहते हैं श्रीकृष्ण की मौजूदगी का असर ऐसा था कि कोई भी भक्त अपनी आंखें भी झपका नहीं पा रहा था। मानो सभी पत्थर की मूरत बन गए हों।इस तेज से प्रजवलित होकर स्वामी जी ने राधे-कृष्णा से आग्रह किया कि कृपा वे अपने इस रूप को एक कर दें। यह संसार उन दोनों के इस तेज को सहन नहीं कर पाएगा। साथ ही वे जाने से पहले अपना एक अंश उनके पास छोड़ जाएं। स्वामी जी कि इसी इच्छा को पूरा करते हुए राधे-कृष्णा ने अपनी एक काली मूर्ति वहां छोड़ दी, यही मूरत आज बांके बिहारी मंदिर में स्थापित है। कहते हैं कि जो कोई भी भक्त मंदिर परिसर पर रखी कान्हा जी की इस मूरत की आंखों की ओर अधिक समय तक देखता है वह अपना आपा खोने लगता है। आज भी इस मूरत की आंखों में उतना ही तेज़ है जो कान्हा की के होने का ऐह्सास दिलाता है। हर साल मार्गशीर्ष मास की पंचमी तिथि को बांके बिहारी मंदिर में बांके बिहारी प्रकटोत्सव मनाया जाता है।

IMPORTANT FACTS OF BANKEY BIHARI TEMPLE

10 POINTS---- 1-Once upon a time, a princess from Rajasthan came for darshan of Shree Banke Bihari at Vrindavan. She was so enamoured by the prince of Vrindavan that she wanted to remain with Him for the rest of her life. Her family forced her to return to her kingdom. With teary eyes, she last saw Shree Banke Bihari ji and left.

2-Mesmerized by her love for Him, Bihariji followed the princess, and was found missing at His temple home established by Tansen's guru, Swami Haridas. Brajwasis mainatin that one can still hear Krishna's flute in Braj... 3-A frantic search for Bihariji resulted in Him being found at the princess's home. This time, Bihariji was coerced(persuade) back to His temple-home at Vrindavan because He was being hugely missed by all the other devotees who came to meet Him. 4-From that day, a parda came in between the bhakta and Bhagwan so that due to a particular bhakta's deep love, Thakurji was not again compelled to follow the devotee home. 5-IS Curtains as a security measure! Now the parda or curtain keeps the devotees from taking a long look at Him, and melting in devotion. Pujaris regulates the curtain on pretext that it is to ward off evil from the child-Krishna Shree Banke Bihariji. 6-It is the only temple where loud temple bells are not used to wake Krishna in the morning. The Brajwasis say that it is not proper to wake a child with a start. He is woken gently. There are no bells even for Aarti, as it might disturb Him. 7-Once a sevak fell asleep while pulling the strings of a hand fan at night for Shree Banke Bihariji. And woke up with a jerk when he realised that he had missed on his duty, and this might have disturbed Thakurji in his sleep. He peered inside to see if Thakurji was sleeping tight, and was startled to find that He was not there! 8-It was 1 at night. He kept the vigil, and at 4 in the morning found Thakurji returning laden with sweat and flushed in the face. The sevak did nothing to intrude, and continued with his duty. Next night, he was up and awake all night and found Thakurji leaving at 12 ‘O clock. Raas utsav - celebrating unison with God 9-This time, the sevak sneaked( move in a stealthy way)behind Him and found Him entering Nidhivan, and heard the sound of flute and dancing fill the night air. At 4 in the morning Thakurji returned to the temple. Now the sevak knew that Thakurji spent 4 hours each night in raas with gopis.

10-When the Pujari came to rouse Thakurji for mangla arti shortly after He was home, the sevak stopped him from doing so, saying that Thakurji did not get enough sleep because of His nightly excursions to Nidhivan. From then on the time for mangla arti was changed to 8.30 in the morning. VRAJ LORE (stories, usually traditional)-------

07 FACTS--- 1-Vrindavan is full of tales of Shree Gopijan Vallabh.... Brajwasis mainatin that one can still hear the Lord's flute and hear Him whispering Radha Rani's name, and can also hear the sound of their anklets in Vrindavan. 2-The Bankey Bihari temple, Vrindavan is amongst the holiest and famous temples of Krishna in India. Shri Swami haridas got Bankey bihari ji appeared in Nidhivan.

3-The idol of Thakur Ji is much older and was worshipped in Nidhivan till 1863. This temple was constructed in 1864 with the contribution of Goswamis. After constructing of temple, Goswamis transferred the idol to this temple.

4-Bankey means “Bent at three places” and Bihari means “Supreme enjoyer”. Bankey bihari ji is worshiped and looked after as a child. There is a different and unique style of celebrating every festival in Bankey bihari temple.

5-The deity is dressed up and offered cuisine (bhog, prasad) according to season. Temple is decorated with lights and various types of flower according to festival.

6-There are no bells or conch in the temple because Bankey Bihari does not like the sound of bells or conch. there is only chant of ‘radha naam’.

7-When someone enters in the temple, he feels an eternal bliss and calm and forgets all misery. As soon as someone meets with Thakur ji, he becomes dedicating himself to Thakur ji. Kind hearted Thakur ji demolish his problem and bless him with His divine grace how far he is. ........SHIVOHAM.......


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