'जादूटोना', 'भूत-प्रेत नाश' के लिए 'अचूक मंत्र' /नवग्रह वास्तु मंत्र और मोर
बिल्वपत्र के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें ; -
1-बिल्वपत्र 6 महीने तक बासी नहीं माना जाता। इसे एक बार शिवलिंग पर चढ़ाने के बाद धोकर पुन: चढ़ाया जा सकता है। कई जगह शिवालयों में बिल्वपत्र उपलब्ध नहीं हो पाने पर इसके चूर्ण को चढ़ाने का विधान भी है।
2-बिल्वपत्र को औषधि के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। इसमें निहित इगेलिन व इगेलेनिन नामक क्षार-तत्व औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं। यह चातुर्मास में उत्पन्न होने वाली विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं से भी निजात दिलाता है ।
3-यह गैस, कफ और अपचन की समस्या को दूर करने में सक्षम है। इसके अलावा यह कृमि और दुर्गंध की समस्या में भी फायदेमंद है । प्रतिदिन 7 बिल्वपत्र खाकर पानी पीने से स्वप्नदोष की बीमारी से छुटकारा मिलता है। इसी प्रकार यह एक औषधि के रूप में भी काम आता है।
4-मधुमेह के रोगियों के लिए बिल्वपत्र रामबाण इलाज है। मधुमेह होने पर 5 बिल्वपत्र, 5 कालीमिर्च के साथ प्रतिदिन सुबह के समय खाने से अत्यधिक लाभ होता है। बिल्वपत्र के प्रतिदिन सेवन से गर्मी बढ़ने की समस्या भी समाप्त हो जाती है।
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'जादूटोना', 'भूत-प्रेत नाश' के लिए 'अचूक मंत्र' किसी साधक नें 'तंत्र-मंत्र नाश' व 'जादूटोना', 'भूत-प्रेत नाश' के लिए 'अचूक मंत्र' की प्रार्थना 'ईशपुत्र-कौलान्तक नाथ' को भेजी थी। उनके विशेष अनुरोध पर ये मंत्र 'ईशपुत्र-कौलान्तक नाथ' नें रिकार्ड कर हमें दिया है। अन्य साधकों को भी लाभ मिले इस प्रयोजन से पूरा 'स्तुति मंत्र' हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं। इसके केवल उच्चारण व पाठ से ही लाभ मिलने लगता है। ये 'रक्त तारा' का अमोघ मंत्र है। जिस घर या स्थान पर 'भूतबाधा' हो वहाँ 'मंत्र' को चला कर स्वयं इसका उच्चारण करें व अपने को 'ॐ सं सिद्धाय नम:' मंत्र से कवच करें। जल को इसी मंत्र से अभिमंत्रित कर स्वयं सेवन करें। 'जादूटोना' व 'तंत्र बाधा' का नाश होगा। ऐसा 'कौलान्तक परम्परा' का विश्वास व मत है- ।
।।श्री रक्ततारा तंत्रादि भूतबाधा नाशक महामंत्र।।
रक्तवर्णकारिणी, मुण्ड मुकुटधारिणी, त्रिलोचने शिव प्रिये, भूतसंघ विहारिणी भालचंद्रिके वामे, रक्त तारिणी परे, पर तंत्र-मंत्र नाशिनी, प्रेतोच्चाटन कारिणी नमो कालाग्नि रूपिणी,ग्रह संताप हारिणि, अक्षोभ्य प्रिये तुरे, पञ्चकपाल धारिणी नमो तारे नमो तारे, श्री रक्त तारे नमो।
ॐ स्त्रीं स्त्रीं स्त्रीं रं रं रं रं रं रं रं रं रक्तताराय हं हं हं हं हं घोरे-अघोरे वामे खं खं खं खं खं खर्पपरे सं सं सं सं सं सकल तन्त्राणि शोषय-शोषय सर सर सर सर सर भूतादि नाशय-नाशय स्त्रीं हुं फट। om streem streem streem ram ram ram ram ram ram ram ram rakttaraya ham ham ham ham ham ghore Aghore Vaame kham kham kham kham kham Kharpare sam sam sam sam sam Sakal Tantrani Shoshaya-Shoshaya Sar sar sar sar sar Bhootadi Naashaya Naashaya Streem Hum Phat.
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नवग्रह वास्तु मंत्र और मोर पंख कथा एवं महात्म्य;-
पक्षी शास्त्र में महत्त्वजैसे उल्लूक तन्त्रं के ग्रन्थ में उल्लुओं का.....काक तन्त्रं नाम के ग्रन्थ में कौवे का महत्त्व दिया गया है उसी प्रकार देववाहिनी तन्त्रं में मोर....मोनाल और जुजुराना जैसे पक्षियों के पंखों का विवरण दिया गया है..... बाल्यकाल में जब बलराम और श्री कृष्ण को मुकुट पहनाया जा रहा था तो भगवान् कृष्ण मुकुट पहन ही नहीं रहे थे....अंतत: जब नन्द बाबा नें मोर पंख वाला मुकुट पहनाया तो उसे ही भगवान कृष्ण नें सर पर सुशोभित किया.....इससे मोर पंख का महत्त्व सामने आता है....प्राचीन काल से ही नजर उतारने व भगवान् कि प्रतिमा के आगे वातावरण को पवित्र करने के लिए भी मोर पंख का ही प्रयोग होता आया है.....निगम ग्रंथों में भगवान् शिव माँ पार्वती को कहते हैं कि देवी योगिनी मंडल के रहस्य वो नहीं जानता जिसने पक्षी शास्त्र में मोर का महत्त्व न जाना हो....तो पार्वती माता पूछती हैं कि भगवान मोर पंख का रहस्य क्या हैं तो शिव उत्तर देते हुए कहते हैं कि असुर कुल में संध्या नाम का प्रतापी दैत्य उत्त्पन्न हुआ.....लेकिन वो गुरु शुकाचार्य के कारण देवताओं का शत्रु बन बैठा....देवी वो परम शिव भक्त था.....उसने विन्द्यांचल पर्वत पर कठोर तप कर मुझे प्रसन्न किया....और अति बीर होने का वर प्राप्त किया.....ब्रह्मा जी भी उसके घोर तप से प्रसन्न हुए.....बर प्राप्त करने के बाद वो हर एक घर में अपना एक रूप बना कर विष्णु भक्तों को प्रताड़ित करने लगा....देवताओं पर आक्रमण कर उसने अलकापुरी जीत ली....देवताओं को बंदी बना वो शिव आराधना में फिर लीन हो गया....उसकी भक्ति के कारण भगवान् विष्णु भी उसका बध करने में समर्थ नहीं थे.......तो सभी देव देवताओं ने मिल कर एक रन नीति तैयार कि जब में महासमाधि में लीन था....उस समय संद्य दैत्य सागर के तट पर अपनी रानी के साथ विहार कर रहा था...तो देवताओं ने योगमाया को सहायता के लिए पुकारा....सभी मात्री शक्तियों के तेज से व नव ग्रहों सहित देवताओं के तेज से एक पक्षी पैदा हुया जो मोर कहलाया उस दिव्य मूर के पंखों में सभी देवी देवता चुप गए और शक्ति बढ़ाने लगे....अति विशाल मोर को आक्रमण करने आया देख संध्या दैत्य उससे युद्ध करने लगा लेकिन योगमाया भगवान् विष्णु सहित नव ग्रहों एवं देवताओं कि शक्ति से लड़ रही थी तो इसी कारण संध्या नाम का दैत्य युद्द में वीरगति को प्राप्त हुया......हे पार्वती तभी से मोर के पंखों में नव ग्रहों देवी देवताओं सहित अन्य शक्तियों के अंश समाहित हो गए.......इस लिए पक्षी शास्त्र में मोर...गरुड़ और उल्लूक के पंखों का महत्त्व हो गया.....किन्तु केवल वहीँ पंख इन गुणों को संजोता हैं जो स्वभावतय: पक्षी त्याग देता है..... बिभिन्न लाभ वशीकरण...कार्यसिद्धि....भूत बाधा....रोग मुक्ति.....ग्रह वाधा....वास्तुदोष निग्रह आदि में बहुत ही महत्पूरण माना गया हैं... सर पर धारण करने से विद्या लाभ मिलता है या सरस्वती माता के उपासक और विद्यार्थी पुस्तकों के मध्य अभिमंत्रित मोर पंख रख कर लाभ उठा सकते हैं.....मंत्र सिद्धि के लिए जपने वाली माला को मोर पंखों के बीच रखा जाता हैं....घर में अलग अलग स्थान पर मोर पंख रखने से घर का वास्तु बदला जा सकता है...नव ग्रहों की दशा से बचने के लिए भी होता है मोर पंख का प्रयोग......कक्ष में मोर पंख वातावरण को सकारात्मक बनाने में लाभदायक होता है......भूत प्रेत कि बाधा दूर होती है..... ग्रह बाधा से मुक्ति यदि आप पर कोई ग्रह अनिष्ट प्रभाव ले कर आया हो....आपको मंगल शनि या राहु केतु बार बार परेशान करते हों तो मोर पंख को 21 बार मंत्र सहित पानी के छीटे दीजिये और घर में वाहन में गद्दी पर स्थापित कीजिये...कुछ प्रयोग निम्न हैं सूर्य की दशा से मुक्ति रविवार के दिन नौ मोर पंख ले कर आयें पंख के नीचे रक्तबर्ण मेरून रंग का धागा बाँध लेँ एक थाली में पंखों के साथ नौ सुपारियाँ रखें गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें ॐ सूर्याय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा: दो नारियल सूर्य भगवान् को अर्पित करें लड्डुओं का प्रसाद चढ़ाएं चंद्रमा की दशा से मुक्ति सोमवार के दिन आठ मोर पंख ले कर आयें पंख के नीचे सफेद रंग का धागा बाँध लेँ एक थाली में पंखों के साथ आठ सुपारियाँ रखें गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें ॐ सोमाय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा: पांच पान के पत्ते चंद्रमा को अर्पित करें बर्फी का प्रसाद चढ़ाएं मंगल की दशा से मुक्ति मंगलवार के दिन सात मोर पंख ले कर आयें पंख के नीचे लाल रंग का धागा बाँध लेँ एक थाली में पंखों के साथ सात सुपारियाँ रखें गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें ॐ भू पुत्राय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा: दो पीपल के पत्तों पर अक्षत रख कर मंगल ग्रह को अर्पित करें बूंदी का प्रसाद चढ़ाएं बुद्ध की दशा से मुक्ति बुद्धबार के दिन छ: मोर पंख ले कर आयें पंख के नीचे हरे रंग का धागा बाँध लेँ एक थाली में पंखों के साथ छ: सुपारियाँ रखें गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें ॐ बुधाय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा: जामुन अथवा बेरिया बुद्ध ग्रह को अर्पित करें केले के पत्ते पर मीठी रोटी का प्रसाद चढ़ाएं बृहस्पति की दशा से मुक्ति बीरवार के दिन पांच मोर पंख ले कर आयें पंख के नीचे पीले रंग का धागा बाँध लेँ एक थाली में पंखों के साथ पांच सुपारियाँ रखें गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें ॐ ब्रहस्पते नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा: ग्यारह केले बृहस्पति देवता को अर्पित करें बेसन का प्रसाद बना कर चढ़ाएं शुक्र की दशा से मुक्ति शुक्रवार के दिन चार मोर पंख ले कर आयें पंख के नीचे गुलाबी रंग का धागा बाँध लेँ एक थाली में पंखों के साथ चार सुपारियाँ रखें गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें ॐ शुक्राय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा: तीन मीठे पान शुक्र देवता को अर्पित करें गुड चने का प्रसाद बना कर चढ़ाएं शनि की दशा से मुक्ति शनिवार के दिन तीन मोर पंख ले कर आयें पंख के नीचे काले रंग का धागा बाँध लेँ एक थाली में पंखों के साथ तीन सुपारियाँ रखें गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें ॐ शनैश्वराय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा: तीन मिटटी के दिये तेल सहित शनि देवता को अर्पित करें गुलाबजामुन या प्रसाद बना कर चढ़ाएं राहु की दशा से मुक्ति शनिवार के दिन सूर्य उदय से पूर्व दो मोर पंख ले कर आयें पंख के नीचे भूरे रंग का धागा बाँध लेँ एक थाली में पंखों के साथ दो सुपारियाँ रखें गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें ॐ राहवे नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा: चौमुखा दिया जला कर राहु को अर्पित करें कोई भी मीठा प्रसाद बना कर चढ़ाएं केतु की दशा से मुक्ति शनिवार के दिन सूर्य अस्त होने के बाद एक मोर पंख ले कर आयें पंख के नीचे स्लेटी रंग का धागा बाँध लेँ एक थाली में पंख के साथ एक सुपारी रखें गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें ॐ केतवे नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा: पानी के दो कलश भर कर राहु को अर्पित करें फलों का प्रसाद चढ़ाएं वास्तु में सुधार घर का द्वार यदि वास्तु के विरुद्ध हो तो द्वार पर तीन मोर पंख स्थापित करें , मंत्र से अभिमंत्रित कर पंख के नीचे गणपति भगवान का चित्र या छोटी प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए मंत्र है-ॐ द्वारपालाय नम: जाग्रय स्थापय स्वाहा: यदि पूजा का स्थान वास्तु के विपरीत है तो पूजा स्थान को इच्छानुसार मोर पंखों से सजाएँ, सभी मोर पंखो को कुमकुम का तिलक करें व शिवलिं की स्थापना करें पूजा घर का दोष मिट जाएगा, प्रस्तुत मंत्र से मोर पंखों को अभी मंत्रित करें मंत्र है-ॐ कूर्म पुरुषाय नम: जाग्रय स्थापय स्वाहा: यदि रसोईघर वास्तु के अनुसार न बना हो तो दो मोर पंख रसोईघर में स्थापित करें, ध्यान रखें की भोजन बनाने वाले स्थान से दूर हो, दोनों पंखों के नीचे मौली बाँध लेँ, और गंगाजल से अभिमंत्रित करें मंत्र-ॐ अन्नपूर्णाय नम: जाग्रय स्थापय स्वाहा: और यदि शयन कक्ष वास्तु अनुसार न हो तो शैय्या के सात मोर पंखों के गुच्छे स्थापित करें, मौली के साथ कौड़ियाँ बाँध कर पंखों के मध्य भाग में सजाएं, सिराहने की और ही स्थापित करें, स्थापना का मंत्र है मंत्र-ॐ स्वप्नेश्वरी देव्यै नम: जाग्रय स्थापय स्वाहा: