क्यो महत्वपूर्ण है नर्मदेश्वर शिवलिंग/ बाणलिंग?क्या है नर्मदा की महिमा ?
क्यो महत्वपूर्ण है नर्मदेश्वर शिवलिंग ?-
11 FACTS;-
1-शिवलिंग पूजा से गहरी धार्मिक आस्था जुड़ी है।प्राकृतिक शिवलिंग खासकर स्वयंभू (स्वयंसिद्ध) पूजा का बहुत महत्व है।ऐसे ही प्राकृतिक और स्वयंभू शिवलिंगों में प्रसिद्ध है- नर्मदेश्वर (बाणलिंग)। पवित्र नर्मदा नदी के किनारे पाया जाने वाला एक विशेष गुणों वाला पाषाण ही बाणलिंग कहलाता है। बाणलिंग शिव का ही एक रूप माना जाता है। इसकी खासियत यह है कि यह प्राकृतिक रूप से ही बनता है। इसलिए यह स्वयंसिद्ध शिवलिंग माना जाता है और इनके केवल दर्शन भर ही भाग्य संवारने वाला बताया गया है। हालांकि, बाणलिंग गंगा नदी में भी पाए जाते हैं, किंतु नर्मदा नदी में पाए जाने वाले बाणलिंगों के पीछे पौराणिक महत्व है।
2-नर्मदा नदी व उसके नजदीक पाए जाने से बाणलिंग को नर्मदेश्वर लिंग भी कहकर पुकारा जाता है। हिन्दू धर्म के विभिन्न शास्त्रों तथा धर्मग्रंथों के अनुसार मां नर्मदा को यह वरदान प्राप्त था की नर्मदा का हर बड़ा या छोटा पाषण (पत्थर) बिना प्राण प्रतिष्ठा किये ही शिवलिंग के रूप में सर्वत्र पूजित होगा। अतः नर्मदा के हर पत्थर को नर्मदेश्वर महादेव के रूप में घर में लाकर सीधे ही पूजा अभिषेक किया जा सकता है।
3-नर्मदेश्वर शिवलिंग की पूजा से सुख-समृद्धि के साथ-साथ बड़ी से बड़ी मुसीबत से भी सुरक्षा मिलती है। नदी में बहते हुए शिलाखण्ड शिवलिंग का रूप धारण कर लेते हैं जो कि भगवान शिव का चमत्कार है, यह शिवलिंग ओंकारेश्वर व घाबडी कुंड में भी प्राप्त होते हैं, इन शिवलिंगों का स्वरूप बहुत ही सुंदर व चमकीला होता है।ऐसा माना जाता है की
एक मिटटी के लिंग की पूजा करने से जो फल मिलता है उससे सौ गुना ज्यादा फल नर्मदेश्वर शिवलिंग की पूजा करने से मिलता है। इसिलए घर में नर्मदेश्वर शिवलिंग का रखना शुभ माना गया है।
3-स्कन्दपुराण की कथा के अनुसार एक बार भगवान शंकर ने पार्वतीजी को भगवान विष्णु के शयनकाल (चातुर्मास) में द्वादशाक्षर मन्त्र (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय) का जप करते हुए तप करने के लिए कहा। पार्वतीजी शंकरजी से आज्ञा लेकर चातुर्मास शुरु होने पर हिमालय पर्वत पर तपस्या करने लगीं। उनके साथ उनकी सखियां भी थीं। पार्वतीजी के तपस्या में लीन होने पर शंकर भगवान पृथ्वी पर विचरण करने लगे।
4-एक बार भगवान शंकर यमुना तट पर विचरण कर रहे थे। यमुनाजी की उछलती हुई तरंगों को देखकर वे यमुना में स्नान करने के लिए जैसे ही जल में घुसे, उनके शरीर की अग्नि के तेज से यमुना का जल काला हो गया। अपने श्यामस्वरूप को देखकर यमुनाजी ने प्रकट होकर शंकरजी की स्तुति की। शंकरजी ने कहा यह क्षेत्र 'हरतीर्थ' कहलाएगा व इसमें स्नान से मनुष्य के पाप नष्ट हो जाएंगे।
5-भगवान शिव यमुना के किनारे हाथ में डमरु लिए, माथे पर त्रिपुण्ड लगाये, बढ़ी हुईं जटाओं के साथ मनोहर दिगम्बर रूप में मुनियों के घरों में घूमते हुए नृत्य कर रहे थे। कभी वे गीत गाते, कभी मौज में नृत्य करते थे तो कभी हंसते थे, कभी क्रोध करते और कभी मौन हो जाते थे।
6-भगवान शिव मदनजित् हैं,काम को भस्म कर चुके हैं। हमें उनके दिगम्बर रूप का गलत अर्थ नहीं लेना चाहिए। देवता, मुनि व मनुष्य सभी वस्त्रविहीन ही पैदा होते हैं। जिन्होंने इन्द्रियों पर विजय प्राप्त नहीं की है, वे सुन्दर वस्त्र धारण करके भी नग्न हैं और इन्द्रियजित् लोग नग्न रहते हुए भी वस्त्र से ढंके हुए हैं।
7-उनके इस सुन्दर रूप पर मुग्ध होकर बहुत-सी मुनिपत्नियां भी उनके साथ नृत्य करने लगीं। मुनि शिव को इस वेष में पहचान नहीं सके बल्कि उन पर क्रोध करने लगे। मुनियों ने क्रोध में आकर शिव को शाप दे दिया कि तुम लिंगरूप हो जाओ। शिवजी वहां से अदृश्य हो गए। उनका लिंगरूप अमरकण्टक पर्वत के रूप में प्रकट हुआ और वहां से नर्मदा नदी प्रकट हुईं। इस कारण नर्मदा में जितने पत्थर हैं, वे सब शिवरूप हैं।
8-'नर्मदा का हर कंकर शंकर है'..नर्मदेश्वर शिवलिंग के सम्बन्ध में एक अन्य कथा है-भारतवर्ष में गंगा, यमुना, नर्मदा और सरस्वती ये चार नदियां सर्वश्रेष्ठ हैं। इनमें भी इस भूमण्डल पर गंगा की समता करने वाली कोई नदी नहीं है। प्राचीनकाल में नर्मदा नदी ने बहुत वर्षों तक तपस्या करके ब्रह्माजी को प्रसन्न किया। प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने वर मांगने को कहा। तब नर्मदाजी ने कहा-'ब्रह्मन्! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे गंगाजी के समान कर दीजिए।'
9-ब्रह्माजी ने मुस्कराते हुए कहा-'यदि कोई दूसरा देवता भगवान शिव की बराबरी कर ले, कोई दूसरा पुरुष भगवान विष्णु के समान हो जाए, कोई दूसरी नारी पार्वतीजी की समानता कर ले और कोई दूसरी नगरी काशीपुरी की बराबरी कर सके तो कोई दूसरी नदी भी गंगा के समान हो सकती है।'
10-ब्रह्माजी की बात सुनकर नर्मदा उनके वरदान का त्याग करके काशी चली गयीं और वहां पिलपिलातीर्थ में शिवलिंग की स्थापना करके तप करने लगीं। भगवान शंकर उन पर बहुत प्रसन्न हुए और वर मांगने के लिए कहा। तब नर्मदा ने कहा-'भगवन्! तुच्छ वर मांगने से क्या लाभ? बस आपके चरणकमलों में मेरी भक्ति बनी रहे।'
11-नर्मदा की बात सुनकर भगवान शंकर बहुत प्रसन्न हो गए और बोले-'नर्मदे! तुम्हारे तट पर जितने भी प्रस्तरखण्ड (पत्थर) हैं, वे सब मेरे वर से शिवलिंगरूप हो जाएंगे। गंगा में स्नान करने पर शीघ्र ही पाप का नाश होता है, यमुना सात दिन के स्नान से और सरस्वती तीन दिन के स्नान से सब पापों का नाश करती हैं, परन्तु तुम दर्शनमात्र से सम्पूर्ण पापों का निवारण करने वाली होओगी। तुमने जो नर्मदेश्वर शिवलिंग की स्थापना की है, वह पुण्य और मोक्ष देने वाला होगा।' भगवान शंकर उसी लिंग में लीन हो गए। इतनी पवित्रता पाकर नर्मदा भी प्रसन्न हो गयीं। इसलिए कहा जाता है-'नर्मदा का हर कंकर शंकर है।'
अत्यन्त पवित्र और परमात्स्वरूप नर्मदेश्वर शिवलिंग;-
07 FACTS;-
1-नर्मदा नदी से निकलने वाले शिवलिंग को 'नर्मदेश्वर' कहते हैं। यह घर में भी स्थापित किए जाने वाला पवित्र और चमत्कारी शिवलिंग है; जिसकी पूजा अत्यन्त फलदायी है। यह साक्षात् शिवस्वरूप, सिद्ध व स्वयम्भू (जो भक्तों के कल्याण के लिए स्वयं प्रकट हुए हैं) शिवलिंग है। इसको बाणलिंग भी कहते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि मिट्टी या पाषाण से करोड़ गुना अधिक फल स्वर्णनिर्मित शिवलिंग के पूजन से मिलता है। स्वर्ण से करोड़गुना अधिक मणि और मणि से करोड़गुना अधिक फल बाणलिंग नर्मदेश्वर के पूजन से प्राप्त होता है। 2-घर में इस शिवलिंग को स्थापित करते समय प्राणप्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती है। गृहस्थ लोगों को नर्मदेश्वर शिवलिंग की पूजा प्रतिदिन करनी चाहिए क्योंकि यह परिवार का मंगल करने वाला, समस्त सिद्धियों व स्थिर लक्ष्मी को देने वाला शिवलिंग है। नर्मदेश्वर शिवलिंग का प्रसाद ग्रहण कर सकते हैं।
3-शिवलिंग की पूजा में पार्वती-परमेश्वर शिव दोनों की पूजा हो जाती है। लिंग की वेदी उमा हैं और लिंग साक्षात् महादेव है। शिवलिंग के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और ऊपरी भाग में प्रणवरूप में रुद्र स्थित हैं। अत: एक शिवलिंग की स्थापना और पूजा से सभी देवताओं की पूजा हो जाती है।
4-सभी लिंगों में नर्मदेश्वर शिवलिंगों को सर्वाधिक महत्व प्राप्त है।इसकी पूजा देवराज इंद्र ने भी की। 9 प्रकार के लिंग हैं, जिनके विषय में अलग-अलग वर्णन मिलते हैं। इनमें वायु, कुबेर, यम, वरूण, रूद्र और वैष्णव प्रमुख हैं। बाणलिंग 9 प्रकार के हैं, जिनकी अलग-अलग पहचान है। ये सफेद, शहद, बादामी, गुलाबी, काला, लाल और धूसर रंग के होते हैं। इसके नाम भी महाकाल, त्रिपुरारी, अर्धनारीश्वर, ईशान, त्रिलोचन और नीलकंठ आदि हैं।
5-सुबह-सुबह बाणलिंग का स्मरण करना भी बहुत फलदायक रहता है। इस नर्मदेश्वर लिंग की स्थापना करने की जरूरत नहीं होती है। इसकी पूजा सर्वाधिक शुभ फलदायी होती है। योग के माध्यम से जो कुंडलिनी जाग्रत होती है, वही बाणलिंग की पूजा से भी जाग्रत होती हैं।लिंगाष्टक में
कहा गया है– ''शिवलिंग पूजा बुद्धि का वर्धन करती है तथा साधक को अक्षय विद्या प्राप्त हो जाती है।''
6-सच्चे मन से देवाधिदेव महादेव का ध्यान और प्रार्थना करके नर्मदा नदी में गोता लगाने पर हाथ में जो शिवलिंग आता है, उसी को घर पर प्रतिष्ठित कर सकते हैं, और वही आपका भाग्य बदल सकता है। परन्तु नदी से बाणलिंग निकालकर या बाजार से खरीदते समय पहले परीक्षा करके ही शिवलिंग को घर पर स्थापित करें-खुरदरा, अत्यन्त पतला, अत्यन्त मोटा, चपटा, छेददार, तिकोना लिंग गृहस्थों के लिए वर्जित है। घर में अंगूठे की लम्बाई के बराबर का शिवलिंग स्थापित करना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। शिवलिंग सुन्दर वर्तुलाकार (गोलाकार) या कमलगट्टे की शक्ल के अनुरुप होना चाहिए।
7- नर्मदेश्वर शिवलिंग को वेदी (जलहरी) पर स्थापित कर पूजा करते हैं। वेदी तांबा, स्फटिक, सोना, चांदी, पत्थर या रुपये की बनाते हैं।नर्मदेश्वर शिवलिंग के पूजन से आपको शांति
की प्राप्ति होती है और आपका मन सकारात्मक विचारों से भर जाता है।नर्मदेश्वर शिवलिंग की ऊर्जा से तनाव, अहंकार में कमी आती है।आपके संबंधों में शांति और प्रेम बना रहता है मोक्ष की प्राप्ति होती है।।
क्या नर्मदेश्वर ही बाणलिंग हैं?-
04 FACTS;-
1-नर्मदेश्वर शिवलिंग इस धरती पर केवल नर्मदा नदी में ही पाए जाते हैं। यह स्वयंभू शिवलिंग हैं। इसमें निर्गुण, निराकार ब्रह्म भगवान शिव स्वयं प्रतिष्ठित हैं। नर्मदेश्वर लिंग शालग्रामशिला की तरह स्वप्रतिष्ठित माने जाते हैं, इनमें प्राण-प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं रहती है। नर्मदेश्वर शिवलिंग को वाणलिंग इसलिए कहते है क्योंकि बाणासुर ने तपस्या करके महादेवजी से वर पाया था कि वे अमरकंटक पर्वत पर सदा लिंगरूप में प्रकट रहें। इसी पर्वत से नर्मदा नदी निकलती है जिसके साथ पर्वत से पत्थर बहकर आते हैं इसलिए वे पत्थर शिवस्वरूप माने जाते हैं और उन्हें ‘बाणलिंग’ व ‘नर्मदेश्वर’ कहते हैं।
2-पौराणिक मान्यता है कि महादानी दैत्यराज बलि के पुत्र बाणासुर ने इन लिंगों को पूजा के लिए बनाया था। उसने तप कर शिव को प्रसन्न किया और वरदान पाया कि शिव हमेशा लिंग रूप में अमरकंटक पर्वत पर रहें। उसने ही नर्मदा नदी के तट पर स्थित पहाड़ों पर इन शिवलिंगों को विसर्जित किया था। बाद में यह बाणलिंग पहाड़ों से गिरकर नर्मदा नदी में बह गए। तब से ही इस नदी के किनारे यह बाणलिंग पाए जाते हैं।
3-माना जाता है कि बाणलिंग की पूजा से हजारों शिवलिंग पूजा का पुण्य मिलता है, किंतु शास्त्रों में बताई गई कसौटी पर खरे उतरने वाले बाणलिंग ही शुभ फल देने वाले होते हैं। इस परीक्षा में वजन, रंग और आकृति के आधार पर गृहस्थ और संन्यासियों के लिए अलग-अलग बाणलिंग होते हैं।
4-बाणलिंग संगमरमर की तरह चमकदार, साफ, छेदरहित व ठोस होते हैं, इसलिए वजन में भारी भी होते हैं। हालांकि, नर्मदेश्वर या बाणलिंग को स्वयंभू शिवलिंग बताया गया है, इसलिए इसकी प्राण-प्रतिष्ठा के बगैर भी पूजा की जा सकती है।गृहस्थ लोगों के लिए नर्मदेश्वर या बाणलिंग की पूजा मंगलकारी व भरपूर लक्ष्मीकृपा देने मानी गई है। शास्त्रों में इसके ऊपर चढ़ाई गई चीजें या नैवेद्य शिव निर्माल्य के तौर पर त्याग न कर प्रसाद के रूप में ग्रहण की जाती हैं।
क्या हैं शिव निर्माल्य की भ्रान्तियाँ? -
04 FACTS;- 1-शिव निर्माल्य ग्राह्य हैं या अग्राह्य ?कहते हैं शिवलिंग पर समर्पित पत्र पुष्प जल एवं नैवेद्य अग्राह्य है।भूमि ,वस्त्र ,आभूषण ,सोना चाँदी ताम्बा छोड़ कर सभी फल जलादि निर्माल्य है उसे कुँए मे डाल देना चाहिये। क्योकि शिवनिर्माल्य मे महादेव के चण्ड नामक गण का चण्डाधिकार होता है जिसे शैवी दीक्षारहित मानवों को शालग्राम से स्पर्श कराए बिना ग्रहण नही करना चाहिये। 2-परन्तु यह निषेध सर्वत्र लागू नही होता है।यह मात्र साधारण लोगों द्वारा रचित मिट्टी ,पत्थर आदि पर लागू होता है।नर्मेश्वर का वाणलिंग, धातुनिर्मित लिंग, पारदलिंग, स्वयम्भूलिंग ,द्वादशज्योतिर्लिंग, सिद्ध महापुरुषों द्वारा निर्मित लिंग तथा सभी प्रतिमाओं या मूर्तिविग्रहों मे चण्डाधिकार नही होता है। इसलिये इन पर यह लागू नही होता।
3-शिवभक्तों के लिये शिवपूजन के बाद शिवनैवेद्य ग्रहण करना भी पूजा का उत्तरांग है तथा बिना इसके पूजा सर्वांग पूरी नही होती अंगहीन अर्थात अधूरी ही मानी जाती है।सभी बाणादिलिंग ,शिवप्रतिमा तथा लिंग को स्पर्श करा के सामने चढाया गया प्रसाद अवश्य ग्रहण करना चाहिये।
4-भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बेलपत्र और शमीपत्र चढ़ाते हैं ।इस संबंध में एक पौराणिक कथा के अनुसार जब 89 हजार ऋषियों ने महादेव को प्रसन्न करने की विधि परम पिता ब्रह्मा से पूछी तो ब्रह्मदेव ने बताया कि महादेव सौ कमल चढ़ाने से जितने प्रसन्न होते हैं उतना ही एक नीलकमल चढ़ाने पर होते हैं। ऐसे ही 1 हजार नीलकमल के बराबर एक बेलपत्र और एक हजार बेलपत्र चढ़ाने के फल के बराबर एक शमीपत्र का महत्व है। ....SHIVOHAM...