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क्या है आदियोगी भगवान शिव को गुरु बनाने की विधि? क्या है डमरू के नाद की अद्भुत क्षमतायें ?-

NOTE;-महान शास्त्रों और गुरूज्ञान का संकलन...

देवो के देव महादेव भगवान शिव को गुरु बनाने की विधि:--

शिव गुरु को साक्षी मानकर किये गये, कोई भी कार्य मे कभी रुकावटें नही आतीं, भगवान शिव गुरुओं के भी गुरु हैं और जब गुरू शिव हों, तो इष्ट कोई भी हो अभीष्ट की प्राप्ति हो ही जाती है, उनको गुरु बनाने की विधि नीचे है, उसे अपनायें और अनंत सुखों की राह पर चल पड़ें।

1-सबसे पहले मन को शांत करके ध्यान की मुद्रा मे आंखें बंद करके बैठ जायें, इसके बाद भगवान शिव से कहें-

“हे शिव मै ‘अमुक नाम’ गोत्र ‘अमुक गोत्र’ आप को अपना गुरु बनाने का आग्रह कर रहा हूँ, आप मुझे शिष्य के रूप में स्वीकार करें”

2-फिर दोनों ऊपर हाथ उठाकर ब्रह्मांड की तरफ देखते हुए 3 बार घोषणा करें-

“मै ‘अमुक नाम’ गोत्र ‘अमुक गोत्र’ अखिल अन्तरिक्ष सम्राज्य में घोषणा करता हूं कि, शिव मेरे गुरु हैं,

मै उनका शिष्य हूं, शिव मेरे गुरु हैं मै उनका शिष्य हूं, शिव मेरे गुरु हैं, मै उनका शिष्य हूं, मैं गुरु दक्षिणा के रूप में आपको राम नाम सुनाऊंगा, तथास्तु घोषणा दर्ज हो” !

इससे भगवान शिव अपनी ही तय शास्त्रीय व्यवस्था के मुताबिक आग्रह करने वाले को शिष्य के रूप में स्वीकार कर लेते हैं।

3-शिव गुरु को साक्षी मानकर शुरु किये गए कार्यों में रुकावटें नही आती हैं, इसलिये जो भी काम करें, उसके लिये भगवान शिव को पहले साक्षी बना लें और कहें...

“हे शिव आप मेरे गुरु हैं, मै आपका शिष्य हूं ,आपको साक्षी बनाकर ये कार्य करने जा रहा हूं, इसकी सफलता के लिये मुझे दैवीय सहायता और सुरक्षा प्रदान करें”

4-फिर शिव गुरु से कम से कम तीन बार रोज कहें-

''हे शिव आप मेरे गुरु हैं मै आपका शिष्य हूं मुझ शिष्य पर दया करें, हे शिव आप मेरे गुरु हैं, मै आपका शिष्य हूं, मुझ शिष्य पर दया करें, हे शिव आप मेरे गुरु हैं, मै आपका शिष्य हूं, मुझ शिष्य पर दया करें.”!

5-फिर हर रोज शिव गुरु को नमन करें, इसके लिये शांत मन से कुछ मिनटों तक ” ॐ नमः शिवाय गुरवे, सच्चिदानन्द मूर्तये, निष्प्रपञ्चाय शान्ताय, निरालम्बाय तेजसे “ का जाप करें !

ॐ नमःशिवाय गुरवे

सच्चिदानन्द मूर्तये ।

निष्प्रपञ्चाय शान्ताय

निरालम्बाय तेजसे ॥

अर्थ;-

''उस कल्याणकारी (शिव) गुरु, सत्-चित् और आनन्द की मूर्ति को नमस्कार है ।उस निष्प्रपञ्च, शान्त, आलम्ब (आश्रय) रहित, तेज:स्वरूप परमात्मा को नमन है। जो निरालम्ब (परमात्म तत्त्व) का आश्रय ग्रहण करके (सांसारिक) आलम्बन का परित्याग कर देता है, वह योगी और संन्यासी है, वही कैवल्य (मोक्ष) पद प्राप्त करता है॥''

6-इसके बाद गुरु दक्षिणा के रूप मे “संजीवनी मंत्र ” मंत्र की कम से कम 51 माला का जाप करें और प्रतिदिन कम से कम एक माला जाप करने का संकल्प लेकर शिव गुरु को अर्पित करें।

साधना के स्टेप;-

05 POINTS;-

1- पहले आपको संकल्प लेना है। भगवान शिव को साक्षी बनायें और कहें- कि भगवान शिव आप तो पूरे ब्रह्मांड के गुरु हैं। आपके बिना तो इस सृष्टि में एक पत्ता भी नहीं हिलता है और आज गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर मैं आपकी यह साधना करने जा रहा/रही हूं। हे शिव आप मेरे गुरू हैं मै आपका/ आपकी शिष्य हूं, मुझ शिष्य पर दया करें। आपको साक्षी बनाकर मै संजीवनी साधना सम्पन्न कर रहा/रही हूं। इसकी सफलता हेतु मुझे दैवीय सहायता और सुरक्षा प्रदान करें।

2-भगवान शिव का फोटो सामने रखें... फोटो को एकटक देखते रहें। उनके माथे के बीच तीसरे नेत्र का प्रतीक हल्का बिंदु दिखेगा। उसी पर अपनी नजरें टिकाये रखें।

3-दोनों हाथों में मृत संजीवनी मुद्रा बनायें। मुद्रा में हाथ की तर्जनी (इंडेक्स फिंगर) को मोड़कर अंगूठे की जड़ में दबा लेना है। तर्जनी उंगुली को मोड़कर अंगूठे की जड़ में लगाकर और मध्यम और अनामिका अंगुली के अग्र भाग को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाएं। सबसे छोटी अंगुली को सीधा रखें ऐसे मृत संजीवनी मुद्रा बनती है। इस मुद्रा में दो मुद्राएं बनती हैं—वायु मुद्रा और अपान मुद्रा। इसलिए इस मुद्रा को अपान वायु मुद्रा भी कहते हैं।

4- ''ऊं ह्रौं जूं सः नमः शिवाय''मंत्र के साथ 10 संजीवनी प्राणायाम करें। ''ऊं. ह्रौं जूं सः नमः शिवाय'' का जप करते हुए किये जाने वाले प्राणायाम को संजीवनी प्राणायाम कहा जाता हैइसमें 'ऊं ह्रौं जूं सः ' जपते हुए लम्बी सांस अदर खींचनी होती हैकुछ क्षण सांस रोकें... फिर ''नमः शिवाय''जपते हुए सांस को धीरे धीरे बाहर निकालें।संजीवनी प्राणायाम के परिणाम बड़े ही चमत्कारिक होते हैंइससे शरीर के रोम रोम में उर्जाओं का संचरण होता है।जिससे कोशिकायें अपना पुनर्जनन करती हैंकोशिकाओं का पुनर्जन न सिर्फ शरीर को निरोगी करता है बल्कि मन मस्तिष्क की सक्रियता को भी चरम पर पहुंचाता है... जो कि सिद्धियों के लिये अनिवार्य होता है।इसके लिये 'ऊं ह्रौं जूं सः ' का जप करते हुए सांस को धीरे धीरे भीतर खींचें और 'नमः शिवाय' का जप करते हुए सांस को धीरे धीरे बाहर निकालें। सांस को अंदर लेने और बाहर निकालने के बीच कुछ क्षण रुकें। इसी तरह सांस निकालने और दोबारा खींचने के बीच भी कुछ क्षण रुकें। संजीवनी प्राणायाम से उर्जा चक्रों और पंच तत्वों का जागरण होता है। आभामंडल सकारात्मक उर्जाओं से भर जाता है। जर्जर शरीर भी कायाकल्प की तरफ बढ़ जाते हैं।

5-संजीवनी प्राणायाम के बाद आंखें बंद कर लें। हाथों में मृत संजीवनी मुद्रा बनाये रखें। रिलैक्स होकर बैठें और अविचलित रूप से संजीवनी मंत्र जप करते रहें।संजीवनी प्राणायाम के बाद इन मंत्र का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।इससे मान-सम्मान प्रतिष्ठा और व्यक्तित्व का आकर्षण भी बढ़ता है। मंत्र जप पूरा होने पर आंखें खोल लें। तन,मन,धन के सुखों के लिये भगवान शिव को धन्यवाद दें। धरती मां को ,दिव्य संजीवनी शक्ति को धन्यवाद दें। फिर ऊं इंद्राय नमः कहकर उठ जायें। जो लोग किसी कारण वश सुबह 7 बजे की साधना नही कर सकते; वे रुद्राक्ष धारण करके साधना करें। जिससे दिन -रात में किसी भी टाइम साधना की जा सकती है।उसमें समय का बंधन नही।

लघु महामृत्युंजय / संजीवनी मंत्र ''ऊं ह्रौं जूं सः'' का अर्थ ;-

''ह्रौं";-

इस प्रासादबीज का अर्थ है 'भगवान् शिव एवं सदाशिव मेरे दुखों को दूर करें।''ह्रौं" शिव बीज है। यह भगवान शिव का बीज मंत्र है। अकाल मृत्यु से रक्षा, रोग नाश, चहुमुखी विकास व मोक्ष की कामना के लिए श्वेत आसन पर उत्तर मुख बैठकर रुद्राक्ष की माला से नित्य 1008 बार जप करने से आश्चर्य जनक परिवर्तन होता है। इस शिव बीज में ह से शिव का आहवान होता है औरऔ से सदाशिव जो कि शिव का अत्यंत शक्तिशाली रूप है।और अनुस्वार है दुख हरण । यह बीज मंत्र ऊर्जा ,क्षमता और रहस्यो से भरा भी है। यह बीज मंत्र हमारे लिए बहुत ही उच्च विद्या महामृत्युंजय विद्या के द्वार हमारे लिए खोलता है।

जुं;-

'जुं'; ;-

'जुं' ध्यान के लिए और हर समय सभी बुराइयों से सुरक्षा के लिए उपयोग किया जाता है। यह बीज मूल रूप से भगवान शिव द्वारा बृहस्पति को सिखाया गया था, जिसके कारण बृहस्पति देवताओं के गुरु बन गए और जिसके कारण वे भगवान शिव के हाथों इंद्र को निश्चित विनाश से बचाने में सक्षम थे। उनके समर्पण और अच्छे स्वभाव से प्रसन्न, भगवान शिव ने बृहस्पति को जीवा (जीव) के रूप में जाना जाने का आशीर्वाद दिया, जिसके द्वारा वे जीवन के अस्तित्व को इंगित करेंगे और जिनकी उपस्थिति से मृत्यु के देवता यम करेंगे कालचक्र में बृहस्पति श्री जीव बन जाते हैं और दक्षिण दिशा में विराजमान हो जाते हैं, जो कि यम का मार्ग है, जिससे मृत्यु को होने से रोका जा सकता है। जब तक श्री जीव अपनी दक्षिण दिशा में विराजमान रहेगा, जीव जीवित रहेगा।

'जुं' is to be used for meditation and at all times for protection from all evils.This bīja was taught originally by Lord Śhiva to Bṛhaspati, due to which Bṛhaspati became the preceptor of the gods and due to which he was able to save Indra from definite destruction at the hands of Lord Śhiva.Pleased with his dedication and well-meaning disposition, Lord Śhiva blessed Bṛhaspati to be known as जीव (jīva) by which he shall signify the very existence of life and by whose presence, the god of death Yama will have to turn away.In the Kāla-Chakra Bṛhaspati becomes Śrī Jīva and sits in the southern direction, which is the path of Yama, thereby blocking death from happening.So long as Śrī Jīva sits in his southern direction, the being shall live.

सः ;-

स=दुर्गा>>अनुस्वार=दुःख हरण

HOW TO MEDITATE WITH ''ॐ जुं सः''॥(Om juṁ saḥ)

इस मंत्र को बहुत ही शांति से मन में दोहराते हुए ध्यान करें। (ओम); -

मन को पैरों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए लाएं और एक अक्षर...ॐ का पाठ करें।

Meditate with this mantra repeating it very quietly in the mind. ॐ (om);-

Bring the mind to focus on the feet and recite the monosyllable ...ॐ .

जुं (juṁ);-

फिर बीज जुं को हृदय चक्र में रखना होता है।

Then the bīja जुं has to be placed in the heart chakra.

सः (saḥ);-

अंत में सिर के ऊपर स्थित सहस्रार चक्र को बीज अक्षर के साथ मानसिक ध्यान में लाया जाता है

Finally the sahasrara chakra on top of the head is brought into mental focus with the seed syllable

वषट ;-

वषट के ध्वन्यात्मक मूल में सूक्ष्म क्षेत्र में भलाई की भावना होती है, इसलिये वह सूक्ष्म क्षेत्र में आशीष देने के विचार से उस भावना का अति बीज या महाबीज है।सूक्ष्म क्षेत्र में भलाई करने का विचार और उसका क्रियान्वयन ‘‘वषट‘‘ से प्रकट किया जाता है। वे जो शिव से सार्वभौमिक भलाई के लिये प्रार्थना करते हैं वे कहते हैं ‘एैम शिवाय वषट‘ , वे जो सूक्ष्म ज्ञान को प्राप्त करना वे कहते हैं‘‘ वरुणाय वोषट‘‘। परंतु वे जो दुष्टों से किये जा रहे युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिये प्रार्थना करते हैं वे कहते हैं ‘‘वरुणाय वषट‘‘।

क्रोध और तनाव से मुक्ति के लिए;-

नाभि से ऊपर दोनों पसलियों के बीच स्थित मणिपुर चक्र के बिगड़ने से तनाव होता है। दिखने वाले कारणों में कलह, क़र्ज़, नाकामी, बेइज्जती या कुछ और हो सकता है। मगर सच्चाई यही है कि तनाव सिर्फ मणिपुर चक्र के बिगड़ने से होता है। अक्सर जब मणिपुर चक्र दूषित होकर बड़ा हो जाता है..तब तनाव पैदा होता है।इस विधि से नेचुरल तरीके से मणिपुर चक्र की सफाई होती है और वह संतुलित हो जाता है।तनाव खत्म होने के लिये इतना ही काफी है।इससे कोई फर्क नही पड़ता कि तनाव का कारण क्या है!इसे कभी भी कहीं भी कर सकते हैं।इससे गुस्सा भी कंट्रोल होता है।

विधि;-

1-भगवान शिव से सुरक्षा की कामना करते हुए कहें ..हे मृत्युंजय भगवान् हम आपको साक्षी बनाकर संजीवनी उपचार कर रहा हूं इसकी सफलता हेतु दैवीय सहायता और सुरक्षा प्रदान करें, आपका धन्यवाद।

2-सोलह बार लम्बी और गहरी साँसे लें।

3-एक पीला फूल लेकर सामने रखें 'ॐ ह्रौं जूं सः नमः शिवाय' मन्त्र का जप करते हुए फूल को 10 मिनट देखें। और फूल से कामना करते हुए कहें ..आप मेरे मणिपुर चक्र में मौजूद सभी तरह की दूषित ऊर्जाओं को अपने भीतर खीच कर चक्र की सफाई करें।

4-उसके बाद पीले फूल को हटाकर उसकी जगह एक नीला फूल रख लें।

5-फिर ॐ ह्रौं जूं सः नमः शिवाय मन्त्र का जप करते हुए फूल को 10 मिनट देखें और फूल से कामना करते हुए कहें ...आप मेरे मणिपुर चक्र को प्राकृतिक रूप से छोटा करके संतुलित कर दें।

6-बाद में दोनों फूलों को धन्यवाद देकर उन्हें कहीं मिटटी में दबा दें।

NOTE;-

इस प्रकार आप भगवान शिव को गुरु बना सकते हैं, किन्तु हमेशा ये स्मरण रहे कि, आप भगवान शिव के शिष्य बन जाएंगे, इसलिए हमेशा सच्चाई, ईमानदारी, छल ,कपट से दूर रहे। सत्य की राह पर चलते हुये सत्कर्म करना और हमेशा जनसेवा एवं समाजसेवा के कार्य करने होंगे। यदि आप, ऐसा नहीं करते हैं तो, भगवान शिव आपको अपने शिष्य के रूप में अस्वीकार कर देंगे।

...SHIVOHAM....


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क्या है डमरू के नाद की अद्भुत क्षमतायें ?-

03 FACTS;-

1- सनातन धर्म में कुछ ध्वनियों को पवित्र और रहस्यमयी माना गया है, जैसे- मन्दिर की घंटी, शंख, बांसुरी, वीणा, मंजीरा, करतल, पुंगी या बीन, ढोल, नगाड़ा, मृदंग, चिमटा, तुनतुना, घाटम, दोतार, तबला और डमरू!डमरू या डुगडुगी एक छोटा संगीत वाद्य यंत्र होता है! डमरू को हिन्दू, तिब्बती और बौद्ध धर्म में बहुत महत्व दिया गया है! भगवान शंकर के हाथों में डमरू को दर्शाया गया है! साधु और मदारियों के पास अक्सर डमरू मिल जाएगा!ध्वनि और शुद्ध प्रकाश से ही ब्रह्मांड की रचना हुई है और आत्मा इस जगत का कारण है!पुराणानुसार भगवान शिव नटराज के डमरू से कुछ अचूक और चमत्कारी मंत्र निकले थे! कहते हैं कि यह मंत्र कई बीमारियों का इलाज कर सकते हैं! कोई भी कठिन कार्य हो शीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है! उक्त मंत्र या सूत्रों के सिद्ध होने के बाद जपने से सर्प, बिच्छू के काटे का जहर उतर जाता है! ऊपरी बाधा हट जाती है! माना जाता है कि इससे ज्वर, सन्निपात आदि को भी उतारा जा सकता है!

2-डमरू की आवाज में अनेक गुप्त रहस्य छिपे हुए हैं! महादेव की पूजा अर्चना में डमरु की ध्वनि का विशेष महत्त्व हैं!डमरू की ध्वनि जैसी ही ध्वनि हमारे अन्दर भी बजती रहती है, जिसे अ, उ और म या ओम् कहते हैं! हृदय की धड़कन व ब्रह्माण्ड की आवाज में भी डमरू के स्वर मिश्रित हैं!डमरू की आवाज लय में सुनते रहने से मस्तिष्क को शांति मिलती है और हर तरह का तनाव हट जाता है! इसकी आवाज से आस-पास की नकारात्मक ऊर्जा व शक्तियों का पलायन हो जाता है!डमरू भगवान शिव का वाद्ययंत्र ही नहीं .. बहुत कुछ है! इसे बजाकर भूकम्प लाया जा सकता है व बादलों में भरा पानी भी बरसाया जा सकता है! डमरू की आवाज यदि लगातर एक जैसी बजती रहे तो इससे चारों ओर का वातावरण बदल जाता है! यह बहुत भयानक भी हो सकता है और और सुखदायी भी! डमरू के भयानक आवाज से लोगों के हृदय भी फट सकते हैं! कहते हैं कि भगवान शंकर इसे बजाकर प्रलय भी ला सकते हैं! यह बहुत ही प्रलयंकारी आवाज सिद्ध हो सकती है!

3-डमरू की 14 आवाजें : -

भगवान शिव ने नृत्य करते हुए चौदह बार डमरू बजाए! इस ध्वनि से व्याकरण और संगीत के छंद, ताल का जन्म हुआ!इस प्रकार शिव के डमरू की उत्पत्ति हुई!जब डमरू बजता है तो उसमें से 14 प्रकार की ध्वनि निकलती हैं! पुराणों में इसे मंत्र माना गया! यह ध्वनि इस प्रकार है:- 'अइउण्‌, त्रृलृक, एओड्, ऐऔच, हयवरट्, लण्‌, ञमड,णनम्‌, भ्रझभञ, घढधश्‌, जबगडदश्‌, खफछठथ, चटतव, कपय्‌, शषसर, हल्‌। उक्त आवाजों में सृजन और विध्वंस दोनों के ही स्वर छिपे हुए हैं! यही स्वर व्याकरण की रचना के सूत्र धार भी है! सद्ग्रगन्थों की रचना भी इन्ही सूत्रों के आधार पर हुई !

...SHIVOHAM..

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