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विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान संबंधित 15,16 विधियां [13-24 केंद्रित होने की विधियां ]क्या है?


विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि-15

13 FACTS;-

1-भगवान शिव कहते है:- ''सिर के सात द्वारों को अपने हाथों से बंद करने पर आंखों के बीच का स्‍थान सर्वग्राही हो जाता है।'' 2-यह विधि एक पुरानी तथा सरलतम विधियों में से एक है और इसका प्रयोग भी बहुत हुआ है। सिर के सभी द्वारों को, आँख, कान, नाक, मुंह, सबको बंद कर दो। जब सिर के सब द्वार दरवाजे बंद हो जाते है तो तुम्‍हारी जो चेतना सतत बाहर बह रही है... एकाएक रूक जाती है ,ठहर जाती है। वह अब बाहर नहीं जा सकती।वास्तव में, अगर तुम क्षण भर के लिए श्‍वास लेना

बंद कर दो तो तुम्‍हारा मन भी ठहर जाता है। क्‍योंकि मन का एक संस्‍कार है कि वह श्‍वास के साथ चलता है। तुम्‍हें समझना चाहिए कि यह संस्‍कार क्‍या है। तभी इस सूत्र को समझना आसान होगा रूस के अति प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक पावलफ ने

संस्‍कारजनित प्रतिक्रिया को, कंडीशंड रिफ्लेक्‍स को दुनियाभर में आम बोलचाल में शामिल करा दिया है। जो व्‍यक्‍ति भी मनोविज्ञान से परिचित है, इस शब्‍द को जानता है। विचार की दो श्रृंखलाएं है।कोई भी दो श्रृंखलाएं.. इस तरह एक दूसरे से जुड़ सी जाती है कि अगर तुम उनमें से एक को चलाओ तो दूसरी अपने आप शुरू हो जाती है।

3-उदाहरण के लिए,पावलफ ने एक कुत्‍ते पर प्रयोग किया। उसने देखा कि तुम अगर कुत्‍ते के सामने खाना रख दो तो उसकी जीभ बाहर निकल आती है और जीभ से लार बहने लगती है।वह भोजन के लिए तैयार हो जाता है। लेकिन पावलफ ने इस प्रक्रिया के साथ एक दूसरी बात जोड़ दी।जब भी भोजन रखा जाए और कुत्‍ते की लार टपकने लगे तो वह एक घंटी बजाता और कुत्‍ता उस घंटी को सुनता।पंद्रह दिन तक जब भी भोजन रखा जाता, घंटी भी बजती। और तब सोलहवें दिन कुत्‍ते के सामने भोजन नहीं रखा गया, केवल घंटी बजाईं गई। लेकिन तब भी कुत्‍ते के मुहँ से लार बहने लगी। और जीभ बाहर आ गई, मानो भोजन सामने रखा हो जबकि वहां भोजन नहीं ,सिर्फ घंटी थी। लार का स्‍वाभाविक संबंध भोजन के साथ है। लेकिन अब घंटी का रोज-रोज बजना लार के साथ जुड़ गया था, संबंधित हो गया था और इसलिए मात्र घंटी के बजने पर भी लार बहने लगी।

4-पावलफ के अनुसार ..हमारा समूचा जीवन एक कंडीशंड प्रोसेस है। मन संस्‍कार है;इसलिए अगर तुम उस संस्‍कार के भीतर कोई एक चीज बंद कर दो तो उससे जुड़ी और सारी चीजें भी बंद हो जाती है और यह सत्य है।उदाहरण के लिए

विचार सदा ही श्‍वास के साथ चलते है। तुम बिना श्‍वास के विचार नहीं कर सकते। तुम श्‍वास के प्रति सजग नहीं रहते, लेकिन श्‍वास सतत दिन-रात चलती रहती है।और प्रत्‍येक विचार की प्रक्रिया श्‍वास की प्रक्रिया से ही जुड़ी है। इसलिए अगर तुम अचानक अपनी श्‍वास रोक लो तो विचार भी रूक जाएगा।वैसे ही अगर सिर के सातों छिद्र, उसके सातों द्वार बंद कर दिए जाएं तो तुम्‍हारी चेतना अचानक गति करना बंद कर देगी। तब चेतना भीतर स्थिर हो जाती है। और उसका यह भीतर स्थिर होना तुम्‍हारी आंखों के बीच के बीच स्‍थान बना देता है। वह स्‍थान ही त्रिनेत्र, तीसरी आँख कहलाती है। अगर सिर के सभी द्वार बंद कर दिये जाये तो तुम बाहर गति नहीं कर सकते। क्‍योंकि तुम सदा इन्‍हीं द्वारों से बाहर जाते रहे हो। तब तुम भीतर स्थिर हो जाते हो। और वह स्थिर होना, एकाग्र होना,इन दो साधारण आंखों के बीच घटित होता है। चेतना इन दो आंखों के बीच के स्‍थान पर केंद्रित हो जाती है। उस स्‍थान को ही त्रिनेत्र कहते है।

5-तब यह स्‍थान सर्वग्राही, सर्वव्‍यापक हो जाता है। यह सूत्र कहता है कि इस स्‍थान में सब सम्‍मिलित है ,सारा अस्‍तित्‍व समाया है। अगर तुम इस स्‍थान को अनुभव कर लो तो तुमने सब को अनुभव कर लिया। एक बार तुम्‍हें इन दो आंखों के बीच के आकाश की प्रतीति हो गई तो तुमने पूरे अस्‍तित्‍व को जान लिया, उसकी समग्रता को जान लिया, क्‍योंकि यह आंतरिक आकाश सर्वग्राही है, सर्वव्‍यापक है, कुछ भी उसके बाहर नहीं है।उपनिषद कहते है..''एक को जानकर सब जान लिया जाता है।''

ये दो आंखें तो सीमित को, पदार्थ को ही देख सकती है; परन्तु तीसरी आँख असीम को ,अपदार्थ को, अध्‍यात्‍म को देखती है। इन दो आंखों से तुम कभी ऊर्जा की प्रतीति नहीं कर सकते , ऊर्जा को नहीं देख सकते, सिर्फ पदार्थ को देख सकते हो। लेकिन तीसरी आँख से स्‍वयं ऊर्जा देखी जाती है।

6-द्वारों का बंद किया जाना केंद्रित होने का उपाय है क्‍योंकि एक बार जब चेतना के प्रवाह का बाहर जाना रूक जाता है। वह अपने उदगम पर स्थिर हो जाती है। और चेतना का यह उदगम ही त्रिनेत्र है। अगर तुम इस त्रिनेत्र पर केंद्रित हो जाओ तो बहुत चीजें घटित होती है। पहली चीज तो यह पता चलती है कि सारा संसार तुम्‍हारे भीतर है।उदाहरण के लिए,स्‍वामी राम तीर्थ कहा

करते थे कि सूर्य मेरे भीतर चलता है ;तारे मेरे भीतर चलते है, चाँद मेरे भीतर उदित होता है; सारा ब्रह्मांड मेरे भीतर है। जब उन्‍होंने पहली बार यह कहा तो उनके शिष्‍यों को लगा कि वे पागल हो गए है। राम तीर्थ के भीतर सितारे कैसे हो सकते है।

वास्तव में,वे इसी त्रिनेत्र की बात कर रहे थे...इसी आंतरिक आकाश के संबंध में। जब पहली बार यह आंतरिक आकाश उपलब्‍ध होता है तो यही भाव होता है। जब तुम देखते हो कि सब कुछ तुम्‍हारे भीतर है तब तुम ब्रह्मांड ही हो जाते हो।

7-त्रिनेत्र तुम्‍हारे भौतिक शरीर का हिस्‍सा नहीं है। वह तुम्‍हारे भौतिक शरीर का अंग नहीं है। तुम्‍हारी आंखों के बीच का स्‍थान तुम्‍हारे शरीर तक ही सीमित नहीं है। वह तो वह अनंत आकाश है जो तुम्‍हारे भीतर प्रवेश कर गया है और एक बार यह आकाश जान लिया जाए तो तुम फिर वही व्‍यक्‍ति नहीं रहते। जिस क्षण तुमने इस अंतरस्‍थ आकाश को जान लिया तो उसी

क्षण तुमने अमृत को जान लिया और तब कोई मृत्‍यु नहीं है। जब तुम पहली बार इस आकाश को जानोंगे, तुम्‍हारा जीवन प्रामाणिक और प्रगाढ़ हो जाएगा; तब पहली बार तुम सच में जीवंत होओगे। तब किसी सुरक्षा की जरूरत नहीं रहेगी। अब कोई भय संभव नहीं है। अब तुमसे कुछ भी छीना नहीं जा सकता। अब सारा ब्रह्मांड तुम्‍हारा है, तुम ही ब्रह्मांड हो। जिन लोगों ने इस अंतरस्‍थ आकाश को जाना है उन्‍होंने ही आनंदमग्‍न होकर उदघोषणा की है: अहं ब्रह्मास्‍मि। मैं ही ब्रह्मांड हूं, मैं ही ब्रह्मा हूं...।

8-सूफी संत मंसूर को इसी तीसरी आँख के अनुभव के कारण कत्‍ल कर दिया गया था। जब उन्होंने पहली बार इस आंतरिक आकाश को जाना, तब वह चिल्‍लाकर कहने लगे '' अनलहक़, मैं ही परमात्‍मा हूं'' ।भारत ने ऐसे अनेक लोग देखे है जिन्‍हें इस

तीसरी आँख आंतरिक आकाश का बोध हुआ। लेकिन उस देश में यह बात कठिन हो गई और मंसूर का यह वक्‍तव्‍य कि मैं परमात्‍मा हूं, अनलहक़, अहं ब्रह्मास्‍मि, धर्मविरोधी मालूम हुआ क्‍योंकि वे यह सोच भी नहीं सकते कि मनुष्‍य और परमात्‍मा एक है। मनुष्‍य–मनुष्‍य है; मनुष्‍य सृष्‍टि है, और परमात्‍मा सृष्‍टा। सृष्टि ..सृष्‍टा कैसे हो सकता है।इसलिए मंसूर का यह वक्‍तव्‍य नहीं

समझा जा सका और उनकी हत्‍या कर दी गई। लेकिन जब उनको कत्‍ल किया जा रहा था ;तब वह हंस रहे थे.. तो किसी ने पूछा कि हंस क्‍यों रहे हो।कहते है कि मंसूर ने कहा मैं इसलिए हंस रहा हूं कि तुम मुझे नहीं मार रहे हो। तुम मेरी हत्‍या नहीं कर सकते। तुम्‍हें मेरे शरीर से धोखा हुआ है। लेकिन मैं शरीर नहीं हूं। मैं इस ब्रह्मांड को बनाने वाला हूं; यह मेरी अँगुली थी जिसने आरंभ में समूचे ब्रह्मांड को चलाया था।

9-भारत में सदियों से यह भाषा जानी पहचानी है। हम जानते है कि एक घड़ी आती है जब यह आंतरिक आकाश जाना जाता है। तब जानने वाला पागल हो जाता है और यह ज्ञान इतना निश्‍चित है कि यदि तुम मंसूर की हत्‍या भी कर दो तो वह अपना वक्‍तव्‍य नहीं बदलेगा क्‍योंकि हकीकत में, जहां तक उसका संबंध है,तुम उसकी हत्‍या नहीं कर सकते।अब वह पूर्ण हो गया है।

उसे मिटाने का उपाय नहीं है।मंसूर के बाद सूफी सीख गए कि चुप रहना बेहतर है। इसलिए मंसूर के बाद सूफी पंरम्‍परा में शिष्‍यों को सतत सिखाया गया कि जब भी तुम तीसरी आँख को उपल्‍बध करो ..चुप रहो, कुछ कहो मत। जब भी घटित हो, चुप्‍पी साध लो या वे ही चीजें औपचारिक ढंग से कहे जाओ जो लोग मानते है।

10-इसलिए अब इस्‍लाम में दो परंपराएं है। एक सामान्‍य परंपरा है-बाहरी, लौकिक और दूसरी परंपरा असली इस्‍लाम है...''सूफीवाद ''जो गुह्म है। लेकिन सूफी चुप रहते है क्‍योंकि मंसूर के बाद उन्‍होंने सीख लिया कि उस भाषा में बोलना; जो कि तीसरी आँख के खुलने पर प्रकट होती है.. व्‍यर्थ की कठिनाई में पड़ना है, और उससे किसी को मदद भी नहीं होती।

यह सूत्र कहता है: ‘’सिर के सात द्वारों को अपने हाथों से बंद करने पर आंखों के बीच का स्‍थान सर्वग्राही, सर्वव्‍यापी हो जाता है।‘’तुम्‍हारा आंतरिक आकाश पूरा आकाश हो जाता है।प्रत्‍येक विधि किसी मन-विशेष के लिए उपयोगी है।सिर के द्वारों को बंद करने वाली विधि का उपयोग अनेक लोग कर सकते है।वह बहुत सरल है और बहुत खतरनाक नहीं है। उसे तुम आसानी से काम में ला सकते हो।यह भी जरूरी नहीं है कि द्वारों को हाथ से बंद करो; बंद करना भी जरूरी है।इसलिए कानों के लिए Ear plug और आंखों के लिए Eye mask से काम चल जाएगा

11-कुछ क्षणों के लिए सिर के द्वारों को पूरी तरह से बंद कर लो।तुम Ear plug और Eye mask काम में ला सकते हो। लेकिन नाक और मुंह के लिए कुछ उपयोग नहीं करना है क्‍योंकि तब वह घातक हो सकता है।कम से कम नाक को छोड़ रखना ठीक है।उसे हाथ से ही बंद करो। उस हालत में जब बेहोश होने लगोगे तो हाथ अपने आप ही ढीला हो जाएगा और श्‍वास वापस आ जाएगी। तो इसमे अंतर्निहित सुरक्षा है। यह विधि बहुतों के काम की है;इसका प्रयोग करो, अभ्‍यास करो।

अचानक करने से ही यह कारगर है, अचानक में ही राज छिपा है। बिस्‍तर में पड़े-पड़े अचानक सभी द्वारों को कुछ सेकेंड के लिए बंद कर लो। और तब भीतर देखो क्‍या होता है।जब तुम्‍हारा दम घुटने लगे, क्‍योंकि श्‍वास भी बंद हो जाएगी,तब भी इसे

जारी रखे और तब तक जारी रखो जब तक कि असह्य न हो जाये। और जब असह्य हो जाएगा, तब तुम द्वारों को ज्‍यादा देर बंद नहीं रख सकोगे, इसलिए उसकी फिक्र छोड़ दो।तब आंतरिक शक्‍ति सभी द्वारों के खुद खोल देगी।

12-लेकिन जहां तक तुम्‍हारा संबंध है, तुम बंद रखो। जब दम घुटने लगे, तब वह निर्णायक क्षण आता है, क्‍योंकि घुटन पुराने एसोसिएशन तोड़ डालती है।इसलिए कुछ और क्षण जारी रख सको तो अच्‍छा।यह काम कठिन होगा, मुश्‍किल

होगा,और तुम्‍हें लगेगा कि मौत आ गई। लेकिन डरों मत क्‍योंकि द्वारों को बंद भर करने से तुम नहीं मरोगे। लेकिन जब लगे

कि मैं मर जाऊँगा, तब समझो कि वह क्षण आ गया।अगर तुम उस क्षण में धीरज से लगे रहे तो अचानक हर चीज प्रकाशित हो जाएगी। तब तुम उस आंतरिक आकाश को महसूस करोगे जो कि फैलता ही जाता है, और जिसमें समग्र समाया हुआ है। तब द्वारों को खोल दो और तब इस प्रयोग को फिर-फिर करो। जब भी समय मिले, इसका प्रयोग में लाओ।लेकिन इसका

अभ्‍यास मत बनाओ। तुम श्‍वास को कुछ क्षण के लिए रोकने का अभ्‍यास कर सकते हो। लेकिन उससे कुछ लाभ नहीं होगा। एक आकस्‍मिक, अचानक झटके की जरूरत है। उस झटके में तुम्‍हारी चेतना के पुराने स्रोतों का प्रवाह बंद हो जाता है और कोई नयी बात संभव हो जाती है।

13-भारत में अभी भी सर्वत्र अनेक लोग इस विधि का अभ्‍यास करते है। लेकिन कठिनाई यह है कि वे अभ्‍यास करते है। जबकि यह एक अचानक विधि है ।अगर हम रोज-रोज इसका अभ्‍यास करें तो कुछ नहीं होगा। तब वह एक यांत्रिक आदत

बन जाएगी।इसलिए अभ्यास मत करो; जब भी हो सके प्रयोग करो ; तो धीरे-धीरे तुम्‍हें अचानक एक आंतरिक आकाश का बोध होगा। वह आंतरिक आकाश तुम्‍हारी चेतना में तभी प्रकट होता है जब तुम मृत्‍यु के कगार पर होते हो। तब तुम्‍हें लगता है कि अब मैं एक क्षण भी नहीं जीऊूंगा ... मृत्‍यु निकट है; तभी वह सही क्षण आता है। इसलिए लगे रहो, डरों मत।मृत्‍यु इतनी आसान नहीं है। कम से कम इस विधि को प्रयोग में लाते हुए कोई व्‍यक्‍ति अब तक नहीं मरा है। इसमे अंतर्निहित सुरक्षा के उपाय है। मृत्‍यु के पहले आदमी बेहोश हो जाता है। इसलिए होश में रहते हुए यह भाव आए कि मैं मर रहा हूं तो डरों मत। तुम अब भी होश में हो, इसलिए मरोगे नहीं और अगर तुम बेहोश हो गए तो तुम्‍हारी श्‍वास चलने लगेगी। तब तुम उसे रोक नहीं पाओगे।

‘विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि-16...

10 FACTS;-

1-भगवान शिव कहते है: -

''हे भगवती, जब इंद्रियाँ ह्रदय में विलीन हों, कमल के केंद्र पर पहुँचों।''

2-यह विधि ह्रदय-प्रधान व्‍यक्‍ति के लिए है.. जिनका ह्रदय बहुत विकसित है, जो प्रेम और भाव के लोग है, भाव-प्रवण है।इसलिए पहले यह समझना है कि ह्रदय प्रधान व्‍यक्‍ति कौन है ;तभी यह विधि समझ सकते है।वास्तव में,जो ह्रदय-प्रधान

है, उस व्‍यक्‍ति के लिए ह्रदय ही सब कुछ है।अगर तुम उसे प्‍यार करोगे तो उसका ह्रदय उस प्‍यार को अनुभव करेगा, उसका मस्‍तिष्‍क नहीं।मस्‍तिष्‍क-प्रधान व्‍यक्‍ति प्रेम किए जाने पर भी प्रेम का अनुभव मस्‍तिष्‍क से लेता है। वह उसके संबंध में सोचता है, आयोजन करता है; उसका प्रेम भी मस्‍तिष्‍क का ही सुचिंतित आयोजन होता है, लेकिन भावपूर्ण व्‍यक्‍ति तर्क के बिना जीता है।वैसे ह्रदय के भी अपने तर्क है, लेकिन ह्रदय सोच-विचार नहीं करता है।

3-अगर कोई तुम्‍हें पूछे कि तुम क्‍यों प्रेम करते हो और उसे क्‍यों का जवाब दे सको तो तुम मस्‍तिष्‍क प्रधान व्‍यक्‍ति हो।और अगर तुम कहते हो कि मैं नहीं जानता, मैं सिर्फ प्रेम करता हूं, तो तुम ह्रदय प्रधान व्‍यक्‍ति हो।अगर तुम इतना भी कहते हो कि मैं उसे इसलिए प्‍यार करता हूं, कि वह सुंदर है, तो वहां बुद्धि आ गई।ह्रदयोन्‍मुख व्‍यक्‍ति के लिए कोई सुंदर इसलिए है कि वह उसे प्रेम करता है।मस्‍तिष्‍क वाला व्‍यक्‍ति किसी को इसलिए प्रेम करता है कि वह सुंदर है।बुद्धि पहले आती है और तब प्रेम आता है।ह्रदय प्रधान व्‍यक्‍ति के लिए प्रेम प्रथम है और शेष चीजें प्रेम के पीछे-पीछे चली आती है।वह ह्रदय में केंद्रित है, इसलिए जो भी घटित होता है वह पहले उसके ह्रदय को छूता है।उदाहरण के लिए एक भिखारी भिखमंगी कर रहा है।

क्‍या तुम उसकी आर्थिक परिस्‍थिति पर सोच विचार करते हो या क्‍या तुम यह विचारने लगते हो कि कैसे कानून के द्वारा भिखमंगी बंद की जाए। या कि कैसे एक समाजवादी समाज बनाया जाए ...जहां भिखमँगे न हो।

4-यह एक मस्‍तिष्‍क प्रधान आदमी है ;जो ऐसा सोचने लगता है।उसके लिए भिखारी महज विचार करने का आधार बन जाता है। उसका ह्रदय अस्‍पर्शित रह जाता है;सिर्फ मस्‍तिष्‍क स्‍पर्शित होता है। वह इस भिखारी के लिए अभी कुछ नहीं करने जा रहा है। न ही, वह साम्‍यवाद के लिए कुछ करेगा। वह भविष्‍य के लिए कुछ करेगा ;वह उसके लिए अपना पूरा जीवन भी दे-दे, लेकिन अभी तत्‍क्षण वह कुछ नहीं कर सकता है क्‍योंकि मस्‍तिष्‍क सदा भविष्‍य में रहता है।ह्रदय सदा यहां और अभी रहता है।

एक ह्रदय प्रधान व्‍यक्‍ति भिखारी के लिए अभी ही कुछ करेगा।मस्‍तिष्‍क वाले व्यक्ति के लिए भिखारी एक गणित का आंकड़ा भर है।उसके लिए भिखमंगी बंद करना समस्या है, इस भिखारी की मदद की बात अप्रासंगिक है।तो अपने को परखो कि

तुम कैसे काम करते हो... तुम ह्रदय की फिक्र करते हो या मस्‍तिष्‍क की।यह विधि ह्रदयोन्‍मुख व्‍यक्‍ति के काम की है।

5-लेकिन यह बात भी ध्‍यान रखो कि हर व्यक्ति अपने को यह धोखा देने में लगा है कि मैं ह्रदयोन्‍मुख व्‍यक्‍ति हूं ,प्रेमपूर्ण व्‍यक्‍ति हूं, भावुक किस्‍म का हूं। क्‍योंकि प्रेम एक ऐसी बुनियादी जरूरत है कि अगर किसी को पता चले कि मेरे पास प्रेम करने वाला ह्रदय नहीं है तो वह चैन से नहीं रह सकता।इसलिए हर व्यक्ति ऐसा सोचे और माने चला जाता है।लेकिन विश्‍वास करने से

क्‍या होगा...निष्‍पक्षता के साथ अपना निरीक्षण करना है और तब निर्णय लेना है।और अगर तुम अपने को धोखा भी दे दो तो तुम विधि को धोखा नहीं दे सकते।क्‍योंकि तब विधि को प्रयोग करने पर तुम पाओगे कि कुछ भी नहीं होता है।अगर लोगो से

पूछा जाए कि तुम किस कोटि के हो तो उन्‍होंने कभी इस संबंध में सोचा ही नहीं कि वे किस कोटि के है।उन्‍हें अपने बारे में धुँधली धारणाएं है ; मात्र कल्‍पनाएं है।

6-सच तो यह है कि कभी ह्रदय को प्रशिक्षित ही नहीं क्या गया।बुद्धि को प्रशिक्षित करने के लिए स्‍कूल, कालेज, और विश्‍व विद्यालय है।लेकिन ह्रदय के प्रशिक्षण के लिए कोई जगह नहीं है और बुद्धि का प्रशिक्षण लाभदायी है, लेकिन ह्रदय का प्रशिक्षण खतरनाक है।क्‍योंकि अगर तुम्‍हारा ह्रदय प्रशिक्षित किया जाए तो तुम इस संसार के लिए बिलकुल व्‍यर्थ हो जाओगे।यह सारा संसार तो बुद्धि से चलता है।अगर तुम्‍हारा ह्रदय प्रशिक्षित हो तो तुम पूरे ढांचे से बाहर हो जाओगे।सच तो यह है कि मनुष्‍य जितना अधिक सुसभ्‍य बनता है;ह्रदय का प्रशिक्षण उतना ही कम हो जाता है।यही कारण है कि ऐसी विधियां जो आसानी से काम कर सकती थी, कभी काम नहीं करती।अधिकांश धर्म ह्रदय-प्रधान विधियों पर आधारित है।ईसाइयत, इस्‍लाम, हिंदू तथा अन्‍य कई धर्म ह्रदयोन्‍मुख लोगो पर आधारित है।कोई धर्म जितना ही पुराना है...वह उतना ही अधिक ह्रदय आधारिक है।जब वेद लिखे गए तब लोग ह्रदयोन्‍मुख थे।उस समय बुद्धि प्रधान लोग खोजना मुश्किल था।लेकिन अभी समस्‍या उलटी है।तुम प्रार्थना नहीं कर सकते क्‍योंकि प्रार्थना ह्रदय-आधारित विधि है...ज्‍यादा ह्रदयोन्‍मुख व्‍यक्‍ति की ध्यान-विधि है।

7-''हे भगवती, जब इंद्रियाँ ह्रदय में विलीन हों, कमल के केंद्र पर पहु्ंचो।''इस विधि के लिए कई उपाय संभव है।तुम किसी व्‍यक्‍ति को स्‍पर्श करते हो; अगर तुम ह्रदय वाले आदमी हो तो वह स्पर्श शीध्र ही तुम्‍हारे ह्रदय में पहुंच जाएगा और तुम्‍हें उसकी गुणवत्‍ता महसूस हो सकती है।अगर तुम किसी मस्‍तिष्‍क वाले व्‍यक्‍ति का हाथ अपने हाथ में लोगे तो उसका हाथ ठंडा

होगा...शारीरिक रूप से नहीं, भावात्‍मक रूप से। उसके हाथ में एक तरह का मुर्दा पन होगा।और अगर वह व्यक्ति ह्रदय वाला है तो उसके हाथ में एक ऊष्‍मा होगी; तब उसका हाथ तुम्‍हारे साथ पिघलने लगेगा। उसके हाथ से कोई चीज निकलकर

तुम्‍हारे भीतर बहने लगेगी और तुम दोनों के बीच एक तालमेल होगा ;ऊष्‍मा का संवाद होगा।यह ऊष्‍मा ह्रदय से आती है ; मस्‍तिष्‍क से नहीं आ सकती, क्‍योंकि मस्‍तिष्‍क सदा ठंडा और हिसाबी है।मस्‍तिष्‍क सदा यह सोचता है कि कैसे ज्‍यादा लें और ह्रदय का भाव रहता है कि कैसे ज्‍यादा दें।जो ऊष्‍मा है वह ऊर्जा का, आंतरिक तरंगों का , जीवन का दान है।यही वजह है कि तुम्‍हें उसमे एक गहरे घुलने का अनुभव होता है।

8-किसी चीज को स्‍पर्श करो ।अपनी मां को ,बच्‍चे को ,मित्र को, या वृक्ष ,फूल ,धरती आदि को छुओ और आँख बंद करो। धरती और अपने ह्रदय के बीच होते आंतरिक संवाद को महसूस करो।भाव करो कि तुम्‍हारा हाथ ही तुम्‍हारा ह्रदय है जो धरती को स्‍पर्श करने को बढ़ा है।स्‍पर्श की अनुभूति को ह्रदय से जुड़ने दो।अपनी इंद्रियों को ह्रदय से जुड़ने दो, मस्‍तिष्‍क से नहीं।तुम

संगीत सुन रहे हो,उसे मस्‍तिष्‍क से मत सुनो।ह्रदय ही कमल है और इंद्रियाँ कमल के द्वार है, कमल की पंखुडियां है।अपने मस्‍तिष्‍क को भूल जाओ और समझो कि मैं बिना मस्‍तिष्‍क के हूं।उस पर ध्‍यान को एकाग्र करो और भाव करो कि तुम बिना सिर के हो और संगीत को ह्रदय से सुनो कि संगीत तुम्‍हारे ह्रदय में जा रहा है।ह्रदय को संगीत के साथ उद्वेलित होने दो।

9-संगीत के सुरों का नाम सरगम है..जिसमें मुख्य सात सुर होते हैं जिनके नाम षडज्, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद हैं।साधारण बोलचाल में इन्हें सा, रे, ग, म, प, ध तथा नि कहा जाता है।उपरोक्त सात मुख्य सुरों के अतिरिक्त पाँच

सहायक सुर भी होते हैं जिन्हें कोमल रे, कोमल ग, तीव्र म, कोमल ध और कोमल नि कहा जाता है। इन्हीं सुरों की सहायता से संगीत की रचना की जाती है।सरगम के सातो स्वर का उद्गम है।सा का उद्गम स्त्रोत है ..सप्त ऋषि मंडल। रे का उद्गम स्रोत है..स्वर्ग लोक।ग का उद्गम स्त्रोत है ..पाताल लोक की अग्नि।म का उद्गम स्त्रोत है...सातों समुद्र।पा का उद्गम स्त्रोत है ..

इंद्रधनुष के सात रंग।ध का उद्गम स्त्रोत है .. ब्रह्म की आत्मा। नि का उद्गम स्त्रोत है .. ब्रह्म का परमात्म स्वरुप।संगीत के सुर

सभी सातों हमारे सातों चक्रों को उद्वेलित करते हैं।अनाहत चक्र एयर एलिमेंट का चक्र है परंतु सातों समुद्र इसका स्रोत है; इसलिए शुद्ध प्रेम का चक्र है।यह प्रयोग सभी इंद्रियों के साथ करो, और अधिकाधिक भाव करो।प्रत्‍येक ऐंद्रिक अनुभव ह्रदय में जाता है और विलीन हो जाता है।

10-पहली बात कि अपनी इंद्रियों को ह्रदय के साथ जुड़ने दो और दूसरी बात कि सदा भाव करो कि इंद्रियाँ सीधे ह्रदय में

गहरी उतरती है और उसमे घुल मिल रही है।जब ये दो काम हो जाएंगे तभी तुम्‍हारी इंद्रियाँ तुम्‍हारी सहायता करेंगी। तब वे

तुम्‍हें तुम्‍हारे ह्रदय तक पहुंचा देंगी और तुम्‍हारा ह्रदय कमल बन जाएगा।अगर तुम कहीं सिर और ह्रदय के बीच में हो तो नाभि पर जाना कठिन है।एक बार तुम ह्रदय में विलय हो जाओ तो तुम ह्रदय के पार नाभि-केंद्र में उतर गए और वही बुनियादी है;

मौलिक है।यही कारण है कि प्रार्थना काम करती है क्योंकि प्रेम ईश्‍वर है ,द्वार है,प्रेम ही महत्‍व का है।प्रेम इतना हो कि संबंध मस्‍तिष्‍क का न रहे, सिर्फ ह्रदय काम करे, तो यही प्रेम प्रार्थना बन जाएगा और तुम्‍हारा प्रेमी या प्रेमिका ईश्वर बन जाएगा।यह बात साधारण प्रेम में भी घटित होती है।अगर तुम किसी के प्रेम में पड़ते हो तो वह तुम्हारे लिए दिव्‍य हो उठता है। हो सकता है कि यह भाव बहुत स्‍थायी न हो लेकिन तत्‍क्षण तो प्रेमी या प्रेमिका दिव्‍य हो उठते है।परन्तु देर-अबेर बुद्धि आकर पूरी व्‍यवस्‍था

को नष्‍ट कर देती है और एक बार बुद्धि व्‍यवस्‍थापक हुई तो सब चीजें नष्‍ट हो जाती है।अगर तुम सिर/बुद्धि की व्‍यवस्‍था के बिना प्रेम में हो सको तो तुम्‍हारा प्रेम अनिवार्यत: प्रार्थना बनेगा और तुम्‍हारा प्रेम द्वार बन जाएगा। तुम्‍हारा प्रेम तुम्‍हें ह्रदय में केंद्रित कर देगा और एक बार तुम ह्रदय में केंद्रित हुए कि तुम अपने आप ही नाभि केंद्र में गहरे उतर जाओगे।

...SHIVOHAM...


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