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विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान की ध्‍वनि-संबंधी "ग्यारह " विधि (46,47 वीं ) का विवेचन क्या है?


विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 46; -

(ध्‍वनि-संबंधी दसवीं विधि)

14 FACTS;-

1-भगवान शिव कहते है:-

‘’कानों को दबाकर और गुदा को सिकोड़कर बंद करो, और ध्‍वनि में प्रवेश करो।‘’

2-हम अपने शरीर से भी परिचित नहीं है। हम नहीं जानते कि शरीर कैसे काम करता है और उसका ढंग क्‍या है ,मार्ग क्‍या है।

लेकिन अगर तुम निरीक्षण करो तो आसानी से उसे जान सकते हो।अगर तुम अपने कानों को बंद कर लो और गुदा को ऊपर की और सिकोड़ो तो तुम्‍हारे लिए सब कुछ ठहर जायेगा। ऐसा लगेगा कि सारा संसार रूक गया है। गतिविधियां ही नहीं, तुम्‍हें

लगेगा कि समय भी ठहर गया है।अगर दोनों कान बंद कर लिए जाएं तो बंद कानों से तुम अपने भीतर एक ध्‍वनि सुनोंगे। लेकिन अगर गुदा को ऊपर खींचकर नहीं सिकुड़ा जाए तो वह ध्‍वनि गुदा-मार्ग से बाहर निकल जाती है। वह ध्‍वनि बहुत सूक्ष्म है। अगर गुदा को ऊपर खींचकर सिकोड़ लिया जाए और कानों को बंद किया जाए तो तुम्‍हारे भीतर एक ध्‍वनि का स्‍तंभ निर्मित होगा। और वह ध्‍वनि मौन की ध्‍वनि होगी। वह नकारात्‍मक ध्‍वनि है।

3-जब सब ध्‍वनियां समाप्‍त हो जाती है। तब तुम्‍हें मौन की ध्‍वनि या निर्ध्‍वनि का एहसास होता है। लेकिन वह निर्ध्‍वनि गुदा से

बाहर निकल जाती है।इसलिए कानों को बंद करो और गुदा को सिकोड़ लो। तब तुम्‍हारा शरीर दोनों ओर से बंद हो जाता है और ध्‍वनि से भर जाता है। ध्‍वनि से भरने का यह भाव गहन संतोष को जन्‍म देता है। इस संबंध में बहुत सी चीजें तुम तभी समझ सकोगे जब घटित होता है।हम अपने शरीर से परिचित नहीं है और साधक के लिए यह एक बुनियादी समस्‍या है।

और समाज शरीर से परिचय के विरोध में है।क्‍योंकि समाज शरीर से भयभीत है। हम हरेक बच्‍चे को शरीर से अपरिचित रहने की शिक्षा देते है। हम उसे संवेदन शून्य बना देते है। हम बच्‍चे के मन और शरीर के बीच एक दूरी पैदा कर देते है। ताकि वह अपने शरीर से ठीक से परिचित न हो जाए। क्‍योंकि शरीर बोध समाज के लिए समस्‍या पैदा करेगा।

4-जब शरीर रूग्‍ण होता है तो ही उसका पता चलता है। लेकिन वह भी शीध्र नहीं। तुम्‍हारे सिर में दर्द होता है तो तुम्‍हें सिर का पता चलता है। जब पाँव में कांटा गड़ता है तो पाँव का पता चलता है। और जब शरीर में दर्द होता है तो तुम जानते हो कि मेरा शरीर भी है। तुम्‍हें अपने रोगों का पता भी कुछ समय बीतने पर ही पता चलता है। जब रोग तुम्‍हारी चेतना के द्वार पर बार-बार दस्‍तक देता है। यही कारण है कि कोई भी व्‍यक्‍ति समय रहते डाक्‍टर के पास नहीं पहुंचता है। वह देर कर के पहुंचता है। जब रोग गहन हो चुका होता है। और वह अपनी बहुत हानि कर चुका होता है।इसलिए समस्याएं पैदा होती है ..विशेषकर तंत्र के

लिए। तंत्र गहन संवेदनशीलता और शरीर के बोध में भरोसा करता है।

5-तुम अपने काम में लगे हो और तुम्‍हारा शरीर बहुत कुछ कर रहा है, जिसका तुम्‍हें कोई बोध नहीं है।अब तो शरीर की भाषा पर बहुत काम हो रहा है।शरीर की अपनी भाषा हैऔर मनोचिकित्सकों और मानस्विद को शरीर की भाषा का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। क्‍योंकि वे कहते है कि आधुनिक मनुष्‍य का भरोसा नहीं किया जा सकता। आधुनिक मनुष्‍य जो कहता है उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। उससे अच्‍छा है उसके शरीर का निरीक्षण करना क्‍योंकि शरीर उसके बारे में ज्‍यादा खबर

रखता है।मनोविज्ञान ने शरीर की संरचना पर बहुत काम किया है। और उसे शरीर और मन के बीच बहुत गहरा संबंध दिखाई दिया है। यदि कोई आदमी भयभीत है तो उसका पेट कोमल नहीं होगा ;वह पत्‍थर जैसा होगा। और अगर वह निडर हो जाए तो उसका पेट छूने पर तुरंत शिथिल हो जाएगा। या अगर पेट को शिथिल कर लो तो भय चला जाएगा। पेट पर थोड़ी मालिश करो और तुम देखोगें कि डर कम हो गया। निर्भयता आई।

6-जो व्‍यक्‍ति प्रेमपूर्ण है ;उसके शरीर का गुण धर्म और होगा। उसके शरीर में उष्‍णता होगी, जीवन होगा। और जो व्‍यक्‍ति प्रेम

पूर्ण नहीं होगा उसका शरीर ठंडा होगा।यही ठंडापन और अन्‍य चीजें तुम्‍हारे शरीर में प्रविष्‍ट हो गई है। और वे ही बाधाएं बन गई है। वे तुम्‍हें तुम्‍हारे शरीर को नही जानने देती है। लेकिन शरीर अपने ढंग से अपना काम करता रहता है। और तुम अपने

ढंग से अपना काम करते रहते हो। दोनों के बीच एक खाई पैदा हो जाती है। अगर कोई व्‍यक्‍ति दमन करता है, अगर तुम क्रोध को दबाते हो तो तुम्‍हारे हाथों में, तुम्‍हारी अंगुलियों में दमित क्रोध की उतैजना होगी। और जो जानता है वह तुम्‍हारे हाथों को

छूकर बता देगा कि तुमने क्रोध को दबाया है।तंत्र को पहले से इस बात का बोध था, सबसे पहले तंत्र को ही शरीर के तल पर ऐसी गहरी संवेदनशीलता का पता चला था। और तंत्र कहता है कि अगर तुम सचेतन रूप से अपने शरीर का उपयोग कर सको तो शरीर ही आत्‍मा में प्रवेश का साधन बन जाता है।

7-तंत्र कहता है कि शरीर का विरोध करना मूढ़ता है, बिलकुल मूढता है। शरीर का उपयोग करो, शरीर माध्‍यम है। और

इसकी उर्जा का उपयोग इस भांति करो कि तुम इसका अतिक्रमण कर सको।''अब कानों का दबाकर और गुदा को

सिकोड़कर बंद करों। और ध्‍वनि में प्रवेश करो।'' तुम अपने गुदा को अनेक बार सिकोड़ते रहे हो, और कभी-कभी तो गुदा-मार्ग अनायास भी खुल जाता है। अगर तुम्‍हें अचानक कोई भय पकड़ जाये, तो तुम्‍हारा गुदा मार्ग खुल जाता है। भय के कारण अचानक मलमूत्र निकल जाता है।ऐसा क्यों होता है? भय तो मानसिक चीज है, फिर भय में पेशाब क्‍यों निकल जाता है।क्‍या

नियंत्रण जाता रहता है? जरूर ही इसका कोई गहरा संबंध होता है।भय सिर में, मन में घटित होता है। जब तुम निर्भय होते हो तो ऐसा कभी नहीं होता असल में बच्‍चे का अपने शरीर पर कोई मानसिक नियंत्रण नहीं होता। कोई पशु अपने मल मूत्र का नियंत्रण नहीं कर सकता है। जब भी मलमूत्र भर जाता है, वह अपने आप ही खाली हो जाता है। पशु उस पर नियंत्रण नहीं करता है।

8-लेकिन मनुष्‍य को आवश्‍यकतावश उस पर नियंत्रण करना पड़ता है। हम बच्‍चे को सिखाते है कि कब उसे मल-मूत्र त्‍याग करना चाहिए। हम उसके लिए समय बाँध देते है। इस तरह मन एक ऐसे काम को अपने हाथ में ले लेता है। जो स्‍वैच्‍छिक नहीं है। और यही कारण है कि बच्‍चे को मलमूत्र विसर्जन का प्रशिक्षण देना इतना कठिन होता है।मनोवैज्ञानिक कहते है कि

अगर मलमूत्र विसर्जन का प्रशिक्षण बंद कर दिया जाए तो मनुष्य की हालत बहुत सुधर जाएगी। बच्‍चे का, उसकी स्‍वाभाविकता का, सहजता का पहला दमन मलमूत्र-विसर्जन के प्रशिक्षण में होता है। लेकिन इनकी बात मानना कठिन मालूम पड़ता है। कठिन इसलिए मालूम पड़ता है। क्‍योंकि तब बच्‍चे बहुत सी समस्‍याएं खड़ी कर देंगे। केवल समृद्ध समाज, अत्‍यंत समृद्ध समाज ही इस प्रशिक्षण के बिना काम चला सकता है। गरीब समाज को इसकी चिंता लेनी ही पड़ेगी। और यह हमारे लिए बहुत खर्चीला पड़ेगा। तो प्रशिक्षण जरूरी हे। और यह प्रशिक्षण मानसिक है, शरीर में इसकी कोई अंतर्निहित व्‍यवस्‍था नहीं है। ऐसी कोई शरीर गत व्‍यवस्‍था नहीं है। जहां तक शरीर का संबंध है। मनुष्‍य पशु ही है। और शरीर को संस्‍कृति से, समाज से कुछ लेना देना नहीं है।

9-यही कारण है कि जब तुम्‍हें गहन भय पकड़ता है तो यह नियंत्रण जाता रहता है। जो शरीर पर लादी गई है, ढीली पड़ जाती है। तुम्‍हारे हाथ से नियंत्रण जाता रहता है। सिर्फ सामान्‍य हालातों में यह नियंत्रण संभव है। असामान्‍य हालातों में तुम नियंत्रण नहीं रख सकते हो। आपात स्‍थितियों के लिए तुम्‍हें प्रशिक्षित नहीं किया गया है। सामान्‍य दिन-चर्या के कामों के लिए ही प्रशिक्षित किया गया है। आपात स्‍थिति में यह नियंत्रण विदा हो जाता है, तब तुम्‍हारा शरीर अपने पाशविक ढंग से काम करने

लगता है।लेकिन इसमें एक बात समझी जा सकती है कि निर्भीक व्‍यक्‍ति के साथ ऐसा कभी नहीं होता। यह तो कायरों का लक्षण है। अगर डर के कारण तुम्‍हारा मल-मूत्र निकल जाता है; तो उसका मतलब है कि तुम कायर हो। निडर आदमी के साथ ऐसा कभी नहीं हो सकता, क्योकि निडर आदमी गहरी श्‍वास लेता है। उसके शरीर और श्‍वास प्रश्‍वास के बीच एक तालमेल है, उनमें कोई अंतराल नहीं है।

10-कायर व्‍यक्‍ति के शरीर और श्‍वास प्रश्‍वास के बीच एक अंतराल होता है। और इस अंतराल के कारण वह सदा मल-मूत्र से भरा होता है। इसलिए जब आपात स्‍थिति पैदा होती है तो उसका मल-मूत्र बाहर निकल जाता है।और इसका एक प्राकृतिक

करण यह भी है कि मल-मूत्र निकलने से कायर हल्‍का हो जाता है। और वह आसानी से भाग सकता है। बच सकता है। बोझिल पेट बाधा बन सकता है। इसलिए कायर के लिए मल-मूत्र का निकलना सहयोगी होता है।तुम्‍हें अपने मन और पेट

की प्रक्रियाओं से परिचित होना चाहिए।मन और पेट में गहरा अंतर् संबंध है।मनोचिकित्सक कहते है कि तुम्‍हारे पचास से नब्‍बे प्रतिशत सपने पेट की प्रक्रियाओं के कारण घटते है।अगर तुमने ठूस-ठूस कर खाया है, तो तुम दुःख स्‍वप्‍न देखे बिना नहीं रह सकते। ये दुःख स्‍वप्‍न मन से नहीं, पेट से आते है।

11-बहुत से सपने बाहरी आयोजन के द्वारा पैदा किए जा सकते है। अगर तुम नींद में हो और तुम्‍हारे हाथों को मोड़कर सीने पर रख दिया जाए तो तुम तुरंत दुःख स्‍वप्‍न देखने लगोगे। अगर तुम्‍हारी छाती पर सिर्फ एक तकिया रख दिया जाए तो तुम सपना देखोगें कि कोई राक्षस तुम्‍हारी छाती पर बैठा है और तुम्‍हें मार डालने पर उतारू है।यह विचारणीय है कि एक

छोटे से तकिये का भार इतना ज्‍यादा क्‍यों हो जाता है। यदि तुम जागे हुए हो तो तकिया कोई भार नहीं है। तुम्‍हें एक भार नहीं महसूस होता है। लेकिन क्‍या बात है कि नींद में छाती पर रखा गया एक छोटा सा तकिया भी चट्टान की तरह भारी मालूम पड़ता है। इतना भार क्‍यों मालूम पड़ता है?

12-कारण यह है कि जब तुम जागे हुए हो तो तुम्‍हारे शरीर और मन के बीच तालमेल नहीं रहता है, उनमें एक अंतराल रहता है। तब तुम शरीर और उसकी संवेदनशीलता को महसूस नहीं कर सकते। नींद में नियंत्रण संस्‍कृति, संस्‍कार, सब विसर्जित हो जाते है और तुम फिर से बच्‍चे जैसे हो जाते हो और तुम्‍हारा शरीर संवेदनशील हो जाता है। उसी संवेदनशीलता के कारण एक छोटा सा तकिया भी चट्टान जैसा भारी मालूम पड़ता है। संवेदनशीलता के कारण भार अतिशय हो जाता है। अनंत गुना हो

जाता है।तो मन और शरीर की प्रक्रियाएं आपस में बहुत जुड़ी हुई है। और यदि तुम्‍हें इसकी जानकारी हो तो तुम इसका उपयोग कर सकते हो।

13-गुदा को बंद करने से, ऊपर खींचने से, सिकोड़ने से शरीर में ऐसी स्‍थिति बनती है। जिसमें ध्‍वनि सुनी जा सकती है। तुम्‍हें अपने शरीर के बंद घेरे में, मौन में, ध्‍वनि का स्‍तंभ सा अनुभव होगा। कानों को बंद कर लो और गुदा को ऊपर की और सिकोड़ लो और फिर अपने-आप जो भी हो रहा हो उसके साथ रहो। कान और गुदा को बंद करने से जो रिक्‍त स्‍थिति बनी है उसके साथ बस रहो। ध्‍वनि तुम्‍हारे कानों के मार्ग से या गुदा के मार्ग से बाहर जाती है। उसके बाहर जाने के ये ही दो मार्ग है। इसलिए अगर उनका बाहर जाना न हो तो तुम उसे आसानी से महसूस कर सकते हो।और इस आंतरिक ध्‍वनि को अनुभव

करने से क्‍या होता है।

14-इस आंतरिक ध्‍वनि को सुनने के साथ ही तुम्‍हारे विचार विलीन हो जाते है। दिन में किसी भी समय यह प्रयोग करो: गुदा को ऊपर खींचो और कानों को अंगुलि से बंद कर लो। कानों को बंद करो और गुदा को सिकोड़ लो, तब तुम्‍हें एहसास होगा कि मेरा मन ठहर गया है। उसने काम करना बंद कर दिया है और विचार भी ठहर गए है। मन में विचारों का जो सतत प्रवाह

चलता है, वह विदा हो गया है। यह शुभ है।और जब भी समय मिले इसका प्रयोग करते रहो।तब बाजार के शोरगुल में भी, सड़क के शोरगुल में भी ..यदि तुमने उस ध्‍वनि को सुना है ..वह तुम्‍हारे साथ रहेगी। और फिर तुम्‍हें कोई भी उपद्रव अशांत नहीं करेगा। अगर तुमने यह अंतर् ध्वनि सुन ली तो बाहर की कोई चीज तुम्‍हें विचलित नहीं कर सकती है। तब तुम शांत रहोगे। जो भी आस-पास घटेगा उससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

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विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 47; -

(ध्‍वनि-संबंधी ग्यारहवीं विधि)

10 FACTS;-

1-भगवान शिव कहते है:-

''अपने नाम की ध्‍वनि में प्रवेश करो, और उस ध्‍वनि के द्वारा सभी ध्‍वनियों में।''

1-मंत्र की तरह नाम का उपयोग बहुत आसानी से किया जा सकता है। यह बहुत सहयोगी होगा, क्‍योंकि तुम्‍हारा नाम तुम्‍हारे अचेतन में बहुत गहरे उतर चुका है। दूसरी कोई भी चीज अचेतन की उस गहराई को नहीं छूती है। उदाहरण के लिए एक जगह कुछ लोग बैठे है । यदि सभी सो जाएं और कोई बाहर से आकर मयंक को आवाज दे तो उस व्‍यक्‍ति के सिवाय जिसका नाम मयंक है, कोई भी उसे नहीं सुनेगा। मयंक उसे सुन लेगा। सिर्फ मयंक की नींद में उससे बाधा पहुँचेगी। दूसरे किसी को

भी मयंक की आवाज सुनाई नहीं देगी।लेकिन एक आदमी क्‍यों सुनता है? कारण यह है कि यह नाम उसके गहरे अचेतन में उतर गया है। अब यह चेतन नहीं है, अचेतन बन गया है।

2-तुम्‍हारा नाम तुम्‍हारे बहुत भीतर तक प्रवेश कर गया है। तुम्‍हारे नाम के साथ एक बहुत सुंदर घटना घटती है। तुम कभी अपने को अपने नाम से नहीं पुकारते हो। सदा दूसरे तुम्‍हारा नाम पुकारते है। तुम अपना नाम कभी नहीं लेते, सदा दूसरे लेते

है।उदाहरण के लिए,पहले महायुद्ध में अमेरिका में पहली बार राशन लागू किया गया। थॉमस एडीसन महान वैज्ञानिक था, लेकिन क्‍योंकि गरीब था इसलिए उसे भी अपने राशन कार्ड के लिए कतार में खड़ा होना पडा। और वह इतना बड़ा आदमी था कि कोई उसके सामने उसका नाम नहीं लेता था। और उसे खुद कभी अपना नाम लेने की जरूरत नहीं पड़ती थी। और दूसरे लोग उसे इतना आदर करते थे कि उसे सदा प्रोफेसर कहकर पुकारते थे। तो एडीसन अपना नाम भूल गया।

3-वह क्‍यू में खड़ा था। और जब उसका नाम पुकारा गया तो वह ज्‍यों का त्‍यों चुप खड़ा रहा। क्‍यू में खड़े दूसरे व्‍यक्‍ति ने, जो एडीसन का पड़ोसी था, उसने कहा कि आप चुप क्‍यों खड़े है। आपका नाम पुकारा जा रहा है। तब एडीसन को होश आया। और उसने कहा कि मुझे तो कोई भी एडीसन कहकर नहीं पुकारता है, सब मुझे प्रोफेसर कहते है। फिर मैं कैसे सुनता।

अपना नाम सुने हुए मुझे बहुत समय हो गया है।तुम कभी अपना नाम नहीं लेते हो। दूसरे तुम्‍हारा नाम लेते है। तुम उसे दूसरों के मुंह से सुनते हो। लेकिन अपना नाम अचेतन में गहरा उतर जाता है—बहुत गहरा। वह तीर की तरह अचेतन में छिद जाता है। इसलिए अगर तुम अपने ही नाम का उपयोग करो तो वह मंत्र बन जाएगा। और दो कारणों से अपना नाम सहयोगी होता है।

4-एक कारण है कि जब तुम अपना नाम लेते हो ;उदाहरण के लिए तुम्‍हारा नाम श्याम है और तुम श्याम- श्याम कहे जाते हो ..तो कभी तुम्‍हें अचानक महसूस होगा कि मैं किसी दूसरे का नाम ले रहा हूं ; कि यह मेरा नाम नहीं है। और अगर तुम यह भी समझो कि यह मेरा नाम है तो भी तुम्‍हें ऐसा लगेगा कि मेरे भीतर कोई दूसरा व्‍यक्‍ति है जो इस नाम का उपयोग कर रहा है। यह नाम शरीर का हो सकता है। मन का हो सकता है। लेकिन जो श्याम- श्याम कह रहा है वह साक्षी है।तुमने दूसरों के

नाम पुकारें है। इसलिए जब तुम अपना नाम लेते हो तो तुम्‍हें ऐसा लगता है कि यह नाम किसी और का है। मेरा नहीं। और यह घटना बहुत कुछ बताती है। तुम अपने ही नाम के साक्षी हो सकते हो। और इस नाम के साथ तुम्‍हारा समस्‍त जीवन जुड़ा है।

5-नाम से पृथक होते ही तुम अपने पूरे जीवन में पृथक हो जाते हो। और यह नाम तुम्‍हारे गहरे अचेतन में चला जाता है। क्‍योंकि तुम्‍हारे जन्‍म से ही लोग तुम्‍हें इस नाम से पुकारते है। तुम सदा-सदा इसे सुनते रहे हो ... तो इस नाम का उपयोग करो। इस नाम के साथ तुम उन गहराइयों को छू लोगे जहां तक यह नाम प्रवेश कर गया है।पुराने दिनों में हम सबको परमात्‍मा के

नाम दिया करते थे। कोई राम कहलाता था, कोई नारायण कहलाता था। कोई कृष्‍ण कहलाता था। कोई विष्‍णु कहलाता था। कहते है कि मुसलमानों के सभी नाम परमात्‍मा के नाम है। और पूरी धरती पर यही रिवाज था कि परमात्‍मा के नाम के आधार पर हम लोगों के नाम रखते थे। और इसके पीछे कारण थे।

6-एक कारण तो यही विधि था। अगर तुम अपने नाम को मंत्र की तरह उपयोग करते हो तो इसके दोहरे लाभ हो सकते है। एक तो यह तुम्‍हारा अपना नाम होगा, जिसको तुमने इतनी बार सुना है ,जीवन भर सुना है और जो तुम्‍हारे अचेतन में प्रवेश कर गया है। फिर यही परमात्‍मा का नाम भी है। और जब तुम उसको दोहराओगे तो कभी अचानक तुम्‍हें बोध होगा, कि यह नाम मुझसे पृथक है। और फिर धीरे-धीर उस नाम की अलग पवित्रता निर्मित होगी ,महिमा निर्मित होगी। किसी दिन तुम्‍हें स्‍मरण होगा कि यह तो परमात्‍मा का नाम है। तब तुम्‍हारा नाम मंत्र बन गया है ;तो इसका उपयोग करो। यह बहुत ही अच्‍छा है।

तुम अपने नाम के साथ कई प्रयोग कर सकते हो। अगर तुम सुबह पाँच बजे जागना चाहते हो तो तुम्‍हारे नाम से बढ़कर कोई अलार्म नहीं है।

7-वह ठीक तुम्‍हें पाँच बजे जगा देगा। बस अपने भीतर तीन बार कहो: श्याम, तुम्‍हें ठीक पाँच बजे जाग जाना है। तीन बार कहकर तुरंत सो जाओ। तुम पाँच बजे जाग जाओगे। क्‍योंकि तुम्‍हारा नाम श्याम तुम्‍हारे गहन अचेतन में बसा है। अपना ही नाम लेकर अपने को कहो कि पाँच बजे मुझे जगा देना। और कोई तुम्‍हें जगा देगा। अगर तुम इस अध्‍याय को जारी रख सकते हो तो तुम पाओगे की ठीक पाँच बजे तुम्‍हें कोई पुकार रहा है।श्याम , जागों। यह तुम्‍हारा अचेतन पुकार रहा है।

यह विधि कहती है: ‘’अपने नाम की ध्‍वनि में प्रवेश करो, और उस ध्‍वनि के द्वारा सभी ध्‍वनियों में।''तुम्‍हारा नाम सभी नामों के

लिए द्वार बन सकता है। लेकिन ध्‍वनि में प्रवेश करो। पहले तुम जब श्याम- श्याम जपते हो तो वह शब्‍द भर है। लेकिन अगर जब सतत जारी रहता है तो उसका अर्थ कुछ और हो जाता है। हमने बाल्‍मीकी की कथा सुनी है।उन्‍हें राम मंत्र दिया गया था।

8-लेकिन बाल्‍मीकी सीधे-साधे बच्‍चे जैसे निर्दोष थे। उन्‍होंने राम-राम जपना शुरू किया। लेकिन इतना अधिक जप किया कि वे भूल गये और राम की जगह मरा-मरा कहने लगे। वे राम-राम को इतनी तेजी से जपते थे कि वह मरा-मरा बन गया। और मरा-

मरा कहकर ही वे पहुंच गये।तुम भी अगर अपने भीतर अपने नाम का जाप तेजी से करो तो वह शब्‍द न रहकर ध्‍वनि में बदल जाता है। जब वह एक अर्थहीन ध्‍वनि हो जाती है। और तब राम और मरा में कोई भेद नहीं रहता। अब शब्‍द नहीं रहे, वे बस

ध्‍वनि है। और ध्‍वनि ही असली है।तो अपने नाम की ध्‍वनि में प्रवेश करो, उसके अर्थ को भूल जाओ। सिर्फ ध्‍वनि में प्रवेश करो। अर्थ मन की चीज है, ध्‍वनि शरीर की चीज है। अर्थ सिर में रहता है। ध्‍वनि सारे शरीर में फैल जाती है। अर्थ को भूल ही जाओ। उसे एक अर्थहीन ध्‍वनि की तरह जपो। और इस ध्‍वनि के जरिए तुम सभी ध्‍वनियों में प्रवेश पा जाओगे। यह ध्‍वनि सब ध्‍वनियों के लिए द्वार बन जाएगी। सब ध्‍वनियों का अर्थ है ;जो सब है ...सारा अस्‍तित्‍व।

9-भारतीय अंतस अनुसंधान का यह एक बुनियादी सूत्र है कि अस्‍तित्‍व की मूलभूत इकाई ध्‍वनि है ;विद्युत नहीं है। आधुनिक विज्ञान कहता है कि अस्‍तित्‍व की मूलभूत इकाई विद्युत है, ध्‍वनि नहीं है। लेकिन वे यह भी मानते है कि ध्‍वनि भी एक तरह की विद्युत है। भारतीय सदा कहते आए है कि विद्युत ध्‍वनि का ही एक रूप है। हमने सुना है कि किसी विशेष राग के द्वारा आग पैदा की जा सकती है। यह संभव है। क्‍योंकि भारतीय धारणा यह है कि समस्‍त विद्युत का आधार ध्‍वनि है। इसलिए अगर ध्‍वनि को एक विशेष ढंग से छेड़ा जाये, किसी खास राग में गया जाए तो विद्युत या आग पैदा हो सकती है।लंबे पुलों पर फौज

की टुकड़ियों को लयवद्ध शैली में चलने की मनाही है, क्‍योंकि कई बार ऐसा हुआ है कि उनकी लयवद्ध कदम पड़ने के कारण पुल टूट गए है। ऐसा उनके भार के कारण नहीं , ध्‍वनि के कारण होता है।

10-अगर सिपाही लयवद्ध शैली में चलेंगे तो उनके लयवद्ध कदमों की विशेष ध्‍वनि के कारण पुल टूट जाएगा। वे सिपाही यदि

सामान्‍य ढंग से निकले तो पुल को कुछ नहीं होगा।पुराने यहूदी इतिहास में उल्‍लेख है कि जेरीको शहर(फिलीस्तीन के)ऐसी विशाल दीवारों से सुरक्षित था कि उन्‍हें बंदूकों से तोड़ना संभव नही था। लेकिन वे ही दीवारें एक विशेष ध्‍वनि के द्वारा तोड़ डाली गई। उन दीवारों के टूटने का राज ध्‍वनि में छिपा है। दीवारों के सामने अगर उस ध्‍वनि को पैदा किया जाए तो दीवारें टूट जाएंगी। हमने अली बाबा की कहानी भी सुनी होगी, उसमे भी एक खास ध्‍वनि बोल कर चट्टान हटाई जाती थी।वे प्रतीक है।

वह सच हो या नहीं , एक बात निश्‍चित है कि अगर तुम किसी ध्‍वनि का इस भांति सतत अभ्‍यास करते रहो कि उसका अर्थ मिट जाये, तुम्‍हारा मन विलीन हो जाए, तो तुम्‍हारे ह्रदय पर पड़ी चट्टान हट जायेगी।

.....SHIVOHAM.....


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