top of page

Recent Posts

Archive

Tags

विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान संबंधित 49,50वीं विधियों (ऊर्ध्वगमन सम्बन्धी 5)का क्या विवेचन है?

  • Writer: Chida nanda
    Chida nanda
  • Apr 9, 2022
  • 12 min read


विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि;- 49

(ऊर्ध्वगमन सम्बन्धी दूसरा सूत्र)

08 FACTS;-

1-भगवान शिव कहते है:-

‘’ऐसे प्रेम-आलिंगन में जब तुम्‍हारी इंद्रियाँ पत्‍तों की भांति कांपने लगें उस कंपन में प्रवेश करो।‘’

2-भगवान शिव अपनी पत्नी ,माता पार्वती से पॉजिटिव और नेगेटिव ऊर्जा /इड़ा और पिंगला के मिलन की ओर संकेत कर रहे

है;जो केवल अक्रिय (Inactive)अवस्था में ही संभव है।अगर आप रीढ़ की शारीरिक बनावट के बारे में जानते हैं, तो आप जानते होंगे कि रीढ़ के दोनों ओर दो छिद्र होते हैं, जो वाहक नली की तरह होते हैं, जिनसे होकर सभी धमनियां गुजरती हैं। ये

इड़ा और पिंगला, यानी बायीं और दाहिनी नाड़ियां हैं।इड़ा और पिंगला जीवन की बुनियादी द्वैतता की प्रतीक हैं। इस द्वैत को हम परंपरागत रूप से शिव और शक्ति का नाम देते हैं। या इसे बस पुरुषोचित और स्त्रियोचित कह सकते हैं। यह आपके दो पहलू – लॉजिक या तर्क-बुद्धि और इंट्यूशन या सहज-ज्ञान हो सकते हैं। जीवन की रचना भी इसी के आधार पर होती है। इन दोनों गुणों के बिना, जीवन ऐसा नहीं होता, जैसा वह अभी है।

3-सृजन से पहले की अवस्था में सब कुछ मौलिक रूप में होता है। उस अवस्था में द्वैत नहीं होता। लेकिन जैसे ही सृजन होता

है, उसमें द्वैतता आ जाती है।पुरुषोचित और स्त्रियोचित का मतलब शारीरिक रूप से पुरुष या स्त्री होने से नहीं है, बल्कि प्रकृति में मौजूद कुछ खास गुणों से है। प्रकृति के कुछ गुणों को पुरुषोचित माना गया है और कुछ अन्य गुणों को स्त्रियोचित। आप भले ही पुरुष हों, लेकिन यदि आपकी इड़ा नाड़ी अधिक सक्रिय है, तो आपके अंदर स्त्रियोचित गुण हावी हो सकते हैं। आप भले ही स्त्री हों, मगर यदि आपकी पिंगला अधिक सक्रिय है, तो आपमें पुरुषोचित गुण हावी हो सकते हैं।अगर

आप इड़ा और पिंगला के बीच संतुलन बना पाते हैं तो दुनिया में आप प्रभावशाली हो सकते हैं। इससे आप जीवन के सभी पहलुओं को अच्छी तरह संभाल सकते हैं। अधिकतर लोग इड़ा और पिंगला में जीते और मरते हैं, मध्य स्थान सुषुम्ना निष्क्रिय बना रहता है। लेकिन सुषुम्ना मानव शरीर-विज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है।

4-जब ऊर्जा सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश करती है, वास्तविक जीवन तभी शुरू होता है।यह सूत्र ऊर्जा को सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश

कराने की विधि की ओर संकेत कर रहा है।तुम अपने शरीर को अधिक हलचल नहीं करने देते हो। क्‍योंकि तुम उसे तभी नियंत्रण में रख सकते हो जब वह सीमित रहता है। तब उस पर दिमाग नियंत्रण कर सकता है। जब तुम कांपने लगोगे तो

शरीर मालिक हो जाता है और फिर तुम्‍हारा नियंत्रण नहीं रहता।इसीलिए तुम भयभीत रहते हो। कांपना अद्भुत है। क्‍योंकि जब मिलन में तुम कांपते हो तो तुम्‍हारी ऊर्जा पूरे शरीर में प्रवाहित होने लगती है ,तरंगायित होने लगती है। तब तुम्‍हारे शरीर का अणु-अणु मिलन में संलग्‍न हो जाता है। प्रत्‍येक अणु जीवंत हो उठता है।वास्तव में, तुम्‍हारे जन्‍म में दो क्रॉस अणु

(पॉजिटिव और नेगेटिव) या इड़ा और पिंगला आपस में मिले और तुम्‍हारा जीवन निर्मित हुआ, तुम्‍हारा शरीर बना।

5-वे दो अणु तुम्‍हारे शरीर में सर्वत्र छाए है। यद्यपि उनकी संख्‍या अनंत गुनी हो गई है। लेकिन तुम्‍हारी बुनियादी इकाई 'अणु 'ही है। जब तुम्‍हारा समूचा शरीर कांपता है तो तुम्‍हारे शरीर के भीतर प्रत्‍येक पिंगला/पुरूष अणु ,इड़ा/स्‍त्री अणु से मिलता है।हमारे शरीर में इड़ा- पिंगला सुषुम्ना का एक सर्किट है ;या शिव- शक्ति और निराकार का एक सर्किट है ।जो तभी पूरा होता है जब दोनो इड़ा -पिंगला का मिलन होता है और कंपन यही बताता है।यह दूसरा सूत्र कहता है: ‘’ऐसे प्रेम -आलिंगन

में जब तुम्‍हारी इंद्रियाँ पत्‍तों की भांति कांपने लगे।‘’उदाहरण के लिए तूफान चल रहा है और वृक्ष कांप रहा है। उनकी जड़ें तक हिलने लगती है। पत्‍ता-पत्‍ता कांपने लगता है।तुम्‍हारे आर-पार एक भारी ऊर्जा प्रवाहित हो रही है , कंपो ,तरंगायित होओ। अपने शरीर के अणु-अणु को नाचने दो; तभी सच्‍चा मिलन होगा। और वह मिलन मानसिक नहीं होगा। वह पॉजिटिव और नेगेटिव का/इड़ा पिंगला का अथवा शिव -शक्ति का मिलन होगा।

6-‘उस कंपन में प्रवेश करो।'और कांपते हुए उससे अलग-थलग मत रहो, मन का स्‍वभाव दर्शक बने रहने का है। इसलिए अलग मत रहो। कंपन ही बन जाओ। सब कुछ भूल जाओ और कंपन ही कंपन हो जाओ। ऐसा नहीं कि तुम्‍हारा शरीर ही कांपता है। तुम पूरे के पूरे कांपते हो, तुम्‍हारा पूरा अस्‍तित्‍व कांपता है। तुम खुद कंपन ही बन जाते हो। तब दो शरीर और दो मन नहीं रह जाएंगे। आरंभ में दो कंपित ऊर्जाऐं है, और अंत में मात्र एक वर्तुल है। दो नहीं रहे;अद्वैत स्थिति को प्राप्त हो गए।

इस वर्तुल में क्‍या घटित होगा ...पहली बात तो उस समय तुम एक सामाजिक चित नहीं रहोगे बल्कि अस्‍तित्‍वगत सत्‍ता के अंश हो जाओगे। तुम पूरी सृष्‍टि के अंग हो जाओगे। उस कंपन में तुम पूरे ब्रह्मांड के भाग बन जाओगे। वह क्षण महान सृजन का क्षण है। ठोस शरीरों की तरह तुम विलीन हो गए हो, तुम तरल होकर एक दूसरे में प्रवाहित हो गए हो। मन खो गया, विभाजन मिट गया, तुम एकता को प्राप्‍त हो गए।

7-यही अद्वैत है। और अगर तुम इस अद्वैत को अनुभव नहीं करते हो तो अद्वैत का सारा दर्शन शास्त्र व्यर्थ है। वह बस शब्‍द ही शब्‍द है। जब तुम इस अद्वैत अस्‍तित्‍वगत क्षण को जानोंगे ,तब तुम्‍हें उपनिषद समझ में आएँगे। और तभी तुम संतों को समझ पाओगे कि जब वे जागतिक एकता /Global unityकी या अखंडता की बात करते है तो उनका क्‍या मतलब है।तब तुम

जगत से भिन्‍न नहीं होगे। उससे अजनबी नहीं होगे। तब पूरा अस्‍तित्‍व तुम्‍हारा घर बन जाता है। और इस भाव के साथ कि पूरा अस्‍तित्‍व मेरा घर है ;सारी चिंताएं समाप्‍त हो जाती है। फिर कोई द्वंद्व न रहा, संघर्ष न रहा, संताप न रहा।उसको ही

लाओत्से(चीन के एक प्रसिद्ध दार्शनिक)'ताओ' कहते है;आदि शंकराचार्य 'अद्वैत' कहते है। तब तुम उसके लिए कोई अपना शब्‍द भी दे सकते हो। लेकिन प्रगाढ़ आलिंगन में भी उसे सरलता से अनुभव किया जाता है। लेकिन जीवंत बनो, कांपो, कंपन ही बन जाओ।

8-मूल रूप से सुषुम्ना गुणहीन होती है, उसकी अपनी कोई विशेषता नहीं होती। वह एक तरह की शून्‍यता या खाली स्थान है। अगर शून्‍यता है तो उससे आप अपनी मर्जी से कोई भी चीज बना सकते हैं। सुषुम्ना में ऊर्जा का प्रवेश होते ही, आपमें वैराग्‍य आ जाता है। ‘राग’ का अर्थ होता है, रंग। ‘वैराग्य’ का अर्थ है, रंगहीन यानी आप पारदर्शी हो गए हैं।अगर आप इड़ा या पिंगला

के प्रभाव में हैं तो आप बाहरी स्थितियों को देखकर प्रतिक्रिया करते हैं।लेकिन एक बार सुषुम्ना में ऊर्जा का प्रवेश हो जाए, तो आप एक नए किस्म का संतुलन पा लेते हैं, एक अंदरूनी संतुलन, जिसमें बाहर चाहे जो भी हो, आपके अंदर एक खास जगह होती है, जो किसी भी तरह की हलचल में कभी अशांत नहीं होती, जिस पर बाहरी स्थितियों का असर नहीं पड़ता। आप चेतनता की चोटी पर सिर्फ तभी पहुंच सकते हैं, जब आप अपने अंदर यह स्थिर अवस्था बना लें।

;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि;- 50

(ऊर्ध्वगमन सम्बन्धी तीसरा सूत्र)

12 FACTS;-

1-भगवान शिव कहते है:- ‘’प्रेम-आलिंगन के बिना ऐसे मिलन का स्‍मरण करके भी रूपांतरण होगा।‘’ 2-एक बार तुम इसे जान गए तो प्रेम पात्र की, साथी की जरूरत नहीं है। तब तुम कृत्‍य का स्‍मरण करके भी उसमे प्रवेश कर सकते हो।लेकिन पहले भाव का होना जरूरी है। अगर भाव से परिचित हो तो साथ के बिना भी तुम कृत्‍य में प्रवेश कर सकते हो।यह थोड़ा कठिन है, लेकिन यह होता है ;और जब तक यह नहीं होता, तुम पराधीन रहते हो। एक पराधीनता निर्मित हो जाती है। और यह प्रवेश अनेक कारणों से घटित होता है। अगर तुमने उसका अनुभव किया हो, अगर तुमने उस क्षण को जाना हो जब तुम नहीं थे, सिर्फ तरंगायित ऊर्जा एक होकर साथी के साथ वर्तुल बना रही थी। तो उस क्षण साथी भी नहीं रहता है, केवल तुम होते हो। वैसे ही उस क्षण तुम्‍हारे साथी के लिए तुम नहीं होते, वही एकता तुममें होती है। 3-इस विधि का प्रयोग करते समय आँख बंद रखना अच्‍छा है। तो ही वर्तुल का आंतरिक भाव एकता का आंतरिक भाव निर्मित हो सकता है। और फिर उसका स्‍मरण करो। आँख बंद कर लो और ऐसे लेट जाओ मानो तुम अपने साथी के साथ लेटे हो, स्‍मरण करो और भाव करो और तुम्‍हारा शरीर कांपने लगेगा ; तरंगायित होने लगेगा। उसे होने दो। यह बिलकुल भूल जाओ कि दूसरा नहीं है। ऐसे गति करो जैसे कि दूसरा उपस्‍थित है। शुरू में कल्‍पना से ही काम लेना होना। एक बार जान गए कि यह कल्‍पना नहीं, यथार्थ है; तब दूसरा मौजूद है।शीध्र वर्तुल निर्मित हो जाएगा। और यह वर्तुल अद्भुत है। शीध्र ही तुम्‍हें अनुभव हो जायेगा। लेकिन यह वर्तुल पुरूष- स्‍त्री से नहीं बना है। अगर तुम पुरूष हो तो सारा ब्रह्मांड स्‍त्री बन गया है। और अगर तुम स्‍त्री हो तो सारा ब्रह्मांड पुरूष बन गया है। अब तुम खुद अस्‍तित्‍व के साथ प्रगाढ़ मिलन में हो और उसके लिए 'दूसरा ' अब द्वार की तरह नहीं है।श्रीराधाकृष्ण का निष्काम प्रेमआलिंगन इसी मिलन का प्रतीक है। 4-दूसरा मात्र द्वार है।वास्तव में, प्रगाढ़ मिलन में तुम ..अस्‍तित्‍व के साथ मिलन में होते हो।स्‍त्री मात्र द्वार है। पुरूष मात्र द्वार है। दूसरा संपूर्ण के लिए द्वार भर है। लेकिन तुम इतनी जल्‍दी में हो कि तुम्‍हें इसका एहसास नहीं होता। अगर तुम प्रगाढ़ मिलन में, सघन आलिंगन में घंटो रह सको तो दूसरा विस्मृत हो जाएगा। दूसरा समष्‍टि का विस्‍तार भर रह जाएगा।अगर एक बार इस विधि को तुमने जान लिया तो अकेले भी तुम इसका प्रयोग कर सकते हो। और जब अकेले रहकर प्रयोग करोगे तो वह तुम्‍हें एक नयी स्‍वतंत्रता प्रदान करेगा। वह तुम्‍हें दूसरे से स्‍वतंत्र कर देगा। वह वस्‍तुत: समूचा अस्‍तित्‍व दूसरा हो जाता है। तुम्‍हारी पत्नी या तुम्‍हारा पति हो जाता है।और फिर तो इस विधि का प्रयोग निरंतर किया जा सकता है। और तुम सतत अस्‍तित्‍व के साथ ,आलिंगन में, संवाद में रह सकते हो।काम दहन के पश्चात् उसकी पत्नी रति की प्रार्थना पर शिवजी ने काम को अशरीरी रूप से जीवित रहने का वरदान दिया था और रति को विधवा नहीं होने दिया था परन्तु उसे आत्म रति बना दिया था। 5-और तब तुम इस विधि का प्रयोग दूसरे आयामों में भी कर सकते हो।सुबह टहलते हुए इसका प्रयोग कर सकते हो। तब तुम हवा के साथ, उगते सूरज के साथ, चाँद-तारों के साथ, पेड़-पौधों के साथ लयबद्ध होने का अनुभव कर सकते हो। रात में तारों को देखते हुए इस विधि का प्रयोग कर सकते हो। चाँद को देखते हुए कर सकते हो।अगर तुम्‍हें इसके घटित होने का राज

पता चल जाए। तुम पूरी सृष्‍टि के साथ प्रगाढ़ मिलन में उतर सकते हो।लेकिन मनुष्‍य के साथ प्रयोग आरंभ करना अच्‍छा है। कारण यह है कि मनुष्‍य तुम्‍हारे सबसे निकट है। वे तुम्‍हारे लिए जगत के निकटतम अंश है। लेकिन फिर उन्‍हें छोड़ा जा सकता है। उनके बिना भी चलेगा अथार्त तुम छलांग ले सकते हो और द्वार को बिलकुल भूल सकते हो।‘’ऐसे मिलन का स्‍मरण करके भी रूपांतरण होगा।‘’और तुम रूपांतरित हो जाओगे। 6-तंत्र काम का उपयोग वाहन के रूप में करता है। वह ऊर्जा है, उसे वाहन या माध्‍यम बनाया जा सकता है। काम तुम्‍हें रूपांतरित कर सकता है। वह तुम्‍हें अतिक्रमण की अवस्‍था को , समाधि को उपलब्‍ध करा सकता है।लेकिन हम गलत ढंग से काम का उपयोग करते है। और गलत ढंग स्‍वाभाविक ढंग नहीं है। इस मामले में पशु भी हमसे बेहतर है। वे स्‍वभाविक ढंग से काम का उपयोग करते है। हमारे ढंग बड़े विकृत है। काम पाप है। यह बात निरंतर प्रचार से मनुष्‍य के मन में इतनी गहरी बैठ गई है कि अवरोध बन गई है।तुम्‍हारा एक अंश सदा अलग खड़े होकर उसकी निंदा करता है।और यह बात नयी पीढ़ी के लिए भी सच है। वे भला कहते हो कि हमारे लिए काम कोई समस्‍या नहीं है ;और हम उसके दमित होने से ग्रस्‍त नहीं है , कि वह हमारे लिए टैबू नहीं रहा। लेकिन बात इतनी आसान नहीं है। तुम अपने अचेतन को इतनी आसानी से नहीं पोंछ सकते, वह सदियों में निर्मित हुआ है। मनुष्‍य का पूरा अतीत तुम्‍हारे साथ है।हो सकता है कि तुम चेतना में काम की निंदा न करते होओ। तुम उसे पाप न भी कहते हो। लेकिन तुम्‍हारा अचेतन सतत उसकी निंदा में लगा है।

7-प्रगाढ़ मिलन में भी तुम कभी समग्रता से नहीं होते। सदा ही कुछ अंश बाहर रह जाता है। और वही बाहर रह गया अंश विभाजन पैदा करता है, टूट पैदा करता है।तंत्र कहता है, प्रगाढ़ मिलन में समग्रता से प्रवेश करो।अपने किसी भी अंश को बाहर मत छोड़ो। सर्वथा निर्विचार हो जाओ। तभी यह बोध होता है कि तुम किसी के साथ एक हो गए हो और तब एक होने के इस भाव को साथी से पृथक किया जा सकता है और उसे पूरे ब्रह्मांड के साथ जोड़ा जा सकता है। एक बार तुम्‍हें वर्तुल बनाना आ जाए तो किसी भी चीज के साथ यह वर्तुल निर्मित किया जा सकता है।तब तुम वृक्ष के साथ, चाँद तारों के साथ, किसी भी चीज के साथ यह वर्तुल बना सकते हो।तुम अपने भीतर भी एक वर्तुल का निर्माण कर सकते हो। क्‍योंकि मनुष्‍य दोनों है, शिव और शक्ति/पुरूष और स्‍त्री... दोनों है। पुरूष के भीतर शक्ति/स्‍त्री है ,और स्‍त्री के भीतर शिव/ पुरूष है। तुम दोनों हो, क्‍योंकि दोनों ने मिलकर तुम्‍हें निर्मित किया है। तुम्‍हारा निर्माण शिव- शक्ति /स्‍त्री और पुरूष दोनों के द्वारा हुआ है। इसलिए तुम्‍हारा आधा अंश सदा दूसरा है। तुम बाहरी सब कुछ को पूरी तरह भूल जाओ। और वह वर्तुल तुम्‍हारे भीतर निर्मित हो जाएगा। 8-इस वर्तुल के बनते ही तुम्‍हारा पुरूष तुम्‍हारी स्‍त्री के आलिंगन में होता है और तुम्‍हारे भीतर की स्‍त्री भीतर के पुरूष के आलिंगन में होती है। और तब तुम अपने साथ ही आंतरिक प्रगाढ़ मिलन में होते हो। और इस वर्तुल के बनने पर ही सच्‍चा ब्रह्मचर्य उपलब्‍ध होता है।अन्‍यथा सब ब्रह्मचर्य विकृति है और उससे समस्‍याएं ही समस्‍याएं जनम लेती है। और जब यह वर्तुल तुम्‍हारे भीतर निर्मित होता है तो तुम मुक्‍त हो जाते हो।तंत्र यही कहता है: काम गहनत्म बंधन है, लेकिन उसका उपयोग परम मुक्‍ति के लिए किया जा सकता है। उसे एक वाहन बनाया जा सकता है। जहर को औषधि बनाया जा सकता है। लेकिन उसके लिए विवेक जरूरी है।तो किसी चीज की निंदा मत करो।वरन उसका उपयोग करो।किसी चीज के विरोध में मत होओ। उपाय निकालों कि उसका उपयोग किया जाए। उसको रूपांतरित किया जाए।

9-तंत्र जीवन का गहन स्‍वीकार है, समग्र स्‍वीकार है। तंत्र अपने ढंग की सर्वथा अनूठी साधना है ,अकेली साधना है। सभी देश और काल में तंत्र का यह अनूठापन अक्षुण्‍ण रहा है। और तंत्र कहता है, किसी भी चीज को मत फेंको, किसी चीज के भी विरोध में मत जाओ। किसी चीज के साथ संघर्ष मत करो, क्‍योंकि द्वंद्व में, संघर्ष में मनुष्‍य अपने प्रति ही विध्‍वंसात्‍मक हो जाता है।सभी धर्म काम के विरोध में है। वे उससे डरते है। क्‍योंकि काम महान ऊर्जा है। उसके उतरते ही तुम नहीं बचते हो। उसका प्रवाह तुम्‍हें कहीं से कहीं बहा ले जाता है। यही भय का कारण है। इससे ही लोग अपने और इस प्रवाह के बीच एक दीवार, एक अवरोध खड़ा कर लेते है। ताकि दोनों बंट जाएं, ताकि यह प्रबल शक्‍ति तुम्‍हें अभिभूत न करे। ताकि तुम उसके मालिक बन रहो। 10-लेकिन तंत्र का कहना है ...और केवल तंत्र का कहना है ..कि यह मालिकीयत झूठी है। रूग्ण है। क्‍योंकि तुम सच में इस प्रवाह से पृथक नहीं हो सकते हो। वह प्रवाह तुम हो। सभी विभाजन झूठे होंगे। सभी विभाजन थोपे हुए होंगे। बुनियादी बात यह है कि विभाजन संभव ही नहीं है। क्‍योंकि तुम्‍हीं वह प्रवाह हो, तुम उसके अंग हो, उसकी एक लहर हो। संभव है कि तुम बर्फ की तरह जम गए हो। और इस तरह तुमने अपने को प्रवाह से अलग कर लिया है। लेकिन वह जमना, वह अलग होना मृतवत जैसा हो गया है। कोई भी आदमी वास्‍तव में जीवंत नहीं है। तुम नदी में बहते हुए मुर्दों जैसे हो .. इसीलिए पिघलो। तंत्र कहता है... पिघलने की चेष्‍टा करो। हिमखंड की तरह मत जीओं। पिघलो और नदी के साथ एक हो जाओ। नदी के साथ एक होकर, नदी में विलीन होकर बोधपूर्ण होओ और तब रूपांतरण घटित होता है। तब रूपांतरण है। संघर्ष से नहीं, बोध से रूपांतरण घटित होता है। 11-ये तीन विधियां बहुत वैज्ञानिक विधियां है।लेकिन तब काम वही नहीं रहता है जो तुम उसे समझते हो, तब वह कुछ और ही चीज है।तब वह ऊर्जा को बाहर फेंकना नहीं है। तब इसका अंत नहीं आता, तब वह ध्‍यानपूर्ण वर्तुल बन जाता है।

शिव परम पुरुषत्व के प्रतीक हैं, मगर उनके अर्द्धनारीश्वर रूप में उनका आधा हिस्सा एक पूर्ण विकसित स्त्री का होता है।आपको समझना होगा कि पार्वती को अपने शरीर के अंदर स्थान देने के लिए उन्हें अपना आधा हिस्सा छोड़ने की जरूरत थी। इसलिए उन्होंने अपना आधा हिस्सा त्याग कर पार्वती को अपने अंदर समा लिया। अर्धनारीश्वर की कहानी यही है। इसका मतलब मूल रूप से यह है कि आपके भीतर पुरुष और स्त्री गुण बराबर मात्रा में होते हैं।जब शिव ने पार्वती को अपने

अंदर शामिल कर लिया, तो वह आनंदित हो गए। आपको यह समझाना है कि जब आपके भीतर पौरुष यानी पुरुष-गुण और स्त्रैण यानी स्त्री-गुण का मिलन होता है, तो आप स्थाई रूप से परमानंद की अवस्था में रहते हैं।

12-पौरुष और स्त्रैण का मतलब पुरुष और स्त्री नहीं है। ये खास गुण या विशेषताएं हैं। मुख्य रूप से यह दो लोगों के मिलन की चाह नहीं है, यह जीवन के दो पहलुओं के मिलन की चाह है, जो बाहरी और भीतरी तौर पर एक होना चाहते हैं। अगर आप भीतरी तौर पर इसे हासिल कर लें, तो बाहरी तौर पर यह सौ फीसदी अपने आप हो जाएगा। वरना, बाहरी तौर पर यह

एक भयानक विवशता बन जाएगा।अर्द्धनारीश्वर रूप इस बात को दर्शाता है कि अगर आप चरम रूप में विकसित होते हैं, तो आप आधे पुरुष और आधी स्त्री होंगे। इसका मतलब यह नहीं कि आप नपुंसक होंगे, बल्कि एक पूर्ण विकसित पुरुष और एक

पूर्ण विकसित स्त्री होंगे। तभी आप एक पूर्ण विकसित इंसान बन पाते हैं।आम तौर पर, शिव को परम या पूर्ण पुरुष माना जाता है। मगर अर्धनारीश्वर रूप में, उनका आधा हिस्सा एक पूर्ण विकसित स्त्री का होता है। कहा जाता है कि अगर आपके अंदर की पौरुष यानी पुरुष-गुण और स्त्रैण यानी स्त्री-गुण मिल जाएं, तो आप परमानंद की स्थायी अवस्था में रहते हैं। अगर आप बाहरी तौर पर इसे करने की कोशिश करते हैं, तो वह टिकाऊ नहीं होता और उसके साथ आने वाली मुसीबतें कभी खत्म नहीं होतीं।

....SHIVOHAM.....

Single post: Blog_Single_Post_Widget
bottom of page