क्या है विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान संबंधित 11,12 विधियां(शिथिल होने की विधियां10,11,12)?
विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि 11(शिथिल होने की विधि10,11,12);-
07 FACTS;-
1-भगवान शिव कहते है: ''जब चींटी के रेंगने की अनुभूति हो तो इंद्रियों के द्वार बंद कर दो।''
2-यह बहुत सरल दिखता है। लेकिन उतना सरल है नहीं।यह एक उदाहरण मात्र है।इंद्रियों के द्वार बंद कर दो.. जब चींटी के
रेंगने की अनुभूति हो और तब घटना घट जाएगी।चींटी का रेंगना केवल भगवान शिव का उदाहरण है।विषय के रूप में किसी से भी काम चलेगा।जैसे तुम्हारे सिर में दर्द है, या कहीं शरीर में दर्द है,तुम्हारे पाँव में कांटा गड़ा है , दर्द देता है, तुम तकलीफ में हो। या तुम्हारे पाँव पर एक चींटी रेंग रही है ; तुम्हें उसका रेंगना महसूस होता है और तुम अचानक उसे हटाना चाहते हो। किसी भी अनुभव को ले सकते है।जो भी अनुभव हो, इंद्रियों के सब द्वार बंद कर दो अथार्त करना क्या है? आंखें बंद कर लो और सोचो कि मैं अंधा हूं और देख नहीं सकता। अपने कान बंद कर लो और सोचो कि मैं सुन नहीं सकता। पाँच इंद्रियाँ है, उन सबको बंद कर लो।
3-उदाहरण के लिए एक वृद्ध सीढ़ी से गिर पड़े और डॉक्टरों ने कहा कि अब वे तीन महीनों तक खाट से नहीं हिल सकेंगे। तीन महीने विश्राम में रहना है। और वे बहुत अशांत व्यक्ति थे। पड़े रहना उनके लिए कठिन था।उन्होंने कहा कि ''मेरे लिए प्रार्थना करें कि में मर जाऊं क्योंकि तीन महीने पड़े रहना मौत से भी बदतर है। मैं पत्थर की तरह कैसे पडा रह सकता हूं और
सब कहते है कि हिलिए मत।'' उनसे कहा गया, की यह अच्छा मौका है। आंखें बंद करें और सोचें कि मैं पत्थर हूं, मूर्तिवत। अब आप हिल नहीं सकते। आँख बंद करें और पत्थर की मूर्ति हो जाएं।और कुछ किया भी नहीं जा सकता। जैसे भी हो आपको तो यहां तीन महीने पड़े रहना है।इसलिए प्रयोग करें।
4-वैसे तो वे प्रयोग करने वाले जीव नहीं थे। लेकिन उनकी यह स्थिति ही इतनी असंभव थी कि उन्होंने प्रयोग किया।कभी-
कभी जब तुम असंभव और निराश स्थिति में होते हो तो चीजें घटित होने लगती है। उन्होंने आंखें बंद कर ली कि दो तीन मिनट में वे आंखे खोलेंगे; और कहेंगे कि कुछ नहीं हुआ। लेकिन उन्होंने आंखें नहीं खोली। तीस मिनट गुजर गए। और वे पत्थर हो गए। उनके माथे पर से सभी तनाव विलीन हो गए। उनका चेहरा बदल गया। लेकिन वे आंखे बंद किए पड़े थे। और वे इतने
शांत थे मानो मर गए है। उनकी श्वास शांत हो चली थी।उन्होंने जब आंखे खोली तब वे एक दूसरे ही आदमी थे।
5-उन्होंने कहा, कि ''यह तो चमत्कार है। जब मैंने सोचना शुरू किया कि मैं पत्थर जैसा हूं तो अचानक यह भाव आया कि यदि मैं अपने हाथ हिलाना भी चाहता हूं तो उन्हें हिलाना भी असंभव है। मैंने कई बार अपनी आंखें खोलनी चाही, लेकिन वे पत्थर जैसी हो गई थी और नहीं खुल पा रही थी। लेकिन मैं असमर्थ था। मैं तीस मिनट तक हिल नहीं सका।और जब सब गति बंद हो
गई तो अचानक संसार विलीन हो गया। और मैं अकेला रह गया। अपने आप में गहरे चला गया। और उसके साथ दर्द भी जाता रहा''।उन्होंने कहा कि पहले तो लगा कि दर्द है, पर कहीं दूर पर है, किसी और को हो रहा है। और धीरे-धीरे वह दूर और दूर होता गया। और फिर एक दम से लापता हो गया। कोई दस मिनट तक दर्द नहीं था। पत्थर के शरीर को दर्द कैसे हो सकता है।जबकि उन्हें भारी दर्द था और रात को ट्रैंक्विलाइजर के बिना उन्हें नींद नहीं आती थी। और वैसा दर्द चला गया।
6-यह विधि कहती है: ‘’इंद्रियों के द्वारा बंद कर दो।पत्थर की तरह हो जाओ। जब तुम सच में संसार के लिए बंद हो जाते हो तो तुम अपने शरीर के प्रति भी बंद हो जाते हो। क्योंकि तुम्हारा शरीर तुम्हारा हिस्सा न होकर संसार का हिस्सा है। जब तुम संसार के प्रति बिलकुल बंद हो जाते हो तो अपने शरीर के प्रति भी बंद हो गए। और भगवान शिव कहते है... तब घटना घटेगी।इसलिए शरीर के साथ इसका प्रयोग करो। किसी भी चीज से काम चल जाएगा।
7- इसलिए किसी भी विधि का प्रयोग करो जैसे तुम अपने बिस्तर पर पड़े हो और चादर ठंडी महसूस हो रही है। उसी क्षण मृत हो जाओ। अचानक चादर दूर होने लगेगी ,विलीन हो जाएगी। तुम बंद हो, मृत हो, पत्थर जैसे हो, तुम हिल नहीं सकते।
और जब तुम हिल नहीं सकते तो तुम अपने केंद्र पर फेंक दिये जाते हो। अपने में केंद्रित हो जाते हो। और तब पहली बार तुम अपने केंद्र से देख सकते हो। और जब एक बार अपने केंद्र से देख लिया तो फिर तुम वही व्यक्ति नहीं रह जाओगे जो थे।
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विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान विधि(तंत्र-सूत्र) 12;-
10 FACTS;-
1-भगवान शिव कहते है;-
''जब किसी बिस्तर या आसमान पर हो तो अपने को वजन शून्य हो जाने दो..मन के पार।''
2-तुम बैठे हो; बस भाव करो कि तुम वजनशून्य हो गए हो ;तुम्हारा वज़न न रहा। तुम्हें पहले लगेगा कि यहां कहीं वज़न है लेकिन वजनशून्य होने का भाव जारी रखो। वह एक क्षण आता है ;जब तुम समझोगे कि तुम Weightless हो ...वज़न नहीं है। और जब वज़न शून्य नहीं रहा तो तुम शरीर नहीं रहे। क्योंकि वज़न शरीर का है; तुम्हारा नहीं, तुम तो Weightless हो।
इस संबंध में बहुत प्रयोग किए गये है। संसार भर में अनेक वैज्ञानिकों ने मरते हुए व्यक्ति का वज़न लेने की कोशिश की है। अगर कुछ फर्क हुआ, अगर कुछ चीज शरीर के बाहर निकली है, कोई आत्मा या कुछ अब वहां नहीं है। क्योंकि विज्ञान के लिए कुछ भी बिना वज़न के नहीं है। और अगर कोई चीज वज़न के बिना है तो वह पदार्थ नहीं, उप पदार्थ है। और विज्ञान पिछले बीस पच्चीस वर्षो तक विश्वास करता था कि पदार्थ के अतिरिक्त कुछ नहीं है।सभी पदार्थ के लिए वज़न बुनियादी है। सूर्य की किरणों का भी वज़न है। वह अत्यंत कम है, न्यून है, उसको मापना भी कठिन है; लेकिन वैज्ञानिकों ने उसे भी मापा है। अगर तुम पाँच वर्ग मील के क्षेत्र पर फैली सब सूर्य किरणों को इकट्ठा कर सको तो उनका वज़न एक बाल के वज़न के बराबर होगा।
3-इसलिए जब कोई मरता है और कोई चीज शरीर से निकलती है तो वज़न में फर्क पड़ना चाहिए।लेकिन यह फर्क कभी न पडा, वज़न वही का वही रहा। कभी-कभी थोड़ा बढ़ा ही है और वह समस्या है। क्योकि जिंदा आदमी का वज़न कम हुआ, मुर्दा का ज्यादा। उसमे उलझने बढ़ी, क्योंकि वैज्ञानिक तो यह पता लेने चले थे कि मरने पर वज़न घटता है। तभी तो वे कह सकते है कि कुछ चीज बाहर गई। लेकिन वहां तो लगता है कि कुछ चीज अंदर ही आई। आखिर हुआ क्या।वास्तव में
वज़न पदार्थ का है, लेकिन तुम पदार्थ नहीं हो। अगर हम वजन शून्यता की विधि का प्रयोग करना है तो तुम्हें सोचना चाहिए। सोचना ही नहीं,बल्कि भाव करना चाहिए कि तुम्हारा शरीर वजनशून्य हो गया है। अगर तुम भाव करते ही गए ..भाव करते ही गए तो तुम वजनशून्य हो, तब एक क्षण आता है कि तुम अचानक अनुभव करते हो कि तुम वज़न शून्य हो गये।
4-वास्तव में तुम वजनशून्य ही हो। इसलिए तुम किसी भी समय अनुभव कर सकते हो। सिर्फ एक स्थिति पैदा करनी है। जिसमें तुम फिर अनुभव करो कि तुम वजनशून्य हो। तुम्हें अपने को सम्मोहन मुक्त करना है।तुम्हारा सम्मोहन यह है कि
तुमने विश्वास किया है कि मैं शरीर हूं, और इसलिए वज़न अनुभव करते हो। अगर तुम फिर से भाव करों, विश्वास करो कि मैं शरीर नहीं हूं, तो तुम वज़न अनुभव नहीं करोगे।यही सम्मोहन मुक्ति है।भगवान शिव कहते है: ‘’जब किसी बिस्तर या आसन पर हो तो अपने को वजनशून्य हो जाने दो—मन के पार।‘’ जब तुम वज़न अनुभव नहीं करते तो तुम मन के पार चले गए....तब बात घटती है क्योंकि मन का भी वज़न है।प्रत्येक आदमी के मन का वज़न है। एक समय कहा जाता था कि जितना वज़नी मस्तिष्क हो उतना बुद्धिमान होता है और आमतौर से यह बात सही है। लेकिन हमेशा सही नहीं है। क्योंकि कभी-कभी छोटे मस्तिष्क के भी महान व्यक्ति हुए है और महा मूर्ख मस्तिष्क भी वज़नी होते है।
5-कभी-कभी मुर्दो का वज़न बढ़ जाता है क्योंकि ज्यों ही चेतना शरीर को छोड़ती है कि शरीर असुरक्षित हो जाता है।
बहुत सी चीजें उसमें प्रवेश कर जा सकती है। तुम्हारे कारण वे प्रवेश नहीं कर सकती है। एक शरीर में तरंगें प्रवेश कर सकती है। तुममें नहीं कर सकती है। तुम यहां थे, शरीर जीवित था। वह अनेक चीजों से बचाव कर सकता था। यही कारण है कि जब
तुम एक बार बीमार पड़ते हो तो यह एक लंबा सिलसिला हो जाता है। एक के बाद दूसरी बीमारी आती चली जाती है। एक बार बीमार होकर तुम असुरक्षित हो जाते हो। हमले के प्रति खुल जाते हो। प्रतिरोध जाता रहता है। तब कुछ भी प्रवेश कर सकता है। तुम्हारी उपस्थिति शरीर की रक्षा करती है। इसलिए कभी-कभी मृत शरीर का वज़न बढ़ सकता है। क्योंकि जिस क्षण तुम उससे हटते हो, उसमे कुछ भी प्रवेश कर सकता है।
6-दूसरी बात है कि जब तुम सुखी होते हो तो हलके होते हो,तुम वजनशून्य अनुभव करते हो।क्योंकि जब तुम सुखी हो, आनंद का क्षण अनुभव करते हो तो तुम शरीर को बिलकुल भूल जाते हो। और दुःखी होते हो तो वज़न अनुभव करते हो क्योंकि दुःख की हालत में वज़न बढ़ जाता है। लगता है कि कुछ तुम्हें नीचे को खींच रहा है। तब गुरुत्वाकर्षण बहुत बढ़ जाता
है। और जब उदास होते हो, दुःखी होते हो तब, शरीर के अति निकट आ जाते हो। उसे भूल नहीं पाते। उससे जुड़ जाते हो। तब तुम भार अनुभव करते हो। ये भार तुम्हारा नहीं है, तुम्हारे शरीर से चिपकने का है, शरीर का है। वह तुम्हें नीचे की ओर जमीन की तरफ खींचता है, मानों तुम जमीन में गड़े जा रहे हो। सुख में तुम निर्भार होते हो। शोक में, विषाद में वज़नी हो जाते
हो।इसलिए गहरे ध्यान में, जब तुम अपने शरीर को बिलकुल भूल जाते हो, तुम जमीन से ऊपर हवा में उठ सकते हो। तुम्हारे साथ तुम्हारा शरीर भी ऊपर उठ सकता है। कई बार ऐसा होता है।
7-बोलिविया में वैज्ञानिको ने एक महिला का निरीक्षण किया जो ध्यान करते हुए जमीन से चार फीट ऊपर उठ जाती है। उसके अनेक फोटो और फिल्म लिए जा चुके है । हजारों दर्शकों के सामने वह महिला अचानक ऊपर उठ जाती है। उसके लिए गुरुत्वाकर्षण व्यर्थ हो जाता है। अब तक इस बात की सही व्याख्या नहीं की जा सकी है कि ऐसा क्यों होता है। लेकिन वह महिला गैर-ध्यान की अवस्था में ऊपर नहीं उठ सकती। या अगर उसके ध्यान में बाधा हो जाए तो भी वह ऊपर से झट नीचे आ जाती है।वास्तव में ,ध्यान की गहराई में तुम अपने शरीर को बिलकुल भूल जाते हो , तादात्म्य टूट जाता है। शरीर बहुत छोटी चीज है और तुम बहुत बड़े हो। तुम्हारी शक्ति अपरिसीम है। तुम्हारे मुकाबले में शरीर तो कुछ भी नहीं है। यह तो ऐसा ही है कि जैसे एक सम्राट ने अपने गुलाम के साथ Identification /तादात्म्य स्थापित कर लिया है।इसलिए जैसे गुलाम भीख मांगता है। वैसे ही सम्राट भी भीख मांगता है। जैसे गुलाम रोता है। वैसे ही सम्राट भी रोता है। और जब गुलाम कहता है कि मैं कुछ नहीं हूं तो सम्राट भी कहता है ;मैं कुछ नहीं हूं लेकिन एक बार सम्राट अपने अस्तित्व को पहचान ले, कि वह सम्राट है और गुलाम ..बस गुलाम है, तो अचानक सब कुछ बदल जाएगा।
8-तुम वह अपरिसीम शक्ति हो जो क्षुद्र शरीर से Identiy/एकात्म हो गई है। एक बार यह पहचान हो जाए, तुम अपने स्व को जान लो, तो तुम्हारी वजन शून्यता बढ़ेगी और शरीर का वज़न घटेगा। तब तुम हवा मैं उठ सकते हो, शरीर ऊपर जा सकता
है।ऐसी अनेक घटनाएं है जो अभी साबित नहीं की जा सकती। लेकिन वे साबित होंगी। क्योंकि जब एक महिला चार फीट ऊपर उठ सकती है तो फिर दूसरा हजार फीट ऊपर उठ सकता है। तीसरा अनंत अंतरिक्ष में पूरी तरह जा सकता है। सैद्धांतिक रूप से यह कोई समस्या नहीं है। चार फीट ऊपर उठे कि चार सौ फीट कि चार हजार फीट, इससे क्या फर्क
पड़ता है।श्रीराम तथा कई अन्य के बारे में कथाएं है कि उनके शरीर विलीन हो गए थे ; वे इस धरती पर कहीं नहीं पाए गए। मोहम्मद बिलकुल विलीन हो गए थे। शरीर ही नहीं अपने घोड़े के साथ। वे कहानियां असंभव और पौराणिक मालूम पड़ती है। लेकिन जरूरी नहीं है कि वे मिथक ही हों। एक बार तुम वज़न शून्य शक्ति को जान जाओ। तो तुम गुरुत्वाकर्षण के मालिक हो गए। तुम उसका उपयोग भी कर सकते हो, यह तुम पर निर्भर करता है। तुम सशरीर अंतरिक्ष में विलीन हो सकते हो।
9-लेकिन हमारे लिए वज़न शून्यता समस्या रहेगी।जब पाँव पर खड़े हो तो गुरुत्वाकर्षण तुम पर न्यूनतम प्रभाव करता है और गुरुत्वाकर्षण का ही वज़न है।लेकिन बहुत देर तक खड़ा नहीं रहा जा सकता है। महावीर सदा खड़े-खड़े ध्यान करते थे, क्योंकि उस हालत में गुरुत्वाकर्षण का न्यूनतम क्षेत्र घेरता है। तुम्हारे पैर भर जमीन को छूते है।लेकिन हमारे लिए वज़न शून्यता समस्या रहेगी। सिद्धासन की विधि वजनशून्य होने की सर्वोतम विधि है।मात्र जमीन पर बैठो, किसी कुर्सी या अन्य आसन पर नहीं ..कि तुम प्रकृति के निकटतम रहो।अच्छा हो कि उस पर सीमेंट या कोई कृत्रिमता नहीं हो।पाँवों और हाथों को
बांधकर सिद्धासन में बैठना ज्यादा कारगर होता है। क्योंकि तब तुम्हारी आंतरिक विद्युत एक सर्किल बन जाती है। रीढ़ सीधी रखो। अब तुम समझ सकते हो कि सीधी रीढ़ रखने पर इतना जोर दिया जाता है क्योंकि सीधी रीढ़ से कम से कम जगह घेरती है। तब गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव कम रहता है।
10-आंखे बंद रखते हुए अपने को पूरी तरह संतुलित कर लो, अपने को केंद्रित कर लो। पहले दाई और झुककर गुरुत्वाकर्षण का अनुभव करो। फिर बाई और झुककर गुरुत्वाकर्षण का अनुभव करो। तब उस केंद्र को खोजों जहां गुरुत्वाकर्षण या वज़न कम से कम अनुभव होता है और उस स्थिति में स्थिर हो जाओ।और तब शरीर को भूल जाओ और भाव करो कि तुम वज़न शून्य हो। फिर इस वज़न शून्यता का अनुभव करते रहो।और अचानक तुम वज़न शून्य हो जाते हो। अचानक तुम शरीर नहीं रह जाते हो, तुम शरीर शून्यता के एक दूसरे ही संसार में होते हो।वज़न शून्यता शरीर शून्यता है। तब तुम मन का भी अतिक्रमण कर जाते हो। मन भी शरीर का हिस्सा है, पदार्थ का हिस्सा है। पदार्थ का वज़न होता है परंतु तुम्हारा कोई वज़न
नहीं है। इस विधि का यही आधार है।किसी भी एक विधि को प्रयोग में लाओ। लेकिन कुछ दिनों तक उसमे लगे रहो। ताकि तुम्हें पता हो कि वह तुम्हारे लिए कारगर है या नहीं।
सिद्धासन का क्या महत्व है?-
03 FACTS;- 1-हमारे शरीर में सात चक्र होते हैं, जिनके नाम क्रमशः मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा और सहस्रार हैं। इन सभी चक्रों के अलग-अलग काम होते हैं। जैसे किसी जीवित प्राणी में ऊर्जा ऊपर की दिशा में मूलाधार चक्र से सहस्रार चक्र की ओर प्रवाहित होती है। लेकिन अनियमित, असंयमित व अस्वास्थ्यकर जीवनशैली के कारण सहस्रार चक्र की ओर
प्रवाहित होने वाली ऊर्जा बाधित हो जाती है। जिसके कारण शरीर के विभिन्न अंगों में ऊर्जा के संचार में रुकावट पैदा हो जाती है। इस कारण से शारीरिक बनावट और व्यवहार में भी बदलाव आने लगता है, जो जीवन में समस्याएं पैदा करता है और नित नई व अलग-अलग समस्याओं का सामना करना पड़ता है। सिद्धासन इन चक्रों को जगाने और उन्हें ठीक से काम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 2-सिद्धासन में अच्छा लगता है ध्यान...ध्यान लगाना भी एक कला है, जिस पर कड़ी मेहनत और समय के साथ महारथ प्राप्त होती है। कई आसनों की मदद से भी ध्यान लगाने की प्रक्रिया को बेहतर बनाया जा सकता है। ऐसा ही एक आसन है 'सिद्धासन'। सिद्धासन ठीक प्रकार से ध्यान लगाने में सहायता करता है। नियमित ध्यान लगाना ऊपरी दिशा में ऊर्जा प्रवाह को सुगम बनाता है और चक्र संतुलन में रहते हैं।योगासन की दुनिया में सिद्धासन का बहुत बड़ा महत्त्व है। 84 लाख आसनों में सिद्धासन को सबसे सर्वेश्रेष्ट आसन में रखा गया है। यह आसान आपको मोक्ष प्राप्ति की ओर ले जाता है। इसको सच्चे दिल एवम सही तरीके से करने पर यह आपको अलौकिक सिद्दियाँ प्राप्त की ओर लेकर जाता है।
3-नाम से ही ज्ञात होता है कि यह आसन सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाला है, इसलिए इसे सिद्धासन कहा जाता है। यमों में
ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ है, नियमों में शौच श्रेष्ठ है वैसे आसनों में सिद्धासन श्रेष्ठ है। "जिस प्रकार केवल कुम्भक के समय कोई कुम्भक नहीं, खेचरी मुद्रा के समान कोई मुद्रा नहीं, नाद के समय कोई लय नहीं; उसी प्रकार सिद्धासन के समान कोई दूसरा आसन नहीं है।
सिद्धासन कैसे करें?-
प्रथम विधि; -
07 POINTS;- 1-सिद्धासन करने के लिये सबसे पहले पैर आगे की ओर करें और बैठ जाएं।अब धीरे-धीरे अपने दायें पैर को मोड़ें और एड़ी को नितम्ब संधि (हिप ज्वाइंट) के पास लाएं। 2-फिर बायां पैर मोड़ें, पंजों को दाएं पैर की पिंडली और जांघों के बीच रखें। इसके साथ ही एड़ी को दाएं पैर की एड़ी पर रखें। 3-अगर आपको अपने बायें पैर को इस तरह रखने में समस्या होती है, तो इसे केवल सीधे पैर के टखने के सामने रख लें। 4-आप चाहें तो पैरों का क्रम बदल भी सकते हैं। अब हाथों को दोनो घुटनों के ऊपर ज्ञानमुद्रा में रखें था जालन्धर बन्ध लगाएँ।
5-दोनों पैरों के पंजे जांघों एवं पिंडलियों के बीच होने चाहिए।हाथों को घुटनों के ऊपर रखें। ध्यान रहे इस योगाभ्यास के दौरान आपका पूरा शरीर एकदम सीधा होना चाहिए।
6-अपनी दृष्टि को नाक की नोक पर केंद्रित करें।सांस सामान्य रखें और आज्ञाचक्र में ध्यान केन्द्रित करें।
7-शुरुवाती दौड़ में इसको आप कुछ समय के लिए प्रैक्टिस करें लेकिन धीरे धीरे इसकी अवधि को बढ़ाएं और 10 मिनट तक लेकर जाएं।
दूसरी विधि; -
सर्वप्रथम दण्डासन में बैठ जाएँ तत्पश्चात बाएँ पैर को मोड़कर उसकी एड़ी को शिशन के ऊपर रखें तथा दाएँ पैर को मोड़कर उसकी एड़ी को बाएं पैर की एड़ी के ठीक ऊपर रखें। यह भी सिद्धासन कहलाता है।
सिद्धासन के लाभ; -
06 POINTS;-
1-यह सभी आसनों में महत्वपूर्ण तथा सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाला एकमात्र आसन है। इस आसन के अभ्यास से साधक का मन विषय वासना से मुक्त हो जाता है।
2-इसके अभ्यास से निष्पत्ति अवस्था, समाधि की अवस्था प्राप्त होती है। इसके अभ्यास से स्वत: ही तीनों बंध (जालंधर, मूलबन्ध तथा उड्डीयन बंध) लग जाते हैं।
3-यह आसन मानसिक ठहराव देते हुए सूक्ष्म्नाड़ी से प्राण का प्रवाह सुनिश्चित करता है तथा कुंडलिनी जागरण में सहायता करता है।प्राणतत्त्व स्वाभाविकतया ऊर्ध्वगति को प्राप्त होता है। फलतः मन एकाग्र होता है। विचार पवित्र बनते हैं। ब्रह्मचर्य-पालन में यह आसन विशेष रूप से सहायक होता है।
4-इस आसन का नियमित अभ्यास से शरीर की समस्त नाड़ियों का शुद्धिकरण होता है और पुरे शरीर में तरोताजगी आ जाती है। इस आसन के अभ्यास से 72 हजार नाड़ियों की अशुद्धियों को दूर किया जा सकता है। 5-इस आसन का नियमित अभ्यास करने से दिमाग तेज होता है। इसलिए छात्र एवं छात्राओं के लिए यह एक उम्दा योगाभ्यास है।
6-अन्य लाभ;-
पाचनक्रिया नियमित होती है। श्वास के रोग, हृदय रोग, जीर्णज्वर, अजीर्ण, अतिसार, शुक्रदोष आदि दूर होते हैं। मंदाग्नि, मरोड़ा, संग्रहणी, वातविकार, क्षय, दमा, मधुप्रमेह, प्लीहा की वृद्धि आदि अनेक रोगों का प्रशमन होता है। पद्मासन के अभ्यास से जो रोग दूर होते हैं वे सिद्धासन के अभ्यास से भी दूर होते हैं।
सावधानी;-
05 POINTS ;-
1-गृहस्थ लोगों को इस आसन का अभ्यास लम्बे समय तक नहीं करना चाहिए। सिद्धासन को बलपूर्वक नहीं करनी चाहिए। 2-साइटिका, स्लिप डिस्क वाले व्यक्तियों को भी इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए। 3-घुटने में दर्द हो, जोड़ो का दर्द हो या कमर दर्द की शिकायत हो, उन्हें भी इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए। 4-गुदा रोगों जैसे बवासीर आदि से पीड़ित रोगी भी इसका अभ्यास न करें। 5-सिद्धासन को बलपूर्वक नहीं करनी चाहिए।यह आसन शांत एवं आराम भाव से करना चाहिए।
\...SHIVOHAM...