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नादानुसंधान/ अनहद नाद क्या हैं और इसको कैसे सुना जाये ?

  • Writer: Chida nanda
    Chida nanda
  • May 10, 2018
  • 16 min read

अनहद नाद क्या हैं ?- 07 FACTS;-

1-ओंकार ध्वनि से प्रस्फुटित होने वाला ब्रह्म इतना सशक्त और सर्वशक्तिमान् है कि वह सृष्टि के किसी भी कण को स्थिर नहीं होने देता। समुद्रों को मथ डालने से लेकर भयंकर आँधी तूफान और ज्वालामुखी पैदा करने तक-परस्पर विचार विनिमय की व्यवस्था ले लेकर ग्रह-नक्षत्रों के सूक्ष्म कम्पनों को पकड़ने तक एक सुविस्तृत विज्ञान किसी समय भारतवर्ष में प्रचलित था। नाद-ब्रह्म की उपासना के फलस्वरूप यहाँ के साधक इन्द्रियातीत क्षमताओं के अधिपति और स्वर्ग सम्पदा के अधिकारी देव मानव कहलाते रहे है। 2-नाद दो प्रकार के होते हैं- आहत नाद और अनहद नाद। ध्वनि जब दो चीजों के टकराने से पैदा होती है तब उसे आहत नाद कहते हैं। जैसे ताली बजाने से आवाज होती है, तबला बजाने से आवाज होगी। कोई भी चीज टकराएगी या घर्षण करेगी तो आवाज होगी। यहां नाद तो पैदा हो रहा है, लेकिन ये स्थूल है। इसे सुना जा सकता है। ये आहत नाद धरती पर ही नहीं, ब्रह्मांड में भी तारों के टकराने और उनकी गति से होने वाले घर्षण से होता रहता है। इसे हम विशेष यंत्रों से सुन सकते हैं। 3-एक और ऐसी ध्वनि होती है जो उत्पन्न नहीं की जाती, स्वतः गूंजती रहती है। इसे स्थूल कानों से नहीं सुना जा सकता। ये ध्वनि ब्रह्मांड में हर समय गूंजती रहती है। इसके अनुभव के लिए हमारे ऋषियों ने अनेक अनुसंधान किए। वे गुफाओं में बैठकर प्रयोग कर यह जानने की कोशिश करते रहे कि आखिर ये ध्वनि सुनने में कैसी लगती है। क्या हम इसे बोल सकते हैं? अपने भीतर यह अनुसंधान किया तब पाया कि भीतर भी वही ध्वनि गूंज रही है। उसे बोलने की कोशिश की गई तो पाया कि ''अ उ म ''को मिश्रित करके जब ॐ बोला जाता है तो काफी हद तक उस ब्रह्मांडीय गूंज जैसी ये आवाज होती है। 4- जब इस धवनि का उच्चारण लीन होकर किया जाता है, तब यह हमारी फ्रीक्वेंसी उस ब्रह्मांडीय ध्वनि से मिलने लगती है और व्यक्ति का मन शांत हो जाता है। इसीलिए ॐ का कुछ क्षण जाप करने से मन शांत हो जाता है। यह ध्वनि सबसे पवित्र मानी जाती है। यह परमात्मा का नाम है। ॐ भी ऐसा ही परमात्मा का नाम है जो जपने वाले को भी पवित्र कर देता है। यह नाद हम सुनना चाहें तो पहले हमें अपनी इंद्रियों, मन, प्राण, बुद्धि और चित्त को शांत कर भीतर के साथ जुड़कर बैठ जाना होता है। 5-जब तक संसार की आवाजें मन में चलती रहेंगी, इच्छाओं व वासनाओं का उपद्रव भीतर चलता रहेगा तब तक अनहद नाद का अनुभव नहीं हो सकता। योग शास्त्रों में इस साधना का नाम नादानुसंधान कहा गया है। इसमें व्यक्ति ध्यान द्वारा मन शांत करने का अभ्यास करता रहता है। जब भीतर सफाई हो जाती है, तब साधक को भीतर अनहद नाद सुनाई देने लगता है। उस समय उसे अपने भीतर अनेक आवाजें सुनाई देती हैं। जैसे चिड़िया के बच्चे की आवाज, शंख, बीन, ताल, बांसुरी, मृदंग, बादल गर्जन, भ्रमर, वीणा और घंटियों की आवाज। साधक इन ध्वनियों में अटकता नहीं क्योंकि ये चित्त की वृत्तियों का नाश करने वाली होती हैं।यह अनहद नाद मन को केंद्रित करने का सर्वोत्तम उपाय है। यह भीतरी संगीत है जो साधक का मन लय कर देता है। यह साधना व्यक्ति को जीते-जी मुक्त कर देती है। 6-अनहद नाद न ॐकार है, न मंत्र है, न बीज है, न अक्षर है, ये अंतरिक्ष में सदा से ही विधमान हैं जो बिना बजाये उत्पन्न होने वाला शब्द है।अनाहत ध्वनि को ‘सुरति’ तुरीयावस्था,समाधि आदि पूर्णता बोधक आस्थाओं के समतुल्य माना गया है और अनाहत ध्वनि ‘ऊँ’ कार की श्रवण अनुभूति ही है। ॐ कार ध्वनि का नादयोग में इसीलिए उच्च स्थान है।

7-शब्द ही परमात्मा...मुसलमान फ़कीर इसे अनहद कहते है अर्थात एक कभी न खत्म होने वाला कलाम(ध्वनि) जो फ़ना(नश्वर) होने वाली नहीं है।सदगुरूओं ने कहा है कि अनहद शब्द के अन्दर प्रकाश है और उससे ध्वनि उत्पन्न होती है यह ध्वनि नित्य होती रहती है प्रत्येक के अन्दर यह ध्वनि निरन्तर हो रही है अपने चित्त को नौ द्वारो से हटाकर दसवे द्वार पर लगाया जाय तो यह नाद सुनायी दोता है।अनहद नाद ही परमात्मा के मिलाप का साधन है इसके प्रकट होने पर आत्मा परमात्मा का रस प्राप्त करती है।इसके अभ्यास द्वारा पाप,

मैल व सब ताप दुर होते है तथा जन्म-जन्मांतरों के दुखों की निवृति होकर आनन्द और सुख की प्राप्ति होती है। यह अपूर्व आनन्द की स्थिति होती है तथा निज घर में वास मिलता है संतो की आत्मा पिण्ड़(शरीर) को छोड़कर शब्द में लीन हो जाती है।

अनहद नादयोग की महिमा;- 10 FACTS;- 1-नादयोग की महिमा बताते हुए कहा गया है कि उसके आधार पर दृष्टि की तथा चित्त की, स्थिरता अनायास ही हो जाती है। आत्म कल्याण का परम अवलम्बन यह नादब्रह्म ही है। जिससे बिना दृष्टि स्थिर हो जाती है,जिससे बिना प्रयत्न के प्राण वायु स्थिर हो जाती है। जिससे बिना अवलम्बन के चित्त का नियमन हो जाता है। वह अन्तरनाद रूपी ब्रह्म ही है। 2-ऊँचे स्वर से ओंकार का जप करने पर जो शेष तुर्यमात्रा रूप शब्द -तत्त्व की अनुभूति होती हैं, उसका अनुसन्धान से बाह्य चित्त वृत्तियों का जब बिलकुल उपराम हो जाता है तब प्राणवायु का निरोध हो जाता है। कुण्डलिनी जागरण साधना में नाद श्रवण मेंॐ कार की ध्वनि पकड़ने तक पहुँचना पड़ता है। अन्य शब्द तो मार्ग के मील पत्थर मात्र है। 3-महायोंग विज्ञान के मतानुसार.. ''नौ शब्द नादों की उपेक्षा करके ॐ कार नाद का आश्रय लेना चाहिए। समस्त नाद प्रणव में ही लीन होते हैं। ॐ कार की ध्वनि का नाद का आश्रय लेने वाला साधक सत्यलोक को प्राप्त करता है।शब्द ब्रह्म के-ऊँ कार के उत्थान की साधना में हृदय आकाश से ॐ कार ध्वनि का उद्भव करना होता है। जिव्हा से मुख ॐ कार उच्चारण का आरम्भिक अभ्यास किया जाता है। पीछे उस उद्भव में परा और पश्यन्ति वाणियाँ ही प्रयुक्त होती है और उस ध्वनि से हृदयाकाश को गुंजित किया जाता है'' 4-योग रसायनम् के अनुसार.. ''नाद के अभ्यास के दृढ़ होने पर आरम्भ में पूरे शरीर में हलचल सी मचती है। फिर शिर में कंपन होता है, पश्चात् सम्पूर्ण देह में कंपन होता है ।क्रमशः अभ्यास करते रहने पर ही अनाहत ध्वनि पहले मिश्रित तथा बाद में पृथक् स्पष्ट रूप से सुनाई पड़ती है। मन को वहीं नियोजित करना चाहिए। नाद श्रवण से सफलता मिलने लगे तो भी शब्द ब्रह्म की उपलब्धि नहीं माननी चाहिए। नाद ब्रह्म की उपलब्धि नहीं माननी चाहिए। नाद ब्रह्म तो भीतर से अनाहत रूप में उठता है और उसे ओंकार के सूक्ष्म उच्चारण अभ्यास द्वारा प्रयत्न पूर्वक उठाना पड़ता है-बाहरी शब्द वाद्य यन्त्रों आदि के रूप में सुने जाते हैं। पर ॐ कार का नाद प्रयत्नपूर्वक भीतर से उत्पन्न करना पड़ता है''। 5-शिव पुराण के उमा संहिता खण्ड के 26 वें अध्याय में अनाहत नाद सम्बन्धी विशेष विवरण और माहात्म्य मिलता है। भगवान् शिव पार्वती से कहते है-''अनाहत नाद कालजयी है। इसकी साधना करने वाला इच्छानुसार मृत्यु को जीत लेता है। उसकी सूक्ष्मता बढ़ जाती है और भव सागर के बन्धन कट जाते हैं। जागरूक योगी शब्द ब्रह्म की साधना करे। यह परम कल्याणकारी योग है।’' 6-तैतरीयोपनिषद् के तृतीय अनुवाद में ऋषि ने लिखा है-वाणी में शारीरिक और आत्म विषयक दोनों तरह की उन्नति करने की सामर्थ्य भरी हुई है, जो इस रहस्य को जानता है, वह वाक्-शक्ति पाकर उसके द्वारा अभीष्ट फल प्राप्त करने में समर्थ होता है। 7-अनाहत नाद की उपासना का प्रचलन विश्व-व्यापी है। पाश्चात्य विद्वानों तथा साधकों ने उसके वर्णन के लिए इन शब्दों का प्रयोग किया है-वर्ड लोगोस, विस्परर्स फ्राम द अननोन, इनर हृयस, द लेग्वेज आफ सोल, प्रिमार्डियल साउन्ड, द व्हायस फ्राम हैवन, द व्हायस आफ सोल आदि।बाइबिल में कहा गया है-''आरम्भ में शब्द था। शब्द ईश्वर के साथ था और शब्द ईश्वर था''। 8-गणितज्ञ-दार्शनिक पाइथागोरस ने इसे सृष्टि का संगीत (म्यूजिक आफ द स्फियर्स) कहा है। व्यष्टि (माइक्रोकाज्म) को समष्टि (मेक्रोकाज्म) से जोड़ने में नाद-साधना अतीव उपयोगी सिद्ध होती है। 9-स्वामी विवेकानन्द ने ॐ शब्द को समस्त नाम तथा रूपाकारों की एक जननी (मदर आफ नेम्स एण्ड फार्म्स) कहा है भारतीय मनीषियों ने इसे प्रणव ध्वनि, उद्गीथ, आदि नाम अनाहत, ब्रह्मनाद आदि अनेक नामों से पुकारा है। 10-गोरख पद्धति में ॐकार की ध्वनि पर ध्यान एकाग्र किया जाता है और उसे ईश्वर की स्व उच्चारित वाणी भी कहा जाता है। गोरख सम्प्रदाय के अतिरिक्त और भी कितने ही उसके भेद-उपभेद हैं जो नादयोग को प्रधानता देते और उसी आधार पर अपनी उपासनाएँ करते हैं। कबीर पन्थ, राधा स्वामी पन्थ आदि में नाद योग की साधना ही प्रधान है। अनहद नाद के प्रकार ;- 03 FACTS;- 1-परमात्मा के नाद रूप के साक्षात्कार के लिए किये गये ध्यान के सम्बन्ध में नाद बिंदूपनिषद् के 33 से 41 वें मन्त्रों में बड़ी सूक्ष्म अनुभूतियों का भी विवरण मिलता है। इन मन्त्रों में बताया गया है जब पहले पहल अभ्यास किया जाता है तो ‘नाद’ कई तरह का और बड़े जोर जोर से सुनाई देता है।

2-आरम्भ में इस नाद की ध्वनि नागरी, झरना, भेरी, मेघ और समुद्र की हरहराहट की तरह होती है, बाद में भ्रमर, वीणा, वंशी की तरह गुंजन पूर्ण और बड़ी मधुर होती है। ध्यान को धीरे धीरे बढ़ाया जाता है और उससे मानसिक ताप का शमन होना भी बताया गया है। 3-नादयोग के दस मंडल साधना ग्रन्थों में गिनाये गये है। कहीं-कहीं इन्हें लोक भी कहा गया है। एक ॐ कार ध्वनि और शेष नौ शब्द इन्हें मिलाकर दस शब्द बनते हैं। इन्हीं की श्रवण साधना शब्द ब्रह्म की नाद साधना कहलाती है। नादयोग के 'नौ' मंडल ;- 1-घोष नाद :- यह आत्मशुद्धि करता है, शरीर भाव को धीरे धीरे नष्ट कर के व मन को वशीभूत करके अपनी और खींचता है। 2-कांस्य नाद :- यह नाद जड़ भाव नष्ट कर के चेतन भाव की तरफ साधक को लेजाता हैं। 3-श्रृंग नाद :- यह नाद जब सुनाई देता हैं तब साधक की वासनाएं और इच्छाए नष्ट होने लगती हैं। 4-घंट नाद :- इसका उच्चारण साक्षात शिव करते हैं, यह साधक को वैराग्य भाव की तरफ ले जाती हैं। 5- वीणा नाद :- यहाँ इस नाद को जब साधक सुनता हैं तब मन के पार की झलक का पता चलता हैं । 6-वंशी नाद :- इसके ध्यान से सम्पूर्ण तत्व के ज्ञान का अनुभव होता हैं। 7-दुन्दुभी नाद :- इसके ध्यान से साधक जरा व मृत्यु के कष्ट से छूट जाता है। 8-शंख नाद :- इसके ध्यान व अभ्यास से स्वम् का निराकार भाव प्राप्त होता हैं। 9-मेघनाद :- जब ये सुनाई दे तब मन के पार की अवस्था का अनुभव होता हैं, जहा शून्यशुन्य भाव प्राप्त होता हैं। 10-इन सबको छोड़कर जो अन्य शब्द सुनाई देता है वह तुंकार कहलाता है, तुंकार का ध्यान करने से साक्षात् शिवत्व की प्राप्ति होती है। अनहद नाद(अनहद धुनी) का प्रभाव;- 03 FACTS;- 1-बिना बजाये अंदर घंटे, शंख, नगाड़े बजते सुनाई देते है जिसे कोई बहरा भी सुन सकता है। जब हम शून्य के पथ पर आगे बढ़ते है तो पहले झींगुर की आवाज़ की तरह की आवाज़ सुनाई पड़ती है तथा जब चिड़िया की आवाज़ की तरह की आवाज़ सुनाई देती है तब पूरा शरीर टूटने लगता है जैसे मलेरिया बुखार हुआ हो। 2-जब घंटे की आवाज़ सुनाई पड़ती है तो मन खिन्न हो जाता है ।जब शंख की आवाज़ सुनाई पड़ती है तब पूरा सिर भन्ना उठता है ।गहराई से जब वीणा की आवाज़ सुनाई देती है तब मन मस्त हो जाता है तथा अमृत प्राप्त होना प्रारम्भ हो जाता है ।जब बांसुरी की आवाज़ सुनाई पड़ने लगती है तब गुप्त रहस्य का ज्ञान हो जाता है तथा मन प्रभु के प्रेम में रम जाता है। 3-जब तबला की आवाज़ अंदर सुनाई देती है तब परावाणी की प्राप्ति हो जाती है ।जब भेरी की आवाज़ सुनाई पड़ती है तब भय समाप्त हो जाता है तथा दिव्य दृष्टि साधक को प्राप्त हो जाती है तथा मेघनाद सुनाई देने पर परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है। अनहद नाद का अभ्यास कैसे? 08 FACTS;- 1-108 प्रधान उपनिषदों में से नाद-बिंदु एक उपनिषद है, जिसमें बहुत से श्लोक इस नाद पर आधारित हैं। नाद क्या है, नाद कैसे चलता है, नाद के सुनने का क्या लाभ है, इन सब की चर्चा इसमें की गयी है। नाद को जब आप करते हो तो यह है इसकी पहली अवस्था। 2-दूसरी अवस्था है जहाँ नाद करोगे नहीं, सिर्फ़ अपने कानों को बंद किया और भीतर सूक्ष्म ध्वनि को सुनने की चेष्टा करना। यह सूक्ष्म ध्वनि आपके भीतर हो रही है। इसे अनाहत शब्द कहते हैं पर तुम्हारा मन इतना बहिर्मुख है, बाहरी स्थूल शब्दों को सुनने में तुम इतने व्यस्त हो कि तुम्हारे भीतर जो दैवी शब्द हो रहे हैं, तुम उनको सुन भी नहीं पा रहे। कहाँ से ये शब्द उत्पन्न हो रहे हैं, ये शब्द सुनाई भी पड़ रहे हैं या नहीं, तुम्हे कुछ नहीं पता। यह ध्वनि बहुत ही सूक्ष्म है। 3-अनाहत शब्द योगाभ्यास द्वारा सुनने और जानने में आते हैं। श्वांस-प्रश्वांस के समय ''सो'' एवं ''हम्'' की ध्वनियाँ होती रहती हैं। यह स्पष्ट रूप से कानों के द्वारा तो नहीं सुनी जाती पर, ध्यान एकाग्र करने पर उस ध्वनि का आभास होता है। अभ्यास करने से वह कल्पना प्रत्यक्ष अनुभव के रूप में समझ पड़ती है। इसके बाद कानों के छेद बन्द करके ध्यान की एकाग्रता के रहते, घण्टा, घड़ियाल, शंख, वंशी, झींगुर, बादल गरजन जैसे कई प्रकार के शब्द सुनाई देने लगते हैं। 4-आरम्भ में यह बहुत धीमे और कल्पना स्तर के ही होते हैं किन्तु पीछे एकाग्रता के अधिक घनीभूत होने से वे शब्द अधिक स्पष्ट सुनाई पड़ते हैं। इसे एकाग्रता की चरम परिणति भी कह सकते हैं और अंतरिक्ष में अनेकानेक घटनाओं की सूचना देने वाले सूक्ष्म संकेत भी। 5-आकाश में अदृश्य घटनाक्रमों के कम्पन चलते रहते हैं। जो हो चुका है या होने वाला है, उसका घटनाक्रम ध्वनि तरंगों के रूप में आकाश में गूँजता रहता है। नाद योग की एकाग्रता का सही अभ्यास होने पर आकाश में गूँजने वाली विभिन्न ध्वनियों के आधार पर भूतकाल में जो घटित हो चुका है या भविष्य में जो घटित होने वाला है उसका आभास भी प्राप्त किया जा सका है।यह एक असामान्य सिद्धि है। 6-हम जब ध्यान करने बैठते है तो बाहर कोई भी आवाज़(ध्वनि) हो वह हमें आकर्षित करती है जिससे हमारा चित्त उस ध्वनि की ओर आकर्षित होता है तथा ध्यान उचट जाता है। यदि हम अंदर की ध्वनि को सुनने में चित्त को लगायेंगे तो हमारा ध्यान लगेगा क्योंकि चित्त ध्वनि की ओर आकर्षित होता है।यदि हम अंदर की ध्वनि को सुनने में चित्त को लगायेंगे तो हमारा ध्यान लगेगा क्योंकि चित्त ध्वनि की ओर आकर्षित होता है।अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधी रखकर बैठ जाए।अंगुठे या तर्जनी अंगुली से कान बंद कर दे या कानों में रूई डाल दे तथा मन को बाहरी ध्वनि से हटाकर अन्दर की ध्वनि सुनने की कोशिश करे। 7-इसे दाहिने कान के अंदर सुनना है अर्थात चित्त को वहॉ लगाना है शुरू में आपको श्वास की आवाज़ सुनाई पड़ेगी आगे ओर गहराई में जाओंगे तो आपको अलग-अलग आवाज़े सुनाई पड़ेगी गहराई में जाते जाना है अन्त में मेघनाद सुनाई पड़ेगा तथा परमात्मा का दर्शन होगा। 8-नाद सुनने की प्रेक्टिस करने पर मन थकता नहीं है तथा आनन्द आता है। पंच तत्वो का अभ्यास ही नाद से सिद्ध हो जाता है। जब नाद सुनाई देने लगता है तब बिना कानों में अंगुली ड़ाले सहज ही उसे सुन सकते है। मन को हमेशा नाद सुनने में लगाये रखे.. यही सच्ची भक्ति है तथा मुक्ति का साधन है। अनाहत शब्द का अभ्यास (शिव पुराण);- 03 FACTS;- 1-भगवन शिव ने पार्वतीजी से कहा :- "एकांत स्थान पर सुखासन में बैठ जाएँ. मन में ईश्वर का स्मरण करते रहें. अब तेजी से सांस अन्दर खींचकर फिर तेजी से पूरी सांस बाहर छोड़कर रोक लें. श्वास इतनी जोर से बाहर छोड़ें कि इसकी आवाज पास बैठे व्यक्ति को भी सुनाई दे. इस प्रकार सांस बाहर छोड़ने से वह बहुत देर तक बाहर रुकी रहती है. उस समय श्वास रुकने से मन भी रुक जाता है और आँखों की पुतलियाँ भी रुक जाती हैं. साथ ही आज्ञा चक्र पर दबाव पड़ता है और वह खुल जाता है. श्वास व मन के रुकने से अपने आप ही ध्यान होने लगता है और आत्मा का प्रकाश दिखाई देने लगता है. यह विधि शीघ्र ही आज्ञा चक्र को जाग्रत कर देती है. 2-शिवजी ने पार्वतीजी से कहा :- रात्रि में एकांत में बैठ जाएँ. आँख बंद करें. हाथों की अँगुलियों से आँखों की पुतलियों को दबाएँ. इस प्रकार दबाने से तारे-सितारे दिखाई देंगे. कुछ देर दबाये रखें फिर धीरे-धीरे अँगुलियों का दबाव कम करते हुए छोड़ दें तो आपको सूर्य के सामान तेजस्वी गोला दिखाई देगा. इसे तैजस ब्रह्म कहते हैं. इसे देखते रहने का अभ्यास करें. कुछ समय के अभ्यास के बाद आप इसे खुली आँखों से भी आकाश में देख सकते हैं. इसके अभ्यास से समस्त विकार नष्ट होते हैं, मन शांत होता है और परमात्मा का बोध होता है. 3- शिवजी ने पार्वतीजी से कहा :- रात्रि में ध्वनिरहित, अंधकारयुक्त, एकांत स्थान पर बैठें. तर्जनी अंगुली से दोनों कानों को बंद करें. आँखें बंद रखें. कुछ ही समय के अभ्यास से अग्नि प्रेरित शब्द सुनाई देगा. इसे शब्द-ब्रह्म कहते हैं. यह शब्द या ध्वनि नौ प्रकार की होती है. इसको सुनने का अभ्यास करना शब्द-ब्रह्म का ध्यान करना है. इससे संध्या के बाद खाया हुआ अन्न क्षण भर में ही पाच जाता है और संपूर्ण रोगों तथा ज्वर आदि बहुत से उपद्रवों का शीघ्र ही नाश करता है. यह शब्द ब्रह्म न ॐकार है, न मंत्र है, न बीज है, न अक्षर है. यह अनाहत नाद है (अनाहत अर्थात बिना आघात के या बिना बजाये उत्पन्न होने वाला शब्द). इसका उच्चारण किये बिना ही चिंतन होता है. N0TE;- नाद-योग गहरी साधना है। नाद-योग की साधना वही कर पाएँगे जो लोग पहले भ्रामरी, ऊँकार के गुंजन से भी पहले ऊँ के उच्चारण का अभ्यास करें। फिर ऊँ का गुंजन हो। इसके साथ ही साथ योगनिद्रा चल रही हो तो धीरे-धीरे तीन से चार महीने में अथवा छह महीने में अगर आप इसे ईमानदारी से करते रहेंगे, तो छह महीने में आप नाद-योग की साधना सिद्ध कर सकेंगे। इसकी सिद्ध होते ही ईश्वरीय सिद्धियाँ स्वतः प्राप्त होने लगती हैं

अनहद नाद शुरुवात में सुनने का उपाय ;- 10 FACTS;- 1-नाद क्रिया के दो भाग है-बाह्य और अन्तर। बाह्य नाद में बाहर की दिव्य आवाजें सुनी जाती हैं और बाह्य जगत की हलचलों की जानकारियाँ प्राप्त की जाती हैं और ब्रह्माण्डीय शक्ति धाराओं को आकर्षित करके, अपने में धारण किया जाता है। अन्तः नाद में भीतर से शब्द उत्पन्न करके-भीतर ही भीतर परिपक्व करते और परिपुष्टि होने पर उसे किसी लक्ष्य विशेष पर किसी व्यक्ति के अथवा क्षेत्र के लिए फेंका जाता है और उससे अभीष्ट प्रयोजन की पूर्ति की जाती है। इसे धनुषबाण चलाने के समतुल्य समझा जा सकता है। 2-अन्तःनाद के लिए भी बैठता तो ब्रह्मनाद की तरह ही होता है, पर अन्तर ग्रहण एवं प्रेषण का होता है। सुखासन में मेरुदंड को सीधा रखते हुए षडमुखी मुद्रा में बैठने का विधान है। षडमुखी मुद्रा का अर्थ है-दोनों अँगूठों से दोनों कान के छेद बन्द करना। दोनों हाथों की तर्जनी और मध्यमा अंगुलियों से दोनों नथुनों पर दबाव डालना। नथुना पर इतना दबाव नहीं डाला जाता कि साँस का आवागमन ही रुक जाय। 3-''होठ बन्द, जीभ बन्द ..मात्र भीतर ही पराशन्ति वाणियों से ॐ कार का गुँजार प्रयास'' यही है अन्तःनाद उत्थान। इसमें कंठ से मन्द ध्वनि होती रहती है। अपने आपको उसका अनुभव होता है और अन्तः चेतना उसे सुनती है। ध्यान रहे यह ॐ कार का जप या उच्चारण नहीं गुँजार है। गुँजार का तात्पर्य है शंख जैसी ध्वनि, धारा एवं घड़ियाल जैसी थरथराहट का सम्मिश्रण। इसका स्वरूप लिखकर ठीक तरह नहीं समझा समझाया जा सकता। इसे अनुभवी साधकों से सुना और अनुकरण करके सीखा जा सकता है। 4-साधना आरम्भ करने के दिनों में, दस-दस सेकेण्ड के तीन गुँजार बीच-बीच में पाँच-पाँच सेकेण्ड रुकते हुए करने चाहिए। इस प्रकार 40 सेकेण्ड का एक शब्द उत्थान हो जाएगा ।इतना करके उच्चार बन्द और उसकी प्रतिध्वनि सुनने का प्रयत्न करना चाहिए। 5-जिस प्रकार गुम्बजों में, पक्के कुओं में, विशाल भवनों में, पहाड़ों की घाटियों में जोर से शब्द करने पर उसकी प्रतिध्वनि उत्पन्न होती है, उसी प्रकार अपने अंतःक्षेत्र में ॐ कार गुँजार के छोड़े हुए शब्द प्रवाह की प्रतिध्वनि उत्पन्न हुई अनुभव करनी चाहिए और पूरी ध्यान एकाग्र करके इस सूक्ष्म प्रतिध्वनि का आभास होता है। 6-आरम्भ में बहुत प्रयत्न से, बहुत थोड़ी-सी ,अतीव मन्द,रुक- रुककर सुनाई पड़ती है, किन्तु धीरे धीरे उसका उभार बढ़ता चलता है और ॐ कार की प्रतिध्वनि अपने ही अन्तराल में अधिक स्पष्ट एवं अधिक समय तक सुनाई पड़ने लगती है। स्पष्टता एवं देरी को इस साधना की सफलता का चिह्न माना जा सकता है। 7-ओंकार की उठती हुई प्रतिध्वनि अंतःक्षेत्र के प्रत्येक विभाग को-क्षेत्र को - प्रखर बनाती है। उन संस्थानों की प्रसुप्त शक्ति जगाती है। उससे आत्मबल बढ़ता है। और छिपी हुई दिव्य शक्तियाँ प्रकट एवं परिपुष्ट होती है।समयानुसार इसका उपयोग शब्दबेधी बाण की तरह-प्रक्षेपास्त्र की तरह हो सकता है। 8-भौतिक एवं आत्मिक हित-साधन के लिए इस शक्ति को समीपवर्ती अथवा दूरवर्ती व्यक्तियों तक भेजा जा सकता है और उनको कष्टों से उबारने तथा प्रगति पथ पर अग्रसर करने के लिए किया जा सकता है। वरदान देने की क्षमता-परिस्थितियों में परिवर्तन कर सकने जितनी समर्थता जिस शब्द ब्रह्म के माध्यम से सम्भव होती है उसे ॐ कार गुँजार के आधार पर भी उत्पन्न एवं परिपुष्ट किया जाता है। 9-पुरानी परिपाटी में षडमुखी मुद्रा का उल्लेख है। मध्यकाल में उसकी आवश्यकता नहीं समझी गई और कान को कपड़े में बँधे मोम की पोटली से कर्ण छिद्रों का बन्द कर लेना पर्याप्त समझा गया । इससे दोनों हाथों को गोदी में रखने और नेत्र अर्धोन्मीलित रखने की ध्यान मुद्रा ठीक तरह सधती और सुविधा रहती थी। अब अनेक आधुनिक अनुभवी शवासन शिथिलीकरण मुद्रा में अधिक अच्छी तरह ध्यान लगने का लाभ देखते हैं।

10-आराम कुर्सी का सहारा लेकर शरीर को ढीला छोड़ते हुए नादानुसन्धान में अधिक सुविधा अनुभव करते हैं। कान बन्द करने के लिए ठीक नाप के शीशियों वाले कार्क का प्रयोग कर लिया जाता है। इनमें से किससे, किसे, कितनी सरलता एवं सफलता मिली यह तुलनात्मक अभ्यास करके जाना जा सकता है। इनमें से जिसे जो प्रयोग अनुकूल पड़े वह उसे अपना सकता है। सभी उपयोगी एवं फलदायक है। 11-अनहद शब्द अथवा कलमा हमारे भीतर गूंज रहा है। और उसे सुनने के लिए हमें अपने मन को शांत करना होगा। हमारा मन ही हमें प्रभु से दूर रखे हुए है। यही हमें संसार में उलझाता है। इसलिए हमें कोई ऐसी विधि सीखनी होगी जिससे हम अपने मन को शांत कर सकें और फिर अपने भीतर विद्यमान दिव्य शक्ति से संपर्क कर सकें।

अनहद नाद को कैसे सुने ?

06 FACTS;-

1-नाद को किसी भी अवस्था में अर्थात कुर्सी पर बैठकर, चलते-फिरते,पालथीमार कर-बैठकर तथा सोते-सोते किसी भी स्थति में बैठकर इसे सुना जा सकता है परन्तु कुर्सी पर बैठकर ,पालथीमार कर- बैठ कर या किसी भी आसन में बैठकर जिसमें रीढ़ की हड्डी सीधी रहे सुनना अच्छा होता है।

2-सोते-सोते भी नाद का अभ्यास किया जा सकता है परन्तु धीरे-धीरे सोकर अभ्यास करने से व्यक्ति आलसी हो जाता है उसमें तमोगुण बढ़ जाता है तथा कब नींद हावी हो जाती है पता हीं नहीं चलता। व्यक्ति समझता है कि वह नाद सुनने की प्रेक्टिस कर रहा है तथा वह नींद के आगोश में समा जाता है जिससे जल्दी सफलता नहीं मिलती अतः किसी भी आसन में बैठे अपनी रीढ़ की हड्डी अर्थात मेरूदण्ड़ को सीधा रखकर अभ्यास करने से तमोगुण आप पर हावी नहीं हो सकता तथा आप एक्टिव रहते है।

3-कई-कई शास्त्रों में लिखा है कि नाद बांये कर्णमुल से सुनाई पड़े तो अच्छा नहीं रहता तथा व्यक्ति को मृत्युप्राप्त हो सकती है परन्तु सत्य यह है कि चाहे बांये कान से या दायें कान से ,नाद किसी भी कान से सुनाई पड़े

तो कोई नुकसान नहीं होता ।क्योंकि नाद तो अंदर से पैदा होता है तथा कान से हम नहीं सुनते क्योंकि बाहर की ध्वनि को सुनने के लिए कान है जबकि नाद कर्ण मुल से सुनाई देता है अतः नाद दाये सुनाई पड़े या बाये आपको घबराना नहीं है नाद तो परमात्मा की आवाज है ।

4-प्रारम्भ में कोशिश करे किसी एकांत जगह पर बैठे जहाँ शोर कम हो यदि बाहरी शोर आपको डिस्टर्ब कर रहा हो तो आप कान में रूई लगा सकते है या अपनी तर्जनी अंगुली को दोनो कानों पर लगा सकते है या अंगुठे से अपने कानो को बंद कर सकते है।यह प्रारम्भिक अभ्यास के लिए

है ;जब आपको नाद सुनाई देना प्रारम्भ हो जायेगा तो मन को कांनों की ओर लगाते ही नाद सुनाई देने लग जायेगा।

5-आप घूमते-फिरते हर समय नाद को सुन सकेंगे परन्तु सुक्ष्म स सुक्ष्मतर ध्वनि को सुनने के लिए अर्थात परमात्मा का अनुभव करने के लिए तथा समाधी का अनुभव करने के लिए बैठकर अभ्यास अच्छा रहता

है।चलते –फिरते नाद तो सुनाई पड़ता है उससे तनाव मुक्ति या छोटे-मोटे लाभ आप प्राप्त कर सकते है परन्तु समाधी के अनुभव के लिए तथा स्वयं को पहचानने के लिए बैठकर अभ्यास करने से शरीर की सारी बीमारीयाँ दूर हो जाती है।

6-नाद सुनने का अभ्यास कोई भी कर सकता है चाहे वह बच्चा हो, जवान हो या बूढ़ा। किसी-किसी को तो नाद सुनने का अभ्यास करते ही नाद सुनाई देने लग जाता है जबकि किसी को थोड़े दिनों के अभ्यास की

आवश्यकता होती है।ब्रह्माण्ड़ से जुड़ने के लिए नाद अभ्यास बड़ा अच्छा है । कोई भी व्यक्ति जो किसी भी जाति या धर्म का हो इस अभ्यास को कर सकता है।

....SHIVOHAM....


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