क्या दीपावली पर्व लौकिकता के साथ-साथ आध्यात्मिकता का भी अनूठा पर्व है?क्या यह आत्म साक्षात्कार का पर
दीपावली का रहस्य;- 09 FACTS;- 1-दीपावली का पर्व ज्योति का पर्व है। दीपावली का पर्व पुरुषार्थ का पर्व है। यह आत्म-साक्षात्कार का पर्व है। यहअपने भीतर सुषुप्त चेतना को जगाने का अनुपम पर्व है। यह हमारे आभामंडल को विशुद्ध और पर्यावरण की स्वच्छता के प्रति जागरूकता का संदेश देने का पर्व है।जिन ऐतिहासिक महापुरुषों के घटना प्रसंगों से इस पर्व की महत्ता जुड़ी है, वे अध्यात्म जगत के शिखर-पुरुष थे। इस दृष्टि से दीपावली पर्व लौकिकता के साथ-साथ आध्यात्मिकता का भी अनूठा पर्व है। 2-भगवान महावीर ने दीपावली की रात जो उपदेश दिया उसे हम 'प्रकाश पर्व' का श्रेष्ठ संदेश मान सकते हैं। भगवान महावीर की यह शिक्षा मानव मात्र के आंतरिक जगत को आलोकित करने वाली है। तथागत बुद्ध की अमृतवाणी 'अप्प दीवो भव' अर्थात 'आत्मा के लिए दीपक बन' वह भी इसी भावना को पुष्ट कर रही है। इतिहासकार कहते हैं कि जिस दिन ज्ञान की ज्योति लेकर नचिकेता यमलोक से मृत्युलोक में अवतरित हुए वह दिन भी दीपावली का ही दिन था। 3-यद्यपि लोक मानस में दीपावली एक सांस्कृतिक पर्व के रूप में अपनी व्यापकता सिद्ध कर चुका है। फिर भी यह तो मानना ही होगा कि यह बात सच है कि मनुष्य का रुझान हमेशा प्रकाश की ओर रहा है।अंधकार को उसने कभी न चाहा, न कभी मांगा। 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' भक्त की अंतर भावना अथवा प्रार्थना का यह स्वर भी इसका पुष्ट प्रमाण है। 'अंधकार से प्रकाश की ओर ले चल...' इस प्रशस्त कामना की पूर्णता हेतु मनुष्य ने खोज शुरू की। उसने सोचा कि वह कौन-सा दीप है, जो मंजिल तक जाने वाले पथ को आलोकित कर सकता है। अंधकार से घिरा हुआ आदमी दिशाहीन होकर चाहे जितनी गति करे, सार्थक नहीं हुआ करती। 4-आचरण से पहले ज्ञान को, चारित्र पालन से पूर्व सम्यक्त्व को आवश्यक माना है। ज्ञान जीवन में प्रकाश करने वाला होता है। शास्त्र में भी कहा गया- 'नाणं पयासयरं' अर्थात ज्ञान प्रकाशकर है। हमारे भीतर अज्ञान का तमस छाया हुआ है। वह ज्ञान के प्रकाश से ही मिट सकता है। ज्ञान दुनिया का सबसे बड़ा प्रकाश दीप है। जब ज्ञान का दीप जलता है तब भीतर और बाहर दोनों आलोकित हो जाते हैं। अंधकार का साम्राज्य स्वत: समाप्त हो जाता है। ज्ञान के प्रकाश की आवश्यकता केवल भीतर के अंधकार मोह-मूर्छा को मिटाने के लिए ही नहीं, अपितु लोभ और आसक्ति के परिणामस्वरूप खड़ी हुई बाहरी समस्याओं को सुलझाने के लिए भी जरूरी है। 5-मोह का अंधकार भगाने के लिए धर्म का दीप जलाना होगा। जहां धर्म का सूर्य उदित हो गया, वहां का अंधकार टिक नहीं सकता। एक बार अंधकार ने ब्रह्माजी से शिकायत की कि सूरज मेरा पीछा करता है। वह मुझे मिटा देना चाहता है। ब्रह्माजी ने इस बारे में सूरज को बोला तो सूरज ने कहा- मैं अंधकार को जानता तक नहीं, मिटाने की बात तो दूर। आप पहले उसे मेरे सामने उपस्थित करें। मैं उसकी शक्ल-सूरत देखना चाहता हूं। ब्रह्माजी ने उसे सूरज के सामने आने के लिए कहा तो अंधकार बोला- मैं उसके पास कैसे आ सकता हूं? अगर आ गया तो मेरा अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। हालांकि दीपावली एक लौकिक पर्व है। फिर भी यह केवल बाहरी अंधकार को ही नहीं, बल्कि भीतरी अंधकार को मिटाने का पर्व भी बने। हम भीतर में धर्म का दीप जलाकर मोह और मूर्छा के अंधकार को दूर कर सकते हैं। 6-अंधकार जीवन की समस्या है और प्रकाश उसका समाधान। जीवन जीने के लिए सहज प्रकाश चाहिए। प्रारंभ से ही मनुष्य की खोज प्रकाश को पाने की रही। अंधकार हमारे अज्ञान का, दुराचरण का, दुष्ट प्रवृत्तियों का, आलस्य और प्रमाद का, बैर और विनाश का, क्रोध और कुंठा का, राग और द्वेष का, हिंसा और कदाग्रह का अर्थात अंधकार हमारी राक्षसी मनोवृत्ति का प्रतीक है। जब मनुष्य के भीतर असद् प्रवृत्ति का जन्म होता है, तब चारों ओर वातावरण में कालिमा व्याप्त हो जाती है। अंधकार ही अंधकार नजर आने लगता है। मनुष्य हाहाकार करने लगता है। मानवता चीत्कार उठती है। 7-प्रकाश हमारी सद्प्रवृत्तियों का, सद्ज्ञान का, संवेदना एवं करुणा का, प्रेम एवं भाईचारे का, त्याग एवं सहिष्णुता का, सुख और शांति का, ऋद्धि और समृद्धि का, शुभ और लाभ का, श्री और सिद्धि का अर्थात दैवीय गुणों का प्रतीक है। यही प्रकाश मनुष्य की अंतरचेतना से जब जागृत होता है, तभी इस धरती पर सतयुग का अवतरण होने लगता है। 8-प्रत्येक व्यक्ति के अंदर एक अखंड ज्योति जल रही है। उसकी लौ कभी-कभार मद्धिम जरूर हो जाती है, लेकिन बुझती नहीं है। उसका प्रकाश शाश्वत प्रकाश है। वह स्वयं में बहुत अधिक दैदीप्यमान एवं प्रभामय है। इसी संदर्भ में महात्मा कबीरदासजी ने कहा था- 'बाहर से तो कुछ न दीसे, भीतर जल रही जोत'। 9-दीपावली पर्व की सार्थकता के लिए जरूरी है कि दीये बाहर के ही नहीं, दीये भीतर के भी जलने चाहिए, क्योंकि दीया कहीं भी जले, उजाला देता है। दीये का संदेश है- हम जीवन से कभी पलायन न करें, जीवन को परिवर्तन दें, क्योंकि पलायन में मनुष्य के दामन पर बुजदिली का धब्बा लगता है, जबकि परिवर्तन में विकास की संभावनाएं जीवन की सार्थक दिशाएं खोज लेती हैं। असल में दीया उन लोगों के लिए भी चुनौती है, जो अकर्मण्य, आलसी, निठल्ले, दिशाहीन और चरित्रहीन बनकर सफलता की ऊंचाइयों के सपने देखते हैं जबकि दीया दुर्बलताओं को मिटाकर नई जीवनशैली की शुरुआत का संकल्प है दीपावली का आध्यात्मिक साधना में महत्व;- 05 FACTS;- 1-सूर्य की परिक्रमा करते हुए पृथ्वी कुछ ख़ास पड़ावों से गुजरती है, जिससे साल में दो संक्रांतियां और सम्पात आते हैं। संक्रांति वो समय होता है, जब पृथ्वी के आकाश में सूर्य की गति दक्षिण से उत्तर की ओर, या फिर उत्तर से दक्षिण की ओर हो जाती है। जबकि सम्पात तब होता है, जब दिन और रात बराबर होते हैं। 2-संक्रांतियों और सम्पातों के बीच में पड़ने वाली साल की चार तिमाहियों में से यह चौथी तिमाही है। सौर-चंद्र कैलेंडर के हिसाब से यह साल का तीसरा पड़ाव है। सम्पात के बाद दीपावली पहली अमावस्या होती है। 3-दो संक्रांतियों के बीच, दक्षिणी संक्रांति या फिर दक्षिणायन को साल के आधे हिस्से के रूप में देखा जाता है, जो साधना के लिए उपयुक्त माना जाता है और उत्तरी भाग या उत्तरायण, जो दिसंबर से जून तक होता है – को फल प्राप्ति के समय के रूप में देखा जाता है, जब साधक अपनी साधना के फलीभूत होने की प्रतीक्षा करता है। ये नियम उत्तरी गोलार्ध में मानव शरीर के बर्ताव को देखकर निर्धारित किये गए थे।अगर आप बारह महीनों में ज्ञान प्राप्त करने का इरादा रखते हैं, तो यह अंधकारमय चरण है। इसी वजह से, लोगों ने इसे रोशन करने का फैसला किया। इसीलिए, इसे रोशनी का त्यौहार कहा जाता है। 4-इस दिन का आध्यात्मिक महत्व यह है, कि इस दिन से शुरू होने वाले अगले चरण को सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा माना जाता है। इसलिए हर जगह रोशनी की जाती है, क्योंकि यह सबसे अंधकारमय समय होता है। इस दिन देवी काली या चामुंडी या भैरवी, आप उन्हें जो भी नाम दें, इस स्त्रैण ऊर्जा ने एक दानव राज का संहार किया था। 5-इसका मतलब यह है कि जब अंधेरा आता है, तो स्त्री प्रकृति तुरंत निराशा और अवसाद में घिर जाती है। वह चाहती है कि उसके आस-पास की हर चीज रोशन हो, वरना वह निराशा में चली जाती है। तो देवी मां ने जाकर काले दानव को मार डाला और वह जगह रोशनी से जगमगा उठी। इसलिए लोग प्रतीकात्मक रूप में इस रात को रोशनी जलाते हैं, जो इस महीने और साल की सबसे अंधेरी रात होती है। उत्तरी गोलार्ध में यह रात साल की सबसे अंधेरी रात होती है, इस रात को सबसे ज्यादा अंधकार होता है। दिवाली का महत्व ;- 07 FACTS;- 1-जीवन में ज्ञान के प्रकाश का स्मरण कराने के लिए ही “दिवाली” मनाई जाती है।जलते हुये दीये अच्छाई की बुराई के ऊपर विजय का प्रतीक है।घर की प्रत्येक जगह से अन्धकार को हटाकर घर में देवी लक्ष्मी का स्वागत करने की रस्म है। सभी जगह जलता हुआ प्रकाश अन्धकार को हटाने के प्रतीक के साथ अपनी आत्मा से बुराई को हटाने का भी प्रतीक है। लोग पूजा करके और दीये जलाकर धन और समृद्धि का आशीर्वाद लेते है।“दिवाली” का अर्थ है वर्तमान क्षण में रहना, अतः भूतकाल के पश्चाताप और भविष्य की चिंताओं को छोड़ कर इस वर्तमान क्षण में रहें। यही समय है कि हम साल भर की आपसी कलह और नकारात्मकताओं को भूल जाएँ। यही समय है कि जो ज्ञान हमने प्राप्त किया है उस पर प्रकाश डाला जाए और एक नई शुरुआत की जाए। जब सच्चे ज्ञान का उदय होता है, तो उत्सव को और भी बल मिलता है। 2-तेल के दीपक को प्रज्ज्वलित करने के लिए बत्ती को तेल में डुबाना पड़ता है, परन्तु यदि बत्ती पूरी तरह से तेल में डूबी रहे तो यह जल कर प्रकाश नहीं दे पाएगी, इसलिए उसे थोड़ा सा बाहर निकाल के रखते हैं। हमारा जीवन भी दीपक के इसी बत्ती के सामान है, हमें भी इस संसार में रहना है फिर भी इससे अछूता रहना पड़ेगा। यदि हम संसार की भौतिकता में ही डूबे रहेंगे तो हम अपने जीवन में सच्चा आनंद और ज्ञान नहीं ला पाएंगे। संसार में रहते हुए भी, इसके सांसारिक पक्षों में न डूबने से हम, आनंद एवं ज्ञान के द्योतक बन सकते हैं। 3-“दिवाली” को दीपावली भी कहा जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘प्रकाश की पंक्तियाँ’। जीवन में अनेक पक्ष एवं पहलू आते हैं और जीवन को पूरी तरह से अभिव्यक्त करने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम उन सब पर प्रकाश डालें। प्रकाश कि ये पंक्तियाँ हमें याद दिलाती हैं कि जीवन के हर पहलू पर ध्यान देने और ज्ञान का प्रकाश डालने की जरूरत है। 4-प्रत्येक मनुष्य में कुछ अच्छे गुण होते हैं और हमारे द्वारा प्रज्ज्वलित हर दीपक, इसी बात का प्रतीक है। कुछ लोगों में सहिष्णुता होती है, कुछ में प्रेम, शक्ति, उदारता आदि गुण होते हैं जबकि कुछ लोगों में, लोगों को जोड़ के रखने का गुण होता है। हमारे भीतर के ये छिपे हुए गुण, एक दीपक के समान है।अज्ञानता के अन्धकार को दूर करने के लिए हमें अनेक दीपक जलाने की आवश्यकता है।ज्ञान के दीपक को जला कर एवं ज्ञान अर्जित कर के हम अपने अस्तित्व के सभी पहलुओं को जागृत कर देते हैं। जब ये प्रकाशित एवं जागृत हो जाते हैं, तब ही “दिवाली” है। 5-सोना चांदी केवल एक बाहिरी प्रतीक है। दौलत हमारे भीतर है। भीतर में बहुत सारा प्रेम, शांति और आनंद है। इससे ज़्यादा दौलत आपको और क्या चाहिए? बुद्धिमत्ता ही वास्तविक धन है। आप का चरित्र, आपकी शांति और आत्म विश्वास आपकी वास्तविक दौलत है। जब आप ईश्वर के साथ जुड़ कर आगे बढ़ते हो तो इससे बड़कर कोई और दौलत नहीं है। यह विचार तभी आता है जब आप ईश्वर और अनंतता के साथ जुड़ जाते हो। जब लहर यह याद रखती है कि वह समुद्र के साथ जुड़ी हुई है और समुद्र का हिस्सा है तो विशाल शक्ति मिलती है। 6-“दिवाली” में पटाखे जलाने का भी एक गूढ़ अर्थ है।जीवन में अक्सर अनेक बार हम भावनाओं, निराशा एवं क्रोघ से भरे पड़े होते हैं, पटाखों की तरह फटने को तैयार। जब हम अपनी भावनाओं, लालसाओं/ऐषणाओं, विद्वेष को दबाते रहते हैं तब ये एक विष्फोट बिंदु तक पहुच जाते हैं। पटाखों को जलाना /विस्फोट करना, दमित भावनाओं को मुक्त करने के लिए हमारे पूर्वजों द्वारा बनाया गया एक मनोवैज्ञानिक अभ्यास है। जब हम बाहरी दुनिया में एक विस्फोट देखते हैं तो अपने भीतर भी एक इसी प्रकार की, समान संवेदना महसूस करते हैं। विस्फोट के साथ ही बहुत सा प्रकाश फ़ैल जाता है। जब हम अपनी इन भावनाओं से मुक्त होते हैं तो गहन शांति का उदय होता है। 7-दिवाली के त्यौहार पर दीयें जलाना और पटाखें जलाना बुद्धि, स्वास्थ्य, धन, शान्ति और समृद्धि प्राप्ति के साथ साथ बुराई को भी अपने घर और जीवन से नष्ट करने का अपना महत्व है। यह पृथ्वी पर रहने वाले लोगों के वास्तविक आनन्द और खुशी को दर्शाता है। पटाखों से उत्पन्न धुआँ बारिश के मौसम में पैदा हुये हानिकारक कीङे मकोङे और मच्छरों को मारता है। दिवाली के त्यौहार के महत्व की विविधता ;- 10 FACTS;- 1-दिवाली भारत का बहुत महत्व का त्यौहार है क्योंकि केवल भारत में ही इस त्यौहार से बहुत सारी हिन्दू भगवान की कहानियॉ और किवदंतियॉ जुङी हुई है। दिवाली त्यौहार की सभी किवदंतियॉ जैसे: भगवान राम और सीता की कहानी, महावीर स्वामी की कहानी, स्वामी दयानन्द की कहानी, राक्षस नरकासुर की कहानी, भगवान कृष्ण की कहानी, पांडवों की कहानी, गणेश और देवी लक्ष्मी की कहानी, भगवान विष्णु की कहानी, विक्रमादित्य की कहानी, सिख गुरु हरगोविंद की कहानी आदि और बहुत सी कहानियॉ है जो केवल भारत से ही जुङी हुई है। इसी लिये भारत में दिवाली का महत्व मनाया जाता है। 2-दिवाली रावण को हराने के बाद निर्वासन के 14 साल के बाद भगवान राम के अपने राज्य अयोध्या घर वापसी का स्वागत करने के लिए लोगों द्वारा मनाया जाता है। लोगो ने कतारों में बहुत से घी के दीयों को जलाकर भगवान राम का स्वागत किया। 3-यह जैन धर्म में 527 ई0पू0 महावीर स्वामी के मोक्ष या निर्वाण प्राप्ति के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, और आर्य समाजवादियों द्वारा महावीर स्वामी की मृत्यु की वर्षगांठ या शरदीया नव-शयष्टी के रुप में मनाया जाता है। 4-यह पांडवो के 12 वर्ष के निष्कासन के साथ साथ 1 वर्ष के अज्ञातवास (अर्थात् छुप कर रहना) से वापस घर आने के उपलक्ष्य में भी मनाया जाता है। 5-हिन्दू कलैण्डर के अनुसार दिवाली (अश्विन महीने के कृष्ण पक्ष का अन्तिम दिन) पर मारवाङी अपना नया साल मनाते है। 6-गुजराती भी चन्द्र कलैण्डर (कार्तिक महीने में शुक्ल पक्ष के पहले दिन) के अनुसार दिवाली से एक दिन बाद अपना नया साल मनाते है। 7-जैनियों के लिए दीवाली का महत्व;- 03 POINTS;- 1-जैनियों द्वारा भी दीवाली अपनी संस्कृति, परंपरा और महत्व के अनुसार मनायी जाती है। यह माना जाता है कि, दीपावली के दिन, भगवान महावीर (युग के अंतिम जैन तीर्थंकर) ने 15 अक्टूबर 527 ईसा पूर्व को पावापुरी में कार्तिक के महीने(अमावस्या की सुबह के दौरान) की चतुर्दशी पर निर्वाण प्राप्त किया था। कल्पसूत्र (आचार्य भद्रबाहु द्बारा रचित) के अनुसार, ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में वहॉ अंधेरे को प्रकाशित करने के लिये बहुत सारे देवता थे। यही कारण है कि दीवाली जैन धर्म में महावीर के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। 2-वे दिवाली के चौथे दिन या दिवाली प्रतिप्रदा को नये वर्ष शुरु होने के रुप में मनाते है। वे दिवाली से अपने व्यवसायों नये वित्तीय वर्ष की शुरुआत करते है। वे सामन्यतः ध्वनि प्रदूषण के कारण पटाखें जलाने से बचते है। वे रोशनी और दीये के साथ मंदिरों, कार्यालयों, घरों, दुकानों को सजाते है जो ज्ञान को फैलाने और अज्ञान को हटाने का प्रतीक है। वे मंदिरों में मंत्रोच्चार और अन्य धार्मिक गीतों का जाप करते है। जैन धर्म में भगवान से प्रार्थना करने के लिये दीवाली पर पावा-पुरी की यात्रा करने की एक रस्म है। 3-व्यवसायी धन की पूजा के साथ ही लेखा बहियों की पूजा करके धनतेरस मनाते हैं। काली चौदस पर विशेषतः महिलाओं द्वारा दो दिन का उपवास रखना पसन्द किया जाता है। अमावस्या के दिन वे भगवान की पूजा और उनके दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलने के लिए के डेरासर जाते है। वे “महावीरस्वामी प्रज्ञाते नमः” का जाप करते है। उनके लिये दिवाली का अर्थ है नया साल, वे एक दूसरे से मिलते है और शुभकामनाऍ देतें हैं। नए साल के दूसरे दिन वे भाऊबीज अर्थात् महावीर स्वामी की मूर्ति की शोभायात्रा निकालते है। वे पटाखें नहीं फोङते, बहुत अधिक क्रोध करने को टालते है इसके स्थान पर वे दान करते है, उपवास रखते है, मंत्र पढते है और मन्दिर सजाते है। 8-सिखों के लिए दीवाली का महत्व;- 02 POINTS;- 1-सिखों के लिए दीवाली का त्योहार मनाने के अपने स्वयं के महत्व है। वे उनके गुरु हर गोबिंद जी के और कई हिंदू गुरुओं के साथ सम्राट जहाँगीर की जेल से घर वापसी के उपलक्ष्य में यह जश्न मनाते है। जेल से मुक्त होने के बाद हर गोबिंद जी अमृतसर के स्वर्ण मंदिर गये। लोगों ने बहुत उत्साह और साहस के साथ पूरे शहर को सजाकर और दीयें जलाकर अपने गुरु की आजादी का जश्न मनाया। उस दिन से गुरु हरगोबिंद जी बंदी-छोर अर्थात् मुक्तिदाता के रूप में जाने जाना शुरू हो गये। 2-सिखों के दीवाली मनाने का एक और महत्व साल 1737 में भाई मणि सिंह जी की शहादत है, जो बड़े सिख विद्वान और रणनीतिकार थे। दीपावली के दिन पर उन्होंने खालसा के आध्यात्मिक बैठक में कर का भुगतान करने से इनकार कर दिया जो मुगल सम्राट द्वारा उन लोगों के ऊपर लगाया गया था, जो मुसलमान नहीं थे। यही कारण है कि वे भी भाई मणि सिंह जी की शहादत याद करने बंदी छोर दिवस के रूप में दीवाली मनाते है। 9-बौद्ध धर्म में दीवाली का महत्व;- यह माना जाता है कि इस दिन पर सम्राट अशोक ने अपना धर्म बौद्ध धर्म में परिवर्तित किया इसके कारण बौद्ध समुदाय द्वारा दीवाली मनायी जाती है। यही कारण है कि वे अशोक विजयादशमी के रूप में दीवाली मनाते है। वे मंत्र जाप के साथ ही सम्राट अशोक को याद करके इसे मनाते हैं। 10-दीवाली पड़वा का महत्व;- 03 POINTS;- 1-दिवाली का चौथा दिन वर्शप्रतिपदा और प्रतिपदा के नाम से जाना जाता है जिसके मनाने का अपना महत्व है। यह हिन्दू कलैण्डर के अनुसार कार्तिक महीने में पहले दिन पडता है। वर्शप्रतिपदा और प्रतिपदा का महत्व पडवा के दिन राजा विक्रमादित्य के राज अभिषेक के साथ विक्रम संवत् के प्रराम्भ से सम्बन्धित है। इसी दिन व्यवसायी अपने नये वित्तीय खाते शुरु करते है। 2-एक अन्य हिन्दू परम्परा के अनुसार यह माना जाता है पत्नियॉ अपने पति के माथे पर लाल रंग का तिलक लगाकर, गले में माला पहनाकर, आरती करके उनकी लम्बी उम्र की प्रार्थना करती है। बदले में पत्नियॉ अपने पति से उपहार प्राप्त करती है। यह गुडी पडवा के नाम से भी जाना जाता है जो पति पत्नी के बीच प्रेम, स्नेह और समर्पण का प्रतीक है। 3-पडवा के दिन राजा बलि भगवान विष्णु के द्वारा हराया गया था, इसीलिये इसे बलि पद्दमी के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन भगवान की राक्षस के ऊपर विजय की याद में भी मनाया जाता है। दिवाली का पॉच दिनों का समारोह ;- 05 FACTS;- 1-दीवाली पांच दिनों का त्यौहार है; प्रत्येक दिन के उत्सव का धर्मों और रीतियों के अनुसार अलग-अलग महत्व है। हिंदू धर्म में, दीवाली के दिनों को तदनुसार मनाया जाता है: दिवाली का पहला दिन धनतेरस, देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा करके मनाया जाता है। लोग नयी वस्तुऍ खरीदते है और घर लाते है जिसका अर्थ है कि लक्ष्मी घर आयी है। धनतेरस भगवान धनवंतरी (देवताओं के चिकित्सक के रूप में भी जाना जाता है) की जयंती या जन्मदिन की सालगिरह याद करने के लिए मनाया जाता है । यह माना जाता है कि उनकी उत्पत्ति सागर मंथन के दौरान हुयी थी। 2-दिवाली का दूसरा दिन राक्षस नरकासुर पर भगवान कृष्ण की जीत के उपलक्ष्य में नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सुबह तेल स्नान करके नये कपडे पहनने का रिवाज है। तब भगवान कृष्ण या विष्णु के लिए प्रकाश व्यवस्था और पूजा समारोह आयोजित किया जाता है। 3-दिवाली का तीसरा दिन समृद्धि और ज्ञान का आशीर्वाद पाने के लिए देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा करके मनाया जाता है। जलते हुये दीयों का महत्व अंधकार को दूर करके और घर में देवी का स्वागत करने के लिए है। 4-चौथा दिन गोवर्धन पूजा(अर्थात् अन्नकूट) के रूप में मनाया जाता है। इस दिन का महत्व घमण्डी इन्द्र के ऊपर भगवान कृष्ण की विजय के उपलक्ष्य में जाना जाता है, जिन्होंने गोकुल वासियों को संकटपूर्ण बारिश से सुरक्षित किया था। यह दिन राजा बाली पर भगवान विष्णु की विजय की याद करके बली-प्रतिपदा के रूप में भी मनाया जाता है। 5-पांचवॉं दिन भाइयों और बहनों द्वारा भाई दूज के रूप में से मनाया जाता है, जो उनके बीच प्यार के बंधन को दर्शाता है। दिन का मुख्य महत्व मृत्यु के देवता यम और उनकी बहन यामी (अर्थात् यमुना नदी) की कहानी है।
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