दक्षिण भारत के पंचभूत स्थल ..अथार्त पांच तत्वों की शुद्धि के लिए पांच शिव मंदिर...PART-01
पंचभूत स्थल;-
पंचभूत स्थल, दक्षिण भारत में स्थित भगवान शिव के पांच प्राचीन मंदिर है। जिनका निर्माण लगभग 3500 हज़ार साल पहले मानव चेतना को विकसित करने के एक माध्यम के रूप में किया गया था। हिंदु धर्म में, प्रकृति के पांच तत्व अग्नि, वायु, पृथ्वी, आकाश और जल के पूजन को बहुत मान्यता दी गई है। इन पांच मंदिरों में से श्रीकलाहस्ति मंदिर आंध्र प्रदेश में एवं एकाम्बरेश्वर, अरुणाचलेश्वर, तिलई नटराज, जंबूकेश्वर मंदिर तमिलनाडू में स्थित है। पांचों मंदिरों का निर्माण योगिक विज्ञान के अनुसार किया गया है एवं सभी मंदिर एक दूसरे के साथ एक विशेष प्रकार के भौगोलिक संरेखण में है।भगवान शिव की पूजा भूतनाथ के रूप में भी की जाती है।भूतनाथ का अर्थ है ब्रह्मांड के पाँच तत्वों, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश के स्वामी। इन्हीं पंचतत्वों के स्वामी के रूप में भगवान शिव को समर्पित पाँच मंदिरों की स्थापना दक्षिण भारत के पाँच शहरों में की गई है। ये शिव मंदिर, भारत भर में स्थापित द्वादश ज्योतिर्लिंगों के समान ही पूजनीय हैं। इन्हें संयुक्त रूप से पंच महाभूत स्थल कहा जाता है।
04 FACTS;-
1-भगवान शिव की हिंदू धर्म में बहुत मान्यता है।पूरी दुनिया में सबसे ज़्यादा भक्त भी इन्ही के होते हैं। संसार का निर्माण भी भगवान शिव द्वारा किया गया है। शिवजी को लोग अनेकों नाम से जानते हैं जैसे- भैरव, आशुतोष, भोलेनाथ, कैलाशनाथ, महादेव, महेश, रूद्र आदि। भगवान शिव इतने रूप होने के कारण इनकी पूजा-अर्चना भी लोग अलग-अलग तरीके से करते हैं।शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव को त्रिदेव कहा गया है।शिवजी की कल्पना एक ऐसे देव के रूप में की जाती है जो कभी संहारक तो कभी पालक होते हैं। भस्म, नाग, मृग चर्म, रुद्राक्ष आदि भगवान शिव की वेष-भूषा व आभूषण हैं। इन्हें संहार का देव भी माना गया है। दक्षिण भारत के शिव के ये पंचमहाभूत मंदिर बहुत प्रसिद्द है। इन प्राचीन मंदिरों से पता चलता है कि सनातन धर्म में देव पूजा का चलन तो बहुत बाद में हुआ पहले तो प्रकृति और इन पंच तत्व को ही पूजा जाता था। इसका कारण ये था कि सृष्टि का निर्माण और संहार इन्ही पंच तत्व से होता है..उन्ही पांच तत्वों पर आधारित हैं ये मंदिर। 2- पूरे देश भर में भोलेनाथ के हजारों मंदिर हैं पर कुछ मंदिर ऐसे भी हैं जिनका उल्लेख हमें पुराणों में ही सुनने को मिलेगा. पुराणों में उल्लेख होने का अर्थ हैं की ये मंदिर आज से कई हज़ार साल पुराने होंगे। इन मंदिरों का हिन्दू धर्म में अपना एक अलग ही महत्व और विशेषता है।पांच भूतों से बने इस शरीर को शुद्ध करने के लिए दक्षिण भारत के योगियों ने पांच मंदिर
बनाये थे - एक मंदिर हर तत्व के लिए।हर आध्यात्मिक प्रक्रिया का आधार इस स्थूल शरीर से परे जाना है। स्थूल शरीर से परे जाने का मतलब है जीवन के पांच तत्वों से परे जाना। आप जो भी अनुभव करते हैं, उस पर इन पांच तत्वों की जबर्दस्त पकड़ होती है। इनके परे जाने के लिए जो मौलिक योग किया जाता है उसे भूत शुद्धि कहा जाता है।भूत शुद्धि के अभ्यास के लिए पांच अलग-अलग लिंगों की रचना की गई। विशालकाय शानदार मंदिरों का निर्माण किया गया, जहां जाकर आप साधना कर सकते हैं।दक्षिण भारतीय प्रायद्वीप आध्यात्मिकता के विशिष्ट और शक्तिशाली रूप का गढ़ है। दक्षिण भारत की आकर्षक और शानदार संस्कृति में इसका प्रभाव साफ तौर से देखा जा सकता है। इस क्षेत्र के योगियों और आध्यात्मिक गुरुओं ने ऐसे कई तरीके खोजे हैं जिनके माध्यम से एक आम इंसान अपनी परम प्रकृति को हासिल कर सकता है।इनमें सबसे मशहूर है मंदिरों और पवित्र स्थानों का एक जटिल सा तंत्र।
3-पंचभूत स्थल दक्षिण भारत में पांच शानदार प्राचीन मंदिर हैं, जिनका निर्माण मानव चेतना को विकसित करने के एक माध्यम के रूप में किया गया। हर मंदिर का निर्माण पांच तत्वों में से एक तत्व के लिए किया गया और योगिक विज्ञान के अनुसार किया गया। ये मंदिर एक दूसरे के साथ एक खास किस्म के भौगोलिक संरेखण में हैं, जिससे कि उनके द्वारा पैदा की जाने वाली अपार संभावनाओं का असर पूरे क्षेत्र पर हो सके।उस स्थान की ऊर्जा और ढांचे की वास्तुशिल्पीय आभा के मामले में हर मंदिर किसी चमत्कार से कम नहीं है। इन मंदिरों का स्तर और मकसद हर इंसान की कल्पना को हैरान करता है। मंदिरों का निर्माण करने में हजारों पुरुषों और महिलाओं ने हिस्सा लिया ;जो मजदूर और कामगार नहीं थे .. भक्त थे। उनके प्रेम और समर्पण ने पर्वतों को हटाकर सैकड़ों टन के पत्थरों के बड़े-बड़े खंड खड़े कर दिए। यह वह समय था, जब आजकल की तरह निर्माण कार्यों में प्रयोग होने वाली शक्तिशाली मशीनें न थीं।पत्थरों के गगनचुंबी स्तंभ, हजारों खंभों वाले कक्ष, नाजुक तरीके से नक्काशी की गई दीवारें एक ऐसी संस्कृति की प्रतिभा और दूरदर्शिता को दिखाती हैं, जिसमें इंसान के परम कल्याण को सबसे ऊपर रखा गया।
4-उत्तर में केदारनाथ से लेकर दक्षिण में रामेश्वरम तक कुल सात शिव मंदिर हैं जो एक कतार में स्थित हैं। इन दोनों ज्योतिर्लिंगों के बीच में स्थित पांच शिव मंदिरों को खासतौर से इस संसार के निर्माण करने वाले पंच तत्वों का प्रतिनिधि माना जाता है।विशेषता की बात करें तो ये पांचों मंदिर एक ही सीधी रेखा में बने हुए हैं। उत्तर से अगर दक्षिण तक देखा जाए तो ये पांचों मंदिर एक ही रेखा में नज़र आते हैं। इन पाँचों शिव मंदिरों में से चार शिव मंदिर तमिलनाडु में और एक आंध्र प्रदेश में स्थित है।तीव्र ध्यान प्रक्रियाओं और सत्संग से इस यात्रा में आप इन मंदिरों की जबर्दस्त शक्ति का अनुभव कर सकते हैं और इस तरह जीवन की शक्तियों और अपनी खुद की परम क्षमता को हासिल कर सकते हैं।
शिवजी के ये पंचभूत स्थल/5 मंदिर;-
इनमें शामिल हैं: चिदंबरम का थिल्लई नटराज मंदिर,तिरुवन्नामलाई स्थित अरुणाचलेश्वर मंदिर, तिरुवनईकवल का जंबूकेश्वर मंदिर,कांचीपुरम का एकंबरेश्वर मंदिर और आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुपति शहर से करीबन 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित श्रीकलाहस्ति मंदिर,।
1-चिदंबरम का थिल्लई नटराज मंदिर ( आकाश तत्व को समर्पित);-
06 FACTS;-
1-तमिलनाडु के चिदंबरम में थिल्लई नटराज का मंदिर स्थित है।चिदंबरम का शाब्दिक अर्थ है "विचारों से सुसज्जित" या "ज्ञान का वातावरण"।नटराज शिवजी का ही एक रूप है । चिदंबरम में स्थित नटराज मंदिर हमारे देश के सबसे प्रसिद्द शिव मंदिरों में से एक है।इस मंदिर में शिव के तीन स्वरुप मिलते है। एक नटराज स्वरुप जो कला का प्रतिनिधित्व करता है है, दूसरा स्फटिक लिंग रूप और तीसरा आकाश स्वरुप।चिदंबरम स्थित तिलई नटराज मंदिर का निर्माण आकाश तत्व के लिए किया गया था। यह मंदिर महान नर्तक नटराज के रूप में भगवान शिव को समर्पित है। भारतीय शास्त्रीय नृत्य में नृत्य की 108 मुद्राओं का सबसे प्राचीन चित्रण चिदंबरम में ही पाया जाता है। इस मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा आधुनिक योग विज्ञान के जनक पतंजलि ने की थी।इस मंदिरों को लेकर एक किवदंती यह है इस स्थान पहले भगवान श्री गोविंद राजास्वामी का था। एक बार भगवान शिव सिर्फ इसलिए उनसे मिलने आए थे कि वह उनके और देवी पार्वती के बीच नृत्य प्रतिस्पर्धा के निर्णायक बन जाएं। गोविंद राजास्वामी तैयार हो गए। भगवान शिव -देवी पार्वती के बीच नृत्य प्रतिस्पर्धा चलती रही। ऐस में शिव विजयी होने की युक्ति जानने के लिए श्री गोविंद राजास्वामी के पास गए। उन्होंने एक पैर से उठाई हुई मुद्रा में नृत्य करने का संकेत दिया। यह मुद्रा महिलाओं के लिए वर्जित थी। ऐसे में जैसे ही भगवान शिव इस मुद्रा में आए तो देवी पार्वती ने हार मान ली। इसके बाद शिव जी का नटराज स्वरूप यहां पर स्थापित हो गया।
2-नटराज रूप सृष्टि के उल्लास और नृत्य यानी कंपन को दर्शाता है, जिसने शाश्वत स्थिरता और नि:शब्दता से खुद को उत्पन्न किया है। चिदंबरम मंदिर में स्थापित नटराज की मूर्ति बहुत प्रतीकात्मक है। क्योंकि जिसे आप चिदंबरम कहते हैं, वह पूर्ण स्थिरता है। इस मंदिर के रूप में यही बात प्रतिष्ठित की गई है कि सारी गति पूर्ण स्थिरता से ही पैदा हुई है। शास्त्रीय कलाएं इंसान के अंदर यही पूर्ण स्थिरता लाती हैं। स्थिरता के बिना सच्ची कला नहीं आ सकती।चिदंबरम मंदिर की इमारत ही 35 एकड़ जगह में बनी है। यह शानदार मंदिर पत्थरों से बनाया गया है। इस स्थान की यात्रा करना बड़ा महत्वपूर्ण है, क्योंकि असाधारण स्थान है यह।हालांकि शिव मंदिर के मुख्य देवता हैं, यह वैष्णववाद, शक्तिवाद और अन्य प्रमुख विषयों का भी पूरे सम्मान के साथ प्रतिनिधित्व करते हैं। चिदंबरम मंदिर परिसर गर्व से दक्षिण भारत के सबसे पुराने मंदिर परिसरों में से एक होने का दावा करता है। नटराज मंदिर की सबसे अनूठी विशेषता नटराज की रत्नजड़ित छवि है।मंदिर में कनक सभा, सिटी सभा, नृत्य सभा, देव सभा और राजसभा नाम से पाँच मुख्य हॉल या सभाएँ हैं।
3-इस मंदिर का घेरा लगभग सौ बीघे का है। इस घेरे के भीतर ही सब दर्शनीय मंदिर है। पहले घेरे के पश्चात ऊंचे गोपुर दूसरे घेरे मे मिलते है। पहले घेरे मे छोटे गोपुर है। दूसरे घेरे मे गोपुर नौमंजिले है । उन पर नाट्यशास्त्र के अनुसार विभिन्न नृत्य – मुंद्रवों की मूर्तिया बनी है। इन गोपुरो मे प्रवेश करने का एक और घेरा मिलता है। दक्षिण के गोपुर से भीतर प्रबेश करे तो तो तीसरे घेरे के द्वार के पास गणेश जी का मंदिर मिलता है। गोपुर के सामने उत्तर मे एक छोटे मंदिर मे नदी की विशाल मूर्ति है। इसके आगे नटराज के निजमंदिर का घेरा है। यह निजमंदिर भी दो घेरे के भीतर है। घेरे की भित्तिया पर नदी की मूर्तिया थोड़ी दूर पर है। इस चौथे घेरे मे अनेक छोटे मंदिर है। नटराज का निजमंदिर चौथे घेरे को पार करके पांचवे घेरे मे है। सामने नटराज का सभा मण्डल है। आगे एक स्वर्ण मंडित स्तम्भ है। नटराज के स्तंभो मे सुंदर मूर्तिया बनी है। आगे एक आँगन के मध्य के कसौटी के काले पत्थर का श्री नटराज का निजमंदिर है। इसके शिखर पार स्वर्णपत्र चढ़ा है। मंदिर का द्वार दक्षिण दिशा मे है।
4-मंदिर मे नृत्य करते हुये भगवान शंकर की बड़ी सुंदर मूर्ति है। यह मूर्ति स्वर्ण की है। श्री नटराज के दाहिनी ओर काली भित्ति मे एक यंत्र खुदा है। वहाँ सोने की मालाए लटकती रहती है। यह नीला शून्यकार ही आकाश तत्व लिंग माना जाता है। इस स्थान पार प्राय: पर्दा पड़ा रहता है। लगभग ग्यारह बजे दिन को अभिषेक के समय तथा रात मे अभिषेक के समय इसके दर्शन होते है। यह संपुट मे रखे दो शिवलिंग है। एक स्फटिक का और दूसरा नीलमणि का ।इनके अतिरिक्त एक बड़ा सा दक्षिणावर्त शंख है। स्फटिकमणि की मूर्ति को चौंद्र्मौलीशर तथा नीलम की मूर्ति को रत्न सभापति कहते है। मंदिर के पूर्वी दिशा में एक कुआं है जहां से मंदिर में पूजा के लिए जल लिया जाता है, जिसका नाम परमानन्द कूभम चित सभई है। श्री नटराज मंदिर के सामने के मंडप मे जहा नीचे से खड़े होकर नटराज के दर्शन करते है , वहाँ बाई ओर श्री गोविद राज का मंदिर है। मंदिर मे भगवान नारायण की सुंदर शेषशायी मूर्ति है वहाँ लक्ष्मी जी तथा अन्य कई दूसरे छोटे उत्सव विग्रह है।
5-श्री गोविंद राज मंदिर के बगल मे ( नटराज सभा के पास पश्चिम मे ) भगवती लक्ष्मी का मंदिर है।इसमे ‘पुंडरिकव्वली’ नामक लक्ष्मी जी की मनोहर मूर्ति है। नटराज मंदिर के चौथे घेरे मे ही एक मूर्ति भगवान शंकर की है। शंकर जी के बाई ओर गोद मे पार्वती बिराजमान है। नटराज मंदिर के निजी घेरे के बाहर ( चौथे घेरे मे ) उत्तर मे एक मंदिर है। इस मंदिर के सामने सभा मंडप है। नटराज भगवान शिव के सबसे महत्वपूर्ण रूपों में से एक है।मंदिर के भवन में एक सरोवर भी है, जिसे सिवगंगा कहते है। यह विशाल सरोवर मंदिर के तीसरे गलियारे में है जो देवी सिवगामी के धार्मिक स्थल के ठीक विपरीत है।पश्चिमी वैज्ञानिकों ने यह साबित कर दिया है कि भगवान नटराज के पैर का अंगूठा विश्व के चुंबकीय भूमध्य रेखा का केंद्र बिंदु है ।प्राचीन तमिल विद्वान थिरुमूलर ने इसे पांच हजार साल पहले सिद्ध कर दिया है! उनका ग्रंथ थिरुमंदिरम पूरे विश्व के लिए एक अद्भुत वैज्ञानिक मार्गदर्शक है।
6-चिदंबरम मंदिर निम्नलिखित विशेषताओं का प्रतीक है:-
09 POINTS;-
1-यह मंदिर विश्व की चुंबकीय भूमध्य रेखा के केंद्र बिंदु पर स्थित है।भगवान नटराज के नृत्य को पश्चिमी वैज्ञानिकों द्वारा लौकिक नृत्य के रूप में वर्णित किया गया है।"पंच बूथ" मंदिरों में चिदंबरम का अर्थ आकाश है। कलाहस्थी पवन को दर्शाता है। कांची एकम्बरेश्वर भूमि को दर्शाता है। ये तीनों मंदिर 79 डिग्री 41 मिनट देशांतर पर एक सीधी रेखा में स्थित हैं। इसे सत्यापित किया जा सकता है।यह एक अद्भुत तथ्य और खगोलीय चमत्कार है!
2-चिदंबरम मंदिर मानव पर आधारित है जिसमें 9 प्रवेश द्वार हैं जो शरीर के 9 प्रवेश या उद्घाटन को दर्शाते हैं।
3-मंदिर की छत 21600 सोने की चादरों से बनी है जो एक इंसान द्वारा प्रतिदिन ली जाने वाली 21600 सांसों को दर्शाती है (15 x 60 x 24 = 21600)ये 21600 सोने की चादरें 72000 सोने की कीलों का उपयोग करके "विमानम" (छत) पर तय की गई हैं जो कुल संख्या को दर्शाती हैं। मानव शरीर में नाड़ियों (नसों) की।
4-थिरुमूलर कहते हैं कि मनुष्य शिवलिंगम के आकार का प्रतिनिधित्व करता है, जो चिदंबरम का प्रतिनिधित्व करता है जो सदाशिवम का प्रतिनिधित्व करता है जो भगवान शिव के नृत्य का प्रतिनिधित्व करता है!
5-“पोन्नम्बलम” को बाईं ओर थोड़ा झुका हुआ रखा गया है। यह हमारे हृदय का प्रतिनिधित्व करता है। इस तक पहुँचने के लिए, हमें "पंचतसर पदी" नामक 5 सीढ़ियाँ चढ़ने की आवश्यकता है "सी, व, य, न, म" ये 5 पंचतारा मंत्र हैं। 4 वेदों का प्रतिनिधित्व करने वाले कनगसभा को धारण करने वाले 4 स्तंभ हैं।
6-पोन्नम्बलम में 28 स्तंभ हैं जो 28 "अहमस" के साथ-साथ भगवान शिव की पूजा करने की 28 विधियों को दर्शाते हैं। ये 28 स्तंभ 64 +64 रूफ बीम का समर्थन करते हैं जो 64 कलाओं को दर्शाते हैं। क्रॉस बीम मानव शरीर में चलने वाली रक्त वाहिकाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।
7-सुनहरी छत पर कलश 9 प्रकार की शक्ति या ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करते हैं। अर्थ मंडप में 6 स्तंभ 6 प्रकार के शास्त्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं।आसन्न मंडप में 18 स्तंभ 18 पुराणों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
8-इस मंदिर में बनी शिव मूर्ति की सबसे खास बात यह है कि यहां मौजूद नटराज की प्रतिमा गहने और आभूषणों से लदी हुई हैं। ऐसी शिव मूर्तियां भारत में कम ही देखने को मिलती हैं।मंदिर की एक अनोखी विशेषता मुख्य देवता के रूप में भगवान नटराज की बेजल वाली छवि है। यह भगवान शिव को कुतु - भरत नाट्यम के गुरु के रूप में दर्शाता है और उन कुछ मंदिरों में से एक है जहां भगवान शिव का प्रतिनिधित्व क्लासिक, ऐनिकोनिक लिंगम के बजाय एक मानवजनित मूर्ति द्वारा किया जाता है।
9-मंदिर के पूर्वी भाग में बने गोपुरम में भारतीय नृत्य शैली भरतनाट्यम की संपूर्ण 108 मुद्रायें चिन्हित हैं।इस मंदिर को लेकर यह मान्यता है कि भगवान शिव ने अपने आनंद नृत्य की प्रस्तुति इस जगह पर की थी।। इस मंदिर के स्तंभों और दीवारों पर नटराज की नृत्य मुद्रा की प्रतिमाओं को नाट्यशास्त्रीय आधार पर उत्कीर्ण करवाया गया था।
चिदंबरम के अन्य दर्शनीय मंदिर ;-
1-तिरुवेट्कलम;-
चिदंबरम स्टेशन के पूर्व विश्वविद्यालय के पास यह स्थान है। यहाँ भगवान शंकर का मंदिर है। कहा जाता है की अर्जुन ने यही भगवान शंकर से पाशुपत्र प्राप्त किया था।
2-कट्टूमनोर्गुड़ी;-
चिदंबरम से 25 किलोमीटर दक्षिण मे यह स्थान है। यहाँ भगवान वीरनारायण का मंदिर है। भगवान नारायण के साथ श्री देवी तथा भूदेवी विराजमान है। मंदिर मे राजगोपाल (श्री कृष्ण ) रक्तिमणि , सत्यसभा आदि की भी मूर्तिया है। कहा जाता है कि यहाँ मातंग ऋषि ने तपस्या की थी।
चिदंबरम मंदिर कैसे पहुँचे?
मंदिर का सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन चिदंबरम रेलवे स्टेशन हैं। और रेलवे स्टेशन से मंदिर 1.6 किमी की दूरी पर स्थित है।
हवाई मार्ग द्वारा इस मंदिर तक जाने के लिए सबसे नजदीकी एयरपोर्ट चेन्नई है।चिदंबरम चेन्नई हवाई अड्डे के लगभग दक्षिण की ओर स्थित है । यहां से बस या ट्रेन के माध्यम से चिदंबरम तक आसानी से जा सकते है।चेन्नई से चिदंबरम तक पहुँचने के लिए 244 कि.मी. की दूरी करनी पड़ती है।चेन्नई हवाई अड्डे से चिदंबरम तक बस का समय लगभग 4 घंटे 10 मिनट है।
2-श्रीकलाहस्ती मंदिर ( वायु-तत्व को समार्पित);-
08 FACTS;- 1-शिव जी का ये मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में तथा तिरुपति शहर से करीबन 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर को मुख्य तौर पर पंच तत्वों में से वायु का प्रतिनिधि माना जाता है। इस मंदिर के देवता कलाहस्तिश्वर की प्राण प्रतिष्ठा वायु तत्व के लिए की गई थी।श्रद्धालु इस मंदिर को अतीत और वर्तमान जीवन के सभी पापों को धोने के लिए शक्तिशाली दिव्य शक्ति के रूप में मानते हैं।आज से कई वर्ष पहले पांचवीं शताब्दी में इस मंदिर में खासतौर से राहु और केतु दोषों को दूर करने के लिए पूजा अर्चना की जाती थी। जीवन में आने वाले राहु काल शांति की पूजा भी इस मंदिर में करवाई जाती थी।स्कंद पुराण के अनुसार इसी स्थान पर अर्जुन को श्रीकालाहस्ती और भारद्वाज मुनि के दर्शन हुए थे।श्री कालहस्ती मंदिर में शिव की वायु स्वरूप में पूजा की जाती है।इस मंदिर में शिवलिंग के पास एक ज्वाला लगातार जलती रहती है और हिलती रहती है, जबकि इसके आसपास कहीं भी कोई हवा नहीं बहती। कहा जाता है कि ज्वाला का हिलना शिव के वायु स्वरुप के कारण होता है।मंदिर में मुख्य स्थान पर भगवान शिव की लिंग रूप मूर्ति है। यही वायुतत्व लिंग है। इसलिए पुजारी भी इसका स्पर्श नहीं करते। मूर्ति के पास स्वर्णपटट स्थापित है, उसी पर माला इत्यादि चढ़ाकर पूजा की जाती है। इस मूर्ति में मकड़ी, हाथी तथा सर्प के दांतों के चिन्ह स्पष्ट दिखाई देते है। कहा जाता है कि सबसे पहले मकड़ी , हाथी तथा सर्प ने भगवान शिव की आराधना की थी। उनके नाम पर ही श्री कालहस्तीश्वर नाम पड़ा है। श्री का अर्थ है मकड़ी, काल का अर्थ सर्प तथा हस्ती का अर्थ है हाथी। मंदिर में भगवती पार्वती की अलग मूर्ति है।
2-सूर्य ग्रहण के दौरान जहां देश भर के मंदिर बंद रहते है।वहीं एक मंदिर ऐसा भी है जो सूर्य ग्रहण के दौरान भी खुला रहता है...कालहस्ती मंदिर।इस मंदिर में भक्तों के लिए राहु केतू पूजा के अलावा यहां कालहस्तीश्वर स्वामी की अभिशेकम पूजा की जाती है। जिनके ज्योतिष में कोई दोष है वे यहां ग्रहण के दौरान आते हैं और राहू केतू पूजा के बाद भगवान शिव और देवी ज्ञानप्रसूनअंबा (मां पार्वती) की भी पूजा करते हैं। सूर्य ग्रहण के दौरान भी पूजा पाठ होने के कारण पौराणिक कथाओं में छिपे हैं. दरअसल इस मंदिर में स्थापित भगवान शिव के मूर्ति में सभी 27 नक्षत्र और 9 राशि उपस्थित हैं। भगवान शिव की मूर्ति धातु से बनी और पूरे सौलर सिस्टम को नियंत्रित करती है। श्रीकलाहस्ति का निर्माण स्वर्णमुखी नदी के किनारे एक पहाड़ी के सिरे को काटकर किया गया है। मंदिर का संबंध कई शैव संतों से रहा है। इनमें एक महान भक्त कनप्पा नयनार भी हुए थे, जिन्होंने लिंग की आंख की जगह लगाने के लिए अपनी खुद की आंख निकाल ली थी। श्रीकलाहस्ति में श्री का मतलब है मकड़ी, कला का अर्थ है सांप और हस्ति यानी हाथी। कहा जाता है कि इन तीन जानवरों ने यहां पूजा अर्चना की थी और बाद में उन्हें मुक्ति मिल गई।इस मंदिर के बारे में कहा गया है कि दुनिया के निर्माण के प्रारंभिक चरणों के दौरान, भगवान वायु ने हजारों वर्षों तक कर्पूर लिंगम को खुश करने के लिए तपस्या की। भगवान शिव ने भगवान वायु की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें तीन वरदान दिए। जिसमें भगवान ने उसे दुनिया भर में उपस्थिति प्रदान करने का वरदान दिया, जो ग्रह पर रहने वाले हर प्राणी का एक अनिवार्य हिस्सा हो और उसे सांबा शिव के रूप में कर्पूर निगम का नाम बदलने की अनुमति दी जाए। ये तीन अनुरोध भगवान शिव द्वारा दिए गए थे और वायु (प्राणवायु या वायु) तब से पृथ्वी पर जीवन का अभिन्न अंग है और लिंगम को सांबा शिव या कर्पूर वायु लिंगम के रूप में पूजा जाता है।
3-एक अन्य किंवदंती में कहा गया है कि देवी पार्वती को भगवान शिव ने श्राप दिया था जिस कारण भगवान शिव को अपना दिव्य अवतार छोड़ना पड़ा और मानव रूप लेना पड़ा। देवी पार्वती ने खुद को श्राप से मुक्त करने के लिए श्रीकालाहस्ती में कई वर्षों तक तपस्या की। भगवान शिव उनकी भक्ति और समर्पण से बहुत प्रसन्न थे और उन्होंने पार्वती को स्वर्गीय अवतार में पुनः प्राप्त किया, जिसे ज्ञान प्रसूनम्बिका देवी या शिव-ज्ञानम् ज्ञान प्रसूनम्बा के रूप में जाना जाता है।एक अन्य किवदंती के अनुसार, कन्नप्पा, जो 63 शिव संतों में से एक थे, उन्होंने अपना सारा जीवन भगवान शिव को समर्पित कर दिया। कन्नप्पा स्वेच्छा से भगवान शिव के लिंगम से बहने वाले रक्त को ढंकने के लिए अपनी आँखें अर्पित करना चाहते थे। जब भगवान शिव को इस बारे में पता चला, तो उन्होंने संत को रोक दिया और जन्म और मृत्यु के अंतहीन चक्र से अपनी मुक्ति दे दी।
4-मंदिर परिसर का प्रवेश द्वार दक्षिण की ओर है, जबकि मुख्य मंदिर पश्चिम की ओर है। इस तीर्थ के अंदर सफेद पत्थर शिव लिंगम हाथी के सूंड के आकार जैसा दिखता है। मंदिर का मुख्य गोपुरम लगभग 120 फीट ऊंचा है। मंदिर परिसर के मंडप में 100 जटिल नक्काशीदार खंभे हैं, जो 1516 में एक विजयनगर राजा, कृष्णदेवराय के शासनकाल के दौरान बनाए गए थे। श्रीकालाहस्ती मंदिर परिसर में भगवान गणेश का मंदिर 9 फीट लंबा एक चट्टान से काट दिया गया मंदिर है। इसमें गणेशमन्म्बा, काशी विश्वनाथ, सूर्यनारायण, सुब्रमण्य, अन्नपूर्णा और शयदोगनपति के भी मंदिर हैं जो गणपति, महालक्ष्मी गणपति, वल्लभ गणपति और सहस्र लिंगेश्वर की छवियों से सुसज्जित हैं। मंदिर के क्षेत्र में दो और मंडप हैं, सादोगी मंडप, जलकोटि मंडप और दो जल निकाय चंद्र पुष्कर्णी और सूर्य पुष्कर्णी।इस मंदिर को जागृत मंदिर भी कहा जाता है क्यों की खुद भगवान शिव एक यहाँ पर प्रकट हुए थे। वो किस लिए प्रकट हुए इसके पीछे भी एक कहानी है।
5-कहते है कि नील और फणेश नाम के दो भील लड़के थे। उन्होंने शिकार खेलते समय वन में एक पहाड़ी पर भगवान शिव की लिंग मूर्ति देखी। नील उस मूर्ति की रक्षा के लिए वही रूक गया और फणीश लौट आया।नील ने पूरी रात मूर्ति का पहरा इसलिए दिया ताकि कोई जंगली पशु उसे नष्ट न कर दे। सुबह वह वन में चला गया। दोपहर के समय जब वह लौटा तो उसके एक हाथ में धनुष, दूसरें में भुना हुआ मांस, मस्तक के केशो में कुछ फूल तथा मुंह में जल भरा हुआ था। उसके हाथ खाली नहीं थे, इसलिए उसने मुख के जल से कुल्ला करके भगवान को स्नान कराया। पैर से मूर्ति पर चढ़े पुराने फूल व पत्ते हटाएं। बालों में छिपाए फूल मूर्ति पर गिराए तथा भुने हुए मांस का टुकडा भोग लगाने के लिए रख दिया।दूसरे दिन नील जब जंगल गया तो वहां कुछ पुजारी आए। उन्होंने मंदिर को मांस के टूकड़ों से दूषित देखा। उन्होंने मंदिर की साफ सफाई की तथा वहां से चले गए। इसके बाद यह रोज का क्रम बन गया।
6-नील रोज जंगल से यह सब सामग्री लाकर चढ़ाता और पुजारी उसे साफ कर जाते। एक दिन पुजारी एक स्थान पर छिप गए ताकि उस व्यक्ति का पता लगा सके, जो रोज रोज मंदिर को दूषित कर जाता है।उस दिन नील जब जंगल से लौटा तो उसे मूर्ति में भगवान के नेत्र दिखाई दिए। एक नेत्र से खून बह रहा था। नील ने समझा कि भगवान को किसी ने चोट पहुचाई है। वह धनुष पर बाण चढ़ाकर उस चोट पहुंचाने वाले व्यक्ति को ढूंढने लगा। जब उसे कोई नही मिला तो वह कई प्रकार की जड़ी बूटियां ले आया तथा वह भगवान की आंख का उपचार करने लगा।परंतु रक्त धारा बंद न हुई। तभी उसे अपने बुजुर्गों की एक बात याद आई, “मनुष्य के घाव पर मनुष्य का ताजा चमड़ा लगा देने से घाव शीघ्र भर जाता है”। नील ने बिना हिचक बाण की नोक घुसाकर अपनी एक आंख निकाली तथा उसे भगवान के घायल नेत्र पर रख दिया।मूर्ति के नेत्र से रक्त बहना तत्काल बंद हो गया। छिपे हुए पुजारियों ने जब यह चमत्कार देखा तो वह दंग रह गए। तभी मूर्ति की दूसरी आंख से रक्त धारा बहने लगी। नील ने मूर्ति की उस आंख पर अपने पैर का अंगूठा टिकाया ताकि अंधा होने के बाद वह टटोलकर उस स्थान को ढ़ूंढ़ सके। इसके बाद उसने अपना दूसरा नेत्र निकाला तथा उसे मूर्ति की दूसरी आंख पर लगा दिया।तभी वह स्थान अलौकिक प्रकाश से भर गया। भगवान शिव प्रकट हो गए, तथा उन्होंने नील का हाथ पकड़ लिया।
7-वे नील को अपने साथ शिवलोक ले गए। नील का नाम उसी समय से कण्णप्प(तमिल में कण्ण नेत्र को कहते है) पड़ गया। पुजारियों ने भी भगवान तथा भोले भक्त के दर्शन किए तथा अपने जीवन को सार्थक किया।कण्णप्प की प्रशंसा में आदि शंकराचार्य जी ने एक श्लोक में लिखा है—-” रास्ते में ठुकराई हुई पादुका ही भगवान शंकर के अंग झाड़ने की कूची बन गई। आममन (कुल्ले) का जल ही भगवान का दिव्याभिषेक जल हो गया और मांस ही नैवेद्य बन गया। अहो! भक्ति क्या नहीं कर सकती? इसके प्रभाव से एक जंगली भील भी भक्तबतंस (भक्त श्रेष्ठ) बन गया”।श्रीकालाहस्ती मंदिर में अभिषेक हर दिन 10 बजे के बाद किया जाता है, जिसके लिए भक्तों को कुल 600 रूपए का भुगतान करना पड़ता है।300 रु टिकट: इस टिकट का लाभ उठाने वाले लोगों के लिए पूजा मंदिर के परिसर के बाहर मौजूद एक बड़े हॉल में की जाती है।750 रु टिकट: इस टिकट के अंतर्गत परिहार पूजा की जाती है, जिसमें पास में मुख्य स्थान पर एक वातानुकूलित हॉल के अंदर मुख्य स्थान पर शिव संन्यास होता है।1500 रु टिकट: यह वीआईपी टिकट हैं और इसके अंतर्गत मंदिर के अंदर परिहार में पूजा की जाती है।मंदिर के आसपास कई धार्मिक स्थल हैं, जिनके दर्शन आप कर सकते हैं। विश्वनाथ मंदिर कणप्पा मंदिर, मणिकएिाका मंदिर, सूर्यनारायण मंदिर, कृष्णदेवार्या मंडप, श्री सुकब्रह्माश्रमम, वैय्यालिंगाकोण पर्वत पर स्थित दुर्गम मंदिर और दक्षिण काली मंदिर मुख्य हैं। यहां आने वाले भक्त इन सभी मंदिरों के दर्शन किए बगैर यहां से वापस नहीं लौटते।दर्शन के लिए आप परम्परानिष्ठ कपड़े ही पहनें। ऐसे कपड़े पहनना यहां की परंपरा है।
8-अन्य मंदिर ;-
1-मणिगण्णियगट्टम ;-
मंदिर के अग्नि कोण में चट्टान काट काटकर बनाया हुआ एक मंडप है, जिसका नाम मणिगण्णियगट्टम है। इस नाम की एक भक्ता हुई है, जिनके कान में भगवान शिव ने तारकमंत्र फूंका था। उसी भक्ता के नाम पर यह मंदिर विख्यात हैं।
2-कण्णप्पेश्वर..मंदिर के पास एक पहाडी है। कहा जाता है, कि इसी पहाड़ी पर अर्जुन ने तपस्या करके भगवान शिव से पाशुपतास्त्र प्राप्त किया था। यहां ऊपर जो शिवलिंग है, वह अर्जुन द्वारा प्रतिष्ठित है। पीछे कण्णप्प ने उसका पूजन किया। तभी इसका नाम कण्णप्पेश्वर हुआ। वही एक छोटे से मंदिर में कण्णप्प भील की मूर्ति है।
3-पवित्र सरोवर...पहाड़ी से उतरते समय एक सरोवर आता है। पहाड़ी से वह सरोवर दिखाई दे जाता है। कहा जाता है कि कण्णप्प शिवलिंग पर चढ़ाने के लिए वहीं से मुख में जल भरकर ले जाता था। यह सरोवर एक पवित्र तीर्थ माना जाता हैं।
4-दुर्गा मंदिर;-
कण्णप्प पहाड़ी के ठीक सामने बस्ती के दूसरे सिरे पर एक और पहाड़ी है। इस पहाड़ी पर दुर्गा मंदिर है। यह स्थान 51 शक्तिपीठों में से एक है, परंतु बहुत कम लोग इस पहाड़ी पर जाते है।यहां 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ भी है। यहां देवी सती का दक्षिण स्कंध गिरा था। श्री कालहस्ती मंदिर स्वर्णमुखी नदी के तट पर है। इस नदी में जल कम रहता है। नदी के पार तट पर ही यह मंदिर है।
आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में कैसे पहुँचे?-
यदि आप तिरुपति बालाजी जा रहे हैं तो वायु तत्व के समर्पित इस मंदिर में आसानी से जा सकते हैं।चेन्नई हवाई अड्डा तिरुपति बालाजी मंदिर से लगभग 117 किमी दूर स्थित है।यह मंदिर चित्तूर में... तिरुपति शहर से करीबन 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। चित्तूर आंध्र प्रदेश का ऐतहासिक महत्व रखने वाला शहर है।अगर आप चित्तूर फ्लाइट से जाना चाहते हैं तो सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है तिरुपति हवाई अड्डा। चित्तूर से तिरुपति एयरपोर्ट की दूरी 57 किमी. है। आप यहाँ से चित्तूर टैक्सी या कैब बुक करके जा सकते हैं।यदि आप ट्रेन से चित्तूर जाने का सोच रहे हैं तो चित्तूर में ही रेलवे स्टेशन है। चित्तूर रेलवे स्टेशन देश के बाकी रेलवे स्टेशनों से अच्छी तरहों से जुड़ा हुआ है।इसके अलावा चित्तूर से 25 किमी. दूर मोगली नाम का गाँव है। इस गाँव में मोगलीश्वरा मंदिर है, इसमें भगवान शिव की मूर्ति है। चित्तूर आएं तो इन मंदिरों को जरूर देखें।
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