क्या अर्थ है मनन, एकाग्रता और ध्यान का ?
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क्या अर्थ है मनन, एकाग्रता और ध्यान का ? ;-
11 FACTS;-
1-मनन का अर्थ है दिशाबद्ध विचारना। हम सब विचार करतें हैं, लेकिन वह मनन नहीं है। वह विचारना दिशा रहित है, अस्पष्ट है ,सिर्फ मन का एसोसिएशन है।इसी कारण एक विचार अपने आप ही दूसरे विचार पर चला जाता है।उदाहरण के लिए जिस क्षण तुम एक कमल
का फूल देखते हो, तुम्हारा मन फूलो के संबंध में सोचने लगता है। और उसके साथ तुम्हारा बचपन चला आता है ;फिर कमल का फूल तो भूल जाते हैं और एसोसिएशन के प्रभाव के कारण तुम अपने बचपन के संबंध में सोचने लगते हो।और फिर बचपन के साथ जुड़ी हुई अनेक चीजें आती हैं, और तुम उनके बीच चक्कर काटने लगते हो।यदि कभी तुम सोचने,
विचारने से पीछे हटकर वहां जाओ जहां से विचार आया था।और जब एक एक-कदम पीछे हटोगे तब तुम पाओगे कि वहां कोई दूसरा ही विचार था जो इस विचार को लाया।और कमल के फूल और तुम्हारे बचपन के बीच कोई Association/संगति नहीं है, सिर्फ मन का एसोसिएशन है।
2-हरेक मनुष्य के मन में एसोसिएशन की श्रृंखला है और कोई भी घटना उस श्रृंखला से जुड़ जाती है। तब मन कंप्यूटर की भांति काम करने लगता है और एक से दूसरी , दूसरी से तीसरी बात निकलती चली जाती है। दिन भर हम यही करते रहते है।जब विचार मनन
बनता है ;तब वह एसोसिएशन के कारण नहीं, निर्देशन से चलता है। अगर तुम किसी खास समस्या पर काम कर रहे हो तो तुम सब एसोसिएशन की श्रृंखला को अलग कर देते हो और उसी एक समस्या के साथ गति करते हो। तब तुम अपने मन को निर्देश देते हो। मन तब भी इधर उधर से, किसी पगडंडी से किसी एसोसिएशन की श्रृंखला पकड़कर भागने की चेष्टा करेगा। लेकिन तुम अन्य सभी रास्तों को रोक देते हो और मन को एक मार्ग से ले चलते हो। तब तुम अपने मन को दिशा देते हो।
3-कोई भी तार्किक विचारक मनन है और विज्ञान मनन पर आधारित है। उसमें विचार निर्देशित है, दिशाबद्ध है। विचार की दिशा निश्चित है। सामान्य विचारना तो व्यर्थ है परन्तु मनन तर्कपूर्ण , बुद्धिपूर्ण है।किसी समस्या में संलग्न एक वैज्ञानिक, एक गणितज्ञ मनन करता है।जब कवि किसी फूल पर मनन करता है तब शेष संसार उसके मन से ओझल हो जाता है। तब केवल दो ही होते हैं...फूल और कवि, और कवि फूल के साथ यात्रा करता है। रास्ते में अनेक चीजें आकर्षित करेंगी, लेकिन वह अपने मन को कहीं नहीं जाने देता है और एक ही दिशा में गति निर्देशित करता है।इसे मनन कहते है।
4-साधारण मन दिशाहीन, अनियंत्रित विचारक से और वैज्ञानिक मन दिशाबद्ध विचारना से संबंधित है ।योगी का चित्त अपने चिंतन को एक बिंदु पर केंद्रित रखता है, वह उसे गति नहीं करने देता।फिर एक बिंदु पर होने को एकाग्रता कहते हैं। एकाग्रता एक बिंदु पर ठहर जाना है। यह विचारना नहीं है, सामान्य विचारणा में मन पागल की तरह गति करता है। मनन में पागल मन निर्देशित हो जाता है, उसे जहां तहां जाने की छूट नहीं है। एकाग्रता में मन को गति की ही छूट नहीं रहती। साधारण विचारणा में मन कहीं भी गति कर सकता है; मनन में किसी दिशा विशेष में ही गति कर सकता है; एकाग्रता में वह कहीं भी नहीं गति कर सकता।योग का संबंध एकाग्रता से है ; जिसमें उसे एक बिंदु पर ही रहने दिया जाता है। सारी ऊर्जा, सारी गति एक बिंदु पर स्थिर हो जाती है।
5-इसके बाद है ध्यान।चार अवस्थाएं हैं ..साधारण विचारना,मनन, एकाग्रता और ध्यान। साधारण विचारणा में मन कहीं भी जा सकता है। मनन में उसे एक दिशा में गति करने की इजाजत है, दूसरी सब दिशाएं वर्जित हैं। एकाग्रता में मन को किसी भी दिशा में गति करने की इजाजत नहीं है, उसे सिर्फ एक बिंदु पर एकाग्र होने की छूट है। और ध्यान में मन है ही नहीं।
ध्यान का अर्थ है, 'अमन' जिसका अर्थ है निर्विचार।। उसमें एकाग्रता के लिए भी गुंजाइश नहीं है; मन के होने की ही गुंजाइश नहीं है। यही कारण है कि ध्यान को मन से नहीं समझा जा सकता। एकाग्रता तक मन की पहुंच है, मन की पकड़ है। मन एकाग्रता को समझ सकता है, लेकिन' मन ध्यान को नहीं समझ सकता क्योकि वहां मन की पहुँच हीं नहीं है। एकाग्रता में मन को एक बिंदु पर रहने दिया जाता है; ध्यान में वह बिंदु भी हटा लिया जाता है। साधारण विचारणा में सभी दिशाएं खुली रहती हैं; एकाग्रता में दिशा नहीं, एक बिंदु भर खुला है; और ध्यान में वह बिंदु भी नहीं खुला है। वहां मन के होने की भी सुविधा नहीं है।
6- विचार करना मन की साधारण दशा है,और ध्यान उसकी उच्चतम संभावना है।सामान्य विचार/एसोसिएशन करना निम्नतम है और उच्चतम शिखर है ध्यान, ''अमन''।अगर तुम अपने विचार करने की प्रक्रिया को घटाते जाओ, तो तुम धीरे -धीरे 'अमन 'की अवस्था को पहुंच
जाओगे। 'मन' विचार करने की प्रक्रिया है और 'अमन' की दशा विचार करने की प्रक्रिया का
अभाव है।अगर विचार करने की प्रक्रिया गहरी होती जाए तो तुम केवल मन की ओर बढ़ रहे हो। और अगर विचार की प्रक्रिया क्षीण होती जाए, तो तुम 'अमन' की ओर बढ़ने में स्वयं की मदद कर रहे हो। यह तुम पर निर्भर है और मन सहयोगी हो सकता है, अगर तुम उसके साथ बिना कुछ किए अपनी चेतना को स्वयं पर छोड़ दो क्योकि यही ध्यान बन जाता है।
7-इस प्रकार दो संभावनाएं हैं।पहली यह कि क्रमश: तुम अपने मन को ,अपने मानसिक फर्नीचर को घटाओ। अगर वह एक प्रतिशत घटे तो तुम्हारे भीतर 99% मन है और एक प्रतिशत 'अमन'।दूसरी संभावना यह हैं कि सब फर्नीचर तुरंत और इकट्ठा फेंका जा सकता है। उसी क्षण तुम अपने सारे मानसिक फर्नीचर से मुक्त हो सकते हो।लेकिन तब तुम अचानक रिक्त, खाली, शून्य हो जाओगे और तुम्हें पता नहीं रहेगा कि तुम कौन हो। यह हो सकता है कि घटना तीव्र गति से घट जाए और उसके उपाय भी हैं।लेकिन उसका धक्का, उसकी चोट इतनी तीव्र हो सकती है कि तुम पागल भी हो सकते हो।इसलिए तीव्र गति की विधियां प्रयोग में नहीं लायी जाती हैं।
8-यह बात क्रमिक भी हो सकती है और अचानक एक छलाँग में भी।उदाहरण के लिए अगर तुमने अपने कमरे से कुछ फर्नीचर हटा दिया तो थोड़ा खाली स्थान, थोड़ा आकाश वहां पैदा हो जायेगा।और फिर ज्यादा फर्नीचर हटा दिया तो और ज्यादा आकाश पैदा हो जायेगा ।और जब सब फर्नीचर हटा दिया तो समूचा कमरा आकाश हो जायेगा।वास्तव में, फर्नीचर हटाने से कमरे में आकाश नहीं पैदा हुआ, आकाश तो वहां था ही ... वह कहीं बाहर से नहीं आता है।केवल आकाश फर्नीचर से भरा था, जो तुमने हटा दिया और आकाश फिर से उपलब्ध हो गया।मन भी एक प्रकार का आकाश है जो विचारों से भरा है। तुम थोड़े से विचारों को हटा दो और आकाश फिर से प्राप्त हो जाएगा। अगर तुम विचारों को हटाते जाओ ;तो तुम धीरे -धीरे आकाश को फिर से हासिल कर लोगे और यही आकाश ध्यान है।
8-यह आवश्यक नहीं है कि जन्मों जन्मों तक धीरे धीरे फर्नीचर हटाया जाए, क्योंकि उस प्रक्रिया की भी अपनी कठिनाई है। जब धीरे धीरे फर्नीचर हटाते हो तो पहले एक प्रतिशत आकाश पैदा होता है और शेष 99% भरा का भरा रहता है जो एक प्रतिशत खाली आकाश के संबंध में अच्छा अनुभव नहीं करेगा, वह उसे फिर से भरने की चेष्टा करेगा।तो मनुष्य
एक तरफ से विचारों को कम करता है और दूसरी तरफ से नए नए विचार उत्पन्न करता है। सुबह तुम थोड़ी देर के लिए ध्यान करते हो, उसमें तुम्हारी विचार की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। फिर तुम कहीं बाहर जाते हो जहां विचारों की दौड़ शुरू हो जाती है। स्पेस/आकाश फिर से भर गया। दूसरे दिन तुम फिर वही सिलसिला दोहराते हो, उसे रोज दोहराते हो ..विचारो को बाहर निकालना, फिर उन्हें भीतर लेना।
9-तुम एक साथ भी सब फर्नीचर बाहर फेंक सकते हो ..यह तुम्हारा निर्णय है। यह कठिन जरूर है, क्योंकि तुम फर्नीचर के आदी हो गए हो ;उसके बिना समस्या अनुभव होगी। तुम्हें समझ में नहीं आएगा कि स्पेस /आकाश का क्या करें। तुम उसमें गति करने से भी डरोगे, क्योकि तुमने ऐसी स्वतंत्रता में कोई गति नहीं की है।मन एक संस्कार है।हम विचारों
के आदी हो गए हैं और रोज वही विचार दोहराते रहते है।उसका केवल एक ही उपयोग है कि
वह एक लंबी आदत बन गया है ।तुम प्रतिदिन अपने बिस्तर पर नींद की प्रतीक्षा करते हो और वही बातें रोज मन में दोहराती रहती हैं। यह तुम रोज करते हो और पुरानी आदतें संस्कार के रूप में सहायता करती हैं। एक बच्चे को टैडी बियर चाहिए,उसे वह मिल जाए तो नींद आ जाएगी। और तब तुम उससे टैडी बियर ले सकते हो।लेकिन उसके बिना बच्चे को नींद न आएगी। यह भी एक लंबी आदत है कि टैडी बियर मिलते ही उसके मन में कुछ प्रेरणा होती है, और वह नींद में उतरने के लिए राजी हो जाता है।
10-वही बात तुम्हारे साथ हो रही है।तुम्हें एक नए कमरे में नींद आने में कठिनाई होती है। अगर तुम किसी खास ढंग के पकड़े पहनकर सोने के आदी हो तो तुम्हें प्रतिदिन उन्हीं खास कपड़ों की जरूरत पड़ेगी।किसी- किसी को तब तक नींद नहीं आती है जब तक वह मंत्र जप न करे और तब तक वह नहीं सो सकता है। पुरानी आदतों के साथ व्यक्ति आराम अनुभव करता है, वह सुविधाजनक है।वैसे ही सोचने के ढंग की भी आदतें हैं।प्रतिदिन वही विचार, वही दिनचर्या हो ..तो तुम्हें लगता है कि सब ठीक चल रहा है और वही समस्या है। तुम्हारा फर्नीचर महज कचरा नहीं है जिसे फेंक दिया जाए, क्योकि तुमने उसमें बहुत धन खर्च
किया है।इससे कोई अचानक पागल हो जा सकता है, क्योंकि उसके पुरानी आदतें /बाधा नहीं रहे ;जिससे अतीत तुरंत विदा हो जाता है।तुम या तो अतीत में रहते हो या भविष्य में और भविष्य को तो हम सदा अतीत की भाषा में सोचते हैं इसलिए तुम भविष्य की भी नहीं सोच सकते।सिर्फ वर्तमान बचा रहता है, और तुम कभी वर्तमान में नहीं रहते । 11-इसलिए जब तुम पहली बार मात्र वर्तमान में होओगे तो तुम्हें लगेगा कि तुम पागल हो गए हो।यही कारण है कि Quick Response विधियां उपयोग में नहीं लायी जाती हैं। और वे तभी उपयोग में लायी जाती हैं जब जब तुमने ध्यान के लिए अपना समूचा जीवन अर्पित कर दिया हो।इसलिए क्रमिक विधियां ही अच्छी हैं। वे लंबा समय लेती हैं, लेकिन तुम धीरे -धीरे
आकाश के आदी हो जाते हो और तुम्हारा फर्नीचर धीरे -धीरे हट जाता है। इसलिए सामान्य विचार, मनन, एकाग्रता और ध्यान, ये चार चरण हैं ।साधारण विचार से मनन पर जाना , मनन से एकाग्रता पर जाना एक क्रमिक विधि है। और एकाग्रता से ध्यान पर छलांग लगाना अच्छा है। तब तुम जमीन को प्रत्येक कदम पर अनुभव करते हुए धीरे -धीरे गति करते हो।और तभी तुम प्रत्येक कदम में जड़ जमाते हुएअ गला कदम शुरू करने/ संतुलित करने की सोचते हो।और तब बात आती है समाधि की ...यह छलांग नहीं , एक क्रमिक विकास है।
...SHIVOHAM...