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आकस्मिक धन का योग विशेष/ज्योतिष शास्त्र में नवग्रहो के राजा सूर्य का महत्व और सूर्य से बनने वाले योग

आकस्मिक धन जैसे पृथ्वी में गड़ा हुआ खजाना हो या जुआ अथवा लाटरी इत्यादि से धन प्राप्ति का विचार पंचम स्थान से किया जाता है यदि पंचम स्थान पर चन्द्रमा और उस पर शुक्र की दृष्टि हो तो जातक को प्रायः लाटरी से अकस्मात् धन मिलता है.

चतुर्थ स्थान को पाताल स्थान भी कहते हैं भूमि में गड़े हुए धन का बोध इससे होता है यदि ग्यारहवें घर का स्वामी द्वितीय के स्वामी के साथ चतुर्थ भाव में बैठा हो और चौथे भाव का स्वामी शुभ ग्रह के साथ हो अथवा शुभ राशि में हो तो भूमि में दबी या भूमी से सम्पत्ति प्राप्त होती है.

यदि दूसरे भाव का स्वामी, चौथे भाव का स्वामी शुभ ग्रहों के साथ नवम् भाव की शुभ राशि में हो तो जातक को भूमि में दबी संपत्ति मिलती है.

यदि लग्नेश दूसरे भाव में, द्वितीयेश ग्यारहवें में और एकादशेश लग्न में हो तो भी भूगर्भ की सम्पत्ति प्राप्त होती है.

यदि एकादशेश चतुर्थ भाव में शुभ ग्रह के साथ हो, तो भी भूमि में दबी संपत्ति प्राप्त होती है.


माता द्वारा धन प्राप्ति योग:-

चतुर्थ भाव व चन्द्रमा से माता का विचार किया जाता है यदि इसका द्वितीय स्थान व द्वितीयेश से कोई संबंध हो तो जातक माता से धन प्राप्त करता है.

यदि द्वितीयेश और चतुर्थेश लग्न में बैठें हों, अथवा द्वितीयेश और चतुर्थेश एक दूसरे को देख रहे हों या एक साथ बैठे हों तो माता द्वारा धन प्राप्ति होती है.


भाइयों द्वारा धन प्राप्ति योग:-

तृतीय और एकादश भाव से भाईयों का अनुमान होता है मंगल भाई कारक ग्रह है यदि इनका संबंध द्वितीय, नवम व चतुर्थ से हो तो भाईयों द्वारा धन प्राप्ति का योग बनता है.

यदि द्वितीय का स्वामी तृतीय के स्वामी के साथ हो अथवा मंगल के साथ हो अथवा मंगल की दृष्टि उस पर पड़ रही हो तो जातक को भाई-बहिनों द्वारा धन की प्राप्ति होती है.

यदि लग्नेश और द्वितीयेश तीसरे भाव में बैठे हों और उन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ती हो और वे तृतीयेश के साथ हों अथवा उससे देखे जा रहे हों तो जातक को भाईयों से धन प्राप्त होता है.


पुत्र द्वारा धन की प्राप्ति योग:-

सूत्र -. पंचम स्थान पुत्र स्थान है, और बृहस्पति पुत्र कारक है जब नवमेश, द्वितीयेश आदि ग्रहों का पंचम, पंचमेश व बृहस्पति से संबंध होता है तो पुत्र द्वारा धन प्राप्ति का योग होता है; परंतु इसमें लग्नेश का बली होना अति आवश्यक है इसके बिना जातक धन का अधिकारी नहीं हो सकता.

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ज्योतिष शास्त्र में नवग्रहो के राजा सूर्य का महत्व और सूर्य से बनने वाले योगो का फल


भारतीय सनातन पद्धति में ज्योतिष शास्त्र नौ ग्रहों पर आधारित है

और नवग्रह सूर्य पर आधारित हैं और सूर्य ऊर्जा पर,प्रकाश पर,आधारित है सूर्य को नवग्रहों का राजा माना गया है

सूर्य के पास ज्योतिष में पिता का, राजकीय सेवा का, आंखों का,मान सम्मान का, हड्डियों का,हृदय का, कार्यभार रहता है.

जिस किसी की भी जन्म पत्रिका में सूर्य अच्छा होगा तो उन्हें इन समस्त वस्तुओं का लाभ प्राप्त होगा.

और जिसकी पत्रिका में सूर्य अच्छा नहीं होगा तो उन्हें इन्हीं चीजों से समस्याएं उत्पन्न होने लग जाती है.

शरीर में पाचन तंत्र ग्रंथियां,हड्डियां,सूर्य ही मजबूत करता है और सूर्य ही कमजोर करता है.

तो एक बार किसी ज्योतिष के विद्वान व्यक्ति से अपनी पत्रिका में सूर्य का अवलोकन कराये कि सूर्य है कैसा.....!

वैसे तो ज्योतिष शास्त्र में सूर्य से अनेक योगों का निर्माण होता है.

लेकिन मुख्य रूप से प्रसिद्ध और सफलता पूर्ण 3,4, योग ही प्रचलित हैं.


वेशि योग -

वेशि योग सूर्य जहां बैठा हो उसके अगले भाव में कोई भी ग्रह बैठा हो तो उसे वेशि योग कहा जाता है.

लेकिन इसका पूर्ण फल चाहिए है तो चंद्रमा,राहु,केतु,को छोड़कर किसी अन्य ग्रह फल देने में सामर्थवान होते हैं.

अगर ये योग आप की कुंडली मे है और अगले भाव में चंद्र,राहु,केतु,नहीं है तो समझे आप अर्श से फर्श पर पहुंचने की शक्ति रखते हैं.

अच्छा वक्ता बनने की शक्ति रखते हैं अच्छा धनी बनने की शक्ति रखते हैं.


वाशी योग-

वाशी योग में सूर्य से पीछे वाले यानि 12वे भाव में राहु,केतु,चंद्र को छोड़कर के कोई भी ग्रह बैठा हो तो वाशी का निर्माण होता है.

अगर आपकी कुंडली में यह योग है तो ऐसे जातक बुद्धिमान,धनवान,शान,और शौकत का जीवन यापन करने वाले और विदेश से धन उपार्जन करने वाले होते हैं.


उभयचारी योग-

सूर्य से आगे भी ग्रह हो और सूर्य से पीछे भी ग्रह हो तथा सूर्य मध्य में हो तो उभयचारी योग बनता है.

किंतु चंद्र,राहु,और केतु को छोड़कर के अगर यह योग आपकी पत्रिका में है

तो ऐसे जातक बहुत गरीब घर से होते हुए भी बहुत ही सफलतम व्यक्तियों में माने जाते है.

बहुत छोटी सी जगह से होकर के भी बहुत ऊंके स्थान बैठते हैं.


बुधादित्य योग-

सूर्य और बुध किसी भी भाव मे एक साथ बैठे हो तो बुधादित्य योग होता है.

इसमें वाणी में प्रखरता अच्छे वक्ता के लक्षण,अच्छे नेता के लक्षण,अच्छे शिक्षक के लक्षण,होते हैं।

अगर आपकी कुंडली में सूर्य अच्छा है तो आप इन वस्तुओं का लाभ ले सकते हैं.

और अगर इन वस्तुओं का लाभ नहीं ले पा रहे हैं तो कहीं ना कहीं आपका सूर्य पीड़ित है कमजोर है.

तो उसे ठीक करे या कराये रविवार का व्रत रखे,सूर्य भगवान को अर्घ्य दें, माणिक्य रत्न को धारण करें.

और ॐ घृणि सूर्याय नमः

का नित्यप्रति 1 माला का जाप करें.

यदि इतने पर भी आराम ना मिले आपको लाभ ना मिले तो किसी विद्वान ब्राह्मण से 7000 की संख्या को चतुरगुणा कलयुग के नियम अनुसार जाप कराएं और सूर्य को बल प्रदान कराये.

अगर आपके कुछ काम खराब हो जाए तो परेशान होने की जरूरत नहीं है

ग्रंथों के अनुसार, यह सूर्य के कमजोर होने के कारण है ऐसी स्थिति में, आपको अपने सूर्य (सूर्य) को मजबूत करने की आवश्यकता है.

जो व्यक्ति हर सुबह सूर्य देव (सूर्य देव) को भिक्षा देता है, उसको कभी कुछ नहीं होगा यदि आप हर दिन ऐसा नहीं कर सकते हैं, तो रविवार के दिन ये चीजें करें.

क्योंकि रविवार सूर्यदेव का दिन माना जाता है तांबे के कमडल में चावल, लाल फूल और लाल मिर्च के कुछ दाने डालकर सूर्य देव को चढ़ाएं.


ज्योतिष के अनुसार, प्रत्येक ग्रहकी अपनी विशिष्टता है कौन सा ग्रह (ग्रह) मनुष्य को फल देता है यह शास्त्रों की एक विशेषता है इसलिए, हमें यह जानना होगा कि किसी भी दिन क्या नहीं करना चाहिए

रविवार को कोई काम नहीं करना चाहिए इन क्रियाओं को करने से सौर ग्रह को बुरे प्रभावों का सामना करना पड़ेगा इसलिए सूर्यदेव हमेशा कुछ बातों का ध्यान रखकर रविवार का आशीर्वाद दे सकते हैं।


रविवार (रावी)

सामर्थ्य अनुसार तांबे के बर्तन, लाल कपड़ा, गेहूं, गुड़ और लाल चंदन का दान करें.


बिना स्नान किए कभी भी सूर्य भगवान को जल न चढ़ाएं.


सूर्य देव को जल चढ़ाने के लिए आप रोली या लाल चंदन और लाल फूल मिलाकर जल चढ़ा सकते हैं.


सूर्य देव को प्रसाद चढ़ाते समय स्टील, चांदी, कांच और प्लास्टिक के बर्तनों का प्रयोग न करें.


अगर संभव हो तो जल चढ़ाते समय इस मंत्र (रवि मंत्र) का जाप करें …


ओम सूर्य नम:


ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः

....SHIVOHAM ....

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