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मां कामाख्या मन्दिर के अनिवार्य दर्शनीय स्थल...


मां कामाख्या शक्तिपीठ;- 1-मां के सभी शक्ति पीठों में से कामाख्या शक्तिपीठ को सर्वोत्तम माना गया है।अम्बूवाची योग पर्व के दौरान मां भगवती के गर्भगृह के कपाट स्वत ही बंद हो जाते हैं और उनका दर्शन भी निषेध हो जाता है। इस पर्व की महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पूरे विश्व से इस पर्व में तंत्र-मंत्र-यंत्र साधना हेतु सभी प्रकार की सिद्धियाँ एवं मंत्रों के पुरश्चरण हेतु उच्च कोटियों के तांत्रिकों-मांत्रिकों, अघोरियों का बड़ा जमघट लगा रहता है। तीन दिनों के उपरांत मां भगवती की रजस्वला समाप्ति पर उनकी विशेष पूजा एवं साधना की जाती है।हिंदु धर्म में अगर महिला को पीरिएड्स होते हैं तो वो कोई भी शुभ या धर्म का काम नहीं कर सकती। लेकिन यहां पर पीरिएड के समय में भी महिलाएं मंदिर के अंदर जा सकती हैं माता सती का मासिक धर्म वाला कपड़ा बहुत पवित्र माना जाता है। इस कपड़े को अम्बुवाची कपड़ा कहा जाता है। इसे ही भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है। कामाख्या मंदिर तीन हिस्सों में बना है। पहला हिस्सा सबसे बड़ा है और इस हिस्से में हर व्यक्ति नहीं जा सकता। दूसरे हिस्से में माता के दर्शन होते हैं जहां एक पत्थर से हर समय पानी बहता रहता है। 2-सती स्वरूपिणी आद्यशक्ति महाभैरवी कामाख्या तीर्थ विश्व का सर्वोच्च कौमारी तीर्थ भी माना जाता है। इसीलिए इस शक्तिपीठ में कौमारी-पूजा अनुष्ठान का भी अत्यन्त महत्व है। यद्यपि आद्य-शक्ति की प्रतीक सभी कुल व वर्ण की कौमारियाँ होती हैं। किसी जाति का भेद नहीं होता है। इस क्षेत्र में आद्य-शक्ति कामाख्या कौमारी रूप में सदा विराजमान हैं।इस क्षेत्र में सभी वर्ण व जातियों की कौमारियां वंदनीय हैं, पूजनीय हैं। वर्ण-जाति का भेद करने पर साधक की सिद्धियां नष्ट हो जाती हैं। शास्त्रों में वर्णित है कि ऐसा करने पर इंद्र तुल्य शक्तिशाली देव को भी अपने पद से वंचित होना पड़ा था। 3-कामाख्या मंदिर के दर्शन का समय भक्तों के लिए सुबह 8:00 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक और फिर दोपहर 2:30 बजे से शाम 5:30 बजे तक शुरू होता है। सामान्य प्रवेश नि: शुल्क है, लेकिन भक्त सुबह 5 बजे से कतार बनाना शुरू कर देते हैं, इसलिए यदि किसी के पास समय है तो इस विकल्प पर जा सकते हैं।आम तौर पर इसमें 3-4 घंटे लगते हैं। वीआईपी प्रवेश की एक टिकट लागत है, जिसे मंदिर में प्रवेश करने के लिए भुगतान करना पड़ता है, जो कि प्रति व्यक्ति रुपए 501 की लागत पर उपलब्ध है। इस टिकट से कोई भी सीधे मुख्य गर्भगृह में प्रवेश कर सकता है और 10 मिनट के भीतर पवित्र दर्शन कर सकता है। 4-गुवाहाटी शहर का यह एक हिस्सा, अलग-अलग मंदिरों का एक प्रमुख मंदिर है, जो शक्तिवाद के दस महाविद्याओं को समर्पित है: माता काली,माता तारा, माता सोदशी,माता भुवनेश्वरी,माता त्रिपुरभैरवी,माता छिन्नमस्ता, माता धूमावती, माता बगलामुखी, माता मातंगी और माता कमला ।इनमें माता त्रिपुरसुंदरी, माता मातंगी और माता कमला मुख्य मंदिर के अंदर रहते हैं जबकि अन्य सात मंदिर मुख्य मंदिर से हटकर उसी नीलाचल पहाड़ी पर स्थित हैं।नीलांचल पर्वत तीन भाग में विभक्त है। जहां भुवनेश्वरी पीठ है, वह ब्रह्मपर्वत कहलाता है, मध्य भाग में महामाया पीठ है, वह शिव पर्वत तथा पश्चिमी भाग विष्णु या वाराह पर्वत है। 5-दस महाविद्या मंदिर;- 07 POINTS;- 1-माता काली महाविद्या;- कामाख्या मंदिर के पहले ही 10 महाविद्याओं में से सर्वप्रथम माता काली का का मंदिर है । 2-माता तारिणी महाविद्या;- माता काली के मंदिर के बाद माता तारिणी का मंदिर है । माता तारिणी का मुख्य मंदिर गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र के पास है। 3-माता त्रिपुर सुंदरी,माता कमला और माता मातंगी महाविद्या;- कामाख्या मंदिर के कैंपस में ही महाविद्या माता कमला ,माता त्रिपुर सुंदरी और माता मातंगी का मंदिर है । 4-माता त्रिपुर भैरवी और माता धूमावती महाविद्या;- मंदिर के बैक साइड के नीचे उतरने पर माता त्रिपुर भैरवी और माता धूमावती का मंदिर है । 5-भुवनेश्वरी महाविद्या मंदिर;- भुवनेश्वरी मंदिर गुवाहाटी में सबसे लोकप्रिय प्राचीन मंदिरों में से एक है, जो देवी नीलाचल पहाड़ियों के शीर्ष पर स्थित है।पत्थरों से बने इस मंदिर की संरचना कामाख्या मंदिर से काफी मिलती-जुलती है और इस स्थान पर आध्यात्मिक वातावरण और प्राकृतिक सुंदरता का एक संयोजन है। 6-माता बगुलामुखी महाविद्या मंदिर;- माँ भगवती बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है। विश्व में इनके सिर्फ तीन ही महत्वपूर्ण प्राचीन मंदिर हैं, जिन्हें सिद्धपीठ कहा जाता है। यह मन्दिर उन्हीं से एक बताया जाता है।यह मंदिर अत्यंत चमत्कारिक भी है। इस मन्दिर में विभिन्न राज्यों से तथा स्थानीय लोग भी एवं शैव और शाक्त मार्गी साधु-संत तांत्रिक अनुष्ठान के लिए आते रहते हैं। यहाँ माता बगलामुखी मंदिर के अतिरिक्त 10 महाविद्या मंदिर भी हैं। 7-माता छिन्नमस्ता महाविद्या;- माता छिन्नमस्ता महाविद्या का मंदिर कामाख्या मंदिर के कैंपस में जिस स्थान पर खिचड़ी आदि प्रसाद का वितरण किया जाता है ;उसी स्थान के नजदीक ही बना हुआ है। 6-आदि शंकराचार्य का मंदिर;- कामाख्या मंदिर के कैंपस में ही आदिशंकराचार्य का मंदिर है जहां पर उन्होंने माता कामाख्या के लिए आद्या स्त्रोत लिखा था । 7-कोटि लिंगम और परशुराम कुंड;- कामाख्या मंदिर के अपोजिट साइड में ब्रह्मपुत्र के नजदीक कोटि लिंगम गुफा और परशुराम कुंड है।यहां पर परशुराम की ध्यान स्थली और गुफा के अंदर एक शिवलिंग है। परशुराम कुंड में एक करोड़ शिवलिंग थे। उन्होंने एक करोड़ शिवलिंग को एक लिंग बना दिया। इसलिए कहा जाता है कि इस शिवलिंग की पूजा करने से एक करोड़ शिवलिंग की पूजा करने का फल प्राप्त होता है। इसी कुंड में परशुराम ने अपने फरसे को माता कामाख्या को समर्पित कर दिया था।इस गुफा में एक पतली झिरी जैसी है ;जिसमें पार निकलने से माना जाता है कि जो इस गुफा द्वार को पार करेगा उसके चारों पुरुषार्थ सिद्ध हो जाते हैं।परंतु इस गुफा की पतली झिरी से निकलना असंभव ही दिखता है परंतु भगवान की कृपा होती है तो मोटे, पतले सभी निकल जाते हैं।दूसरे द्वारपाल गणेश की ओर जाने का रास्ता भी कोटिलिंगम से ही होकर जाता है ।कोटिलिंगम से 500 सीढ़ियां चढ़ने के बाद आप यहां पर पहुंच जाते हैं। 8-नीलांचल पर्वत स्थित माता कामाख्या मंदिर के चार द्वारपाल ;- 02 POINTS;- 1-माता कामाख्या के बारे में किंवदंती है कि घमंड में चूर असुरराज नरकासुर एक दिन मां भगवती कामाख्या को अपनी पत्नी के रूप में पाने का दुराग्रह कर बैठा था। कामाख्या महामाया ने नरकासुर की मृत्यु को निकट मानकर उससे कहा कि यदि तुम इसी रात में नील पर्वत पर चारों तरफ पत्थरों के चार सोपान पथों का निर्माण कर दो एवं कामाख्या मंदिर के साथ एक विश्राम-गृह बनवा दो, तो मैं तुम्हारी इच्छानुसार पत्नी बन जाऊँगी और यदि तुम ऐसा न कर पाये तो तुम्हारी मौत निश्चित है।गर्व में चूर असुर ने पथों के चारों सोपान प्रभात होने से पूर्व पूर्ण कर दिये और विश्राम कक्ष का निर्माण कर ही रहा था कि महामाया के एक मायावी कुक्कुट (मुर्गे) द्वारा रात्रि समाप्ति की सूचना दी गयी, जिससे नरकासुर ने क्रोधित होकर मुर्गे का पीछा किया और ब्रह्मपुत्र के दूसरे छोर पर जाकर उसका वध कर डाला।यह स्थान आज भी `कुक्टाचकि' के नाम से विख्यात है। बाद में मां भगवती की माया से भगवान विष्णु ने नरकासुर असुर का वध कर दिया। 2-माता कामाख्या मंदिर की चारों दिशाओं में चार द्वारपाल हैं।दक्षिण द्वार में बाल हनुमान है और पूरब ,पश्चिम, उत्तर, द्वार पर गणेश जी द्वारपाल है।नीलाचल पहाड़ी में प्रवेश के पहले ही पहले पूरब गणेश द्वारपाल जी का मंदिर है।दूसरे द्वारपाल गणेश कोटिलिंगम के पास हैं।दक्षिण द्वारपाल में बाल हनुमान मंदिर हैं। नीचे पहाड़ी में उतर कर पांडवों द्वारा बनवाया गया मंदिर है। जहां पर श्री कृष्ण द्वारा रखा गया सुदर्शन चक्र का निशान भी है।बाल हनुमान तक जाने का मार्ग बहुत ही दुर्गम है और जंगल से होकर जाता है।इसलिए वहां पर जाना बहुत ही कठिन है।परंतु पांडव मंदिर में सुदर्शन चक्र को स्पर्श करते ही दिव्य अनुभूतियां होती हैं।चौथे द्वारपाल का रास्ता माता धूमावती मंदिर के पास से है।माता धूमावती मंदिर के पास से दो तरफ जाने की सीढ़ियां हैं।एक तरफ की सीढ़ियां माता त्रिपुर भैरवी तरफ जाती हैं।और दूसरी तरफ की सीढ़ियां पश्चिम द्वारपाल यम गणेश की ओर जाती हैं। परंतु अब एक रोड भी बन गई है।यदि आप रोड से जाएंगे तो सीढ़ियां बहुत कम हो जाएंगी। 9-मेखेलउजा/नरकासुर मार्ग;- जब नरकासुर मंदिर के लिए सीढ़िया बनवा रहा था और उसका यह काम पूरा ही होने वाला था कि मां ने उसके साथ एक चाल खेली और एक मुर्गा लेकर आई और उसे यह कहा कि सुबह होने पर आवाज करें। जब मुर्गा ने आवाज की तो दानव को लगा कि सुबह हो गई हैं, वह अपना काम आधा छोड़कर चला गया। जब नरकासुर को यह पता लगा कि यह महज एक चाल थी तो वह बहुत गुस्सा हुआ और मुर्गे के पीछे भाग कर उसे मार डाला, जिस जगह पर मुर्गे को मारा उस जगह को कुक्टाचकि' के नाम से जाना जाने लगा। यह अधूरी सीढ़ी नरकासुर ने बनाई थी। पर्वत के नीचे से ऊपर जाने वाले मार्ग को आज भी मेखेलउजा पथ के नाम से जाना जाता है। ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;; गुवाहाटी के दर्शनीय स्थल;- 1-भैरव के दर्शन करना अनिवार्य ;- कामाख्या मंदिर से कुछ दूरी पर उमानंद भैरव का मंदिर है। उमानंद भैरव ही इस शक्तिपीठ के भैरव हैं। यह मंदिर ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में टापू पर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि इनके दर्शन के बिना कामाख्या देवी की यात्रा अधूरी मानी जाती है। इस टापू को मध्यांचल पर्वत के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यहीं पर समाधिस्थ सदा शिव को कामदेव ने कामबाण मारकर आहत किया था और समाधि जाग्रत होने पर शिव ने अपने तीसरे नेत्र से उन्हें भस्म किया था। भगवती के महातीर्थ नीलांचल पर्वत पर ही कामदेव को पुनः जीवनदान मिला था, इसलिए ये इलाका कामरूप के नाम से भी जाना जाता है। आद्य-शक्ति महाभैरवी कामाख्या के दर्शन से पूर्व महाभैरव उमानंद, जो कि गुवाहाटी शहर के निकट ब्रह्मपुत्र 'नद' के मध्य भाग में टापू के ऊपर स्थित है, का दर्शन करना आवश्यक है। यह एक प्राकृतिक शैलदीप है, जो तंत्र का सर्वोच्च सिद्ध सती का शक्तिपीठ है। आइलैंड पर पहुंचते ही आपको मंदिर का प्रवेश द्वार दिखने लगेगा। कुछ सीढ़यां चढ़ने के बाद आप उमानंद मंदिर के परिसर में पहुंच जाएंगे। यहां पर दर्शन करने के बाद जैसे ही आप मंदिर से बाहर निकलेंगे आपको यहां पर आपको दो और मंदिरों के दर्शन करने को मिलेंगे यह मंदिर भी शिव जी के ही दूसरे स्‍वरूपों के हैं। यहां पर आपको शिव जी के बद्रीनाथ और महाकालेश्‍वर मंदिर के दर्शन करने को मिलेंगे। 2-उग्रतारा मंदिर;- शहर के पूर्वी भाग में उज़ान बाज़ार में उग्रतारा मंदिर एक महत्वपूर्ण शक्तिपीठ मंदिर है । मान्यतानुसार माता की नाभि यहां गिरी थी।देवी काली को समर्पित यह मंदिर उजान बाजार स्थित जोर पुखुरी के पश्चिमी छोर पर स्थित है। उगरातारा मंदिर असम में धार्मिक आस्था का एक महत्वपूर्ण केन्द्र है। चूंकि यह गुवाहाटी शहर के बीचों-बीच स्थित है, इसलिए यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। ऐसा माना जाता है कि पार्वती की एक अन्य रूप देवी उग्रतारा इसी मंदिर में रहती है। मंदिर के गर्भ गृह में देवी की कोई प्रतिमा नहीं है। इसके स्थान पर पानी से भरा एक छोटा सा गड्ढा है जिसे देवी समझ कर उसकी पूजा-अर्चना की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस मंदिर का संबंध बौद्ध धर्म से भी है, जिससे बौद्ध धर्म के लोग भी इस मंदिर को काफी पवित्र मानते हैं। 3-शुकेश्वर मंदिर; अहोम राजवंश के पवित्र मंदिरों में से एक गुवाहाटी शुकेश्वर मंदिर है, जो भगवान शिव को समर्पित है।शुकेश्वर मंदिर सुरम्य स्थान के बीच एक पहाड़ी पर स्थित है। अहोम राजा प्रमत्त सिंह द्वारा 1744 में निर्मित, इस मंदिर का असम के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है।यह शिवलिंग गुरु शुक्राचार्य के द्वारा स्थापित है।ऐसा माना जाता है कि शुक्राचार्य के द्वारा स्थापित शिवलिंग के द्वारा ही मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।ब्रह्मपुत्र नदी के पास होने के कारण,आप नदी के क्षितिज पर सूर्यास्त का दृश्य देख सकते हैं। 4-वशिष्ठ आश्रम ;- असम राज्य के गुवाहाटी शहर के दक्षिण-पूर्वी छोर पर स्थित बसिष्ठ आश्रम मंदिर संध्याचल पर्वत के बेलटोला क्षेत्र में है। यह एक प्राचीन मंदिर है, जो भगवान शिव को समर्पित है।वैदिक युग में महान महर्षि वशिष्ठ द्वारा स्थापित गुवाहाटी से कुछ किलोमीटर दूर शिव मंदिर के रूप में मान्यता प्राप्त एक शक्तिपीठ है ऐसा माना जाता है कि इस आश्रम की स्थापना महर्षि वसिष्ठ ने की थी, जिन्होंने अपने जीवन का अंतिम समय यहां बिताया था।इस मंदिर का इतिहास एक पुराना वैदिक काल माना जाता है। जिस दिन ऋषि वसिष्ठ ने मोक्ष प्राप्त किया..निर्वाण दिवस, इस मंदिर में बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है । 6-नवग्रह मंदिर ;- ब्रह्मपुत्र नदी चित्रशाला पहाड़ी पर स्थित यह नवग्रह मंदिर, हमारे सौर मंडल के नौ ग्रहों को समर्पित, प्रत्येक मंदिर नवग्रह पहाड़ी की चोटी पर स्थित विभिन्न पत्थरों द्वारा खूबसूरती से बनाया गया है।ये ग्रह लोगों के भाग्य को प्रभावित करते हैं अत: उन्हें भगवान माना जाता है और उनकी पूजा की जाती है।माना जाता है कि सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मा के द्वारा नवग्रह की रचना इसी स्थान पर हुई थी।नवग्रह का अर्थ है नौ ग्रह। नौ ग्रहों को प्रतिबिंबित करने के लिए मंदिर के अंदर नौ शिवलिंग स्थापित किए गए हैं। प्रत्येक शिवलिंग अलग-अलग रंग के कपड़े से ढका हुआ है। गुवाहाटी प्रागज्योतिषपुर का पुराना नाम मंदिर के खगोलीय और ज्योतिषीय केंद्र के कारण उत्पन्न हुआ था।ऐसा माना जाता है कि नवग्रह मंदिर का निर्माण 18 वीं शताब्दी में अहोम राजा राजेश्वर सिंह और बाद में उनके बेटे रुद्र सिंह ने करवाया था। मंदिर परिसर में बना सिलपुखुरी तालाब भी यहाँ का प्रमुख आकर्षण है और कहा जाता है कि यह पूरे साल भरा रहता है। 7-भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग ..डाकिनी पर्वत ;- भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग गुवाहाटी ... पमोही के पास डाकिनी पहाड़ी (जिसे दैनी पहाड़ भी कहा जाता है) पर स्थित है ...द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक भीमाशंकर की आराधना के लिए भक्त महाराष्ट्र के पुणे नगर में स्थित मानकर उनके दर्शन और आराधना करने जाते हैं। जबकि भीमाशंकर के महाराष्ट्र में होने पर असम के लोग सवाल उठाते हैं। इनका कहना है महाराष्ट्र में भीमाशंकर असली ज्योतिर्लिंग नहीं है।इनका दर्शन पाना हो तो कामरूप के मनोहारी पर्वतों और वनों के बीच चलते हुए वहां की निर्जन घाटी में पहुंच कर देखा जा सकता है कि भोलेनाथ अपने भव्य रूप में पहाड़ी नदी के बीच में किस तरह विराजे हैं।गुवाहाटी के मनोहारी पर्वतों में जहां भीमाशंकर स्थित है वहां चौबीसों घंटे वहां उनका जल से अभिषेक होता रहता है। वर्षा ऋतु में तो वे पूरी तरह नदी में डुबकी लगा लेते हैं। हाँ एक छोटे से पहाड़ी श्रोत के मध्य परमेश्वर शिव का प्राकृतिक लिंग शोभनीय है | एक छोटी सी पहाड़ी नदी जिसका निरंतर जलाभिषेक करती हुई एक झरने से ब्रह्मपुत्र की ओर बहती है | बरगद की जटाओं ने शिव लिंग को एक प्राकृतिक मंदिर का स्वरूप दे रखा है | उनकी सेवा में जो पुजारी लगे हैं वे जनजातीय हैं जो सैकड़ों वर्षों से भीमाशंकर महादेव की निष्ठा से चुपचाप पूजा-अर्चना करते रहते हैं।जैसा यह स्थान है वैसा ही वर्णन शिवपुराण में मिलता है।यहां काशी से लेकर देशभर से संत और शिवभक्त आकर साधना करते हैं। भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के महाराष्ट्र में होने का वहां कोई उल्लेख नहीं है ।लोगो का विश्वास है कि मंदिर बनाने की कोई भी कोशिश अचानक नदी में बाढ़ आने से विफल हो जाती है | मंदिर बनाने के कई प्रयास खँडहर के रूप में चारो तरफ बिखरे पड़े हैं 8--पांडुनाथ मंदिरपांडु नगरी का नाम महाभारत काल के दौरान के महाराज पांडु के नाम पर रखा गया हैं। महाराज पांडु पांचो पांडव के पिता थे।यह स्थान शहर के टीला हिल्स में पांडुनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हैं। पांच पांडवो का नेतृत्व करते हुए पांच गणेश मूर्ती यहाँ मिलती हैं। माना जाता हैं कि निर्वासन के समय पांचो भाइयों ने गणेश के रूप में यहाँ शरण ली थी।


...SHIVOHAM....


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