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कुण्डलिनी शक्ति जागरण

कुंडलिनी शक्ति ;-

कुंडलिनी शक्ति कोई रहस्यमयी या अलौकिक शक्ति नहीं है बल्कि यह हमारे ही अस्तित्व की केंद्रीय ऊर्जा है। कुण्डलिनी हमारे शरीर के अंदर मौजूद एक केमिकल ऊर्जा है। जो संसार के सभी जड़ या चेतन प्राणियों में अलग-अलग रूपों और गुणों के साथ विद्यमान रहती है। हमारे शरीर में मौजूद यही ऊर्जा शक्ति हमारे जीवन का आधार है।जो हमारे अंदर अपने प्राकृतिक रूप में मौजूद हैं। यह ऊर्जा संसार के सभी प्राणियों में जन्मजात पायी जाती है। परन्तु मनुष्यों में यह सब प्राणियों की अपेक्षा अधिक जाग्रत होती है। हांलांकि सभी मनुष्य में भी यह अलग-अलग मात्रा में जागृत होती है। यानी यह ऊर्जा किसी मनुष्य में कम और किसी मनुष्य में ज्यादा जागृत हो सकती है। परन्तु जब किसी मनुष्य में यह पूर्ण रूप से जाग जाती है तो उसके अंदर अनेकों चमत्कारी शक्तियां आ जाती है। वह चाहे तो उन शक्तियों का प्रयोग करके कुछ भी कर सकता हैं अथवा चाहे तो परमात्मा-मय भी हो सकता है। कुण्डलिनी ऊर्जा दिखाई नहीं देती फिर भी ज्ञानीयों एवं योगियों ने इसकी कल्पना सर्पाकार में की है। जो कुण्डलिनी शक्ति के रूप में साढ़े तीन कुंडल लगाए हमारे मूलाधार चक्र में सो रहा है। उसका मुंह नीचे की ओर झुका हुआ है। इसी ऊर्जा की शक्ति से हम अपने जैसे अन्य मनुष्यों को उत्पन्न कर पाते हैं। इसी ऊर्जा की शक्ति से हमारा जीवन चल रहा है।

हमारा शरीर एक चार्जर स्वरूप है। हम जो चीजें भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं, उन्हें हमारा शरीर ऊर्जा में परिवर्तित करके कुंडलिनी में संचित कर लेता है। जिसे हमारा मस्तिष्क हमारे शरीर में मौजूद 72000 नाड़ियों के द्वारा शरीर के अलग-अलग हिस्सों में पहुंचा देता है। इससे हमारे शरीर का काम आराम से चल जाता है।लेकिन जब समय के साथ हमारी जरूरतें और इच्छाएं बढ़ती गई और हमें ज्यादा ऊर्जा की जरूरत महसूस होने लगी। तब हमने इसी ऊर्जा के द्वारा अपने बौद्धिक क्षमता का विकास किया। बौद्धिक क्षमता विकसित होने के कारण हमारे मन में तरह-तरह के सवाल उठने लगे।जैसे- हम कौन हैं? हमें किसने बनाया है ? इस संसार को किसने बनाया और वह हमें कैसे मिल सकता है, इत्यादि।‌ हममें से कुछ लोग जिनकी बुद्धि ज्यादा विकसित थी ; वे इन सवालों के जबाव खोजने में लग गए। इसी खोज के दौरान उन्हें पता चला कि ब्रह्मांड की सारी शक्तियां हमारे शरीर में सुप्तावस्था में मौजूद है।हमारे मस्तिष्क में सहस्त्रार चक्र के रूप में एक परमाणु रिएक्टर मौजूद हैं जो ब्रह्मांडीय ऊर्जा से डायरेक्ट जुड़ा हुआ है। इसके साथ ही वह छः अन्य चक्रों के साथ हमारी कुंडलिनी से जुड़ा हुआ है ;जो ब्रह्मांडीय ऊर्जा को रसायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करके हमारे मूलाधार चक्र में स्थित कुंडलिनी में स्त्रावित कर रहा है।


यह समस्त ब्रह्माण्ड केवल और केवल.. ऊर्जा है। हम और हमारी ये दुनिया ...ऊर्जा के ही अलग-अलग रूप है ...बाकी और कुछ भी नहीं है। तो धीरे-धीरे हमे पता चल गया कि यदि हम इस कुंडलिनी ऊर्जा को पूर्णतः जागृत करके इसे सहस्त्रार चक्र में मौजूद ब्रह्मांडीय ऊर्जा तक पहुंचा दे। तो हमें उस ब्रह्मांडीय ऊर्जा की समस्त शक्तियां प्राप्त हो सकती है।वास्तव में,आपकी कुण्डलिनी शक्ति मनुष्य की सबसे रहस्यमयी और बेहद शक्तिशाली उर्जा है;जिसके जाग जाने से व्यक्ति पुरुष से परम पुरुष हो जाता है ।परन्तु कुण्डलिनी शक्ति को जगाना कोई आसान काम नहीं है। बड़े-बड़े योगियों की भी उम्र बीत जाती है; तब जा कर कहीं कुण्डलिनी को जगा पाते हैं। किन्तु आप के लिए एक सरल उपाय भी है ;जो इसको जगा कर आपको महापुरुष बना सकती है। अपने गुरु से शक्तिपात ले कर या आशीर्वाद ले कर मंत्र सहित कुण्डलिनी ध्यान करना शुरू करें। कुछ दिनों के प्रयास से ही कुण्डलिनी ऊर्जा अनुभव होने लगेगी।किन्तु इसका एक नियम भी है ..वो ये है की आपको नशों से दूर रहना होगा। मांस मदिरा या किसी भी तरह का नशा पान, तम्बाकू, सिगरेट मदिरा सेवन आदि से बचते हुए ही ये प्रयोग करें, तो सफलता जरूर मिलेगी।



कुंडलिनी शक्ति कैसे जागृत करें ?-

कुंडलिनी जागरण के लिए सर्वाधिक उपयोगी है...तीन विधियां.... ।

पहला...हठयोग;-

कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए सबसे प्रचलित विधि है,हठयोग ।परंतु यह बिल्कुल नास्तिक और प्रकृति विरोधी प्रणाली है। इसमें खतरे भी बहुत है। इस प्रणाली में विभिन्न प्रकार के आसनों और मंत्रों द्वारा कुंडलिनी ऊर्जा को जबरदस्ती जगाया जाता है। दरअसल हमारे शरीर के सातों चक्र तीन प्रमुख नाड़ियों ....इगला पिंगला और सुषुम्ना के द्वारा आपस में जुड़े हुए है। इनमें से सुषुम्ना नाड़ी सबसे प्रमुख है। जो हमारे रीढ़ की हड्डियों के बीच से निकलती है। यह नाड़ी हमारे मुलाधार चक्र में स्थित कुंडलिनी ऊर्जा को‌ हमारे सहस्त्रार चक्र में स्थित बहृमांडीय ऊर्जा से सीधे जोड़ती है। इसी नाड़ी के द्वारा सहस्त्रार चक्र में मौजूद ब्रह्मांडीय ऊर्जा हमारे मुलाधार चक्र में मौजूद कुंडलिनी में गिरती है। साधक इसी नाड़ी के जरिए कुंडलिनी ऊर्जा को ध्यान साधना और तंत्र-मंत्रों के द्वारा बलपूर्वक ऊपर उठा कर ब्रहृमाडीय ऊर्जा से जोड़ने की कोशिश करते हैं।यह बहुत ख़तरनाक और जोखिम भरी प्रक्रिया है। अतः इसे किसी योग्य और अनुभवी गुरु के मार्गदर्शन में ही करना उचित है।

दूसरा ..शक्तिपात;-

दूसरा रास्ता यह है कि कोई सिद्ध गुरु, ‌जिसकी स्वयं की कुंडलिनी जगी हुई हो। वह अपनी शक्ति से शक्तिपात करके आपकी भी कुंडलिनी को जगा दे। परन्तु दिक्कत ये है कि आज के समय में किसी सिद्ध गुरु का मिलना अत्यंत कठिन काम है।

तीसरी विधि है -सहज ध्यान और मंत्र अथार्त कुंडलिनी योग ;-

तीसरा और सबसे आसान विधि है,सहज ध्यान और मंत्र। इसे करने के लिए आपको जंगल या पहाड़ पर नहीं जाना पड़ेगा। आप अपने घर में प्रतिदिन थोड़ा समय निकाल कर इसे कर सकते हैं। सहज ध्यान से धीरे-धीरे आपके अंदर आत्म जागरूकता और समझ पैदा होने लगेगी। जिसके परिणामस्वरूप एक-एक करके आपके सभी चक्र खुलते जायेंगे। और आपकी कुंडलिनी अपने आप जागृत हो जाएगी हालांकि सहज ध्यान से कुंडलिनी ऊर्जा जागृत होने में अधिक समय लगता है। परंतु यह प्रकृति के नियमों के अनूकूल है। अतः इसमें आपको कोई खतरा नहीं है। क्योंकि आपका शरीर धीरे-धीरे खुद को इसके लिए तैयार कर लेता है।इसे ही कुंडलिनी योग कहते हैं।योग का अर्थ है दो का मिलन अथार्त दो विद्याओं ...ध्यान और मंत्र का मिलन।

कुंडलिनी जगाने के लिए सबसे पहले मन का शुद्ध होना आवश्यक है।श्रीराम कुंडलिनी साधक है और रावण भी कुंडलिनी साधक है।दोनों में केवल मन की शुद्धि का ही अंतर है। श्रीराम का मन शुद्ध है और रावण का मन अशुद्ध। तो जो लोग भी अशुद्ध मन से ही कुंडलिनी जगा लेते हैं... उनका विनाश निश्चित है।मन का शुद्धिकरण इतनी आसानी से नहीं होता क्योकि इसके लिए समय चाहिए।परंतु शुद्धिकरण के लिए सबसे पहले आवश्यकता है....निष्ठा की।निष्ठा से ... एकाग्रता की प्राप्ति हो जाती है।एकाग्रता हमें आस्था से जोड़ देती है और फिर आस्था से हमें मार्ग प्राप्त हो जाता है। जब हमें मार्ग प्राप्त हो जाता है ...तो विश्वास हो जाता है। विश्वास से आनंद की प्राप्ति होती है।

तब हम माता, पिता ,गुरु के प्रति , पंच तत्वों के प्रति और ईश्वर ने जो कुछ भी दिया है.. उसके प्रति कृतज्ञ हो जाते है।यहां से मन का शुद्धीकरण प्रारंभ होता है।कृतज्ञता भाव से ईश्वर के प्रति समर्पण आ जाता है और समर्पण से ..आत्मानुभूति की प्राप्ति हो जाती है।इस प्रकार मन के शुद्धीकरण के चार पड़ाव है।निष्ठा से ... एकाग्रता;आस्था से ...रास्ता;विश्वास से ...आनंद और

समर्पण से ..आत्मानुभूति ।अंतिम पड़ाव है प्रेम ...। प्रेम से हमें अद्वैत की प्राप्ति हो जाती है।जो इन चार पड़ाव को पार किए बिना सीधे कुंडलिनी जागरण करने का प्रयास करता है।वह स्वयं ही समस्याओं को नियंत्रण देता है। यह चार पड़ाव समय के साथ ...धीरे-धीरे ही प्राप्त किए जा सकते हैं ।इसके बाद ही हमें अंतिम पड़ाव की प्राप्ति होती है।इस प्रकार कुंडलिनी योग ही सबसे सरल और सुरक्षित तरीका है।रावण भी ने भी इसी विधि से कुंडलिनी साधना की थी।परंतु जैसे ही उसने शिव से लंका में रहने की विनती की और शिव ने नहीं स्वीकार की...। तो बस ...वही से उसका प्रेम समाप्त हो गया।जैसे ही उसका प्रेम समाप्त हुआ, उसकी उल्टी यात्रा प्रारंभ हो गई।प्रेम समाप्त हुआ तो समर्पण समाप्त हो गया।समर्पण समाप्त हुआ तो विश्वास टूट गया। विश्वास टूटा तो आस्था समाप्त हो गई।आस्था समाप्त हुई तो निष्ठा भी समाप्त हो गई और वह अपने विनाश के मार्ग पर चल पड़ा।यही प्रत्येक साधक के साथ होता है।इसी विधि से ही वह कुंडलिनी साधक बनता है लेकिन जैसे ही वह गलती करता है ..उसकी उल्टी गिनती प्रारंभ हो जाती है। रावण से अच्छा कोई दूसरा उदाहरण नहीं हो सकता। हम इन चार पड़ाव को सहज ध्यान और मंत्र की सहायता से पार कर सकते हैं।

क्या है अद्वैत ब्रह्म मंत्र ....NON DUALITY''OM'' MANTRA?-


यह मंत्र है .....ओम सच्चिदएकम ब्रह्म ...


अथवा


Om Sat- chit -ekam -Brahma


'ॐ सत् चित् एकम ब्रह्म ''..यह ब्रह्म मंत्र ही है ...कुण्डलिनी जागरण का मंत्र ..This mantra comprises of 5 words.. Om

meaning .... I am । Sat meaning -Truth/ Pure। Chit meaning- Spiritual mind stuff/Consciousness/शुद्ध चेतना । Ekam meaning- one, without a second/United... साथ/एकजुट । Brahma meaning –This entire cosmos, with all of its contents/Supreme/सर्वोच्च । so meaning of mantra ....‘I am pure consciousness united with the supreme'।

समस्त जगत ब्रह्म के अंतर्गत माना गया है। वेद, शास्त्र मंत्र, तन्त्र, आधुनिक विज्ञान, ज्योतिष आदि किसी भी माध्यम से उसकी परिभाषा नहीं हो सकती! वह गुणातीत, भावातीत, माया, प्रक्रति और ब्रह्म से परे और परम है।"परब्रह्म" का शाब्दिक अर्थ है 'सर्वोच्च ब्रह्म' - वह ब्रह्म जो सभी वर्णनों और संकल्पनाओं से भी परे है।अद्वैत वेदान्त का निर्गुण ब्रह्म भी परब्रह्म है। वैष्णव और शैव सम्प्रदायों में भी क्रमशः विष्णु तथा शिव को परब्रह्म माना गया है।


वह एक ही है... दो या अनेक नहीं है।ब्रह्म से भी परे एक सत्ता है जिसे वाणी के द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता। वेदों में उसे नेति -नेति अथार्त ऐसा भी नहीं --ऐसा भी नही कहा है। वह सनातन है, सर्वव्यापक है, सत्य है, परम है। वह समस्त जीव, निर्जीव ,समस्त अस्तित्व का एकमात्र परम कारण ,सर्वसमर्थ, सर्वज्ञानी है। वह वाणी और बुद्धि का विषय नहीं है ।उपनिषदों ने कहा है कि समस्त जगत ब्रह्म पर टिका है और ब्रह्म परब्रह्म पर टिका है।ओंकार परब्रह्म है।हम जिस ब्रह्माण्ड में रहते है उसमे ओम सर्वव्यापी है अर्थात सभी जगह व्याप्त है| ओम के बिना इस संसार की कल्पना भी नहीं की जा सकती है|ओम ..किसी भी एक देव का नाम या संकेत नहीं है| वास्तव में ,ओम ..तीनों देवो का मिश्रित तत्त्व है|ओम शब्द में "अ" ब्रह्मा का पर्याय है, और इसके उच्चारण द्वारा हृदय में उसके त्याग का भाव होता है |"उ" विष्णु का पर्याय है, इसके उच्चारण द्वारा त्याग कंठ में होता है |तथा "म" रुद्र का पर्याय है ... इसके उच्चारण द्वारा त्याग तालुमध्य में होता है। इन तीनो देवों अथार्त त्रिदेवों के संगम से यह ओम बना है |


....SHIVOHAM...







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