ध्यान... SET 03..ध्यान का तीसरा चरण
ध्यान का तीसरा चरण ...
07 FACTS;-
1-हम जो भी वाणी जानते हैं, वह सब नाद है।केवल एक ही ध्वनि है ब्रह्म के ओम की ..जो बिना किसी Friction/घर्षण के पैदा
होती है। जो भी वाणी हम सुनते हैं, वह सब strokes /आघात से , दो चीजों की bump/टक्कर से , Duality/द्वंद्व से पैदा होती है। अगर आप मंजीरे को टकराते हैं तो आवाज पैदा होती है। अगर दोनों हाथों को टकराते हैं तो ताली पैदा होती है। अगर हवाएं वृक्षों से गुजरती हैं, तो सरसराहट पैदा होती है। अगर कोई बोल रहा है तो कंठ टक्कर देता है, तो वाणी पैदा होती है। लेकिन जहां कोई दूसरा नहीं है,खाली आकाश है तो वहां strokes वाला नाद नहीं produce हो सकता।जो अजन्मा हो, जो अनादि हो, वही अनंत हो सकता है। तो क्या ऐसा भी कोई स्वर, ऐसा भी कोई नाद, ऐसा भी कोई संगीत है, जिसे हम जीवन का संगीत कहें! जो पैदा नहीं हुआ और कभी मिटेगा भी नहीं। और जब तक हम उसे न जान ले, तब तक हमने जीवन की परम व्यवस्था को नहीं जाना।
2-केवल नाद रहित स्वर ही है परम संगीत;वही है शक्ति।कोई ओम का उच्चारण कर रहा है ; और जो ओम ध्वनि आई है, क्या उसमें कोई अंतर है अथवा दोनों वही हैं? इसे कैसे differentiate करेगे? मंत्र शास्त्र कहता है, किसी मंत्र का उच्चार शुरू करो तो पहले जोर से उच्चार करो, ओंम का उच्चार शुरू करो, ओंम सुनाई पड़ेगा, हवाओं में गूंजेगा। फिर जब यह उच्चार सध जाए और जब ओंम इस तरह गूंजने लगे कि तुम्हारे भीतर कोई दूसरा शब्द, कोई दूसरा विचार न रह जाए, तभी तुम्हारा ओंम शुद्ध होगा। अगर तुम्हारे भीतर कोई भी विचार चल रहा है, तो उसकी छाया तुम्हारे ओंम की गूंज में भी मौजूद रहेगी।
3-जब आप कास्मिक साउंड, ब्रह्म-ध्वनि को पहुंचते हैं, तब आप अपने अस्तित्व की भूमि पर पहुंचते हैं। कास्मिक साउंड अथार्त वह साउंड जो तुम्हारे द्वारा या किसी के द्वारा उच्चरित नहीं है, बल्कि चारों ओर एक ब्रह्म-ध्वनि हो रही है ।यदि आपने भीतर से कास्मिक साउंड, ब्रह्म नाद को प्राप्त कर लिया ,तो यह ध्वनि का सुनना आपके अस्तित्व में एक विस्फोट
होगा। आप फिर से वही नहीं हो सकेंगे। आप यहां तक कि अपने अतीत से अपने आपको नहीं जोड़ सकेंगे।आप उसे स्मरण रखेंगे जैसे कि यह किसी और का अतीत था। आपकी स्मृति अब आपकी नहीं होगी। इस अनुभव के बाद, आप transform हो जायेगे।
4-वास्तव में,जब आप 'ओम', कहते हैं- तब आप अपने भीतर एक centre create करते हैं।आप एक पत्थर डालते हैं और तब sound आपसे बहुत दूर. बाहर जाता है ;यह एक आयाम / dimension है। आप केंद्र को नहीं खोज सकते हैं
लेकिन केंद्र आप तक आ सकता है। इसलिए साधक परमात्मा की तरफ जा रहा है--यह हमेशा ही झूठा संबंध है, वास्तविक संबंध भिन्न ही है--परमात्मा ही साधक की तरफ आ रहा है। जब आप तैयार होते हैं,open होते हैं, तो वह आता है।जब आपका invitation Source से जुड़ जाता है, तो वह वहां होता है। वह सदैव ही आता है परन्तु आप छिपे हुए हैं, वह आपको नहीं खोज सकता। साधारणतः साधक ही परमात्मा की खोज में जाते हैं, परन्तु जब तक कि परमात्मा स्वयं तुम्हारे पास नहीं आता, तब तक आप एक स्वप्न में हो। यदि आप ब्रह्म की, परमात्मा की ,centre की खोज में जाते हैं, तो आप खोजते ही रहेंगे और आप उसे कभी भी नहीं खोज सकेंगे। वह द्वार खटखटाता ही रहता है और आपके द्वार बंद ही पड़े हैं। इसलिए जब वह
ओम आपके पास आ रहा होता है, आप बस भर जाते हैं ,डूब जाते हैं और source का पता हीं नहीं चलता।
5- अगर तुम ओंम कह रहे हो, और तुम्हारे मन में चल रहा है कि जा कर बाजार से कोई सामान खरीद लाएं, तो तुम्हारा ओंम अशुद्ध हो रहा है। क्योंकि उसके पीछे यह बारीक स्वर भी जुड़ा हुआ है कि बाजार जाएं, सामान खरीद लाएं, यह स्वर उसे distorted/विकृत हो रहा है। तुम्हारा औंम तब शुद्ध हो जाएगा, जब सिर्फ ओंम की ही गूंज होगी और भीतर कोई दूसरा विचार न होगा।जिस दिन तुम्हारे ओंम का यह गुंजार शुद्ध हो जाए, उस दिन तुम ओंठ बंद कर लेना और अब तुम भीतर ही ओंम को गुजाना।और जब भीतर ओंम का गुंजार चलेगा, तब फिर खयाल रखना, दूसरे गहरे तल पर भी तुम्हारे मन में कोई विचार कोई कामना, कोई वासना, कोई भावना तो नहीं है! अगर है तो वह अशुद्ध कर रहा है, उसको भी flush away/विसर्जित कर देना ।
6-और भीतर जब सिर्फ ...ओंम की गूंज रह जाए, तब तीसरा प्रयोग करना। तब तुम ओंम को पैदा मत करना, सिर्फ आंख बंद
करके सुनना। जैसे कि ओंम तुम्हारे भीतर गूंज रहा है, तुम नहीं कर रहे हो।तुमने ओंम का गुंजार किया और भीतर कोई विचार न बचे, तो तुम्हारे चेतन मन से विचार समाप्त हो गए।अब तुम ओंठ बंद कर लो, अब तुम ओंम का गुंजार भीतर करो।क्योंकि मन जब शांत हो जाता है, तो तुम्हारे हृदय के अंतरस्थल में जो गुंजार स्वभावत: चल ही रहा है ..सदा से चल रहा है, जिससे तुम बने हो, जो तुम्हारी मूल प्रकृति है ;वह अब तुम्हें सुनाई पड़ सकता है।तुम्हारे विचारों के कारण ही वह तुम्हें सुनाई
नहीं पड़ता था।तो तुमने जो पहले ओंम का पाठ किया, वह असली मंत्र नहीं है। वह तो केवल तुम्हारे विचारों से छुटकारे का उपाय है।अब तुम चुप हो जाओ और अब तुम सिर्फ भीतर सुनो कि क्या वहां ओंम गज रहा है? और तुम चकित हो जाओगे, औंम का गुंजार तुम्हारे प्राणों से आ रहा है।और तुम्हारे रोएं—रोएं, शरीर में फैलता जा रहा है। जैसे -जैसे यह प्रतीति/realization clear/transperant हो जाएगा , तुम पाओगे कि ओंम तुम्हारा जीवन स्वर है।
7-जो यह sound तुम्हें सुनाई पड़ेगा, यह अनाहत है ;नाद रहित वाणी है क्योंकि वह किसी चीज के संघर्षण से पैदा नहीं हो रहा है। इसको कबीर और नानक अजपा कहते हैं, क्योंकि यह किसी जप से पैदा नहीं हो रहा है।जो जाग जाता है उसे तो कण कण में परमात्मा नजर आता है। फिर वह संसार को कीचड़ नहीं कहता। जो जाग जाता है, वह न महातमा है ,न संसारी, न धर्मात्मा और न पापी। जो जाग जाता है उसके लिये Materiality and spirituality/भौतिकता और अध्यात्मिकता , this world.. that world /लोक-परलोक भी एक हो जाता है।
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तीसरा चरण; -
03 FACTS;-
FIRST STEP;-
अब बैठ जाएं और दस मिनट में पूरी शक्ति से ओंकार के मंत्र की ध्वनि करें।ॐ.. ॐ.. ॐ.., ध्वनि इतनी सघन और तीव्रता से हो कि एक ओंकार पर दूसरा ओंकार चढ़ जाये। यानि दो ओंकार के बीच में कोई गैप न रहे। यदि एक श्वास में एक बार पूरी त्वरा से ॐ दोहराते हैं, तो विचारों के लिए कोई जगह नहीं रहेगी।
SECOND STEP;-
अब आंखें अधखुली, यानि आधी खुली आधी बंद। lip closed /होंठ बंद और tounge engaged with the Palate / तालु से लगी हुई। अब दस मिनट तक मन में ओंकार की ध्वनि करनी है ...पूरी शक्ति से।
THIRD STEP;-
अब दस मिनट आंखें बंद कर लें।Bend the neck/ गर्दन झुका लें it mean Chin touch our chest । अब कोई ध्वनि नहीं करना है ..सिर्फ सुनना है।हमारे भीतर जो ओंकार की ध्वनि हो रही है, उसे सुनना है। पहले हमने शरीर से ओंकार की ध्वनि की, फिर मन से की और अब हमें भीतर हो रही ध्वनि को सुनना है।इसके बाद लेट जाएं ,आंख बंद कर लें और विश्राम में चले जाएं।
....SHIVOHAM...
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