ध्यान में कैसे जाने कि मैं कौन हूँ?-
NOTE;-महान शास्त्रों और गुरूज्ञान का संकलन ....
ध्यान में कैसे जाने कि मैं कौन हूँ?-
03 FACTS;-
1-जिन प्रश्नों के उत्तर नहीं मालूम हैं अगर वे खड़े हो जाएं तो जीवन में एक नये प्रभात की शुरुआत होती है और उसकी तरफ आंखें उठनी शुरू होती हैं जो सत्य है,सुंदर है, शिव है ...परमात्मा है। उसकी तरफ होना ही हमारा वास्तविक होना है। उसे जान कर जीवन का सारा दुख वैसे ही विर्सजित हो जाता है जैसे किसी अंधकारपूर्ण गृह में कोई दीया जला दे और सारा अंधकार विलीन हो जाए।यह दीया कैसे जल सकता है ...इस प्रश्न में ही उत्तर छिपा है। बाहर मत खोजें और बाहर के किसी उत्तर को स्वीकार न करें। और पूरे-पूरे वेग से प्रश्न को आने दें कि वह सारे प्राणों के रंध्र-रंध्र को , श्वास-श्वास को भर दे। हृदय की धड़कन-धड़कन उससे भर जाए ...केवल प्रश्न ही रह जाए और कुछ न हो। तब वहीं प्रश्न के साथ ही उत्तर है। वह उत्तर बाहर से नहीं आता, वह उत्तर भीतर से उपलब्ध होता है... लेकिन प्रश्न आपको पूछना पड़ेगा।
2-ध्यान अस्तित्व के साथ एक हो जाने का नाम है। हमारी सीमाएं हैं--उन्हें तोड़ कर असीम के साथ एक हो जाने का नाम हैं । हम एक छोटी सी बूंद हैं और बूंद जैसे सागर में गिर जाए और एक हो जाए। ध्यान कोई क्रिया नहीं है बल्कि अक्रिया है, क्योंकि क्रिया कोई भी हो उससे हम बच जाएंगे पर अक्रिया में ही मिट सकते हैं। ध्यान एक अर्थ में अपने ही हाथ से मर जाने की कला है। और आश्चर्य यही है कि जो मर जाने की कला सीख जाते हैं वही केवल जीवन के परम अर्थ को उपलब्ध हो पाते हैं।
ध्यान में श्वास का सर्वाधिक महत्व है। जीवन में भी है। श्वास चल रही है तो व्यक्ति जीवित है और श्वास खो गई तो व्यक्ति खो गया।जीवन में श्वास हमारा संबंध है। और शायद इस बात पर कभी खयाल न किया होगा कि मन का जरा सा परिवर्तन भी श्वास पर शीघ्रता से प्रतिफलित होता है।
3-आप क्रोध में हों तो श्वास और तरह से चलती है, आप शांत हैं तो और तरह से चलती है, आप बेचैन हैं तो और तरह से चलती है। श्वास पूरे समय मन की खबरें देती रहती है।अगर व्यक्ति की श्वास समझी जा सके तो व्यक्ति के भीतर का सब कुछ समझा जा सकता है।ध्यान में तो श्वास सर्वाधिक कीमती है। क्योंकि ज्यों-ज्यों आप लीन होंगे विराट में वैसे-वैसे श्वास रूपांतरित होगी। इससे उलटा भी होगा, अगर श्वास रूपांतरित हो तो आप विराट में लीन होना शुरू हो जाएंगे। जैसे अगर कोई आप से कहे कि श्वास शांत रखो और क्रोध करो, तो आप बहुत मुश्किल में पड़ जाएंगे। श्वास शांत रख कर क्रोध करना एकदम असंभव है। श्वास में रूपांतरण अनिवार्य है।इसलिए आप छोटे सा प्रयोग करके देख सकते है। जब भी क्रोध आए तो श्वास को धीमा करना और तब आप अचानक पाएंगे कि क्रोध असंभव हो गया। श्वास धीमी हो तो क्रोध असंभव हो जाएगा।मन पूरी तरह शांत होगा और व्यक्ति विराट के साथ एक होगा।
1st STEP;-
03 POINTS;-
1-हम अपने को खोकर वह जो हमारे चारों ओर विस्तार है उसके साथ एक होने का प्रयास करें।ध्यान की प्रक्रिया के पहले केवल दो छोटी सी बातें खयाल कर लें।एक तो space हो क्योंकि इस प्रयोग में बहुतों को बीच में लगेगा कि लेट जाएं, तो उन्हें लेट जाना है । जैसा लगे वैसा हो जाने देना है। कोई चिंता नहीं करनी है कि कोई दूसरा मौजूद है। और कोई भी मौजूद हो तो भी आप अकेले ही हैं, वह दूसरा भी अकेला है।हम श्वास से ही शुरू करेंगे। पहली बात यह कि ध्यान में आंख बंद करके बैठेेंगे लेकिन आंख ऐसे बंद नहीं करनी है कि आंख पर दबाव पड़े। आंख को ढीला छोड़ देना है और आंख अपने से बंद हो जाए। इसलिए आंख पर दबाव जरा भी न हो क्योंकि आंख हमारे मस्तिष्क का सर्वाधिक संवेदनशील हिस्सा है। अगर आंख पर जरा भी दबाव है तो भीतर के मस्तिष्क के शांत होने में बड़ी कठिनाई होगी। तो सबसे पहले तो आंख की पलकों को धीरे से छोड़ दें और ऐसा खयाल करें कि आंख बंद हो रही है, आप कर नहीं रहे हैं और आंख की पलक को छोड़ें।बस आंख की पलक को धीरे से ढीला छोड़ दें और आंख को बंद हो जाने दें।फिर बीच-बीच में भी आपको आंख खोल कर देखने की जरूरत नहीं है क्योंकि देखने हम भीतर जा रहे हैं और भीतर आंख के खुले होने की कोई जरूरत नहीं।
2-आंख को बंद कर लें ढीला छोड़ दे और शरीर को भी शिथिल कर लें ताकि शरीर से आपको कोई बाधा , कोई स्ट्रेन न रहे। आंख बंद कर ली है, शरीर ढीला छोड़ दिया है। जिसने लेटना हो वह चुपचाप लेट जाएं। अब ध्यान श्वास पर ले जाए। भीतर देखें श्वास जा रही है.. आ रही है। श्वास को देखें। जैसे ही श्वास को देखना शुरू करेंगे वैसे ही उस जगह खड़े हो जाएंगे जहां से घर खुलता है।श्वास को देखना शुरू करें। यह श्वास भीतर गई। बहुत बारीक सी है, भीतर गौर से देखेंगे तो दिखाई पड़ने लगेगी। मतलब अनुभव होने लगेगा कि श्वास भीतर जा रही है, श्वास बाहर जा रही है। अगर किसी को अनुभव न हो रहा हो तो थोड़ी सी गहरी श्वास लें ताकि उन्हें फीलिंग साफ मालूम पड़ने लगे। थोड़ी सी धीमी व गहरी श्वास लेकर देख लें ताकि पता चल जाए यह रही श्वास। यह श्वास भीतर आ रही है, श्वास बाहर जा रही है ।थोड़ा सा श्वास गहरा लें ताकि साफ-साफ खयाल में आ जाए।
3-दस मिनट तक गहरी श्वास लेते रहें और देखते रहें, श्वास भीतर आ रही है, श्वास बाहर जा रही है। बस एक ही काम खयाल में रह जाए कि मैं श्वास को देख रहा हूं। श्वास को बिना देखे भीतर न जाने दूंगा, बिना देखे बाहर न जाने दूंगा। श्वास को देखते-देखते ही मन शांत होना शुरू हो जाएगा। एक दस मिनट श्वास को देखते रहें।गहरी श्वास लें। श्वास भीतर जाएगी तो अनुभव करें कि भीतर जा रही है व श्वास बाहर जाएगी तो अनुभव करें बाहर जा रही है। बस श्वास रह जाए--आप रह जाएं एक दृष्टा की भांति जो देख रहा है श्वास के आने को व जाने को। श्वास भीतर आ रही है, श्वास बाहर जा रही है...सिर्फ देखते रहें, देखते रहें, देखते रहें और मन शांत होता जाएगा, शांत होता जाएगा, शांत होता जाएगा...दस मिनट श्वास को देखते रहें। किसी को भी इस बीच लगे कि लेट जाना है तो चुपचाप लेट जाए। शरीर कंपने लगे तो रोकें नहीं कंपने दें। आंख से आंसू बहने लगें तो रोकें नहीं बहने दें। जो भी हो रहा हो उसे होने दें और आप एक ही काम करें कि श्वास को देखते रहें।दस मिनट तक आप श्वास को देखने में लीन हो जाएं। यह श्वास आ रही है, यह श्वास जा रही है और मैं सिर्फ दृष्टा की भांति श्वास को देख रहा हूं।
2nd STEP;-
सबसे पहले श्वास को देखते रहें साथ में शरीर को ढीला छोड़ें।अनुभव करें कि शरीर शिथिल हो रहा है, बिलकुल ढीला छोड़ दें जैसे मिट्टी हो। अपने आप शरीर गिर जाए तो रोकें नहीं, गिर जाने दें। शरीर शिथिल हो रहा है ;भीतर श्वास को गहरा लेते रहें और देखते रहें श्वास आ रही है, श्वास जा रही है और साथ ही अनुभव करे कि शरीर शिथिल हो रहा है। बिलकुल छोड़ दें, गिरे तो गिर जाए, आगे झुके तो झुक जाए, जो होना है वह हो जाए पर शरीर को ढीला छोड़ दें। श्वास पर ध्यान रहे और जो मन में हो रहा है उसकी चिंता न लें। शरीर बिलकुल शिथिल होता जा रहा है जैसे कोई प्राण ही न हो।जिसका भी लेटने को मन हो चुपचाप लेट जाए, बैठे न रहे लेट जाए। शरीर को बिलकुल ढीला छोड दे कोई बाधा न डाले। हमें अपने को खो देना है तो शरीर को रोकना नही। श्वास को देखते रहें और शरीर को ढीला छोड़ दे। शरीर बिलकुल निष्प्राण हो गया जैसे है ही नहीं और शरीर की तरफ से पकड़ छोड़ते ही मन बहुत गहराई मे चला जाएगा। शरीर की पकड़ छूटी कि मन से गहराई आई।श्वास पर ध्यान रखे और शरीर को निष्प्राण छोड़ दें।
3rd STEP;-
02 POINTS;-
1-शरीर को बिलकुल ढीला छोड़ दें, क्योंकि तीसरे प्रयोग में वे ही जा सकेंगे जो शरीर से पकड़ छोड़ देंगे। शरीर बिलकुल ढीला छूट गया है। जो झुकता हो झुक जाए, गिरता हो गिर जाए, आप अपनी तरफ से शरीर को न सम्हाले। शरीर शिथिल हो गया है और श्वास भीतर व बाहर दिखाई पड़ रही है, अनुभव हो रही है। अब आंख बंद रखें, श्वास देखते रहें। यह ध्यान का गहरा प्रयोग है। तीसरे प्रयोग को भीतर में शुरू करें। श्वास दिखाई पड़ रही है कि भीतर आ रही है जा रही है, शरीर शिथिल छोड़ दिया है। ओंठ बिलकुल बंद रहे व जीभ तालु से लग जाए। भीतर वहन कर लें कि होठ बंद हो गए है व जीभ तालु से लग गई है, शरीर शिथिल है, श्वास देखी जा रही है। अब प्रयोग श्वास को देखते हुए ही साथ में मन में पूछने लगे कि मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? श्वास को देखते रहे, श्वास का देखना जारी रहे और भीतर तीव्रता से पूछे मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? भीतर मन में ही तीव्रता से पूछे मैं कौन हूं? इतनी तेजी से पूछे की दो पूछने के बीच जगह न रह जाए मैं कौन हूं? एक तूफान भीतर उठ जाए मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? इतने जोर से जैसे किसी बंद दरवाजे पर ठोकरें आई कि मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? इतने जोर से कि प्राण की पूरी शक्ति भीतर लग जाए पूछने में कि मैं कौन हूं?
2-एक दस मिनट के लिए तीव्रता से भीतर पूछे कि मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?जब भीतर पूछेगें मैं कौन हूं ...सारा शरीर कंप जाएगा, प्राण कंप जाएगा, श्वास कंप जाएगी ।सारी शक्ति लगा दें और प्रत्येक श्वास के पूछते रहें--मैं कौन हूं? एक दस मिनट इतनी तेजी से पूछे कि पसीना-पसीना हो जाए। सारी ताकत लगा दें। पूरी तरह से अपने को थका डाले। जितना पूछ सकते है उतना पूछ लें ताकि पीछे सब शांत हो जाए। मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? एक पांच मिनट पूरी शक्ति से भीतर पूछेें--मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? इतनी शक्ति से जिससे तूफान उठ जाए। फिर सब छोड़ देंगे और फिर शांत रह जाएंगे। जितने तूफान में जितनी आंधी में मन जाएगा उतनी ही गहरी शांति भी उपलब्ध होगी।मैं कौन हूं? यह प्राणी के पोर-पोर में गूंजने लगे।आखिरी ताकत लगा दें।इसके बाद अदभुत शांति में प्रवेश हो जाएगा।
4th STEP;-
अब अनुभव करें कि बहुत शीघ्र वह जो विराट हमारे चारों ओर उपस्थित है उसमें हम लीन हो जाएंगे।फिर दस मिनट के लिए हम बिना कुछ किए,जो है उसके साथ पड़े रह जाएंगे। फिर सब छोड़ देंगे श्वास भी, पूछना भी, देखना भी, फिर सिर्फ रह जाएंगे, जस्ट ब्लेंक ..सब छोड़ दें...दस मिनट के लिए कुछ भी न करें, बस रह जाएं। पक्षियों की आवाज सुनाई पड़ेंगी, सागर की लहरों की आवाज सुनाई पड़ेेंगी, हवाएं पत्तों को हिलाएंगी। चारों तरफ जो हो रहा है उसमें डूब कर रह जाएं, उसके साथ एक हो जाए। यह पक्षियों की आवाज अलग न रहे, यह सागर की गर्जन अलग न रहे, सूरज की धूप अलग न रहे, अब दस मिनट के लिए कुछ भी न करें, बस इस विस्तार में डूब कर रह जाएं और मन परम गहराइयों को छुएगा, बहुत शांति में उतर जाएगा। अब दस मिनट बिलकुल डूब जाएं, कुछ न करें और जो है उसके साथ एक रह जाएं।अब धीरे-धीरे आंख खोल लें...आंख न खुले तो दोनों हाथ आंख पर रख लें और फिर धीरे-धीरे आंख खोलें। जो लोग लेट गए हैं वे धीरे-धीरे उठें। अगर उठना न बने तो उठने से पहले दो-चार गहरी श्वास लें फिर आहिस्ता-आहिस्ता उठें।झटके से कोई भी न उठे। लेकिन अगर बिलकुल उठते न बनें तो पड़े रहें, गहरी श्वास लें और फिर धीरे-धीरे उठें।एक व्यक्ति रो ले, तो उसके भीतर के कितने भार कट सकते हैं, इसका आपको पता नहीं हैं।आप उसको देख कर कुछ भी नहीं जान सकते कि उसके भीतर क्या हो रहा है।और अगर उसको देख कर आप कुछ भी सोचें तो गलत होगा।इसलिए अच्छा है कि चार दिन यह प्रयोग कर लें।
....SHIVOHAM....
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