top of page

Recent Posts

Archive

Tags

भैरव कवच की महिमा...

03 FACTS;-

1-भगवान बटुक भैरव की महिमा अनेक शास्त्रों में मिलती है। भैरव जहां शिव के गण के रूप में जाने जाते हैं, वहीं वे मां दुर्गा के अनुचारी माने गए हैं। चमेली फूल प्रिय होने के कारण उपासना में इसका विशेष महत्व है। साथ ही बटुक भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं।बटुक भैरव के नाम जप मात्र से मनुष्य को कई रोगों से मुक्ति मिलती है। वे संतान को लंबी उम्र प्रदान करते है। अगर आप भूत-प्रेत बाधा, तांत्रिक क्रियाओं से परेशान है, तो आप शनिवार या मंगलवार कभी भी अपने घर में भैरव पाठ का वाचन कराने से समस्त कष्टों और परेशानियों से मुक्त हो सकते हैं।जन्मकुंडली में अगर आप मंगल ग्रह के दोषों से परेशान हैं तो बटुक भैरव की पूजा करके पत्रिका के दोषों का निवारण आसानी से कर सकते है। राहु केतु के उपायों के लिए भी इनका पूजन करना अच्छा माना जाता है। भैरव की पूजा में काली उड़द और उड़द से बने मिष्ठान इमरती, दही बड़े, दूध और मेवा का भोग लगाना लाभकारी है इससे भैरव प्रसन्न होते है।

2-पौराणिक मान्यता के अनुसार भैरव को स्वयं ब्रह्मदेव का प्रतीक माना गया है। जबकि रूद्राष्टाध्यायी और भैरव तंत्र के अनुसार बटुक भैरव जी को भगवान शिव का ही अंशावतार माना गया है।वास्तव में भैरव जी शिव के ही अवतार है।शास्त्रों में इनको शिवांश मानते हुए कहा गया है कि भैरव पूर्ण रूप से देवाधिदेव शंकर ही हैं। लेकिन भैरव के रूप में शिव के प्राकट्य के पीछे जो कारण है वह ब्रह्मदेव के कार्यों सम्पन्न करना है।बटुक भैरव साधना एक आपदुद्धारक बटुक भैरव मंत्र है, जिसका अर्थ है "समस्याओं को दूर करना।" भगवान भैरव की साधनाओं को वर्तमान कलियुग के दौरान सबसे सरल और सफल साधनाओं में से एक माना जाता है।शास्त्रीय शक्ति समागम तंत्र में भैरव की पहली अभिव्यक्ति का वर्णन किया गया है। आपद नाम के एक राक्षस ने प्राचीन काल में अत्यधिक तपस्या करके अजेय होने का वरदान प्राप्त किया और यह वर भी हासिल किया कि उसकी मृत्यु केवल पांच साल के बच्चे द्वारा ही हो सकती है। इसके अलावा कोई भी उसका वध नहीं कर सकता। वरदान प्राप्त करने के बाद आपद ने हर जगह हाहाकार मचा दिया। देवताओं और मनुष्यों को परेशान कर दिया। वह अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करने लगा।

3-जैसे-जैसे उसके अपराध असहनीय होने लगे, तब देवताओं ने मिलकर चिंतन किया और उसके जीवनकाल को समाप्त करने की योजना बनाई। इस संबंध में उन्होंने भगवान शिव से सहायता के लिए प्रार्थना की। भगवान के चिंतन-मंथन से एक शानदार प्रकाश चमक उठा, जिससे एक पांच साल के बच्चे बटुक भैरव की उत्पत्ति हुई।बटुक की उत्पत्ति के साथ ही चौतरफा आकाशीय ज्योति प्रवाहित होने लगी थी जो कि बटुक के अस्तित्व में आते ही विलीन हो गईं। बाल बटुक को सभी देवगण ने आशीर्वाद दिया। इसके बाद बटुक कभी नहीं रुके नहीं बल्कि अजेय हो गए। बटुक भैरव ने राक्षस आपद का वध किया, जिससे उन्हें आपदुद्धारक बटुक भैरव या उपनाम भैरव के नाम से जाना जाने लगा। उन्होंने ही राक्षस आपद का वध किया था। भैरव वह देवत्व हैं, जो अपने भक्तों की समस्याओं का समाधान निकालने में मदद करते हैं। उसी समय से आपद शब्द समस्याओं का पर्याय बन गया है।

बटुक भैरव मंत्र ;-

03 FACTS;-

1-एक पवित्र मंत्र है, जो भगवान शिव की ऊर्जाओं और सकारात्मक आवृत्तियों से जोड़ता है। सभी सुखों को प्राप्त करने और सभी इच्छाओं को पूरा करने के लिए बटुक भैरव मंत्रों का उच्चारण किया जाना चाहिए। इस जादुई मंत्र में भगवान बटुक भैरव के सिद्धांतों को आकर्षित करने और देवता के महत्व को बढ़ावा देने की क्षमता है।यह मजबूत मंत्र भगवान शिव के भयानक रूपों की सकारात्मक ऊर्जा से जुड़ता है, जो उपासक को सौभाग्य और सिद्धि प्रदान करता है।आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए बटुक भैरव मंत्र का जाप किया जाता है। चूंकि बटुक भैरव भगवान शिव के उग्र अवतार हैं, वे विशेष रूप से आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए अत्यधिक पूजनीय हैं। भगवान बटुक भैरव को क्षेत्रपालक, मंदिर के रक्षक और यात्री के रक्षक के रूप में भी जाना जाता है। इसलिए यात्रा शुरू करने से पहले भगवान बटुक भैरव की पूजा करनी चाहिए, खासकर अगर रात के समय में यात्रा कर रहे हैं।

2-विशेष रूप से बच्चों के लिए सुरक्षित और स्वस्थ जीवन के लिए बटुक भैरव मूल मंत्र का पाठ किया जाता है। बच्चे के मन, आत्मा और शरीर पर लाभकारी प्रभाव डालने के लिए इस मंत्र का जाप किया जाता है। बुरी नजर के दुष्प्राभावों के बारे में हम सब जानते हैं। जिस व्यक्ति पर बुरी नजर पड़ती है, उसे इसका आभास नहीं होता है। लेकिन इसके परिणाम से वह खुद को बचा नहीं पाता। इससे उसके स्वास्थ्य को, उसकी संपत्ति को, उसकी सफलता को नुकसान पहुंच सकता है। इसके साथ ही उस व्यक्ति विशेष को, जिसे नजर लगी है, कई अन्य नुकसान भी हो सकते हैं। सबसे भयानक है, छिपी हुई बुरी नजर। कई संस्कृतियों का मानना ​​​​है कि जिसे बुरी नजर लगती है, उसे कई प्रकार की आपदा का सामना करना पड़ता है या कई तरह के संकट उसके जीवन में बने रहते हैं।

3-आमतौर पर माना जाता है कि पवित्रता के कारण नवजात शिशु और छोटे बच्चे बुरी नजर की चपेट में आसानी से आ जाते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि किसी बच्चे के निरंतर तारीफ करने से उसे बुरी नजर लग सकती है।यह भी माना जाता है कि बुरी नजर किसी व्यक्ति की शांति को भंग कर सकती है, नुकसान या पीड़ा दे सकती है। यह भी मान्यता है कि चूंकि शिशु कमजोर होते हैं, इसिलए वे बुरी नजर के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। यह मंत्र उन बच्चों के लिए विशेष रूप से अच्छा है, जो शारीरिक रूप से कमजोर होते हैं और आसानी से बीमार पड़ सकते हैं। ऐसे परिवारों में बटुक मूल मंत्र का जाप करना चाहिए जिनके बच्चे हैं या जो बच्चे की उम्मीद कर रहे हैं।

बटुक भैरव मूल मंत्र है:-

ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ स्वाहा ।

बटुक भैरव मूल मंत्र के जाप के लाभ ;-

1-यदि आप इस मंत्र का जाप नियमित रूप से करते हैं, तो आप भविष्य में आने वाली समस्याओं से बचे रह सकते हैं।

2-भावनात्मक रूप से शांत होने पर पारिवारिक जीवन में कलह और कठिनाइयां दूर हो जाती हैं।

3-राज्य के अधिकारियों का पक्ष लेने और अदालती विवाद जीतने के लिए इस मूल मंत्र से बेहतर कोई मंत्र नहीं है।

4-इस मंत्र की मदद से जीवन संकट और संपत्ति संबंधित खतरों से बचा जा सकता है।

5-जब बटुक भैरव मूल मंत्र को समर्पण के साथ दोहराया जाता है, तो व्यक्ति के जीवन से सभी संकट, बाधाएं और दूसरों से मिली धमकियां खत्म जाती हैं।

बटुक भैरव कवच ;-

काल भैरव की पूजा करते समय बटुक भैरव कवच का भी पाठ करना चाहिए। अगर ऐसा किया जाए तो व्यक्ति को मनचाही सिद्धियां प्राप्त होती हैं।बटुक भैरव कवच भगवान भैरव जी को समर्पित हैं ! इसको करने से व्यक्ति की शरीर की रक्षा, घर की सुरक्षा,भूत प्रेत से रक्षा, काला जादू से रक्षा, शत्रु नष्ट आदि से रक्षा होती हैं ! जो भी जातक इस कवच को जो नियमित रूप से 11 बार करने से परिणाम आपको स्वयं देखने को मिल जायेगे !

बटुक भैरव कवच ;-

महादेव उवाच -

प्रीयतां भैरवो देवो नमो वै भैरवाय च । देवेशि देहरक्षार्थं कारणं कथ्यतां ध्रुवम् ॥ १॥

म्रियन्ते साधका येन विना श्मशानभूमिषु । रणेषु चाति घोरेषु महामृत्युभयेषु च ॥ २॥

श्रृङ्गीसलीलवज्रेषु ज्वरादिव्याधिवह्निषु । देव्युवाच - कथयामि श्रृणु प्राज्ञ बटुककवचं शुभम् ॥ ३॥

गोपनीयं प्रयत्नेन मातृकाजारजो यथा ।

ॐ अस्य श्री बटुकभैरवकवचस्य आनन्दभैरव ऋषिस्त्रिष्टुप्छन्दः

श्रीबटुकभैरवो देवता बं बीजं ह्रीं शक्तिः

ॐ बटुकायेति कीलकं ममाभीष्टसिध्यर्थे जपे विनियोगः । ॐ सहस्रारे महाचक्रे कर्पूरधवले गुरुः ॥ ४॥

पातु मां बटुको देवो भैरवः सर्वकर्मसु । पूर्वस्यामसिताङ्गो मां दिशि रक्षतु सर्वदा ॥ ५॥

आग्नेयां च रुरुः पातु दक्षिणे चण्डभैरवः । नैऋत्यां क्रोधनः पातु उन्मत्तः पातु पश्चिमे ॥ ६॥

वायव्यां मां कपाली च नित्यं पायात्सुरेश्वरः । भीषणो भैरवः पातु उत्तरास्यां तु सर्वदा ॥ ७॥

संहारभैरवः पायादीशान्यां च महेश्वरः । ऊर्ध्वं पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः ॥८॥

सद्योजातस्तु मां पायात्सर्वतो देवसेवितः । वामदेवो वनान्ते च वने घोरस्तथाऽवतु ॥ ९॥

जले तत्पुरुषः पातु स्थले ईशान एव च । डाकिनीपुत्रकः पातु पुत्रान् में सर्वतः प्रभुः ॥ १०॥

हाकिनी पुत्रकः पातु दारांस्तुलाकिनीसुतः । पातु शाकिनिकापुत्रः सैन्यं वै कालभैरवः ॥ ११॥

मालिनीपुत्रकः पातु पशूनश्वान् गजांस्तथा । महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा ॥ १२॥

वाद्यं वाद्यप्रियः पातु भैरवो नित्यसम्पदा ।एतत्कवचमीशान तव स्नेहात्प्रकाशितम् ॥ १३॥

नाख्येयं नरलोकेषु सारभूतं सुरप्रियम् । यस्मै कस्मै न दातव्यं कवचं सुरदुर्लभम् ॥ १४॥

न देयं परिशिष्येभ्यो कृपणेभ्यश्च शङ्कर । यो ददाति निषिद्धेभ्यः सर्वभ्रष्टो भवेत्किल ॥१५॥

अनेन कवचेनैव रक्षां कृत्वा विचक्षणः । विचरन्यत्र कुत्रापि न विघ्नैः परिभूयते ॥ १६॥

मन्त्रेण रक्षते योगी कवचं रक्षकं यतः । तस्मात्सर्वप्रयत्नेन दुर्लभं पापचेतसाम् ॥ १७॥

भूर्जे रम्भात्वचि वापि लिखित्वा विधिवत्प्रभो । कुङ्कु मेनाष्टगन्धेन गोरोचनैश्च केसरैः ॥१८॥

धारयेत्पाठायेद्वापि सम्पठेद्वापि नित्यशः । सम्प्राप्नोति फलं सर्वं नात्र कार्या विचारणा ॥१९॥

सततं पठ्यते यत्र तत्र भैरवसंस्थितिः । न शक्नोमि प्रभावं वै कवचस्यास्य वर्णितुम् ॥ २०॥

नमो भैरवदेवाय सर्वभूताय वै नमः । नमस्त्रैलोक्यनाथाय नाथनाथाय वै नमः ॥ २१॥

इति श्रीहरिकृष्णविनिर्मिते बृहज्ज्योतिषार्णवे धर्मस्कन्धे उपासनास्तवके श्रीबटुकभैरवोपासनाध्याये भैरव तन्त्रे देवीरहस्योक्तं श्रीबटुक भैरव कवच निरूपणं सम्पूर्णम् ॥

......................................................................................................................................................................

भगवान काल भैरव ;-

शास्त्रों के अनुसार भगवान काल भैरव का अवतरण मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था। इस दिन मध्याह्न में भगवान शिवशंकर के अंश से इनकी उत्पत्ति हुई थी जिन्हें शिव का पांचवा अवतार माना गया है। महादेव के रूद्र रूप कालभैरव को तंत्र का देवता माना गया है,इसलिए तंत्र-मंत्र की साधना निर्विघ्न संपन्न करने के लिए सबसे पहले काल भैरव की पूजा की जाती है। कालभैरव शत्रुओं और संकट से भक्तों की रक्षा करते हैं। सभी शक्तिपीठों के पास भैरव के जागृत मंदिर जरूर होते हैं। इनकी उपासना के बिना देवी मां की उपासना अधूरी मानी जाती है।इन्हें काशी के कोतवाल भी कहा जाता है। इनकी शक्ति का नाम है 'भैरवी गिरिजा 'जो अपने उपासकों की अभीष्ट दायिनी हैं। इनके दो स्वरूप है पहला बटुक भैरव जो भक्तों को अभय देने वाले सौम्य रूप में प्रसिद्ध है तो वहीं काल भैरव अपराधिक प्रवृतियों पर नियंत्रण करने वाले भयंकर दंडनायक है। ऐसी भी मान्यता है कि भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा,विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित है। भैरव, शिव के गण और पार्वती के अनुचर माने जाते हैं। सच्चे मन से जो भी इनकी उपासना करता है,उसकी सुरक्षा का भार ये स्वयं उठाते हैं और अपने भक्तों की समस्त मनोकामनाओं को पूरा करते हैं। साथ ही भैरवजी की पूजा से भूत-प्रेत,नकारात्मक शक्तियां और ऊपरी बाधा आदि जैसी समस्याएं भी दूर होती हैं।अष्ट भैरव भगवान भैरव की आठ अभिव्यक्तियाँ हैं , जो भगवान शिव का एक क्रूर पहलू हैं । वे आठों दिशाओं की रक्षा और नियंत्रण करते हैं। प्रत्येक भैरव के अधीन सात उपभैरव होते हैं। सभी भैरवों पर शासन और नियंत्रण महाकाल भैरव द्वारा किया जाता है, जिन्हें ब्रह्मांड के समय का सर्वोच्च शासक और भैरव का प्रमुख रूप माना जाता है।आठ भैरवों के नाम....1- असिथांग भैरव 2- रुरु भैरव 3- चंदाभैरव 4- क्रोध भैरव 5- उन्मत्त भैरव 6- कपालभैरव 7- भीषण भैरव 8- संहार भैरव



काल भैरव मंत्र ;-

कालभैरव बीज मंत्र का प्रतिदिन जाप करने और कालभैरव की अवस्था का स्मरण करने मात्र से हमें अस्तित्व का ज्ञान होता है और मुक्ति की प्राप्ति होती है। इससे कई अन्य लाभ भी होते हैं। इस मंत्र का जाप हमें दुःख, मोह और भ्रम से मुक्त करता है। मोह और भ्रम असल में दुख, अभाव, हानि की भावना, लालच, अधीरता, क्रोध और दर्द के स्रोत हैं।भगवान कालभैरव को पंच भूतों के स्वामी के रूप में भी जाना जाता है, जिसमें पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश शामिल हैं। वह जीवन में सभी प्रकार की वांछित पूर्णता और जो जानकारी हमें चाहिए, वह सब प्रदान करते हैं। सीखने और उत्कृष्टता के बीच एक अंतर है और आनंद की यह स्थिति भगवान भैरव हमें प्रदान करते हैं।

1-ॐ तीखदन्त महाकाय कल्पान्तदोहनम्। भैरवाय नमस्तुभ्यं अनुज्ञां दातुर्माहिसि॥

इस मंत्र का जाप करने से शत्रु से मुक्ति मिलती है. ये शक्तिशाली मंत्र भूत, प्रेत बाधा का नाश करता है।

2-ऊं कालभैरवाय नम: -

इस मंत्र का 108 बार जाप करने से भैरवनाथ जल्द प्रसन्न होते हैं। शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पित कर इसका जाप करने से सुख-समृद्धि का आशीष मिलता है।इससे दुख और दरिद्रता का नाश होता है।

3-ॐ ह्रीं बं बटुकाय मम आपत्ति उद्धारणाय। कुरु कुरु बटुकाय बं ह्रीं ॐ फट स्वाहा॥

जिन लोगों की कुंडली में शनि की साढ़े साती, ढैय्या चल रही हो उन्हें कालाष्टमी पर काल भैरव के सामने दीपक लगाकर इस मंत्र का एक माला जाप करना चाहिए।इससे ग्रह दोष शांत होता है।

4-ओम भयहरणं च भैरव: ॥

ये प्रभावशाली मंत्र किसी भी प्रकार के डर को खत्म करने की क्षमता रखता है।इसका जाप करने से व्यक्ति का भय दूर होता है।

5-‘ॐ ब्रह्म काल भैरवाय फट’॥

कालाष्टमी पर इस मंत्र का उच्चारण करने से कोर्ट कचेहरी के मामलों में राहत मिलती है।इसके साथ ही भैरव चालीसा का पाठ करें।

6-काल भैरव बीज मंत्र हैं...

1-“ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रीं” ||

2-ॐ ह्रां ह्रीं ह्रों ह्रीं ह्रों क्षं क्षेत्रपालाय कालभैरवाय नमः ll

काल भैरव कवच ;-

भैरव कवच भगवान की कृपा प्राप्त करने का और अपने शरीर की तथा अपने घर की सुरक्षा करने का अमोघ अस्त्र है। इस का प्रतिदिन पाठ करे और परिणाम स्वयं देखे कितना प्रभावशाली है यह....

ॐ सहस्त्रारे महाचक्रे कर्पूरधवले गुरुः ।

पातु मां बटुको देवो भैरवः सर्वकर्मसु ॥1

पूर्वस्याम सितांगो मां दिशि रक्षतु सर्वदा ।

आग्नेयां च रुरुः पातु दक्षिणे चण्ड भैरवः ॥2

नैॠत्यां क्रोधनः पातु उन्मत्तः पातु पश्चिमे ।

वायव्यां मां कपाली च नित्यं पायात् सुरेश्वरः॥3

भीषणो भैरवः पातु उत्तरास्यां तु सर्वदा ।

संहार भैरवः पायादीशान्यां च महेश्वरः ॥4

ऊर्ध्वं पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः ।

सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः ॥5

रामदेवो वनान्ते च वने घोरस्तथावतु ।

जले तत्पुरुषः पातु स्थले ईशान एव च ॥6

डाकिनी पुत्रकः पातु पुत्रान् में सर्वतः प्रभुः ।

हाकिनी पुत्रकः पातु दारास्तु लाकिनी सुतः ॥7

पातु शाकिनिका पुत्रः सैन्यं वै कालभैरवः ।

मालिनी पुत्रकः पातु पशूनश्वान् गंजास्तथा ॥8

महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा ।

वाद्यम् वाद्यप्रियः पातु भैरवो नित्यसम्पदा ॥9

कालभैरव कवच का अर्थ;-

1-ॐ सहस्रार महाचक्र कर्पूराधवला गुरु।

भय के देवता बटुक, मेरे सभी कार्यों में मेरी रक्षा करें।

2-पूर्व दिशा में मां सीतांगा सदैव मेरी रक्षा करें।

आग्नेय कोण में रुरु और दक्षिण में चण्डभैरव मेरी रक्षा करें।

3-नैॠत्य कोण में क्रोधभैरव मेरी रक्षा करें और उन्मत्तभैरव पश्चिम में मेरी रक्षा करें।

देवताओं के स्वामी कपाली, वायव्य कोण में सदैव मेरी रक्षा करें।

4-उत्तर दिशा में भीषण भैरव सदैव मेरी रक्षा करें।

संहार भैरव उत्तर पूर्व में और महेश्वर उत्तर में मेरी रक्षा करें।

5-सर्वशक्तिमान नंद ऊपर मेरी रक्षा करें, और विधाता पाताल में मेरी रक्षा करें।

देवताओं द्वारा पूजे जाने वाले सद्योजात भगवान सभी ओर से मेरी रक्षा करें।

6-भगवान राम वन के अंत में और भयानक वन में मेरी रक्षा करें।

वे तत्पुरुष परम भगवान जल में मेरी और भगवान ईशान भूमि पर मेरी रक्षा करें।

7-डाकिनी का पुत्र भगवान, मेरे बेटों की हर जगह रक्षा करे।

हाकिनी का पुत्र मेरी रक्षा करे और लाकिनी का पुत्र मेरी पत्नी की रक्षा करे।

8-शाकिनी का पुत्र कालभैरव सेना की रक्षा करे।

मालिनी पुत्र मवेशियों, घोड़ों और हाथियों की रक्षा करें।

9-महाकाल मेरे क्षेत्र और मेरे ऐश्वर्य की सब ओर से वाणी द्वारा रक्षा करें।

संगीत वाद्ययंत्रों के प्रेमी भैरव ,मेरे शाश्वत धन की रक्षा करें।

भैरव कवच विशेषताऐ :-

कवच के साथ-साथ यदि भैरव चालीसा स्तोत्र का पाठ किया जाए तो, इस कवच का बहुत लाभ मिलता है, यह स्तोत्र शीघ्र ही फल देने लग जाता है, लक्ष्मी कवच, और लक्ष्मी नारायण कवच का प्रतिदिन पाठ और पूजा करने से सफलता की प्राप्ति होती है| यदि साधक इस कवच के पाठ के साथ – साथ भैरव गुटिका धारण करता है साथ ही भैरव माला से जाप किया जाये तो मनोवांछित कमना पूर्ण होती है | और मनुष्य के सभी रोग भी दूर हो जाते है साथ ही सभी कार्यो में सफलता प्राप्त होने लगती है|


....SHIVOHAM...


Commentaires


Single post: Blog_Single_Post_Widget
bottom of page