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अबूझ मुहूर्त कौन से होते हैं?अक्षय तृतीया का क्या महत्व हैं?


क्या है अबूझ मुहूर्त?- 1-'मुहूर्त' अर्थात् किसी भी कार्य को करने का श्रेष्ठतम समय। शास्त्रानुसार मास श्रेष्ठ होने पर वर्ष का, दिन श्रेष्ठ होने पर मास का, लग्न श्रेष्ठ होने पर दिन का एवं मुहूर्त श्रेष्ठ होने पर लग्न सहित समस्त दोष दूर हो जाते हैं। हमारे शास्त्रों में शुभ मुहूर्त्त का विशेष महत्त्व बताया गया है किन्तु कुछ ऐसी तिथियां होती हैं जब मुहूर्त देखने की कोई आवश्यकता नहीं रहती ऐसी तिथियों को अबूझ मुहूर्त या 'स्वयं सिद्ध मुहूर्त' कहते हैं। 2-ऐसे 'स्वयं सिद्ध मुहूर्त' की संख्या हमारे शास्त्रों में साढ़े तीन बताई गई है।किसी व्यक्ति के विवाह की तारीख ना निकल पा रही हो या फिर शुभ मुहूर्त पर बात ना बन पा रही हो तो हिन्दू कैलेंडर के अनुसार कुछ ऐसे दिन या पर्व भी आते हैं जब अबूझ मुहूर्त होता है, उसके लिए दिन या पंचांग नहीं देखना पड़ता। 3-अबूझ मुहूर्त;- नीचे दिए गए साढ़े तीन मुहूर्त स्वयं सिद्ध माने जाते हैं जिनमें पंचांग की शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है : - 1-चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा अर्थात् गुड़ी पड़वा (हिन्दू नववर्ष-दक्षिण भारत)/देवप्रबोधनी एकादशी (कार्तिक शुक्ल एकादशी-उत्तर भारत ) 2-विजयादशमी (दशहरा) 3-अक्षय तृतीया (अखातीज) 4-कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा का आधा भाग उपर्युक्त तिथियों को स्वयं सिद्ध मुहूर्त की मान्यता प्राप्त है। इन तिथियों में बिना मुहूर्त का विचार किए नवीन कार्य प्रारम्भ किए जा सकते हैं।

भारत वर्ष में इनके अतिरिक्त लोकचार और देशाचार के अनुसार निम्नलिखित तिथियों को भी स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना जाता है : -

1-गंगा दशहरा(ज्येष्ठ शुक्ल दशमी);-वराह पुराण के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल दशमी, बुधवार के दिन, हस्त नक्षत्र में गंगा स्वर्ग से धरती पर आई थी. इस पवित्र नदी में ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन गंगा स्नान करने से व्यक्ति के दस प्रकार के पापों का नाश होता है. इन दस पापों में तीन पाप कायिक, चार पाप वाचिक और तीन पाप मानसिक होते हैं. इन सभी से व्यक्ति को मुक्ति मिलती है.

2-भड्डली नवमी (आषाढ़ शुक्ल नवमी)

3-बसंत पंचमी (माघ शुक्ल पंचमी)

4-फुलेरा दूज (फाल्गुन शुक्ल द्वितीया)

इनमें किसी भी कार्य को करने के लिए पंचांग शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है। परंतु विवाह इत्यादि में तो पंचांग में दिए गए मुहूर्तों को ही स्वीकार करना श्रेयस्कर रहता है। अक्षय तृतीया का महत्व ;- 03 FACTS;- 1-वैशाख महीने का वैसे ही काफी महत्व है। इस महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि तो अत्यंत ही शुभकारी और सौभाग्यशाली मानी गई है। इस तिथि को अक्षय तृतीया के रूप में जाना जाता है। यह एक अबूझ मुहूर्त है। इस दिन आप बिना किसी सोच-विचार के किसी भी शुभ कार्य को कर सकते हैं। 2-अक्षय तृतीया पर किए गए दान-धर्म का अक्षय यानी कभी नाश न होने वाला फल और पुण्य मिलता है। इसलिए हिन्दू धर्म में इस तिथि को दान-धर्म करने के लिए श्रेष्ठ समय माना गया है। इसे चिरंजीवी तिथि भी कहते हैं, क्योंकि इसी तिथि पर अष्टचिरंजीवियों में एक भगवान परशुराम का जन्म हुआ था।इस दिन किए गए कर्म अक्षय हो जाते हैं। इस दिन शुभ कर्म ही करने चाहिए। इस दिन त्रेता युग का आरंभ भी माना जाता है। कहते हैं इस दिन किए गए कार्यों से अक्षयों फलों की प्राप्ति होती है। ‘न क्षय इति अक्षय’, यानि जिसका कभी क्षय न हो, वह अक्षय है। लिहाजा इस दिन जो भी शुभ कार्य, पूजा पाठ या दान-पुण्य आदि किया जाता है, वो सब अक्षय हो जाता है। अक्षय तृतीया से जुड़ी मान्यताएं; 11 FACTS;- 1-वैशाख माह भगवान विष्णु की भक्ति के लिए भी काफी अधिक महत्व रखता है। अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान विष्‍णु के छठें अवतार कहे जाने वाले भगवान परशुराम जी का जन्‍म महर्षि जमदाग्नि और माता रेनुकादेवी के घर हुआ था। इसी कारण अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जी एवं भगवान विष्‍णु की उपासना की जाती है।स्कंद पुराण और भविष्य पुराण में उल्लेख है कि वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को रेणुका के गर्भ से भगवान विष्णु ने परशुराम रूप में जन्म लिया। दक्षिण भारत में परशुराम जयंती को विशेष महत्व दिया जाता है।एक कथा के अनुसार परशुराम की माता और विश्वामित्र की माता के पूजन के बाद प्रसाद देते समय ऋषि ने प्रसाद बदल कर दे दिया था। जिसके प्रभाव से परशुराम ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय स्वभाव के थे और क्षत्रिय पुत्र होने के बाद भी विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाए। उल्लेख है कि सीता स्वयंवर के समय परशुराम जी अपना धनुष बाण श्री राम को समर्पित कर संन्यासी का जीवन बिताने अन्यत्र चले गए। अपने साथ एक फरसा रखते थे तभी उनका नाम परशुराम पड़ा। 2- इस दिन राजा भागीरथ की घोर तपस्या के बाद मां गंगा स्वर्ग से धरती पर अवतरीत हुई थीं और राजा भागीरथ के सभी पूर्वजो को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी । इस दिन पवित्र गंगा में डूबकी लगाने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। 3-शास्त्रों के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन ही माँ पार्वती ने देवी अन्नपूर्णा के रूप में अवतार लिया था तथा भगवान शिव ने उनसे भिक्षा प्राप्त की थी। इसी से प्रसन्न होकर देवी अन्नपूर्णा संपूर्ण ब्रह्मांड का भरण-पोषण करने लगी थी। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव को भोग लगाने से उस जातक पर देवी अन्नपूर्णा की सदैव कृपा बनी रहती है।अक्षय तृतीया के दिन मां अन्नपूर्णा का जन्मदिन भी मनाया जाता है। 4-अक्षय तृतीया के अवसर पर ही म‍हर्षि वेदव्‍यास जी ने महाभारत लिखना शुरू किया था। महाभारत को हिंदू धर्म शास्त्रों में पांचवें वेद के रूप में माना जाता है। महाभारत में ही श्रीमद्भागवत गीता भी समाहित है।इस दिन गीता के 18 वें अध्‍याय का पाठ करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। 5-लेकिन महाभारत के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों की पत्नी द्रौपदी को पांडवों के अज्ञातवास के दौरान ‘अक्षय पात्र’ भेंट किया था।'अक्षय पात्र' की विशेषता यह थी कि इसमें भोजन कभी भी समाप्त नहीं होता था। इस पात्र के माध्यम से जब भी जितनी मात्रा में भोजन चाहिए होता है वह चमत्कारिक ढंग से प्राप्त हो जाता था। 6-इसी दिन महाभारत की लड़ाई खत्म हुई। द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर के पूछने पर यह बताया था कि आज के दिन जो भी रचनात्मक या सांसारिक कार्य करोगे, उसका पुण्य मिलेगा। कोई भी नया काम, नया घर और नया कारोबार शुरू करने से उसमें बरकत और ख्याति मिलेगी। 7-इस दिन से सतयुग और त्रेतायुग का आरंभ माना जाता है। 8-इसी दिन श्री बद्रीनारायण के पट खुलते हैं।नर-नारायण ने भी इसी दिन अवतार लिया था। 9-हयग्रीव का अवतार भी इसी दिन हुआ था। 10-शास्त्रों के अनुसार अक्षय तृतीय के दिन ही भगवान कृष्ण और सुदामा का मिलन हुआ था और सुदामा का भाग्य बदल गया था। 11-यह भी माना जाता है कि आज के दिन मनुष्य अपने या स्वजनों द्वारा किए गए जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करे तो भगवान उसके अपराधों को क्षमा कर देते हैं और उसे सदगुण प्रदान करते हैं, अतः आज के दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिए अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान माँगने की परंपरा भी है। अक्षय तृतीया से जुड़ी खास बातें;- 05 FACTS;- 1-अक्षय तृतीया के दिन तीन राज योग बन रहे हैं। पहला राजयोग है मालव्य राजयोग, दूसरा राजयोग हंस राजयोग और तीसरा राजयोग शश राजयोग। इस साल अक्षय तृतीया के दिन ग्रहों पर ऐसी स्थिति बन रही है जो बेहद शुभ है। ऐसे में यदि आप राजयोग अबूझ मुहूर्त पर मांगलिक कार्य करते हैं या सोना चांदी घर जमीन दुकान मकान खरीदते हैं तो इससे घर में लक्ष्मी की कृपा बनी रह सकती है। इस दिन सोने या चांदी की लक्ष्मी की चरण पादुका लाकर घर में रखें और इसकी नियमित पूजा करें। 2-अक्षय तृतीया को अबूझ मुहूर्त माना गया है। इस तिथि पर सूर्य और चंद्र अपनी उच्च राशि में होते हैं। इसलिए इस दिन शादी, कारोबार की शुरूआत और गृह प्रवेश करने जैसे- मांगलिक काम बहुत शुभ रहते हैं। शादी के लिए जिन लोगों के ग्रह-नक्षत्रों का मिलान नहीं होता या मुहूर्त नहीं निकल पाता, उनको इस शुभ तिथि पर दोष नहीं लगता व निर्विघ्न विवाह कर सकते हैं। 3-अक्षय तृतीया के दिन भगवान शंकर ने कुबेर जी को मां लक्ष्मी की पूजा करने के लिए कहा था। इसलिए आज के दिन विधि-विधान से मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है ।इस दिन भगवान गणेश, देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और उन्हें पीले कपड़े और फूल चढ़ाए जाते हैं। दूध, चावल और चना दाल से बना प्रसाद देवी-देवताओं को चढ़ाया जाता है और बाद में परिवार के सदस्यों के बीच वितरित किया जाता है। अक्षय तृतीया के दिन 11 कौड़ियों को लाल कपडे में बांधकर पूजा स्थान में रखने से देवी लक्ष्मी आकर्षित होती हैं। देवी लक्ष्मी के समान ही कौड़ियां भी समुद्र से उत्पन्न हुई हैं।लाल कपड़े में ग्यारह कौड़ी लपेटकर अपनी पूजा में स्थापित कर लें। नित्य मंत्र, ''ऊँ श्री महालक्ष्म्यै नमः'' का जप किया करें धन लाभ का यह एक अच्छा उपक्रम सिद्ध होगा।ब्राह्मण ''ॐ ह्रीं पद्मावति त्रैलोक्य वार्ता कथय कथय ह्रीं स्वाहा'' की एक माला मंत्र जप करें ।केसर और हल्दी से देवी लक्ष्मी की पूजा करने से आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं।घर के पूजा स्थल पर एकाक्षी नारियल स्थापित करने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।लाल /पीली कौड़ी को अक्षय तृतीया में भी अभिमंत्रित किया जाता है।अक्षय तृतीया पूजा का शुभ मुहूर्त- सुबह 5 बजकर 39 मिनट से दोपहर 12 बजकर 18 मिनट तक है ।काली कौड़ी, लाल कौड़ी और चितकबरी कौड़ी एक ही है। केवल प्रयोग विधि अलग - अलग है।काली कौड़ी का गुप्त सिद्ध शावर मंत्र है:-

कौड़ी कौड़ी काली कौड़ी

मंत्र सिद्ध तू भाग को मोड़ी।

शत्रु मिटे घर रक्षक तुझ आन

कालरात्रि संग तू लक्ष्मी जोड़ी।। 4-अक्षय तृतीया पर्व तिथि व मुहूर्त ...

तृतीया तिथि प्रारंभ – 3 मई सुबह 5:19 से होगी. तृतीया तिथि का समापन 4 मई सुबह 7: 33 मिनट होगा.

सोना खरीदने का शुभ समय - रोहिणी नक्षत्र की शुरुआत 3 मई सुबह 12: 34 मिनट से होगी.

रोहिणी नक्षत्र का समापन 4 मई सुबह 3:18 मिनट तक होगा. .....SHIVOHAM....


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