क्या प्रत्येक तीर्थ परम की गुह्य यात्रा है; जिसकी एक कुंजी है? PART 01
- Chida nanda
- Jul 22, 2022
- 17 min read
Updated: Jul 27, 2022

NOTE;-महान शास्त्रों और गुरूज्ञान का संकलन...…
क्या है तीर्थ का अर्थ ?-
02 FACTS;-
1-तीर्थ शब्द का अर्थ होता है ...घाट। उसका अर्थ होता है, ऐसी जगह जहां से हम उस अनंत सागर में उतर सकते है।तीर्थ पुरानी सभ्यता के खोजें हुए बहुत-बहुत गहरे, सांकेतिक, और बहुत अनूठे आविष्कार है। लेकिन हमारी सभ्यता के पास उनको समझने के सब रूप खो गए है। सिर्फ एक मुर्दा व्यवस्था रह गई है ,जिसको हम ढोए चले जा रहे है। बिना यह जाने कि वह क्यों निर्मित हुए, क्या उनका उपयोग किया जाता रहा। किन लोगों ने उन्हें बनाया क्या प्रयोजन था? जो ऊपर से दिखाई पड़ता है वही सब कुछ नहीं है, भीतर कुछ और भी है जो ऊपर से कभी भी दिखाई नहीं पड़ता।
2-पहली बात तो यह है, कि हमारी सभ्यता ने तीर्थ का अर्थ खो दिया है। इसलिए आप जो तीर्थ को जाते है वह भी करीब-करीब व्यर्थ जाते है। जो उसका विरोध करते है वह भी करीब-करीब व्यर्थ विरोध करते है। वह जिस तीर्थ का विरोध कर रहा है ;वह तीर्थ की धारणा नहीं है। और तीर्थ जानेवाला जिस तीर्थ में जा रहा है वह भी तीर्थ की धारणा नहीं है।दोनों को ही सही बात का कुछ पता नहीं है। तो चार-पाँच चीजें पहले ख्याल में लेनी चाहिए।
1-क्या वास्तविक तीर्थ छिपे हुए है और प्रत्येक तीर्थ की कुंजियां /यंत्र है?-
18 POINTS;-
1-बहुत सी चीजें सदा..गुप्त रखी गयी है।तो वास्तविक तीर्थ छिपे हुए और गुप्त है। गुप्त रखने का या किसी से छिपाने का और कोई कारण नहीं था।वास्तव में जिसको हम लाभ पहुंचाना चाहते है उनको नुकसान पहुंच जाए तो कोई अर्थ नहीं।तीर्थ जरूर है, पर वास्तविक तीर्थ छिपे हुए, गुप्त है। करीब-करीब उन्हीं तीर्थों के निकट है, जहां आपके झूठे/फाल्स तीर्थ खड़े हुए है। और जो फाल्स तीर्थ है, धोखा देने के लिए खड़े किए गए है। वह इसलिए खड़े किए गए है। ठीक जगह पर गलत आदमी न पहुंच जाए। ठीक आदमी तो ठीक जगह पहुंच ही जाता है। और हरेक तीर्थ की अपनी कुंजी है।
2-इसलिए अगर सूफियों का तीर्थ खोजना हो तो जैनियों के तीर्थ की कुंजी से नहीं खोजा जा सकता। अगर जैनियों का तीर्थ खोजना है तो सूफियों की कुंजियों से नहीं खोजा जा सकता।उदाहरण के लिए,तिब्बतियों के विशेष
यंत्र होते है, जिसमें खास तरह की आकृतियां बनी होती है ..वे यंत्र कुंजिया है। जैसे हिंदुओं के पास भी यंत्र है। और हजार यंत्र है। आप घरों में भी शुभ लाभ बनाकर आंकडे लिखकर और यंत्र बनाते है। बिना यह जाने कि किसलिए बना रहे है।यह क्यों लिख रहे है , आपको खयाल भी नहीं हो सकता है कि आप अपने मकान में एक ऐसा यंत्र बनाए हुए है जो किसी तीर्थ की कुंजी हो सकती है। मगर बाप दादे आपके बनाते रहते है और आप बनाए चले जा रहे है।
3-वास्तव में,एक विशेष आकृति पर ध्यान करने से आपकी चेतना विशेष आकृति लेती है। हर आकृति आपके भीतर चेतना को आकृति देती है। जैसे कि अगर आप बहुत देर तक खिड़की पर आँख लगाकर देखते रहें,फिर आँख बंद करें तो खिड़की का निगेटिव चौखटा आपकी आँख के भीतर बन जाता है—वह निगेटिव है। अगर किसी यंत्र पर आप ध्यान के बाद आपको भीतर निर्मित होते है। वह विशेष ध्यान के बाद आपको भीतर दिखायी पड़ना शुरू हो जाता है। और जब वह दिखाई पड़ना शुरू हो जाए, तब विशेष आह्वान करने से तत्काल आपकी यात्रा शुरू हो जाती है।
4-जैनों का तीर्थ है...सम्मत शिखर।यह जैनों के चौबीस तीर्थकर में से बाईस तीर्थकरों का समाधि स्थल है । चौबीस में से बाईस तीर्थ करों ने सम्मेत शिखर पर शरीर विसर्जन किया है—आयोजित थी वह व्यवस्था। अन्यथा बिना आयोजन के एक जगह पर जाकर इतने तीर्थ करों का जीवन अंत होना आसान मामला नहीं है।उनके पहले तीर्थकर में और चौबीसवे तीर्थकर में हजारों साल का लंबे फासला है। लाखों वर्षो के फासले पर एक ही स्थान पर बाई तीर्थ करों का जाकर शरीर को छोडना विचारणीय है।..
5-उदाहरण के लिए, एक सूफी फकीर की कहानी है।उसका गधा खो गया जो उसकी संपति है।सारे गांव के लोग खोज-खोजकर परेशान हो गए, कहीं कोई पता नहीं चला। फिर लोगों ने कहा ''ऐसा मालूम होता है कि तीर्थ का महीना है,किसी तीर्थ यात्रियों के साथ निकल गया है, गांव में तो नहीं है।अब तुम समझो की खो गया,अब वह नहीं मिलेगा।फकीर ने
कहा कि मैं आखिरी अपाय और कर लू। वह खड़ा हो गया, उसने आँख बंद कर ली।
6-थोड़ी देर में वह झुक क्या चारों हाथ-पैर से, और उसने चलना शुरू कर दिया। और वह उस मकान का चक्कर लगाकर, और उस बग़ीचे का चक्कर लगाकर उस जगह पहुंच गया जहां एक खड्डे में उसका गधा गिर पडा था। लोगों ने कहा, यह क्या तरकीब है। उसने कहा कि मैंने सोचा जब आदमी नहीं खोज सका, तो मतलब यह है कि गधे की कुंजी आदमी के
पास नहीं है।इसलिये मैं गधा बन जाऊँ। तो मैंने अपने मन में सिर्फ यह भावना की कि मैं गधा हो गया। अगर मैं गधा होता तो गधे को खोजने कहां जाता। फिर कब मेरे हाथ झुककर जमीन पर लग गए, और कब मैं गधे की तरह चलने लगा। मुझे पता ही नहीं चला। कैसे मैं चलकर वहां पहुंच गया,वह मुझे पता नहीं। ।जब मैंने आँख खोली तो मैंने देखा, मेरा गधा खड्डे में पडा हुआ है।
7-एक सूफी फकीर की यह कहानी तो कोई भी पढ़ लेगा और मजाक समझकर छोड़ देगा। लेकिन इस छोटी सी कहानी में खोजने का एक ढंग वह भी है। और आत्मिक अर्थों में तो ढंग वही है। तो प्रत्येक तीर्थ की कुंजियां है। यंत्र है। और तीर्थों का पहला प्रयोजन तो यह है कि आपको उस आविष्ठधारा में खड़ा कर दें जहां धारा वह रही हो और आप उसमें बह
जाएं..।लेकिन दो रास्ते हो सकते है।पहला.. आदमी अपनी मेहनत करे और नाव को गति देने के किसी लट्ठे या चप्पू की सहायता से चलाये ।पर तब शायद कभी करोड़ो में एक आदमी उपलब्ध हो पाएगा।और दूसरा.. नाव को गति देने के प्रमुख साधन पाल (sail)का इस्तेमाल करे ।
8-हवाओं का सहारा लेकर यात्रा बड़ी आसान होती है। लेकिन तो क्या अध्यात्मिक हवाएँ संभव है।वास्तव में,यह संभव है कि जब महावीर जैसा एक व्यक्ति खड़ा होता है तो उसके आप-पास किसी अनजाने आयाम में कोई प्रवाह शुरू होता है।यह एक ऐसी दिशा में बहाव को निर्मित करता है कि बहाव में कोई पड़ जाए तो बह जाए, वही बहाव तीर्थ है।उस पर ही
तीर्थ का सब कुछ निर्भर है।इस पृथ्वी पर तो उसके जो निशान है वह भौतिक निशान है, लेकिन वे स्थान न खो जाए इसलिए उन भौतिक निशानों की बड़ी सुरक्षा की गयी है। उन जगहों पर,मंदिर बनाए गए है या पैरों के चिन्ह बनाए गए है ।उन जगहों पर यह मूर्तियां खड़ी की गई है और उन जगह को हजारों वर्षो तक वैसा का वैसा रखने की चेष्टा की गयी है। इंच भर भी वह जगह न हिल जाए, जहां घटना घटी है ।कभी बड़े-बड़े खज़ाने गडाए गए है आज भी उनकी खोज चलती है।
9-जैसे की रूस के आखिरी जार का खजाना अमरीका में कहीं गड़ा है। जो कि पृथ्वी का सबसे बड़ा खजाना है, और आज भी खोज चलती है। वह खजाना है, यह पक्का है, क्योंकि बहुत दिन नहीं हुए.....अभी उन्नीस सौ सत्रह को घटे बहुत दिन नहीं हुए। उसका इंच-इंच हिसाब भी रखा गया है कि यह कहां होगा। लेकिन डिकोड नहीं हो पा रहा है। वह जो हिसाब रखा गया है उसको समझा नहीं जा पा रहा है कि एक्जैक्ट जगह कहां है।इस तरह से सब नक्शे गुप्त भाषा में ही निर्मित किए जाते हे। अन्यथा कोई भी डिकोड कर लेगा।वे समान्य भाषा में नहीं लिखे जाते है।
10- आम लोग गड़बड़ न कर पाएँ इसलिए इन तीर्थों के भी बड़े उपाय किए जाते है। आपको बहुत हैरानी होगी कि जहां आप जाते है और आपसे कहा जाता है कि यह जगह है जहां महावीर निर्वाण को उपलब्ध हुए—बहुत संभावना तो यह है कि वह जगह नहीं होंगी। उससे थोड़ी हटकर वह जगह होगी ..जहां उनका निर्वाण हुआ। उस जगह पर तो प्रवेश उनको ही मिल सकेगा, जो सच में ही पात्र है और उस यात्रा पर निकल सकते है। एक फाल्स जगह, एक झूठी जगह आम आदमी से बचाने की लिए खड़ी की जाएगी। जिसपर तीर्थयात्री जाता रहेगा। नमस्कार करता रहेगा और लौटता रहेगा। वह जगह तो उनको ही बतायी जाएगी जो सचमुच उस जगह आ गए है।जहां से वह सहायता लेने के योग्य है या उनको सहायता मिलनी चाहिए। ऐसी बहुत सी जगह है।
11-उदाहरण के लिए,अरब में एक गांव है जिसमें आज तक किसी सभ्य आदमी को प्रवेश नहीं मिल सका । चाँद पर आप प्रवेश कर गए लेकिन छोटे से गांव अल्कुफा में आज तक किसी यात्री को प्रवेश नहीं मिल सका। सच तो यह है कि आज तक यह ही नहीं ठीक हो सका कि वह कहां है। और वह गांव है ..इसमें कोई शक नहीं, क्योंकि हजारों साल से इतिहास उसकी खबर देता है। किताबें उसकी खबर देती है। उसके नक्शे है।वह गांव कुछ प्रयोजन से छिपाकर रखा गया है। और सूफियों में जब कोई बहुत गहरी अवस्था में होता है तभी उसको उस गांव में प्रवेश मिलता है।उसकी सीक्रेट कुंजी है। अल्कुफा के गांव में उसी सूफी को प्रवेश मिलता है जो ध्यान में उसका रास्ता खोज लेता है ..अन्यथा नहीं। उसकी कुंजी है तो फिर उसे कोई रोक भी नहीं सकता। अन्यथा कोई उपाय नहीं है। नक्शे है, सब तैयार है, लेकिन फिर भी उसका पता नहीं लगता कि वह कहां है।एक अर्थ में वह सब नक्शे थोड़े से झूठ है और भटकाने के लिए है। उन नक़्शों को जो मानकर चलेगा वह अल्कुफा कभी नहीं पहुंच पाएगा।
12-इसलिए पिछले तीन सौ वर्षों में यूरोप के बहुत यात्री अल्कुफा को ढूंढने गए है। उनमें से कुछ तो कभी नहीं लौटें.. मर गये । जो लौटे वे कभी कहीं पहुंचे ही नहीं। वे सिर्फ चक्कर मारकर वापस आ गए। सब तरह से कोशिश की जा चुकी है। पर उसकी कुंजी है। और वह कुंजी एक विशेष ध्यान है; और उस विशेष ध्यान में ही अल्कुफा पूरा का पूरा प्रगट होता है। और वह सूफी उठता है और चल पड़ता है। और जब इतनी योग्यता हो तभी उस गांव से गति है। वह एक सीक्रेट तीर्थ है जो इसलाम से बहुत पुराना है। लेकिन उसको गुप्त रखा गया है। इन तीर्थों में भी जो जाहिर दिखाई पड़ते है, वे असली तीर्थ नहीं है।आस पास असली तीर्थ है।
13-अभी जो विश्वनाथ का मंदिर खड़ा हुआ है, इसको तो नष्ट किया जा चुका है। इसमें कोई उपाय नहीं है। इसमें कोई कठिनाई नहीं है चाहे नष्ट कर दो।सच बात यह है कि विश्वनाथ का मंदिर भी असली नहीं है। और वह जो दूसरा बनाएँगे वह भी असली नहीं होगा। असली मंदिर तो तीसरा है। लेकिन उसकी जानकारी सीधी नहीं दी जा सकती। और असली मंदिर को छिपाकर रखना पड़ेगा, नहीं तो कभी भी कोई भी धर्म सुधारक उसको भ्रष्ट कर सकता है।
वह जो दूसरा बनाया जा रहा है वह भी फाल्स है। लेकिन एक फाल्स बनाए ही रखना पड़ेगा, ताकि असली पर नजर न जाए। और असली को छिपाकर रखना पड़ेगा।
14-विश्वनाथ के मंदिर में प्रवेश की कुंजियों है, जैसे अल्कुफा में प्रवेश की कुंजियों है। उसमें कभी कोई सौभाग्यशाली संन्यासी प्रवेश पाता है। उसमें कोई ग्रहस्थ कभी प्रवेश नहीं पाया और कभी पा नहीं सकता। सभी संन्यासी को भी उसमें प्रवेश नहीं मिल पाते है ;कभी कोई सौभाग्यशाली संन्यासी उसमें प्रवेश पाते है। और उसे सब भांति छिपाकर रखा जाएगा। उसके मंत्र है और जिनके प्रयोग से उसका द्वार खोलेगा, नहीं तो उसका द्वार नहीं खुलेगा। उसका
बोध ही नहीं होगा,उसका ख्याल ही नहीं आएगा।काशी में जाकर इस मंदिर की लोग पूजा, प्रार्थना करके वापस लौट आएंगे। मगर इस मंदिर की भी अपनी एक पवित्रता बन गयी है । यह झूठा था, लेकिन फिर भी लाखों वर्षों से उसको सच्चा मानकर चला जा रहा था। तो उसमें भी एक तरह की पवित्रता आ गयी।
15-सारे धर्मों ने कोशिश की है कि उनके मंदिर में या उनके तीर्थ में दूसरे धर्म का व्यक्ति प्रवेश न करे। आज हमें बेहूदगी लगती है.. यह बात। हम कहेंगे इससे क्या मतलब है। लेकिन जिन्होंने व्यवस्था की थी उनके कुछ कारण थे। यह करीब-करीब मामला ऐसा ही है जैसे कि ऐटमिक एनर्जी की एक लेबोरेटरी है और अगर यह लिखा हो कि यहां सिवाय ऐटमिक साइंटिस्ट के कोई प्रवेश नहीं करेगा। तो हमें कोई कठिनाई नहीं होगी। हम कहेंगे, बिलकुल दुरुस्त है।क्योंकि दूसरे आदमी का भीतर प्रवेश करना..खतरे से खाली नहीं है।लेकिन यही
बात हम मंदिर और तीर्थ के संबंध में मानने को राज़ी नहीं है। क्योंकि हमें यह ख्याल ही नहीं है कि मंदिर और तीर्थ की अपनी साइंस है। और वह विशेष लोगों के प्रवेश के लिए है।
16-उदाहरण के लिए एक मरीज बीमार पडा है और उसके चारों तरफ डाक्टर खड़े होकर बात करते रहते है। मरीज सुनता है, समझ तो कुछ नहीं आता। क्योंकि वह किसी खास कोड लेंग्वेज में बात करते है। वह लैटिन या ग्रीक शब्दों को उपयोग कर रहे है। यह मरीज के हित में नही है कि उस समझे। इसलिए सारे धर्मों ने अपनी कोड लेंग्वेज विकसित की थी।उसके गुप्त तीर्थ थे, उसकी गुप्त भाषाएँ थीं। उसके गुप्त शास्त्र थे।और आज भी जिनको हम तीर्थ समझ रहे है ;उनमें बहुत कम संभावना है सही होने की। जिनको हम शास्त्र समझ रहे है ;उनमें भी बहुत कम संभावना है सही होने की।
17-जो सीक्रेट ट्रैडीशन है, उसे तो छिपाने की निरंतर कोशिश की जाती रही है।
क्योंकि जैसे ही वह आम आदमी के हाथ में पड़ती है, उसके विकृत हो जाने का डर है। और आम आदमी उससे परेशान ही होगा, लाभ नहीं उठा सकता। जैसे अगर सूफियों के गांव अल्कुफा में अचानक आपको प्रवेश करवा दिया जाए तो पागल हो जाएंगे। अल्कुफा की यह परंपरा है कि वहां अगर कोई आदमी आकस्मिक प्रवेश कर जाए तो पागल होकर लौटेगा..वह लौटेगा ही, इसमें किसी का कोई कसूर नहीं है ।क्योंकि अल्कुफा इस तरह की पूरी के पूरे
मनस तरंगों से निर्मित है कि आपका मन उसको झेल नहीं पाएगा। आप विक्षिप्त हो जाएंगे। उतनी सामथ्र्य और पात्रता के बिना उचित नहीं है कि वहां प्रवेश हो। जैसे अल्कुफा के बाबत कुछ बातें ख्याल में ले लें तो और तीर्थों का भी ख्याल में आ जाएगा।
18-जैसे अल्कुफा में नींद असंभव है, कोई आदमी सो नहीं सकता। तो आप पागल हो ही जाएंगे जब तक कि आपने जागरण का गहन प्रयोग न किया हो। इसलिए सूफी फकीर की सबसे बड़ी जो साधना है वह रात्रि जागरण है, रातभर जागते रहेंगे।एक बहुत सोचने जैसी बात है ..एक आदमी नब्बे दिन तक खाना न खाए तो भी सिर्फ दुर्बल होगा, मर नहीं जाएगा,परन्तु पागल नहीं हो जाएगा। साधारण स्वस्थ आदमी आसानी से नब्बे दिन,
बिना खाए रह सकता है। लेकिन साधारण स्वस्थ आदमी इक्कीस दिन भी बिना सोए नहीं रह सकता। तीन महीने बिना खाए रह सकता है परन्तु तीन सप्ताह बिना सोए नहीं रह सकता। तीन सप्ताह तो बहुत ज्यादा है , एक सप्ताह भी बिना सोए रहना कठिन मामला है। पर अल्कुफा में नींद असंभव है।
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2-क्या तीर्थ दूसरे प्राणी-लोको से संबंध स्थापित होने के सांकेतिक इंतजाम है?
18 FACTS;-
1-मुसलमानों का तीर्थ है ..काबा। काबा में मुहम्मद के वक्त तक तीन सौ पैंसठ मूर्तियां थी। और हर दिन की एक अलग मूर्ति थी। वह तीन सौ पैंसठ मूर्तियां हटा दी गयी, फेंक दी गई। लेकिन जो मूर्तियों का, केंद्रीय पत्थर था ;जो मंदिर को केंद्र था, वह नहीं हटाया गया।तो काबा मुसलमानों से बहुत ज्यादा पुरानी जगह है। मुसलमानों की तो उम्र बहुत लंबी नहीं है.....चौदह
सौ वर्ष ही है ।लेकिन काबा लाखों वर्ष पुराना पत्थर है। और दूसरी बात है कि वह पत्थर जमीन का नहीं है।यह तो तय है।
2-एक ही उपाय था हमारे पास कि वह उल्कापात में गिरा हुआ पत्थर है। चौबीस घंटे में रोज दस हजार पत्थर जमीन पर गिरते है। जो आपको रात तारे गिरते हुए दिखाई पड़ते है वह तारे नहीं होते वह उल्का है, पत्थर है जो जमीन पर गिरते है। लेकिन जोर से घर्षण खाकर वे हवा में जल उठते है। अधिकतर तो बीच में ही राख हो जाते है। कोई-कोई जमीन तक पहुंच जाते है। कभी-कभी जमीन पर बहुत बड़े पत्थर पहुंच जाते है। उन पत्थरों की बनावट भिन्न होती है।
3-यह जो काबा का पत्थर है, यह जमीन का पत्थर नहीं है। तो सीधा व्याख्या तो यह है कि यह उल्का पात में गिरा होगा। लेकिन जो और गहरे जानते है ;उनका मानना है, वह उल्कापात में गिरा पत्थर नहीं है। जैसे हम आज जाकर चाँद पर जमीन के चिन्ह छोड़ आए है .. हमारे अंतरिक्ष यात्री चाँद पर जो वस्तुएँ छोड़ आए है वे वहीं बनी रहेंगी, सुरक्षित रहेंगी। उन्हें बनाया भी इस ढंग से गया है कि लाखों वर्षो तक सुरक्षित रह सकें।
अगर चाँद पर कभी कोई भी जीवन विकसित हुआ, या किसी और ग्रह से चाँद पर पहुंचा, और वह चीजें मिलेंगी, तो उनके लिए भी कठिनाई होगी कि वे कहां से आयी है?
4-काबा का जो पत्थर है वह सिर्फ उल्कापात में गिरा हुआ पत्थर नहीं है। वह पत्थर पृथ्वी पर किन्हीं और ग्रहों के यात्रियों द्वारा छोड़ा गया पत्थर है। और उस पत्थर के माध्यम से उस ग्रह के यात्रियों से संबंध स्थापित किए जा सकते थे। लेकिन पीछे सिर्फ उसकी पूजा रह गयी। उसका पूरा विज्ञान खो गया; क्योंकि उससे संबंध के सब सूत्र खो गए। वह अगर किसी ग्रह पर
गिर जाए तो उस ग्रह के यात्री भी क्या करेंगें? अगर उनके पास इतनी वैज्ञानिक उपलब्धि हो कि उसके रेडियो को ठीक कर सकें,तो हमसे संबंध स्थापित हो सकता है। अन्यथा उसको तोड़-फोड़ करके वह उनके पास अगर कोई म्यूजियम होगा तो उसमें रख लेंगे और किसी तरह की व्याख्या करेंगे कि वह क्या है। और रेडियो तक उनका विकास हुआ हो तो वह भयभीत हो सकते है ,डर सकते है ,अभिभूत हो सकते है या पूजा कर सकते है।काबा का पत्थर उन छोटे से उपकरणों में से एक है जो कभी दूसरे अंतरिक्ष के यात्रियों ने छोड़ा और जिनसे कभी संबंध स्थापित हो सकते थे।
5- तीर्थ हमारी ऐसी ही व्यवस्थाएं है। जिससे हम अंतरिक्ष के जीवन से संबंध स्थापित नहीं करते बल्कि इस पृथ्वी पर ही जो चेतनाएं विकसित होकर विदा हो गयीं, उनसे पुन:-पुन: संबंध स्थापित कर सकते है।
और इस संभावनाओं को बढ़ाने के लिए सम्मेत शिखर पर बहुत गहरा प्रयोग हुआ।बाईस तीर्थ करों का सम्मेत शिखर पर जाकर समाधि लेना, गहरा प्रयोग था। वह इस चेष्टा में था कि उस स्थल पर इतनी सघनता हो जाए कि संबंध स्थापित करने आसान हो जाएं। उस स्थान से इतनी चेतनाएं दूसरे लोक में, यात्रा करें कि उस स्थान और दूसरे लोक के बीच सुनिश्चित मार्ग बन जाएं। वह सुनिश्चित मार्ग रहा है।
6-और जैसे जमीन पर सब जगह एक सी वर्षा नहीं होती, घनी वर्षा, के विरल वर्षा के स्थल है। रेगिस्तान है जहां कोई वर्षा नहीं होती, और ऐसे स्थान है जहां पाँच सौ इंच वर्षा होती है। ऐसी जगह है जहां ठंडा है सब और बर्फ के सिवाए कुछ भी नहीं है, और ऐसे स्थान है जहां सब गर्म है। बर्फ भी
नहीं बन सकती।ठीक वैसे ही पृथ्वी पर चेतना की डैंसिटी और नान-डेंसिटी के स्थल है। और उनको बनाने की कोशिश की गई है। उनको निर्मित करने की कोशिश कि गई है। क्योंकि वह अपने आप निर्मित नहीं होंगे,वह मनुष्य की चेतना से निर्मित होंगे।
7-जैसे सम्मेत शिखर पर बाईस तीर्थ करों का यात्रा करके, समाधि में प्रवेश करना, और उसी एक जगह से शरीर को छोड़ना, उस जगह पर इतनी घनी चेतना को प्रयोग है कि वह जगह विशेष अर्थों में चार्जड हो जाएगी । और वहां कोई भी बैठे ,उस जगह पर और उन विशेष मंत्रों का प्रयोग करे ...जिन मंत्रों को उन बाईस लोगों ने किया है; तो तत्काल उसकी चेतना शरीर को छोड़कर यात्रा करनी शुरू कर देगी। वह प्रक्रिया वैसी ही है की है जैसी कि विज्ञान की सारी प्रक्रियाएं है।...
8-प्रशांत महासागर में एक छोटे से द्वीप पर, ईस्टर आईलैंड में एक हजार विशाल मूर्तियां है। जिनमें कोई भी मूर्ति बीस फीट से छोटी नहीं है। और निवासियों की कुल संख्या दो सौ है। एक हजार, बीस फीट से भी बड़ी विशाल मूर्तियां है। जब पहली दफा इस छोटे से द्वीप का पता चला तो बड़ी कठिनाई हुई। कठिनाई यह हुई कि इतने थोड़े से लोगों के लिए... जहां दो सौ लोग रह सकते हों, वहां एक हजार विशाल पत्थर की मूर्तियां खोदने का प्रयोजन नहीं मालूम पड़ता। एक आदमी के पीछे पाँच मूर्तियां हो गयीं। और इतनी बड़ी मूर्तियां ये दो सौ लोग खोदना भी चाहें तो नहीं खोद सकते है। 9-इतना महंगा काम ये गरीब आदिवासी करना भी चाहें तो भी नहीं कर सकते। इनकी जिंदगी तो सुबह से सांझ तक रोटी कमाने में ही व्यतीत हो जाती है।और इन मूर्तियों को बनाने में हजारों वर्ष लगे होंगे।क्या प्रयोजन
होगा इतनी मूर्तियों का? किसने इन मूर्तियों को बनाया होगा, इतिहासविद् के सामने बहुत से सवाल थे।ऐसी ही एक जगह मध्य एशिया में है।
और जब तक हवाई जहाज नहीं उपलब्ध था, तब तक उस जगह को समझना बहुत मुश्किल पडा। हवाई जहाज के बन जाने के बाद ही यह ख्याल में आया, कि वह जगह कभी जमीन से हवाई जहाज उड़ने के लिए एयरपोर्ट का काम करती रही होगी। उस तरह की जगह के बनाने का और कोई प्रयोजन नहीं हो सकता ।
10-फिर वह जगह नहीं है। उसको बने हुए अंदाजन बीस हजार और पंद्रह हजार वर्ष के बीच को वक्त हुआ होगा। लेकिन जब तक हवाई जहाज नहीं बने थे तब तक तो हमारी समझ के बाहर की बात थी। हवाई जहाज बने, और हमने एयरपोर्ट बनाए, तब हमारी समझ में आया कि कभी एयरपोर्ट के काम की होगी ये जगह। इसलिए तीर्थ को हम तब तक न समझ पाएंगे जब तक कि तीर्थ पुन: आविष्कृत न हो जाए।
11-और अब उन ईस्टर आईलैंड की मूर्तियों है, उनके जो एयरव्यू / आकाश से हवाई जहाज के द्वारा जो चित्र लिए गये ;उनसे अंदाज लगाया है कि वह इस ढंग से बनायी गई है, और इस विशेष व्यवस्था में बनाई गई है कि किन्हीं खास रातों में चाँद पर से देखा जा सकें। वह जिस ज्योमैट्री के जिन कोणों में खड़ी की गयी है, वह पूरा का पूरा कोण बनाती है। और अब जो लोग उस सबंध में खोज करते है, उनका ख्याल यह है कि यह पहला मौका नहीं है कि हमने दूसरे ग्रहों पर जो जीवन है, उसके संबंध स्थापित करने की कामना की है। इसके पहले भी जमीन पर बहुत से प्रयोग किए गए, जिनसे हम दूसरे ग्रहों पर अगर कोई जीवन, कोई प्राणी हो तो उससे हमारा संबंध स्थापित हो सके। और दूसरे प्राणी-लोको से भी पृथ्वी तक संबंध स्थापित हो सकें, इसके बहुत से सांकेतिक इंतजाम किए है।
12-यह जो बीस तीस फीट ऊंची मूर्तियां है । ये अपने आप में अर्थपूर्ण नहीं है। लेकिन जब ऊपर से उड़कर उनके पूरे पैटर्न को देखा जाए, तब इनका पैटर्न किसी संकेत की सूचना देता है। वह संकेत चाँद से पढ़ा जा सकता है। पर जिन लोगों ने यह बनाया होगा—जब तक हम हवाई जहाज में उड़कर न देख सके, तब तक हम कल्पना भी नहीं कर सकेंगे...तब तक वह हमारे लिए मूर्तियों से अधिक कुछ नहीं थी। ऐसी इस पृथ्वी पर बहुत सी चीजें है, जिनके संबंध में तब तक हम कुछ भी नहीं जान पाते, जब तक की किसी रूप में हमारी सभ्यता, उस घटना का पुन: आविष्कार न कर ले।
13-सब तीर्थ बहुत ख्याल से बनाये गए है जैसे कि मिश्र के पिरामिड। वे मिश्र में, पुरानी खो गई सभ्यता के तीर्थ है। और इन पिरामिड के अंदर एक बड़ी मजे की बात है कि...। क्योंकि पिरामिड जब बने तब, वैज्ञानिको का खयाल है, उस काल में इलैक्ट्रिसिटी हो नहीं सकती।
कई बीस हजार वर्ष पुराना पिरामिड है। तब बिजली का तो कोई उपाय नहीं था। और इनके अंदर इतना अँधेरा कि उस अंधेरे में जाने का कोई उपाय नहीं है। अनुमान यह लगाया जा सकता है कि लोग मशाल ले जाते हों, या दीये ले जाते हो। लेकिन इतने पिरामिड में कहीं धुएँ का एक भी निशान नहीं है । इसलिए बड़ी मुश्किल है। एक छोटा सा दीया घर में जलाएगें तो पता चल जाता है। अगर लोग मशालें भीतर ले गए हों तो इन पत्थरों पर कहीं न कहीं न कहीं धुएँ के निशान तो होने चाहिए।
14-रास्ते इतने लंबे, इतने मोड़ वाले है, और गहन अंधकार है। तो दो ही उपाय हैं, या तो हम मानें कि बिजली रही होगी लेकिन बिजली की किसी तरह की फ़िटिंग का कहीं कोई निशान नहीं है। बिजली पहुंचाने का कुछ तो इंतजाम होना चाहिए। दूसरा आदमी सोच सकता है—तेल, घी के दीयों या मशालों का। पर उन सबसे किसी न किसी तरह के निशान पड़ते है, जो कहीं भी नहीं है। फिर उनके भीतर आदमी कैसे जाता रहा है, कोई नहीं जाता रहा होगा, तो इतने रास्ते बनाने की कोई जरूरत नहीं है। पर सीढ़ियाँ है, रास्ते है, द्वार है, दरवाजे है, अंदर चलने फिरने का बड़ा इंतजाम हे। एक-एक पिरामिड में बहुत से लोग प्रवेश कर सकते है, बैठने के स्थान है अंदर। वह सब किस लिए होंगे। यह पहेली बनी रह गई । और साफ नहीं हो पाएगी कभी भी। क्योंकि पिरामिड की साफ समझ नहीं है , कि ये किस लिए बनाए गए है? लोग समझते है, किसी सम्राट का फितूर होगा, कुछ और होगा।लेकिन ये तीर्थ है। 15-और इन पिरामिड में प्रवेश का सूत्र ही यही है, कि जब कोई अंतर अग्नि पर ठीक से प्रयोग करता है तो उसका शरीर आभा फेंकने लगता है। और तब वह अंधेरे में प्रवेश कर सकता है। तो न तो यहां बिजली उपयोग की गई है, न यहां कभी दीया उपयोग किया गया है। न मशाल का उपयोग किया गया है। सिर्फ शरीर की दीप्ति उपयोग की गई थी। लेकिन वह शरीर की दीप्ति अग्नि के विशेष प्रयोग से ही होती है। इनमें प्रवेश ही वही करेगा। जो इस अंधकार में मजे से चल सके। वह उसकी कसौटी भी है ,परीक्षा भी है, और उसको प्रवेश का हक भी है। वह हकदार भी है।
16-जब पहली बार 1905 या 10 में एक-एक पिरामिड खोजा जो रहा था तो जो वैज्ञानिक उस पर काम कर रहा था उसका सहयोगी अचानक खो गया। बहुत तलाश की गई कुछ पता न चला। यहीं डर हुआ कि वह किसी गलियारे में अंदर है। सर्च लाईट ले जाकर खोजा, लेकिन वह कोई चौबीस घंटे खोया रहा। चौबीस घंटे बाद, कोई रात दो बजे वह भागा हुआ आया, करीब पागल हालत में। उसने कहा, ''मैं टटोल कर अंदर जा रहा था कि कहीं मुझे दरवाजा मालूम पड़ा, मैं अंदर गया और फिर ऐसा लगा कि पीछे कोई चीज बंद हो गई। मैंने लौटकर देखा तो दरवाजा तो बंद हो चुका था। जब मैं आया ..तब खुला था। पर दरवाजा भी नहीं था , सिर्फ खुला था। फिर इसके सिवाय कोई उपाय नहीं था कि मैं आगे चला जाऊँ, और मैं ऐसी अद्भुत चीजें देखकर लौटा हूं जिसका कोई हिसाब लगाना मुश्किल है''।
17-वह इतनी देर गुम रहा, वह पक्का है, वह इतना परेशान लौटा है, पक्का है, लेकिन जो बातें वह कह रहा है वह भरोसे की नहीं है। कि ऐसी चीजें होंगी। बहुत खोजबीन की गई उस दरवाजे की,लेकिन दरवाजा दुबारा नहीं मिल सका। न तो वह यह बता पाया कि कहां से प्रवेश किया, न यह बता पाया कि वह कहां से निकला। तो समझा गया कि या तो वह बेहोश हो गया, या उसने कहीं सपना देखा। यहाँ वह कहीं सो गया। और कुछ समझने का चारा नहीं था।
18-लेकिन जो चीजें उसने कहीं थी वह सब नोट कर ली गयीं। उस साइकिक अवस्था में, स्वप्नवत् अवस्था में जो-जो उसने वहां देखीं। फिर खुदाई में कुछ पुस्तकें मिलीं जिनमें उन चीजों का वर्णन भी मिला, तब बहुत मुसीबत हो गई। उस वर्णन से लगा कि वह चीजें किसी कमरे में वहां बंद है, लेकिन उस कमरे का द्वार किसी विशेष मनोदशा में खुलता है। अब इस बात की संभावना है कि वह ऐसी सांयोगिक घटना थी कि इसकी मनोदशा वैसी रही हो। क्योंकि इसे तो कुछ पता नहीं था। लेकिन द्वार खुला अवश्य।
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....SHIVOHAM....