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औरा या आभामंडल क्या होता है? PART-01

औरा या आभामंडल क्या होता है?-

10 FACTS;

1-यह सम्पूर्ण संसार ऊर्जा से ही निर्मित है ; इसलिए हर चीज में ऊर्जा होना तो अचल ही है ।बिना ऊर्जा के इस दुनियाँ में किसी भी चीज का अस्तित्व हो ही नही सकता । फिर वह चाहे इंसान हो , सजीव – चल या अचल वस्तु, प्राणी हो या निर्जीव स्थिर वस्तु , हर एक पदार्थ में ऊर्जा होना उसकी मौजूदगी को दर्शाता है।देवी या देवताओं के चित्रों में पीछे जो गोलाकार प्रकाश दिखाई देता है उसे ही ओरा कहा जाता है।दरअसल यह ओरा हमारे शरीर के आसपास एक एनर्जी सर्कल होता है। विज्ञान की भाषा में इसे इलेक्ट्रॉनिक मैग्नेटिक फिल्ड कहते हैं। ओरा सजीव व्यक्तियों से लेकर निर्जीव व्यक्ति, वस्तुओं का भी हो सकता है। धरती का भी आभामंडल है। आपने चंद्रमा के आसपास प्रकाश देखा ही होगा। यही उसका आभामंडल है जो ध्यान से देखने पर दूर तक गोल दिखाई देता है।यह ऊर्जा हर किसी में उसके आचार विचार के अनुसार होती है, तथा उनके शरीर के आकार का ही ऊर्जामय घेरा या वलय होता है जिसे सामान्य आंखो से नहीं देखा जा सकता किंतु औरा डिटेक्टर से इसकी फोटोग्राफी कराई जा सकती है। इस ऊर्जा वलय को ही आभामंडल कहते हैं और इसे अंग्रेजी में औरा कहते हैं।

2-चाहे मनुष्य हो या अन्य कोई भी जीव हो, हर किसी का अपना औरा होता है।यह औरा विभिन्न रंगों की किरणों के साथ मनुष्य के आसपास चक्रिय आकार में घूमता है। जिस तरह आपका मन आपके शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है, उसी तरह से आपका शरीर भी आपके मन को एनर्जी देता है। यही कारण है कि कई बार लोग काफी खुश प्रतीत होते हैं। उनके चारो ओर का वातावरण खुशनुमा लगता है। इसे आप उनका “औरा” भी कह सकते हैं।केवल मनुष्य ही क्यों, बल्कि अन्य जीव जंतुओं के पास भी एक सूक्ष्म शरीर होता है जो उनके आभामण्डल को परिभाषित करता है।कोई साधक जब दीर्घकाल तक ध्यान या अन्य कोई साधना करता है उसका आभामंडल धीरे धीरे कुछ सेंटीमीटर बढ़ता जाता है और साधना की अवधि बढ़ने पर कई कई किलोमीटर तक भी फैल जाता है। जिनका आभामंडल जितना ज्यादा बड़ा तथा गहरा स्वच्छ सफेद होता है, वह इंसान अपनी इच्छा शक्ति के बल पर दुनिया का कोई भी बड़ा से बड़ा कार्य आसानी से कर पाने में सक्षम बन जाता है।

3-नकारात्मक और सकारात्मक ओरा :-

आभामंडल की ऊर्जा का संबंध मनुष्य के कर्मों से होता है। सकारात्मक वातावरण, सत्संग, हवन, मंत्र उच्चारण, ध्यान, भजन

और धार्मिक स्थानों के सानिध्य में मनुष्य का आभामंडल विस्तृत होता है। इसके विपरीत नकारात्मक संग, भोजन, संगीत,

साहित्य पढ़ना आदि आभामंडल को घटाता है। इसलिए यह विशेष ध्यान देना चाहिए कि हम अपना समय कैसे सानिध्य अथवा

संग में व्यतीत करते हैं .. कैसे लोगों के संबंध में अधिक रहते हैं। जिन लोगों का ओरा अपने विचार और कर्मों के द्वारा नकारात्मक हो चला है उसके पास बैठने या उनसे मिलने की भी व्यक्ति की इच्छा नहीं होती है। हम खुद अनुभव करते हैं कि कुछ लोगों से मिलकर हमें आत्मिक शांति का अनुभव होता है तो कुछ से मिलकर उनसे जल्दी से छुटकारा पाने का दिल करता है, क्योंकि उनमें बहुत ज्यादा नकारात्मक ऊर्जा होती है। अक्सर अपराधियों और कुविचारों के लोगों का ओरा नकारात्मक अर्थात काला, धुंधला, गहरा नीले या कपोत रंग का होता है। बहुत ज्यादा गहरा लाल रंग भी नकारात्मक होता है। 4-आभा मंडल की उत्पत्ति कैसे होती है?-

मनुष्य के शरीर में विद्यमान सात चक्र होते हैं जो क्रमश: इस प्रकार हैं- 1.मूलाधार चक्र, 2.स्वाधिष्ठान चक्र, 3.मणिपुर चक्र, 4.अनाहत चक्र, 5.विशुद्ध चक्र 6.आज्ञा चक्र, 7.सहस्त्र चक्र आदि। इन्ही सातों चक्रों से आभामंडल का निर्माण होता हैं आभामंडल का निर्माण मानसिक, शारीरिक व भावनात्मक शृंखलाओं के योग से होता है। मनुष्य के सातों चक्रों से सकारात्मक ऊर्जा प्रकट होती है तो वह उक्त व्यक्ति का आभामंडल /Aura कहलाता है। यदि सातों चक्रों से नकारात्मक ऊर्जा प्रकट होती है तो वह निष्प्रभ मंडल/Dark Circle कहलाता है।

5-हमारे शरीर के तीन स्तर एवम् पांच कोश ;-

मानव शरीर को चार प्रकार के शरीर में विभाजित किया गया है। इसमें से एक शरीर वही है जो मनुष्य अपने जीवन के दौरान अपने साथ लेकर चल रहा है, लेकिन अन्य सभी शरीर आत्मा के अलग होने के बाद आते हैं। लेकिन आभामण्डल स्वयं भी मानव के एक शरीर का निर्माण करता है, यह शरीर सूक्ष्म शरीर है इसीलिए दिखाई नहीं देता।इन्ही कोशों को जब हम ध्यान के द्वारा जागृत, करते हैं तब हमारे शरीर में ब्रम्हांड ऊर्जा प्रस्फुटित होती है।हमारे शरीर के तीन स्तर सूक्ष्म ,स्थूल और कारण शरीर एवम् पांच कोश होते हैं,जो हैं:

1-अन्नमय कोश – अन्न/भोजन से निर्मित, 2-प्राणमय कोश – प्राणों से बना हुआ। 3-मनोमय कोश – मन से बना हुआ। 4-विज्ञानमय कोश – अन्तर्ज्ञान या बुद्धि से बना हुआ। 5-आनंदमय कोश – आनन्दानुभूति से बना हुआ।

6-आभा मण्डल कैसे विकसित करे ?-

05 FACTS;-

1-आभा मण्डल सीधा अपने कर्मो से जु़डा रहता है। काम-क्रोध, मोह-माया, झूठ आदि जो मानव स्वभाव की प्रकृति के विपरीत हैं, उनमें संलग्न होने से आभा मण्डल क्षीण हो जाता है। एक साधारण स्वस्थ इंसान जिसका आभा मण्डल 2.8 से 3 मीटर तक माना जाता है, इससे भी नीचे जाने लगता है तब मानसिक एवं भौतिक तौर पर बीमार होकर मृत्यु की तरफ बढ़ता रहता है। तब मृत्यु पर ऑरा 0.9 मीटर जो मिट्टी या पंचभूत की अवस्था में पहुंच जाता है। आभा मण्डल के विकास के लिए हम धार्मिक स्थानों पर नियमित पूजा-पाठ, मन्त्रोच्चार, सत्संग आदि से सकारात्मक होते जाते हैं एवं जीवन में गुणात्मक परिवर्तन आने लगता है। वहीं गलत साहित्य, आधुनिक तथाकथित कल्चर का Negative वातावरण, Negative विचार,विपरीत आहार आदि सब आपके आभा मण्डल का ह्रास करते हैं इसलिए यह घटता-बढ़ता रहता है।अगर आप अपना आभा मण्डल विकसित करते हैं तो सही समय पर सही निर्णय लेकर सही सलाहकार ढूंढ लेंगे एवं सही राय से आप सही दिशा में कार्य करेंगे।

2-हर इंसान का अपना एक औरा होता है किंतु उसमें उस इंसान के कर्म व्यवहार के अनुरूप रंग आ जाते है । जैसे साधु का सफेद या हल्के रंग का औरा चोर डकैतों का काले रंग का औरा, जब कोई साधक ध्यान या अन्य किसी साधना के मार्ग पर होता है तो उसका आभामंडल गहरे रंग से हल्का होते हुए सफेद रंग की तरफ बढ़ने लगता है , क्योंकि उनके मनोविकारों में साधना से कमी आने लगती है।यदि आपका आभामंडल सही है तो सबकुछ सही होगा। आपका भाग्य, आपके ग्रह-नक्षत्र और आपका भविष्य सभी सुधर जाएंगे।जीवन के हर क्षेत्र में वे ही लोग ज्यादा प्रगति करते हैं जिनका आभामंडल शुद्ध और सशक्त होता है।शास्त्रों के अनुरूप एक साधारण व्यक्ति का आभामंडल 2 से 3 फीट तो महापुरुषों व संतों का आभामंडल 30 से 60 मीटर तक का होता है। जो साधना, तप, ध्यान इत्यादि पर निर्भर करता है तथा इनके घटने और बढ़ने पर आभामंडल भी घटता और बढ़ता है। इसे आध्यात्मिक ऊर्जा मंडल भी कहते हैं।

3-आभामंडल को निस्तेज करने वाले तत्व: काम ,क्रोध, मोह ,अहंकार, मद और दुर्व्यसन आदि हैं। इनकी अधिकता से शरीर में नकारात्मक ऊर्जा की उत्पत्ति होती है। तथा शरीर में प्रकट होने वाला आभामंडल निष्प्रभ मंडल/Dark Circle में परिवर्तित हो जाता है। स्वयं के आभामंडल को बढाने के लिए सदैव सकारात्मकता प्रदान करने वाले व्यक्त्वि व साहित्य को प्रबुद्धता दें। ओजस्वी, तेजस्वी व बुद्धिमान लोगों के संपर्क में समय व्यतीत करें। घर दफ्तर में पेड़ पौधों का रोपण करें। प्रकाश की व्यवस्था ठीक रखेंं। स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें। घरों में हवन, मंत्रोच्चारण ,दीप प्रकाश, शंखनाद आदि करते रहें। पांच तत्वों की शुद्धि का सदैव ध्यान दिया जाना चाहिए… जल, अग्नि, वायु ,पृथ्वी तथा आकाश। इनसे संबंधित प्रदूषण करने से बचना चाहिए।

4-सनातन धर्म के अनुसार प्रकृति को अथार्त विशेष वनस्पति पूजनीय कही गई है जैसे कि पीपल, तुलसी, वटवृक्ष, पुष्पों में कमल, गुलाब, कनेर, सफेद आक आदि। मनुष्य हों ,हों जीव जंतु हों अथवा अन्य कोई सजीव प्राणी हों सभी का आभामंडल भिन्न- भिन्न प्रकार का होता है। कुछ शास्त्र प्रमाणों के माध्यम से समझते हैं कि किस वनस्पति अथवा जीव जंतुओं का आभामंडल कितनी दूरी तक होता है तथा सनातन धर्म में पूजा पद्धति में उनका क्या महत्व है? पीपल वृक्ष 3.5 मीटर, तुलसी 6.11 मीटर, वट वृक्ष 10.1 मीटर, कदम वृक्ष 8.4 मीटर, नीम वृक्ष 5.5 मीटर, आम वृक्ष 3.5 मीटर, नारियल 10.5 मीटर, कमल पुष्प 6.8 मीटर, गुलाब पुष्प 5.7 मीटर, सफेद आक 15 मीटर,, गाय 16 मीटर, गाय घृत 14 मीटर, गाय दुग्ध 13 मीटर, गाय दधि 6.9 मीटर। इस प्रकार प्रकृति में सभी मनुष्यों, ष्यों जीव जंतुओं, ओं वनस्पतियों तथा पदार्थों का अपना-अपना आभामंडल होता है।

5-सनातन धर्म में हवन यज्ञ, शालीग्राम व शिव अभिषेक इत्यादि में भिन्न-भिन्न पदार्थों को इसी कारण उपयोग किया जाता है कि उन पदार्थों के विशेष आभामंडल के संपर्क में आने से मनुष्य तथा वातावरण में सकारात्मक आभा मंडल का विस्तार होता है। जैसे हवन में आम की लकड़ी, गौ घृत जौ, तिल आदि की आहुति देने से वातावरण में विस्तृत आभामंडल का निर्माण होता है तथा जो जीव उस आभामंडल के सानिध्य में होंगे ..उनका भी आभा वृत्त बढ़ता है।

आभा मंडल की कमी के कारण;-

04 FACTS;-

1-काम, क्रोध, मोह, लोभ, मद, अहंकार छः मनुष्य के शत्रु हैं। व्यक्ति द्वारा इन छः कर्मों में संलग्न होने से आभामण्डल क्षीण या कम होता जाता है। हम निरंतर एक दूसरे को भला बुरा कहते रहते है। एक दूसरे को डाँटते-फटकारते रहते है। निरंतर अपने नकारात्‍मक भाव व विचार क्रोध-आक्रोश भय चिंता,विवशता आदि-आदि दूसरों को संप्रेषित करते रहते है। आभामण्डल की ऊर्जा तरंगं टूट जाती है तथा आभामण्डल के कमजोर होते ही व्यक्ति में सोचने-समझने की शक्ति भी क्षीण हो जाती है। एक साधारण इंसान का औरा या आभामण्डल 2 से 3 फीट तक माना जाता है। आभामण्डल का आवरण इस माप से नीचे जाने पर व्यक्ति मानसिक व भौतिक रूप से विकृत हो जाता है या टूटने लगता है। इस स्थिति में उसका आत्म बल भी कम हो जाता है। व्यक्ति की यह स्थिति जीवन में कष्ट या दुःख वाली कहलाती है। मृत व्यक्ति का औरा 0.5 या 0.6 रह जाता है।

2-हमारे जीवन में भौतिक सुख-सुविधा के साधनों में- मोबाईल, इलेक्ट्रिक एवं इलेक्ट्रोनिक्स साधन है ये एक मैग्नेटिक ऊर्जा का निर्माण कर विकिरण पैदा करते हैं। मोबाईल, फ्रीज, एसी, टी.वी., कंप्यूटर आदि अन्य सभी से नेगेटिव ऊर्जा निकलती है जो हमें नुकसान पहुंचाती रहती है। यह सत्य है कि आभामण्डल, स्प्रिट एनर्जी आध्यात्मिक ऊर्जा व नकारात्मक ऊर्जा से यह तीसरी मैग्नेटिक ऊर्जा का प्रभाव मन्द गति होने की वजह से हमें प्रतीत नहीं होता है। धीरे-धीरे इस ऊर्जा का प्रभाव हमारे

शरीर व मन-मस्तिष्क पर होता रहता है।इनके अलावा भी घर, ऑफिस, दुकान, फैक्ट्री में भी नकारात्मक ऊर्जा का एक कारण वास्तु दोष भी है। यदि भवन, व्यवसाय स्थल वास्तु के नियमों में नहीं है तो उससे भी नेगेटिव ऊर्जाओं का प्रभाव बना रहता है।

3-इलेक्ट्रो मैग्नेटिक फिल्ड से होती है औरा छतिग्रस्त ;-

प्रायः जब हम बच्चे होते हैं तो हमारी “औरा” अर्थात आभामण्डल भरपूर होता है पर जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं अनाप-शनाप खानपान, हमारी बुरी आदतें, भौतिक सुख-सुविधा के साधन जैसे- मोबाईल, इलेक्ट्रिक एवं इलेक्ट्रो निक्स साधन की चीजें जो एक नकारात्मक शक्ति (नेगेटिव मैग्नेटिक ऊर्जा का उत्सर्जन)? कर विकिरण पैदा करती हैं, मोबाईल, फ्रीज, एसी, टी.वी., कंप्यूटर आदि से एक प्रकार की नकारात्मक (नेगेटिव) ऊर्जा निकलती है जो धीरे-धीरे हमारे शरीर व मन-मस्तिष्क को छतिग्रस्त करती रहती हैं तथा हमारी प्राकृतिक “औरा” आभामण्डल को आहिस्ता-आहिस्ता समाप्त कर देती है।

4-जिओपैथिक स्ट्रेस ;-

03 P0INTS;-

1-इनके अलावा एक और बड़ी नकारात्मक शक्ति भी है जो हमारी इस प्राकृतिक ऊर्जा को तेजी से छतिग्रस्त करने में प्रभावी है वह है जियोपैथीक स्ट्रेस यह धरती के गर्भ से आने वाला एक ऐसा नुकसानदायक रेडिएशन है जिसकी उत्पत्ति का कारण भूगर्भ में धरती की चट्टानों के खिसकने, पानी के भूमिगत स्रोत के बहाव से उत्पन्न ऊर्जा है जो दाब के करण दूषित हो जाती है अथवा भूमिगत जल के बड़े स्रोत या ऐसे कई अन्य कारण हो सकते हैं। इस नकारात्मक ऊर्जा का बहाव अगर हमारे घर मे हमारे सोने के स्थान से होकर गुजरता है तो धीरे-धीरे हमारी सकारात्मक ऊर्जा को दूषित कर हमारी औरा को समाप्त कर देता है। और हम बीमार, चिड़चिडेपन एवं अवसाद में घिर जाते हैं।

2-जियोपैथीक स्ट्रेस एक लैटिन शब्द है जिओ अर्थात “जमीन” पैथीक अर्थात “बीमारी” यह नकारात्मक दूषित ऊर्जा लंबवत जमीन से उत्सर्जित होकर वनस्पति तथा वस्तु के साथ-साथ हमारे शरीर का Immune System कमजोर कर देती है जिससे हमारी रोग- प्रतिरोधक छमता कमजोर हो जाती है। परिणाम स्वरूप कैंसर, हार्ट प्रॉब्लम, ज्वाइंट पेन, किडनी प्रॉब्लम, शुगर, लिवर, उच्च रक्तचाप, आदि अथवा Depression मानसिक परेसानी, दौरे पड़ने जैसी भयंकर बीमारियां हमें घेर लेती हैं। वहीं हमारे घर मे बच्चों का बिना मतलब क्रोध करना, नींद में चलना, बिस्तर पर पेशाब करना, घड़ी के कांटों की तरह बिस्तर में घूमना, पढ़ाई या काम में मन न लगना, नशा करना अथवा गलत संगत में पड़ने जैसी भयंकर परेशानियां घर में पैर पसारने लगती हैं । अर्थात यह जियोपैथीक स्ट्रेस वास्तु दोष के रूप में हमारे घर मे कार्य करता है और हमे अंदर से खोखला करता रहता है।

3-जिन घरों में चीटियां ज्यादा दिखाई देती हैं, बिल्लियों का ज्यादा आना जाना रहता है, मधुमक्खी के छत्ते व दीमक पाई जाती हैं, आम तौर पर ऐसे घर G.S अर्थात जियोपैथीक स्ट्रेस बाधित होते हैं। साधारण भाषा मे कहा जाए तो ऐसे घर के नीचे से जियोपैथीक लाइन गुजर रही होती है अथवा वहां पर इस तरह की दो लाइने एक दूसरे को काटती हैं। अर्थात इनका चार रास्ता बनता है। यह घर के साथ-साथ ऑफिस ,दुकान, फैक्ट्री में भी यह नकारात्मक ऊर्जा लाइन हो सकती है जो कैस काउंटर के नीचे से, प्रबंधक अथवा किसी भी कार्यरत व्यक्तिके बैठने के स्थान के नीचे से, फैक्ट्री में महत्वपूर्ण मशीनों के नीचे से गुजरती हो तो वहाँ पे भयंकर मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। व्यक्ति अपना कार्य उचित ढंग से न कर पायेगा, मशीने ज्यादातर खराब ही पड़ी रहेंगी। अतः ऐसी नकारात्मक ऊर्जा की जांच किसी कुशल भूगर्भ विज्ञानी वास्तुशास्त्री से करवानी चाहिए और इसका उचित परिशोध करवाना चाहिए। जिससे व्यक्ति अथवा स्थान को शुभ ऊर्जा से परिपूर्ण किया जा सके। इस नकारात्मक शक्ति नेगेटिव एनर्जी अर्थात जियोपैथीक स्ट्रेश की जांच आज के युग मे हमारे वैज्ञानिकों ने आसान कर दी है। उन्होंने “औरा स्कैनर” नामक एक आधुनिक यंत्र ईजाद कर लिया है जिसकी सहायता से प्रामाणिक रूप से वस्तु एवं व्यक्ति का आभामण्डल जांच सकते हैं।

ओरा को ठीक करने के तरीके ;-

03 P0INTS;-

1. आग में तापना :-

आपने अक्सर देखा होगा कि अखाड़े के बाबा या नागा बाबा धूना लगाते हैं या धूनी लगाकर तापते हैं। इससे ओरा ठीक और शुद्ध होता है। यह आभामंडल को भौतिक रूप से ठीक करने की प्रक्रिया है। आप आग के सामने पीठ करके बैठें और बहुत थोड़े समय के लिए तापें। ऐसा कम से कम 43 दिन तक करें।

2. ध्यान : -

प्रतिदिन उचित स्‍थान और वातावरण पर आसन लगाकर पांच मिनट के लिए ध्यान करें। ध्यान के वक्त किसी भी प्रकार के फालतू एवं नकारात्मक विचारों को त्यागकर आपको पूर्णत: शांत रहकर अपनी श्वासों के आवागमन पर ध्यान देना है। ऐसा आप कम से कम 43 दिनों तक करें। यदि आप ध्यान नहीं करना जानते हैं तो प्रार्थना करें।

3. घर का वास्तु सुधारें :-

यदि आपका घर नकारात्मक दिशा में है या घर में नकारात्मक वस्तुएं हैं तो इस समस्या को दूर करके घर का रंग-रोगन बदलें। घर को पूर्णत: वास्तु अनुसार बनाएं और सजाएं।

...SHIVOHAM...




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