पांचवां शिवसूत्र-"उद्यमो भैरव:''।
NOTE;-महान शास्त्रों और गुरूज्ञान का संकलन
04 FACTS;-
1-भगवान शिव कहते है "उद्यमो भैरव:''-उद्यम ही भैरव है।उद्यम का अर्थ है प्रगाढ़ श्रम। उद्यम उस आध्यात्मिक प्रयास को कहते हैं, जिससे तुम इस संसार रूपी कारागृह के बाहर होने की चेष्टा करते हो।जो चेष्टा /Effort करता है, वही भैरव है। भैरव शब्द पारिभाषिक है।’भ' का अर्थ है 'भरण';'र' का अर्थ है रवण;और 'व' का अर्थ है वमन। भरण का अर्थ है Maintenance , रवण का अर्थ है संहार, और वमन का अर्थ है फैलाना।मूल अस्तित्व का नाम भैरव है।हिंदू देवताओं में भगवान भैरव को भगवान शिव का ही एक रूप माना जाता है।भैरव का अर्थ होता है भय का हरण कर जगत का भरण करनेवाला। भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित है। भैरव शिव के गण और पार्वती के अनुचर माने जातेहैं।भैरव नाम में दार्शनिक गुण हैं और स्पष्ट जागरूकता और सावधान रवैया के कारण स्पष्ट अंतर्ज्ञान है।
2-जिस दिन भी तुमने आध्यात्मिक जीवन की चेष्टा शुरू की, तुम भैरव होने लगे;अथार्त तुम परमात्मा के साथ एक होने लगे। तुम्हारे भीतर मुक्त होने का पहला खयाल तुम्हारी चेष्टा की पहली किरण है ,और तुमने यात्रा शुरू कर दी।मंजिल भी ज्यादा दूर नहीं है क्योंकि पहला कदम ही करीब-करीब आधी यात्रा है।तुम्हारे भीतर जैसे ही यह भाव सघन होना शुरू हुआ कि अब मैं मूर्च्छा से बाहर निकलूं और चैतन्य बनूं वैसे ही तुम भैरव होने लगते हो...अथार्त ब्रह्म के साथ एक होने लगे।तुम उसी सागर के झरने हो, उसी सूरज की किरण हो, उसी महा आकाश के एक छोटे से खंड हो..मूलत: तो तुम एक हो ही।वास्तव में ,तुम एक हो ही, लेकिन सिर्फ यह स्मरण आ जाए तो तुम्हारी यात्रा प्रारभ्म हो गयी।मंजिल पहुंचने में तो समय लगेगा;लेकिन तुमने चेष्टा शुरू कर दी ।
3-चेष्टा से तुम्हारे भीतर बीज आरोपित हो जाता हैं कि मैं इस कारागृह रूपी संसार से बाहर आ जाऊं, शरीर से,जन्मों की आकांक्षा ,वासना से मुक्त हो जाऊं और अब इस संसार में फंसाव के बीज न बोऊं। तुम्हें यह स्मरण आना शुरू हो जाये और दीवालें विसर्जित होने लगें, तो तुम इस महा आकाश के साथ एक हो जाओगे।बड़ी जबरदस्त चेष्टा करना जरूरी है क्योंकि गहरी नींद है; जब तोड़ने का सतत प्रयास करोगे, तो ही टूट पायेगी ,आलस्य से संभव नहीं होगा।उद्यम का अर्थ है..तुम्हारी पूरी चेष्टा संलग्र हो जाये।आज तोड़ोगे, और कल फिर बना लोगे तो फिर भटकते रहोगे।लोग शिकायत करते हैं 'हम करते हैं, लेकिन कुछ हो नहीं रहा।इसका अर्थ है कि उनके करने में कोई प्राण नहीं हैं ...इसलिए नहीं होता।शिकायत का अर्थ है कि कहीं कुछ अन्याय हो रहा है कि दूसरों को हो रहा है, हमें नहीं हो रहा है।वास्तव में ,इस जगत में अन्याय होता ही नहीं।जो भी होता है, वह न्याय ही है। क्योंकि न्याय-अन्याय करने को यहां कोई मनुष्य नहीं बैठा है।जगत में तो तटस्थ नियम हैं, उन्हीं तटस्थ नियमों का नाम धर्म है।
4-गुरुत्वाकर्षण के नियम न तुम्हें गिराने को उत्सुक है, न तुम्हें सम्हालने में उत्सुक है।जब तुम सीधे चलते हो, तो वही तुम्हें संभालता है और जब तिरछे चलते हो, तो वही तुम्हें गिराता है।न उसकी कोई गिराने कीआकांक्षा है, न सम्हालने की।वह परम नियम है... तटस्थ है और तुम्हारी तरह पक्षपात नहीं करता कि किसी को गिरा दे, किसी को उठा दे। तुम जैसे ही ठीक चलने लगते हो, वह तुम्हें संभालता है।तुम गिरना चाहते हो तो ही वह तुम्हें गिराता है।वह हर हालत में उपलब्ध है ;उसके द्वार बंद नहीं है।तुम दरवाजा खोलकर भीतर जाना चाहते हो,तो भीतर चले जाओ या दरवाजे से सिर ठोकना चाहते हो,तो सिर ठोक लो।उद्यम भैरव है और इसके लिए महान श्रम चाहिए।श्रम में तुम्हारी समग्रता लग जाये...तब तुम्हारे भैरव हो जाने में देर न लगेगी।भैरव का प्रतीकात्मक अर्थ है.... ब्रह्म जो धारण किये है, जो सम्हाले है, जिसमें हम पैदा होंगे, और जिसमें हम मिटेंगे।जो सृष्टि का Origin है और जिसमें प्रलय भी होगा।
...SHIVOHAM.....
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