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छठवां शिवसूत्र- ''शक्तिचक्र के संधान से विश्व का संहार हो जाता है''।

NOTE;-महान शास्त्रों और गुरूज्ञान का संकलन...

03 FACTS;-

1-भगवान शिव कहते है " शक्तिचक्र के संधान से विश्व का संहार हो जाता है'' अगर तुमने ठीक से उद्यम किया और अपनी संपूर्ण ऊर्जा को सत्य की,आत्मा की या परमात्मा की खोज में संलग्र कर दिया .... तो तुम्हारे भीतर जो शक्ति का चक्र है, वह पूर्ण हो जाता है।अभी तुम्हारे भीतर शक्ति का चक्र पूर्ण नहीं है ।विज्ञान के अनुसार बुद्धिमान से बुद्धिमान मनुष्य भी अपनी पंद्रह प्रतिशत से ज्यादा प्रतिभा का उपयोग नहीं करता, अथार्त पच्चासी प्रतिशत प्रतिभा का तो इस्तेमाल ही नहीं होता है। यह तो केवल प्रतिभा की बात है।वास्तव में, हम अपने शरीर की ऊर्जा का भी पांच प्रतिशत से ज्यादा उपयोग नहीं करते । हमारे जीवन का दीया केवल टिमटिमाता रहता है,क्योकि हम जीने से भी भयभीत है।हम डरे-डरे ,कंपते -कंपते जीते है।तो फिर भीतर जो शक्ति का चक्र है , वह पूरा नहीं हो पाता।बस तुम्हारा जीवन ऐसा ही है ..हिचकोले खाते चलता है ।

2-शक्ति के केवल खंड आते हैं; इसीलिए शक्ति अखंड नहीं हो पाती। जिस चीज में भी तुम अपनी पूरी शक्ति लगा दोगे, वही उद्यम है।वह कुछ भी हो सकता है।उदाहरण के लिए अगर तुम चित्र बनाते हो, और चित्रकार हो, और तुमने अपनी पूरी शक्ति चित्र बनाने में लगा दिया, तो तुम वहीं से मुक्त हो जाओगे; क्योंकि, वही उद्यम है। पूर्ण होते ही भैरव हो जाता है।अगर तुम एक मूर्तिकार हो; तुमने सब कुछ मूर्ति में समाहित कर दिया तो शक्ति का चक्र पूरा हो जाता है। जब तुम किसी भी कृत्य में, पूरी शक्ति में Submerged करते हो, तो वही ध्यान हो जाता है।तब भैरव निकट है, अथार्त मंजिल पास आ गयी।और जब भी तुम्हारी शक्ति का चक्र पूरा होता है ; उसी क्षण तुम्हारे लिए विश्व समाप्त हो गया।

3-पूर्णता और सम्पूर्णता में अंतर है।पूर्णता/Wholeness अथार्त ब्रह्म का प्रतीक है और सम्पूर्णता/Perfectness अथार्त प्रकृति का प्रतीक है।पूर्णता प्राप्त होते ही तुम्हारे लिए कोई संसार नहीं है। फिर तुम परमात्मा हो गये , भैरव हो गये , मुक्त हो गये। फिर तुम्हारे लिए न कोई बंधन है, न कोई शरीर है, न कोई संसार है।हमें सम्पूर्ण शक्ति का प्रयोग स्मरण रखना है।अगर तुमने पूरी शक्ति को लगाया तो फिर क्षणभर की देर नहीं लगती। तुम उसी क्षण अनुभव करोगे कि अचानक संसार खो जाता है और परमात्मा सामने आ जाता है। तुम्हारी शक्‍ति का पूरा लग जाना ही तुम्हारे जीवन की क्रांति हो जाती है। फिर पीठ संसार की तरफ हो जाती है और मुंह परमात्मा की तरफ हो जाता है।अगर तुम्हें उसकी एक झलक भी मिल जाए तो फिर तुम वही न हो सकोगे, जो तुम पहले थे।फिर उसकी एक झलक से तुम्हारा जीवन उसी यात्रा में संलग्र हो जायेगा।तो ध्यान रखना है कि अपने को पूरा डुबाना है, तो ही कुछ हो सकेगा। अगर तुमने थोड़ा भी अपने को बचाया तो तुम्हारा श्रम व्यर्थ है। जब तक श्रम उद्यम न बन जाए , टोटल एफर्ट न बन जाए ..तब तक भैरव की उपलब्धि नहीं होगी।

....SHIVOHAM....



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