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देव दीपावली का क्या महत्व हैं?

  • Writer: Chida nanda
    Chida nanda
  • Nov 13, 2021
  • 4 min read

कार्तिक मास की अमावस्या यानी दीपावली के 15 दिन बाद कार्तिक मास की पूर्णिमा पड़ती है जो अंधेरे का सर्वनाश करने के लिए जानी जाती है।ऐसी मान्यता है कि इस दिन देवता गण स्वर्ग से उतरकर दीपदान करने पृथ्वी पर आते हैं। इसी वजह से इस दिन को देव दीपावली के नाम से जाना जाता है।दूसरी पौराणिक मान्यता के अनुसार देव दीपावली को लेकर दूसरी मान्यता है कि देव उठनी एकादशी पर भगवान विष्णु चर्तुमास की निद्रा से जागते हैं और भगवान भोलेनाथ चतुर्दशी को। इस खुशी में देवी देवता काशी में आकर घाटों पर दीप जलाते हैं और खुशियां मनाते हैं।इस दिन किसी नदी या तालाब में दीपदान करने से सभी तरह के संकट समाप्त होते हैं और कर्ज से मुक्ति मिलती है।देव दीपावली पर काशी के 84 घाटों को दीयों की रौशनी से सजाया जाएगा। 15 लाख से ज्यादा दीपक को जलाया जाएगा। इसके साथ ही कुंड, तालाबों में दीपदान किया जाएगा।


क्यों मनाई जाती है देव दिवाली ?-

कार्तिक पूर्णिमा को सभी पूर्णिमा में सबसे ज्‍यादा पवित्र और अहम माना गया है।कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीपदान किया जाता है। विष्‍णु पुराण के मुताबिक कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान विष्‍णु (Lord Vishnu) ने मत्‍स्‍यावतार लिया था।तारकासुर नाम का एक राक्षस रहता था जिसके तीन पुत्र थे - तारकक्ष, विद्युन्माली और कमलाक्ष। तीनों ने गहन तपस्या करके भगवान ब्रह्मा का आशीर्वाद मांगा था। इसलिए, उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर, जैसे ही भगवान ब्रह्मा उनके सामने प्रकट हुए, तीनों ने अमरता का वरदान मांगा। लेकिन चूंकि आशीर्वाद ब्रह्मांड के नियमों के खिलाफ था, इसलिए ब्रह्मा ने इसे देने से इनकार कर दिया।इसके बजाय, उन्हें एक वरदान दिया जिसमें यह आश्वासन दिया कि जब तक कोई उन तीनों को एक तीर से नहीं मारेगा, तब तक उनका अंत नहीं होगा। ब्रह्मा द्वारा आशीर्वाद प्राप्त करने के तुरंत बाद, तीनों ने तीनों लोकों में बड़े पैमाने पर विनाश किया और मानव सभ्यता के लिए भी खतरा साबित हुए।इसलिए, भगवान शिव ने त्रिपुरारी या त्रिपुरांतक का अवतार लिया और एक ही तीर से तीनों राक्षसों को मार डाला।यह कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि थी। यही कारण है कि हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा पर आज भी काशी में दिवाली मनाई जाती है।यह त्योहार पवित्र शहर वाराणसी और अयोध्या में बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। इस प्रकार, वे भगवान शिव को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, जिन्हें प्राचीन शहर काशी में विश्वनाथ कहा जाता है।कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है और हिंदू धर्म में इसका विशेष महत्व है।कहा जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा (Ganga Snan 2021) के दिन भगवान शंकर ने त्रिपुरासुर नामक असुर का विनाश किया था और तभी से इस दिन त्रिपुरारी नाम से जाना जाता है।सिख धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का दिन खास होता है, इसी दिन सिख धर्म ते संस्थापक गुरु नानक देव का जन्म हुआ था।इस दिन सिख धर्म के सभी लोग दीपावली की तरह से दिए जलाते हैं।इसे गुरु पर्व भी कहा जाता है।

देव दिवाली पूजन विधि;-

1-इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में गंगा नदी में स्नान करना चाहिए या घर पर ही पानी में गंगाजल डालकर स्नान किया जा सकता है। 

इसके बाद भगवान शिव, विष्णु जी और देवताओं का ध्यान करते हुए पूजन करना चाहिए।

2-संध्या समय किसी नदी या सरोवर पर जाकर दीपदान करना चाहिए। यदि वहां नहीं जा सकते तो किसी मंदिर में जाकर दीपदान करना चाहिए।अपने घर के पूजा स्थल और घर में दीप जलाने चाहिए।  

3-तपस्विनी कृतिकाओं का पूजन ..कार्तिक पूर्णिमा के दिन चंद्रोदय के समय शिवा, सम्भूति, प्रीति, संतति, अनसूया और क्षमा इन 6 तपस्विनी कृतिकाओं का पूजन किया जाता है।ये भी स्वामी कार्तिक की माताएं हैं और इनका पूजन करने से घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है।

4-कार्तिक पूर्णिमा के दिन शालीग्राम और तुलसी जी की पूजा का विशेष महत्व है.कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी में दीप प्रजव्वलित करके विधिवत पूजन अवश्य करना चाहिए, इससे दरिद्रता दूर होती है साथ ही शालीग्राम का पूजन भी जरूर करें। ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है।इस दिन रात में जागरण भी करते हैं. इससे सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

5-पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 18 नवंबर, गुरुगुवार दोपहर 12 बजे से शुरू होकर

पूर्णिमा तिथि समाप्त: 19 नवंबर, शुक्रवार दोपहर 02:26 मिनट तक है.

प्रदोष काल मुहूर्त: 18 नवंबर सायं 05:09 से 07:47 मिनट तक...पूजा अवधि: 2 घंटे 38 मिनट

अक्षय-धन-प्राप्ति शाबर मन्त्र;-

प्रार्थना;-

हे मां लक्ष्मी, शरण हम तुम्हारी।

पूरण करो अब माता कामना हमारी।।

धन की अधिष्ठात्री, जीवन-सुख-दात्री।

सुनो-सुनो अम्बे सत्-गुरु की पुकार।

शम्भु की पुकार, मां कामाक्षा की पुकार।।

तुम्हें विष्णु की आन, अब मत करो मान।

आशा लगाकर हम देते हैं दीप-दान।।

मन्त्र;-

“ॐ नमः विष्णु-प्रियायै, ॐ नमः कामाक्षायै। ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं श्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा।”

विधि;-

‘दीपावली’ की सन्ध्या को पाँच मिट्टी के दीपकों में गाय का घी डालकर रुई की बत्ती जलाए। ‘लक्ष्मी जी’ को दीप-दान करें और ‘मां कामाख्या ’ का ध्यान कर उक्त प्रार्थना करे। मन्त्र का 108 बार जप करे। ‘दीपक’ सारी रात जलाए रखे और स्वयं भी जागते रहे। नींद आने लगे, तो मन्त्र का जप करे। प्रातःकाल दीपों के बुझ जाने के बाद उन्हें नए वस्त्र में बाँधकर ‘तिजोरी’ या ‘बक्से’ में रखे। इससे श्रीलक्ष्मी जी का उसमें वास हो जाएगा और धन-प्राप्ति होगी। प्रतिदिन सन्ध्या समय दीप जलाए और पाँच बार उक्त मन्त्र का जप करे।इस मन्त्र को कार्तिक पूर्णिमा को भी सिद्द कर सकते है।


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