top of page

Recent Posts

Archive

Tags

बसंत पंचमी का क्या महत्व है?

05 FACTS;-

1-वसंत पंचमी एक भारतीय त्योहार है, इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन स्त्रियाँ पीले वस्त्र धारण करती हैं।हिन्दू धर्म में पीले रंग को शुभ माना गया है। पीला रंग शुद्ध और सात्विक प्रवृत्ति का प्रतीक माना जाता है।मान्यता है कि यह रंग डिप्रेशन दूर करने में कारगर है। यह उत्साह बढ़ाता है और दिमाग सक्रिय करता है। हम पीले परिधान पहनते हैं तो सूर्य की किरणें प्रत्यक्ष रूप से दिमाग पर असर डालती हैं। प्राचीन भारत में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था।जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों मे सरसों का सोना चमकने लगता, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें भगवान विष्णु और कामदेव की पूजा होती, यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था।

2-बसन्त पंचमी की कथा.. सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों आ॓र मौन छाया रहता है।भगवान विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा।

3-माता सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। माता सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं ..परम चेतना हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है।जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं। इस दिन भगवान को आम का बौर चढ़ाया जाता है तथा माघी गुप्त नवरात्रि की पंचमी को माता सरस्वती का पूजन-अर्चन तथा मंत्र जाप करने का अनंत गुना फल मिलता है।मंत्र है- (1) ॐ ऐं वाग्दैव्यैविद्महेकामराजाय धीमही तन्नो देवी प्रचोदयात। (2) 'ऐं' ....इस एकाक्षरी मंत्र को माता सरस्वती का बीज मंत्र कहते हैं। इसके 12 लाख जप करने से सिद्धि मिलती है। अगर आप कवि या लेखक बनना चाहते हैं तो नित्य 100 माला वसंत पंचमी से प्रारंभ कर 1 वर्ष तक करें।

4-बसंत पंचमी से ही वसंत ऋतु का आगमन होता है. ... इसलिए बसंत पंचमी पर सृष्टि की इस अनुपम छटा का लुत्फ उठाने के लिए कामदेव और रति का पृथ्वी पर आगमन होता है। उनके आने से इस ऋतु में सभी जीवों में प्रेम भाव का संचार होता है। इसी वजह से बसंत पंचमी पर कामदेव और उनकी पत्नी रति की पूजा करने की परंपरा है। कामदेव को अनंग कहा गया है यानी बिना अंग वाले। भगवान शिव ने उनको वरदान दिया था कि वे भाव स्वरूप में विद्यमान रहेंगे।कामदेव और रति एक दूसरे के पूरक हैं और प्रेम को बढ़ाने वाले हैं। कामदेव की धनुष एवं बाण फूलों का बना है... जिसका वार घातक नहीं होता। वे पुष्प बाण से लोगों में प्रेम एवं काम उत्पन्न करते हैं। वसंत पंचमी के अवसर पर कामेदव अपनी पत्नी रति के साथ पृथ्वी पर विचरण करते हैं।माना जाता है कि अगर वे नहीं हों तो सृष्टि की उन्नति रुक जाएगी। साथ ही प्राणियों में प्रेम भावना खत्म हो जाएगी


5-वसंत पचंमी पर कामदेव एवं रति की पूजा हैं...मंत्र ओम कामदेवाय विद्महे, रति प्रियायै धीमहि, तन्नो अनंग प्रचोदयात्।इस मंत्र से पूजा करने पर वैवाहिक जीवन में मधुरता आती है।शुक्र ग्रह भी संबंधों में प्रेम को बढ़ाने वाला है।आज के दिन कामदेव की पूजा के बाद शुक्र ग्रह मंत्र ...ओम द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम: का जाप भी कर सकते हैं।पौराणिक महत्व के साथ ही यह पर्व हमें अतीत की अनेक प्रेरक घटनाओं की भी याद दिलाता है। सर्वप्रथम तो यह हमें त्रेता युग से जोड़ती है। रावण द्वारा माता सीता के हरण के बाद श्रीराम उसकी खोज में दक्षिण की ओर बढ़े। इसमें जिन स्थानों पर वे गये, उनमें दंडकारण्य भी था।गुजरात के डांग जिले में वह स्थान है जहां शबरी मां का आश्रम था। वसंत पंचमी के दिन ही रामचंद्र जी वहां आये थे। उस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनकी श्रध्दा है कि श्रीराम आकर यहीं बैठे थे। वहां शबरी माता का मंदिर भी है।

...SHIVOHAM...

Comments


Single post: Blog_Single_Post_Widget
bottom of page